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Hyundai और Uber कर रहे हैं उड़ने वाली कार पर काम, एक बार में होंगे चार यात्री सवार!

सड़कों पर आपने कई तरह-तरह की कार देखी होगी, जिनके होने से ट्रैफिक की समस्या भी बढ़ी रहती है. वहीं, जमीन पर बढ़ते ट्रैफिक को लेकर कई ऐसी भी खबर सामने आती रहती है कि दुनिया में उड़ने वाली कार जल्द लॉन्च होने वाली है, अब इस खबर पर मुहोर लगाने के लिए जानी-मानी ऑटोमोबाइल्स कंपनी हुंडई मोटर ने उड़ने वाली कार बनाने का ऐलान किया है. इस उड़ने वाली कार को बनाने के लिए हुंडई ने राइड-शेयरिंग सर्विस उबर के साथ साझेदारी की है.

उबर की पहल में सहयोग देने वाली पहली कंपनी

बताया जा रहा है कि इन फलाइंग कारों का इस्तेमाल उबर की फ्लाइंग टैक्सी सर्विस में किया जाएगा, इसे कंपनी द्वारा साल 2023 में शुरू किया जा सकता है. आपको बता दें कि ऑटो कंपनियों में हुंडई पहली ऐसी कंपनी जिसने उड़ने वाली उबर की पहल में सहयोग दिया है.

एक बार में चार यात्री होंगे सवार

उम्मीद है कि साल 2023 से लोग फ्लाइंग कार का इस्तेमाल कर पाएंगे, जो 100 किलोमीटर तक की दूरी तय करेगी. ये फ्लाइंग टैक्सी एक बार में 4 यात्रियों को 100 किलोमीटर की यात्रा करवाने में मददगार साबित होगी.

आपको बता दें कि उबर के साथ मिलकर हुंडई ने पर्सनल एयर व्हीकल मॉडल, S-A1 को लेकर काम कर रही है, जिसमें आसमान की दिशा में ऊंचा उड़ाने वाली इनोवेटिव डिजाइन प्रोसेस पर काम किया जा रहा है.

NASA से प्रेरित डिजाइन

हुंडई का ये उड़ने वाला कार कॉन्सेप्ट नासा से प्रेरित होकर डिजाइनिंग किया गया है, इसे अन्य निर्माता कंपनियां भी इस्तेमाल कर पाएंगे. इसकी मदद से अन्य कंपनियां भी अपने एयर टैक्सी मॉडल और इंजीनियरिंग की तकनीक में इसका प्रयोग कर सकते हैं.

ध्यान देने वाली बात तो ये है कि लास वेगस में चल रहे कन्ज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स शो(CES 2020) में हुंडई ने अपनी उड़ने वाली कार कॉन्सेप्ट लॉन किया है. कंपनी के मुताबिक ये उड़ने वाली कार वर्टिकल टेक-ऑफ और लैंडिंग करने में सक्षम है. जमीन से ऊपर की ओर 1,000-2,000 फीट की ऊंचाई पर इस फ्लाइंग कार की क्रूजिंग स्पीड 290 किलोमीटर प्रति घंटा है.

हुंडई ने कहा कि शुरुआत में इस फ्लाइंग कार को उड़ाने के लिए पायलट होंगे, लेकिन बाद में कंपनी इसे पूरी तरह से ऑटोमैटिक बना देगी. S-A1 फ्लाइंग टैक्सी 100 किलोमीटर की दूरी का सफर तय करने में सक्षम होगी. इसके अलावा पीक टाइम में ये पांच से सात मिनट में रिचार्ज हो जाएगी.

इस कार को फ्रेम के चारों ओर लगे कई छोटे-छोटे प्रोपेलर से चलाया जाएगा. हुंडई का कहना है कि ये लेआउट एक बड़े हेलिकॉप्टर रोटर से काफी कम शोर करता है. इसके साथ ही सुरक्षा के नजरिये से भी अच्छा है.

आपको बता दें कि सबसे पहल हुंडई की सहयाता से उबर सर्विस की शुरुआत मेलबर्न,लॉस एंजेलिस और डलास में की जाएगी. इसी साल से इन फ्लाइंग टैक्सी सर्विस का ट्रायल होगा और इसका कमर्शियल ऑपरेशन्स शुरू करने का लक्ष्य साल 2023 में है.

17 साल की उम्र में फरहान अख्तर ने असिस्टेंट डायरेक्टर पर किया था काम, ऐसे मिली बॉलीवु...

