Ram Ratan Ram Biography: अगर आप बिहार और झारखंड की राजनीति को थोड़ा भी जानते हैं, तो एक नाम बार-बार सामने आता है जो की है राम रतन राम। 24 मार्च 1921 को रांची में जन्मे रामरतन राम सिर्फ एक नेता नहीं थे, बल्कि एक ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी समाज के सबसे वंचित लोगों को उठाने में लगा दी। उनकी कहानी किसी साधारण राजनेता की नहीं, बल्कि संघर्ष और प्रेरणा से भरे एक ऐसे इंसान की है जिसे बार-बार याद किया जाना चाहिए।
रांची में जन्म (Ram Ratan Ram Biography)
राम रतन राम का जन्म 24 मार्च 1921 को रांची में हुआ था। बचपन से ही उनमें सामाजिक सरोकारों की समझ और लोगों के लिए कुछ करने की इच्छा दिखाई देती थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा महात्मा गांधी द्वारा स्थापित निबारन आश्रम में हुई। आगे उन्होंने बी.के. हाई स्कूल, रांची कॉलेज, डोरंडा कॉलेज और छोटानागपुर लॉ कॉलेज से पढ़ाई पूरी की।
कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता के रूप में सक्रिय हुए। इसी दौरान वे बोस के मार्गदर्शन में काम करते रहे। वे स्वतंत्रता आंदोलन से भी जुड़े और 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में सक्रिय भूमिका निभाई, फिर जेल गए, संघर्ष किया। बाद में वकालत की डिग्री पूरी की और एक वकील बने लेकिन मन हमेशा जनता की लड़ाई में लगा रहा। वहीं, 1942 में ही उन्होंने श्रीमती बीना देवी से विवाह किया, जिनसे उनके आठ बच्चे हुए।
1952 से 1984 तक: लगातार जीतते रहे, राजनीति में लोगों की पहली पसंद बने
आज़ादी के तुरंत बाद जब पहला विधानसभा चुनाव हुआ, रामरतन राम मैदान में उतरे और जीतकर निकले। दिलचस्प बात ये है कि इसके बाद लगभग हर चुनाव में जीतते रहे। जनता का भरोसा ऐसा कि वे बिहार विधानसभा, विधान परिषद और बाद में लोकसभा हर जगह चुने जाते रहे। 1984 में वे हाजीपुर सीट से लोकसभा पहुंचे और राष्ट्रीय राजनीति में उनकी भूमिका और भी मजबूत हुई।
दलित–वंचित समाज की सबसे मजबूत आवाज
जो बात उन्हें सबसे अलग बनाती है, वह है दलित और वंचित वर्ग के प्रति उनकी प्रतिबद्धता। वे जहां भी जाते, लोग कहते, “ये हमारे लिए लड़ते हैं।” प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता आलोक कुमार दुबे आज भी कहते हैं, “रामरतन राम जैसे योद्धा अब नहीं मिलते। उनकी सोच, उनका संघर्ष यही कांग्रेस को मजबूती दे सकता है।”
आपको बता दें, रामरतन राम अनुसूचित जाति–जनजाति आयोग के अध्यक्ष भी रहे और इस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर पिछड़े समाज के लिए ऐसे फैसले लिए जो आज भी मिसाल माने जाते हैं।
झारखंड आंदोलन के मुखर चेहरे
झारखंड अलग राज्य बनाने की मांग तो बहुतों ने की, लेकिन कुछ ही लोग इसे राष्ट्रीय स्तर पर उठा पाए। रामरतन राम उन आवाजों में से एक थे जो दिल्ली तक झारखंड की मांग को पहुंचाते रहे। वे कहते थे कि इस क्षेत्र की पहचान अलग है, और उसे उसका हक मिलना चाहिए। आज जब झारखंड एक अलग राज्य है, तो उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
कैबिनेट मंत्री से लेकर कई समितियों के नेतृत्व तक हमेशा सक्रिय रहे
बिहार में उन्होंने गृह मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद संभाले। रांची जिला कांग्रेस कमेटी से लेकर पिछड़ा वर्ग महासंघ, दलित वर्ग लीग, वन सलाहकार बोर्ड, रेलवे सलाहकार समिति ऐसी दर्जनों जगहों पर उन्होंने नेतृत्व किया। जिस भी कमेटी या विभाग में गए, वहाँ बदलाव लाने की कोशिश की। वे सिर्फ कुर्सी पर बैठने वाले नेता नहीं, बल्कि जमीनी कार्यकर्ता थे।
जीवन का अंतिम अध्याय और एक अधूरा सा एहसास
16 अगस्त 2002 को दिल का दौरा पड़ने पर वे दिल्ली के एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टिट्यूट में भर्ती हुए। चार दिन तक जिंदगी और मौत से जूझते रहे और 20 अगस्त को उन्होंने अंतिम सांस ली।
लेकिन जाते-जाते भी वे एक सवाल छोड़ गए, ‘क्या हम उनके जैसे नेताओं के आदर्शों को आगे बढ़ा पा रहे हैं?’
एक ऐसा नेता, जिसकी कमी आज भी महसूस होती है
रामरतन राम की कहानी कोई राजनीतिक जीवनी नहीं, बल्कि संघर्ष, सेवा और लोगों के प्रति समर्पण की कहानी है। एक ऐसा नेता जिसने दलितों को आत्मविश्वास दिया, वंचितों की आवाज को शक्ति दी, झारखंड की मांग को संसद तक पहुंचाया और हर उस व्यक्ति के लिए लड़ता रहा जिसे समाज ने पीछे धकेल दिया।
