Sikhism in Paris: अगर आप कभी पेरिस के चमचमाते केंद्र से मेट्रो पकड़कर बाहर की ओर जाएं, तो एक अलग ही दुनिया आपका इंतज़ार करती है। जैसे ही नंबर 5 मेट्रो की लाइन पर “Bobigny Pablo Picasso” स्टेशन के पास पहुंचते हैं, तो धीरे-धीरे 19वीं सदी की खूबसूरत इमारतें, बालकनी पर रखे छोटे पौधे और शानदार कैफे पीछे छूट जाते हैं। उनके बदले दिखने लगते हैं ऊँचे, ग्रे रंग के अपार्टमेंट — जिनके बीच एक अलग-सी ज़िंदगी बहती है। यही हैं पेरिस की बानलियूज़ — फ्रेंच में मतलब “उपनगर”, लेकिन असल में यह शब्द सामाजिक हाशिए पर बसे इलाकों के लिए प्रयोग होता है — जहां कम आय, कम अवसर और बहुत संघर्ष है।
इन्हीं इलाकों में पेरिस का सिख समुदाय बसता है — छोटा जरूर है, पर दिलों में गहरी रौशनी लिए हुए। अनुमान है कि पूरे फ्रांस में करीब 30,000 सिख रहते हैं, जिनमें से ज़्यादातर पेरिस और उसके आसपास बसे हैं।
पेरिस में करीब 5,000 सिख – पहचान के साथ संघर्षरत समुदाय (Sikhism in Paris)
पेरिस में आज करीब 5,000 सिख रहते हैं। पूरा फ्रांस मिलाकर यह संख्या लगभग 30,000 तक पहुंचती है। इनमें ज़्यादातर पंजाब और हरियाणा से आए प्रवासी मजदूर, छोटे कारोबारी या टैक्सी ड्राइवर हैं। कुछ परिवार तो कई दशक पहले ही यहां बस गए थे। लेकिन आज भी उन्हें अपनी पहचान बनाए रखने में संघर्ष करना पड़ता है।
सिखों की पहचान और चुनौतियां
फ्रांस का कानून “सेक्युलरिज्म” (Laïcité) बहुत सख्ती से लागू करता है मतलब, कोई भी व्यक्ति पब्लिक स्कूल या सरकारी नौकरी में अपने धार्मिक प्रतीक जैसे पगड़ी, क्रॉस या हिजाब नहीं पहन सकता।
यह कानून उस दौर की प्रतिक्रिया है जब चर्च और राजसत्ता के रिश्तों ने फ्रेंच समाज पर भारी असर डाला था। अब यह समाज धर्म को निजी मामला मानता है और सार्वजनिक जीवन में उसकी झलक नहीं चाहता।
पर इसका असर सिखों पर गहरा हुआ। कई सिख बच्चों को स्कूलों में पगड़ी पहनने की इजाज़त नहीं दी गई, और सरकारी नौकरियों में भी धार्मिक प्रतीकों पर रोक लगी। इससे समुदाय के लोग “मुख्यधारा” से खुद को अलग-थलग महसूस करते हैं।
2001 के 9/11 हमलों के बाद स्थिति और पेचीदा हो गई। पगड़ी और दाढ़ी देखकर कई बार सिखों को गलतफहमी में मुसलमान समझ लिया जाता है और उन्हें सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है। लेकिन इसके बावजूद, सिख समुदाय ने कभी अपने मूल मूल्यों मेहनत, सेवा और आत्म-सम्मान को नहीं छोड़ा।
जसप्रीत सिंह जैसे सिखों की कहानी
ऐसे ही एक व्यक्ति हैं जसप्रीत सिंह, जो पेरिस से करीब 70 किलोमीटर दूर मेलून नाम के छोटे से शहर में रहते हैं। वे बताते हैं, “यहां ज़िंदगी आसान नहीं है। पगड़ी पहनना, कीर्तन करना या बच्चों को पंजाबी सिखाना — हर चीज़ संघर्ष है। लेकिन हम हार मानने वालों में से नहीं हैं।”
जसप्रीत जैसे कई सिख परिवारों ने पेरिस की बानलियूज़ में छोटी-छोटी दुकानों, ट्रांसपोर्ट बिज़नेस या सुरक्षा सेवाओं में काम करके अपनी जगह बनाई है। रविवार को गुरुद्वारे में लंगर चलता है, और फ्रांस, श्रीलंका, भूटान, वियतनाम जैसे देशों के बौद्ध और सिख अनुयायी वहां आते हैं।
