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क्रिसमस ट्री से लेकर सांता क्लॉज की कहानी तक….Christmas से जुड़ी ये बातें जरूर जानें ...

क्रिसमस का त्योहार दुनिया के ज्यादातर देशों में मनाया जाता है। इस दिन लोग चर्च जाकर प्रेयर करते है। इसके अलावा क्रिसमस के दिन लोग अपने करीबियों को केक खिलाते हैं और तोहफे देते हैं। साथ ही इस दिन क्रिसमस ट्री भी सजाया जाता है। क्रिसमस ईसाई धर्म का सबसे बड़ा त्योहार होता है और इसे बड़ा दिन भी कहते है। आइए आपको क्रिसमस से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में बताते है…

इसलिए 25 दिसंबर को मनाया जाता है क्रिसमस

ऐसी मान्यता है कि 25 दिसंबर को प्रभु यीशु का जन्म हुआ था। हालांकि बाइबल में प्रभु यीशु के जन्म की कोई निर्धारित तारीख के बारे में जिक्र नहीं किया हुआ है। फिर भी हर वर्ष 25 दिसंबर के दिन ही उनका जन्मदिन क्रिसमस डे के रूप में मनाते हैं।

हालांकि प्रभु यीशु के जन्म दिवस की डेट को लेकर विवाद भी हुए। 336 ईस्वी में इस त्योहार को सबसे पहले रोम में मनाया गया था। जिसके कुछ सालों बाद पोप जुलियस ने आधिकारिक रूप में प्रभु यीशु के जन्म को 25 दिसंबर को ही मनाने की घोषणा कर दी थी।

क्या है प्रभु यीशु के जन्म की कहानी?

पौराणिक कथाओं के मुताबिक एक दिन सपने में मरियम को ये भविष्यवाणी होती हुई सुनाई दी कि उनके घर में प्रभु यीशु का जन्म होने वाला है। इसके कुछ दिन बाद मरियम गर्भवती हो गई। गर्भावस्था में उनको बेथलहम की यात्रा पर जाना पड़ा। इस दौरान रास्ते में रात होने के चलते एक गुफा में उनको शरण लेनी पड़ी, जिसमें पशु पालने वाले गड़रिए रहते थे। इस गुफा में ही प्रभु ईसा मसीह का जन्म हुआ था।

सांता क्लॉज से जुड़ी ये कहानी जानते हैं आप?

सांता क्लॉज की भी क्रिसमस पर काफी मान्यता होती है। ऐसा माना जाता है कि सांता क्लॉज रात के अंधेरे में बच्चों को गिफ्ट्स देते है। प्रचलित कहानियों के मुताबिक संत निकोलस, जिनको हम सांता क्लोज के नाम से जानते है, उनका जन्म ईसा मसीह की मृत्यु के करीबन 280 साल बाद मायरा में हुआ। संत निकोलस अमीर थे, बचपन में ही उनके माता पिता का निधन हो गया था।

उनकी प्रभु यीशु में काफी आस्था थी। संत निकोलस का बच्चों से काफी लगाव था। वो हमेशा गरीबों की मदद किया करते थे। वो सीक्रेट तोहफों के जरिए लोगों को खुश करने की कोशिश करते थे। संत निकोलस को एक दिन ये पता चला कि एक गरीब शख्स है, जिसकी तीन बेटियां है। उनकी शादी के लिए उनके पास पैसे नहीं है।

जिसके बाद निकोलस ने उस व्यक्ति की मदद करने के बारे में सोचा। उन्होनें रात को उस शख्स की छत में लगी चिमनी में से सोने से भरा बैग नीचे डाल दिया। इसी दौरान उस व्यक्ति ने अपना मोजा सुखाने के लिए चिमनी में लगाया हुआ था। इसी दौरान उनसे देखा कि मोजे में सोने से भरा बैग आकर गिरा और ऐसा तीन बार हुआ। अंत में व्यक्ति ने निकोलस को ये करते देख लिया। निकोलस ने इसके बारे में किसी को नहीं बताने को कहा, लेकिन फिर भी ये बात फैल गई और इसी के बाद से क्रिसमस के दिन तोहफे देने का और सांता क्लॉज का रिवाज शुरू हुआ।

12 दिनों तक मनाया जाता है क्रिसमस

क्रिसमस का जश्न 12 दिनों तक चलता है। इसके पीछे का कारण ये बताया जाता है कि जीसस का जब जन्म हुआ उसके 12वें दिन 3 आलिम उन्हें गिफ्ट और दुआएं देने आए थे। इसकी शुरुआत 25 दिसंबर से होती है।

