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चुटीले किस्से सुनाने में माहिर थे प्रणब दा, 84 की उम्र में भी कंप्यूटर सी तेज थी यादद...

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आज देश के 13वे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का दोपहर में अंतिम संस्कार होगा. उन्हें आखिरी विदाई दिल्ली के लोधी रोड स्थित शमशान घाट पर दी जायेगी. इस पूरी प्रक्रिया में कोविड 19 प्रोटोकॉल का पालन किया जाएगा. बता दें कि मुखर्जी कोरोना से संक्रमित थे. कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रणब एक क्लीन चिट और पढ़े लिखे शख्सियत थे. उनके पास ज्ञान का भंडार था कि गूगल भी उनके आगे फेल हो जाए. संस्कृत के महारथी होने के साथ साथ उन्हें कई श्लोकों का ज्ञान था. उनके किस्सों और दावों के आगे विपक्ष भी चुप्पी साध लेता था. आइये जानें मुखर्जी के जीवन से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से जिससे उनकी विद्यानता और बुद्धिमता का अंदाजा आप आसानी से लगा सकेंगे.

किस्से सुनाने में फरवट

प्रणब की यादाश्त इतनी तेज थी कि उन्हें पुराने से पुराने किस्सों की बारीकियां तक याद रहती थी. राष्ट्रपति पद का कार्यकाल हाल ही में प्रणब ने पूरा किया था लेकिन इस बावजूद उन्हें अपने पहले लोकसभा चुनाव (1952) की छोटी से छोटी बातें याद थी. वो बताते थे कि पश्चिम बंगाल में वोट टाई होने पर एक बार उम्मीदवार ने बैलेट पेपर ही निगल लिया था. चुटीले किस्से सुनाते समय उन्होंने एक बार ये भी बताया था कि एक वोटर उस उम्मेदवार को सपोर्ट करता था जिसका बरगद का पेड़ चुनावी निशान था. उसने बैलट पर ठप्पा लगाया था और उसे पेड़ के नीचे रख आया था.

हमेशा रखते थे संविधान की कॉपी

मुखर्जी श्लोकों में तो ज्ञानी थे ही, साथ ही उनके पास हमेशा एक संविधान की कॉपी रहती थी. एक बार बीजेपी ने उनके एक बयान ‘ग्रंथों में लिखा है कि देवता भी नशीले पेयों का सेवन करते थे’ पर बेहद बवाल मचा दिया था. जिसके बाद लोकसभा में बहस के दौरान मुखर्जी ने वो श्लोक पढ़कर सुना दिया जिसे सुनकर विपक्ष की बोलती बंद हो गई थी. उनके तीखे तेवर से सब डरते थे. एक बार सवाल पूछने पर उन्होंने पत्रकार को भी लताड़ लगा दी थी. गुस्से में प्रणब ने पत्रकार से कहा था “आप अपना होमवर्क क्‍यों नहीं करते, क्‍या मैं यहां आपको पढ़ाने आया हूं? पहले अपने तथ्‍य जानिए, थोड़ा होमवर्क कीजिए.

शेख हसीना को माना था पुत्री

उनके सौम्य व्यक्तित्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रणब ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपनी पुत्री का दर्जा दिया था. 15 अगस्त 1975 को शेख हसीना के पिता और बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति बंगबंधु शेख मुजीब-उर-रहमान और उनके परिवार के बाकी सदस्यों का जब कत्लेआम हुआ था, तो उनको भारत में शरण देने वाले मुखर्जी ही थे. बताया जाता है कि तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी को उस दौरान ये काम करने की प्रणब ने ही नसीहत दी. जिसके बाद 1975 से 1981 तक शेख हसीना दिल्ली में रही थी. प्रणब दा और उनकी पत्नी शुभ्रा मुखर्जी दिल्ली में एक तरह से हसीना और उनके परिवार की संरक्षक की भूमिका में रहते थे. शेख हसीना का परिवार हफ्ते में कम से दो दिन- तीन बार प्रणब दा के तालकटोरा स्थित सरकारी आवास में ही वक्त बिताया करता था.

आज प्रणब दा हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी यादों और वाकयों को पूरा देश याद कर रहा है.

जब दो बार कांग्रेस पार्टी ने तोड़ा प्रणब मुखर्जी का पीएम बनने का सपना

देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 84 साल की उम्र में अपनी अंतिम सांस ली. हाल ही में वे कोरोना से संक्रमित पाए गए थे और उनकी ब्रेन सर्जरी भी हुई थी. लेकिन काफी समय से उनकी हालत में सुधार नहीं था. 5 दशक से अधिक राजनीति में वक्त गुजारने वाले प्रणब दा के जाने से सियासी गलियारों में शून्य की भावना आ गई है. उन्हें इंदिरा गांधी का काफी करीबी माना जाता था. बताया जाता है कि प्रणब की शुरुआत से ही पीएम बनने की इच्छा थी. लेकिन उनकी ये इच्छा दो बार पूरी होते होते रह गई. आइये एक बार याद करते हैं प्रणब दा का सियासी सफरनामा.

