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कूपर फैमिली को फिर लगा सदमा, ऋषि कपूर के भाई ने दुनिया को कहा अलविदा

बॉलीवुड के मशहूर कपूर खानदान को एक बड़ा झटका लगा है। दरअसल, बॉलीवुड के दिवंगत मशहूर एक्टर ऋषि कपूर के छोटे भाई राजीव कपूर अब इस दुनिया में नहीं रहे। 58 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। राजीव कपूर की मौत की वजह हार्ट अटैक बताई जा रही है।

हार्ट अटैक से हुआ निधन

मिली जानकारी के अनुसार चेम्बूर स्थित अपने घर पर राजीव कपूर को हार्ट अटैक आया था। जिसके बाद जल्दबाजी में उनको इनलैक्स अस्पताल लेकर जाया गया। जहां डॉक्टरों ने राजीव कपूर को मृत घोषित कर दिया।

रणधीर कपूर और नीतू कपूर ने किया कंफर्म

नीतू कपूर ने सोशल मीडिया के जरिए राजीव कपूर के निधन की खबर की पुष्टि की है। उन्होनें अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर राजीव की एक फोटो शेयर करते हुए लिखा- ‘रेस्ट इन पीस।’ बताया जा रहा है कि राजीव कपूर ने करीब एक बजे आखिरी सांस लीं।

वहीं रणधीर कपूर ने राजीव कपूर के निधन पर कहा- ‘मैनें अपने सबसे छोटे भाई राजीव को खो दिया। वो अब इस दुनिया में नहीं रहे। डॉक्टरों ने उन्हें बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन ये संभव नहीं हो पाया।’

राजीव कपूर के निधन से जहां कपूर फैमिली को बड़ा झटका लगा ही। साथ में बॉलीवुड में भी शोक की लहर छा गई। कई बॉलीवुड सितारे राजीव कपूर के निधन पर दुख जताते हुए नजर आ रहे हैं।

गौरतलब है कि एक साल में कपूर फैमिली को ये दूसरा बड़ा झटका लगा है। बीते साल ही 30 अप्रैल को ऋषि कपूर का निधन हुआ था। लंबे समय तक कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से लड़ने के बाद ऋषि कपूर ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।

इन फिल्मों में कर चुके हैं काम

राजीव कपूर एक्टर, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर के तौर पर काम कर चुके हैं। 1983 में राजीव ने ‘एक जान हैं हम’ से बॉलीवुड में एक्टिंग में डेब्यू किया। वो ‘राम तेरी गंगा मैली’ फिल्म में लीड रोल में नजर आए थे। इस फिल्म से ही राजीव को पहचान मिली थीं। इसके बाद उन्होनें आसमान, लवर बॉय, जबरदस्त और हम तो चले परदेस जैसे फिल्मों में भी काम किया। राजीव ने ऋषि कपूर के लीड रोल वाली फिल्म ‘प्रेम ग्रंथ’ का डायरेक्शन भी किया था।

गुलाम नबी आजाद को मिला आरपीआई का ऑफर, अठावले ने कहा- कांग्रेस नहीं तो हम लाएंगे वापस

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देश में बजट सत्र के बाद इन दिनों संसद की कार्यवाही चल रही है। हर रोज लोकसभा और राज्यसभा में सत्तारुढ़ एनडीए और विपक्षी दलों के बीच तीखी बहस हो रही है, तरह-तरह के आरोप और प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं। संसद के इस सत्र में कई राज्यसभा सांसदों का कार्यकाल खत्म होने वाला है।

जिसे लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सत्तारुढ़ एनडीए के कई नेताओं ने प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद का कार्यकाल भी 15 फरवरी को खत्म होने वाला है। आज मंगलवार को राज्यसभा में उन्हें विदाई दी गई।

सदन को आपकी जरुरत है- रामदास अठावले

इस दौरान पीएम नरेंद्र मोदी समेत कई केंद्रीय मंत्रियों ने गुलाम नबी आजाद के विदाई को लेकर प्रतिक्रिया दी। पीएम मोदी ने कांग्रेस के राज्यसभा सांसद गुलाम नबी आजाद से जुड़ा एक किस्सा शेयर किया और उसे सुनाते-सुनाते भावुक हो गए। वहीं, दूसरी ओर एनडीए गठबंधन में बीजेपी की सहयोगी रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने भी इस मौके पर अपनी बात रखी।

उन्होंने गुलाम नबी आजाद के रिटायर होने के मौके पर विदाई भाषण में कहा कि आपको सदन में वापस आना चाहिए। अगर कांग्रेस आपको वापस नहीं लाती है तो हम इसे करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा, इस सदन को आपकी जरुरत है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि मैं भी पहले उधर था लेकिन उधर आ गया।

