Sikhs in US Army: अमेरिकी सेना में सिखों की मौजूदगी कोई नई बात नहीं है, बल्कि यह इतिहास एक सदी से भी पुराना है। प्रथम विश्वयुद्ध से लेकर आज तक सिख और सिख-अमेरिकी सैनिक अमेरिकी सशस्त्र बलों में बहादुरी, वफादारी और अनुशासन का उदाहरण बनकर खड़े रहे हैं। हालांकि यह राह हमेशा आसान नहीं रही। 1980 के दशक के बाद कई धार्मिक बंदिशों ने सिखों के लिए सेना में सेवा करना मुश्किल बना दिया, लेकिन संघर्ष और कानूनी लड़ाई के बाद आज फिर से उनके लिए नई राहें खुल रही हैं।
सिख योद्धाओं की पहचान और ‘फाइव-के’ की परंपरा (Sikhs in US Army)
सिख धर्म में ‘पांच ककार’ यानी Five Ks केश, कंघा, कड़ा, कच्छेरा और कृपाण धार्मिक पहचान और अनुशासन के मूल प्रतीक माने जाते हैं। केश (अनकट बाल और दाढ़ी) और पगड़ी सिख पहचान का सबसे बड़ा हिस्सा हैं। इन्हीं धार्मिक परंपराओं की वजह से सिखों की छवि हमेशा एक साहसी योद्धा की रही है।
सिख इतिहास में गुरु हरगोबिंद की महत्वपूर्ण भूमिका रही, जिन्होंने 1600 के दशक में पहली बार सिखों को सशस्त्र सेना बनाने का महत्व समझाया। उन्होंने सिखों को आत्मरक्षा और न्याय के लिए खड़ा होना सिखाया। यही शिक्षा आगे चलकर सिखों को दुनिया की सबसे बहादुर सैन्य टुकड़ियों में शामिल करती गई। ब्रिटिश काल में भी सिखों को “बोर्न सोल्जर्स” कहा जाता था, और प्रथम विश्वयुद्ध और द्वितीय विश्वयुद्ध में उनकी भूमिका दुनिया ने देखा।
अमेरिकी सेना में शुरुआत: भगत सिंह थिंड से नई राह
अमेरिकी सेना में सबसे पहले पहचान बनाने वाले सिख सैनिकों में भगत सिंह थिंड का नाम सबसे ऊपर आता है। उन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध में अमेरिकी सेना में सेवा दी और वे पहले सिख थे जिन्हें यूनिफॉर्म में पगड़ी पहनने की मंज़ूरी मिली। हालांकि युद्ध के बाद उन्हें नागरिकता से वंचित कर दिया गया, लेकिन 1936 में उन्हें यह अधिकार वापस मिला।
द्वितीय विश्वयुद्ध में सिख सैनिकों ने न केवल भारतीय और ब्रिटिश फौजों में बल्कि अमेरिकी यूनिटों के साथ भी मिलकर कई ऐतिहासिक लड़ाइयों में हिस्सा लिया। मोंटे कैसिनो, इटली कैम्पेन, एल अलेमेन, कोहिमा, इंफाल इन तमाम लड़ाइयों में सिख सैनिकों ने अमेरिकी सैन्य अभियानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी।
यूनिफॉर्म नियम और धार्मिक पहचान पर रोक
1970 के दशक तक अमेरिकी सेना में दाढ़ी और पगड़ी की अनुमति थी। लेकिन 1980 के दशक में नियम बदले और दाढ़ी पर पाबंदी लगा दी गई। इसका असर सैकड़ों सिख सैनिकों पर पड़ा जिन्हें या तो अपनी पहचान त्यागनी पड़ी या सेना छोड़नी पड़ी। रेहत मर्यादा के अनुसार दाढ़ी और पगड़ी सिख धार्मिक आस्था का हिस्सा है, इसलिए यह पाबंदी एक बड़ी बाधा बन गई। कुछ पुराने सैनिक, जैसे कर्नल जी.बी. सिंह, को ‘ग्रैंडफादर क्लॉज’ के तहत छूट मिली, लेकिन नए भर्ती होने वालों पर सख्त रोक लगी रही।
नए दौर की लड़ाई और जीत
2009 में यह संघर्ष नए मोड़ पर पहुँचा जब कैप्टन कमलजीत सिंह कालसी और लेफ्टिनेंट तेजदीप सिंह रत्तन ने अपने धार्मिक अधिकारों के लिए औपचारिक अपील दायर की। कालसी ने अमेरिकी सेना में डॉक्टर के रूप में सेवा की थी और भर्ती के समय उन्हें पगड़ी व दाढ़ी की अनुमति दिए जाने का भरोसा भी दिलाया गया था। लेकिन बाद में सेना ने उन्हें सक्रिय ड्यूटी पर बुलाकर दाढ़ी कटाने का आदेश दिया।
सिख कोएलिशन ने इस फैसले को धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम (Religious Freedom Restoration Act – 1993) के खिलाफ बताया। लंबी कानूनी बहस के बाद 2009 में कैप्टन कालसी को छूट मिल गई। 2010 में तेजदीप सिंह रत्तन और बाद में स्पेशलिस्ट लांबा को भी अनुमति दी गई।
2016 में कैप्टन सिमरतपाल सिंह की कानूनी जीत ने नया इतिहास रच दिया, जिसके बाद सेना ने स्थायी धार्मिक छूट देने का फैसला किया। 2017 में अमेरिकी सेना ने आधिकारिक तौर पर पगड़ी, दाढ़ी और धार्मिक पोशाक को अनुमति देने वाला नियम लागू किया एक ऐतिहासिक फैसला।
नई पीढ़ी का सफर
नियम बदलने के बाद कई सिख युवाओं ने अमेरिकी सेना में शानदार उपलब्धियाँ हासिल कीं:
- 2018: लेफ्टिनेंट कंवर सिंह नए नियमों के तहत ऑफिसर कैंडिडेट स्कूल पूरा करने वाले पहले सिख
- 2019: एयरमैन हरप्रीतिंदर सिंह बजवा पगड़ी और दाढ़ी के साथ सेवा करने वाले पहले सक्रिय ड्यूटी एयरमैन
- 2020: अनमोल नारंग अमेरिकी मिलिट्री अकादमी से ग्रेजुएट होने वाली पहली सिख
- 2022: यूनिफॉर्म नियमों पर महत्वपूर्ण फेडरल कोर्ट का फैसला, जिसमें तीन सिख मरीन को दाढ़ी न कटवाने की अनुमति मिली
आज भी जारी हैं चुनौतियाँ, लेकिन रास्ता खुल चुका है
हालांकि नीतियाँ काफी हद तक बदली हैं, फिर भी कई जगह तकनीकी और सुरक्षा संबंधी नियमों को लेकर सिख सैनिकों को चुनौतियाँ झेलनी पड़ती हैं। लेकिन यह भी सच है कि दशकों से जिस अधिकार के लिए सिख अमेरिकी लड़ते आ रहे थे, आज वह अमेरिकी सेना द्वारा मान्यता प्राप्त है।
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