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INDIA BECOME LARGEST DEBTORS: वर्ल्ड बैंक के कर्जदारों मे भारत कौन से नम्बर पर है?

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INDIA BECOME LARGEST DEBTORS: एक तरफ भारत में केंद्र की पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार भारत को ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बनाने का दावा किया करती है। वैश्विक स्तर पर भारत को तेजी से विकसित होते देशों में गिना जाता है लेकिन अभी हाल ही में विश्व बैंक ने अपने कर्जदारों की सूची जारी की है। इस सूची में कभी पहले स्थान पर इंडोनेशिया हुआ करता था लेकिन अब भारत ने इंडोनेशिया को पीछे छोड़ते हुए सबसे कर्जदार देशों में पहला स्थान हासिल कर लिया है। इस लिस्ट के सामने आने के बाद केंद्र सरकार को काफी घेरा भी जा रहा है।

जानिए कितना कर्जदार है भारत INDIA BECOME LARGEST DEBTERS

वर्ल्ड बैंक ने अपनी हालिया रिपोर्ट में बताया कि भारत उनका सबसे कर्जदार देश है। भारत पर करीब 24.4 बिलियन डॉलर का कर्ज हो चुका है, इन्हें अगर आसान भाषा में भारतीय रुपयों के अनुसार समझे तो भारत ने अब तक वर्ल्ड बैंक से करीब 2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज लिया हुआ है। वहीं इसके बाद नंबर है इंडोनेशिया का, इंडोनेशिया पर वर्ल्ड बैंक का 21.3 बिलियन डॉलर का कर्ज चढ़ा हुआ है। इसके बाद यूक्रेन पर 16.6 बिलियन डॉलर, कोलंबिया पर 16.4 बिलियन डॉलर, ब्राज़ील पर 15.5 बिलियन डॉलर और फिलीपींस पर 14.7 बिलियन डॉलर, चीन पर 14.4 बिलियन डॉलर, मैक्सिको पर 13.8 बिलियन डॉलर, तुर्की पर 12.7 बिलियन डॉलर और अर्जेंटीना पर 12.1 बिलियन डॉलर का कर्ज चढ़ा हुआ है। ये 10 देश वर्ल्ड बैंक से कर्ज लेने में टॉप 10 में है।

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क्यों लिया गया इतना कर्ज World bank debtors list

अब सवाल ये है कि आखिर भारत को इतना कर्ज क्यों लेना पड़ा तो आपको बता दें कि भारत तेजी से विकसित होता हुआ देश है। ऐसे में टेक्नोलॉजी, इन्फ्रास्ट्रक्चर, मैन्युफैक्चरिंग जैसी कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए सरकार को पैसे की जरूरत होती है। जिसके लिए ही वर्ल्ड बैंक कर्ज देता है। जिससे देश के आर्थिक विकास के साथ साथ उसके इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने और उसका विस्तार करने का काम किया जाता है। ताकि रोजगार के नए और ज्यादा अवसर उत्पन्न हो, और गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास जैसे मुद्दों पर कार्य कर सकें। भारत एक विशाल देश है और आबादी के मामले में भी भारत पहले स्थान पर है। ऐसे में 140 करोड़ जनता की देखभाल करना इतना आसान नहीं है।

दुनिया की पांचवी अर्थव्यवस्था Indian Economy in the world

मौजूदा समय में भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। जो बताता है कि भारत एक तेजी से विकास करने वाला देश है। हालांकि सरकार के सामने कई बड़ी चुनौती भी है। बढ़ता हुआ कर्ज आर्थिक तौर पर मजबूती देने के बजाये कमजोर कर सकता है। खासकर जरूरी है कि कर्ज के पैसों का इस्तेमाल ऐसी जगह पर हो, जहां से सरकार को लाभ हो। ताकि सरकार उससे कुछ अर्निंग कर सकें। अब तक हुए घाटे को खत्म करने के बजाये नए और उत्पादक योजनाओं  पर काम होना चाहिए। तभी कर्ज से मुक्ति संभंव है। जरूरी है कि सरकार को निर्यात, घरेलू निवेशों और टैक्स वसूली के लिए सही और कड़े नियमों को बनाना चाहिए, ताकि जो टैक्स चुरा लिया जाता है उसका भुगतान हो सकें। तभी देश को कर्ज पर निर्भर होने की जरूरत कम पड़ेगी।

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नारियल तेल से पाएं बेदाग त्वचा, इन चीज़ों के साथ मिलाकर करें इस्तेमाल

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आज के समय में हर कोई खूबसूरत स्किन पाना चाहता है। लेकिन चेहरे पर अगर काले धब्बे अगर हो जाये तो पूरा चेहरा ख़राब दिखता हैं ऐसे में लोग घेरलू नुस्खे अपनाते है। वही नारियल तेल को अक्सर काले धब्बों (Hyperpigmentation) को हल्का करने के लिए एक लोकप्रिय घरेलू उपाय के रूप में सुझाया जाता है। यह त्वचा को नमी प्रदान करने और उसकी मरम्मत करने की अपनी क्षमता के लिए जाना जाता है, जिससे अन्य सामग्रियों के साथ मिलाने पर यह एक प्रभावी उपाय बन जाता है।

हल्दी और नारियल तेल से अपनी त्वचा साफ़ करें

हल्दी में करक्यूमिन नामक यौगिक होता है, जो पिगमेंटेशन को कम करने और त्वचा की रंगत निखारने में मदद करता है।एक चुटकी हल्दी को एक चम्मच नारियल तेल में मिलाकर सोने से पहले प्रभावित जगह पर लगाने की सलाह दी जाती है।

नींबू का रस नारियल तेल

नींबू विटामिन सी (Vitamin C) का अच्छा स्रोत है, जो त्वचा में निखार लाता है और काले धब्बों को हल्का करने में मदद कर सकता है। वही एक चम्मच नींबू के रस को एक चम्मच नारियल तेल में मिलाकर लगाया जा सकता है। दूसरी और नींबू का रस लगाने के बाद धूप में निकलने से बचें या सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें, क्योंकि इससे त्वचा धूप के प्रति संवेदनशील हो सकती है।