5 बार राज्यसभा और 2 बार लोकसभा सदस्य रह चुके हैं आजाद

बता दें, राज्यसभा के 4 सदस्य फरवरी महीने में ही रिटायर हो रहे हैं और ये चारों सदन में जम्मू-कश्मीर का प्रतिनिधित्व करते है। राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद (15 फरवरी) के साथ-साथ शमशेर सिंह (10 फरवरी), मीर मोहम्मद फैयाज (15 फरवरी), नादिर अहमद (10 फरवरी) को राज्यसभा से रिटायर हो रहे हैं। राज्यसभा में 15 फरवरी के बाद जम्मू कश्मीर का कोई प्रतिनिधि नहीं होगा।

गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर के केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद अभी तक विधानसभा चुनाव नहीं हुए हैं। जिसके कारण राज्य की राज्यसभा सीटों पर भी चुनाव होना संभव नहीं है। गुलाम नबी आजाद के संसद की सफर की बात करें तो उन्होंने सदन में लंबी सियासी पारी खेली है। वह 5 बार राज्यसभा तो 2 बार लोकसभा के सदस्य रह चुके हैं।

कश्मीर में हुआ वो आतंकी हमला, जिसको याद कर भावुक हो गए पीएम मोदी…गुलाम नबी आजाद की ता...

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज राज्यसभा में भावुक होते हुए नजर आए। दरअसल, मंगलवार को राज्यसभा से जम्मू-कश्मीर के 4 सांसदों को विदाई दी जा रही है, जिसमें कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के साथ शमशेर सिंह, मीर मोहम्मद फैयाज और नाजिर अहमद के नाम शामिल है। इन चारों सांसदों का कार्यकाल पूरा हो गया है।

राज्यसभा से गुलाम नबी आजाद को विदाई देते हुए पीएम मोदी ने उनकी जमकर तारीफ की। साथ में एक घटना को याद करते हुए वो भावुक भी हो गए। उनकी आंखों से आंसू झलक आए। इस दौरान उन्होनें कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद को सैल्यूट भी किया।

दरअसल पीएम मोदी राज्यसभा में कश्मीर में हुए एक आतंकी हमले को याद किया। पीएम मोदी ने कहा- ‘जब गुजरात के कुछ यात्री जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले में मारे गए तो सबसे पहले गुलाम नबी आजाद का फोन मेरे पास आया था’। पीएम आगे बोले कि ये फोन महज सूचना देने के लिए नहीं था। उस फोन पर गुलाम नबी आजाद के आंसू रुक नहीं रहे थे।’

राज्यसभा में प्रधानमंत्री ने आगे कहा- ‘उस दौरान देश के रक्षा मंत्री प्रणब मुखर्जी थे। उनको मैनें फोन किया और शव को लाने के लिए सेना का हवाई जहाज की मांग की। उस दौरान रात में दोबारा से गुलाम नबी जी का फोन आया। एयरपोर्ट से उन्‍होंने मुझे फोन किया। उन्होनें वैसे चिंता की, जैसे अपने परिवार के सदस्‍य की चिंता करे।’

कांग्रेस नेता की तारीफ करते हुए पीएम मोदी ने कहा- ‘पद और सत्ता तो जिंदगी में आते जाते रहते हैं। उसको कैसे पचाना है वो गुलाम नबी आजाद जी से सीखने को मिलता है। एक मित्र के तौर पर मैं उनका आदर करता हूं।’

प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में ये भी कहा कि उनकी जगह को भर पाना बहुत मुश्किल होगा। क्योंकि गुलाम जी अपने दल के साथ साथ देश और सदन की भी उतनी ही चिंता करते थे। पीएम बोले कि मुझे इस बात का पूरा भरोसा है कि उनकी सौम्‍यता, नम्रता और देश के लिए कुछ कर गुजरने की कामना उनको चैन से नहीं बैठने देगी। वो आगे जो भी दायित्‍व संभालेंगे देश उनसे लाभान्वित होगा। उन्होनें जो भी सेवाएं दी, उसके लिए मैं उनका आदरपूर्वक धन्‍यवाद करता हूं। मेरा व्‍यक्तिगत तौर से उनसे आग्रह है कि अपने मन से मत मानिए कि आप इस सदन का हिस्‍सा नहीं हैं। आप सभी के लिए मेरे द्वार खुले रहेंगे।

जब 4 साल की उम्र में खो गए थे कार्तिक आर्यन, जानिए एक्टर से जुड़ी कुछ खास बातें…...

‘प्यार का पंचनामा’ फिल्म से मशहूर हुए हॉट एक्टर कार्तिक आर्यन बॉलीवुड में अपनी जगह बना चुके हैं. 22 नवंबर 1990 को कार्तिक का जन्म हुआ था. आज के समय में कार्तिक काफी फेमस है और उनके पास काफी प्रोजेक्ट भी है. वैसे तो कार्तिक को हर कोई काफी पंसद करता है, लेकिन लड़कियों में उनका क्रेज कुछ ज्यादा ही है. आइए आज हम आपको कार्तिक से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बताते है जो शायद आपको पता नहीं होगी.

