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Pension Rule: पति की मौत के बाद दो पत्नियों में पेंशन की जंग: नियम क्या कहते हैं? जान...

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Pension Rule: सरकारी नौकरी करने वाले कर्मचारियों के लिए पेंशन एक महत्वपूर्ण वित्तीय सुरक्षा होती है, जो उनके रिटायरमेंट के बाद उनके और उनके परिवार के भविष्य की चिंता को कम करती है। पेंशन एक ऐसा साधन है, जो मृत्यु के बाद भी परिवार की वित्तीय स्थिति को स्थिर रखने का काम करता है। लेकिन जब एक सरकारी कर्मचारी की दो पत्नियां हों और वह निधन हो जाए, तो यह सवाल उठता है कि पेंशन का बंटवारा किसके बीच होगा? इस मुद्दे को लेकर भारतीय पेंशन नियमों में स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए हैं, जो इस तरह के मामलों में फैसला लेने में मदद करते हैं। आइए, जानते हैं कि इस स्थिति में पेंशन का वितरण कैसे होगा।

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क्या कहते हैं पेंशन नियम? (Pension Rule)

2024 में पेंशन विभाग ने इस विषय पर एक ऑफिस मेमोरेंडम जारी किया था, जिसमें इस सवाल का स्पष्ट समाधान देने की कोशिश की गई थी। भारत में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत पहली पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरी शादी करना गैरकानूनी माना जाता है। यह बात 2021 के CCS (पेंशन) नियमों के भी खिलाफ है। इस संदर्भ में सरकार ने यह स्पष्ट किया कि इस तरह के मामलों में निर्णय CCS (पेंशन) रूल्स, 2021 के तहत ही लिया जाएगा। इसके तहत यह पहले देखा जाएगा कि दूसरी शादी कानूनी रूप से वैध है या नहीं। इस पर फैसला लेने के लिए प्रत्येक मामले में कानूनी राय ली जाएगी, ताकि यह तय किया जा सके कि पेंशन किसे दी जाएगी।

पेंशन का बंटवारा कैसे होगा?

CCS (पेंशन) रूल्स, 2021 के नियम 50 (6) (1) में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि विधवा और विधुर का अर्थ उस व्यक्ति से है, जिसका विवाह मृतक सरकारी कर्मचारी या पेंशनभोगी के साथ कानूनी रूप से हुआ हो। इसका मतलब यह है कि अगर मृतक कर्मचारी की दो पत्नियां हैं, तो पेंशन दोनों पत्नियों को बराबरी से मिलेगी।

अगर किसी पत्नी का निधन हो जाता है या वह पेंशन के अयोग्य हो जाती है, तो उसकी हिस्सेदारी उसके बच्चों को दी जाएगी, लेकिन इसके लिए कुछ शर्तें पूरी करनी होंगी। इसका मतलब यह है कि अगर एक पत्नी की मृत्यु हो जाती है, तो उसका पेंशन हिस्सा उसके बच्चों को मिलेगा, बशर्ते CCS (पेंशन) रूल्स, 2021 के नियम 50 (9) की शर्तें पूरी की जाएं।

नियम 50 (9) की शर्तें

नियम 50 (9) के तहत, पेंशन का वितरण केवल तभी किया जा सकता है जब निर्धारित शर्तों को पूरा किया जाए। इसमें यह देखा जाएगा कि पत्नी का पेंशन से जुड़ा अधिकार कानूनी है या नहीं, और क्या बच्चों के पास किसी विशेष प्रकार का वैध दावा है। इन शर्तों के अनुसार, पेंशन का वितरण बच्चों के बीच बराबरी से किया जाएगा यदि उनकी मां का पेंशन के लिए अधिकार खत्म हो चुका है।

इसके अलावा क्या खास है?