विटामिन ई तेल और नारियल तेल 

विटामिन ई (Vitamin E) तेल पिगमेंटेशन और झुर्रियों को ठीक करने, उन्हें नमी प्रदान करने और कम करने में मदद करता है। वही अगर आप सोने से पहले नारियल तेल को विटामिन ई कैप्सूल के तेल में मिलाकर अपने चेहरे पर मालिश करने की सलाह दी जाती है। इसके आपकी चेहरे की स्किन काफी सॉफ्ट एंड शाइनिंग हो जाती है।

इसके अलवा विभिन्न स्रोतों के अनुसार, नारियल तेल में हल्दी, नींबू का रस या विटामिन ई तेल मिलाकर लगाने से दाग-धब्बे कम हो सकते हैं। इनमें से, हल्दी या विटामिन ई तेल सबसे सुरक्षित और प्रभावी विकल्प माने जाते हैं, खासकर अगर आपकी त्वचा संवेदनशील है।

हमेशा याद रखें यदि चेहरे पर कोई भी नया उपाय लगाने से पहले, हमेशा अपनी त्वचा के एक छोटे से हिस्से पर पैच टेस्ट ज़रूर करें। इसके अलवा दाग-धब्बे एक चिकित्सीय (therapeutic) स्थिति है, इसलिए किसी भी गंभीर या लगातार समस्या के लिए स्किन विशेषज्ञ से सलाह लेना सबसे अच्छा है।

Farming in India: भारत के वो राज्य जहां सबसे ज्यादा की जाती है खेती, जानिए किसका योगद...

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Farming in India: भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां आज भी लाखों लोग खेती पर निर्भर होकर अपना जीवन यापन करते हैं। देश की बड़ी आबादी अब भी खेती को न सिर्फ आजीविका का साधन मानती है बल्कि इसे जीवन जीने की परंपरा का हिस्सा भी मानती है। जहां एक तरफ उद्योग और टेक्नोलॉजी की दुनिया में भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ कई राज्य ऐसे हैं जहां आज भी खेती को मुख्य पेशा माना जाता है।

तो आइए जानते हैं उन राज्यों के बारे में जहां खेती सबसे ज्यादा होती है और जिनका कृषि के क्षेत्र में योगदान काफी अहम है।

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उत्तर प्रदेश – खेती में सबसे आगे | Farming in India

भारत के सबसे बड़े आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में खेती करने वाले किसानों की संख्या सबसे अधिक है। यहां 33 लाख से ज्यादा किसान सक्रिय हैं। गंगा और यमुना जैसी नदियों की वजह से यहां की जमीन बेहद उपजाऊ है और सिंचाई की अच्छी व्यवस्था भी मौजूद है। यही वजह है कि यहां गेहूं, चावल, गन्ना और दालों की भरपूर खेती होती है।

राज्य की बड़ी आबादी आज भी खेती पर ही निर्भर है और परिवार दर परिवार यही परंपरा आगे बढ़ रही है। खास बात यह है कि यूपी के किसान परंपरागत खेती के साथ अब मॉडर्न एग्रीकल्चर तकनीक भी अपनाने लगे हैं।

मध्य प्रदेश – ‘सोया स्टेट’ की पहचान

मध्य प्रदेश में भी खेती का दायरा बहुत बड़ा है। यहां 30 लाख से ज्यादा किसान हैं और कृषि को राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। गेहूं, सोयाबीन, तिलहन और दालें यहां की मुख्य फसलें हैं। मध्य प्रदेश को अक्सर “सोया स्टेट” भी कहा जाता है क्योंकि देश का बड़ा हिस्सा सोयाबीन यहीं से आता है।

यहां पर उन्नत बीज, सिंचाई प्रणाली और वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है, जिससे खेती की पैदावार में काफी इजाफा हुआ है।

हरियाणा – हरित क्रांति का मजबूत स्तंभ

हरियाणा ने देश में हरित क्रांति के समय अहम भूमिका निभाई थी और आज भी राज्य का कृषि ढांचा काफी मजबूत है। यहां 27 लाख से ज्यादा किसान हैं जो मुख्य रूप से गेहूं, धान और गन्ने की खेती करते हैं।

हरियाणा के किसान खेती में मशीनों का इस्तेमाल खूब करते हैं और लगातार नई तकनीकों को अपना रहे हैं। इससे न सिर्फ पैदावार बढ़ी है बल्कि खेती की लागत भी कम हुई है।

तेलंगाना – तेजी से उभरता कृषि राज्य

तेलंगाना की गिनती अब तेजी से आगे बढ़ रहे कृषि राज्यों में होती है। यहां लगभग 18 लाख किसान हैं और राज्य की प्रमुख फसल धान (चावल) है। इसके अलावा यहां कपास, मक्का और मिर्च की भी बड़ी मात्रा में खेती होती है।

राज्य सरकार द्वारा किसानों को आर्थिक मदद, मुफ्त बिजली और सिंचाई योजनाओं ने यहां की खेती को नई ऊंचाई दी है।

राजस्थान – रेगिस्तान में भी उगती है फसल

हालांकि राजस्थान का बड़ा हिस्सा शुष्क और रेगिस्तानी है, लेकिन यहां के किसानों ने कम पानी में भी खेती करने की मिसाल पेश की है। राज्य में 15 लाख से ज्यादा किसान हैं और यहां बाजरा, सरसों, गेहूं जैसी फसलें उगाई जाती हैं।

पानी की कमी के बावजूद ड्रिप इरिगेशन, वाटर हार्वेस्टिंग जैसी तकनीकों के जरिए किसान खेती करते हैं। यहां के कई किसान पशुपालन को भी आमदनी का जरिया बनाए हुए हैं।

खेती सिर्फ काम नहीं, संस्कृति है

इन सभी राज्यों में एक बात समान है खेती सिर्फ काम नहीं बल्कि संस्कृति और परंपरा का हिस्सा है। खेतों में बीज बोने से लेकर फसल काटने तक का हर पहलू यहां के लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा होता है। त्योहारों, रीति-रिवाजों और पारिवारिक परंपराओं में भी खेती की झलक दिखाई देती है।

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जब एक डायरेक्टर ने 50 से ज्यादा एक्टर्स को एक स्क्रीन पर उतार दिया, जानें कहानी JP Du...