4 साल में खो गए थे कार्तिक

22 नवंबर को कार्तिक का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था. उनका असली नाम कार्तिक तिवारी है. वैसे कार्तिक का एक बचपन का किस्सा है, जिसके बारे में शायद उनके फैन्स भी नहीं जानते होंगे. दरअसल, कार्तिक अब सिर्फ 4 साल के थे तो वो दिल्ली में खो गए थे. दिल्ली के करोल बाग मार्केट में वो अपने माता-पिता से अलग हो गए थे. जिसके बाद उनके माता-पिता ने पुलिस की मदद ली और करीब 4 घंटे बाद वो मिले.

इंजीनियरिंग की कर चुके हैं पढ़ाई

कार्तिक के माता-पिता डॉक्टर है, जबकि कार्तिक ने बायोटेक्नोलॉडी में इंजीनियरिंग की डिग्री ली हुई है. उन्होनें नवी मुंबई के डीवाय पाटिल कॉलेज ऑफ इंजीनिरिंग से एडमिशन लिया था. हालांकि कार्तिक इंजीनियरिंग नहीं बल्कि एक्टर बनना चाहते थे, इसलिए वो मुंबई आए थे. उन्होनें अपने कॉलेज के टाइम से ही मॉडलिंग शुरू कर दी थी. जब वो कॉलेज में थे वो अपनी क्लासेस को बंक करके ऑडिशन देने के लिए जाया करते थे. 2011 में कार्तिक को फिल्म ‘प्यार का पंचनामा’ से बॉलीवुड में डेब्यू किया. पहली ही फिल्म में कार्तिक का रोल काफी जबरदस्त था.

‘प्यार का पंचनामा’ से बॉलीवुड में डेब्यू

‘प्यार का पंचनामा’ से कार्तिक को बॉलीवुड में पहचान तो जरूर मिल गई, लेकिन इसके बाद उन्हें वो मुकाम नहीं मिल पाया. इसके बाद कार्तिक की ‘आकाशवाणी’ और ‘कांची: द अनब्रेकेबल’ जैसी फिल्मों में भी उन्होनें काम किया. लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल पाई. इसके बाद कार्तिक ने प्यार का पंचनामा फिल्म के दूसरे पार्ट से वापसी की. 2015 में ‘प्यार का पंचनामा-2’ आई, जिससे उन्होनें बॉलीवुड में कमबैक किया. इसके बाद उन्होनें ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ और ‘लुका छुप्पी’ जैसी हिट फिल्में भी की.

अब तो कार्तिक बॉलीवुड के एक बहुत जाने-माने एक्टर बन चुके है. कार्तिक ने अपनी एक्टिंग से हर किसी को काफी एम्प्रेंस कर दिया है. अभी के समय में कार्तिक के पास कई बड़े बड़े प्रोजेक्टस है. फिलहाल कार्तिक के पास ‘दोस्ताना-2’, ‘भूल भूलैया-2’ जैसे कई फिल्में भी है.

रिलेशनशिप को लेकर रहते हैं सुर्खियों में 

बात अगर इस हैंडसम हंक के रिलेशनशिप की करें तो ये इसको लेकर अक्सर ही सुर्खियों में रहते है. कार्तिक का नाम कई लड़कियों के साथ जुड़ चुका है. लेकिन पिछले काफी टाइम से कार्तिक और सारा अली खान के डेटिंग की खबरें चर्चाओं का हिस्सा बनी हुई है. दोनों एक-साथ कई जगहों पर स्पॉट किए जा चुके है. लेकिन पिछले कुछ दिनों से दोनों के ब्रैकअप की खबरें भी सामने आई.

क्या तमिलनाडु चुनाव में अहम भूमिका निभा सकती है VK Sasikala? जानें सबकुछ…

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तमिलनाडु में इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। जिसे लेकर राजनीतिक पार्टियों ने अपनी तैयारियां तेज कर दी है। प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) ने आगामी चुनाव बीजेपी के साथ गठबंधन में ही लड़ने का ऐलान किया है। लेकिन तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की उत्तराधकारी कही जाने वाली शशिकला (VK Sasikala) की तमिलनाडु में वापसी आगामी चुनाव में सत्ताधारी AIADMK और बीजेपी गठबंधन की नींव हिला सकती है। क्योंकि शशिकला काफी पहले से ही परोक्ष रुप से तमिलनाडु की राजनीति में एक्टिव रही है।

जयललिता की सबसे करीबी रही हैं शशिकला

साल 1980 के दशक में तत्कालीन AIADMK चीफ जयललिता के संपर्क में आने वाली शशिकला कभी जयललिता की सबसे करीबी मानी जाती थी। लेकिन धीरे-धीरे उनके रिश्तों के बीच खटास आनी शुरु हो गई थी। खबरों के मुताबिक 1996 के चुनाव में जयललिता की हार के बाद शशिकला और उनके रिश्तेदारों को घर छोड़ने के लिए कह दिया गया था। कुछ समय बाद शशिकला (VK Sasikala) वापस जयललिता के पास लौट आई, लेकिन अब चीज़ें पहले जैसी नहीं रहीं।