मल्टी टैलेंटेड फरहान अख्तर आज अपना 47वां जन्मदिन मना रहे हैं. फरहान अख्तर को बॉलीवुड का ऑलराउंडर कहा जाता है. दमदार एक्टर होने के साथ-साथ फरहान एक बेहतरीन डायरेक्टर, प्रोड्यूसर, राइटर, प्लबैक सिंगर भी हैं. फरहान ने अपने काम में खुद को साबित करके दिखाया है. फरहान अख्तर ने अपनी मेहनत के बल पर वो मुकाम हासिल कर लिया है, जो हर कोई नहीं कर पाता

वैसे फरहान खान अपने बर्थडे को अकेले नहीं मनाते. इस दिन उनकी कजिन बहन और बॉलीवुड की फेमस डायरेक्टर फराह खान का भी बर्थडे होता है. आज फराह खान 55 साल की पूरी हो गईं है. वैसे इन सबके अलावा फरहान अख्तर अपने रिलेशनशिप को लेकर खूब सुर्खियों में रहते हैं. पत्नी से तलाक हो जाने के बाद फरहान शिबानी दांडेकर को डेट कर रहे है. दोनों को साथ में कई बार देखा गया है और माना जा रहा है कि फरहान और शिबानी जल्द ही शादी के बंधन में भी बंद सकते हैं. फरहान के इस खास पर आइए आपको उनके जुड़ी कुछ खास बातें बताते हैं…

फिल्मी बैकग्राउंड से हैं नाता…

अब ट्रेनों में यात्री जल्द सुन व देख सकेंगे मनपसंदीदा गाने और फिल्में, कोहरे से बचने ...

“रेल गाड़ी” ये ज्यादातर यात्रियों के लिए एक आरामदायक सफर करने वाला वाहन होने के साथ ही बेहद सस्ता भी माना जाता है. ऐसे में भारतीय रेलवे भी अपने ग्राहकों को तरह-तरह की सुविधा प्रदान करता रहता है. वहीं, एक बार फिर अपने ग्राहकों को ध्यान में रखते हुए रेलवे ने यात्रियों के लिए मनपसंद फिल्म देख और गाने सुनने जैसी सुविधा को जल्द लाने का फैसला लिया है. जिसके चलते जल्द ही राजधानी, शताब्दी और दूरंताे जैसी प्रीमियम ट्रेनाें में सफर करने वाले यात्री अपने मनपसंद फिल्म देख और गाने सुन सकेंगे.

ट्रेनों में ऑन डिमांड कंटेंट की सुविधा को अप्रैल से शुरू किया जाएगा, जोकि बिल्कुल मुफ्त रहेगा. वहीं, इससे भारतीय रेलवे विज्ञापनाें से कमाई भी करेगा. वहीं, दूसरी तरफ रेलवे सर्दी में होने वाले कोहरे में ट्रेनों की लेटलतीफी की समस्या को खत्म करने हेतु अब नए फॉग विजन डिवाइस का ट्रायल कर रहा है. ऐसे में अगर ये ट्रायल सफल रहा तो इस डिवाइस को 20 जनवरी के बाद 25 ट्रेनों के इंजन में लगाया जाएगा.

भारतीय रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वीके यादव ने कहा कि इसके लिए टेंडर जारी हो चुके हैं और बहुत जल्द कंटेंट प्राेवाइडर भी तय कर दिए जाएंगे. ये ट्रेनाें में हॉट स्पॉट लगाएंगे, जिसके चलते यात्रियों के मोबाइल, आईपैड, लैपटॉप आदि हॉट स्पॉट से कनेक्ट होंगे. इस दौरान यात्रियाें काे एक एप डाउनलाेड करना हाेगा. जिससे वो अपने मनपसंदीदा फिल्म या गाने सुन सकेंगे.

किन ट्रेनों में ये सुविधा, रेलवे कैसे कमाई करेगा?

शुरुआत में भारतीय रेलवे ने इस सुविधा को राजधानी, शताब्दी, दूरंतो, वंदे में उपलब्ध करेगा. इसके बाद इस सुविधा को लंबी दूरी की प्रमुख ट्रेनों में शुरू किया जाएगा. वहीं, इस सुविधा को कम दूरी और पैसेंजर ट्रेनों में नहीं प्रदान किया जाएगा. कंटेंट में कुछ भाग सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार का होगा तो कुछ प्रावेट कंपनी के विज्ञापनों का होगा. इनमें सबसे ज्यादा भाग ऑन डिमांड कंटेंट का होगा. इसके बदले कंपनी रेलवे को पैसे भी देगी. इससे यात्रियों और रेलवे दोनों को लाभ होगा.

फॉग विजन डिवाइस के ट्रायल रिजल्ट बेहतरीन

फॉग विजन डिवाइस को लखनऊ की रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन ने बनाया है. इस डिवाइस से दिल्ली से शुरू होने वाली ट्रेनों के इंजनों पर ट्रायल किया जा रहा है. जिसके चलते रोजाना डिवाइस का डाटा लिया जा रहा है और इसमें अब तक रिजल्ट बहुत अच्छे मिले हैं.

ये डिवाइस क्यों है अच्छी

आपको बता दें कि फॉग सेफ डिवाइस जीपीएस के जरिए चलती है. इसमें सिर्फ सिग्नल के लोकेशन की जानकारी प्राप्त होती है, लेकिन नई डिवाइस में इंफ्रारेड टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की वजह से ट्रैक आसानी से दिखता है. वहीं, बता दें कि इस डिवाइस को सबसे पहले शताब्दी में लगाया जाएगा, क्योंकि ये कोहरे के चलते सबसे अधिक प्रभावित ट्रेनों में शामिल है.

भारत के सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत बने देश के पहले सीडीएस, जानिए इसमें क्या होगी भूम...

