Sikh History: क्या आप जानते हैं कि एक समय ऐसा भी था जब सिख धर्म था ही नहीं? न कोई गुरुद्वारा था, न कोई “वाहेगुरु” का जाप। लेकिन फिर एक ऐसी क्रांति हुई, जिसने पंजाब की ज़मीन पर एक नए विश्वास की नींव रख दी, वो विश्वास जो आज सिख धर्म के नाम से जाना जाता है। ये कहानी है एक धर्म के जन्म की संघर्ष, बलिदान, बहादुरी और आत्मसम्मान से भरी हुई। ये सिर्फ एक धर्म की नहीं, बल्कि उन लोगों की कहानी है जिन्होंने मुगलों के आतंक का सामना किया, अपनी पहचान के लिए लड़े और इतिहास में एक अलग मिसाल कायम की।
तो चलिए, समय के पहियों को पीछे घुमाते हैं और जानते हैं कैसे जन्मा सिख धर्म, कैसे लड़ते-लड़ते बना एक वीर कौम और कैसे इतिहास में दर्ज हो गई इसकी अनसुनी, लेकिन जरूरी दास्तान।
ऐसी हुई सिख धर्म की शुरुआत- Sikh History
कहा जाता है कि इस धर्म की शुरुआत हुई थी लगभग 1500 साल पहले पंजाब के क्षेत्र में, जो आज भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में बटा हुआ है। उस वक्त इस इलाके में मुख्य रूप से दो बड़े धर्म प्रचलित थे, हिंदू धर्म और इस्लाम। ऐसे में एक नया धर्म, जो दोनों से अलग था, उसके जन्म की कहानी बेहद दिलचस्प है।
यह धर्म शुरू हुआ था गुरु नानक देव जी के द्वारा, जिन्होंने एक ऐसी शिक्षा दी जो न हिंदू थी और न ही इस्लाम, बल्कि एक बिल्कुल नई राह दिखाने वाली थी। गुरु नानक के बाद कुल दस गुरुओं ने मिलकर इस धर्म को आगे बढ़ाया, विकसित किया और मजबूत किया।
सिखों का सैन्यीकरण और संघर्ष की शुरुआत
गुरु अर्जन देव, जो कि पांचवें गुरु थे, ने अमृतसर में सिख धर्म की राजधानी स्थापित की और “आदि ग्रंथ” नाम की पहली आधिकारिक पवित्र पुस्तक का संकलन किया। लेकिन उस समय सिख धर्म को कई बार खतरे के रूप में भी देखा गया। यही वजह थी कि 1606 में गुरु अर्जन को उनके धर्म के लिए फांसी दे दी गई।
इसके बाद छठे गुरु हरगोबिंद ने सिख समुदाय को सैन्य रूप से संगठित करना शुरू किया ताकि वे अपने धर्म की रक्षा कर सकें। इसके बाद सिखों ने कई बार लड़ाइयाँ लड़ीं, खासकर मुगल शासक औरंगजेब के शासनकाल में। औरंगजेब ने नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर को गिरफ्तार कर 1675 में फांसी दे दी, क्योंकि उन्होंने अपने धर्म और प्रजा की रक्षा के लिए आवाज उठाई थी।
खालसा और गुरु गोबिंद सिंह का बड़ा कदम
1699 में दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने सिखों को ‘खालसा’ नामक एक सैन्य समूह के रूप में संगठित किया। खालसा का उद्देश्य था कि सिख हमेशा अपने धर्म की रक्षा कर सकें। उन्होंने सिख दीक्षा संस्कार (खांडे दी पाहुल) की शुरुआत की और सिखों को उनके पांच विशेष चिन्ह — पांच क — दिए, जो आज भी हर सिख को उनकी पहचान देते हैं।
गुरु गोबिंद सिंह अंतिम मानव गुरु थे, और उन्होंने सिखों को बताया कि अब वे अपने धार्मिक ग्रंथ “गुरु ग्रंथ साहिब” को अपना गुरु मानें।
गुरु के बाद का सिख इतिहास
गुरुओं के बाद सिख समुदाय ने बंदा सिंह बहादुर जैसे सैन्य नेताओं के नेतृत्व में मुगल शासकों के खिलाफ संघर्ष जारी रखा। हालांकि 1716 में बंदा सिंह बहादुर को पकड़कर फांसी दे दी गई, फिर भी सिखों ने हार नहीं मानी।