जयललिता और शशिकला के बीच करीब तीन दशकों तक गहरी दोस्ती रही। कुछ लोग शशिकला को जयललिता की परछाई भी कहा करते थे। तमिलनाडु में उनके समर्थक जयललिता को अम्मा तो वहीं शशिकला को मौसी बुलाते थे। साल 2011 में शशिकला पर जयललिता को धीमा जहर देकर मारने का आरोप लगा था। जिसके बाद शशिकला को पार्टी से निकाल दिया गया और उनसे पूरी तरह से दूसरी बना थी।

शशिकला को मिलने वाली थी पार्टी की कमान

हालांकि, बताया जाता है कि बाद में शशिकला (VK Sasikala) ने जयललिता से माफी मांग ली और जयललिता ने उन्हें माफ भी कर दिया था। इसी बीच 2016 में जयललिता की मृत्यु हो गई। जिसके बाद पार्टी में उथल-पुथल मचनी शुरु हुई। पूर्व मुख्यमंत्री की मौत के बाद प्रदेश की सियासत में इस बात की चर्चा तेज हो गई थी कि शशिकला को पार्टी की कमान सौंपी जाएगी और अगला सीएम भी बनाया जाएगा।

तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री पनीरसेल्वम ने खुद ही शशिकला के नाम को विधायक दल के नेता के तौर पर प्रस्तावित किया था। जिसे लेकर पार्टी के अंदर ही विरोध शुरु हो गया था। जयललिता की भतीजी दीपा जयकुमार ने शशिकला को अविश्वसनीय इंसान बताया था।

शशिकला को 2017 हुई थी जेल

उसी बीच फरवरी 2017 में 66 करोड़ रुपये की बेहिसाबी संपत्ति के मामले में शशिकला और उनके रिश्तेदारों को सजा सुना दी गई। दरअसल, शशिकला पर जयललिता के साथ मिलकर आय से अधिक संपत्ति बनाने के आरोप लगे थे, जिसकी पुष्टि भी हुई थी। विशेष अदालत ने 27 सितंबर, 2014 को उन्हें सजा सुनाई थी। जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी 14 फरवरी, 2017 को हाइकोर्ट की सजा को बरकरार रखा।

15 फरवरी 2017 को बेंगलुरु ट्रायल कोर्ट में उन्होंने आत्म समर्पण कर दिया जहाँ उन्हें कैदी संख्या 10711 आवंटित किया गया था। साथ ही उनपर दस करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था। उनके आत्म समर्पण के दो दिनों बाद ही शशिकला को AIADMK की प्राथमिक सदस्यता से बाहर कर दिया गया।

अप्रैल-मई में होगा तमिलनाडु विधानसभा चुनाव

अब शशिकला जेल से रिहा हो गई हैं। खराब सेहत के कारण उन्हें जल्द रिहा कर दिया गया है। उनकी रिहाई से तमिलनाडु की राजनीति में हलचल मचना लाजिमी है। अब सबकी जुबां पर एक ही सवाल है कि क्या मौजूदा परिस्थितियों में शशिकला की रिहाई तमिलनाडु की राजनीति में कुछ असर डाल सकती है?

शशिकला (VK Sasikala) की रिहाई ऐसे समय में हुई है, जब अप्रैल-मई में तमिलनाडु में विधानसभा का चुनाव होना है। बताया जाता है कि शशिकला का तमिलनाडु की राजनीति पर का काफी असर था और आगे भी रहेगा। अब जेल से रिहा होने के बाद प्रदेश की सियासत में इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि क्या शशिकला खुद को जयललिता की वारिस के रूप में प्रोजेक्ट कर चुनाव में आती है या फिर अपना नया वजूद सामने पेश करेगी?

तमिलनाडु में काफी पहले से है द्रविड़ दलों का प्रभुत्व

बता दें, तमिलनाडु की सियासत में काफी पहले से ही द्रविड़ दलों का आधिपत्य रहा है। आजादी के लगभग दो दशक तक प्रदेश में कांग्रेस का बोलबाला था लेकिन साठ के दशक में हिंदी विरोधी आंदोलनों में द्रविड़ दल उभर कर सामने आए और पहली बार 1967 में DMK द्वारा गैर कांग्रेसी सरकार बनाई गई थी।

उसके बाद से ही तमिलनाडु की राजनीति में द्रविड़ दल प्रमुख रहे हैं। मौजूदा समय में भी राज्य में द्रविड़ दलों का ही प्रभुत्व है। DMK और AIDMK यहां के प्रमुख राजनीतिक दल हैं जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस राज्य की तीसरी बड़ी पार्टी है। ऐसे में तमिलनाडु की राजनीति में शशिकला की एंट्री से क्या बदलाव होंगे, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

16 दिसंबर, 2012 से 20 मार्च तक निर्भया के इंसाफ का सफर, जानिए…

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देश की राजधानी दिल्ली में 16 दिसंबर, 2012 की वो रात आम नहीं थी, इस रात एक बेटी की आबरु से छह लोग खेल रहे थे. वो कहर रही थी, वो चिल्ला रही थी लेकिन दरिंदों के कानों तक एक आवाज न जा रही थी. वो उसके साथ दरिंदगी और हैवानियत की सभी हदें पार करते रहे है. यहां तक कि उस पीड़िता को निवस्त्र कर चलती बस से दिसंबर की उस सर्द रात में सड़क पर फेक दिया था.

