Sikhism in East Midlands: जब बात ब्रिटेन में सिख समुदाय की होती है, तो ज़हन में सबसे पहले वेस्ट मिडलैंड्स या ग्रेटर लंदन का नाम आता है। लेकिन एक और इलाका है जो धीरे-धीरे इस सांस्कृतिक पहचान का एक अहम केंद्र बनता जा रहा है और वो है ईस्ट मिडलैंड्स।
2021 की जनगणना के अनुसार, ईस्ट मिडलैंड्स में 53,950 सिख लोग रहते हैं, जो इस क्षेत्र की कुल आबादी का लगभग 1.1% हिस्सा हैं। यह आंकड़ा इस क्षेत्र को यूके का चौथा सबसे बड़ा सिख-बहुल इलाका बनाता है।
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कहां-कहां बसे हैं सिख? Sikhism in East Midlands
अगर गहराई से देखें, तो ईस्ट मिडलैंड्स के कई शहरों और काउंसिल क्षेत्रों में सिख समुदाय की अच्छी खासी उपस्थिति है:
- लीसेस्टर में सबसे अधिक – 16,451 सिख
- डर्बी में – 9,762
- ओडबी और विगस्टन – 4,342
- नॉटिंघम – 4,110
- ब्लेबी – 2,927
और अगर प्रतिशत के हिसाब से बात करें, तो:
- ओडबी और विगस्टन की जनसंख्या का 7.5% भाग सिखाये जाते हैं
- लीसेस्टर में यह संख्या 4.5%
- डर्बी – 3.7%
- ब्लेबी – 2.8%
- दक्षिण डर्बीशायर – 2.1%
इन आंकड़ों से यह साफ़ झलकता है कि सिख समुदाय ने न केवल यहाँ बसावट की है, बल्कि अपनी संस्कृति, आस्था और सामाजिक संरचना के साथ इस क्षेत्र का हिस्सा भी बन गया है।
ईस्ट मिडलैंड्स में यूके सिख गेम्स
हाल ही में ईस्ट मिडलैंड्स में सिख समुदाय की एक और ऐतिहासिक पहल देखने को मिली – जहां 16 से 18 अगस्त, 2024 के बीच पहले यूके सिख गेम्स का आयोजन किया गया। यह आयोजन पूरे क्षेत्र के कई स्थानों पर हुआ और इसमें 6 अलग-अलग खेल स्पर्धाएं शामिल थीं। इस इवेंट का उद्देश्य सिख समुदाय के भीतर खेलों के प्रति रुचि और भागीदारी को बढ़ावा देना था।
यह पहल न सिर्फ सफल रही, बल्कि पूरे यूके से खिलाड़ी, परिवार और दर्शक बड़ी संख्या में इसमें शामिल हुए। खेलों में क्रिकेट, फुटबॉल, वेटलिफ्टिंग, ट्रैक रेस के साथ-साथ कुछ नॉन-स्पोर्टिंग प्रतियोगिताएं भी रखी गईं, जिनका मकसद सिर्फ प्रतिस्पर्धा नहीं बल्कि समुदाय को जोड़ने और उत्सव का माहौल बनाना था।
एक लंबा और भावुक इतिहास
सिखों का ब्रिटेन से रिश्ता कोई आज का नहीं है। इसकी जड़ें इतिहास में गहराई तक फैली हैं।
दलीप सिंह, जो सिख साम्राज्य के आखिरी महाराजा थे, 1854 में इंग्लैंड आए थे। वे पंजाब में अपने साम्राज्य से जबरन निकाले गए थे और ब्रिटिश शासन के अधीन यहां लाए गए। उनके साथ उनकी मां महारानी जिंद कौर भी बाद में इंग्लैंड आकर बसीं। इसी के साथ सिख उपस्थिति की कहानी ब्रिटिश ज़मीन पर शुरू हुई।
इसके बाद 1911 में लंदन में पहला सिख गुरुद्वारा खुला। यह वह समय था जब पहले सिख आप्रवासी पंजाब से ब्रिटेन आकर यहाँ बसना शुरू कर चुके थे। फिर दोनों विश्व युद्धों के दौरान सिख सैनिकों की भागीदारी, और युद्ध के बाद के दशकों में बड़ी संख्या में सिख समुदाय का यहां आकर बसना – इस रिश्ते को और गहरा करता गया।
ईस्ट मिडलैंड्स में धार्मिक पहचान के केंद्र – गुरुद्वारे
ईस्ट मिडलैंड्स में सिख संस्कृति और धर्म का केंद्र यहां गुरुद्वारे बने हैं, जो न केवल धार्मिक स्थल हैं, बल्कि सामाजिक एकता, शिक्षा और सेवा का प्रतीक भी हैं।
लीसेस्टर में मौजूद गुरु नानक गुरुद्वारा और गुरु तेग बहादुर गुरुद्वारा, नॉटिंघम में स्थित गुरु नानक देव जी गुरुद्वारा और सिरी गुरु सिंह सभा सिख मंदिर – ये सभी धार्मिक स्थल सिखों की मजबूत ताकत और उनके सक्रिय प्रमाण हैं।
यहाँ रोज़ाना आने वाले सैकड़ों श्रद्धालु, लंगर सेवा, धार्मिक शिक्षा और बच्चों के लिए सांस्कृतिक कक्षाएं सब कुछ यही दिखाता है कि कैसे ये स्थान लोगों को जोड़ने का काम कर रहे हैं।
सिर्फ धर्म नहीं, समाज का हिस्सा भी
सिख समुदाय ने इस क्षेत्र में न सिर्फ अपनी धार्मिक पहचान बनाए रखी है, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक योगदान भी दिया है। कई सिख परिवार अब दूसरे या तीसरे पीढ़ी के ब्रिटिश नागरिक हैं, जो डॉक्टर, इंजीनियर, व्यापारी, शिक्षक और यहां तक कि स्थानीय राजनीति का भी हिस्सा बन चुके हैं।
इसके साथ ही, सिख समुदाय सेवा, समानता और भाईचारे के मूल सिद्धांतों को लेकर भी सक्रिय है। महामारी के दौरान ईस्ट मिडलैंड्स में कई गुरुद्वारों ने भोजन और दवाइयों की मुफ्त सेवा शुरू की थी, जिसने समुदाय के भीतर और बाहर दोनों जगह गहरी छाप छोड़ी।
चुनौतियाँ और उम्मीदें
हालांकि सब कुछ सकारात्मक है, लेकिन चुनौतियाँ भी हैं। धार्मिक स्वतंत्रता, पहचान की स्वीकार्यता और युवा पीढ़ी में संस्कृति से जुड़ाव बनाए रखना ऐसे मुद्दे हैं जिन पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि ऑफिस और स्कूलों में धार्मिक पहचान को लेकर खुलापन अभी भी हर जगह समान नहीं है। हालांकि, सिख समुदाय अपने संगठनों के ज़रिए इस ओर लगातार काम कर रहा है – जैसे सिख स्टूडेंट यूनियंस, सामुदायिक सभा और गुरुद्वारों की शिक्षा पहलें।