नई दिल्ली : सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के खतना की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे 5 जजों वाली संविधान पीठ को भेज दिया है। खतना की प्रथा दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में प्रचलित है। इस प्रथा के विरोध में केंद्र सरकार भी है। सुप्रीम कोर्ट से इस याचिका में महिलाओं का खतना किए जाने की प्रथा पर भारत में रोक लगाने की मांग की गई। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की पीठ दिल्ली के एक वकील द्वारा दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
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इस याचिका में महिलाओं का खतना किए जाने वाली प्रथा को चुनौती दी गई है। इस याचिका में कहा गया है कि ‘अवैध तरीके से (पांच साल से लेकर उनके किशोरी होने से पहले तक) की बच्चियों का खतना किया जाता है और यह बच्चों के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र के समझौते, मानवाधिकारों की संयुक्त राष्ट्र सार्वभौमिक घोषणा के खिलाफ है। जिसमें भारत भी एक हस्ताक्षरकर्ता है। इस प्रथा के चलते बच्चियों के शरीर में स्थायी रूप से विकृति आ जाती है।’ इससे पहले दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय के एक समूह ने शीर्ष अदालत से कहा था कि इस्लाम के कुछ संप्रदायों में बच्चियों का खतना किया जाता है। जिसमें दाऊदी बोहरा समुदाय भी शामिल है।
आपको बता दें इससे पहले कोर्ट ने कहा था कि कोई भी महिला के जननांग को क्यों छुए? धार्मिक नियमों के पालन का अधिकार भी इन सीमाओं से बंधा है। धार्मिक नियम ऐसे हो जो सामाजिक नैतिकता और व्यक्तिगत स्वास्थ्य को नुकसान न पहुंचाएं। जानकारी दे दें कि खतना पंरपरा के तहत पुरुषों, महिलाओं, बच्चों और बच्चियों के लिंग के ऊपरी हिस्से को ढकने वाली त्वचा को हटा दिया जाता है।