इसलिए सजाया जाता है क्रिसमस ट्री

इस दिन क्रिसमस ट्री भी सजाया जाता है। क्रिसमस ट्री की शुरुआत हजारों साल पहले उत्तरी यूरोप में हुई थी। उस दौरान “Fir” नामक पेड़ को सजाकर इस त्योहार को मनाते थे। जैसे-जैसे वक्त बीता वैसे-वैसे दुनियाभर में क्रिसमस ट्री का चलन बढ़ गया। ज्यादतर लोग अब क्रिसमस डे पर इस पेड़ को घर लाकर खिलौने, कैंडी,लाइट्स, बल्ब,गिफ्ट्स और चॉकलेट्स से सजाते हैं। कहा जाता है कि 1570 से क्रिसमस ट्री सजाने की परंपरा की शुरुआत हुई थी। क्रिसमस ट्री एक सदाबहार पेड़ है। इस पेड़ के पत्ते किसी भी मौसम में नहीं गिरते हैं और ना ही कभी मुरझाते हैं। क्रिसमस ट्री को लेकर ये भी मान्यता है कि इसे सजाने से घर में मौजूद किसी भी तरह का वास्तु दोष तक दूर हो जाता है।

भारत के पांचवे प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की है जयंती, जानिए क्यों कहलाए जाते हैं “क...

डॉ. अंबेडकर और सरदार पटेल के बाद पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ऐसे तीसरे महापुरुष हैं जिन्हें अपने विचारों के लिए जीवनकाल में उतनी स्वीकार्यता और प्रसिद्धि नहीं मिली जितनी उनके निधन के बाद प्राप्त हुई. आज यानी 23 दिसंबर, शुक्रवार को देश के 5वें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती है और इनकी स्मृति में राष्ट्रीय किसान दिवस मनाया जाता है, तो आइए आपको पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बारे में बताते हैं…

पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों की आवाज बुलंद करने वाले प्रखर नेता चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसबंर 1902 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर ग्राम में हुआ था. एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में जन्में चौधरी चरण सिंह का का परिवार जाट पृष्ठभूमि वाला था. इन्होंने 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 तक प्रधानमंत्री का पद संभाला था.

किसानों के कहलाए जाते थे मसीहा

अंग्रेजों की गुलामी में भी चौधरी चरण सिंह ने भारत के किसानों का कर्ज माफ कराने का दम रखा, इन्होंने खेतों की नीलामी और जमीन इस्तेमाल का बिल तैयार करवाया था. जिसके चलते इन्हें “किसानों का मसीहा” भी कहा जाता है. बता दें कि साल 1979 में उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के तौर पर चरण सिंह ने प्रस्तुत अपने बजट में 25 हजार गांवों के विद्युतीकरण को अनुमति दी थी.

साल 1937 में जब भारत में अंतरिम सरकार बनी तो उस दौरान चरण सिंह भी विधायक बने थे. साल 1939 में सरकार में रहते हुए उन्होंने कर्जमाफी विधेयक पास करवाया था. ये पहले ऐसे नेता रहे जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत से कर्जमाफी करवाई थी.

अगर बात करें चौधरी चरण सिंह की पढ़ाई की तो इन्होंने आगरा यूनिवर्सिटी से कानून की शिक्षा प्राप्त कर साल 1928 में गाजियाबाद में वकालत शुरू की. उसके बाद इनकी शादी गायत्री देवी से हुई थी.

संसद का नहीं किया सामना

जुलाई 1979 में चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने, वो बात अलग है कि बाद में इंदिरा गांधी ने अपना समर्थन वापस ले लिया और उनकी सरकार भी गिरी. जिसके चलते इतिहास में ये भी दर्ज है कि चरण सिंह एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री रहे हैं जिन्हें कभी संसद का सामना नहीं कर पड़ा था.

वहीं, चरण सिंह को लेकर एक और बड़ी बात ये है कि वो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को मानने वाले लेकिन नेहरू के प्रतिस्पर्धी थे. वो अपने आपको कभी भी किसी से कम नहीं समझते थे. 85 साल की उम्र में 29 मई, 1987 को किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह ने अलविदा कह दिया. इतिहास के पन्नों में चौधरी चरण सिंह का नाम प्रधानमंत्री से ज्यादा एक किसान नेता के तौर पर जाना जाता है.

अल्पसंख्यक अधिकार दिवस: 18 दिसंबर को क्यों मनाया जाता है ये दिन और कब से हुई शुरुआत!

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देशभर में 18 दिसंबर को अल्पसंख्यक अधिकार दिवस (Minorities Rights Day) मनाया जाता है. इस अवसर पर अल्पसंख्यक आयोग, के अलावा कई संस्थाएं विभन्न कार्यक्रम करती हैं. इस दिन को अल्पसंख्यक लोगों को आगे लाने और उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए खासतौर पर मनाया जाता है. भारत में अल्पसंख्यकों में सिख, ईसाई,मुस्लिम, बौद्ध, जैनी और पारसी को गिना जाता है. आइए आपको अल्पसंख्यक अधिकार दिवस के बारे में बताते हैं कि ये भारत में क्यों मनाया जाता है और इसकी शुरूआत कब से हुई है….