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भारत के सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत आज यानि कि 31 दिसंबर, मंगलवार को रिटायर हो गए. 31 दिसंबर को ही ये चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पदभार ग्रहण करने जा रहे हैं, जिसके बाद ये देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ(CDS) होंगे.

आपको बता दें कि इसी साल यानी 2019 में देश के पीएम नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से देश की 3 सेनाओं में तालमेल को और अच्छा बनाने के लिए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ यानि कि CDS का नया पद बनाने की घोषणा की थी ऐलान किया था. जिसके बाद से सबसे सीनियर मिलिट्री कमांडर होने के कारण सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत को लेकर ये कयास लगाया जा रहा था कि वो देश के पहले CDS बनेंगे.

भारतीय सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत सेनाध्यक्ष के रूप में अपना तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा करके 31 दिसंबर को रिटायर हो गए हैं, इसके बाद वो चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पद संभालेंगे. जिसके चलते वो 3 साल तक तक चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) के पद पर रहेंगे.

CDS की क्या होगी भूमिका

तीनों सेनाओं में तालमेल को और अच्छे बनाने हेतु जल्दी ही सैन्य मामलों का विभाग(Department Of Military Affairs) का गठन किया जाए, जोकि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ(CDS) की सबसे अहम जिम्मेदारी होगी. इसके चीफ सीडीएस होंगे.

वहीं, CDS की दूसरी भूमिका चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के स्थायी अध्यक्ष की होगी. इसमें सशस्त्र सेनाओं के ऑपरेशंस में आपसी तालमेल और इसके लिए वित्त प्रबंधन की होगी.

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ तीनों सेनाओं से जुड़े मुद्दों को लेकर रक्षा मंत्री के प्रिसिंपल मिलिट्री एडवाइजर भी होंगे. इसमें सीडीएस सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों के जैसे ही 4 स्टार वाले ऑफिसर होंगे, मगर प्रोटोकॉल में आगे होंगे.

भविष्य में कोई सरकारी पद नहीं

सूत्रों के अनुसार, सीडीएस के पास तीनों सेनाओं के प्रशासनिक मुद्दों को लेकर निर्णय लेने की शक्ति होगी, हालांकि वो किसी तरह की कोई मिलिट्री कमांड नहीं दे पाएंगे. इसमें सबसे जरूरी बात सीडीएस के लिए ये होगी कि इस पद पर होने के बाद वो किसी सरकारी पद पर नहीं रह पाएंगे.

इस पद की क्यों पड़ी जरूरत

कारगिल युद्ध के बाद साल 2001 में तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में बनी ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स की समीक्षा गई तो उसमें तीनों सेना के बीच तालमेल में कमी पाई गई. अगर तीनों सेनाओं के बीच का तालमेल अच्छा होता तो कारगिल युद्ध के दौरान नुकसान को कम किया जा सकता था.

उस दौरान सीडीएस का पद बनाने को लेकर सुझाव दिया गया था, लेकिन उस वक्त राजनीतिक सहमति न होने के कारण ये कार्य पूर्ण न हो सका था. वो बात अलग है कि अब इसे मोदी सरकार ने पूरा कर CDS की जिम्मेदारियां तय करने के बाद चीफ का ऐलान भी कर दिया है.

रक्षा मंत्रालय ने बदले नियम

केंद्र सरकार की तरफ से जनरल बिपिन रावत को भारत के पहले CDS के तौर पर नियुक्त करने की मंशा जाहिर होने के बाद रक्षा मंत्रालय द्वारा सेना नियमों, 1954 में कार्यकाल और सेवा के नियमों में बदलाव किया गया. 28 दिसंबर, शनिवार की रक्षा मंत्रालय ने अपनी अधिसूचना में कहा कि सीडीएस या ट्राई-सर्विसेज प्रमुख 65 साल की आयु तक सेवा दे सकेंगे. जिसके चलते 62 साल के जनरल बिपिन रावत सीडीएस के तौर पर 65 साल की उम्र तक रहेंगे.

CDS वाला भारत पहला देश नहीं

आपको बता दें कि दुनिया में कई अन्य देश भी हैं जहां सीडीएस व्यवस्था पहले से ही है. नॉर्थ अटलांटिक ट्रिटी ऑर्गेनाइजेशन(NATO) के 29 देशों में ऐसे कई देश हैं जहां इस व्यवस्था में अपनी सेनाओं के सर्वोच्च पद पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ नियुक्त किया गया हैं. जिनकी शक्तियां देश के सशस्त्र बल में काफी अधिक होती हैं. बता दें कि इटली,यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस समेत लगभग 10 देशों में सीडीएस की व्यवस्था रही है, जिसमें अब भारत का नाम भी शामिल हो गया है. यूं तो सभी देश अपने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ को विभन्न शक्तियां प्रदान करता है.

जानिए झारखंड में तीन बार रहे मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन से जुड़ी ये ख...