जी हां, हम बात कर रहे हैं राजधानी दिल्ली के मुनिरका में हुए निर्भया के साथ हैवानियत की उस रात की. भले ही उस काली रात को बीते 7 साल और कुछ महीने क्यों न हो गए हो लेकिन आज भी उसे याद कर हर मां-बाप के आंखों से अश्क बहता है. देश का कोई नागरिक नहीं चाहता कि जैसे निर्भया के साथ हुआ वैसे किसी ओर के साथ दोहराया जाए. हर कोई चाहता था तो बस निर्भया के दोषियों का फांसी के फंदे पर लटकाना, जो कि आज यानी 20 मार्च, 2020 को पूरा हुआ और निर्भया के दोषियों को फांसी की सजा हो गई. आइए आपको निर्भया गैंगरेप और हत्या का पूरा मामला विस्तार से बताते हैं…

16 दिसंबर, 2012 की रात 

16 दिसंबर, 2012 की रात पैरामेडिकल की छात्रा निर्भया अपने एक दोस्त के साथ साकेत के सेलेक्ट सिटी मॉल में फिल्म ‘लाइफ ऑफ पाई’ देखने के लिए गई थी. फिल्म देखने के बाद जब दोनों ऑटो के लिए सड़क पर खड़े हुए तो उस सर्द रात में कोई भी ऑटो चालक जाने के लिए तैयार नहीं हो रहा था. ऐसे में एक ऑटो चालक तैयार तो हुआ लेकिन उसने उन दोनों को मुनिरका के बस स्टैंड तक छोड़ने के लिए कहा और फिर वो दोनों मुनिरका के बस स्टैंड पर उतर गए, उस दौरान लगभग रात के 8:30 बज रहे थे.

मुनिरका बस स्टैंड के पास एक सफदे रंग की बस खड़ी हुई थी और उसमें बैठा एक नाबालिग पालम मोड और द्वारका जाने के लिए आवाज लगा रहा था. वहां, पहुंचने पर निर्भया और उसके दोस्त ने देखा कि बस में पहले से कुछ लोग बैठे हुए हैं, जिसके बाद वो दोनों भी बस में बैठ गए लेकिन ये दोनों इस बात से अंजान थे कि इनकी खुशियों पर अब काले साये ने दस्तक दे दी है. इस दौरान चलती बस में ड्राइवर और कंडेकटर के अलावा चार लोगों ने निर्भया से दुष्कर्म किया.

इतना ही नहीं, उसके प्राइवेट पार्ट में लोह की रोड तक डालकर हैवानियत की, जिससे उसके अंदुरुनी अंग पर भी काफी असर पड़ा. हद तो तब पार हुई जब निर्भया समेत उसके दोस्त को भी उन हैवानों ने मिलकर मारा और उस रात कड़कड़ाती ठंड में मुनिरका की सड़क पर दोनों को निवस्त्र कर फेंक दिया. मौके पर पहुंची पुलिस ने पीड़िता निर्भया और पीड़त दोस्त को तुरंत दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती करवाया.

सिंगापुर में ली निर्भया ने आखिरी सांस

निर्भया की हालत इतनी ज्यादा खराब थी कि उसे आगे के इलाज के लिए देश से बाहर सिंगापुर के माउन्ट एलिजाबेथ अस्पताल में भर्ती कराया गया था. निर्भया के अंदरुनी अंग बुरी तरह से जख्मी हो चुके थे, ऐसे में रोज वो जिंदगी और मौत का सामना करती रही लेकिन फिर घटना के 13 दिन बाद यानी 29 दिसंबर, 2012 की रात करीब सवा दो बजे उसने अपमना दम तोड़ दिया था.

घटना के दो दिनों में दोषियों को किया था गिरफ्तार

निर्भया गैंगरेप और हत्या के मामले में लगभग 80 लोगों को गवाह बनाया गया था. घटना के दो दिन बाद 18 दिसंबर, 2012 को पुलिस ने 6 दोषियों में से 4 दोषियों- राम सिंह, मुकेश, विनय शर्मा और पवन गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया था. वहीं, दिल्ली पुलिस ने 5वें दोषी को 21 दिसंबर, 2012 को गिरफ्तार किया था जोकि नबालिग था. जबकि 6वें दोषी अक्षय ठाकुर को दिल्ली पुलिस ने बिहार से गिरफ्तार किया था.