ये है अल्पसंख्यक अधिकार दिवस माने का कारण

भाषाई, धर्म, जाति और रंग के आधार पर भारत में अल्पसंख्यक अधिकार दिवस नागरिकों के अधिकारों को बढ़ावा और संरक्षित करने हेतु एक अहम दिन है. हालांकि भारतीय संविधान हमेशा अल्पसंख्यकों के साथ ही सभी समुदायों को समान और न्यायपूर्ण अधिकार प्रदान करता था और करता रहेगा मगर अल्पसंख्यकों के अधिकारों से जुड़े कुछ मुद्दे आज भी जीवित हैं. वहीं, देश में 18 दिसंबर को अल्पसंख्यक अधिकार दिवस मनाने के पीछे का कारण हर राज्य अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दों पर पूर्ण रूप से केंद्रित है. इसके अलावा ये सुनिश्चित करता है कि अल्पसंख्यकों के अधिकार उनके प्रांत में सुरक्षित हैं.

इसलिए चुना गया अल्पसंख्यक अधिकार दिवस का दिन

आपको बता दें कि साल 1992 में संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली ने अल्पसंख्यक अधिकार दिवस मानाने के लिए 18 दिसंबर का दिन चुना था. भाषा, अल्पसंख्यक धर्म, जाति या राष्ट्रीयता के आधार पर होते हैं. इस दिन की तारीक का ऐलान करते वक्त संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली ने कहा था कि देशों को अल्पसंख्यकों की संस्कृति, धर्म-जाति आदि की रक्षा करने के लिए कदम उठाने होंगे, जिससे कि अल्पसंख्यकों का अस्तित्व खतरे में न आए.

संयुक्त राष्ट्र ने उठाया था ये बड़ा कदम

आपको बता दें कि अल्पसंख्यक अधिकार दिवस को मनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा बड़े कदम उठाया गया था. ऐसे में विशेषतौर पर भारत के नजरिए से भी ये कदम उठाया गया था. कहा जाता है कि इसी को ध्यान में रखते  हुए भारत में अल्पसंख्यक आयोग बनाया गया था, इस आयोग का कार्य अल्पसंख्यक लोगों के अधिकारों की रक्षा करने के साथ ही कदम उठाता है. इसके अलावा बहुसंख्यकों के साथ इनका समन्वय बनाने का प्रयास करता है.

John Abraham Birthday: अपनी दमदार एक्टींग के बल पर दर्जनों पुरस्कार किए अपने नाम, बाल...

अभिनेता और निर्माता जॉन अब्राहम(John Abraham) आज अपना 47वां जन्मदिन मानाएंगे, इनका जन्म 17 दिसंबर 1972 में केरल में हुआ था. इनके पिता मलायाली और माता गुजराती थीं. अपनी मां के साथ अधिक वक्त गुजारने की वजह से ये गुजराती भाषा बहुत शानदार तरीके से बोल लेते है, तो आइए जॉन के बर्थडे पर इनसे जुड़ी कुछ रोचक बाते बताने के साथ ही ये भी बताते हैं कि किस तरह से क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी भी इनके जबरा फैन है.

आपको शायद ये पता न हो कि जब जॉन का जन्म हुआ था तब इनका फारसी नाम ‘फरहान’ रखा गया था, लेकिन पिता क्रिश्चियन के होने की वजह से उनका नाम जॉन रखा गया. अगर बात करें इनकी पढ़ाई की तो इन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल से की है, यहां पर उनके क्लासमेट ऋतिक रोशन, अभिषेक बच्चन और उदय चोपड़ा रहे हैं. इसके बाद जॉन ने इकोनॉमिक्स में बैचलर और एमबीए की डिग्री जय हिंद कॉलेज से हासिल की.

आपको बता दें कि जॉन हिन्दी सिनेमा के एकमात्र ऐसे अभिनेता हैं जिन्हें भारती क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी ने अपनी शादी में बुलाया था. धोनी जॉन अब्राहम के दोस्त और फैन दोनों हैं. बता दें कि महेंद्र सिंह धोनी को जॉन के हेयरस्टाइल काफी पसंद हैं, जिसके चलते वो उनके जैसे ही बाल रखते थे.

लव रिलेशनशिप को लेकर भी रहे काफी चर्चित

लगभग नौ साल तक जॉन अब्राहम और बिपाशा बसु का रिलेशनशिप चला था. लेकिन वो बिपाशा से पहले एक और बॉलीवुड एक्ट्रेस रिया सेन को डेट कर चुके थे. ये रिया के प्यार में काफी पागल थे. हालांकि दोनों का ये रिश्ता ज्यादा नहीं चल सका. वहीं, जॉन अब्राहम ने इंस्वेस्टमेंट बैंकर प्रिया रूंचाल से 3 जनवरी 2014 शादी कर ली.