बीजेपी सरकार में मिला भारत रत्न

देश के 13 वें राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी राजनीति में एक साफ़ सुथरी छवि वाले चेहरे थे. ये उनकी काबिलियत थी कि उन्हें सियासत में कई उच्च पदों को संभालने की जिम्मेदारी सौंपी गई. वे देश के वित्त मंत्री और विदेश मंत्री के पद पर भी काबिज रह चुके हैं. ये उनकी उच्च शख्सियत और क्लीन चिट छवि का ही नतीजा था कि कांग्रेस में रहते हुए उन्हें बीजेपी सरकार में भारत रत्न के सम्मान से नवाजा गया. ये भी बता दें कि राजनीति में प्रवेश करने से पहले मुखर्जी ने कानून की पढ़ाई की थी. हालांकि कुछ कारणों से फिर वे राजनीति में आ गए.

खुद दिया था अपने नाम का सुझाव

इंदिरा गांधी के करीबियों में गिने जाने वाले प्रणब 1973 में कांग्रेस सरकार के मंत्री बने. पार्टी का अपने काम से विश्वास जीतने के बाद उन्हें पहली बार 1982 में वित्त मंत्री बनाया गया. हालांकि उनके निधन के बाद कुछ मनमुटाव के चलते प्रणब कांग्रेस पार्टी से अलग हो गए और राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस के नाम से अपनी नई पार्टी का गठन किया. इसके पीछे की वजह उन्हें प्रधानमंत्री न बनाया जाना बताई जाती है. कहा जाता है कि इंदिरा के निधन के समय राजीव ने प्रणब से पूछा था कि अब कौन? इस पर प्रणब का जवाब था- पार्टी का सबसे वरिष्ठ मंत्री. लेकिन ये सुझाव पार्टी को रास नहीं आया था. जिसके बाद इस बात से दुखी होकर प्रणब ने कई सालों तक पार्टी से विलय कर लिया था.

दूसरी बार ऐसे चूके

हालांकि 1989 में प्रणब और राजीव गांधी के बीच समझौता हो गया और वे फिर कांग्रेस पार्टी में वापिस लौट आये. इसके बाद पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में उन्हें साल 1991 में योजना आयोग का मुखिया बनाया गया. इसके बाद 1995 में उन्हें विदेश मंत्री का पद सौंपा गया. राजीव गांधी की हत्या होने के बाद इस बुरे समय में प्रणब पार्टी के लिए संकटमोचक बनकर उभरे. साल 2004 में उन्हें पहली बार लोकसभा के लिए चुना गया. उस दौरान विदेशी मूल के होने के चलते सोनिया गांधी को पीएम पद पर कोई नहीं देखना चाहता था. ऐसे में पीएम बनने का मुखर्जी का सपना यहां पूरा होने के काफी चांसेज थे. लेकिन इस बार भी उनके बदले मनमोहन सिंह को पार्टी ने पीएम घोषित कर दिया था. फिर 2012 में कांग्रेस ने उन्हें राष्ट्रपति चुनाव में उतारा और वह आसानी से पीए संगमा को चुनाव में हराकर देश के 13वें राष्ट्रपति बन गए. साल 2019 में बीजेपी सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया था.

पितृ पक्ष में गलती से भी नहीं करने चाहिए ये सभी काम, खुशियों में लग सकता है ग्रहण!

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हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष का काफी खास महत्व माना जाता है. इस दौरान दिवंगत पूर्वजों की आत्‍मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है. कहा जाता है कि एक बार अगर पितर नाराज हो जाते हैं तो व्यक्ति को अपने जीवन में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. इतना ही नहीं उनके घर में अशांति फैलती है. साथ ही व्‍यापार और गृहस्‍थी में भी हानि झेलनी पड़ सकती है. इसलिए पितृ पक्ष में पितरों की आत्‍मा की शांति के लिए श्राद्ध करना जरूरी माना जाता है. जहां पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध में भोजन पहुंचाया जाता है, वहीं पिंड दान और तर्पण कर उनकी आत्‍मा की शांति के लिए प्राथना की जाती है. पितृ पक्ष के दौरान कुछ बातों का खास ध्यान रखना होता है, आइए इसके बारे में आपको बताते हैं…

इन सभी बातों का रखें ध्यान…

– पितृपक्ष के दौरान कोई भी शुभ काम नहीं करना चाहिए. इन दिनों शादी, गृह प्रवेश आदि करने से बचना चाहिए. इसके अलावा नए चीजें भी ना खरीदें. साथ ही कर्ज लेकर या दबाव में कभी भी श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए.

– जिस दिन पितरों के लिए श्राद्ध कर्म कर रहे हैं, तब शरीर पर तेल का प्रयोग नहीं करें. साथ ही पितृपक्ष के दौरान पान भी नहीं खाना चाहिए. धूम्रपान और मदिरापान करने से बचना चाहिए. श्राद्ध कर्म करने वाले व्यक्ति को अपने नाखून नहीं काटने चाहिए. साथ ही दाढ़ी या बाल भी नहीं कटवाने चाहिए.

