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Pakistan Fraud reveal: पाकिस्तान के फर्जी दावों का पर्दाफाश! Operation Sindoor के बाद...

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Pakistan Fraud reveal: भारत के सफल ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) ने पाकिस्तान की सेना और सरकार की रणनीति को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया है। इस हमले के बाद पाकिस्तान की ओर से निरंतर झूठे और भ्रामक दावे सामने आ रहे हैं, जिनमें उनकी सेना की ताकत को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की कोशिश की जा रही है। हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ और विदेश मंत्री इशाक डार ने ब्रिटेन के एक प्रतिष्ठित अखबार, द डेली टेलीग्राफ (The Daily Telegraph) के नाम पर कई फर्जी दावे किए।

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फर्जी निकला द डेली टेलीग्राफ का पन्ना- Pakistan Fraud reveal

विदेश मंत्री इशाक डार ने संसद में दावा किया कि द डेली टेलीग्राफ ने पाकिस्तान वायु सेना (PAF) को ‘आसमान का निर्विवाद राजा’ बताया है और उसकी सेना की ताकत की तारीफ की है। लेकिन इस दावे की हवा पाकिस्तान के अपने ही मीडिया ने निकाल दी। ब्रिटेन के द डेली टेलीग्राफ ने स्पष्ट किया है कि उन्होंने ऐसा कोई लेख या रिपोर्ट कभी प्रकाशित नहीं की।

दरअसल, इशाक डार ने एक फर्जी AI जनरेटेड तस्वीर का हवाला देते हुए यह दावा किया था। यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जिसमें फर्जी द डेली टेलीग्राफ का पन्ना दिखाया गया था। इस नकली पेज को द डेली टेलीग्राफ के डिजाइन और शैली में ही बनाया गया था, लेकिन यह पूरी तरह से फर्जी था। पाकिस्तान के प्रमुख अखबार द डॉन (The Don) ने इस तस्वीर का फैक्ट चेक कर इसे झूठा और मनगढ़ंत करार दिया। द डॉन ने इस नकली पेज में कई त्रुटियां और अशुद्धियां भी उजागर की हैं, जिससे इस पूरे प्रपंच की पोल खुल गई।

यह नकली तस्वीर 10 मई 2025 की तिथि अंकित थी और उसमें शीर्षक था: “पाकिस्तान वायु सेना: आसमान का निर्विवाद राजा।” इस झूठ को फैलाकर पाकिस्तान के अधिकारी यह साबित करना चाहते थे कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया पाकिस्तान की सेना को सम्मान देती है और उसकी ताकत को स्वीकार करती है। लेकिन इस चाल को पाकिस्तान के ही मीडिया ने बेनकाब कर दिया।

Operation Sindoor और उसके बाद की सच्चाई

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत 7-8 मई की रात पाकिस्तान और पीओके (PoK) में आतंकवादी ठिकानों पर सटीक ब्रह्मोस मिसाइल हमले किए। इस ऑपरेशन में 100 से अधिक आतंकवादी मारे गए। जवाब में पाकिस्तान ने 7 से 9 मई के बीच कई मिसाइल और सैकड़ों ड्रोन से भारत पर हमला किया, लेकिन भारतीय एयर डिफेंस सिस्टम ने सभी हमलों को नाकाम कर दिया।

भारतीय जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान के कई एयरबेस और एयर डिफेंस सिस्टम को निशाना बनाया गया और काफी नुकसान पहुंचाया गया। इस पर पाकिस्तान की सेना और सरकार की नाकामी छुपाने के लिए झूठे दावे और फर्जी खबरें फैलाने की रणनीति साफ नजर आ रही है। सेटेलाइट तस्वीरों ने भी पाकिस्तान के दावों की सच्चाई को उजागर कर दिया है।

सियासी प्रतिक्रियाएं और मची सन्नाटा

पाकिस्तान की इस नाकामी और फर्जीवाड़े के बावजूद विदेश मंत्री इशाक डार ने संसद में झूठे दावे करने से बाज नहीं आए, लेकिन उनके बयान की पोल खुद पाकिस्तानी मीडिया ने खोल दी। संसद में खड़े होकर इस तरह के दावे करने के बाद भी डार और पाकिस्तान का विदेश मंत्रालय इस विषय में चुप्पी साधे हुए हैं और कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।

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Gurdwara Chuna Mandi: लाहौर के चूना मंडी में छुपा है गुरु रामदास जी का जन्मस्थान, जान...

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Gurdwara Chuna Mandi: लाहौर के कश्मीरी दरवाज़े के समीप पुरानी कोतवाली चौक के नज़दीक स्थित, गुरुद्वारा श्री जनम स्थान गुरु रामदास सिख धर्म के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है। यह वही स्थान है जहां चौथे सिख गुरु, गुरु रामदास जी का जन्म हुआ था। यह गुरुद्वारा न केवल उनकी जन्मभूमि के रूप में पूजनीय है, बल्कि सिख इतिहास में एक परिवर्तनकारी युग की आध्यात्मिक शुरुआत का भी प्रतीक है। लाहौर के भीड़-भाड़ वाले चूना मंडी बाज़ार के बीच बसा यह गुरुद्वारा आमतौर पर ‘गुरुद्वारा चूना मंडी’ के नाम से जाना जाता है।

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गुरु रामदास जी का जन्म और प्रारंभिक जीवन- Gurdwara Chuna Mandi

गुरु रामदास जी का जन्म 26 सितंबर 1534 को चूना मंडी, लाहौर में हुआ था। वे ठाकुर दास और जसवंती के पुत्र थे। उनके माता-पिता ने वर्षों की प्रार्थना और भक्ति के बाद उन्हें प्राप्त किया था। बचपन में उनका नाम “जेठा” था। उनका स्वभाव विनम्र, आध्यात्मिक और शांतिपूर्ण था। वे अपने माता-पिता की सेवा में अग्रसर रहते थे और ईश्वर की भक्ति में लगे रहते थे। उनकी यही भावनाएं और संस्कार भविष्य में उनके गुरु बनने के लिए नींव बने।