वहीं, बात करें जॉन अब्राहम के करियर की तो उन्होंने अपना करियर ‘मॉडलिंग’ के रुप में शुरू किया था. जबकि साल 2003 में इन्होंने फिल्म ‘जिस्म’ से भारतीय सिनेमा जगत में कदम रखा था. इन्होंने अपने 16 वर्षीय करियर में लगभग 40 फिल्मों में अभिनेता के तौर पर और 7 फिल्में प्रोड्यूस भी की हैं. संजीदा एक्टींग से कॉमेडी और एक्शन किरदारों से कई दर्शकों का दिल जीतने वाले जॉन ने दमदार एक्टींग के लिए दर्जनों पुरस्कार भी अपने नाम किए हैं.

…जब भारत ने 93 हजार पाकिस्तानी सैनिक को सरेंडर करने के लिए कर दिया था मजबूर, ऐसे हुई ...

16 दिसंबर का दिन हर साल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। ये वहीं दिन है जब 1971 में भारत ने पाकिस्तान से युद्ध में ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। 1971 में हुए इस युद्ध के बाद ही पाकिस्तान दो टुकड़ों ने बंट गया था और एक नए देश बांग्लादेश ने जन्म लिया। 16 दिसंबर का दिन हर भारतीय के लिए गर्व का दिन है। भारतीय सेना ने इस ऐतिहासिक युद्ध में करीब 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को अपने आगे घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। आइए आपको बताते हैं कि 1971 में कैसे भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की शुरूआत हुई थी और कैसे इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी?

दरअसल, 1971 में पहले बांग्लादेश, पाकिस्तान का ही भाग था। उस समय उसे पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था और जो आज के समय का पाकिस्तान है उसे पश्चिमी पाकिस्तान कहा जाता था। पाकिस्तानी सेना लगातार पूर्वी पाकिस्तान के रहने वाले बांग्लाभाषी लोगों पर अत्याचार कर रही थी। इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में आजादी की लड़ाई 1970 में आम चुनावों के बाद से शुरू हुई।

पूर्वी पाकिस्तान ने शुरू की आजादी की लड़ाई

1970 के आम चुनावों में पूर्वी पाकिस्तान की पार्टी अवामी लीग ने जीत हासिल की। अवामी लीग के नेता शेख मुजीब-उर रहमान की पार्टी ने संसद में बहुमत हासिल किया और सरकार बनाने का दावा पेश किया। लेकिन पाकिस्तानी पीपुल्स पार्टी के जुल्किकार अली भुट्टो ने इस दावे को खारिज कर दिया और राष्ट्रपति से पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य शासन लागू करने की मांग की। इसके बाद पूर्वी पाकिस्तान की पार्टी अवामी लीग के मुजीब-उर रहमान को गिरफ्तार कर लिया। बस यही से शुरू हुई पाकिस्तान के विभाजन की कहानी।

पाकिस्तान के हालात और खराब होते गए। 25 मार्च 1971 को पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में जबरदस्त नरसंहार किया। इसके खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान के सैनिकों ने पश्चिमी पाकिस्तानी सेना का मुकाबला करने के लिए मुक्ति वाहिनी का गठन किया। इसमें जबरदस्त खून खराबा हुआ। पूर्वी पाकिस्तान की हालत जब ज्यादा खराब होने लगी, तो वहां के लोगों लाखों लोगों ने भारत की ओर रुख करना शुरू कर दिया।

ऐसे हुई भारत-पाक में युद्ध की शुरूआत

तब, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी पूर्वी पाकिस्तान का साथ किया। उस दौरान पीएम इंदिरा गांधी ने बंगाल के लोगों की मदद करने की बात कही। साथ ही पूर्वी पाकिस्तान द्वारा बनाई गई मुक्ति वाहिनी सेना जो बनी थीं, उसमें भारतीय सेना ने पूरी तरह से मदद मुहैया कराई।

जिससे पाकिस्तान नाराज हो गया और उसने ‘ऑपरेशन चंगेज़ खान’ के तहत 3 दिसंबर को भारत के 11 एयरबेसों पर हमला कर दिया। इसका भारत ने भी करारा जवाब दिया। यहीं से भारत और पाकिस्तान के बीच सीधी जंग शुरू हुई। फिर भारतीय सेना ने ढाका की घेराबंदी कर दी। भारतीय सेना ने उस समय ढाका के गवर्नर हाउस पर हमला किया, जिस वक्त वहां पर बड़े अधिकारियों की मीटिंग चल रही थी। भारतीय सेना के अचानक हुए इस हमले से जनरल नियाजी काफी डर गए और उन्होनें सेना को युद्ध विराम का संदेश भेजा।