झारखंड चुनाव 2019 के नतीजे से ये लगभग तय हो गया है कि 3 बार के मुख्यमंत्री रहे शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन राज्य के अगले मुख्यमंत्री होंगे. झारखंड के बेहद कद्दावर राजनीतिक इस परिवार के बहुत से रोचक किस्से हैं, तो आइए आपको हेमंत सोरेन के पारिवारिक और राजनैतिक सफर समेत उन किस्सों के बारे में बताते हैं…

हेमंत सोरेन के पिता शिबू सोरेन को अपना राजनीतिक सफर हार से शुरू करना पड़ा तो वहीं, बेटा हेमंत सोरेन ने राजनीतिक करियर की पारी छात्र जीवन से ही शुरू की. इनके पिता शिबू सोरेन ने साल 1977 में पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन उस दौरान उन्हें हार मिली. साल 1980 में वो पहली बार लोकसभा सांसद चुने गए. इसके बाद 1989, 1991 और 1996 में इन्होंने लोकसभा चुनाव जीते. वहीं अगर बात करें हेमंत सोरेन की तो इनका भी पहला चुनाव अच्छा नहीं रहा था, साल 2005 में दुमका सीट पर वो 3 नंबर पर रहे थे.

उपमुख्यमंत्री भी रह चुके हैं हेमंत

10 अगस्त 1975 को रामगढ़ जिले के सुदूर नेमरा गांव में जन्में हेमंत सोरेन ने झारखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर साल 2013 के 13 जुलाई को शपथ ली थी. इससे पहले साल 2010 में बीजेपी के अर्जुन मुंडा की सरकार में ये उपमुख्यमंत्री के पद पर भी रह चुके थे.

हेमंत सोरेन का परिवार और राजनीतिक जीवन

हेमंत सोरेन के बड़े भाई और जामा से विधायक रहे दुर्गा सोरेन का निधन हो चुका है. ये साल 1995 से 2005 तक जामा से विधायक रहे थे. वहीं, अब दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन जामा से विधायक हैं. हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन निजी स्कूल की संचालन है. इनके दो बेटे निखिल और अंश हैं. हेमंत की एक बहन अंजली है, जिनकी शादी हो चुकी है. हेमंत की मां रूपी सोरेन चाहती थीं कि वो इंजीनियर बने लेकिन उन्होंने 12वीं कक्षा तक ही पढ़ाई की. हेमंत ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए दाखिला तो लिया लेकिन उन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी.

राज्यसभा से दे दिया इस्तीफा

हेमंत सोरेन साल 2003 में छात्र मोर्चा की राजनीति की शुरुआत की, जिसके बाद वो आगे बढ़ते ही गए. साल 2009 में हेमंत सोरेन राज्यसभा के सदस्य चुने गए. विधानसभा चुनाव 2009 में संथाल परगना के दुमका सीट से जीत हासिल की और राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया. 28 साल की उम्र में हेमंत सोरेन ने झारखंड के मुख्यमंत्री बने.

क्या गरमा-गर्म खाने से आपकी भी जल जाती है जीभ? तो तुरंत राहत पाने के लिए जरूर अपनाएं ...

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तेज गर्म चाय की चुस्की हो या कोई गरमा-गर्म भोजन देखने में कितनी भी अच्छा क्यों न लगता हो अगर तेज गर्म में ही इसका स्वाद चकने का इरादा बना लिया जाए तो जीभ जलने का भी खतरा होता है. वहीं, अगर जीभ चल जाती है तो स्वादिष्ट भोजन के स्वाद का भी पता नहीं चलता है. जलन और दर्द होने के साथ ही न कुछ खाया जाता है ना ही पीया. आज हम आपके लिए कुछ ऐसे खास नुस्खे लेकर आए हैं, जिन्हें अपनाने से आपको अपनी जली हुई जीभ में आराम मिलेगा और ये 24 घंटे में सही हो जाएगी.

देसी घी

गर्म खाने की वजह से अगर आपकी जीभ जल जाती है तो ऐसे में बेहतर होगा कि सबसे पहले अपनी जीभ पर थोड़ा सा देसी घी अच्छे से लगा लें. ऐसा करने से आपको अपनी जली हुई जीभ में आराम मिलेगा. इसके साथ घी की मदद से जीभ का घाव भी जल्द ही सही हो जाएगा.

शहद खाएं

शहद में एंटीबायोटिक और एंटीबैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं, जिससे हर तरह के घाव भरने में मदद मिलती है. ये ही कारण है अगर आप अपनी जली जीभ शहद लगाने के साथ ही उसे खाएंगे तो जल्द ही आपकी जली जीभ सही हो जाएगी. घाव भरने के साथ ही दर्द से भी आराम मिल जाएगा.

मीठी चीज खाएं

मीठी चीज जैसे गुड़ या चीनी का सेवन करने से भी जली जीभ में राहत मिलती है. इसलिए अगर आपकी गर्म खाने से कभी आपकी जीभ जल जाए तो सबसे पहले चीनी या गुड़ को थोड़ी देर के लिए जीभ पर रख लें. इसकी मदद से जीभ का घाव एकदम सही हो जाएगा.

दही का सेवन

दही का सेवन करने से भी जली जीभ को आराम मिलता है. इसलिए अगर जीभ जलने की वदह से दर्द और जलन होने पर थोड़ा सी दही अपने जीभ पर रख लें. इस तरह से आपकी जीभ को ठंडक तो मिलेगी ही इसके अलावा जला हुआ भाग ठीक हो जाएगा.

