Indian Punjab vs Pakistan Punjab: पंजाब, एक ऐसा क्षेत्र जो भारत और पाकिस्तान के बीच बंटा हुआ है, सिख धर्म और उसकी समृद्ध विरासत का केंद्र रहा है। 1947 की विभाजन रेखा ने पंजाब को दो हिस्सों में बांट दिया—भारतीय पंजाब और पाकिस्तानी पंजाब। दोनों देशों में सिख विरासत के संरक्षण के प्रयासों में अंतर और समानताएं देखने को मिलती हैं। यह लेख दोनों पक्षों के प्रयासों की तुलना करता है और बताता है कि सिख धरोहर को संरक्षित करने में कौन बेहतर रहा है।
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भारतीय पंजाब: सिख विरासत का जीवंत केंद्र- Indian Punjab vs Pakistan Punjab
भारतीय पंजाब में सिख धर्म की गहरी जड़ें हैं, जहां 57.7% आबादी सिख है। अमृतसर का स्वर्ण मंदिर (हरमंदिर साहिब) सिखों का सबसे पवित्र स्थल है, जिसे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC) द्वारा संरक्षित और प्रबंधित किया जाता है। SGPC ने न केवल गुरुद्वारों का रखरखाव किया, बल्कि सिख इतिहास और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों, संग्रहालयों और प्रकाशनों को भी समर्थन दिया।
भारत में सिख विरासत को संरक्षित करने के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग भी किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, भारतीय राष्ट्रीय कला और सांस्कृतिक विरासत ट्रस्ट (INTACH) ने पंजाब के ऐतिहासिक स्थलों का दस्तावेजीकरण किया है। 2009 में, संरक्षण वास्तुकार गुरमीत राय ने ग्रैंड ट्रंक रोड पर 1,100 से अधिक ऐतिहासिक संरचनाओं की सूची तैयार की, जिसमें गुरुद्वारे और सिख किले शामिल हैं। हालांकि, कुछ आलोचकों का कहना है कि शहरीकरण और आधुनिकीकरण के दबाव में कई छोटे सिख स्थल उपेक्षित हैं। 2024 में द ट्रिब्यून ने बताया कि पंजाब में कई विरासत संरचनाएं खराब स्थिति में हैं और तत्काल संरक्षण की आवश्यकता है।
पाकिस्तान मे सिख समुदाय की उपस्थिति और उनकी स्थिति
हाल के आंकड़ों के अनुसार, पाकिस्तान में सिखों की आबादी लगभग 15,000 से 20,000 तक है। इनमें से अधिकांश सिख पेशावर और अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों में रहते हैं। कुछ सिख अफगानिस्तान के साथ सीमा पर स्थित शहरों में भी बसे हुए हैं। इन सिखों की मुख्य भाषा अब पाश्तो है, और उन्होंने पंजाबी भाषा का उपयोग कम कर दिया है। पेशावर में दो गुरुद्वारे और कुछ स्कूल भी मौजूद हैं, लेकिन इस क्षेत्र में सिखों के खिलाफ कई अपराध बढ़े हैं, जिसमें लक्ष्य हत्या जैसी घटनाएं शामिल हैं। फिर भी, यह क्षेत्र सिख धर्म के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि गुरु नानक का जन्मस्थान ननकाना साहिब और गुरुद्वारा करतारपुर साहिब यहीं स्थित हैं। पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (PSGPC) इन स्थलों के रखरखाव के लिए जिम्मेदार है। हाल के वर्षों में, पाकिस्तान सरकार ने सिख धरोहर को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए हैं, विशेष रूप से धार्मिक पर्यटन के माध्यम से। 2019 में करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन ने भारतीय सिख तीर्थयात्रियों के लिए इस पवित्र स्थल तक पहुंच आसान बना दी।