93 हजार सैनिकों ने टेके थे घुटने

जनरल मानेकशॉ ने साफ तौर पर ये कह दिया था कि पाकिस्तान की सेना को सरेंडर करना पड़ेगा। जिसके बाद जनरल नियाजी ने पाकिस्तानी के करीब 93 हजार सैनिकों के साथ सरेंडर कर दिया। इस तरह भारतीय सेना ने 13 दिनों तक चले इस युद्ध में ऐतिहासिक जीत हासिल की और पूर्वी पाकिस्तानी को आजादी दिलवाने में भी सफलता हासिल की।

इस इंटरव्यू से शुरू हुआ था कंगना-ऋतिक के बीच का विवाद, जानिए उस दौरान दोनों के बीच कि...

बॉलीवुड की पंगा क्वीन कंगना रनौत बीते कई महीनों से लगातार सुर्खियों में बनी हुईं है। हर मुद्दे पर अपनी खुलकर राय रखने वाली कंगना रनौत जानी जाती हैं। सुशांत सिंह राजपूत का केस हो या फिर किसानों का आंदोलन इन सभी के दौरान कंगना अपनी बयानबाजी को लेकर खूब चर्चाओं में रहीं। अब इसी बीच एक्टर ऋतिक रोशन के साथ उनका विवाद एक बार फिर से लाइमलाइट में आ गया है।

फिर सुर्खियों में आया ऋतिक-कंगना का विवाद

दरअसल, 2016 में एक्टर ऋतिक रोशन द्वारा कंगना के खिलाफ दर्ज कराई गई FIR को अब साइबर सेल से क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट (CIU) को ट्रांसफर कर दिया गया है। ये फैसला मुंबई पुलिस कमिश्नर ने लिया है। ऋतिक रोशन के वकील ने मुंबई पुलिस को खत लिखकर कहा गया था कि साल 2016 से अब तक इस केस में कोई प्रगति नहीं हुई। जिसके बाद मुंबई पुलिस ने ये फैसला लिया।

कंगना ने ऐसे किया रिएक्ट

वहीं इस केस को ट्रांसफर करने पर एक्ट्रेस कंगना रनौत ने रिएक्ट किया। कंगना ने एक ट्वीट करते हुए कहा- ‘इसका रोना-धोना दोबारा से शुरू हो गया। हमारे ब्रेकअप और इसके तलाक को कई साल हो गए, लेकिन फिर भी ये मूव ऑन (आगे बढ़ने) के लिए तैयार नहीं हुआ। किसी दूसरी लड़की को डेट नहीं किया। जब मैनें अपनी अपनी पर्सनल जिंदगी में कुछ उम्मीद पाने के लिए साहस जुटाई है, ये अपना ड्रामा फिर से शुरू कर देता है। ऋतिक रोशन, कब तक रोएगा एक छोटे से अफेयर के लिए?’

जानिए क्या है दोनों के बीच का पूरा विवाद?

बता दें कि साल 2013 में कंगना और ऋतिक की कृष 3 फिल्म आई थीं। इस मूवी की शूटिंग के दौरान दोनों के अफेयर की चर्चाएं होने लगीं। कुछ समय बाद दोनों के ब्रेकअप की भी खबर आने लगीं। वैसे तो इन खबरों पर कंगना और ऋतिक ने चुप्पी साधे रखीं। लेकिन 2016 में एक इंटरव्यू में कंगना ने ऋतिक को अपना ‘एक्स बॉयफ्रेंड’ बता दिया, जिसके बाद से ही दोनों के बीच ये पूरा विवाद शुरू हुआ। कंगना ने कहा था कि मुझे नहीं पता क्यों मेरा एक्स अटेंशन पाने के लिए बेवकूफियां करता हैं।

कंगना के इंटरव्यू के बाद ऋतिक ने ट्वीट किया और जवाब देते हुए अफेयर की चर्चाओं पर हैरानी जताई। जिसके बाद ऋतिक ने कंगना को एक लीगल नोटिस भी भेजा। ऋतिक ने अफेयर के दावे को लेकर कंगना से माफी मांगने को कहा। जिसके बाद कंगना ने भी उल्टा उनको एक नोटिस भेजा और कहा कि वो या तो अपने नोटिस को वापस ले लें या फिर क्रिमिनल केस का सामना करने के लिए तैयार रहें।

ऋतिक रोशन ने ये भी आरोप लगाया कि उनको कंगना की आईडी ढेर सारे ईमेल भेजे गए थे। लीगल नोटिस में उन्होनें दावा किया था कि उनको 1,439 ईमेल मिले हैं, जिनमें से अधिकतर ‘सेंसलेस, पर्सनल और बेहूदा’ हैं। एक्टर ने इन सभी मेल को लंबे वक्त तक नजरअंदाज किया और कोई भी रिप्लाई नहीं किया। लेकिन कंगना ने अपने ऊपर लगाए गए इन आरोपों को खारिज किया और कहा था कि ऋतिक ने खुद उनसे बात करने के लिए एक अलग आईडी बनाई थीं।