टूथपेस्ट लगाएं

अगर आपकी जीभ गर्म खाने की वजह से जल जाती है तो ऐसे में आप जीभ पर टूथपेस्ट भी लगा सकते हैं. केवल 10 मिनट तक जीभ पर टूथपेस्ट लगाए रखने से जले का घाव सही हो जाएगा.

जानिए क्या है नागरिकता संशोधन बिल (CAB) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) में अंतर?

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देशभर में नागरिकता संशोधन बिल और एनआरसी का काफी नाम चर्चाओं में है. इसे लेकर कई देश में प्रदर्शन हो रहे हैं. नागरिकता कानून के विरुद्ध पूर्वोत्तर भारत के असम से विरोध प्रदर्शन की शुरुआत हुई. जिसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी और सीलमपुर इलाके में काफी जबरदस्त प्रदर्शन हुए.

वहीं, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ देश के कई राज्य में हो रहे हिंसक प्रदर्शनों को दुर्भाग्यपूर्ण और बहुत निराशाजनक करार दिया. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि किसी भी भारतीय को नागरिकता कानून से नुकसान नहीं होगा. आइए आपको विस्तार से समझते हैं कि नागरिकता संशोधन बिल (CAB) और भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर(NRC) क्या है, इन दोनों में क्या अंतर है और देश में इस मुद्दे पर उबाल क्यों है?

नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) क्या है?

नागरिकता संशोधन विधेयक नागरिकता अधिनियम (Citizenship Act) 1955 में बदलाव करेगा. इस विधेयक के तहत अब बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान से आए हुए हिंदू,सिख,ईसाई,बौद्ध,जैन,पारसी शरणार्थीयों को भारत की नागरिकता प्राप्त करने में आसानी होगी, जो अभी तक ये सब अवैध शरणार्थी माने जाते थे. बता दें कि संसद में CAB पास होने और राष्ट्रपति की महुर लगने के बाद नागरिक संशोधन कानून (CAA) बन गया है.

CAB बिल में कौन से धर्म शामिल हैं?

नागरिकता संशोधन बिल में हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन धर्म से जुड़े अल्पसंख्यक मौजूद हैं. इस विधेयक के अनुसार 31 दिसंबर, 2014 तक धर्म के आधार को लेकर प्रताड़ना के चलते बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए धार्मिक अल्पसंख्यक लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी.

पिछला नागरिकता मानदंड क्या थे?

भारत की नागरिकता लेने के लिए पहले 11 साल तक भारत में रहना अनिवार्य था, लेकिन अब इस अवधि को घटा दिया गया है. नए विधेयक के मुताबिक पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यक अगर 5 साल से भी भारत में रहे हों तो उन्हें भारत की नागरिकता दी जा सकती है.

एनआरसी(NRC) क्या है?

राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) असम में अधिवासित सभी नागरिकों की एक सूची है. वर्तमान में राज्य के अंदर वास्तविक नागरिकों को बनाए रखने और बांग्लादेश से अवैध तौर पर प्रवासियों को बाहर निकालने के लिए चालू किया जा रहा है. इसे साल 1951 में पहली बार तैयार किया गया था. हाल ही में NRC प्रक्रिया असम में पूरी हुई.  वो बात अलग है कि संसद में नवंबर 2019 में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने ऐलान किया कि एनआरसी पूरे देश में लागू किया जाएगा.

NRC के तहत पात्रता मानदंड क्या है?

भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की वर्तमान सूची में शामिल होने हेतु व्यक्ति के परिजनों का नाम साल 1951 में बने पहले नागरिकता रजिस्टर में या फिर 24 मार्च 1971 तक की चुनाव सूची में होना आनिवार्य है.

वहीं, अगर बात करें दस्तावेजों की तो इसके लिए जन्म प्रमाणपत्र, भूमि और किरायेदारी के रिकॉर्ड, शरणार्थी पंजीकरण प्रमाणपत्र, स्थायी आवास प्रमाणपत्र, नागरिकता प्रमाणपत्र,सरकार द्वारा जारी लाइसेंस या प्रमाणपत्र, पासपोर्ट, एलआईसी पॉलिसी, सरकारी नौकरी का प्रमाण पत्र, बैंक या पोस्ट ऑफिस खाता, शैक्षिक प्रमाण पत्र और अदालती रिकॉर्ड होना चाहिए.

इस मशहूर जेल में तैयार किए जा रहे 10 फंदे, जानिए किस तरह से बनाए जाते हैं फांसी के फं...