JP Dutta: बॉलीवुड के मशहूर फिल्म निर्देशक जेपी दत्ता का नाम जब भी लिया जाता है, तो ज़हन में एक साथ कई सितारों से सजी फिल्में घूमने लगती हैं। देशभक्ति, जज्बा, रिश्ते, बलिदान और भारी-भरकम स्टारकास्ट – यही तो हैं उनकी फिल्मों की असली पहचान। 3 अक्टूबर 1949 को मुंबई में जन्मे जेपी दत्ता ने न सिर्फ बड़े बजट की फिल्में बनाई, बल्कि हिंदी सिनेमा को ऐसी कहानियां दीं जिन्हें सालों बाद भी याद किया जाता है।

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फिल्मी शुरुआत और पहचान- JP Dutta

जेपी दत्ता ने अपने निर्देशन की शुरुआत 1985 में फिल्म गुलामी से की। इस फिल्म में धर्मेंद्र, मिथुन चक्रवर्ती, नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल और रीना रॉय जैसे दिग्गज कलाकार थे। करीब 1.20 करोड़ के बजट में बनी इस फिल्म ने 3 करोड़ की कमाई की थी। इस फिल्म से ही दत्ता साहब की पहचान एक ऐसे निर्देशक के तौर पर बनने लगी जो बड़ी स्टारकास्ट के साथ मजबूत कहानी दिखाने का दम रखते हैं।

मल्टी-स्टारर फिल्मों के सरताज

जेपी दत्ता का नाम इसीलिए खास है क्योंकि उन्होंने लगातार ऐसी फिल्में बनाई जिसमें 10 से लेकर 50 से ज्यादा कलाकारों को एक साथ स्क्रीन पर लाने का जोखिम उठाया और कई बार उसे सफल भी बनाया।

यतीम (1988) में सनी देओल, डैनी, अमरीश पुरी जैसे कलाकारों ने काम किया। ये फिल्म 1.5 करोड़ में बनी और 3.10 करोड़ की कमाई की। इसके बाद बंटवारा (1989) आई जिसमें धर्मेंद्र से लेकर डिंपल कपाड़िया और शम्मी कपूर तक शामिल थे। इसने भी 10 करोड़ का बिजनेस किया।

क्षत्रिय (1993) जेपी दत्ता की एक और भव्य फिल्म थी जिसमें सुनील दत्त, धर्मेंद्र, विनोद खन्ना, सनी और संजय दत्त जैसे सितारे थे। यह फिल्म 5 करोड़ में बनी और 8.85 करोड़ का कलेक्शन किया।

‘बॉर्डर’ ने रचा इतिहास

1997 में आई फिल्म बॉर्डर जेपी दत्ता के करियर का सबसे बड़ा मोड़ साबित हुई। इस फिल्म ने देश के हर नागरिक की भावनाओं को छुआ। सनी देओल, सुनील शेट्टी, जैकी श्रॉफ, अक्षय खन्ना और तब्बू जैसे सितारे इसमें नजर आए। 12 करोड़ के बजट में बनी ये फिल्म 66.70 करोड़ की रिकॉर्डतोड़ कमाई कर गई। आज भी यह फिल्म देशभक्ति फिल्मों में सबसे ऊपर गिनी जाती है।

रिफ्यूजी और नए सितारों का आगाज़

2000 में रिलीज हुई रिफ्यूजी जेपी दत्ता की ऐसी फिल्म रही जिसने अभिषेक बच्चन और करीना कपूर को लॉन्च किया। हालांकि फिल्म को ज्यादा सफलता नहीं मिली, लेकिन इसकी संजीदा कहानी और किरदारों को सराहा गया।

सबसे बड़ी स्टारकास्ट: LOC कारगिल

2003 में जेपी दत्ता ने फिल्म LOC कारगिल बनाई जो आज भी सबसे ज्यादा कलाकारों वाली फिल्मों में गिनी जाती है। 55 से ज्यादा स्टार्स वाली इस फिल्म में संजय दत्त, अजय देवगन, सैफ अली खान, अभिषेक बच्चन, मनोज बाजपेयी जैसे सितारे थे। फिल्म 33 करोड़ में बनी लेकिन कलेक्शन 31.67 करोड़ तक सीमित रहा।

पलटन: आखिरी कोशिश

2018 में आई जेपी दत्ता की फिल्म पलटन ने दर्शकों से खास जुड़ाव नहीं बना पाया। हालांकि फिल्म में जैकी श्रॉफ, अर्जुन रामपाल और सोनू सूद जैसे बड़े नाम थे, लेकिन 35 करोड़ के बजट में बनी इस फिल्म ने केवल 10.22 करोड़ का कारोबार किया।

निजी जीवन और सम्मान

जेपी दत्ता की पत्नी बिंदिया गोस्वामी भी एक जानी-मानी एक्ट्रेस रह चुकी हैं। दत्ता साहब को फिल्म इंडस्ट्री में उनके योगदान के लिए कई बार सम्मानित किया गया है। वे नेशनल फिल्म अवॉर्ड की जूरी में भी रह चुके हैं और इंडस्ट्री में एक सजग निर्देशक के तौर पर उनकी अलग पहचान है।

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5 Gurudwaras of Canada: कनाडा के ये 5 पुराने गुरुद्वारे बताते हैं कि सिख विरासत कितनी...

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5 Gurudwaras of Canada: जब भी बात कनाडा की होती है, तो एक बात अक्सर सामने आती है वहां की मल्टीकल्चरल सोसाइटी। अलग-अलग देशों, धर्मों और भाषाओं के लोग वहां मिल-जुलकर रहते हैं। इन्हीं में एक मजबूत पहचान है सिख समुदाय की, जो अब से नहीं, बल्कि सौ साल से ज्यादा वक्त से कनाडा की संस्कृति में अहम भूमिका निभा रहा है। सिखों ने न सिर्फ कनाडा में मेहनत से काम किया, बल्कि अपने धर्म और परंपराओं को भी सहेज कर रखा, और उसी का उदाहरण हैं वहां के पुराने गुरुद्वारे, जो आज भी उतने ही सक्रिय हैं जितने अपने शुरुआती दिनों में थे।

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यहां हम बात कर रहे हैं कनाडा के कुछ सबसे पुराने गुरुद्वारों की, जिनकी नींव 1970–80 के दशक में रखी गई थी, और जो आज भी हजारों लोगों की आस्था, सेवा और एकता का केंद्र बने हुए हैं।

गुरु नानक सिख सेंटर, डेल्टा (Guru Nanak Sikh Centre, Delta)