कंगना ने नोटिस में कहा था कि सुजैन से तलाक की प्रोसेस में कोई परेशानी ना आए, इसलिए उन्होनें एक नई आईडी बनाई थीं। कंगना की ओर से ये दावा भी किया गया था कि वो मेल आईडी उनको खुद ऋतिक ने ही दी थी। इस दौरान दोनों के बीच का विवाद तब और गहरा गया था, जब ऋतिक ने लीगल नोटिस में कंगना पर मानसिक रूप से अस्थिर होने तक का आरोप लगा डाला, जिस पर कंगना ने जवाब देते हुए कहा कि वो खुद मानसिक समस्याओं के शिकार हैं।

ऋतिक रोशन ने 2017 में साइबर सेल में एक शिकायत दर्ज कराई थी। इससे पहले उन्होनें 2016 में अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज कराया था। तब केस IPC की तमाम धाराओं के तहत दर्ज हुआ था। जिसमें आईटी एक्ट और चीटिंग संबंधी धारा शामिल थी।

संसद हमला: 19 साल पहले आतंकियों की गोलियों से दहला था लोकतंत्र का मंदिर, 45 मिनटों तक...

आज के दिन को कोई कभी नहीं भुला सकता. 19 साल पहले आज ही के दिन आतंकियों ने लोकतंत्र के मंदिर कहे जाने वाले संसद भवन को निशाना बनाया था. 13 दिसंबर 2001 को 5 आतंकी संसद को दहलाने के मकसद से अंदर घुस आए थे. उस दौरान संसद में शीतकालीन सत्र चल रहा था. विपक्ष के हंगामे की वजह से दोनों सदनों को स्थगित कर दिया था, फिर भी वहां पर कई बड़े नेता मौजूद थे. संसद में मौजूद सभी लोगों को कहां पता था कि सबसे महफूज जगह मानी जाने वाली संसद भवन को ही आतंकवादी अपना निशाना बना लेंगे.

सफेद एंबेस्डर कार में घुसे थे आतंकी

समय सुबह करीब 11.40 बजे का था. एक सफेद रंग की एंबेस्डर कार में सवार 5 आतंकवादी संसद भवन में दाखिल हुए. उस कार के एक तरफ रेड लाइट लगी हुई थी, जबकि दूसरी तरफ गृह मंत्रालय का फर्जी स्टीकर लगा था. जब कार संसद भवन के अंदर दाखिल हुई, तो गाड़ी की रफ्तार बहुत तेज थी. इस दौरान संसद की सुरक्षा में लगे एक अधिकारी को शक हुआ. वो गाड़ी को रुकवाने के लिए तेजी से दौड़ा.

उस गाड़ी ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्ण कांत की गाड़ी पर टक्कर मार दी. इससे पहले वहां मौजूद लोग कुछ समझ पाते कि आखिर हो क्या रहा है, इतने में ही पांचों आतंकवादी अपनी गाड़ी से उतरे और ताबड़तोड़ गोलीबारी शुरू कर दी. गोलियों के आवाज से संसद भवन में मौजूद सभी लोग दहशत के आ गए. सुरक्षाकर्मी तुरंत ही हरकत में आए और सदन के अंदर जाने वाले सभी दरवाजों को बंद कर दिया.

पांचों आतंकवादी हुए थे ढेर

करीब 45 मिनटों तक लोकतंत्र के मंदिर में खूनी खेल चला था. सुरक्षाकर्मियों ने पांचों आतंकियों को ढेर कर दिया, जबकि सुरक्षाकर्मी समेत कुल 9 लोग इस हमले में शहीद और कई घायल भी हुए. संसद भवन में हुए आतंकी हमले की खबर हर जगह आग की तरह फैल गई. हर कोई इस खबर को सुन कर चौंक गया. ऐसा पहली बार हुआ था जब आतंक ने संसद की दहलीज को पार किया हो.

इस हमले के पीछे आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा का हाथ था. अटैक के बाद दिल्ली पुलिस ने चार लोगों को अपनी गिरफ्त में लिया था. जिसमें इस हमले का मास्टरमाइंड अफजल गुरु, एसएआर गिलानी, शौकत हुसैन और शौकत की पत्नी अफसान गुरु शामिल थे. ट्रायल कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए अफजल गुरु, शौकत हसन और एसएआर गिलानी को सजा-ए-मौत सुनाई, जबकि अफजसान गुरु को बरी कर दिया.