जेल में बंद आरोपी बस चालक ने की थी आत्महत्या

निर्भया के छह दोषियों में से एक दोषी बस चालक राम सिंह ने 11 मार्च, 2013 को तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी. जबकि एक दोषी घटना के दौरान नबालिग होने के कारण लगभग 3 साल तक बाल सुधार केंद्र में रखा गया था, जिसके बाद उसे छोड़ दिया गया.

7 साल और 3 महीने बाद मिला निर्भया को इंसाफ

इस कांड के बाद हर देशवासी उसी दिन का इंतेजार कर रहा था, जब निर्भया को इंसाफ मिले. निर्भया के साथ दरिंदगी की हदें पार करने वाले हैवानों को फांसी पर चढ़ाया जाए और वो दिन आया 20 मार्च 2020 को. इसी दिन निर्भया के चारों आरोपियों को फांसी दी गई. 20 मार्च के सुबह 5.30 बजे मुकेश, विनय और अक्षय और पवन को तिहाड़ जेल नंबर तीन में फांसी के फंदे पर लटकाया गया था. इस इंसाफ को मिलने में करीब-करीब 8 सालों का वक्त लग गया. 

निर्भया की वकील जिसने पीड़ित परिवार के साथ तय किया संघर्ष का सफ़र, IAS बनने का था सपना

20 मार्च 2020 ही वो दिन था जब निर्भया को 8 सालों के लंबे इंतेजार के बाद इंसाफ मिला. इस दिन ही निर्भया गैंगरेप कांड के चारों आरोपियों को फांसी दी गई थीं. सामाजिक यातनाओं और पीड़ित के परिवार के इस संघर्ष के सफ़र में एक और महिला थी जो हीरो बनकर सामने आई. वो महिला न सिर्फ पीड़ित परिवार के दुःख के घड़ी की हमराही बनी बल्कि इस सफ़र में उनके साथ डट कर खड़ी रही. इस महिला का नाम सीमा कुशवाहा है. वो निर्भया के साथ दरिंदगी के बाद हुए प्रदर्शन में भी शामिल थी. बताया जा रहा है ये उनका पहला केस है.

शुरू से इस मामले से हुई हैं जुड़ी

सीमा कुशवाहा इस मामले से बिलकुल शुरू से जुड़ी हुई हैं. इंडिया गेट, राष्ट्रपति भवन पर जो निर्भया रेप केस के बाद प्रदर्शन हुआ था उसमें सीमा कुशवाहा भी शामिल थी. इसके बाद उन्होंने इस केस को लड़ने की ठान ली थी. उन्होंने सोचा कि वो वकील हैं तो क्यूं न वो इस केस को खुद ही लड़ें. सीमा का कहना है कि अगर वो मामले को फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट, लिस्टिंग के लिए नहीं कोशिश करती तो मामला लटका ही रहता.

दिल्ली यूनिवर्सिटी की रही हैं स्टूडेंट

निर्भया रेप केस के दौरान सीमा ट्रेनी थी. उन्होंने अपनी लॉ की पढ़ाई दिल्ली यूनिवर्सिटी से की है. साथ ही बताया जाता है कि वो निर्भया ज्योति लीगल ट्रस्ट से भी जुड़ी हैं. इस ट्रस्ट को रेप केस में कानूनी सलाह देने के लिए निर्भया के परिवार ने ही बनाया था. इसके अलावा सीमा ने एक इंटरव्यू में इस बात का भी जिक्र किया था कि उनका सपना सिविल परीक्षा देकर IAS बनने का था.

ग्रामीण इलाके से ताल्लुक रखती हैं सीमा

सीमा बताती है कि वो ऐसी जगह से आती हैं जहां लड़कियों को ज्यादा आजादी नहीं है. इसके बावजूद समाज की बेड़ियों से ऊपर उठकर वो वकील बनी. इन सारी परिस्थितियों से गुजरने के बाद अब उन्हें कुछ भी नामुमकिन नहीं लगता. सीमा का कहना है मैं ग्रामीण इलाके से आती हूं जहां लड़कियों को पढ़ाया नहीं जाता. उन्हें अपने हक़ के लिए लड़ना पड़ता है. उन्होंने कहा कि फिलहाल वो रुकेंगी नहीं. उन्होंने देश की और बेटियों को न्याय दिलाने का जिम्मा उठाया है.

ऐसा वकील जिनकी संस्कृत में फर्राटेदार दलीलों के आगे जजों की भी खिसक जाती है हवा

भारत में संस्कृत का हिंदी से भी ऊपर स्थान है. पुराणों और एतिहासिक ग्रंथों में संस्कृत भाषा को उच्च दर्जा मिला हुआ है. इसे देवलोक की भाषा माना जाता है. लेकिन पश्चिमी सभ्यता के देश में पांव पसारने के बाद से ही ये भाषा धीरे धीरे कहीं विलुप्त सी होती दिख रही है. मौजूदा समय में देश में 22 भाषाओं में संस्कृत सबसे कम बोली जाने वाली भाषा है. लेकिन अभी तक देश में इसके वर्चस्व को कायम रखने वाले कई ऐसे लोग जिंदा है. इसी कड़ी में महादेव की नगरी काशी में एक वकील है जो पिछले 42 सालों से संस्कृत में दलीलें दे रहे हैं.