ब्रिटिश कोलंबिया के डेल्टा में बसा ये गुरुद्वारा 1982 में बना था और आज भी एक्टिव है। यह गुरुद्वारा यह इंटरफेथ डायलॉग और कम्युनिटी इंगेजमेंट पर ज़ोर देता है। यहां सिर्फ सिख ही नहीं, दूसरे धर्मों के लोग भी आते हैं और मिल-जुलकर काम करते हैं। आज यह सेंटर ग्रेटर वैंकूवर इलाके के सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सामाजिक स्थान बन चुका है।

गुरु नानक सिख गुरुद्वारा, सरे (Guru Nanak Sikh Gurdwara, Surrey, BC)

क्या आपको पता है कि यह गुरुद्वारा 1902 में बना था, और इसे नॉर्थ अमेरिका के सबसे पुराने गुरुद्वारों में गिना जाता है? जी हां, सरे में स्थित यह गुरुद्वारा आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना तब था जब यहां की सड़कों पर पगड़ी पहने लोगों को देखकर लोग चौंक जाया करते थे। ये सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है ये एक कम्युनिटी सेंटर, एक सांस्कृतिक मंच और एक सेवा स्थल है।

यहां हर दिन सैकड़ों लोग आते हैं, अरदास करते हैं, लंगर करते हैं और एक-दूसरे से जुड़ते हैं। गुरु नानक देव जी को समर्पित इस गुरुद्वारे ने कनाडा में सिख धर्म की नींव रखने में बड़ी भूमिका निभाई है।

गुर सिख टेम्पल, एबॉट्सफ़ोर्ड (Gur Sikh Temple, Abbotsford, BC)

इस गुरुद्वारे को अक्सर “Central Gurdwara” भी कहा जाता है। 1911 में बना यह गुरुद्वारा आज भी खड़ा है, और कनाडा में सिखों के योगदान की इतिहासिक गवाही देता है।

यह स्थान न सिर्फ धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसका सांस्कृतिक और ऐतिहासिक मूल्य भी बहुत बड़ा है। कनाडा के सिख इतिहास में यह एक ऐसा गुरुद्वारा है जो बताता है कि कैसे शुरुआती सिखों ने चुनौतियों का सामना करते हुए अपनी आस्था और परंपरा को ज़िंदा रखा।

रॉस स्ट्रीट गुरुद्वारा, वैंकूवर (Ross Street Gurdwara, Vancouver, BC)

वैंकूवर का यह गुरुद्वारा भी 1912 में स्थापित किया गया था और यह एक सदी से ज्यादा वक्त से स्थानीय सिख समुदाय का आध्यात्मिक केंद्र बना हुआ है। यहां ना सिर्फ धार्मिक आयोजन होते हैं, बल्कि यह गुरुद्वारा सामाजिक मुद्दों पर भी आवाज उठाता है।

समय के साथ, यह जगह एक ऐसा पिलर बन गई है जहां आस्था, एकता और सेवा एक साथ चलती हैं। आज भी यहां हज़ारों लोग हफ्ते भर में आते हैं, और खास आयोजनों के दौरान तो देश-विदेश से संगत उमड़ पड़ती है।

खालसा दीवान सोसाइटी गुरुद्वारा, विक्टोरिया (Khalsa Diwan Society Gurdwara, Victoria, BC)

अब ज़रा सोचिए, जब विक्टोरिया जैसे शांत और खूबसूरत शहर में 1912 में यह गुरुद्वारा बना, तब वहां कितने सिख होंगे? बहुत ही कम! फिर भी, उन्होंने मिलकर कनाडा का यह गुरुद्वारा खड़ा किया।

यह गुरुद्वारा आज भी सिखों की पहली पीढ़ी के संघर्षों और आत्म-विश्वास की निशानी है। इसकी इमारत को देखकर आज भी वो पुराना दौर याद आता है जब सीमित साधनों में भी लोगों ने अपनी पहचान को जिंदा रखा।

विरासत जो आज भी जिंदा है

कनाडा में बसे ये गुरुद्वारे सिर्फ पूजा के स्थान नहीं हैं, ये संघर्ष, सेवा, आस्था और कम्युनिटी भावना की जीती-जागती मिसाल हैं।

1902 में बना Guru Nanak Sikh Gurdwara (Surrey) हो या 1912 में स्थापित Ross Street Gurdwara (Vancouver) इन सबने कनाडा में सिखों की मौजूदगी को सिर्फ दर्ज नहीं किया, बल्कि एक मजबूत पहचान भी दी।

आज की तारीख में, जब सिख समुदाय कनाडा की राजनीति, बिजनेस, एजुकेशन और पब्लिक सर्विस में बड़ी भूमिका निभा रहा है, तो हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि इसकी शुरुआत उन्हीं पुराने गुरुद्वारों से हुई थी, जहां पहली बार “सत श्री अकाल” की गूंज सुनाई दी थी।

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India Riot Free State: भारत के दो अनोखे हिस्से जहां कभी नहीं हुआ दंगा, जानिए शांति की...

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India Riot Free State: भारत जैसा विशाल और विविधता से भरा देश हमेशा से सांप्रदायिक तनाव, सामाजिक झड़पों और दंगों का गवाह रहा है। कभी भाषा के नाम पर, कभी धर्म या जाति को लेकर, देश के अलग-अलग हिस्सों में हिंसा की आग भड़कती रही है। लेकिन इन्हीं सबके बीच दो ऐसे क्षेत्र भी हैं जो इस नकारात्मक इतिहास से पूरी तरह अछूते रहे हैं दरअसल हम बात का रहे हैं सिक्किम और लक्षद्वीप।

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इन दोनों क्षेत्रों की सबसे बड़ी खासियत यही है कि यहां आज तक कोई दंगा नहीं हुआ। एक ऐसा रिकॉर्ड जो आज के समय में अपने आप में बहुत बड़ी बात है। सवाल यह है कि कैसे? क्या वजह है कि जहां पूरा देश कभी न कभी सामाजिक तनाव से गुज़रा, वहीं ये दो राज्य शांति और सौहार्द की मिसाल बनकर उभरे?