 

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आध्यात्मिक यात्रा का आरंभ

सात वर्ष की आयु में जेठा ने अपने माता-पिता को खो दिया। इसके बाद उन्होंने आत्मनिर्भरता के लिए बासी उबले हुए चने बेचने का काम शुरू किया। वे चने लेकर रावी नदी के किनारे गए, जहां उन्होंने कई साधुओं को भोजन कराया। साधुओं ने उनकी दयालुता और सेवा भावना की प्रशंसा करते हुए उनकी भलाई की कामना की। यही घटना गुरु रामदास जी की आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत मानी जाती है, जिसने बाद में पूरे सिख समुदाय को आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से प्रेरित किया।

गुरुद्वारा श्री जनम स्थान का ऐतिहासिक महत्व

गुरु रामदास जी के पूर्वजों का यह छोटा सा घर समय के साथ एक पवित्र स्थल बन गया। बाद में सिख शासकों ने इस स्थल की महत्ता को समझते हुए इसे संरक्षित और पुनर्निर्मित किया। महाराजा रणजीत सिंह ने यहां के आसपास के मकानों को खरीदकर गुरुद्वारे का पुनर्निर्माण कराया। यह गुरुद्वारा श्री हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) की वास्तुकला की तरह बनाया गया है, जो गुरु रामदास जी के प्रति सिख समुदाय की श्रद्धा को दर्शाता है।

 

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गुरुद्वारे के अंदर नियमित रूप से श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश (धार्मिक पाठ) होता है। इसके अलावा, गुरुद्वारे के प्रांगण में शांतिपूर्ण चिंतन के लिए जगह है और नीचे के स्तर पर लंगर खाना है, जो गुरु रामदास जी के निस्वार्थ सेवा के सिद्धांत को जीवित रखता है।

महाराजा रणजीत सिंह का योगदान

महाराजा रणजीत सिंह ने इस गुरुद्वारे के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने क्वाज़ी से आसपास के मकानों को खरीदकर गुरुद्वारे के लिए जमीन मुहैया कराई। 122 फुट 6 इंच गुणा 97 फुट 6 इंच के विशाल आयाम वाले इस गुरुद्वारे का निर्माण एक भव्य परियोजना थी, जो गुरु रामदास जी के प्रति सिख समुदाय की गहरी श्रद्धा को दर्शाती है।

गुरु रामदास जी की शिक्षाएं और विरासत

गुरु रामदास जी ने समता, भक्ति और निस्वार्थ सेवा को सिख धर्म का आधार बनाया। उनके विचार आज भी विश्व के लाखों सिखों के जीवन का मार्गदर्शन करते हैं। उनका जीवन सरलता, विनम्रता और आध्यात्मिक समर्पण का संदेश देता है।

तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण स्थल

जो यात्री Crossworld Visa के माध्यम से यात्रा कर रहे हैं, उनके लिए गुरुद्वारा श्री जनम स्थान गुरु रामदास एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यहां आकर वे गुरु रामदास जी के जीवन की शुरुआती कहानियों को जान सकते हैं, सिख धर्म की नींव को समझ सकते हैं और गुरुओं की समृद्ध आध्यात्मिक विरासत से जुड़ सकते हैं।

गुरुद्वारा श्री जनम स्थान गुरु रामदास न केवल एक ऐतिहासिक स्मारक है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक धरोहर भी है जो सिख धर्म के जीवन्त और गूढ़ संदेशों को जीवित रखता है। यह स्थल श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति और गुरु रामदास जी के आदर्शों से प्रेरणा लेने का अवसर प्रदान करता है। यहाँ की वास्तुकला, धार्मिक कार्यक्रम और सेवा का माहौल हर आने वाले को एक गहरे आध्यात्मिक अनुभव से जोड़ता है।

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Mahatma Buddha Teachings: महात्मा बुद्ध और इच्छा! क्या वास्तव में इच्छा ही जीवन का का...

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Mahatma Buddha Teachings: महात्मा बुद्ध ने कहा था, “इच्छा ही सब दुखों का कारण है।” यह वाक्य अक्सर सरल समझा जाता है, लेकिन क्या वास्तव में बुद्ध इच्छाओं के विरोधी थे? क्या इच्छा जीवन को गति देने वाली मूल ऊर्जा नहीं है? जब हमें भूख लगती है, तब भोजन की इच्छा होती है; प्यास लगने पर पानी की चाह; ठंड लगने पर गर्माहट की आकांक्षा—क्या ये इच्छाएं जीवन के प्रवाह को बनाए रखने वाली शक्ति नहीं हैं? क्या बुद्ध हमें जीवन की इसी ऊर्जा के खिलाफ खड़ा होने की शिक्षा देते हैं? और यदि इच्छा पर नियंत्रण पाने का प्रयास एक नई इच्छा को जन्म देता है, तो क्या यह दुष्चक्र अंतहीन नहीं हो जाता? क्या मानवता ने इस गूढ़ प्रश्न का समाधान पाया है?