वहीं, गुरुद्वारे में बच्चों की मौजूदगी नई उम्मीद जगाती है। 8 साल का सुखदीप सिंह तीन भाषाएं बोलता है फ्रेंच, पंजाबी और हिंदी और गर्व से बताता है कि वह अपने जोड़े में स्कूल जाता है। शायद यही अगली पीढ़ी फ्रांस में सिख पहचान को नया मुकाम देगी।
फिर भी “चढ़दी कला” में जीते हैं पेरिस के सिख
हालांकि चुनौतियाँ बहुत हैं, लेकिन पेरिस का सिख समुदाय “चढ़दी कला” यानि हर परिस्थिति में ऊँचे मनोबल के साथ जीना की मिसाल है। जसप्रीत जैसे कई सिख मानते हैं कि उनके बच्चे, जो अब फ्रेंच में निपुण हैं, आने वाले समय में इस मानसिकता को बदलने की कोशिश करेंगे।
पेरिस में सिख समुदाय का केंद्र हैं यहाँ के गुरुद्वारे, जो न सिर्फ आस्था के प्रतीक हैं बल्कि सामुदायिक एकता का भी केंद्र हैं।
पेरिस के प्रमुख गुरुद्वारे
पेरिस में कुल चार प्रमुख गुरुद्वारे हैं:
- गुरुद्वारा सिंह सभा, बॉबिनी
- गुरुद्वारा श्री गुरु रविदास पेरिस
- गुरुद्वारा सिंह सभा – पेरिस
- गुरुद्वारा गुरु तेग बहादुर साहिब पेरिस
हर हफ्ते यहां सैकड़ों लोग संगत में आते हैं, अरदास करते हैं, और बच्चों को पंजाबी, गुरबाणी और कीर्तन की शिक्षा दी जाती है।
बच्चों के लिए “गुरमत कैंप”
पेरिस की दशमेश सिख एकेडमी हर साल “गुरमत कैंप” आयोजित करती है। इसमें 3 से 20 साल तक के करीब 200 बच्चे शामिल होते हैं। उन्हें गुरबाणी के उच्चारण, सिख इतिहास, पंजाबी भाषा और गुरमत संगीत की शिक्षा दी जाती है। यह कैंप न सिर्फ धार्मिक ज्ञान का माध्यम है बल्कि नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़े रखने का प्रयास भी है।
शेर पंजाब कॉम्प्लेक्स की स्थापना
आपको जानकार हैरानी होगी कि पेरिस में एक ऐसा निजी सिख स्कूल है, जिसे फ्रांसीसी अधिकारियों द्वारा धार्मिक प्रतीकों, विशेषकर सिख टर्बन पर प्रतिबंध के कारण स्थापित किया गया था, जिसका नाम है “शेर पंजाब कॉम्प्लेक्स”। यह स्कूल एक स्थानीय सिख व्यापारी द्वारा स्थापित किया गया था, जिनके बेटे को 2004 में सार्वजनिक स्कूल से बाहर कर दिया गया था क्योंकि उसने कक्षा में टर्बन नहीं हटाया था। इस स्कूल की स्थापना के लिए लगभग 300,000 यूरो की लागत आई थी, जिसमें इमारत की लागत शामिल नहीं थी। इस स्कूल की शुरुआत 15 छात्रों के साथ हुई थी, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर काफी हो गई है और यह सिख समुदाय के बच्चों के लिए एक महत्वपूर्ण शिक्षा केंद्र बन चुका है।
संघर्ष से सहअस्तित्व तक
भले ही पेरिस के सिख समुदाय को हैं धार्मिक पहचान, रोजगार या सामाजिक स्वीकार्यता के स्तर पर चुनौतियाँ झेलनी पड़ रही लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। वे मेहनती हैं, शांतिप्रिय हैं और समाज में सकारात्मक योगदान देने में विश्वास रखते हैं।
पेरिस में सिखों की आबादी भले ही सिर्फ 5,000 हो, लेकिन उनका योगदान, उनकी संस्कृति और उनकी “चढ़दी कला” की भावना शहर के हर कोने में एक शांत, पर गूंजती हुई मौजूदगी की तरह महसूस होती है।
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