“फांसी का फंदा” ये कोई आम फंदा नहीं होता, हद से ज्यादा बड़ा गुनाहा करने वाले अपराधी को इस फंदे से लटकाया जाता है. कई तरह की जांच करने के बाद जब अपराधी का गुनाहा सीध हो जाता है तब जाकर कहीं अदालत अपराधी को मौत की सजा सुनाती है, जिसके बाद उसे फांसी पर लटकाया जाता है. वहीं, फंसी पर लटकाने वाला जल्लाद जिस फंदे से अपराधी को लटकाता है, वो फांसी का फंदा तैयार करना कोई आसान काम नहीं है. आज हम आपको इसी के बारे में बताने जा रहे हैं कि किस तरह से एक फांसी का फंदा तैयार किया जाता है, तो आइए जानते हैं…

ये जेल है प्रसिद्ध

आपको बता दें कि पूरे देश में फांसी का फंदा बनाने के लिए बिहार का बक्सर जेल काफी प्रसिद्ध है. वहीं, इस हफ्ते के अंत तक बक्सर जेल में फांसी के 10 फंदे तैयार करने का निर्देश दिया गया है.

10 फंदे तैयार करने का कार्य जारी

सोमवार, 09 दिसंबर को बक्सर जेल के अधीक्षक विजय कुमार अरोड़ा ने बताया कि “हमें पिछले हफ्ते जेल निदेशालय से फांसी के दस फंदे तैयार करने के निर्देश मिले थे. हमें नहीं पता कि इन फंदों का प्रयोग कहां होगा. हालांकि 4 से 5 फंदे बनकर तैयार हो गए हैं.”

अफजल गुरु के लिए फंदे

संसद हमले के मामले में दोषी पाए गए अफजल गुरु को मौत की सजा के लिए जिस रस्सी के फंदे का प्रयोग किया गया था, उस फांसी के फंदे को बक्सर जेल में ही तैयार किया गया था, ये जेल फांसी के फंदे बनाने में दक्षता के लिए देशभर में प्रसिद्ध है. वहीं, बक्सर जेल के अधीक्षक विजय कुमार अरोड़ा ने बताया कि अपराधी अफजल गुरु को मौत की सजा के लिए यहां से ही बने फंदे का प्रयोग किया था या नहीं, इसका उन्हें नहीं पता है लेकिन उन्हें केवल ये ही याद है कि उस वक्त भी यहां से ही रस्सी के फंदे बनवाकर मंगाए गए थे.

निगरानी में तैयार होते हैं फंदे

फांसी के फंदे तैयार करने के लिए बक्सर जेल का इतिहास बहुत पुराना है. बता दें कि फांसी के फंदे तैयार करने के लिए एक खास तरह के धागों का प्रयोग किया जाता है. इस बनाने के लिए कैदियों को लगाया जाता है, जिनकी निगरानी दक्ष लोगों द्वारा की जाती है. इन्ही की निगरानी में फांसी के फंदे तैयार किए जाते हैं और जिस जगह जरूरत होती है, वहां पर भेज दिए जाते हैं.

बढ़ गया धागों का मूल्य

जेल अधीक्षक अरोड़ा का कहना है कि पिछली बार जिस रस्सी के इस्तेमाल से फांसी का फंदा तैयार किया गया था, उसे 1725 रुपये की कीमत पर बेचा गया था. उन्होंने आगे कहा कि बढ़ती महंगाई और इसमें प्रयोग होने वाले धागों का मूल्य बढ़ा है, जिसके चलते इस बार फंदे वाली रस्सियों की दर थोड़ी बढ़ सकती हैं.

कैसे बनता है फंदा

फांसी के फंदे को किस तरह से बनाया जाता है उसके बारे में जेल अधीक्षक अरोड़ा ने बताया कि “बक्सर जेल में लंबे वक्त से फांसी के फंदे बनाए जाते हैं, एक फांसी का फंदा 7200 कच्चे धागों से बनता है. एक लट में लगभग 154 धागे होते हैं, जिन्हें मिलाकर 7200 धागों का कर लिया जाता है. एक रस्सी को तैयार करने में 3 से 4 दिनों का समय लगता है, जिसे बनाने के लिए 5 से 6 कैदी काम करते हैं. इसे तैयार करने में थोड़ा मशीन का भी इस्तेमाल किया जाता है.”

क्या है रस्सी की विशेषता

इस फांसी के फंदे की विशेषता के बारे में जेल अधीक्षक का कहना है कि ये रस्सी अन्य रस्सियों की तुलना से काफी मुलायम रहती है, जो लगभग 150 किलोग्राम वजन उठाने की क्षमता रखती है.

वाडा ने रूस को 4 साल के लिए किया आउट! नहीं खेल पाएंगे टोक्यो ओलंपिक और फुटबॉल वर्ल्ड ...

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वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) ने सोमवार को रूस को 4 साल के लिए टोक्यो ओलंपिक 2020 और बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक 2022 की खेल प्रतियोगिताओं से बाहर कर दिया है। 4 साल के बैन के बाद अब रूस किसी भी प्रकार के मुख्य खेल आयोजनों में हिस्सा नहीं ले पायेगा। साथ ही आगामी टोक्यो ओलम्पिक 2020 और क़तर में होने वाले फुटबॉल वर्ल्ड कप 2022 से बाहर होना रूस के लिए काफी घातक साबित हो सकता है। वाडा के इस कड़े निर्णय के बाद रूस की फुटबॉल टीम के लिए अगले 4 साल का करियर अंधेरे में जाता दिख रहा है।