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बुद्ध का संदेश और इच्छाओं की जटिलता- Mahatma Buddha Teachings

बुद्ध का उपदेश केवल इच्छाओं को समाप्त करने का आग्रह नहीं था, बल्कि वह जीवन में व्याप्त दुखों के स्रोत की समझ प्रदान करता था। उनका कहना था कि मनुष्य की इच्छाएं जब अतिरेक और असंतोष की ओर बढ़ती हैं, तब वे दुखों का कारण बनती हैं। लेकिन इच्छाओं का होना स्वयं जीवन का आधार भी है। इस द्वंद्व को समझना आसान नहीं।

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जिद्दू कृष्णमूर्ति की दृष्टि

बीसवीं सदी के महान विचारक जिद्दू कृष्णमूर्ति ने इस विषय पर गहरा विचार किया। उनके अनुसार, हमारे विचार, निर्णय और कर्म सभी एक ज्ञान और अनुभव के “संकलन” से उत्पन्न होते हैं। यह संकलन केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक और ऐतिहासिक भी है। हमारा मस्तिष्क, जो ज्ञान और अनुभव के आधार पर काम करता है, कभी भी पूर्ण सत्य तक नहीं पहुँच सकता। इसका मतलब यह है कि हमारे सभी विचार और भावनाएं अपूर्ण और कभी-कभी भ्रमित करने वाले होते हैं।

कृष्णमूर्ति ने इसी संकलन से संचालित मस्तिष्क को मानवता के दुख और अराजकता का मूल कारण माना। हमारा “स्व” या “मैं” भी इसी संकलन का हिस्सा है, जो हमें स्वयं के प्रति अत्यंत सचेत रखता है, लेकिन साथ ही भ्रमित भी करता है। इसलिए जो गर्व और इच्छा हम स्वयं के लिए महसूस करते हैं, वे भी एक अधूरी छवि मात्र हैं।

“स्व” की छवि और इच्छाओं का चक्र

हमारा “स्व” यानी स्वयं की पहचान एक सीमित विचार है जो हमें अपने मूल स्वरूप से दूर कर देता है। यह “संकलन” की छवि हमें भ्रमित करती है और आंतरिक द्वंद्व को जन्म देती है। इसलिए बुद्ध ने इसे सभी दुखों का मूल कारण बताया। इच्छाओं का यह चक्र, जो स्व की भ्रामक छवि से उत्पन्न होता है, अंतहीन पीड़ा का कारण बन सकता है।

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इस प्रकार, बुद्ध का उपदेश केवल इच्छाओं का त्याग नहीं, बल्कि उनके स्रोत की समझ है। वह हमें यह सिखाते हैं कि कैसे हमारी आंतरिक छवि और अनुभव का संकलन हमारे दुखों का आधार बनता है। इच्छाएं जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं, लेकिन जब वे हमारी सोच और पहचान का हिस्सा बन जाती हैं, तो वे हमें भ्रम और दुख की ओर ले जाती हैं। जिद्दू कृष्णमूर्ति के विचार इस बात को और भी स्पष्ट करते हैं कि मानव मस्तिष्क का यह संकलन ही हमारी पीड़ा का मुख्य कारण है।

इसलिए, बुद्ध की शिक्षा हमें इच्छाओं को खत्म करने के बजाय, उनके जन्मस्थान और प्रभाव को समझने का आह्वान करती है, ताकि हम जीवन के सच्चे सुख और शांति की ओर अग्रसर हो सकें।

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Kanpur Hair Transplant Case: गलत हाथों में गई जिंदगी, जानिए कौन कर सकता है ये सर्जरी

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Kanpur Hair Transplant Case: कानपुर में हाल ही में सामने आया एक चौंकाने वाला मामला मेडिकल सिस्टम पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। एक व्यक्ति की हेयर ट्रांसप्लांट के बाद तबीयत इतनी बिगड़ गई कि उसे ICU में भर्ती कराना पड़ा, और बाद में उसकी मौत हो गई। यह मामला सामने आने के बाद न केवल आम जनता में चिंता बढ़ी है, बल्कि यह भी बहस छिड़ गई है कि आखिर हेयर ट्रांसप्लांट जैसी सर्जरी किसे करने का अधिकार है? क्या कोई भी डॉक्टर इसे अंजाम दे सकता है?

और पढ़ें: Kanpur Hair Transplant News: कानपुर में हेयर ट्रांसप्लांट के नाम पर दो इंजीनियरों की मौत, डॉक्टर अनुष्का तिवारी पर गंभीर आरोप

क्या है पूरा मामला? (Kanpur Hair Transplant Case)

इस गंभीर घटना के केंद्र में हैं डॉ. अनुष्का तिवारी, जो पेशे से एक डेंटल सर्जन (BDS) हैं। उन पर आरोप है कि उन्होंने बिना किसी मान्यता प्राप्त सर्जिकल डिग्री के हेयर ट्रांसप्लांट किया। जानकारी के मुताबिक, उनके क्लीनिक में बाल झड़ने की समस्या को लेकर एक व्यक्ति इलाज के लिए पहुंचा था। इलाज के बाद उसकी तबीयत इतनी ज्यादा बिगड़ गई कि उसे गहन चिकित्सा इकाई (ICU) में भर्ती करना पड़ा। बाद में उस व्यक्ति की जान चली गई। इस मामले की अब पुलिस और स्वास्थ्य विभाग दोनों स्तरों पर जांच चल रही है।

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कौन कर सकता है हेयर ट्रांसप्लांट?

हेयर ट्रांसप्लांट कोई साधारण प्रक्रिया नहीं है। यह एक कॉस्मेटिक सर्जरी है, जिसे करने के लिए डॉक्टर का प्रशिक्षित और योग्य होना जरूरी होता है। सबसे पहले, जिस डॉक्टर को यह प्रक्रिया करनी है, उसके पास MBBS की डिग्री होनी चाहिए। इसके बाद यदि वह Dermatology (त्वचा रोग) या Plastic Surgery में स्पेशलाइजेशन करता है, तो ही वह हेयर ट्रांसप्लांट सर्जरी करने के योग्य माना जाता है।

इतना ही नहीं, डॉक्टर को बालों की सर्जरी से संबंधित टेक्निक्स की ट्रेनिंग मिलनी चाहिए, जिसके लिए विभिन्न मेडिकल संस्थानों द्वारा फेलोशिप या सर्टिफिकेशन कोर्स चलाए जाते हैं। इन कोर्सेस में हेयर रिस्टोरेशन, ग्राफ्टिंग टेक्निक, संक्रमण से बचाव और अन्य जटिलताओं से निपटने की ट्रेनिंग दी जाती है।

क्यों नहीं कर सकते BDS डॉक्टर हेयर ट्रांसप्लांट?