– श्राद्ध में लहसुन और प्याज खाने से बचना चाहिए. साथ ही कांच के बर्तनों का भी इस्तेमाल ना करें. पितृपक्ष के दौरान लोहे के बर्तन का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए. पितृ पक्ष में तांबा, पीतल या अन्य धातु से बने बर्तनों का इस्तेमाल करें. पत्तल पर खुद और ब्राह्राणों को भोजन करवाना सबसे अच्छा माना गया है.

– शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष के दौरान 15 दिन की अवधि में पितृ किसी भी रूप में आपके घर आ सकते है इसलिए घर की दहलीज पर किसी व्यक्ति या पशु का अनादर बिल्कुल भी ना करें. दरवाजे पर आने वाले हर प्राणी को भोजन कराएं और उनका सम्मान करें.

– श्राद्ध के दौरान कुछ चीजों को खासे से सख्त परहेज करना चाहिए. चना, दाल, काला नमक, लौकी, जीरा, खीरा और सरसों का साग खाने से आपको बचना चाहिए.

– इस दौरान गलती से भी मांस, मछली ना खाएं. श्राद्ध के दिनों में सात्विक भोजन का सेवन करना चाहिए. पितृ पक्ष में श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.

– विशेष जगह हैं जहां पर श्राद्ध करने से काफी लाभ होता है. मान्यताएं है कि गया, प्रयाग या बद्रीनाथ में श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है. जो लोग विशेष स्थान पर श्राद्ध नहीं कर सकते वो घर के आंगन में किसी भी पवित्र स्थान पर तर्पण या पिंड दान कर सकते हैं.

IPL Special: आईपीएल के इस सीजन में खूब चला था सचिन तेंदुलकर का बल्ला, लेकिन फिर भी…

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सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट में बहुत बड़ा योगदान दिया है. सचिन ने अपने क्रिकेट के करियर में कई ऐसे रिकॉर्ड बनाए हैं, जिनको तोड़ना किसी भी खिलाड़ी के लिए बहुत बड़ी चुनौती है. फिर चाहे वो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 100 शतक जड़ना हो या फिर सबसे ज्यादा रन बनाना हो. सचिन तेंदुलकर को ‘मास्टर ब्लास्टर’, ‘क्रिकेट का भगवान’ जैसे कई नामों से जाना जाता था.

सिर्फ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट ही नहीं बल्कि इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) में भी सचिन ने अपनी बेहतरीन छाप छोड़ चुके है. भले ही सचिन आईपीएल के कम ही सीजन का हिस्सा रहे हो, लेकिन इस दौरान भी उन्होनें कमाल दिखा ही दिया. सचिन ने आईपीएल के तीसरे सचिन में ऑरेंज कैप जीतकर ये साबित कर दिया था कि उन्हें यूं ही ‘क्रिकेट का भगवान’ नहीं कहा जाता.

2 सीजन में नहीं दिखा पाए कुछ खास कमाल

लगातार 6 साल सचिन तेंदुलकर आईपीएल में मुंबई इंडियंस का हिस्सा रहे थे. आईपीएल के पहले 2 सीजन में उनका बल्ला कुछ खास नहीं चल पाया, जिसके बाद कई तरह की बातें बनने लगी. ऐसा कहा जाने लगा कि सचिन इस फॉर्मेट के लिए फिट नहीं बैठते. लेकिन इसके बाद अगले सीजन में सचिन ने अपने बल्ले से कमाल दिखाया और आलोचकों को करारा जवाब दिया.

तीसरे सीजन में रहा था जबरदस्त प्रदर्शन

आईपीएल के तीसरे सीजन में सचिन का प्रदर्शन काफी बढ़िया रहा. इस सीजन में सचिन ने 15 मैचों में 47.53 के शानदार औसत से 618 रन बना दिए. इतना ही नहीं आईपीएल 3 में सचिन ने अपने नाम ऑरेंज कैप भी कर ली. 2010 में खेले गए इस सीजन में सचिन ने 5 बार पचास का आंकड़ा पार किया. ना सिर्फ अपने बल्ले से सचिन ने कमाल दिखाया बल्कि कमाल की कप्तानी करते हुए वो अपनी टीम मुंबई इंडियंस को पहली बार फाइनल तक भी ले गए.

फिर भी नहीं दिला पाए टीम को जीत

आईपीएल सीजन 3 के फाइनल में उनकी टीम को चेन्नई सुपरकिंग्स के खिलाफ खेलना था. इस दौरान सचिन के हाथ में चोट लगी हुई थी, लेकिन इसके बावजूद उन्होनें 48 रनों की पारी खेली. हालांकि वो इस दौरान अपनी टीम को आईपीएल का खिताब जीताने में सफल नहीं हो पाए थे. आईपीएल 4 में भी सचिन ने बल्ले का जलवा दिखा था.

इस दौरान बात अगर सचिन के आईपीएल के करियर की करें तो उन्होनें कुल 78 मैच खेले हैं, जिनमें 34.83 की औसत से 2334 रन बनाए हैं. इनमें 1 शतक और 13 अर्धशतक भी शामिल है. सचिन का आईपीएल में बेस्ट स्कोर 100 रन नाबाद रहा है. जानकारी के लिए आपको बता दें कि सचिन ने साल 2013 के बाद आईपीएल नहीं खेला है.