1978 मे छेड़ी थी मुहिम

ये बात आपको भले ही थोड़ी चौकाने वाली लगे पर बिलकुल सच है. वाराणसी के इस वकील का नाम आचार्य श्याम उपाध्याय है. ये देश के इकलौते ऐसे वकील हैं जो अपनी दलील संस्कृत भाषा में देते हैं. कोर्ट में होने वाली सारी गतिविधियां यानि पत्र लिखने से कोर्ट में बहस तक की सभी चीजें वे संस्कृत में ही देते हैं. 1978 में उन्होंने इसकी शुरुआत की थी और तब से अब तक वे अपने इस कदम से पीछे नहीं हटे हैं.

बचपन से ही ठान ली थी बात

इस बारे में मीडिया से बात करते हुए आचार्य श्याम उपाध्याय ने बताया कि उनके पिता ने बचपन में उन्हें बताया था कि कचहरी का सारा कामकाज उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी में ही होता है. इसमें संस्कृत भाषा का कहीं दूर दूर तक प्रयोग नहीं होता. जिसके बाद ही उन्होंने वकील बनकर इस भाषा को न्याय दिलाने की ठान ली थी. उनका कहना है कि अब तक वे हजारों मुक़दमे संस्कृत भाषा में ही लड़ चुके हैं. और जीत भी चुके हैं.

जजों को आती है काफी दिक्कतें

जाहिर है ये भाषा आम नहीं है तो उपाध्याय को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा होगा. इस बारे में किस्से बताते हुए श्याम बताते हैं कि शुरुआती दिनों में तो मुवक्किल के उनके द्वारा लिखे गए कागजात को देखकर जज हैरान हो जाते थे. हालांकि किसी नए जज के आने पर आज भी ऐसा होता है. जज को दलीलें सुनने में कठिनाई होने के चलते उन्हें अनुवादक की मदद लेनी पड़ती है. सिर्फ कोर्ट में ही नहीं वे आम बोलचाल भाषा में भी संस्कृत का ही इस्तेमाल करते हैं. उनकी कोशिश है कि संस्कृत भाषा को भी देश में खासी अहमियत मिलनी चाहिए.

चॉकलेट लवर्स के लिए एक बेहद बुरी खबर! अब बस 10 सालों की मेहमान है चॉकलेट, होने वाला ह...

आपको अपने आसपास ऐसे बहुत कम ही लोग दिखाई देंगे जिन्हें चॉकलेट नहीं पसंद होगी. ऐसे लोगों का मिलना मुश्किल ही नामुमकिन है. मतलब साफ है कि ज्यादातर सभी लोग चॉकलेट खाना पसंद करते हैं. जिस वजह से चॉकलेट की भारत तो क्या पूरी दुनिया में काफी खपत है. 2002 से 2013 तक का डेटा देखें तो चॉकलेट की 1.64 लाख टन की खपत उस दौरान 2.28 लाख टन तक पहुंच चुकी थी. और वर्तमान समय तक अनुमान है कि ये आंकड़ा निश्चित ही बढ़ चुका होगा. ये इजाफा करीब 13% की दर से है. लेकिन आपको ये जानकर काफी दुःख होगा कि अब ये चॉकलेट धीरे धीरे ख़त्म हो रही है और एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब ये आपको कभी टेस्ट करने को न मिले.

ये है मुख्य वजह

दरअसल ऐसा ग्लोबल वार्मिंग के चलते बताया जा रहा है. जैसे जैसे ये ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है, वैसे वैसे इसके ख़त्म होने की आशंका भी तेज होती जा रही है. यूएस नेशनल ओसिएनिक एंड एटमोसफेयरिंक एडमिनिस्ट्रेश की रिपोर्ट के मुताबिक अगले आने वाले 40 सालों में चॉकलेट का नामो-निशां खत्म हो सकता है. क्योंकि चॉकलेट के सोर्स कोको के फलने फूलने के लिए 20 डिग्री से कम तापमान होना जरूरी है. लेकिन बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग के चलते ऐसा आने वाले सालों में असंभव सा दिख रहा है.