वाडा ने लगाया ये आरोप 

वाडा ने रूस पर एक एंटी डोपिंग प्रयोगशाला से गलत आंकड़े देने के आरोप लगाए हैं। और इसी के रूस को 4 साल के लिए मुख्य हिस्सों में भाग लेने से बैन कर दिया। वाडा के एक प्रवक्ता के मुताबिक,”सिफारिशों की पूरी सूची सर्वसम्मति से स्वीकार कर ली गयी है। वाडा कार्यकारी समिति ने सर्वसम्मति से स्वीकार किया कि रूसी डोपिंगरोधी एजेंसी ने चार साल तक नियमों का पालन नहीं किया।”

21 दिन के भीतर अपील कर सकता है रूस 

रूस के पास वाडा के इस बैन के खिलाफ अपील करने के लिए सिर्फ अगले 21 दिन हैं। अगर रूस अपील करता है तो ये मामला कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स (CAS) को भेजा जाएगा। वाडा ने रूस के प्रति काफी कड़ा सख्त रवैया अपना है। वाडा के उपाध्यक्ष लिंडा हेलेलैंड ने कहा, ‘रूस पर यह बैन प्रर्याप्त नहीं है।’बता दें कि वाडा की लुसाने में कार्यकारी समिति की बैठक में यह फैसला किया गया।

क्लीन चिट खिलाड़ियों को मिलेगी राहत 

वाडा के एक प्रवक्ता के मुताबिक भले ही रूस पर ये प्रतिबंध लगा हो, लेकिन वो खिलाड़ी जिन्हें डोपिंग में क्लीन चिट मिल जायेगी, वे न्यूट्रल फ्लैग के खेलों में हिस्सा ले सकेंगे। लेकिन ऐसा तभी संभव होगा जबकि वे यह साबित करेंगे कि वे डोपिंग की उस व्यवस्था का हिस्सा नहीं थे जिसे वाडा सरकार प्रायोजित मानता है।फिट्जगेराल्ड ने कहा, ‘‘उन्हें यह साबित करना होगा कि वे रूसी डोपिंग कार्यक्रम का हिस्सा नहीं थे जैसा कि मैकलारेन रिपोर्ट में कहा गया है या उनके नमूनों में हेराफेरी नहीं की गयी थी।’’

बता दें साल 2016 में जारी की गई मैकलारेन रिपोर्ट में रूस में विशेषकर 2011 से 2015 तक सरकार प्रायोजित डोपिंग का खुलासा किया गया था।

हैदराबाद रेप मर्डर के दरिंदों का क्राइम सीन रिक्रिएशन के वक़्त हुआ था शूटआउट, जानें क्...

हैदराबाद में 27 नवंबर को हुए गैंगरेप के बाद महिला डॉक्टर की निर्मम हत्या की रातों रात हुई सनसनीखेज वारदात ने पूरे देशवासियों के रोंगटे खड़े कर दिए। इस घटना ने लोगों के दिलों में इतनी गहरी छाप छोड़ी कि सोशल मीडिया पर उन चार दरिंदों को सूली पर लटकाने की मांग तेज होती गई। और नतीजन आज यानि शुक्रवार को हत्या के चारों आरोपी पुलिस एनकाउंटर में ढेर कर दिए गए। पुलिस की मानें, तो उन्हें क्राइम सीन रीक्रिएट करने के देर रात घटनास्थल पर ले जाया गया था। जहां से आरोपियों ने पुलिस को चकमा देकर वहां से भागने की कोशिश की। और इसी कोशिश में मुठभेड़ के दौरान पुलिस को मौका ए वारदात पर सेल्फ डिफेन्स में आरोपियों को शूट करना पड़ा। ऐसे में आपके मन में ये सवाल जरूर कौंधा होगा कि आखिर ये क्राइम सीन रिक्रिएशन या रीकंस्ट्रक्शन क्या होता है और कैसे होता है। आखिर पुलिस को इस काम के लिए आरोपियों को रात में ही क्यूं क्राइम स्थल पर ले जाना पड़ा?

दरअसल कई बार जैसी घटना दिखाई दे रही होती है, वो वैसी होती नहीं है। उदाहरण के तौर पर अगर शुरू में कोई सुसाइड का केस लग रहा है लेकिन परिवारवालों या मृतक के करीबियों ने मर्डर का शक जताया है। या फिर मृतक के करीबी आरोप लगा रहे हों कि हत्या करके शव को आत्महत्या जैसा दिखाने की साजिश रची जा रही है।  तो ऐसे मामलों में पूरी घटना की एक अलग एंगल से जांच की जाती है।

कैसे होता है क्राइम सीन रीकंस्ट्रक्शन?