इतिहास का सबसे बड़ा सेक्स स्कैंडल जिसने 250 परिवारों की जिंदगियां उजाड़ दी, 28 साल बाद ...

‘न्याय में देरी होना न्याय से वंचित होने के समान है’, ये प्रचलित कथन शायद हर किसी ने सुना होगा.  निर्भया केस इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जहां उनके परिवारवालों को करीब 7 साल बाद न्याय मिल सका. लेकिन सन 1992 यानि 90 के दशक में अजमेर की सोफिया गर्ल्स स्कूल की लगभग 250 से ज्यादा हिंदू लड़कियों से हुआ रेप केस देश के इतिहास में एक गहरे काले धब्बे के समान है. जिसके जिद्दी दागों को लाख धुलने की कोशिशें कर ली जायें लेकिन इस वक़्त के साथ अब वो अपनी अमिट छाप छोड़ चुके हैं. करीब 28 साल पहले हुई इस घिनौनी वारदात का सच आज कोर्ट ने सुनाया है. इसका खुलासा एक संतोष गुप्ता नामक पत्रकार ने किया था. जिसके बाद उस दौरान इंटरनेट न होने के बावजूद ये खबर आग की तरह तेजी से फैली थी. आइये जानें ये पूरा मामला जिसने देश दुनिया को हिला कर रख डाला था.

फ़ार्म हाउस में की ये शर्मनाक हरकत

ये कहानी शुरू होती है यूथ कांग्रेस के लीडर फारूक चिश्तीनाम नाम के व्यक्ति से जो अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह के खादिम (केयरटेकर) का रिश्तेदार और वंशज भी था. उसने सबसे पहले सोफिया गर्ल्स स्कूल की एक लड़की को फंसाया और लड़की की धोखे से बलात्कार कर अश्लील फोटो खींच ली. इन फोटो के जरिये वो लड़की को ब्लेकमेल करने लगा और उसकी सहेलियों को भी फ़ार्म हाउस पर लाने को कहा. जिसके बाद उन सहेलियों के साथ भी यही शर्मनाक कृत्य हुआ. धीरे धीरे ये घटना एक चेन में बदल गई जिसका शिकार करीब 250 लड़कियों को बनाया गया. बताया जाता है कि इन लड़कियों को गाड़ी लेने आया करती थी और कुछ देर बाद घरों पर छोड़ कर भी जाती थी. कहा जाता है कि इस कांड के पीछे राजनीति के कई नामी हस्ती भी शामिल थे. जो धीरे धीरे ब्लैकमेलिंग चेन से जुड़ते गए और आखिरी में कुल 18 लोग इसमें शामिल हो गए.

बयान देने को नहीं थी राजी

इस बलात्कार के मुख्य आरोपियों में फारूक के अलावा दो यूथ कांग्रेस लीडर फारूक चिस्ती, नफीस चिस्ती और अनवर चिस्ती का नाम भी सामने आया था. एक अधिकारी के मुताबिक पॉवर होने के चलते पीड़ितों को बयान देने के लिए प्रेरित करना उस दौरान काफी बड़ी चुनौती बन गया था. कोई भी लड़की बयान देने को राजी ही नहीं थी. केस लड़ने, आरोपितों के ख़िलाफ़ बयान देने और पुलिस-कचहरी के लफड़ों में पड़ने से अच्छा उन्होंने यही समझा कि चुप रहा जाए. इसी कड़ी में समाज में शर्मसार होने के डर से कई पीड़ित लड़कियों ने आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लिया था. एक समय अंतराल में करीब 6-7 लड़कियां ने आत्महत्या की. इस केस के सामने आने के बाद कई दिनों तक अजमेर बंद रखा गया था. सड़क पर प्रदर्शन चालू हो गए थे. अधिकारियों को डर था कि कहीं ये केस सामने आने के बाद एक हिंदू मुस्लिम दंगे में न तब्दील हो जाए.

मुंह खोलने वाले को मिली धमकियां

इन 28 सालों में केस में क्या कुछ नहीं बदला. जान से मारने की धमकियां मिलने के बाद कुछ पीड़िताएं अपने बयान से मुकर गयीं. इसके अलावा एक रिपोर्ट के अनुसार ये भी कहा गया कि इस केस में सिर्फ उन्हीं लोगों को पकड़ा गया जिनका BJP से कोई कनेक्शन नहीं था. बाद में एक NGO ने इस केस की रहस्यमयी परतों को खोलने का जिम्मा उठाया और फोटोज और वीडियोज के जरिये 30 लड़कियों को पहचाना गया. उन सभी से जाकर बात की गई लेकिन बदनामी के डर से सिर्फ 12 ही लड़कियां सामने आने को तैयार हुई. बाद में इनमें से सभी को धमकियां मिलने के चलते 10 लड़कियां और केस से पीछे हट गई. बाद में बाकी बची दो लड़कियों ने ही केस आगे बढ़ाया. इन लड़कियों ने सोलह आदमियों को पहचाना. जिसमें से ग्यारह लोगों को पुलिस ने अरेस्ट किया.

