श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और भाषाई विविधता का अद्वितीय उदाहरण भी प्रस्तुत करता है। आमतौर पर यह माना जाता है कि यह ग्रंथ पूरी तरह से गुरमुखी लिपि (Languages used in Guru Granth Sahib) में लिखा गया है, लेकिन वास्तव में इसमें कई देसी भाषाओं का समावेश है, जो इसकी समावेशी प्रकृति को दर्शाता है। यह ग्रंथ सिख धर्म की धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को प्रतिबिंबित करता है। इसमें शामिल कई संतों और भक्तों की रचनाएँ भारतीय समाज के विविध आयामों और भाषाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो इस ग्रंथ को और भी समृद्ध बनाती हैं।
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श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का संकलन और योगदान- Guru Granth Sahib Language
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का संकलन पांचवें गुरु, गुरु अर्जुन देव जी ने 1604 में शुरू किया था, और इसे दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1705 में अंतिम रूप दिया। इस ग्रंथ में कुल 1430 अंग (पृष्ठ) होते हैं, जिनमें छह सिख गुरुओं और 15 अन्य संतों की रचनाएँ शामिल हैं। इनमें प्रमुख रूप से भगत कबीर, भगत रविदास, शेख फरीद, भगत नामदेव जैसे संत शामिल हैं, जिन्होंने अपनी भक्ति रचनाओं के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य किया।
इस ग्रंथ में पंजाबी के अलावा हिंदी, ब्रजभाषा, संस्कृत, फारसी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का भी उपयोग किया गया है, जो उस समय के सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण को दर्शाता है। यह दिखाता है कि धर्म और भक्ति के मार्ग में कोई भौतिक और भाषाई सीमाएं नहीं होतीं।
गुरमुखी लिपि: श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का आधार
गुरमुखी लिपि, जिसे द्वितीय गुरु, गुरु अंगद देव जी ने विकसित किया था, श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की आत्मा मानी जाती है। गुरमुखी लिपि का उपयोग न केवल पंजाबी भाषा को संरक्षित करने के लिए किया गया, बल्कि यह सिख समुदाय के लिए एक विशिष्ट पहचान भी बनी। हालांकि, यह लिपि इस ग्रंथ का प्रमुख माध्यम है, लेकिन इसमें कई अन्य भाषाओं का भी उपयोग किया गया है, जो इसके समावेशी दृष्टिकोण को साबित करता है।
हिंदी और ब्रजभाषा का योगदान
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में हिंदी और ब्रजभाषा का महत्वपूर्ण योगदान है। खासकर भगत कबीर और भगत रविदास की रचनाओं में इन भाषाओं का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। भगत कबीर की बाणी में हिंदी के साथ-साथ अवधी और ब्रजभाषा का मिश्रण मिलता है। कबीर जी की पंक्तियाँ जैसे “कबीर मन निर्मल भया, जैसे गंगा नीर” इस बात को प्रमाणित करती हैं कि कबीर जी की काव्यात्मक शैली में हिंदी की सादगी और गहराई का मेल था। इसी तरह, भगत रविदास की रचनाओं में ब्रजभाषा की मिठास और भक्ति का भाव प्रबल रूप से दिखाई देता है, जो उनकी भक्ति भावना को व्यक्त करने का एक शक्तिशाली तरीका था।
संस्कृत और फारसी का समावेश
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में संस्कृत और फारसी का भी समावेश है, जो उस समय के बौद्धिक और सांस्कृतिक परिवेश को दर्शाता है। संस्कृत शब्दों का प्रयोग मुख्य रूप से गुरु नानक देव जी और गुरु अर्जुन देव जी की रचनाओं में देखा जाता है। संस्कृत का उपयोग दार्शनिक और आध्यात्मिक विचारों को व्यक्त करने के लिए किया गया था। वहीं, फारसी के शब्द शेख फरीद की बाणी में देखे जा सकते हैं, जिन्होंने अपनी सूफी विचारधारा को इन शब्दों के माध्यम से प्रकट किया। शेख फरीद की पंक्तियों में “अल्लाह” और “खुदा” जैसे शब्द फारसी से लिए गए हैं, जो इस बात को प्रमाणित करते हैं कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में सांस्कृतिक विविधता को स्थान दिया गया था।
अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का योगदान
इसके अलावा, श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में महाराष्ट्र, गुजरात, और सिंध से संबंधित भाषाओं के तत्व भी मौजूद हैं। भगत नामदेव, जो महाराष्ट्र से थे, ने अपनी रचनाओं में माराठी का उपयोग किया था, जो ग्रंथ में शामिल होने से और अधिक प्रचलित हुआ। इसी तरह, गुजराती और सिंधी भाषाओं का प्रभाव भी देखा जा सकता है, जो उन समय की भाषाई विविधता को प्रदर्शित करते हैं।
समावेशी दृष्टिकोण का प्रतीक
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का सबसे अनूठा पहलू इसका समावेशी दृष्टिकोण है। गुरु अर्जुन देव जी ने इस ग्रंथ में विभिन्न भाषाओं और संतों की रचनाओं को शामिल करके यह संदेश दिया कि ईश्वर की भक्ति किसी एक भाषा, जाति या धर्म तक सीमित नहीं है। यह ग्रंथ सभी मानवजाति के लिए है और इसकी वाणी हर किसी के लिए प्रासंगिक है। जैसे कि गुरु नानक देव जी ने कहा था, “अवल अल्लाह नूर उपाइआ, कुदरति के सभ बंदे,” इस विचार के द्वारा यह ग्रंथ हमें बताता है कि हम सभी एक ही परमात्मा की संतान हैं, और इस पृथ्वी पर कोई भी व्यक्ति किसी से अलग नहीं है।
आज के समय में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का महत्व
आज के समय में, जब समाज में भाषाई और सांस्कृतिक विभाजन की स्थितियाँ बन रही हैं, श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का समावेशी दृष्टिकोण और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है। यह ग्रंथ हमें यह सिखाता है कि विविधता में एकता संभव है, और सभी भाषाएँ और संस्कृतियाँ मिलकर एक सुंदर और समृद्ध समाज का निर्माण कर सकती हैं। इस ग्रंथ का संदेश है कि हम सब एक हैं, चाहे हमारी भाषा, धर्म या संस्कृति कुछ भी हो। यही कारण है कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि भारतीय समाज की एकता और विविधता का जीवंत प्रतीक बन गया है।