Jaswant Singh Khalra Details: मानवाधिकार के लिए बलिदान, जानें जसवंत खालड़ा हत्याकांड की पूरी कहानी

Jaswant Singh Khalra Details Jaswant Khalra murder case
Source: Google

Jaswant Singh Khalra Details: 1995 का साल था। कनाडा के एक ऑडिटोरियम में एक सभा को संबोधित करते हुए जसवंत सिंह खालड़ा ने एक प्रेरणादायक कथा के जरिए अपनी बात शुरू की। उन्होंने अंधेरे को चुनौती देने वाले दीपक की कहानी सुनाई, जो कठिन परिस्थितियों में रोशनी फैलाने का प्रतीक बनता है। यह कथा उनके जीवन और काम का सार थी। लेकिन कुछ महीनों बाद, जसवंत सिंह खालड़ा को उनके घर से उठा लिया गया और फिर कभी लौटकर नहीं आए।

और पढ़ें: भारतीय-अमेरिकी सिख पुलिस अधिकारी Sandeep Singh Dhaliwal के नाम पर डाकघर का नामकरण

पंजाब और मानवाधिकार: खालड़ा की भूमिका- Jaswant Singh Khalra Details

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद खालिस्तान आंदोलन ने जोर पकड़ा। पुलिस ने इस आंदोलन को दबाने के लिए कठोर कदम उठाए। कई लोगों को केवल शक के आधार पर गिरफ्तार किया गया, और इनमें से कई कभी वापस नहीं लौटे। पुलिस ने बिना परिवार को सूचित किए “लावारिस” शवों का अंतिम संस्कार कर दिया।

जसवंत सिंह खालड़ा, जो पेशे से बैंक कर्मचारी थे, इस अन्याय को उजागर करने के लिए आगे आए। उन्होंने अमृतसर के दुर्गीयाना मंदिर श्मशान घाट में जाकर छिपे हुए रजिस्टर की जांच की। यह रजिस्टर उन लाशों का रिकॉर्ड था, जिन्हें पुलिस ने “लावारिस” बताकर गुपचुप तरीके से जला दिया था। जसवंत ने पाया कि केवल 1992 में 300 से अधिक बेनाम शवों का अंतिम संस्कार किया गया था।

शमशान घाट के रिकॉर्ड और हकीकत का खुलासा

जसवंत सिंह और उनके साथी जसपाल सिंह ढिल्लों ने श्मशान घाट के कर्मचारियों से बातचीत कर कई रिकॉर्ड्स की फोटोकॉपी करवाई। उन्होंने अमृतसर और आसपास के अन्य श्मशान घाटों से भी डेटा इकट्ठा किया। इस डेटा ने पुलिस की गुप्त कार्रवाइयों को उजागर किया।

मल्लिका कौर की किताब Faith, Gender, and Activism in The Punjab Conflict: The Wheat Fields Still Whisper में इस घटना का विस्तार से वर्णन है। जसवंत की पत्नी परमजीत कौर ने बताया कि किस तरह श्मशान घाट के रजिस्टरों से मिले डाटा ने 1984 से 1995 के दौरान पंजाब में पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।

जसवंत सिंह खालड़ा ने इन आंकड़ों को सार्वजनिक किया, जिससे पंजाब पुलिस और प्रशासन पर दबाव बढ़ा।

पुलिस ने पहले जांच को नकारा, फिर जसवंत सिंह खालड़ा को ठिकाने लगा दिया

16 जनवरी 1995 को अकाली दल की ह्यूमन राइट्स विंग ने चंडीगढ़ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर, जसवंत सिंह खालड़ा की जांच से जुड़े आंकड़े सामने रखे। इसमें 1984 से 1994 के बीच पट्टी में 400, तरनतारन में 700 और दुर्गीयाना में 2000 गैरकानूनी अंतिम संस्कारों की जानकारी दी। इसके दो दिन बाद, पंजाब के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक (DGP) KPS गिल ने अमृतसर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह दावा किया कि जिन युवाओं के लापता होने का आरोप खालड़ा ने लगाया था, वे देश छोड़कर भाग गए हैं और विदेशों में फर्जी दस्तावेजों पर नौकरियां कर रहे हैं।

इसके बाद, 6 सितंबर 1995 को जब जसवंत सिंह खालड़ा अपने घर के बाहर गाड़ी धो रहे थे, तब कुछ लोग उन्हें अपने साथ ले गए। गवाहों के अनुसार, वे लोग पुलिस अधिकारी थे। हालांकि, पुलिस ने उस वक्त इन आरोपों का खंडन किया। फिर, 27 अक्टूबर 1995 को जसवंत का शव सतलुज नदी में हरिके पत्तन में पाया गया। उनके परिवार और करीबियों ने मामले की संदिग्ध हत्या के रूप में जांच करने के लिए सीबीआई से अनुरोध किया। उनकी हत्या का उद्देश्य यह संदेश देना था कि अन्य लोग इस तरह के खुलासे से दूर रहें।

CBI की जांच में खुलासा, कोर्ट से पुलिसकर्मियों को सजा

1996 में, सीबीआई की जांच में यह खुलासा हुआ कि खालड़ा को किडनैप करने के बाद कुछ समय के लिए तरनतारन के एक पुलिस स्टेशन में रखा गया था। इसके बाद, उनकी किडनैपिंग और हत्या के आरोप में पंजाब पुलिस के दस अधिकारियों का नाम लिया गया। सीबीआई की जांच के लगभग नौ साल बाद, कोर्ट ने पंजाब पुलिस के छह अधिकारियों को दोषी ठहराया और उन्हें सात साल की सजा सुनाई। 2007 में, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने इनमें से चार दोषियों की सजा को बढ़ाकर उम्रकैद कर दिया। इन दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी और सजा को बरकरार रखा। इस दौरान, जसवंत सिंह खालड़ा की पत्नी परमजीत कौर खालड़ा ने इस लड़ाई को लगातार जारी रखा, जो आज भी न्याय की उम्मीद में संघर्ष कर रही हैं।

और पढ़ें: अनंतनाग के गायक Tajinder Singh: घाटी में स्वतंत्र संगीत के उभरते सितारे, तीन भाषाओं का है ज्ञान

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here