लक्षद्वीप: छोटा क्षेत्र, बड़ी मिसाल- India Riot Free State

भारत का सबसे छोटा केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप, जो अरब सागर में स्थित है, यहां की आबादी महज 70,000 के करीब है। कम आबादी के साथ-साथ लोगों के बीच आपसी जुड़ाव इतना मजबूत है कि किसी भी विवाद की स्थिति को बड़ा बनने का मौका ही नहीं मिलता। हर व्यक्ति एक-दूसरे को जानता है, और समस्याएं बातचीत से हल कर ली जाती हैं।

लक्षद्वीप की आर्थिक संरचना भी शांति को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है। यहां के लोग मुख्य रूप से मछली पकड़ने, नारियल की खेती और पर्यटन से जुड़े हैं। जीवनशैली सरल है और प्रतिस्पर्धा की भावना बहुत कम देखी जाती है। इसके साथ ही प्रशासन की सजगता और शिकायतों के त्वरित समाधान ने जनता का विश्वास मजबूत किया है।

सिक्किम: विविधता में एकता की असली मिसाल

पूर्वोत्तर भारत का खूबसूरत पहाड़ी राज्य सिक्किम भी अपने शांतिपूर्ण वातावरण के लिए जाना जाता है। यहां नेपाली, भूटिया और लेप्चा समुदाय मिल-जुलकर रहते हैं, और सभी के बीच एक आपसी सम्मान की भावना है। कोई एक धर्म या जाति दूसरे पर हावी नहीं है, बल्कि सभी को साथ लेकर चलने की संस्कृति यहां देखने को मिलती है।

शिक्षा और विकास भी सिक्किम को बाकी राज्यों से अलग बनाते हैं। सरकार की नीतियां संतुलित हैं और हर समुदाय को बराबर की भागीदारी मिलती है। यहां की जैविक खेती, पर्यावरण संरक्षण की नीतियां और पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था ने लोगों को एक साझा उद्देश्य से जोड़ रखा है।

सिक्किम में प्रशासन भी काफी सजग और लोगों के प्रति जवाबदेह है। यही कारण है कि यहां पर छोटी से छोटी समस्या को समय रहते हल कर लिया जाता है, जिससे सामाजिक तनाव पनपने का मौका नहीं मिलता।

भूगोल का भी अहम योगदान

शांति बनाए रखने में भूगोल भी अपनी भूमिका निभाता है। लक्षद्वीप जहां समुद्र से घिरा हुआ है, वहीं सिक्किम पहाड़ों में बसा हुआ राज्य है। इन इलाकों की भौगोलिक सीमाएं उन्हें बाहरी हस्तक्षेपों और कट्टर विचारधाराओं से काफी हद तक दूर रखती हैं।

बाहरी राजनीतिक या सांप्रदायिक तत्वों को यहां पनपने की जमीन नहीं मिलती, और स्थानीय लोग भी बाहरी प्रभावों से सावधानी से निपटना जानते हैं।

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Amit Malviya Fake News: फेक न्यूज़ के फेर में फंसे अमित मालवीय, कर्नाटक के दलितों की ...

Amit Malviya Fake News: सोशल मीडिया पर भ्रामक जानकारी फैलाने के मामले में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय घिर गए हैं। इस बार उन्होंने एक वीडियो शेयर किया जिसमें कुछ लोग खुद को कोड़ों से मारते नजर आ रहे हैं। इस वीडियो को पोस्ट करते हुए उन्होंने दावा किया कि “कर्नाटक के दलित आज जंतर मंतर (दिल्ली) में इकट्ठा हुए हैं और कांग्रेस को वोट देने की गलती पर खुद को सजा दे रहे हैं।” जैसे ही ये विडिओ सोशल मीडिया पर वाइरल हुआ लोगों ने अमित मालवीय की पोल खोल दी।

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क्या था वीडियो में? Amit Malviya Fake News

सबसे पहले विडिओ की बात करते हैं, तो वीडियो में कुछ लोग पारंपरिक पोशाकों में नजर आ रहे हैं और वे अपने शरीर पर चाबुक मारते दिखाई देते हैं। इसे देखकर कोई भी समझ सकता है कि यह कोई धार्मिक अनुष्ठान है। लेकिन मालवीय ने इसे कांग्रेस विरोधी प्रदर्शन के तौर पर पेश किया, जिससे सोशल मीडिया पर हंगामा मच गया।

लोगों ने बताया झूठा दावा

मालवीय का यह ट्वीट तुरंत वायरल हुआ, लेकिन इसके साथ ही उनका झूठ भी सामने आ गया। एक यूजर ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए लिखा:

अमित मालवीय से झूठा पूरे सोशल मीडिया पर कोई नहीं मिलेगा। झूठ का ऑस्कर सिर्फ इन्हें या इनके साहेब को ही मिलेगा। कर्नाटक के दलित अपने गांव में भगवान की पूजा कर रहे हैं और ये सिरफिरा झूठा इसे कांग्रेस के ख़िलाफ़ दिल्ली में प्रदर्शन बता रहा है।

वहीं एक अन्य यूजर ने ट्वीट किया:

“मालपुआ बीएसडी वाला न तो भारत के बारे में जानता है और न ही भारतीय संस्कृतियों के बारे में। फर्जी खबरों का फव्वारा फिर से आ गया है। यह कर्नाटक के कोडम्बल गाँव का धेगु मेगु अनुसूचित जाति समुदाय है। वे देवी मरियम्मा की पूजा करते हैं, नाचते हैं और जीविका चलाने के लिए कोड़े मारते हैं।”

जैसे ही ये बातें स्पष्ट होती हैं, पोस्ट के नीचे खुद लिखा है कि ये गलत है, और पोस्टर ने खुलासा किया है:

“यह कर्नाटक के कोडम्बल गांव का धेगु मेगु एससी समुदाय है। ये मरियम्मा देवी की पूजा करते हैं, नाचते हैं और चाबुक मारते हैं – राजनीति या कांग्रेस से इसे कुछ लेना-देना नहीं है।”

असलियत क्या है?

सच तो यह है कि यह वीडियो कर्नाटक के कोडम्बल गाँव का है। वहाँ के धेगु मेगु अनुसूचित जाति समुदाय के लोग हर साल माता मरियम्मन की पूजा करते हैं, पारंपरिक नृत्य करते हैं और खुद को कोड़े मारते हैं। यह पूजा उनकी आस्था और संस्कृति का हिस्सा है और इसका राजनीति या कांग्रेस पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है।

मालवीय की भ्रामक जानकारी कोई नई बात नहीं

अमित मालवीय का नाम पहले भी कई बार गलत और भ्रामक जानकारी फैलाने के मामलों में सामने आ चुका है। वह कई बार विपक्ष, सामाजिक संगठनों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ झूठे दावे कर चुके हैं। चूंकि वे भाजपा के आईटी सेल के मुखिया हैं, इसलिए उनके ट्वीट्स को पार्टी समर्थक बड़े पैमाने पर साझा करते हैं, जिससे झूठी बातें सच जैसी दिखने लगती हैं।

चलिए ऐसे ही कुछ मामलों पर एक नजर डालते हैं:

1. सीएए प्रदर्शनकारियों पर झूठा आरोप

घंटाघर, लखनऊ में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे?

