जिसने भी धर्म का धंधा बंद करवाया, धंधे वालों ने उसी को अपना धर्म बनाया, अंबेडकर ने खुद की पूजा से क्यों किया था मना ?

जिसने भी धर्म का धंधा बंद करवाया, धंधे वालों ने उसी को अपना धर्म बनाया, अंबेडकर ने खुद की पूजा से क्यों किया था मना ?

बुद्ध की विचारधारा से ज्यादा बुद्ध की मूर्तियों में है लोन इंटरेस्टेड

आपको ‘ओ माय गॉड’ के कांजी भाई तो याद ही होंगे, जिन्होंने धर्म का धंधा बंद करवाया तो धंधे वालों ने उन्हीं को अपना धर्म बना लिया था। आज हम आपको कांजी भाई की ये कहानी सिर्फ इसलिए बता रहे हैं कि कुछ इस तरह की बाते गौतम बुद्ध और बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर ने भी अपने जीवन काल में कहा था। जिस बात को बुद्ध ने अपनी पूरी जिंदगी लोगों को समझाया की मूर्ति पूजन गलत है और मेरी भी पूजा मत करो उसी चीज को लोगों ने बुद्ध के मरने के बाद शुरू कर दिया। आज आप देखे तो लोग बुद्ध की विचारधारा से ज्यादा बुद्ध की मूर्तियों में इंटरेस्टेड दिखेंगे।

Also read- राजनीतिक गलियारे में अंबेडकर और लक्ष्मी-गणेश के मुद्दे पर तेज़ हुआ विवाद, भाजपा की राह पर चल रही आप

बाबा साहब ने मूर्ति पूजन का किया था खंडन

बाबा साहब भी मूर्ति पूजन का खंडन करते थे और एक तरीके से बुद्ध के विचारधारा को ही फैलाते थे। अम्बेडकर ने 1956 में बौद्ध धर्म अपना लिया था और उनके बारे में ये भी कहा जाता है की वो बचपन से ही बुद्ध के पथ पर चलना चाहते थे। दलित होने के कारण बचपन से ही उन्हें समाजिक उत्पीड़न का सामना करने पड़ा था और इसी कारण अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने दलितों के अधिकार के लिए लड़ने का संकल्प लिया था। आज दलित समाज, बाबा साहब को भगवान की तरह पूजता है, लेकिन अंबेडकर ने इस चीज को उस समय भांप लिया था। अम्बेडकर बुद्ध के अनुयाई थे और उन्होंने बुद्ध के बारे में गहन अध्यन कर रखा था। इस कारण उन्हें पता था की भविष्य में दलित जाती के लोग उन्हें अपना भगवान मानने लगेंगे। नेता लोग तो उनके नाम पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे रहते हैं।

अंबेडकर के मना करने के बावजूद भी लोग करते है उनकी पूजा

बाबा साहब ये जानते थे की देश की आम दलित जनता उन्हें भगवान के रूप में देखेगी और नेता लोग इसी चीज का फायदा उठाएंगे। इस कारण बाबा साहब ने खुद की पूजा करने से लोगों को मना किया था। आज के दिन अंबेडकर को हर दलित अपने भगवान के रूप में देखता है लेकिन कोई भी उनके विचारधारा को गहराई से नहीं समझता। जिस मूर्ति पूजन का बाबा साहब खंडन किया करते थे, वर्तमान में लोग बाबा साहब की ही मूर्ति लगा कर अपने धर्म के धंधे को चलाना शुरू कर दिया है।

Also read- पापीमार को हरा सिद्धार्थ ने खुद को बनाया था बुद्ध, जानिए अंबेडकर और बुद्ध के बीच क्या था समान

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here