Punjab Historical Forts: अगर आप कभी इतिहास में झाँकने का मन बनाएं, तो पंजाब जरूर जाइए। यहाँ के किले सिर्फ किले नहीं हैं… ये असल में ज़िंदा कहानियाँ हैं शौर्य की, बलिदान की, धर्म की और संस्कृति की। पंजाब की हवा में एक अलग ही रॉयल फील है, और उसकी वजह है यहाँ की वो विरासत जो आज भी हमारे सामने उसी शान से खड़ी है।
महाराजा रणजीत सिंह जैसे शासकों ने न सिर्फ एक साम्राज्य खड़ा किया, बल्कि अपने दौर की वास्तुकला को भी एक नई पहचान दी। आइए जानते हैं पंजाब के कुछ बेहद खास किलों के बारे में जहां इतिहास आज भी साँसें ले रहा है।
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आनंदपुर साहिब किला – सिख इतिहास की नींव | Punjab Historical Forts
रूपनगर जिले में स्थित आनंदपुर साहिब किला सिर्फ एक किला नहीं, सिख धर्म का अहम पड़ाव है। एक तरफ शिवालिक की पहाड़ियाँ, दूसरी तरफ सतलुज नदी और बीच में ये मजबूत दीवारों वाला किला। कहते हैं, गुरु गोबिंद सिंह जी ने यहाँ अपने जीवन के 16 साल बिताए। उन्होंने इस जगह को सैन्य मुख्यालय बना दिया था और यहां से कई रणनीतिक फैसले लिए गए।
होला मोहल्ला और बैसाखी जैसे त्योहारों पर ये जगह और भी गुलज़ार हो जाती है। उस समय तो यहाँ का माहौल इतना भव्य होता है कि लगता है जैसे इतिहास फिर से ज़िंदा हो गया हो।
किला मुबारक – भटिंडा की पहचान
अगर आप भटिंडा घूमने जाएं, तो किला मुबारक को मिस मत करिएगा। इसका निर्माण महाराजा आला सिंह ने करवाया था। 1764 में बना ये किला बहुत कुछ कहता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इसी जगह रजिया सुल्तान को कैद किया गया था, वो इंडिया की पहली और एकलौती महिला शासक थीं!
इस किले के दो हिस्से हैं किला मुबारक और किला अंदरून। अंदरून वाला हिस्सा कभी शाही निवास हुआ करता था, और इसकी दीवारों पर आपको मुगल और राजस्थानी आर्किटेक्चर की झलक मिल जाएगी।
ऊँचाई से शहर का व्यू लेना हो या शांत माहौल में इतिहास को महसूस करना हो यह जगह परफेक्ट है।
फरीदकोट किला – बहादुरी की इबारत
फरीदकोट शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर, NH15 पर एक किला है जो इतिहास को बहुत ही ख़ामोशी से सहेजे हुए है। फरीदकोट किला, जो शायद पंजाब का सबसे पुराना किला माना जाता है। इसकी दीवारें इतनी मजबूत हैं कि इन्होंने कई हमलों को बिना हिले सह लिया।
इस किले की खास बात है इसकी बनावट चूने और नानकशाही ईंटों से बना ये किला आपको पुराने पंजाब की असल झलक दिखाता है। इसके अंदर एक 22 फीट ऊंचा लकड़ी का दरवाज़ा है, जो सिख समुदाय की वीरता का प्रतीक माना जाता है। और हां, इस किले के अंदर बना शीश महल भी बड़ा खास है, जिसे शाही परिवार ने पूजा-पाठ के लिए इस्तेमाल किया करता था। यहाँ घूमने का सबसे बढ़िया टाइम अक्टूबर से मार्च के बीच होता है
गोबिंदगढ़ किला – अमृतसर के दिल में
