Sikhism in Antarctica: सोचिए, आप दुनिया के सबसे ठंडे महाद्वीप पर खड़े हैं, जहां बर्फ के अलावा कुछ नहीं दिखता और तापमान -89 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं अंटार्कटिका की, वह जगह जो पूरी तरह से बर्फ से ढकी हुई है और जहां कोई स्थायी बस्ती नहीं है। लेकिन क्या आपको पता है कि इस बर्फीले महाद्वीप पर कुछ सिख वैज्ञानिक और पर्यटक भी गए हैं, जिन्होंने ना केवल अपना शोध किया, बल्कि सिख धर्म के मूल्यों को भी यहां अपनी मेहनत और साहस से फैलाया है?
दरअसल, अंटार्कटिका में सिख धर्म का इतिहास उतना लंबा नहीं है, लेकिन सिख वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की कुछ अद्भुत कहानियां हैं, जिन्होंने इस बर्फीले महाद्वीप पर अपने कदम जमाए और सिख धर्म के जज्बे को पूरी दुनिया के सामने पेश किया।
आइए, जानते हैं अंटार्कटिका में सिखों का क्या इतिहास है और कैसे उन्होंने इस सर्द और बर्फीले स्थान पर अपने सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को जीवित रखा।
अंटार्कटिका कहां है? (Sikhism in Antarctica)
सबसे पहले बात करते हैं अंटार्कटिका की, यह पृथ्वी का सबसे दक्षिणी महाद्वीप है, जो दक्षिणी महासागर से घिरा हुआ है। यहां के तापमान अक्सर -60°C से भी नीचे चला जाता है, और यह जगह पूरी तरह से बर्फ से ढकी हुई है। जैसा कि हमने आपको पहले बताया था अंटार्कटिका में कोई स्थायी मानव बस्ती नहीं है। यहां के रिसर्च स्टेशनों पर दुनिया भर के वैज्ञानिक कुछ महीनों के लिए आते हैं। यह महाद्वीप पूरी तरह से शांति और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए समर्पित है, और अंटार्कटिक संधि के तहत यहां कोई भी धार्मिक या राजनीतिक विवाद नहीं होता।
सिखों का अंटार्कटिका से जुड़ाव
अब सवाल यह है कि क्या अंटार्कटिका में सिखों का कोई इतिहास है? दरअसल, अंटार्कटिका में सिखों की संख्या बहुत कम है, क्योंकि यह कोई स्थायी आबादी नहीं है। लेकिन फिर भी, कुछ सिख वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने इस ठंडे महाद्वीप पर अपने कदम जमाए हैं, और वहां के कठोर वातावरण में भी सिख धर्म का जज्बा देखा गया है।
1980 के दशक में परमजीत सिंह सेहरा पहले भारतीय बने, जिन्होंने अंटार्कटिका में कदम रखा था। वह सोवियत मिशन का हिस्सा थे और अहमदाबाद के फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी से थे। 2012 में, बंदनजोत सिंह ने अंटार्कटिका के वैज्ञानिक मिशन में हिस्सा लिया और पगड़ीधारी पंजाबी सिख के रूप में अंटार्कटिका में अपनी पहचान बनाई।
इसके अलावा, ब्रिटिश सिख आर्मी के डॉक्टर हरप्रीत चांदी (Polar Preet) ने अंटार्कटिका में सबसे तेज़ महिला के रूप में 1,130 किलोमीटर की दूरी अकेले स्कीइंग करते हुए तय की थी। यह भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जिसने सिखों के साहस और मेहनत की मिसाल पेश की।
अंटार्कटिका में गुरुद्वारा नहीं है
अब बात करें अंटार्कटिका में सिख धर्म की धार्मिक गतिविधियों की तो यहां कोई गुरुद्वारा नहीं है। अंटार्कटिका पूरी तरह से वैज्ञानिक रिसर्च के लिए समर्पित है, और यहां कोई स्थायी धार्मिक इमारत नहीं है। हालांकि, कुछ ईसाई चर्च हैं, जैसे “चैपल ऑफ द स्नोज”, जो बौद्ध और बहाई धर्म के समारोहों के लिए भी इस्तेमाल होते हैं। लेकिन सिखों के लिए कोई गुरुद्वारा नहीं है। हालांकि, सिख धर्म के अनुयायी यहां अपनी श्रद्धा और संस्कृतियों का पालन करते हैं, भले ही यहां उनका कोई स्थायी धार्मिक स्थल नहीं है।
अंटार्कटिका में सिख धर्म का महत्व
अंटार्कटिका में सिखों के धार्मिक योगदान की कोई बड़ी चर्चा तो नहीं है, लेकिन उनके साहस और लगन को देखकर यह कहा जा सकता है कि सिखों ने इस ठंडी धरती पर भी अपनी पहचान बनाई है। अंटार्कटिका के मिशनों में शामिल सिख वैज्ञानिकों ने अपनी मेहनत से न केवल भारत का नाम रोशन किया, बल्कि सिख धर्म के आदर्शों को भी इस धरती के सबसे दूर कोने तक पहुंचाया। चाहे वह परमजीत सिंह हों, जिन्होंने सोवियत मिशन में अंटार्कटिका की ओर रुख किया, या बंदनजोत सिंह हों, जिन्होंने पगड़ी पहनकर अंटार्कटिका के मिशन में हिस्सा लिया, सभी ने सिख धर्म के प्रति अपनी निष्ठा और श्रद्धा को पूरी दुनिया में दिखाया।
अंटार्कटिका का वैज्ञानिक महत्व और सिखों का योगदान
आपकी जानकारी के लिए बता दें, भारत का अंटार्कटिका मिशन 1981 से चल रहा है, और इसके तहत भारत ने कई रिसर्च स्टेशन स्थापित किए हैं, जिनमें से मैत्री और भारती प्रमुख हैं। इन मिशनों में भारत के वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका की जलवायु, पर्यावरण और जैव विविधता के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सिख वैज्ञानिकों ने इस मिशन में अपनी भूमिका निभाई और अंटार्कटिका के कठोर वातावरण में भी भारतीय और सिख धर्म की पहचान को बनाए रखा।