BDS (Bachelor of Dental Surgery) कोर्स पूरी तरह दांत, मसूड़े और मुंह की बीमारियों से संबंधित होता है। इस कोर्स में न तो त्वचा से जुड़ी कोई पढ़ाई कराई जाती है और न ही सर्जिकल सक्षमता दी जाती है जो कि एक हेयर ट्रांसप्लांट सर्जरी के लिए जरूरी होती है। ऐसे में यदि कोई डेंटल सर्जन इस प्रकार की सर्जरी करता है तो यह कानूनन गलत है और मरीज की जान को खतरे में डालने के समान है।

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आम लोगों को सतर्क रहने की जरूरत

यह मामला हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपनी सेहत के लिए डॉक्टर चुनते समय कितनी सतर्कता बरतते हैं। सिर्फ डॉक्टर लिखा देख कर भरोसा कर लेना कई बार जानलेवा साबित हो सकता है। हेयर ट्रांसप्लांट जैसी प्रक्रियाएं केवल प्रशिक्षित और अधिकृत डॉक्टरों से ही करानी चाहिए, जो मेडिकल काउंसिल द्वारा मान्यता प्राप्त हों।

और पढ़ें: हेयर ट्रांसप्लांट से हुई इंजीनियर की मौत, जानें किन लोगों को नहीं कराना चाहिए ये ट्रीटमेंट

Kidnapping of Rubaiya Sayeed: जब गृहमंत्री की बेटी बनी आतंक का मोहरा, जानें उस अपहरण ...

Kidnapping of Rubaiya Sayeed: कश्मीर की राजनीति और भारत की आंतरिक सुरक्षा के इतिहास में 8 दिसंबर 1989 का दिन एक निर्णायक मोड़ बनकर सामने आया। यह वह दिन था जब तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबैया सईद का JKLF (जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट) द्वारा अपहरण कर लिया गया। इस घटना ने कश्मीर में आतंकवाद के उस दौर की शुरुआत की जिसे आज भी भारत के सबसे काले अध्यायों में गिना जाता है।

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कौन थे मुफ्ती मोहम्मद सईद? (Kidnapping of Rubaiya Sayeed)

अनंतनाग के बिजबेहड़ा से ताल्लुक रखने वाले मुफ्ती मोहम्मद सईद कश्मीर की राजनीति में बेहद महत्वाकांक्षी नेता माने जाते थे। उन्होंने कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और जन मोर्चा जैसी पार्टियों में सक्रिय भूमिका निभाई। 1989 में जब वी.पी. सिंह प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने सईद को भारत का पहला मुस्लिम गृहमंत्री नियुक्त किया।

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रुबैया सईद का अपहरण और सरकार की घुटने टेकती रणनीति

8 दिसंबर को रुबैया, जो श्रीनगर के लाल डेड मेडिकल कॉलेज की छात्रा थीं, क्लास के बाद नौगाम स्थित अपने घर लौट रही थीं। तभी JKLF के पांच आतंकियों ने बस को हाईजैक कर लिया और रुबैया को पंपोर के पास नटिपोरा इलाके में ले जाकर एक नीली मारुति में बिठा दिया। बाद में उन्हें सोपोर के एक उद्योगपति के घर में छुपाया गया।

इस हाइजैकिंग के पीछे यासीन मलिक और अशफाक माजिद वानी जैसे कुख्यात आतंकियों के नाम सामने आए। आतंकियों ने सरकार के सामने अपने पांच साथियों की रिहाई की मांग रखी। जब तक आतंकियों ने एक लोकल अखबार में फोन कर अपनी शर्तें नहीं बताईं, तब तक प्रशासन को इस घटना की भनक तक नहीं लगी थी।

सरकार का सरेंडर और कश्मीर में आतंक की दस्तक

पांच दिनों की ऊहापोह के बाद 12 दिसंबर को केंद्र सरकार ने आतंकियों की शर्तें मान लीं और पांच खूंखार आतंकियों को रिहा कर दिया गया। कुछ ही घंटों बाद रुबैया को छोड़ दिया गया, लेकिन इस फैसले के दूरगामी परिणाम बेहद खतरनाक साबित हुए।

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13 दिसंबर को श्रीनगर की सड़कों पर आतंकी हीरो बनकर निकले। ‘आजादी’ के नारे लगे, हथियारबंद जुलूस निकले और रिहा किए गए आतंकी पाकिस्तान भाग निकले। इस एक रिहाई ने JKLF जैसे संगठनों के हौसले बुलंद कर दिए और भारतीय राज्य के प्रति अविश्वास गहरा गया।

आतंकवाद की बाढ़ और बेगुनाहों का खून

1990 से घाटी में आतंकवाद ने जड़ें जमा लीं। पाकिस्तान में चल रहे ISI समर्थित ट्रेनिंग कैंपों में हजारों कश्मीरी युवाओं को हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी गई। अपहरण, हत्याएं और धमकियों का दौर शुरू हुआ।

6 अप्रैल 1990 को कश्मीर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ. मुशीर उल हक और उनके सचिव अब्दुल घनी को अगवा कर मौत के घाट उतार दिया गया। 11 अप्रैल को HMT फैक्ट्री के जनरल मैनेजर H.L. खेड़ा की हत्या ने घाटी में भय का माहौल और गहरा कर दिया।