चॉकलेट उत्पादन खतरे में

अगर ऐसी ही स्थिति बरकारार रही तो चॉकलेट उत्पादन धीरे धीरे खतरे में पड़ता चला जाएगा. इससे आने वाले सालों में चॉकलेट मैन्युफैक्चरर्स को काफी नुकसान होने की उम्मीद है. ये सब बढ़ते प्रदूषण, आबादी और बदलते भौगोलिक समीकरणों के चलते हो रहा है और आने वाले 30 सालों में धरती का तापमान करीब 2.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की संभावना है. इसका सबसे बड़ा असर चॉकलेट पर पड़ेगा. विशेषज्ञों का मानना है कि चॉकलेट इंडस्ट्री के पास बड़ी मुश्किल से 10 साल बचे हैं. उसके बाद ये सारा धंधा चौपट हो जायेगा. अगर अच्छी बारिश होती है तो इससे जलस्तर सुधरेगा और बढ़ते तापमान पर लगाम लगेगी.

कहां सर्वाधिक उगाई जाती है कोको

  1. कोटे डी’आइवर- 201 करोड़ किग्रा
  2. घाना – 17.9 करोड़ किग्रा
  3. इंडोनेशिया- 29 करोड़ किग्रा
  4. इक्वाडोर- 27 करोड़ किग्रा
  5. कैमरून- 24 करोड़ किग्रा
  6. नाइजीरिया- 22.5 करोड़ किग्रा
  7. ब्राजील- 18 करोड़ किग्रा
  8. पापुआ न्यू गिनी- 04 करोड़ किग्रा

ये आंकड़े 2016-17 के हैं. इनका स्त्रोत स्टैटिस्टा है.

लाल किले हिंसा के बाद फरार, एक लाख का इनाम और अब गिरफ्तारी…कुछ यूं पुलिस के हत्...

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दिल्ली में ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा के बाद से ही पंजाबी एक्टर दीप सिद्धू फरार चल रहा था। अब इस मामले में करीबन 15 दिनों में पुलिस को आखिरकार कामयाबी हाथ लग ही गई है। दीप सिद्धू पुलिस के शिकंजे में आ गया। पंजाब के जिरकपुर से दीप सिद्धू को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने गिरफ्तार किया है।

लाल किले हिंसा के बाद आरोपों के घेरे में

रिपब्लिक डे के दिन लाल किले पर जो भी घटना घटी, उस दौरान दीप सिद्धू भी मौजूद था। जिसके बाद से ही वो कई तरह के आरोपों के घेरे में आ गया। दीप सिद्धू को पकड़ने की कोशिश में पुलिस लगातार कर रही थी। उस पर एक लाख रुपये का इनाम भी घोषित किया गया। वो पुलिस को लगातार चकमा देता हुआ नजर आ रहा था। अब वो आखिरकार स्पेशल सेल के हत्थे चढ़ गया।

पुलिस को यूं चकमा दे रहा था दीप सिद्धू

दीप सिद्धू गणतंत्र दिवस हिंसा के बाद से ही फरार चल रहा था, लेकिन वो फिर भी सोशल मीडिया पर एक्टिव था और उसने कई बार वीडियोज अपलोड कर अपनी बातें रखीं। जिसके चलते ये सवाल लगातार उठ रहे थे कि जब दीप सिद्धू फेसबुक पर लगातार वीडियोज अपलोड कर रहा है, तो पुलिस उसे पकड़ क्यों नहीं पा रही?

जिसके बाद पुलिस की ओर से ये दावा किया गया कि सोशल मीडिया पर वीडियो अपलोड करने के लिए दीप सिद्धू अपनी एक विदेश में बैठी महिला मित्र की मदद ले रहा है। पुलिस ने ये दावा किया था कि पंजाबी सिंगर दीप सिद्धू जो भी वीडियोज फेसबुक या फिर दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर डाल रहा है, उसमें उसकी मदद एक महिला दोस्त ने की। जिसके चलते वो लगातार पुलिस को चकमा देने में कामयाब हो पा रहा था।

NIA भेज चुकी है नोटिस

दीप सिद्धू को पकड़ने की कोशिश करने के लिए पुलिस पंजाब में लगातार दबिश दे रही थीं। पंजाबी एक्टर लगातार वीडियोज अपलोड करके खुद को निर्दोष बताता हुआ नजर आ रहा था। दीप किसान आंदोलन को लेकर बीते 2 महीनों से एक्टिव था। कुछ दिन पहले ही दीप सिद्धू को खालिस्तानी समर्थक सिख फॉर जस्टिस (SFJ) संगठन के साथ रिश्तों को लेकर NIA ने नोटिस भी भेजा था।

गौरतलब है कि गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली में हिंसा करने वालेे उपद्रवियों की तलाश में लगातार पुलिस जुटी हुई है। बीते हफ्ते ही दीप सिद्धू समेत जुगराज सिंह, गुरजोत सिंह और गुरजंत सिंह पर एक लाख रुपये का इनाम घोषित किया था। वहीं जजबीर सिंह, बूटा सिंह, सुखदेव सिंह और इकबाल सिंह पर 50 हजार रुपये का इनाम रखा गया। दो दिन पहले ही चंडीगढ़ से पुलिस ने सुखदेव सिंह को गिरफ्तार किया था।