अब तक केस में क्या हुआ ?

केस खुलने के बाद 18 पहचाने गए आरोपियों में से एक पुरुषोत्तम नाम के आरोपी ने आत्महत्या कर ली. यूथ कांग्रेस नेता फारूक चिश्ती को मानसिक रूप से विक्षिप्त घोषित कर दिया गया. 1998 में सेशन कोर्ट ने 8 आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा का एलान किया. लेकिन इनमें से 4 को राजस्थान हाई कोर्ट ने बरी कर दिया. इसके बाद 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने मोइजुल्लाह उर्फ पट्टन, इशरत अली, अनवर चिश्ती और शमशुद्दीन उर्फ मैराडोना की सजा कम करते हुए मात्र 10 सालों के कारावास की सजा सुना दी. 2007 में मानसिक विक्षिप्त घोषित आरोपित फारूक चिश्ती को अजमेर की एक फ़ास्ट ट्रैक अदालत ने दोषी मान कर सज़ा सुनाई और राजस्थान हाईकोर्ट ने इस निर्णय को बरकरार भी रखा. इसके बाद 2018 में सुहैल चिश्ती शिकंजे में आया. इस मामले का एक आरोपी अलमास महाराज अभी भी फरार है जिसके खिलाफ CBI ने रेड कार्नर नोटिस जारी कर रखा है. कुछ लोगों का कहना है कि वो अमेरिका में रह रहा है. चिश्तियों में अभी सिर्फ़ सलीम और सुहैल ही जेल में है. बताया जाता है कि इस केस का सबसे बुरा असर लड़कियों की शादी पर पड़ा था. लोग पूरे शहर की लड़कियों के चरित्र पर सवाल उठाने लगे थे.

पीड़ित लड़कियों और उनके परिवारों से सबने रकम ऐंठे. ऐसे में भला कोई न्याय की उम्मीद करे भी तो कैसे? इस घूसखोरी सिस्टम और पॉवर ने हर तरीके से सिस्टम को बर्बाद कर दिया जिसके चलते इस फैसले को आने में करीब 28 सालों का वक्त लग गया.

डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड यूजर के लिए लागू हो गए हैं नए नियम, तुरंत जान लें वर्ना ...

अगर आप एक डेबिट या क्रेडिट कार्ड यूजर है तो ये खबर आपके लिहाज से बेहद जरूरी है. दरअसल हाल ही में रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) ने अपने डेबिट और क्रेडिट कार्ड के नियमों में कुछ जरूरी बदलाव किये हैं. इन नियमों को जनवरी में जारी किया गया था, लेकिन कोरोना वायरस की गंभीरता को देखते हुए अब ये तारीख बढ़ा दी गई है. अब कार्ड जारीकर्ताओं को इन सभी नियमों को लागू करने के लिए 30 सितंबर 2020 तक का समय बढ़ा दिया गया है. आइये जान लेते हैं क्या है RBI ये नए नियम.

घरेलु ट्रांजैक्शन की मिलेगी अनुमति

RBI ने कहा है कि डेबिट और क्रेडिट कार्ड जारी करते समय अब ग्राहकों को घरेलु ट्रांजैक्शन कि अनुमति देनी चाहिए. इसका मतलब है कि जरूरी न होने पर एटीएम मशीन से पैसे निकालते और पीओएस टर्मिनल पर शॉपिंग के लिए विदेशी ट्रांजेक्शन की अनुमति नहीं मिलेगी.

ऑनलाइन लेनदेन के लिए दर्ज करानी होगी प्रेफरेंस

अगर आपको इंटरनेशनल लेनदेन, ऑनलाइन लेनदेन या कांटेक्टलेस कार्ड से लेनदेन के लिए अलग से प्रेफरेंस बतानी होगी. अगर आपको इसकी जरूरत नहीं है तो ये सर्विस आपको नहीं दी जायेगी. साथ ही इसके लिए अलग से आपको आवेदन करना होगा.

ग्राहकों के ऊपर होगा निर्भर

आपको अपने कार्ड से घरेलु ट्रांजैक्शन चाहिए या इंटरनेशनल ट्रांजैक्शन ये ग्राहक के ऊपर निर्भर करेगा. ये फैसला कस्टमर करेगा कि उसे कौन सी सर्विस एक्टिवेट करनी है और कौन सी डीएक्टिवेट करनी है. कार्ड्स के लिए, जारीकर्ता अपने जोखिम की धारणा के आधार पर निर्णय ले सकते हैं.

  • कस्टमर जब चाहे अपने लेन देन सीमा को भी तय कर सकता है.
  • अगर कार्ड के स्टेटस में बदलाव होगा तभी कार्डधारक को तुरंत SMS अलर्ट मिलना चाहिए.

ये सारी गाइडलाइन्स मार्च में कोरोना के चलते लागू किये लॉकडाउन को देखते हुए 30 सितंबर तक आगे बढ़ा दी गई है.

रात में क्यों अजीब अजीब तरह की आवाजें निकालते हैं कुत्ते, कोई बुरा संकेत नहीं बल्कि य...