ऐसे वक़्त में क्राइम सीन रीकंस्ट्रक्शन किया जाता है। जिसमें क्या हुआ, कब हुआ, कहां हुआ, कैसे हुआ, किसने किया और क्यों किया जैसे सिद्धांतों पर काम किया जाता है। इस प्रक्रिया में जिस वक्त घटना होती है, ठीक उसी वक्त और उसी जगह पर पुलिस आरोपी को ले जाकर फिर से घटना का सीन क्रिएट करवाती है। पुलिस का सीन रिक्रिएट करना एक नार्मल प्रक्रिया है ताकि वह हर चीज व सबूतों को अदालत के सामने पेश कर सके। जितना आसान ये सुनने में लग रहा है, पुलिस के लिए ये उतना ही पेंचीदा काम है। घटनास्थल पर मिले सबूतों के आधार पर ये तय किया जाता है कि घटना कैसे हुई। रिक्रिएशन के दौरान मिले सबूतों की वैज्ञानिक जांच की जाती है। इसके अलावा केस से जुड़ी सभी इन्फॉर्मेशन की डिटेल में स्टडी की जाती है और फैक्ट्स के आधार पर एक थ्योरी तैयार की जाती है।

बता दें कि हैदराबाद में दिशा के साथ हुई रेप मर्डर की वारदात रात के सुनसान अंधेरों में हुई थी। जिस वजह से आरोपियों को पुलिस द्वारा रात में घटनास्थल पर ले जाया गया। सरल शब्दों में बात करें तो वारदात के वक़्त लाइट कितनी थी, सड़क किस स्थिति में थी, आसपास के लोगों का कैसा मूवमेंट था इन सब फैक्टर्स की भी बारीकी से जांच की जाती है।

पीड़ित से होती है शुरुआत 

क्राइम सीन रिकंस्ट्रक्शन की शुरुआत पीड़ित से होती है। पूरी घटना की पूछताछ और जानकारी सबसे पहले पीड़िता से जुटाई जाती है। अगर किसी केस में पीड़िता की मौत हो जाती है तो उसके करीबियों का इंटरव्यू लिया जाता है। या फिर घटना के आरोपियों और अपराध स्थल पर मौजूद लोगों से पूछताछ की जाती है। साथ ही घटनास्थल की काफी सावधानीपूर्वक फोटोग्राफी या वीडियोग्राफी की जाती है। और इसका बारीकी से विश्लेषण किया जाता है।

इसको आप इस तरीके से समझ सकते हैं कि मान लीजिये कि किसी घटना में एक अपराधी ने किसी को गोली मार दी है। ऐसी कंडीशन में जांचकर्ता इस बात पर गौर करेगा कि अगर निर्धारित स्थान से और एक निर्धारित एंगल से शूट किया जाता है, तो गोली कहां जाकर लगेगी। और असल में पीड़ित को कहां लगी है।

बता दें कि हैदराबाद रेप मर्डर केस में सीन रिक्रिएशन के वक़्त आरोपियों की हथकड़ियां निकाल दी गई थी। जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार खतरनाक अपराधियों के मामले में पुलिस अपील करती है कि उन्हें हथकड़ियां लगाकर रखने की अनुमति मिले। इस मामले में पुलिस के मुताबिक अपराधियों को हथकड़ियां इसलिए नहीं पहनाई गई थी क्योंकि उनका इससे पहले फरार होने का कोई रिकॉर्ड नहीं था।

इन फैक्टर्स पर होती हैं जांच 

अगर अपराध हिंसक है तो इस केस में क्राइम सीन रीकंस्ट्रक्शन में खून के धब्बे एक अहम सबूत माने जाते हैं। दरअसल जब खून किसी जख्म, किसी हथियार या अन्य चीज़ पर गिरता है तो एक ख़ास तरीके का पैटर्न बनता है। खून के छीटों से जांचकर्ताओं को खून की दिशा का पता चलता है। अगर पीड़ित या आरोपी ने उस वक़्त भागने की कोशिश की है, तो इस गुत्थी को सुलझाने में भी खून के छींटों का काफी बड़ा रोल होता है।

सीन रिकंस्ट्रक्शन में सिर्फ खून के धब्बों का ही नहीं बल्कि पैरों के निशान का भी काफी अहम रोल होता है। अगर कोई संदिग्ध व्यक्ति  ये कहता है कि वो घटना के वक़्त मौजूद नहीं था और उसके पैरों के निशान घटनास्थल में मिले निशानों से मेल खा जाते हैं, तो वो व्यक्ति भी दोषी करार दिया जाएगा। कई बार हत्या, लूटपाट, मारपीट और रेप के मामलों में पैरों के निशान ने कई छुपे मुजरिमों को जेल की सलाखों तक पहुंचाया है। दरअसल चप्पलों या जूते के सोल के निशान घटनास्थल पर छप जाते हैं जो कभी नज़र आ जाते हैं और कभी नहीं भी आते।

ऐसा पहली बार नहीं है जब भारत में क्राइम सीन रिकंस्ट्रक्शन किया गया हो, ये ज्यादातर हर क्राइम वारदातों में किया जाता है। जिसके आधार पर एक नतीजे पर न्यायपालिका पहुंचती है। ये पुलिस का कानूनी अधिकार भी है कि वह आरोपियों को सीन रिक्रिएट करने के लिए ले जा सकती है। हालांकि हैदराबाद केस में सवाल ये भी उठ रहे हैं कि किन हालात में पुलिस को गोली चलानी पड़ी और क्या पुलिस ने सीन रिक्रिएट के दौरान सावधानी नहीं बरती। ऐसे में पुलिस को अभी कई अनसुलझे सवालों के दौर से गुजरना होगा जिनके जवाब अभी सामने आना बाकी है।