नतीजा: पलायन, पीड़ा और इतिहास की टीस

सरकारी कर्मचारियों, नेशनल कॉन्फ्रेंस के कार्यकर्ताओं और कश्मीरी पंडितों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ। मानवाधिकार हनन, तलाशी अभियानों और फर्जी एनकाउंटर की खबरें सामने आईं। कश्मीर अब सिर्फ एक भू-राजनीतिक मुद्दा नहीं रह गया था, यह हिंसा, भय और अस्थिरता का मैदान बन चुका था।

रूबैया सईद का अपहरण सिर्फ एक बेटी का मामला नहीं था, वह भारतीय शासन व्यवस्था की कमजोरी, कश्मीर की उथल-पुथल और आतंकवाद की शुरुआत का प्रतीक बन गया। इस एक निर्णय ने ना सिर्फ सईद की राजनीति को बल्कि पूरी घाटी की किस्मत को नई और भयावह दिशा दे दी – एक ऐसी दिशा, जिसमें आज भी धुआं, दर्द और दहशत बाकी है।

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Ejected Pilot Safety rule: फाइटर प्लेन से इजेक्ट हुए पायलट पर दुश्मन देश की गोलीबारी ...

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Ejected Pilot Safety rule: जब कोई फाइटर प्लेन दुर्घटनाग्रस्त होता है या उस पर हमला होता है, तो पायलट का सबसे पहला कर्तव्य अपनी जान बचाना होता है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए पायलट आमतौर पर ‘इजेक्ट’ तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। यह एक विशेष प्रक्रिया होती है जिसमें पायलट अपने विमान से बाहर निकलने की कोशिश करता है, ताकि वह सुरक्षित रूप से दुर्घटना से बच सके।

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पायलट कैसे निकलता है विमान से? (Ejected Pilot Safety rule)

फाइटर प्लेन में पायलट की सीट के नीचे एक रॉकेट पावर सिस्टम होता है। जब पायलट इस सिस्टम को सक्रिय करता है, तो वह लगभग 30 मीटर ऊपर जाकर विमान के छोटे हिस्से से बाहर निकल जाता है। इसके बाद पायलट पैराशूट के सहारे जमीन पर सुरक्षित उतरता है। यह प्रक्रिया जीवन रक्षक साबित होती है, खासकर युद्ध के दौरान जब विमान पर हमले की संभावना अधिक होती है।

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अगर पायलट दुश्मन इलाके में गिर जाए तो क्या होता है?

यहाँ एक अहम सवाल उठता है कि जब पायलट दुश्मन के इलाके में इजेक्ट होकर गिरता है तो क्या दुश्मन उस पर फायर कर सकता है? इस सवाल का जवाब अंतरराष्ट्रीय कानून में निहित है, खासकर जिनेवा कन्वेंशन में।

जिनेवा कन्वेंशन युद्ध के दौरान सैनिकों और नागरिकों के साथ किए जाने वाले व्यवहार को नियंत्रित करता है। यह अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे युद्ध के नियमों के रूप में भी जाना जाता है।

जिनेवा कन्वेंशन के प्रमुख बिंदु

जिनेवा कन्वेंशन के चार मुख्य समझौते हैं। इनमें से तीसरा कन्वेंशन विशेष रूप से युद्धबंदियों के साथ किए जाने वाले मानवीय व्यवहार को निर्धारित करता है। इसमें युद्धबंदियों को चिकित्सा देखभाल, आश्रय, और पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने के नियम शामिल हैं।

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पहले के समय में युद्ध में अक्सर युद्धबंदियों के साथ बर्बरता होती थी, महिलाओं के साथ अत्याचार और अन्य हिंसात्मक घटनाएं होती थीं। लेकिन जिनेवा कन्वेंशन के लागू होने के बाद सभी सदस्य देशों को इस नियम का पालन करना अनिवार्य हो गया।

युद्धबंदियों के प्रति दुश्मन देश का रवैया

इस नियम के तहत जब कोई सैनिक, जैसे कि फाइटर प्लेन से इजेक्ट होकर गिरा पायलट, दुश्मन के कब्जे में आता है, तो उसे गोली मारना या प्रताड़ित करना अपराध माना जाता है। इसके बजाय, उसे बंदी बनाकर सुरक्षित रखा जाता है।

युद्धबंदी को सम्मान और मानवीय व्यवहार के साथ रखा जाता है। उन्हें चिकित्सा सुविधाएं दी जाती हैं, उनका अपमान नहीं किया जाता, और उनके अधिकारों का सम्मान किया जाता है। युद्ध समाप्त होने के बाद इन बंदियों को बिना विलंब के रिहा कर दिया जाता है।

युद्धबंदी की जानकारी और अधिकार

जिनेवा कन्वेंशन के तहत, युद्धबंदी को रखने वाले देश को उस सैनिक के मूल देश को उसकी स्थिति की जानकारी देनी होती है। यह नियम यह सुनिश्चित करता है कि युद्धबंदी की सुरक्षा हो और उनका भविष्य सुरक्षित रहे।

इस प्रकार, युद्ध के दौरान घायल या इजेक्ट होकर पकड़ में आने वाले सैनिकों के प्रति ऐसा व्यवहार होता है, जो मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप हो।

इसलिए जब भी कोई पायलट इजेक्ट होकर गिरता है, तो वह दुश्मन के लिए लक्ष्य नहीं बनता, बल्कि एक युद्धबंदी के रूप में सुरक्षित रखा जाता है, जब तक युद्ध समाप्त नहीं हो जाता।

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India-Pakistan Conflict: भारत-पाकिस्तान के तनाव में अमेरिका की एंट्री, CNN ने किया है...