पाकिस्तान में सिख विरासत के संरक्षण को लेकर चुनौतियां भी हैं। 2019 में, हिंदुस्तान टाइम्स ने बताया कि 90% सिख धरोहर स्थल पाकिस्तान में हैं, लेकिन कई उपेक्षित हैं। हालांकि, लाहौर की वॉल सिटी अथॉरिटी (WCLA) जैसी संस्थाएं सिख स्थलों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए काम कर रही हैं। 2025 में, टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया कि WCLA ने विश्व पंजाबी केंद्र के साथ समझौता किया है ताकि सिख तीर्थयात्रियों के लिए बेहतर सुविधाएं प्रदान की जा सकें। फिर भी, कुछ सिख संगठनों का दावा है कि पाकिस्तान में सिख समुदाय के अधिकार सीमित हैं, और कुछ स्थलों का रखरखाव अपर्याप्त है।
पाकिस्तान में ऐतिहासिक गुरुद्वारों का संरक्षण और चुनौतियां
वहीं, पाकिस्तान में कई महत्वपूर्ण सिख धार्मिक स्थल स्थित हैं, जिनमें गुरुद्वारा जन्मस्थान गुरु नानक देव (ननकाना साहिब), गुरुद्वारा दरबार साहिब (करतारपुर), और गुरुद्वारा डेरा साहिब (लाहौर) जैसे प्रमुख स्थल शामिल हैं। इन स्थलों का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व सिख समुदाय के लिए अत्यधिक है। 1947 के विभाजन के बाद पाकिस्तान में 130 से अधिक महत्वपूर्ण गुरुद्वारे पाए गए थे। इनमें से 28 गुरुद्वारे गुरु नानक, सिख धर्म के संस्थापक से जुड़ी हुई हैं, जिनमें गुरुद्वारा जनम स्थल ननकाना साहिब, गुरुद्वारा सच्छा सौदा, गुरुद्वारा पंजा साहिब, और गुरुद्वारा चक्की साहिब प्रमुख हैं।
पाकिस्तान में सिख धरोहर और उनका संरक्षण
पाकिस्तान में सिख धरोहर स्थलों का संरक्षण एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इन गुरुद्वारों में से कई पुराने समय से उपेक्षित पड़े हुए हैं। कुछ गुरुद्वारे तो पशु शरण और दुकानों के रूप में इस्तेमाल हो रहे हैं, जबकि कुछ में कोई नियमित देखभाल नहीं की जाती। इन स्थलों का अधिकांश हिस्सा एवाक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ETPB) के नियंत्रण में है, और सिख समुदाय का आरोप है कि इस कारण इन धार्मिक स्थलों का सही रख-रखाव नहीं किया जा रहा है।
गुरुद्वारों के भवनों और भूमि के अधिकार का नियंत्रण ETPB के पास होने के कारण इन स्थलों के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को नजरअंदाज किया जा रहा है। कुछ सिख संगठनों का मानना है कि पाकिस्तान में इन स्थलों की उपेक्षा के कारण सिखों की धार्मिक धरोहर को नुकसान हो रहा है। साथ ही, भारत से आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए वीजा प्रतिबंध भी एक बड़ी समस्या है, जिससे वे अपनी धार्मिक स्थलों की यात्रा नहीं कर पाते।
पाकिस्तान और भारत में सिख धरोहर का संरक्षण
भारत और पाकिस्तान में सिख धरोहर के संरक्षण के प्रयासों में अंतर देखा जा सकता है। भारतीय पंजाब में सिख धर्म की जड़ें गहरी हैं। भारतीय पंजाब में सिख विरासत एक जीवंत सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा का हिस्सा है, जो SGPC और स्थानीय समुदायों के सक्रिय प्रयासों से फल-फूल रही है। वहीं, पाकिस्तानी पंजाब में सिख धरोहर को पुनर्निर्मित करने के प्रयास हो रहे हैं, लेकिन संसाधनों की कमी और सिख समुदाय की कम संख्या के कारण कई स्थलों का रख-रखाव चुनौतीपूर्ण है।
यह कहना मुश्किल नहीं है कि कौन बेहतर है। भारतीय पंजाब में सिख विरासत जीवित और सक्रिय है, जबकि पाकिस्तानी पंजाब में इसे पुनर्जनन और वैश्विक पहुंच के माध्यम से पुनर्जनन की आवश्यकता है।