Volunteerism in Sikhism: सिख धर्म का अद्भुत सिद्धांत सेवा और वॉलंटियरिज़्म पर आधारित है, जो समाज में समानता और मानवता को बढ़ावा देने का काम करता है। इस सिद्धांत का मूल मंत्र गुरुद्वारों में निहित है, जहां न केवल धार्मिक पूजा की जाती है, बल्कि यह सेवा का एक अद्वितीय उदाहरण भी प्रस्तुत करता है। गुरुद्वारा, जिसका अर्थ है ‘गुरु का द्वार’, केवल एक पूजा स्थल नहीं है, बल्कि यह समुदाय, समानता, और निस्वार्थ सेवा का प्रतीक भी है। सिख धर्म के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने सेवा को सिख जीवन का अभिन्न हिस्सा बताया, और यह परंपरा आज भी गुरुद्वारों में जीवित है। इस लेख में हम सिख धर्म में सेवा और वॉलंटियरिज़्म के महत्व पर विस्तार से चर्चा करेंगे, जो केवल समाज को ही नहीं, बल्कि आत्मिक विकास को भी बढ़ावा देता है।
सेवा: सिख धर्म का मूल सिद्धांत- Volunteerism in Sikhism
सिख धर्म में सेवा का अर्थ न केवल शारीरिक श्रम से है, बल्कि इसमें मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक योगदान भी शामिल है। गुरु नानक देव जी ने कहा था, “सेवा करत होए निहकामी, तिस को होत परापति स्वामी” यानी जो निस्वार्थ भाव से सेवा करता है, उसे ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है। यह सिद्धांत यह सिखाता है कि सेवा का कोई उद्देश्य नहीं होना चाहिए, बल्कि यह सिर्फ दूसरों की भलाई के लिए की जानी चाहिए। सेवा का यह शुद्ध रूप गुरुद्वारों में नज़र आता है, विशेष रूप से लंगर में, जहां सभी धर्मों और जातियों के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं।
लंगर में वॉलंटियरिज़्म
लंगर सिख धर्म में एक महत्वपूर्ण प्रथा है, जहां गुरुद्वारों में निस्वार्थ सेवा के माध्यम से समुदाय की मदद की जाती है। गुरुद्वारों में स्वयंसेवक (वॉलंटियर्स) भोजन तैयार करने से लेकर उसे परोसने और बर्तन साफ करने तक के काम करते हैं। यह सेवा का सबसे प्रभावी उदाहरण है, जो समानता और सामाजिक एकता को बढ़ावा देती है। दिल्ली के गुरुद्वारा बंगला साहिब और अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में प्रतिदिन हजारों लोग लंगर में सेवा करते हैं। स्वर्ण मंदिर में प्रतिदिन लगभग 100,000 लोगों के लिए लंगर तैयार किया जाता है, और यह कार्य पूरी तरह से स्वयंसेवकों के सहयोग से संभव होता है।
लंगर के माध्यम से सिख धर्म ने न केवल शारीरिक सेवा का उदाहरण प्रस्तुत किया है, बल्कि यह ‘वंड छको’ (साझा करना) के सिद्धांत को भी प्रोत्साहित करता है। यह सिद्धांत यह बताता है कि जो कुछ भी हमारे पास है, उसे सभी के साथ बांटना चाहिए। लंगर में भोजन केवल एक भौतिक आवश्यकता को पूरा करने का कार्य नहीं करता, बल्कि यह समाज में एकता और समानता की भावना को प्रबल करता है।
सामाजिक एकता और समानता
गुरुद्वारों में सेवा का मुख्य उद्देश्य केवल भोजन परोसना नहीं है, बल्कि यह समाज में समानता और एकता को बढ़ावा देना है। गुरुद्वारों में कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, या आर्थिक स्थिति से हो, सेवा में भाग ले सकता है। यह प्रथा जाति, धर्म और लिंग की बाधाओं को तोड़ती है। प्रोफेसर निक्की-गुणिंदर कौर सिंह ने अपनी पुस्तक “Sikhism: An Introduction” में उल्लेख किया है कि गुरुद्वारों में सेवा के माध्यम से सिख धर्म ने सामाजिक समानता की नींव रखी है। इसका प्रमाण कोविड-19 महामारी के दौरान गुरुद्वारों द्वारा जरूरतमंदों को भोजन, दवाइयाँ, और आश्रय प्रदान करना था, जिसमें स्वयंसेवकों का योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण था।
आध्यात्मिक विकास और मानसिक शांति
सिख धर्म में निस्वार्थ सेवा को केवल सामाजिक सेवा के रूप में नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और मानसिक शांति के रूप में भी देखा जाता है। जब कोई व्यक्ति निस्वार्थ भाव से सेवा करता है, तो इससे उसका अहंकार समाप्त होता है और वह ईश्वर के निकट पहुंचता है। गुरुद्वारों में सेवा करने वाले स्वयंसेवक अक्सर इसे अपने जीवन का सबसे संतुष्टिदायक अनुभव बताते हैं। एक स्वयंसेवक, हरप्रीत सिंह ने बीबीसी को बताया, “लंगर में सेवा करने से मुझे मानसिक शांति मिलती है और मैं अपने समुदाय से जुड़ाव महसूस करता हूँ” (BBC News, 2022)। यह भावना सिख धर्म के सिद्धांत “सेवा और सिमरन” (सेवा और भक्ति) को दर्शाती है।
वैश्विक प्रभाव
सिख धर्म की सेवा परंपरा ने न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में प्रभाव डाला है। कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में सिख समुदाय ने आपदा राहत, बेघरों के लिए भोजन वितरण, और सामुदायिक सेवा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। खालसा एड, एक सिख स्वयंसेवी संगठन, ने दुनिया भर में आपदा प्रभावित क्षेत्रों में सहायता प्रदान की है। यह संगठन सिख धर्म के सेवा सिद्धांतों और समानता के विचारों से प्रेरित है, जो अंबेडकर के समानता और मानवता के विचारों से मेल खाते हैं।
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