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India-Pakistan Conflict: भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे संघर्ष को लेकर अमेरिकी मीडिया हाउस सीएनएन (CNN) ने एक नया दावा किया है। सीएनएन ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि भारत के पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों पर हवाई हमले के बाद अमेरिका को इस मामले में बीचबचाव करना पड़ा। रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका को इस बात का भय सताने लगा कि भारत ने पाकिस्तान को पूरी तरह से घेर लिया है और इससे दोनों देशों के बीच परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का संकट उत्पन्न हो सकता है। हालांकि, भारत ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया है और साफ शब्दों में कहा है कि पाकिस्तान के साथ संघर्षविराम दो पक्षों के बीच हुई बातचीत का नतीजा है, न कि किसी तीसरे पक्ष के दबाव से।

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सीएनएन की रिपोर्ट में क्या कहा गया? (India-Pakistan Conflict)

नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सीएनएन के एक कार्यक्रम में फरीद जाकरिया ने फॉरेन पॉलिसी मैगजीन के एडिटर इन चीफ रवि अग्रवाल से यह सवाल पूछा कि आखिरकार अमेरिका को इस मामले में हस्तक्षेप क्यों करना पड़ा। रवि अग्रवाल ने जवाब दिया कि भारत ने पाकिस्तान के कई सैन्य ठिकानों पर ऐसे हमले किए जो 1971 के युद्ध के बाद पाकिस्तान के क्षेत्र में सबसे गहरे हमले माने जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि ये हमले गुरुवार और शुक्रवार के आसपास हुए और खास बात यह रही कि इनमें से कुछ हमले पाकिस्तान के परमाणु कमान केंद्रों के पास से होकर गुजरे।

रवि अग्रवाल ने कहा, “ऐसे हमले अमेरिका के लिए यह संकेत थे कि पाकिस्तान को भारत ने पूरी तरह घेर लिया है। अगर अमेरिका इसमें हस्तक्षेप नहीं करता तो संभावना थी कि यह संघर्ष और बढ़कर परमाणु हथियारों के इस्तेमाल जैसी गंभीर स्थिति तक पहुंच सकता है।”

भारत का जवाब: अमेरिका की मध्यस्थता को ठुकराया

भारत सरकार ने सीएनएन की इस रिपोर्ट को स्पष्ट तौर पर खारिज किया है। विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि भारत ने अमेरिका या किसी अन्य देश से पाकिस्तान के साथ संघर्ष में कोई मध्यस्थता स्वीकार नहीं की है। भारत का कहना है कि भारत-पाकिस्तान के बीच जो संघर्षविराम हुआ है, वह दोनों पक्षों के बीच बातचीत और परस्पर समझौते का परिणाम है। भारत की विदेश नीति में किसी भी तीसरे पक्ष की दखलअंदाजी को अस्वीकार किया जाता है।

संघर्ष की पृष्ठभूमि और बढ़ते तनाव

हाल के दिनों में भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर तनाव में तीव्रता आई है। दोनों देशों के बीच हुई गोलीबारी और सैन्य कार्रवाई के बाद भारत ने पाकिस्तान के गहरे इलाकों में हवाई हमले किए, जो पिछले दशकों में सबसे सशक्त हमले माने जा रहे हैं। इस दौरान पाकिस्तान ने भी पलटवार किया, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया।

इस तनाव के दौरान अमेरिका समेत अन्य विश्व शक्तियों ने स्थिति को काबू में रखने की कोशिश की, ताकि क्षेत्रीय और वैश्विक शांति को नुकसान न पहुंचे। सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के हमले के बाद अमेरिका को इस स्थिति को संभालने के लिए सक्रिय भूमिका निभानी पड़ी, जिससे एक बड़े परमाणु संकट से बचा जा सके।

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BJP Leader Kissing Controversy: बलिया में भाजपा नेता बब्बन सिंह का अश्लील वीडियो वायर...

BJP Leader Kissing Controversy: उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता और द सहकारी चीनी मिल के चेयरमैन बब्बन सिंह रघुवंशी का एक अश्लील वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया है। वायरल वीडियो में बब्बन सिंह एक महिला डांसर को गोद में बैठाकर उसके साथ गले मिलने (किस) जैसी हरकत करते दिखाए गए हैं। यह वीडियो बिहार की एक बारात का बताया जा रहा है, जहां डांसर के साथ बब्बन सिंह की आपत्तिजनक हरकतें कैमरे में कैद हुईं। वीडियो के सामने आने के बाद इलाके में सियासी हलचल तेज हो गई है।

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वीडियो की माजरा और वायरल होने की कहानी- BJP Leader Kissing Controversy

जानकारी के मुताबिक यह वीडियो लगभग 20 दिन पुराना है। यह घटना बिहार की किसी बारात में हुई, जहां रंगारंग कार्यक्रम चल रहा था। वीडियो में बब्बन सिंह महिला डांसर को गोद में बिठाकर और उसके साथ आपत्तिजनक व्यवहार करते हुए नजर आ रहे हैं। सोशल मीडिया पर इस वीडियो के वायरल होते ही बब्बन सिंह की छवि पर सवाल उठने लगे हैं और उनके खिलाफ तरह-तरह के कमेंट किए जा रहे हैं।

BJP Leader Kissing Controversy
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बब्बन सिंह ने लगाया साजिश का आरोप, बताया पूरी बात

वायरल वीडियो को लेकर जब भाजपा नेता से बात की गई तो उन्होंने इसे पूरी तरह से फर्जी करार देते हुए राजनीतिक साजिश बताया। बब्बन सिंह ने साफ कहा, “मैं 70 साल का हूं और आज तक किसी महिला के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया। मैं पार्टी का पुराना और समर्पित कार्यकर्ता हूं।” उन्होंने बताया कि वीडियो बिहार की एक बारात में रिकॉर्ड किया गया है, जहां बांसडीह विधायक केतकी सिंह के पति के लोग मौजूद थे और उन्हीं ने उनकी छवि खराब करने के लिए यह वीडियो एडिट कर फैलाया है।