साल 2019, 28 दिसंबर को मालवीय ने एक वीडियो शेयर किया था जिसमें उन्होंने दावा किया कि सीएए का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारी “पाकिस्तान जिंदाबाद” के नारे लगा रहे हैं। लेकिन ऑल्ट न्यूज़ की फैक्ट चेकिंग में सामने आया कि वास्तव में नारा था: “काशिफ साहब जिंदाबाद”, जो AIMIM के नेता काशिफ अहमद के लिए था। यह सरासर फर्जी जानकारी थी।

2. एएमयू के छात्रों के खिलाफ भ्रामक वीडियो

क्या छात्रों ने कहा था “हिंदुओं की कब्र खुदेगी”?

साल 2019, 16 दिसंबर को मालवीय ने एक और वीडियो शेयर किया जिसमें कहा गया कि एएमयू के छात्र हिंदुओं के खिलाफ नारे लगा रहे हैं। लेकिन हकीकत ये थी कि छात्र हिंदुत्व की राजनीति, ब्राह्मणवाद और जातिवाद के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे। उन्होंने कहा, “हिंदुत्व की कब्र खुदेगी, एएमयू की छाती पर, सावरकर की कब्र खुदेगी, एएमयू की छाती पर।”

3. राहुल गांधी की “आलू से सोना” मशीन

कटे-छंटे वीडियो से फैलाई गलतफहमी

नवंबर 2017 में मालवीय ने राहुल गांधी का एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें वे कहते नजर आ रहे हैं कि “ऐसी मशीन लगाऊंगा, इस साइड से आलू घुसेगा, उस साइड से सोना निकलेगा।” यह वीडियो बहुत वायरल हुआ और राहुल गांधी की खूब खिल्ली उड़ाई गई।

जबकि पूरा वीडियो देखने पर साफ होता है कि राहुल दरअसल प्रधानमंत्री मोदी पर तंज कस रहे थे और कह रहे थे कि यह बयान खुद मोदी ने आलू किसानों से किया था। यानी मालवीय ने जानबूझकर वीडियो को एडिट कर उसे भ्रामक तरीके से पेश किया।

4. कुंभ मेले में मोदी को बताया ‘पहले राज्य प्रमुख’

एक और तथ्यात्मक गलती

Amit Malviya Fake News
source: Google

2019 में नरेंद्र मोदी जब प्रयागराज के कुंभ में स्नान करने गए तो मालवीय ने ट्वीट किया कि “मोदी पहले राज्य प्रमुख हैं जो कुंभ आए हैं”। जबकि सच्चाई यह है कि राज्य प्रमुख राष्ट्रपति होता है, न कि प्रधानमंत्री। भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद कुंभ मेले में हिस्सा ले चुके हैं। यहाँ तक कि जवाहरलाल नेहरू भी प्रधानमंत्री रहते हुए कुंभ गए थे। यानी मालवीय का दावा एक बार फिर गलत निकला।

Amit Malviya Fake News
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भाजपा की रणनीति या सिर्फ एक ‘गलती’?

अब सवाल ये उठता है कि बार-बार ऐसी गलत जानकारियों को फैलाना एक व्यक्ति की गलती है या एक सोची-समझी रणनीति? जब कोई नेता इतने बड़े पद पर होता है और उसके पास सोशल मीडिया पर लाखों की फॉलोइंग होती है, तो उसकी कही गई हर बात का असर होता है। जब वह जानबूझकर भ्रामक वीडियो या खबरें पोस्ट करता है, तो समाज में नफरत, भ्रम और विभाजन को बढ़ावा मिलता है।

यह सिर्फ राजनीतिक स्टंट नहीं, बल्कि लोकतंत्र और सामाजिक सद्भाव के लिए खतरनाक हो सकता है।

अमित मालवीय का ताज़ा ट्वीट एक बार फिर यही साबित करता है कि राजनीतिक फायदे के लिए धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं को तोड़-मरोड़ कर पेश करना अब आम होता जा रहा है। लोकतंत्र की सेहत के लिए जरूरी है कि ऐसे झूठे दावों पर सवाल पूछे जाएं, जांच हो और जवाबदेही तय हो।

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Amit Dhurve story: बागेश्वर धाम में चमकी आदिवासी सिंगर की किस्मत, रातों-रात हुआ मशहूर

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Tribble Man Amit Dhurve story: सोशल मीडिया पर मध्य प्रदेश के बागेश्वर धाम वाले धीरेंद्र शास्त्री जी(bageshwar dham dhirendra shastri) को तो अपने कई बार वायरल होते हुए देखा होगा। उनकी कथाओं को सुनने के लिए हजारों की संख्या में लोग आते है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से बागेश्वर धाम तो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है लेकिन धीरेन्द्र शास्त्री के बजाय इस बार वायरल होने वाले है अमित धुर्वे।(who is amit dhurve) सोशल मीडिया के सेंसेशन बन चुके अमित धुर्वे का धीरेन्द्र शास्त्री से क्या नाता है तो चलिए आपको बताते है कि आखिर क्यों इस बार धीरेन्द्र शास्त्री के बजाय उनका एक भक्त अमित धुर्वे वायरल हो रहा है। और जिसकी वाहवाही करते खुद बागेश्वर धाम के लोग भी करते हुए नहीं थक रहे है।