अक्सर आपने कुत्तों को रात में तेज आवाज में भौंकते और रोते हुए सुना होगा. कुछ लोग इसे सामान्य घटना मानते हैं तो कुछ इसे अनहोनी से जोड़ कर देखते हैं. किसी का मानना है कि कुत्तों का रोना घर में आने वाली बड़ी दुर्घटना का संकेत होता है. जिस वजह से इन कुत्तों को तुरंत घर के आसपास से भगा दिया जाता है. आइये जानें इन सब के पीछे की असल सच्चाई.

ज्योतिषों का ये है मानना

कई ज्योतिषों का कहना है कि सबसे ज्यादा कुत्ते तब रोते हैं जब उनके आसपास कोई आत्मा भटक रही हो. जी हां, कुत्ते इन आत्माओं को देख सकते हैं. जबकि ऐसी शक्ति इंसान के पास नहीं है. कुत्ते उन्हें अपने पास से भगाने के लिए रोने लगते हैं. इसके अलावा ज्योतिषों का कहना है कि अगर किसी दिन सुबह सुबह भी कुत्ता रोने लगे तो कोई जरूरी काम करने से बचना चाहिए. साथ ही अगर पालतू कुत्ते की आंखों में आंसू आ जाए तो घर में किसी अनहोनी की आशंका रहती है.

अब आते हैं विज्ञान पर

विज्ञान की थ्योरी इन सब से बिलकुल अलग है. वैज्ञानिकों का कहना है कि कुत्ते रोते नहीं हौल करते हैं. रात में वो ऐसी आवाजें निकाल कर अपने किसी इलाके में दूर साथी को मैसेज देते हैं. साथ ही अपनी लोकेशन बताने के लिए वो ऐसा करते हैं. कभी किसी चोट लगने या दर्द होने पर भी वो रात में हौल करते हैं. ये उनके पीड़ा व्यक्त करने का एक तरीका होता है. इसके अलावा उन्हें अकेले रहना नहीं पसंद होता है इसलिए वो हौल करके अपने साथियों को अपने पास बुलाते हैं.

इंसानों की तरह करें मदद

तो अगली बार आप किसी भी कुत्ते को ऐसा करते देखें तो उनसे डर कर भागने की बजाय उनकी इंसानों की तरह मदद करें. उन्हें भी इंसानों की तरह दर्द, अकेलापन और कई तकलीफें महसूस होती हैं. ऐसे में उन्हें दुत्कारने की बजाय उनका सहारा बनें. उनके साथ थोड़ा वक्त बिताएं. उन्हें कुछ खाने पीने को दें. ताकि उन्हें आपसे अपनेपन का एहसास हो.

यहां इस्तेमाल किये जा रहे हैं आपके कूड़ेदान में फेंके गए मास्क, रोंगटे खड़े कर देगी हकी...

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कोरोना काल में मास्क तो हमारे डेली रूटीन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है. बाहर जाते वक्त, किसी से बात करते वक्त, काम करते वक्त हर समय एक मास्क ही हमारा प्रोटेक्टिव शील्ड है जो हमें इस महामारी से बचा सकता है. सरकार ने कोरोना से अल्ट्रा सेफ्टी के लिए हर महीने अपना मास्क बदलने की सलाह दी है. साथ ही इसको डिस्पोज करने की गाइडलाइन्स केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board) ने भी जारी की हैं.

लेकिन इसके बावजूद कुछ लोग ऐसे ही अपना मास्क कूड़ेदान में फेंक दे रहे हैं. पर क्या आपको इस बात का जरा भी अंदाजा है कि आपके इन फेंके गए मास्क का कितना खतरनाक उपयोग हो रहा है ? नहीं न, आइये हम बताते हैं.

डिस्पोजेबल मास्क की असल सच्चाई

काफी लोग सोशल मीडिया पर मास्क को सही तरीके से लोगों से डिस्पोज करने की अपील करते दिख रहे हैं. इसके पीछे एक बहुत बड़ी वजह सामने आई है. दरअसल आपको ये जानकर एक गहरा धक्का लगेगा कि मास्क को बेचने में एक बड़ी धांधलेबाजी हो रही है. कई लोग इन डिस्पोजेबल मास्क को गरीबों में बेचकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं. इन डिस्पोजेबल मास्क को धांधलेबाज किफायती या कम दामों में बेचकर गरीबों को दे देते हैं. और इन सब से अनजान गरीब व्यक्ति मास्क को पहनकर अपने काम पर चले जाते हैं.

लाखों बीमारियों का मंडरा रहा खतरा

इस मास्क को पहनने से गरीबों में कोरोना से बचने के बजाय सबसे ज्यादा इस महामारी की चपेट में आने की आशंका रहती है. सिर्फ कोरोना ही नहीं इसे पहनने से वे अन्य गंभीर बीमारियों से भी ग्रसित हो सकते हैं. साथ ही इससे देश में कोरोना की रफ़्तार दोगुनी स्पीड पकड़ सकती है. इस बात से अनजान मास्क खरीदने वाला व्यक्ति किसी दूसरे व अपने आसपास के लोगों में भी ये संक्रमण फैला सकता है. साथ ही लगातार मास्क लगाये रहने से उस व्यक्ति के शरीर में ये बीमारी और भी गंभीर रूप ले सकती है.