सियासत के बीच रिश्तेदारों के मतभेद का भी दावा

बब्बन सिंह ने इस पूरे मामले को स्थानीय सियासी माहौल से जोड़ा। उनका कहना है कि परिवहन मंत्री दया शंकर सिंह उनके रिश्तेदार हैं और बलिया जिलाध्यक्ष चुनाव को लेकर मंत्री और केतकी सिंह के बीच मतभेद चल रहा है। “जब संजय मिश्रा जिलाध्यक्ष बने तो केतकी सिंह की पार्टी के लोग कनौजिया को जिलाध्यक्ष बनाना चाहते थे। वे नहीं बन पाए, इसलिए मेरी छवि खराब की जा रही है,” बब्बन सिंह ने बताया।

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वीडियो को बताया फर्जी और एडिटेड, पुलिस से शिकायत का ऐलान

बब्बन सिंह ने वीडियो में दिखाई गई हरकतों को पूरी तरह से फर्जी करार दिया। उन्होंने कहा, “डांसर जैसे मेरी गोद में बैठी, फिर उसके हाथों को छूना आदि सब नकली है। आजकल मोबाइल से कुछ भी संभव है।” उन्होंने आगे कहा कि वे बारात में आमंत्रित थे और रिवाज के अनुसार कलाकारों को पैसे दिए थे। “डांसर अपने आप मेरी तरफ आई और बैठ गई, मैंने कोई ऐसा काम नहीं किया जैसा वीडियो में दिखाया जा रहा है।” बब्बन सिंह ने इस मामले में पुलिस कप्तान को लिखित शिकायत करने की भी बात कही है।

सियासी मंच पर उभरा विवाद, बीजेपी में हलचल तेज

बलिया जिले में इस वायरल वीडियो के बाद राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है। भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ता और विपक्षी दल इस मुद्दे को लेकर विभिन्न तरह की चर्चाएं कर रहे हैं। बब्बन सिंह के चुनावी संभावित दावेदारी और पार्टी में उनकी स्थिति के मद्देनजर यह मामला पार्टी के लिए भी संवेदनशील हो गया है।

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CJI Justice BR Gavai: जस्टिस भूषण रामकृष्णा गवई बने 52वें मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति...

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CJI Justice BR Gavai: सुप्रीम कोर्ट के 52वें मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) के रूप में जस्टिस भूषण रामकृष्णा गवई ने बुधवार को पद और गोपनीयता की शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में राष्ट्रपति भवन के गणतंत्र मंडप में हुई इस शपथ ग्रहण समारोह में न्यायाधीश ने अपनी मां से आशीर्वाद भी प्राप्त किया। सीजेआई के तौर पर जस्टिस गवई के सामने सबसे बड़ा और संवैधानिक तौर पर चुनौतीपूर्ण मामला राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 143(1) के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट को भेजे गए 14 सवालों का जवाब देना होगा।

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राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा संवैधानिक सवाल- CJI Justice BR Gavai

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आर्टिकल 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से यह पूछा है कि क्या अदालत विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर मंजूरी देने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय कर सकती है? यह सवाल इसलिए उठाया गया है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को एक अहम निर्णय सुनाया था, जिसमें तमिलनाडु के राज्यपाल और राष्ट्रपति को कुछ विधेयकों पर निर्णय लेने की समय सीमा दी गई थी। राष्ट्रपति ने इस फैसले पर संवैधानिक और विधिक सवाल उठाए हैं और इसे लेकर शीर्ष अदालत की राय मांगी है।

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क्या सुप्रीम कोर्ट निर्धारित कर सकता है समय सीमा?

संविधान में राष्ट्रपति या राज्यपाल के लिए विधेयकों पर मंजूरी देने की कोई निर्धारित समयसीमा नहीं है। ऐसे में राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा है कि क्या कोर्ट अपने फैसले से इस तरह की सीमा तय कर सकती है, जबकि संविधान में इसकी कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं है। यह सवाल एक अहम संवैधानिक मुद्दा है, क्योंकि इससे कार्यपालिका और विधायिका के बीच संतुलन पर असर पड़ सकता है।

अनुच्छेद 143(1) के तहत राष्ट्रपति का सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांगना

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत राष्ट्रपति कानूनी और संवैधानिक मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांग सकते हैं। राष्ट्रपति मुर्मू ने इसी अनुच्छेद का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत से इन 14 सवालों का स्पष्टीकरण मांगा है। इस संदर्भ में कोर्ट को एक संविधान पीठ का गठन करना होगा, जिसमें कम से कम पांच न्यायाधीश शामिल होंगे, ताकि इस जटिल मुद्दे पर व्यापक चर्चा की जा सके।

CJI BR Gavai Oath Ceremony
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राष्ट्रपति के 14 सवाल: विस्तार से

राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से कुल 14 सवाल पूछे हैं, जिनमें प्रमुख रूप से यह पूछा गया है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के पास यह अधिकार है कि वह कार्यपालिका के सदस्यों जैसे राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधायकों द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय देने की समयसीमा तय कर सके। यह सवाल पिछले कुछ दिनों में विशेष रूप से चर्चा में आया है, जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और अन्य कार्यपालिका सदस्यों ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर नाराजगी जताई थी।

जस्टिस गवई के सामने बड़ा संवैधानिक मसला

जस्टिस भूषण रामकृष्णा गवई ने मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ लेने के साथ ही एक बेहद संवेदनशील और महत्वपूर्ण संवैधानिक मसले को संभालना शुरू कर दिया है। उनके सामने पहला और सबसे बड़ा काम राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट को भेजे गए इन सवालों पर विचार करना होगा। इसके लिए वह एक संविधान पीठ का गठन करेंगे, जो देश के संविधान की व्याख्या करेगा और कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के संतुलन को तय करेगा।

शपथ ग्रहण समारोह की कुछ खास बातें

शपथ ग्रहण के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने न्यायाधीश को शुभकामनाएं दीं। इसके बाद जस्टिस गवई ने सुप्रीम कोर्ट परिसर में डॉ. भीमराव अंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित की। न्यायपालिका में उनके नए कार्यकाल की शुरुआत इस संवैधानिक चुनौती के साथ हुई है, जो भारत के लोकतंत्र और शासन व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी।

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Ballia Crime News: बलिया में महिला ने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या कर दहलाया गांव...