सिखों का साम्राज्य फिर से उठ खड़ा हुआ और 1799 में महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर पर कब्जा कर पंजाब को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित किया। रणजीत सिंह खुद एक कट्टर सिख थे, लेकिन वे हिंदू और मुसलमानों के साथ भी मिलजुलकर शासन करते थे।
अंग्रेजों से टकराव और फिर समझौता
1839 में महाराजा रणजीत सिंह की मौत के बाद सिख राज्य कमजोर पड़ गया और 1845-46 में ब्रिटिश सेना ने इसे पराजित कर लिया। 1849 में एक बार फिर सिखों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया, लेकिन इस बार भी हार गए। इसके बाद सिखों और ब्रिटिशों के बीच अच्छे संबंध बने। सिखों ने ब्रिटिश सेना में अपनी जगह बनाई और अंग्रेजों ने गुरुद्वारों पर भी अपना नियंत्रण स्थापित किया।
अमृतसर नरसंहार और स्वतंत्रता की राह
लेकिन 1919 में अमृतसर नरसंहार ने दोनों के रिश्ते बिगाड़ दिए। ब्रिटिश जनरल डायर ने बिना चेतावनी के एक विरोध सभा में गोलियां चला दीं, जिसमें करीब 400 लोग मारे गए। यह घटना भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को नई ताकत देने वाली साबित हुई।
भारत के विभाजन और सिखों की चुनौती
1947 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ विभाजन सिख समुदाय के लिए बेहद दुखद रहा। उन्हें बुरी तरह टकराव का सामना करना पड़ा और बहुत से सिखों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा। हालांकि सिखों ने भारत के साथ रहने का फैसला किया, लेकिन वे अपनी जमीन और अधिकार खो चुके थे।
सिखों की अलग राज्य की मांग और संघर्ष
इसके बाद, सिखों ने वर्षों तक अलग राज्य की मांग की, लेकिन भारत सरकार को यह स्वीकार करना मुश्किल था। अंततः 1966 में पंजाब को तीन हिस्सों में बांट कर सिख बहुल राज्य बनाया गया। परन्तु यह कदम भी उनके गुस्से को शांत नहीं कर पाया।
स्वर्ण मंदिर पर ऑपरेशन ब्लू स्टार और उसके बाद
वहीं, 1984 में अमृतसर के सबसे पवित्र स्थान स्वर्ण मंदिर पर भारतीय सेना ने ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया, जिसमें कई लोग मारे गए और मंदिर को नुकसान पहुंचा। इस घटना ने सिख समुदाय में गहरा आघात पहुंचाया। इसी साल अक्टूबर में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों ने हत्या कर दी। इसके बाद भारत के कई हिस्सों में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे, जिसमें हजारों लोगों की जान गई।
…और यही है सिख धर्म की कहानी। एक साधु से योद्धा तक की, एक भक्ति से बलिदान तक की। गुरु नानक देव की करुणा से लेकर गुरु गोबिंद सिंह की तलवार तक, सिख धर्म न तो सिर्फ पूजा-पाठ का नाम है और न ही सिर्फ रीति-रिवाज़ों का। ये एक विचार है, जो आत्मसम्मान, न्याय और समानता की मिसाल पेश करता है।
इतिहास में चाहे जितने तूफ़ान आए, चाहे मुगलों की तलवारें हों या अंग्रेजों की साजिशें, सिख कौम ने कभी सिर झुकाना नहीं सीखा। जब-जब ज़ुल्म बढ़ा, तब-तब गुरु की ये फौज खड़ी हुई सिर कटा दिए, पर सिद्धांत नहीं छोड़े।