Islamic Banking and Finance: सबसे अनोखे इस्लामिक बैंक, ना ब्याज देते, ना लेते, फिर भी करते हैं मुनाफा! जानिए उनकी काम करने की अनूठी प्रणाली

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Islamic Banking and Finance: दुनिया भर में पारंपरिक बैंकिंग प्रणाली ब्याज (इंटरेस्ट) पर आधारित होती है, जहां बैंक ग्राहकों की जमा पूंजी पर ब्याज देते हैं और ऋण पर ब्याज वसूलते हैं। अधिकांश बैंकों की आय का प्रमुख स्रोत रिटेल लोन से मिलने वाला ब्याज होता है। लेकिन इस्लामिक बैंकिंग प्रणाली इस नियम से अलग है। इस्लाम में ब्याज (रिबा) को हराम माना गया है, इसलिए इस्लामिक बैंक ब्याज न तो वसूलते हैं और न ही देते हैं। यह बैंकिंग प्रणाली पूरी तरह ‘ब्याज मुक्त सिद्धांत’ पर आधारित है।

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इस्लामिक बैंकिंग का वैश्विक प्रभाव- Islamic Banking and Finance

ग्लोबल फाइनेंस की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस्लामिक बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली दुनिया भर में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। वर्तमान में हजारों इस्लामिक बैंक दुनिया भर में काम कर रहे हैं। ये बैंकिंग संस्थान सिर्फ मध्य पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के मुस्लिम देशों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यूरोप, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका और एशिया के अन्य देशों में भी काम कर रहे हैं।

Islamic Banking and Finance
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क्या है इस्लामिक बैंकिंग?

इस्लामिक बैंकिंग या फाइनेंस एक वित्तीय प्रणाली है, जो इस्लामिक कानून (शरिया) के सिद्धांतों पर आधारित है। यह बैंकिंग प्रणाली पारंपरिक वित्तीय ढांचे से हटकर काम करती है। इस्लामिक वित्तीय मॉडल लगभग 30 साल पहले अस्तित्व में आया था और आज यह 3.96 ट्रिलियन डॉलर का एक उभरता हुआ उद्योग है। वर्तमान में इस्लामिक फाइनेंस से जुड़े 1,650 से अधिक विशेष बैंकिंग संस्थान कार्यरत हैं। 2023 स्टेट ऑफ ग्लोबल इस्लामिक इकोनॉमी रिपोर्ट के अनुसार, 2026 तक इस्लामिक फाइनेंस इंडस्ट्री की कुल शरिया-अनुपालन संपत्ति बढ़कर 5.95 ट्रिलियन डॉलर होने की उम्मीद है।

इस्लामिक बैंकिंग में ब्याज पर रोक

इस्लामिक वित्तीय प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें सूदखोरी (ब्याज) पर प्रतिबंध लगाया गया है। इस प्रणाली के तहत बैंक और ग्राहक किसी भी प्रकार के ब्याज का लेन-देन नहीं कर सकते। पारंपरिक बैंकों में जहां ऋण देने के बदले ब्याज लिया जाता है, वहीं इस्लामिक बैंक सीधे ग्राहकों को लोन नहीं देते, बल्कि उनके लिए आवश्यक वस्तुएं खरीदते हैं और उन्हें पट्टे (लीजिंग) या किश्तों पर बेचते हैं। इस तरीके से बैंक लाभ कमाते हैं, लेकिन किसी प्रकार का ब्याज नहीं लेते।

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इस्लामिक बैंक कैसे लाभ कमाते हैं?

चूंकि इस्लामिक बैंकिंग में ब्याज लेने की अनुमति नहीं होती, इसलिए यह बैंक अन्य तरीकों से लाभ अर्जित करते हैं। बैंक किसी ग्राहक की वित्तीय जरूरत को पूरा करने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाते हैं:

  1. इजारा (लीजिंग): किसी वस्तु (जैसे कार या मकान) को सीधे ग्राहक को लोन पर देने के बजाय, इस्लामिक बैंक स्वयं उस वस्तु को खरीदता है और फिर उसे ग्राहक को लीज पर देता है। लीज की अवधि समाप्त होने पर ग्राहक उस वस्तु का मालिक बन जाता है।
  2. मुशारका (साझेदारी): बैंक और ग्राहक मिलकर किसी व्यवसाय में निवेश करते हैं और उसमें हुए लाभ या हानि को साझा करते हैं।
  3. मुरबाहा (किश्तों पर बिक्री): बैंक किसी उत्पाद को खरीदकर ग्राहकों को किश्तों पर बेचता है, जहां लाभ का निर्धारण पहले ही कर लिया जाता है।

किन क्षेत्रों को लोन नहीं दिया जाता?

इस्लामिक बैंकिंग में कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में लोन देने पर प्रतिबंध होता है। शरिया कानून के अनुसार, इस्लामिक बैंक उन कार्यों को वित्तीय सहायता नहीं देते जो अनैतिक या हराम माने जाते हैं। इनमें शामिल हैं:

  • शराब और मादक पदार्थों का व्यवसाय
  • जुआ और सट्टेबाजी
  • सुअर पालन और उससे संबंधित उद्योग
  • हथियारों का निर्माण और व्यापार
  • वेश्यावृत्ति या अनैतिक व्यवसाय

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