Naresh Barsagade sucess story: कभी सोचिए, जब आप अपनी ज़िंदगी के सबसे निचले मोड़ों पर होते हैं, तब क्या होता है अगर आपके पास वो सारी सुविधाएँ नहीं होतीं जिनका हम आजकल मजा लेते हैं? नरेश बरसागड़े की कहानी कुछ ऐसी ही है, जो दिल छूने वाली और उम्मीद जगाने वाली है। यह कहानी एक छोटे से गांव में जन्मे उस लड़के की है, जिसकी हथेलियों पर कीकर के पेड़ की गोंद चिपकी रहती थी, जो दिन-रात कड़ी मेहनत करता था, लेकिन कभी नहीं हारा। और आज वही लड़का, अपनी मेहनत और आत्मविश्वास के दम पर अमेरिका के लॉस एंजेलिस में सीनियर मैनेजर के पद पर काबिज है।
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एक वक्त था जब नरेश के पास कुछ नहीं था, न पढ़ाई के लिए किताबें, न समृद्धि की कोई राह। लेकिन आज वह उस स्थिति में हैं जहां वे अपनी तक़दीर खुद लिख रहे हैं। यह कहानी न केवल संघर्ष की है, बल्कि उस अनदेखी उम्मीद और संघर्ष की भी है, जो हर इंसान के अंदर छिपी होती है। आइए, हम आपको नरेश की उसी यात्रा से रूबरू कराते हैं, जो हर किसी के लिए एक प्रेरणा बन सकती है।
गरीबी से जूझते हुए बचपन- Naresh Barsagade sucess story
नरेश का जन्म महाराष्ट्र के एक गरीब दलित परिवार में हुआ था। वह जब छोटे थे, तो बाकी बच्चे खिलौनों से खेलते थे, लेकिन नरेश को 7 साल की उम्र में ही काम पर जाना पड़ता था। उनकी मां और दादी खेतों में काम करती थीं, लेकिन नरेश को सिर्फ आधी मजदूरी मिलती थी, क्योंकि वह बच्चा था। फिर भी उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी। 1980 के दशक के शुरुआती सालों में जब उनके घर में सूखा पड़ा, तो नरेश को दिनभर मेहनत करने के बदले ₹1 मिलते थे, जबकि उनकी मां को पूरी मजदूरी मिलती थी।
उनकी कहानी यहीं से शुरू होती है। नरेश ने कभी भी अपनी मुश्किलों के आगे घुटने नहीं टेके। वह जंगलों में जाकर कीकर के पेड़ों से गोंद इकट्ठा करते, ताकि उनका पढ़ाई का खर्च निकल सके। उन्होंने कभी भी गरीबी को अपनी सीमा नहीं समझा।
शिक्षा की तरफ पहला कदम
नरेश का मानना था कि शिक्षा ही वह रास्ता है, जिससे कोई भी मुश्किल पार की जा सकती है। जब वह सातवीं कक्षा में थे, उनके पेरेंट्स काम की वजह से घर से बाहर गए हुए थे। नरेश अकेले ही घर संभालते थे और खेतों में काम करते थे। सुबह-सुबह 5 बजे उठकर खेतों में काम करने के बाद, वह कीकर के पेड़ों से गोंद इकट्ठा करते और उसे ₹5 में बेचते थे। नरेश का कहना था, “मैं जानता था कि शिक्षा ही मेरे जीवन का सबसे बड़ा हथियार है। यही एक रास्ता था जिससे मैं अपनी जिंदगी बदल सकता था।”
हाई स्कूल और संघर्ष की अगली मंजिल
नरेश की मेहनत और लगन रंग लाई। वह हाई स्कूल के लिए गांव से बाहर गए और इसके लिए उन्होंने खुद अपनी फीस और हॉस्टल का खर्च उठाया। नरेश ने कभी अपने माता-पिता पर कोई बोझ नहीं डाला। उनकी मेहनत और कड़ी लगन ने उन्हें एक नई दिशा दी। वह अपने सपनों के लिए अकेले ही लड़ते रहे, और इसके बाद उन्हें यह महसूस हुआ कि अगर वह मेहनत करें तो हर मुश्किल का हल निकाला जा सकता है।
हाई स्कूल और कॉलेज की कठिन यात्रा
नरेश का सफर हाई स्कूल में आगे बढ़ा, जहां पर वह सरकारी हॉस्टल में रहते हुए पढ़ाई करते थे। उनका संघर्ष इस स्तर तक बढ़ चुका था कि वह कभी कभी खाना छोड़ कर अपनी किताबें खरीदने के लिए पैसे बचाते थे। नरेश बताते हैं, “जब मैं कॉलेज गया, तो मैंने कभी मैस का खाना छोड़कर पैसे बचाए, ताकि किताबें खरीद सकूं।”
उसके बाद, नरेश ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और जालंधर में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (NIT) से कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की। यहाँ भी गरीबी उनका पीछा नहीं छोड़ रही थी। लेकिन, नरेश ने इसे भी अवसर में बदलते हुए खुद को बेहतर करने की दिशा में काम किया।
अमेरिका में एक नई शुरुआत
1998 में नरेश को अमेरिका में नौकरी मिल गई। यहां तक पहुंचने के बाद भी नरेश ने कभी अपनी पढ़ाई को पीछे नहीं छोड़ा। उन्होंने अमेरिका में कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स किया और वहां भी शिक्षा के महत्व को समझा। आज नरेश लॉस एंजेलिस में एक बड़ी अमेरिकी कंपनी में सीनियर मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं और वहाँ एक शानदार जीवन जी रहे हैं।
नरेश का कहना है, “मेरे पेरेंट्स ने हमेशा मुझे पढ़ाई की अहमियत समझाई, और उनके कारण ही मैं आज अमेरिका में हूं।”
अमेरिका में जीवन की सफलता
नरेश आज लॉस एंजेलिस में एक आलीशान घर में रहते हैं, जहां उन्हें सभी सुख-सुविधाएं हासिल हैं। वह अपने जीवन के संघर्षों को याद करते हुए कहते हैं, “यह सब मेरी शिक्षा और बाबा साहब डॉ. अंबेडकर की प्रेरणा का फल है। अगर वह शिक्षा की क्रांति न लाते, तो शायद मैं आज यहां नहीं होता।”
नरेश की सफलता यह साबित करती है कि अगर किसी इंसान के पास लगन और शिक्षा का सही रास्ता हो, तो वह किसी भी मुश्किल को पार कर सकता है। नरेश ने आज तक जितनी भी सफलता पाई, वह केवल और केवल उनकी मेहनत और संघर्ष का परिणाम है।
नरेश का संदेश
नरेश का संदेश है, “हमारे जैसे बच्चों के लिए शिक्षा सबसे बड़ी ताकत है। अगर हम शिक्षा को समझें और उसकी अहमियत जानें, तो कोई भी सपना असंभव नहीं है।” वह मानते हैं कि सरकारी स्कूलों का होना बहुत जरूरी है, क्योंकि यही वह जगह है जहां गरीब बच्चों को शिक्षा मिलती है। अगर सरकारी स्कूल बंद हुए तो नरेश जैसे हजारों सपने मर जाएंगे।
आज नरेश की सफलता सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि उन सभी लोगों की है जो समाज में बदलाव लाने के लिए काम कर रहे हैं। नरेश का जीवन यह साबित करता है कि शिक्षा ही हर समस्या का हल है। तो, अगर हम अपने बच्चों को शिक्षा देंगे, तो हम न केवल उनके जीवन को संवार सकते हैं, बल्कि पूरे समाज को भी एक नई दिशा दे सकते हैं।