Sikh Turban History: जब भी सिख धर्म की बात होती है, तो हमारे ज़हन में सबसे पहली तस्वीर आती है एक शख्स की, जिसने सिर पर खूबसूरत तरीके से पगड़ी बाँधी होती है। पगड़ी ना सिर्फ एक पहनावा है, बल्कि यह सिख समुदाय की पहचान, आस्था और सम्मान का प्रतीक बन चुकी है। हालांकि आजकल इस पवित्र परंपरा को सिर्फ पुरुषों तक ही सीमित नहीं माना जा रहा, अब कई सिख महिलाएं भी पूरी शिद्दत से पगड़ी पहन रही हैं और इसे अपनी पहचान का अहम हिस्सा बना रही हैं।
कैसे शुरू हुई सिख महिलाओं के पगड़ी पहनने की यह परंपरा? (Sikh Turban History)
नर्मदापुरम के निवासी अभिनव पंजाबी ने सिख धर्म से जुड़े कई अनछुए पहलुओं पर रोशनी डाली है। वह बताते हैं कि पगड़ी का इतिहास सिख धर्म में काफी गहराई से जुड़ा है। 1699 में, सिखों के दसवें गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना करते समय अपने ‘पंज प्यारे’ को अमृत और एक खास वेश-भूषा दी थी, जिसमें पगड़ी का भी ज़िक्र है। सिखों के सबसे ऊंचे धार्मिक स्थान ‘अकाल तख्त’ से भी यह आदेश है कि जो सिख अमृत छकते हैं, चाहे वह पुरुष हो या महिला, उन्हें दस्तार (पगड़ी) पहनना अनिवार्य है।
यानि यह परंपरा केवल पुरुषों तक सीमित नहीं है, बल्कि महिलाओं को भी बराबरी से इसमें शामिल किया गया है।
देविंदर की कहानी: जब पगड़ी बना आत्मबल का प्रतीक
ब्रिटेन की एक सिख महिला देविंदर की कहानी इस बदलाव को और भी गहराई से समझने में मदद करती है। देविंदर आज लगभग 40 साल की हैं और लंदन के एक स्कूल में सहायक अध्यापक हैं। वह आज जिस तरह सफेद पगड़ी बांधकर आत्मविश्वास से भरी नज़र आती हैं, ऐसा हमेशा नहीं था।
अपनी पुरानी तस्वीरें दिखाते हुए वह बताती हैं, “पहले मैं बाल कलर करती थी, मेकअप करती थी, पार्टीज़ में जाती थी। लेकिन तब भी अंदर से खालीपन था।” सात साल पहले उन्होंने सिख धर्म को पूरी तरह से अपनाया और पगड़ी पहनना शुरू किया।
शुरुआत में बहुत विरोध झेलना पड़ा। कुछ लोगों ने कहा कि इससे उन्हें सामाजिक नुकसान होगा, नौकरी मिलना मुश्किल होगा या शादी में दिक्कत आ सकती है। लेकिन देविंदर कहती हैं कि पगड़ी ने उन्हें खुद से जोड़ने में मदद की। “जब मैं पगड़ी पहनती हूँ, तो मुझे लगता है मैं गुरु के और करीब हूँ। यह मुझे हर दिन मजबूत बनाता है।”
सामाजिक पहचान से लेकर आध्यात्मिक जुड़ाव तक
आज सिख समुदाय की लाखों महिलाएं इस सोच के साथ पगड़ी पहन रही हैं कि अगर उनके गुरु ने समानता की बात की है, तो फिर केवल पुरुषों को ही क्यों यह अधिकार मिले? मैनचेस्टर की सरबजोत कौर जैसे युवा महिलाओं का मानना है कि पगड़ी पहनना उनके लिए सिर्फ एक धार्मिक कदम नहीं, बल्कि खुद को सशक्त बनाने का एक जरिया भी है।
वह कहती हैं, “जब मैं अपनी नीली पगड़ी बांधती हूँ और आईने में देखती हूँ, तो मुझे लगता है कि मैं खालसा की एक सच्ची प्रतिनिधि हूँ।” सरबजोत पहले भांगड़ा डांसर थीं, लेकिन अब उन्होंने पगड़ी को अपनी पहचान बना लिया है।
क्या कहता है इतिहास और विज्ञान?
हालाँकि पगड़ी की शुरुआत कब और कैसे हुई, इस पर साफ़ इतिहास नहीं मिलता, लेकिन 2350 ईसा पूर्व की मेसोपोटामियन कलाकृतियों में पगड़ी जैसे सिर पर लपेटे गए वस्त्र देखे जा सकते हैं। उस समय इसे गर्मी, धूप और धूल से बचाव के लिए इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन धीरे-धीरे यह विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों में पहचान का प्रतीक बन गई।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी पगड़ी पहनने के कई फायदे हैं। यह सिर को धूप से बचाती है, ऊर्जा का प्रवाह संतुलित रखती है और मस्तिष्क में रक्त संचार को बढ़ावा देती है। यही वजह है कि ध्यान करने वाले साधु-संत भी सिर पर “ऋषि गांठ” बांधते हैं।
सिख धर्म और 5K की परंपरा
पगड़ी सिर्फ एक कपड़ा नहीं, यह सिख धर्म के 5K का हिस्सा है — केश (बिना कटे बाल), कंघा (लकड़ी की कंघी), कड़ा (धातु का चूड़ा), कृपाण (छोटी तलवार) और कच्छा (विशेष अंडरगारमेंट)। ये सभी चीजें सिखों की वर्दी का हिस्सा हैं, और इनमें से हर एक प्रतीक उनके जीवन मूल्यों को दर्शाता है।
पगड़ी पहनने के तरीके और रंगों का मतलब
आपको बता दें कि पगड़ी बांधने का भी एक तरीका होता है — बालों को ऊँचा करके बाँधना, पगड़ी को त्रिकोणीय मोड़ में लपेटना और सही आकार में सेट करना। अलग-अलग रंग भी अपने मतलब रखते हैं — नीला रंग साहस का, सफेद रंग शांति का, केसरिया रंग बलिदान और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।
क्या सभी सिख पगड़ी पहनते हैं?
आईए अब जानते हैं कि क्या सभी सिख पगड़ी पहनते हैं? धार्मिक नियमों के अनुसार, पगड़ी पहनना अमृतधारी सिखों के लिए अनिवार्य है। हालांकि समय के साथ कुछ लोग इस परंपरा से दूरी भी बना रहे हैं। लेकिन आज जब सिख पुरुष भी बाल कटवा रहे हैं, ऐसे में महिलाओं का पगड़ी पहनने का फैसला कहीं न कहीं सिख धर्म की असली आत्मा — समता और शक्ति — को फिर से जीवंत कर रहा है।
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