अफजल गुरु को 9 साल बाद दी गई थी फांसी

2003 में गिलानी को भी बरी कर दिया गया. साल 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने शाकिब की मौत की सजा को बदल दिया और उसे 10 साल सश्रम कारावास कर दिया. हमले के 9 साल बाद 9 फरवरी 2013 को अफजल गुरु को फांसी दे दी गई. सरकार ने अफजल गुरु के शव को उसके परिवार को नहीं सौंपने का फैसला लिया और उसे तिहाड़ जेल में ही दफना दिया.

न सहन करें प्रताड़ना और न ही अत्याचार, यहां जानें क्या हैं आपके मानवाधिकार

इस धरती पर हर इंसान के कुछ अधिकार हैं, कुछ हक़ है। जिनके बारे में देश दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी को अभी तक कोई जानकारी नहीं है। आये दिन कोई न कोई मानवाधिकार उल्लंघन की खबर लोगों का सीना चीर देती है, लेकिन ज्यादातर मामलों में लोग इसके खिलाफ अपनी आवाज़ दबा लेते हैं। इन्हीं अधिकारों के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल पूरी दुनिया 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस मनाती है। बता दें कि ये दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य मानवाधिकार हनन को रोकना है। इस दिवस पर दूसरे के अधिकारों के लिए कदम उठाना विशेष उद्देश्य के रूप में शामिल किया गया है।

क्या है मानवाधिकार?

हर इंसान को जिंदगी जीने, आजादी, समानता से रहने के अधिकार को ही मानव अधिकार कहा जाता है। इसके बारे में आमतौर पर कम ही लोग वाकिफ होते हैं। इसके बारे में विस्तार से समझाने के लिए ही इस तरह के दिन का आयोजन किया जाता है। ताकि लोगों को खुद के अधिकारों के बारे में पता चल सके। भारतीय संविधान में इसका उल्लंघन करने वाले को कड़ी सजा देने का प्रावधान भी है।

भारत में इस दिन हुआ था लागू 

मानव अधिकार मनाने की घोषणा यूएन असेंबली ने 10 दिसंबर, 1948 विश्व घोषणापत्र जारी कर की थी। जिसके बाद भारत सरकार ने 18 सितंबर 1993 को लागू किया और 12 अक्टूबर 1993 को सरकार ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन किया गया। आयोग के कार्यक्षेत्र में नागरिक और राजनीतिक के साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार भी आते हैं। बता दें कि पहली बार 48 देशों ने संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली के साथ इस दिन को मनाया था।

यह होते हैं मानवाधिकार

जीवन जीने का अधिकार

प्रत्येक व्यक्ति के पास अपना स्वतंत्र जीवन जीने का जन्मसिद्ध अधिकार है।

न्याय का अधिकार

प्रत्येक व्यक्ति को निष्पक्ष अदालत से निष्पक्ष सुनवाई,उचित समय के भीतर सुनवाई,जन-सुनवाई और वकील की सेवा लेने के अधिकार है।

विचार,विवेक और धर्म की स्वतंत्रता

प्रत्येक व्यक्ति को विवार और विवेक की मौलिक स्वतंत्रता है और उसे अपने धर्म को चुनने की पूरी आजादी है। यदि कोई व्यक्ति किसी भी समय अपने धर्म को बदलना चाहे तो इसके लिए भी वह पूरी तरह से स्वतंत्र है।

दासता से आजादी

दुनिया के अधिकांश देशों में अब गुलामी और दास प्रथा पर कानूनी रोक लग चुकी है लेकिन फिर भी यह प्रथा आज भी कुछ हिस्सों मं अवैध रुप से जारी है।

अत्याचार से आजादी

अन्तर्राष्ट्रीय कानून के तहत अत्याचार करने पर प्रतिबंध है।

इस जगह को क्यों कहा जाता है “विधवाओं की घाटी”? जानकर वजह आप भी रह जाएंगे दंग!

दुनिया में ऐसे बहुत से शहर है जो अपनी किसी न किसी खासियत के कारण प्रसिद्ध है। लेकिन क्या आप ये सोचते है कि कोई ऐसा भी शहर हो सकता है जो अपनी बुरी यादों के लिए मशहूर होगा। जी हां, एक ऐसा शहर, जहां केवल विधवाए रहती है। जहां एक ही दिन में पूरा कब्रिस्तान भर गया था। जहां महीनों बीत जाने के बाद भी मातम पसरा हुआ है। जहां आज भी किसी तरह के जश्न से पहले लोग अपनों को याद करके आंसू बहाते है।

जी हां एक ऐसा ही शहर है अफगानिस्तान में। अफगानिस्तान के नंगरहार नाम की जगह पर एक साल पहले शुक्रवार को नमाज के वक्त एक मस्जिद के अंदर धमाका हुआ। धमाके में नमाज पढ़ रहे 64 लोगों की मौत हो गई थी। चारो तरफ केवल लाशे ही लाशे थी, बच्चों और महिलाओं की चीख पुकार थी। इस आतंकी हमले में 34 महिलाओं ने अपने पतियों को खो दिया था। देखते ही देखते पूरा कब्रिस्तान कब्र से भर गया था। घाटी में एक साथ 34 महिलाओं के विधवा हो जाने के कारण इस घाटी को विधवाओं की घाटी कहा जाने लगा।