क्या है इससे बचने का उपाय ?

इन सभी से बचने के लिए मास्क को कूड़ेदान में फेंकने से पहले उसे बीच से दो टुकड़ों में काट दें. इसके अलावा मास्क में अगर दो डोरियां लगी हो तो पहले नीचे की डोरी खोलें. ऊपर की डोरी पहले खोलने पर मास्क पलट कर चेहरे या गर्दन पर लग जाएगा, जो खतरनाक हो सकता है.अगर इलास्टिक लगा है तो ध्यान से खींच कर उतारें. ध्यान रहे कि मास्क का रिबन या इलास्टिक पकड़ कर ही मास्क उतारना है. इसके अलावा मास्क को कहीं भी डिस्पोज न कर दें. इसे पहले तीन दिन पेपर बैग में रखें और फिर इसे काटकर सूखे कचरे में डाल सकते हैं.

कभी बलात्कार, तो कभी नरसंहार! क्या है कंगारू अदालतें जिनके अजीबोगरीब आदेश आज भी लोगों...

हाल ही में पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में एक आदिवासी महिला के गैरजातीय युवक के साथ अवैध संबंध रखने के जुर्म में उसके साथ गैंगरेप के आदेश की घटना ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया है. हैरानी की बात तो ये है कि कानून को ही कटघरे में खड़ा करने वाला ये आदेश किसी न्यायपालिका द्वारा नहीं बल्कि कंगारू अदालत की ओर से दिया गया. अब मन में सवाल ये उठता है कि देश में सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट व अन्य निचली अदालतों के अलावा ऐसी कौन सी अदालत है जिसका आदेश देश के एक तबके के लिए उच्च न्यायालय से भी सुप्रीम है. ये कौन सी अदालत है जिसके बारे में न ही कोई स्कूली शिक्षा में जिक्र किया गया और न ही किसी किताब में इसका वजूद दिखता है. तो आइये जानें क्या है कंगारू कोर्ट्स जो कुछ लोगों के लिए आज भी तमाम कानूनों से बढ़कर है.

क्या है कंगारू कोर्ट ?

दरअसल इस तरह की अदालतें देहाती इलाकों में आयोजित की जाती हैं. इसे स्थानीय भाषा में सालिसी सभा भी कहा जाता है. ये अदालत कानून या न्याय के मान्यता प्राप्त मानकों की अवहेलना करता है. इन अदालतों में अभियुक्त के खिलाफ निर्णय पहले से ही आधारित होता है. इन अदालतों के फैसले असंवैधानिक और गैर कानूनी होते हैं. ये अपनी मन मर्जी से चलते हैं. उदाहरण के तौर पर किसी छोटे मोटे जुर्म के लिए ये अदालत किसी भी महिला को बदचलन बता देते हैं. या सामूहिक बलात्कार का आदेश दे देते हैं. कभी भी महिला की पिटाई करने वाले पुरुष को पेड़ों से बांधकर बदले में उसकी पिटाई करने का आदेश दे दिया जाता है.

पश्चिम बंगाल में ज्यादा सक्रिय

ये अदालतें सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल में सक्रिय हैं. कई सरकारें आई और गयीं लेकिन इन अदालतों की जमीनी हकीकत नहीं बदली. तमाम राजनेता लोगों से इस सिस्टम को जड़ से उखाड़ने का चुनावी वादा करते हैं लेकिन असल हकीक़त तो ये है कि इन्हीं राजनेताओं के संरक्षण में इस तरह की अदालतें पल रही हैं. आये दिन इन ढोंगी अदालतों के तुगलकी फरमान जारी होते रहते हैं जिनमें हत्या और बलात्कार जैसे आदेश शामिल है. लेकिन इसके बावजूद ये आदेश देने वाले बच जाते हैं. गौरतलब है कि साल 2011 में कोर्ट पहले ही इन अदालतों को गैर कानूनी घोषित कर चुका है. लेकिन उच्च न्यायालय के आर्डर के बावजूद उनकी नाक के नीचे ही कंगारू अदालत आये दिन कानून की अवहेलना करने वाले आदेश जारी करती रहती हैं.

तमाम घटनाएं हैं उदाहरण

वर्तमान में बंगाल के बीरभूमि जिले में एक आदिवासी महिला के साथ गैंगरेप का आदेश इसका सबसे ताजा उदाहरण है. इससे पहले ओडिशा के मयुरभंज में ऐसी घटना सामने आई थी जहां अलग-अलग समुदायों के एक लड़के और एक लड़की के बीच प्रेम संबंध के विरोध में उनका कथित तौर पर सिर मुड़ाकर उन्हें सड़कों पर घुमाया गया. ऐसा ही कुछ राजस्थान में एक युवती के बचपन की शादी विरोध करने पर हुआ था जिसके बाद कंगारू अदालत ने उस पर 16 लाख रूपए का जुर्माना लगाया तथा उसके परिवार को समाज से बहिष्कृत कर दिया था. यही नहीं एक बार बंगाल के बीरभूम जिले में 75 साल के एक वृद्ध की दसों अंगुलियां काट दी गईं थी क्योंकि गांव वालों ने उस पर जादू टोना का आरोप लगाया था.

