सिख गुरु और चमत्कार! जानिए सिख धर्म के पांचवें गुरु अर्जन देव जी द्वारा किए गए चमत्कार

Know the miracles done by the fifth Guru of Sikhism, Guru Arjan Dev Ji
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सिख धर्म का इतिहास बहुत लंबा है। इस इतिहास में आपको त्याग, बलिदान और धर्म के बारे में बहुत सी अहम बातें देखने और सीखने को मिलेंगी। इस धर्म को इतना महान बनाने में सिख गुरुओं ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वह मानवता के सच्चे सेवक और धर्म के रक्षक थे। सिख गुरुओं के मन में सभी धर्मों के प्रति अपार सम्मान था। वह दिन-रात लोगों को सेवा प्रदान करते थे। सिख धर्म में दस गुरु हुए हैं जिन्होंने सिख धर्म की नींव रखी और लोगों को सिख धर्म का पालन करने के तरीके के बारे में बताया। गुरुओं द्वारा सिखाई गई सिखी, अलौकिक शक्तियों की संभावना को स्वीकार करती है, लेकिन किसी भी सांसारिक संपत्ति की तरह, उनका उपयोग स्वार्थी उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए। एक सिख को तंत्र-मंत्र के पीछे नहीं भागना चाहिए, क्योंकि सबसे बड़ा उपहार नाम है, अलौकिक शक्ति नहीं। सिख गुरुओं ने समय-समय पर चमत्कार किए, लेकिन उन्होंने ऐसा करुणावश या किसी गलत व्यक्ति को सही करने के लिए किया। बाबा मर्दाना को भूख से मरने से बचाने के लिए गुरु नानक ने पीलीभीत के पास कड़वे साबुन को मीठा कर दिया। उनके अलावा अन्य सिख गुरु, गुरु अर्जुन सिंह ने भी अपने जीवन में ऐसे ही चमत्कार किए, जिनके बारे में आज हम आपको बताएंगे।

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सिख गुरु और चमत्कार

सिखी के अनुसार, गुप्त शक्तियां “नाम” पर एकाग्रता के माध्यम से स्वाभाविक रूप से आती हैं। सिखों के चौथे गुरु राम दास जी कहते हैं: “चमत्कार करने की इच्छा एक सांसारिक लगाव है और हमारे दिल में नामके निवास के रास्ते में बाधा है।” गुरु ने व्यक्तिगत महिमा के लिए किए गए चमत्कारों की निंदा की। चमत्कार करने वाले बाबा अटल को इसके प्रायश्चित स्वरूप अपने प्राण त्यागने पड़े। गुरु अर्जन और गुरु तेग बहादुर से चमत्कार करने का अनुरोध किया गया ताकि उनके जीवन को बचाया जा सके। उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया और मौत की सज़ा का स्वागत किया। सबसे बड़ा चमत्कार यह है कि क्षमता होने के बावजूद कोई चमत्कार न किया जाए।

जब गुरु नानक से सिखों ने उनकी अलौकिक शक्तियों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “मैं परमेश्वर के नियम के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकता। केवल वही चमत्कार कर सकता है। सच्चा नामचमत्कारों का चमत्कार है। मैं किसी अन्य चमत्कार के बारे में नहीं जानता।” सिख गुरुओं ने दूसरों को अपने विश्वास के बारे में समझाने या खुद को विपत्तियों या दंड से बचाने के लिए कभी चमत्कार नहीं किए।

गुरु अर्जुन देव जी द्वारा किये गये चमत्कार

सिख धर्म के पांचवें गुरु, गुरु अर्जुन देव जी का जन्म अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार वैशाख वदी सप्तमी (7), संवत 1620 व 15 अप्रैल 1563 को अमृतसर में हुआ था। मान्यता के अनुसार गुरु अर्जुन देव का जन्म सिख धर्म के चौथे गुरु, गुरु रामदास जी और माता भानी जी के घर हुआ था। गुरु अर्जुन देव की धार्मिक और मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पण की भावना, दयालुता, कर्तव्यपरायणता और पवित्र स्वभाव को देखकर गुरु रामदास जी ने उन्हें 1581 में पांचवें गुरु के रूप में गुरु गद्दी पर सुशोभित किया।

गुरु अर्जुन देव के बारे में एक बहुत ही चमत्कारी कहानी है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। दरअसल गुरु अर्जुन देव जी अपने नाना अमर दास जी के बहुत करीब थे। अर्जुन देव की देखभाल गुरु अमर दास और गुरु बाबा बुड्ढा जी जैसे महापुरुषों की देखरेख में की गई। बचपन में एक बार जब गुरु अर्जुन देव खेल रहे थे तो उनकी गेंद एक पलंग के नीचे चली गयी। गुरु अमरदास जी उस पलंग पर आराम कर रहे थे। फिर जब गुरु अर्जुन अपनी गेंद लेने के लिए पलंग के नीचे गए तो पलंग अचानक अपने आप ऊपर उठ गया। तभी गुरु अमरदास भी जाग गये और बिस्तर हिलता देख आश्चर्यचकित रह गये। गुरु अमरदास ने ये चमत्कार होते देख कहा कि, एह केहड़ा वड्डा पुरख है भारी जिस मंजी हिलाई साडी सारी।इसके बाद माता भानी जी नी कहा ये आपका दोहता है पिता जी। जिसके बाद अमरदास जी बोले दोहता बाणी का बोहता।

इसके अलावा गुरु अर्जुन देव के बारे में एक और बेहद चमत्कारी कहानी है जो उनके जीवन के आखिरी पलों से जुड़ी है। दरअसल, रूढ़िवादी सम्राट जहांगीर को अपने साम्राज्य में सिख धर्म के प्रसार से खतरा महसूस हो रहा था। उसने गुरु अर्जन देव पर इस्लाम धर्म अपनाने का दबाव डाला। गुरु अंत तक अपने विश्वास के प्रति वफादार रहे। 1606 में गुरु अर्जन देव को लाहौर किले में कैद कर लिया गया। फिर उन्हें इस्लाम न अपनाने की सज़ा दी गयी। उन्हें गर्म उबलते पानी में डुबोया गया, जिससे उनका मांस छिल गया और फिर उन्हें गर्म जलते हुए तवे पर बैठा दिया गया। साथ ही उनके शरीर पर गर्म रेत डाली गई। कई दिनों तक यातनाएँ जारी रहीं, लेकिन गुरु अर्जुन देव जी केवल भगवान का नाम लेते रहे और इतनी सारी दर्दनाक यतनाएँ सहने के बावजूद उनके चेहरे पर कोई पीड़ा या दुख नहीं दिखाई दे रहा था। इसके बाद गुरु को रावी नदी में स्नान करने की अनुमति दी गई। 30 मई 1606 को, गुरु अर्जन देव नदी का शरीर रावी नदी में विलीन हो गया। ये पूरी घटना किसी चमत्कार से कम नहीं थी।

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