अमृतसर के बीचोंबीच स्थित गुजर सिंह किला, जिसे गोबिंदगढ़ किला भी कहा जाता है, इतिहास में एक खास जगह रखता है। ये किला 1760 में भंगी मिसी राजाओं ने बनाया था, लेकिन बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने इसे अपने कब्जे में ले लिया। शुरुआत में ये किला मिट्टी का बना था, लेकिन बाद में इसे और मजबूत किया गया। खास बात ये है कि इसका नाम सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी के सम्मान में गोबिंदगढ़ रखा गया।
इस किले की डिजाइन पूरी तरह से सैन्य शैली की है। हर कोने में एक परकोटा यानी ऊंची दीवार है और चारों तरफ दो-दरवाजे हैं। पीछे वाला दरवाजा किलर गेट कहलाता है, जबकि मुख्य प्रवेश द्वार नलवा गेट के नाम से जाना जाता है। किले के चारों तरफ कई बुर्ज और खाई बनाई गई थीं ताकि कीमती खजाने को सुरक्षित रखा जा सके।
अगर आप अमृतसर घूमने का प्लान बना रहे हैं तो अक्टूबर से मार्च का समय सबसे अच्छा माना जाता है, क्योंकि इस दौरान यहां का मौसम बहुत ही आरामदेह और सुहावना रहता है।
फिल्लौर किला – लुधियाना का गौरव
लुधियाना से करीब 14 किलोमीटर दूर, सतलुज नदी के किनारे बना है फिल्लौर किला। इसे महाराजा रणजीत सिंह के जनरल ने बनवाया था और अब ये एक पुलिस ट्रेनिंग अकादमी बन चुका है।
यहाँ मुस्लिम संतों की मजारें हैं और पीर-ए-दस्तगीर की दरगाह भी है, जो इसे एक सांस्कृतिक संगम बना देती है। एक समय में यह किला मुगलों और ब्रिटिशों के बीच काफी अहम रहा। आज ये साहस और बहादुरी की निशानी के तौर पर देखा जाता है।
बहादुरगढ़ किला – पटियाला की आन
पटियाला का ये किला भी इतिहास में एक मजबूत किरदार निभा चुका है। इसे महाराजा अरम सिंह ने दोबारा बनवाया था। इस किले में गुरुद्वारा साहिब पतशाही नौवीं है, जो इसे धार्मिक रूप से भी खास बनाता है।
इतना ही नहीं, यहाँ एक पुरानी मस्जिद भी है जिसे 1668 में सैफ खान ने बनवाया था। आज ये किला पंजाब पुलिस का स्थायी ट्रेनिंग सेंटर है।
गोबिंदगढ़ का फाँसीघर – एक कड़वी याद
ब्रिटिश राज के दौरान इस किले का एक हिस्सा था ‘फाँसीघर’। जनरल डायर, जो जलियाँवाला बाग कांड के लिए कुख्यात है, इसी किले में रहा करता था और उसने अपने बंगले के सामने फाँसीघर बनवाया था। यहीं से वह कैदियों को फाँसी देते देखता था।
ये हिस्सा आज भी खड़ा है — गवाह के तौर पर, उस दौर की क्रूरता का।
शाहपुर कंडी किला – पठानकोट की खूबसूरती
16वीं सदी का शाहपुर कंडी किला रावी नदी के किनारे स्थित है। ये जगह हिमालय की तलहटी में बसी है और प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है।
यहां एक पुरानी मस्जिद और पास में कुछ मुस्लिम संतों की कब्रें हैं। यहाँ का शांत वातावरण आपको सुकून देता है और साथ ही इतिहास से जोड़े रखता है।
इसलिए, अगर आप इतिहास को महसूस करना चाहते हैं, उन जगहों को छूना चाहते हैं जहाँ कभी रणभेरी बजती थी और शाही जुलूस निकलते थे तो पंजाब आइए। यहां हर किला, हर ईंट आपको कुछ न कुछ सिखा जाएगी।
यह सफर सिर्फ घूमने का नहीं होगा, बल्कि ये आपको उस मिट्टी से जोड़ देगा जिसने शौर्य, धर्म और परंपरा को जन्म दिया।