सदियों पुरानी है ये परंपरा

कुछ जानकारों की मानें तो इन अदालतों का चलन भारत में अंग्रेजों के शासन काल से भी पहले से चला आ रहा है. इस दौरान भारतीय दंड संहिता लागू होने के बावजूद स्थानीय पंचायतें, राजा और जमींदार समानांतर न्याय व्यवस्था चलाते हुए तमाम विवादों का निपटारा करते थे. उनका फैसला पत्थर की लकीर के समान होता था. लेकिन 21वीं सदी में ऐसी अदालतें समाज के लिए किसी धब्बे से कम नहीं है. जहां देश एक तरफ प्रगतिशील विचारधारा की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहा है, वहीं दूसरी तरफ समाज के एक वर्ग की ऐसी सोच और हरकतें देश को गहरी खाई की ओर धकेलने में लगी हुई हैं. फ़िलहाल, पुलिस, प्रशासन और सरकार की सख्ती के बिना इन पर अंकुश लगाना संभव नहीं है.

गणेश चतुर्थी के दिन गलती से भी नहीं देखना चाहिए चांद, जानिए क्यों माना जाता है अशुभ?

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आज देशभर में गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जा रहा है. गणपति बप्पा आज लोगों के घरों में विराज रहे हैं. पौराणिक मान्‍यताओं के मुताबिक भाद्र मास के शुक्‍ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी का जन्म हुआ था. इस साल आज यानी 22 अगस्त को ये त्योहार मनाया जा रहा है. हर साल देशभर में गणेशोत्सव का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है. इस साल भी गणेश चतुर्थी को लेकर उत्साह का माहौल है. हालांकि इस बार सभी त्योहारों की तरह गणेश चतुर्थी पर भी कोरोना वायरस का असर पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है.

देशभर में मनाई जा रही गणेश चतुर्थी

भाद्रपास के शुक्ल पक्ष में शुरू होने वाला ये त्योहार 10 दिनों तक यानी अनंद चौदस तक चलता है. चतुर्थी के दिन गणपति बप्पा लोगों के घरों में पधारते हैं और 10 दिनों बाद विदा करके विसर्जन किया जाता है. हालांकि आजकल कई लोग दो से तीन दिनों में भी विसर्जन कर देते हैं.

किसी भी पूजा या फिर शुभ कार्य से पहले गणपति बप्पा का नाम लिया जाता है. ऐसी मान्यता है कि जिन घरों में गणेश जी का स्वागत किया जाता है और 10 दिनों तक श्रद्धा से पूजा की जाती है, उन घरों में बप्पा की विशेष कृपा होती है. गणपति बप्पा उनके सभी दुख दूर कर लेते हैं.

गणेश चतुर्थी के दिन नहीं करने चाहिए चांद के दीदार

गणेश चर्तुशी को लेकर कई तरह की मान्यताएं है. इनमें से एक ये भी है कि गणेश चतुर्थी के दिन गलती से भी चांद को नहीं देखना चाहिए. इन दिन चांद का दीदार करना अशुभ माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि गणेश चतुर्थी के दिन जो भी व्यक्ति चांद देखता है, उस पर झूठा आरोप लगता है. आइए आपको बताते हैं कि गणेश चतुर्थी के दिन चांद ना देखने की वजह और इसके पीछे की कहानी क्या है…

ये है इसके पीछे की कहानी…

मान्यताओं के अनुसार जब गणपति बप्पा ने पृथ्वी की सबसे पहले परिक्रमा की थी, तो प्रथम पूज्म कहलाए. सभी देवी-देवताओं ने उनकी वंदना की, लेकिन तब चंद्रमा मंद-मंद मुस्कुराएं. दरअसल, चांद को अपने सौंदर्य पर घमंड हो रहा था. चंद्रमा ने गणेश जी की बाकी देवताओं की तरह पूजा नहीं की, जिसकी वजह से उनको चांद पर गुस्सा आया और उन्होनें गुस्से में चांद को श्राप दे दिया कि आज से तुम काले हो जाएगा. फिर चंद्रमा को अपनी गलती का एहसास हो गया और तुरंत ही गणेश जी से माफी मांग ली. जिसके बाद गणेश जी ने कहा कि जैसे-जैसे सूर्य की किरणें तुम पर पड़ेगीं, तो तुम्हारी चमक लौट आएगी.

गणेश चतुर्थी के दिन चांद को ना देखने की ये वजह बताई जाती है. हालांकि अगर आपने गलती से भी चांद को देख लिया है, तो परेशान ना हो. भूल से अगर चांद को देख लें तो एक खास मंत्र का जाप कर लेना चाहिए, जो इस प्रकार है-

‘सिंह: प्रसेन मण्वधीत्सिंहो जाम्बवता हत:. सुकुमार मा रोदीस्तव ह्येष:स्यमन्तक:।।’