इस धमाके को एक साल हो गया है, लेकिन इस हमले में मारे गए लोगों का गम उनके परिवार वाले भुला नहीं पा रहे है। यहां आज भी आतंकी हमले का खौफ इतना ज्यादा है कि अब नमाज पढ़ने के लिए लोग अकेले नहीं जाते है। मस्जिद में सुरक्षाबलों की निगरानी में लोग नमाज पढ़ते है। यहां तक कि किसी शादी समारोह में भी सुरक्षा दी जाती है। ताकि एक साल पहले की घटना फिर से न दोहराई जाए।

एक साल हो जाने के बाद भी आज तक इस हमले की जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली। कोई नही जानता है कि मस्जिद में नमाज पढ़ रहे लोगो को निशाना क्यों बनाया गया, और किसने ऐसी नापाक हरकत की। हमले में मारे गए लोगों के परिवार वाले किसी भी तरह का जश्न मनाने से डरते है। वो अपनो को याद करके आंसू बहाते है। ये एक साल किसी बुरे सपने से कम नहीं है। महिलाओं में आज भी अपने पतियों को खो देने का दर्द साफ नजर आता है। एक साथ इतनी महिलाओं के विधवा होने से पड़े इस घाटी के नाम को सुनकर भी लोगो की रूंह कांप जाती है। ये घाटी आज भी पूरी तरह से विरान है। और ये कोई नहीं जानता कि इनकी विरान जिंदगी कब तक ऐसे ही चलती रहेगी।

कही आप तो यूज नहीं कर रहे ये Unsafe पासवर्ड? इनको तुरंत बदलने की बेहद जरूरत

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कॉम्प्लिकेटेड ये वर्ड ज्यादातर मायनों में परेशान करने वाला है लेकिन लेकिन लेकिन जब बात पासवर्ड की आती है तो यही कॉम्प्लिकेटेड वर्ड सबसे ज्यादा काम आता है। जी हां आज हम पासवर्ड से जुड़ी कुछ ऐसी बातों के बारे में जानेंगे जो आपको हैरान कर देंगी और तो और इससे जुड़ी सामने आई हालिया रिपोर्ट को जानने के बाद तो आप चौंक जाएंगे।

पासवर्ड का कॉम्प्लिकेटेड होना बेहद जरूरी है क्योंकि दुनिया डिजिटलाइजेशन की तरफ तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में सोशल नेटवर्किंग साइट्स यूज करना हो या फिर क्वीक पेमेंट की बात हो पासवर्ड इसमें सबसे अहम कड़ी है। अगर पासवर्ड कॉम्प्लिकेटेड नहीं हुआ तो डेटा और पैसा दोनों ही अनसेफ रह सकते हैं। ऐसे में जरूरी है कि किसी मजबूत पासवर्ड मजबूत रखा जाए।

हाल ही में पासवर्ड मैनेजर कंपनी NordPass ने मौजूदा साल 2020 में लोगों के यूज किए सबसे बेकार पासवर्ड की एक लिस्ट जारी की है जिसमें बताया गया है कि 123456 का इस्तेमाल लोगों ने पासवर्ड तौर पर बहुत किया और यह पासवर्ड सबसे ज्यादा Unsafe है। 123456789 का नंबर इसके बाद आता है। NordPass के मुताबिक इन पासवर्ड्स का अंदाजा कोई भी आसानी से लगा सकता है। इतना ही नहीं आसानी से डेटा चुरा सकता है।

नंबर वाले पासवर्ड्स के अलावा भी कई लोग और भी बहुत सारे आसान से पासवर्ड लगाते हैं। कंपनी का कहना है कि लोग 111111, 123123, 12345, picture1, password, 12345678, 1234567, qwerty, abc123, 1234567890, senha, Million2, 000000, 1234, aaron431, iloveyou, password1 और qqww1122 जैसे नंबर वाले आसान से पासवर्ड खूब इस्तेमाल में लाते हैं।

अलग-अलग कैटगरी की बात की जाए तो aaron431 पासवर्ड का यूज किसी इंसान के नाम पर बहुत सारे लोगों ने किया तो वहीं खाने के नाम पर chocolate को खूब पासवर्ड बनाया गया। Iloveyou और pokemon को भी बाकी कई लोगों ने पासवर्ड के तौर पर इस्तेमाल किया। अगर आपने भी ऐसे भी पासवर्ड अपने डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए सेट किए हैं तो उन्हें जल्द बदलें शायद आपका डेटा और पैसा दोनों ही पहले से ज्यादा सेफ हो जाए।