अमित धुर्वे की कहानी Who is Amit Dhurve

मध्य प्रदेश का छतरपुर जिले के कटनी इलाके के बडगांव के रहने वाले अमित धुर्वे, जो नर्मदा नदी के किनारे एक झोपडी बना कर रहते हैं और आदिवासी समाज के भजन मंडली का हिस्सा है। जगह जगह जाकर भजन गा कर किसी तरह ए जीवन यापन करने वाले अमित को अचानक दुर्गा पूजा के समारोह के दौरान बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेन्द्र शास्त्री का रात के ढाई बजे कॉल आया और नवरात्रों के मौके पर बागेश्वर धाम आने का निमंत्रण दिया। अमित के लिए ये अब सपने जैसा था। लेकिन फिर भी वो ईश्वर की मर्जी मानकर वहां गए। लेकिन मातारानी की कृपा वाकई में अमित के सर पर थी। बागेश्वर धाम में उन्हें गायन का मौका मिला, और फिर क्या था अमित ने पूरी जान लगा कर गया, उनकी आवाज दिल से निकली और सीधे दिल तक पहुंची। अमित धुर्वे की गायकी का जादू ऐसा था कि लोगों की तालियां एक पल के लिए भी रुकी। पंडित धीरेन्द्र शास्त्री तो अमित के आवाज के ऐसे कयाल हो गए कि उन्होंने एक दिन में आया सारा चढ़ावा अमित के नाम कर दिया। और 50 हजार रूपय आर्थिक सहायता भी दी। लेकिन अमित की किस्मत चमकनी थी पर उसे बाबा बागेश्वर धाम वाले ने चमका दिया। अमित का गायन रातों रात वायरल हो गया। और वो बन गए सोशल मीडिया सेंसेशन।

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मिलने लगे बॉलिवुड म्यूजिक के ऑफर Amit Dhurve success story

बागेश्वर धाम वाले की कृपा क्या हुई अमित का करियर भी चल निकला। उसे टी सीरीज जैसी बड़ी कंपनी ने अप्रोच किया है। एक आदिवासी गरीब आदिवासी परिवार से आने वाले अमित धुर्वे ने 8 साल की उम्र में ही अपनी मां को खो दिया था। 10 भाई बहनों में से 7 बहने और 3 भाई का परिवार तंबू गाड़ कर रहता है। मां की मौत के बाद बड़ी बहन ने पाला। न तो खेती करने के लिए कोई जमीन है और न ही कभी स्कूल जाने का मौका मिला। हां बचपन से केवल संगीत सीखने और गायकी का शौक था। बचपन में एक बार कटनी रेलवे स्टेशन पर अमित ने कुछ लड़कों को पत्थर बजाकर गाते हुए देखा था। संगीत के शौक ने अमित को उन लड़कों की टोली में शामिल कर दिया। अमित की टोली सारा दिन ट्रेन के डब्बे में गाना गाकर पैसे कमाए करते थे लेकिन माली हालत फिर भी नहीं सुधरी। कभी केवल पेट भरने के लिए संगीत का इस्तेमाल करने वाले अमित ने आगे जाकर गायकी में ही बढ़ने का फैसला किया। अमित हारमोनियम ठीक करने का काम करते थे जहां भी हो ठीक करते उसी जगह लोगों का मन भी बहलाते थे धीरे-धीरे अमित को पहचान मिलने लगी और रामायण मंडलियों में गाने का मौका मिला भजन गायकी से घर चलने लगा।

अमित धुर्वे कैसे पहुंचे बागेश्वर धाम Amit Dhurve in bageshwar dham

दरअसल अमित नर्मदा नदी के किनारे गायकी का रियाज कर रहे थे तभी किसी ने उनका वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर डाल दिया। जिससे वो वायरल हो गए। उनकी गायकी देश के कोने कोने में पहुंच गई। और इस दौरान एक तबला वादक ने अमित से अपनी बेटी की शादी करने का प्रस्ताव दिया। अमित की शादी हो गई और वो 5 बच्चों के पिता है। लेकिन घर की माली हालत तब भी नहीं सुधरी। कहां जाता है कि एक बार अमित को पैरालिसिस अटैक हो गए था। अमित अभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं हुए है लेकिन उनकी गायकी में कोई कमी नहीं आई।

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उनकी गायकी से ही प्रभावित होकर पंडित धीरेन्द्र शास्त्री की तरफ से उन्हें अपने प्रोग्राम में गाने का मौका मिला। और बस फिर क्या था इस मौके ने अमित की जिंदगी बदल दी। अमित रातोरात बड़े स्टार बन गए। आज उन्हें कई नामी म्यूजिक कंपनी से ऑफर आने लगे है। टी-सीरिज के अलावा उन्हें संस्कार चैनल पर भी गाने का ऑफर आया है। देश विदेश सभी जगहों पर उन्हें गाने के लिए बुलाया जा रहा है। अमित मानते है कि उनके टेलेंट और किस्मत के साथ साथ बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर पंडित धीरेन्द्र शास्त्री जी की अनुकंपा ने उनकी पूरी जिंदगी को बदल दिया। वो इसके लिए चाहे कितना भी धन्यवाद कह दें कम ही होगा।

 

Drishti IAS News: 216 सेलेक्शन का दावा निकला हवा-हवाई, दृष्टि IAS पर गिरी CCPA की गाज...

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Drishti IAS News: यूपीएससी जैसी प्रतिष्ठित परीक्षा में सफल उम्मीदवारों के नाम और तस्वीरों के जरिए भ्रामक प्रचार कर छात्रों को लुभाने वाली कोचिंग संस्थानों की पोल एक बार फिर खुल गई है। इस बार केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) ने दृष्टि IAS (VDK Eduventures Pvt Ltd) पर सख्त कार्रवाई करते हुए 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। कारण? UPSC सिविल सेवा परीक्षा (CSE) 2022 के नतीजों को लेकर किए गए एक विज्ञापन में तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा गया और छात्रों को भ्रमित किया गया।

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क्या था मामला? Drishti IAS News

दृष्टि IAS ने अपने विज्ञापन में बड़े-बड़े अक्षरों में दावा किया कि उसके संस्थान से “216+ चयन” हुए हैं। विज्ञापन में सफल उम्मीदवारों की तस्वीरें और नाम भी छापे गए। लेकिन जब CCPA ने इसकी पड़ताल की, तो सामने आया कि इनमें से 162 उम्मीदवार सिर्फ फ्री इंटरव्यू गाइडेंस प्रोग्राम (IGP) का हिस्सा थे यानी वे पहले ही UPSC की प्रीलिम्स और मेन्स पास कर चुके थे और केवल इंटरव्यू से पहले इस फ्री गाइडेंस से जुड़े।