Ballia Crime News: बलिया जिले के बहादुरपुर मोहल्ले से एक सनसनीखेज वारदात सामने आई है, जहां एक महिला ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति की बेरहमी से हत्या कर उसे छह टुकड़ों में काट दिया। इसके बाद शरीर के अलग-अलग हिस्से घटना स्थल से दूर अलग-अलग जगहों पर फेंक दिए गए। यह मामला इलाके में दहशत फैलाने वाला है। घटना के बाद आरोपी प्रेमी का पुलिस एनकाउंटर कर गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि महिला समेत दो अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है।

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पति की बेरहमी से हत्या और शरीर के टुकड़े फेंकने की सनसनीखेज कहानी- Ballia Crime News

बलिया के बहादुरपुर मोहल्ले में रहने वाले 62 वर्षीय देवेंद्र राम, जो बॉर्डर रोड्स ऑर्गेनाइजेशन (BRO) से रिटायर थे, की हत्या का मामला पुलिस के सामने आया है। उनकी पत्नी माया देवी (44) ने करीब चार साल पहले ट्रक ड्राइवर अनिल यादव (23) से प्रेम संबंध शुरू कर लिए थे। अनिल बलिया के सिकंदरपुर थाना क्षेत्र के खरीद गांव का रहने वाला है।

प्रेम संबंध की खबर मोहल्ले और परिवार को हुई पता

धीरे-धीरे माया और अनिल के अफेयर की खबर मोहल्ले में फैल गई। देवेंद्र और उनके बच्चों को भी यह पता चल गया। इसके बाद घर में बार-बार अनिल को लेकर विवाद होने लगे। देवेंद्र कई बार अपनी पत्नी की पिटाई भी कर चुके थे। परेशान माया ने अनिल के साथ मिलकर देवेंद्र की हत्या की साजिश रची।

9 मई की रात की घटना: नशीला पदार्थ देकर बेहोश किया पति, फिर काट डाला

माया ने पुलिस को बताया कि 9 मई की रात उसने अनिल को अपने घर बुलाया। उसके साथ मिथलेश और सतीश नाम के दो अन्य लोग भी थे। चारों ने मिलकर देवेंद्र की हत्या की योजना बनाई। माया ने देवेंद्र को फोन कर शहर वाले घर बुलाया। जैसे ही देवेंद्र घर पहुंचे, उन्हें कोल्ड ड्रिंक में नशीला पदार्थ पिला दिया गया जिससे वे पूरी तरह बेहोश हो गए। इसके बाद चारों ने मिलकर चाकू से देवेंद्र के शरीर को छह टुकड़ों में काट दिया।

टुकड़ों को अलग-अलग जगहों पर फेंका, सिर घाघरा नदी में बहा दिया

शरीर के टुकड़ों को ठिकाने लगाने के लिए आरोपी करीब 38 किलोमीटर दूर खरीद गांव गए। वहां हाथ-पैर बगीचे में फेंक दिए और धड़ को एक कुएं में डाल दिया। सिर को घाघरा नदी में बहा दिया गया। इसके बाद चारों आरोपी वापस घर लौट आए और खून साफ किया।

गुमशुदगी दर्ज कर मामला भटकाने की कोशिश

दूसरे दिन यानी 10 मई को माया ने पुलिस में देवेंद्र की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई, ताकि संदिग्धों की नजरों से बचा जा सके। लेकिन यह चालाकी चल नहीं पाई।

बेटी की शिकायत पर पुलिस ने शुरू की जांच, 12 मई को मां को गिरफ्तार किया

देवेंद्र की छोटी बेटी सुप्रिया, जो कोटा में NEET की तैयारी कर रही है, जब पिता के लापता होने की खबर सुनकर जयपुर में रहने वाली बड़ी बहन के साथ बलिया पहुंची तो उन्होंने 12 मई को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। इसी के बाद पुलिस ने गहन जांच शुरू की और 11 मई को खरीद गांव के बगीचे में कटे हुए हाथ-पैर बरामद किए। पुलिस ने माया को उसके घर से गिरफ्तार कर लिया।

पुलिस ने प्रेमी का किया एनकाउंटर में गिरफ्तार, अन्य आरोपी भी दबोचे गए

पुलिस ने देर रात आरोपी अनिल यादव का एनकाउंटर कर गिरफ्तारी की। इस दौरान अनिल के पैर में गोली लगी है। पुलिस ने साथ ही दो अन्य आरोपियों मिथलेश और सतीश को भी चेकिंग के दौरान बिहार भागते हुए पकड़ लिया। सभी आरोपियों को जेल भेज दिया गया है।

पुलिस जांच जारी, बाकी हिस्सों की तलाश और सख्त कार्रवाई का ऐलान

एसपी ओमवीर सिंह ने बताया कि मामले की जांच जारी है। मृतक के पांच टुकड़े बरामद हो चुके हैं, जबकि सिर की तलाश की जा रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि आरोपियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी।

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