बाकी 54 उम्मीदवार ही ऐसे थे जिन्होंने संस्थान के नियमित कोर्सों में नामांकन कराया था। ऐसे में संस्थान ने यह स्पष्ट नहीं किया कि जिन छात्रों को अपने सेलेक्शन में गिनाया जा रहा है, वे कितनी अवधि तक और किस कोर्स का हिस्सा थे। नतीजतन, यह दावा ‘भ्रामक विज्ञापन’ की श्रेणी में आ गया, जो कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2(28) का उल्लंघन है।

पुराना दोष दोहराया

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यह पहली बार नहीं है जब दृष्टि IAS को ऐसा करते पकड़ा गया हो। सितंबर 2024 में भी CCPA ने UPSC CSE 2021 के नतीजों को लेकर “150+ चयन” का दावा करने पर संस्थान पर 3 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। उस समय संस्थान की दी गई लिस्ट में 161 छात्रों के नाम थे, जिनमें से 148 सिर्फ IGP में शामिल हुए थे।

इसके बावजूद, 2022 में संस्थान ने दावा और बढ़ा दिया और फिर वही तरीका अपनाया बिना पूरी जानकारी दिए हुए ‘सेलेक्शन’ की संख्या को मार्केटिंग टूल बना दिया। CCPA ने इसे नियमों की खुली अवहेलना करार दिया।

छात्रों के साथ खिलवाड़

CCPA का कहना है कि इस तरह के विज्ञापन सीधे-सीधे छात्रों और उनके अभिभावकों के “इनफॉर्म्ड डिसीजन” लेने के अधिकार का हनन करते हैं। यानी छात्र जब ये विज्ञापन देखते हैं, तो उन्हें लगता है कि संस्थान की वजह से ही ये सफलताएं मिलीं, जबकि हकीकत इससे अलग होती है। इससे उनके करियर से जुड़ा फैसला गलत दिशा में जा सकता है।

चेतावनी बाकी संस्थानों के लिए भी

CCPA अब तक 54 कोचिंग संस्थानों को नोटिस जारी कर चुका है, जिनमें से 26 पर कुल 90.6 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जा चुका है। मंत्रालय ने चेतावनी दी है कि अब कोचिंग संस्थानों को पारदर्शिता रखनी होगी और तथ्य छुपाने या बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की प्रवृत्ति से बचना होगा।

छात्रों के भविष्य के साथ खेलने वाली इस प्रवृत्ति पर लगाम लगाने के लिए CCPA लगातार सख्त रुख अपनाए हुए है। उम्मीद है कि इस कार्रवाई से कोचिंग इंडस्ट्री में कुछ हद तक सुधार आएगा और छात्रों को सही जानकारी मिल पाएगी, जिससे वे अपने भविष्य को लेकर समझदारी से निर्णय ले सकें।

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Kanpur News: कानपुर देहात के जंगल में मिली प्रेमी-प्रेमिका की लाशें, आत्महत्या या हत्...

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Kanpur News: कानपुर देहात के किशवा-दुरौली गांव के पास जंगल में गुरुवार को तब हड़कंप मच गया, जब गांववालों को झाड़ियों से तेज दुर्गंध आने लगी। शक होने पर ग्रामीणों ने पुलिस को सूचना दी और जब पुलिस और फोरेंसिक टीम मौके पर पहुंची, तो वहां का नज़ारा दिल दहला देने वाला था। झाड़ियों के बीच एक युवक और एक युवती के शव पड़े थे। युवती की लाश इस कदर खराब हो चुकी थी कि जानवरों ने उसे नोच खाया था और वह लगभग कंकाल में बदल चुकी थी। वहीं युवक का शव पानी में सड़-गल गया था, जिससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि मौत कई दिन पहले ही हो चुकी थी।

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शवों की पहचान: प्रेम कहानी का दर्दनाक अंत? Kanpur News

मौके पर तलाशी के दौरान युवक की जेब से आधार कार्ड बरामद हुआ, जिससे उसकी पहचान 22 साल के उमाकांत के रूप में हुई। वह थाना राजपुर के खरतला बांगर गांव का रहने वाला था और पिछले 11 दिनों से लापता था। उसके पिता महावीर ने बताया कि उन्होंने उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट पहले ही दर्ज कराई थी।

पुलिस ने जब युवती की पहचान की तो सामने आया कि वह उमाकांत की ही 16 साल की साली थी, जो 25 सितंबर से गायब थी। वह मूल रूप से उसी गांव की रहने वाली थी, लेकिन कुछ समय से देवराहाट में अपने चाचा के घर रह रही थी।

सूत्रों की मानें तो दोनों के बीच प्रेम संबंध थे। इसी वजह से परिजनों ने लड़की को गांव से दूर चाचा के घर भेज दिया था, ताकि दोनों के बीच की दूरी बढ़ सके। मगर दोनों ने शायद परिवार की बंदिशों को तोड़कर साथ रहने का फैसला किया – लेकिन नतीजा इतना भयावह होगा, किसी ने सोचा नहीं था।

घटनास्थल से मिले सुराग और उठते सवाल

पुलिस को घटनास्थल से दो डिस्पोजल ग्लास और सल्फास (जहरीली दवा) की पुड़िया मिली है। इससे शक जताया जा रहा है कि दोनों ने जहर खाकर आत्महत्या की होगी।

हालांकि, इस थ्योरी पर भी कई सवाल खड़े हो गए हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब शव इतने पुराने हैं और जिले में बीते दो दिनों से लगातार भारी बारिश हो रही है, तो डिस्पोजल ग्लास और जहर की पुड़िया सूखी हालत में कैसे पड़ी मिली?

क्या यह आत्महत्या नहीं बल्कि साजिश के तहत की गई हत्या थी? क्या किसी ने दोनों की मौत को आत्महत्या दिखाने की कोशिश की है?

पुलिस जांच में जुटी, पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार

क्षेत्राधिकारी भोगनीपुर संजय सिंह ने बताया कि दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है। रिपोर्ट आने के बाद ही यह साफ हो सकेगा कि मौत की असली वजह क्या थी।

फिलहाल पुलिस हर एंगल से जांच कर रही है –

  • क्या दोनों ने साथ मिलकर आत्महत्या की?
  • क्या परिवार या समाज का दबाव वजह बना?
  • या फिर किसी तीसरे ने साजिश के तहत दोनों की हत्या कर दी?

बता दें, गांव में इस घटना के बाद मातम पसरा हुआ है। परिवार पूरी तरह टूट चुका है, वहीं ग्रामीणों में डर और चर्चा दोनों तेज़ हैं।

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