यह निर्णय कि पेंशन किसे दी जाएगी, पूरी तरह से कानूनी प्रक्रिया और पेंशन नियमों पर निर्भर करेगा। यही कारण है कि इस तरह के मामलों में कानूनी राय अनिवार्य होगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पेंशन का वितरण सही तरीके से और न्यायसंगत रूप से किया जाए। खास बात यह है कि इस प्रक्रिया में पारिवारिक मामलों और पेंशन नियमों के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश की जाती है, ताकि किसी भी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन न हो।

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US Arms Policy: 13000 KG बम ढोने वाला ‘सुपर बंकर बस्टर’ अब खुद खतरे में, अमेरिका की ह...

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US Arms Policy: ‘हमने उन्हें जमींदोज कर दिया! ईरान के न्यूक्लियर बंकर अब मिट्टी में मिल गए हैं!’ यह बयान डोनाल्‍ड ट्रंप और व्हाइट हाउस के अधिकारियों के बीच इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। अमेरिकी प्रशासन का दावा है कि उसने ईरान के सबसे सुरक्षित न्यूक्लियर बंकरों पर सटीक हमला किया और उन्हें पूरी तरह नष्ट कर दिया। लेकिन क्या यह सच है, या यह केवल प्रचार का हिस्सा है? आईए जानते हैं पूरी कहानी, जिसमें छिपे हैं कई अहम सवाल और जटिलताएँ।

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GBU-57 बम और अमेरिकी हमला- US Arms Policy

अमेरिकी सेना ने ईरान के सबसे सुरक्षित न्यूक्लियर ठिकानों, फोर्डो और नतांज पर हमला करने के लिए 13,000 किलो वजनी GBU-57 बमों का इस्तेमाल किया। इन बमों को ‘बंकर बस्टर्स’ के नाम से जाना जाता है, जो खासतौर पर गहरे, स्टील और कंक्रीट से बने बंकरों को नष्ट करने के लिए बनाए गए हैं। इन बमों का वजन और शक्ति इतनी अधिक है कि यह माउंट एवरेस्ट के वजन के बराबर मानी जाती है। अमेरिकी प्रशासन ने दावा किया कि इन बमों के माध्यम से उन्होंने ईरान के सबसे संरक्षित बंकरों को पूरी तरह तबाह कर दिया।

व्हाइट हाउस ने इसे ‘क्लीन हिट’ बताया, यानी एक सटीक और पूरी तरह सफल हमला। लेकिन अब इस हमले को लेकर विशेषज्ञों की राय में अंतर नजर आ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि GBU-57 बम ने शायद कुछ नुकसान पहुंचाया हो, लेकिन यह पूरी तरह से बंकरों को नष्ट करने में सफल नहीं रहा। इसका मतलब यह है कि हमले का प्रभाव उतना शक्तिशाली नहीं था जितना कि अमेरिकी प्रशासन ने दावा किया।

बमों की कमी और अगली कार्रवाई की चुनौती

अमेरिका ने कुल 20 GBU-57 बम बनाए थे, लेकिन इस हमले में 14 बमों का उपयोग किया गया। अब केवल 6 बम बाकी हैं। इसका सवाल यह उठता है कि यदि भविष्य में और हमले करने की जरूरत पड़ी तो क्या इन बमों को फिर से तैयार किया जा सकेगा? अमेरिकी प्रशासन ने इस चुनौती का सामना करते हुए एक नई रणनीति पर काम शुरू किया है।

नया रणनीतिक बदलाव

‘National Interest’ की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी एयरफोर्स अब GBU-57 बम को रिटायर करने की सोच रही है और इसके स्थान पर एक नया, हल्का और स्मार्ट बम विकसित किया जा रहा है। यह नया बम 22,000 पाउंड (करीब 10,000 किलो) का होगा और इसमें रॉकेट बूस्ट की सुविधा होगी। इसका फायदा यह है कि यह बम ‘स्टैंड-ऑफ’ क्षमता के साथ काम करेगा, यानी पायलट को हमले के दौरान खतरे में नहीं डाला जाएगा। इससे पहले के बमों की तुलना में यह हल्का, स्मार्ट और अधिक सुरक्षित होगा।

क्या ट्रंप प्रशासन का दावा सिर्फ प्रचार था?

यह सवाल अब सामने आ रहा है कि अगर GBU-57 बम इतना प्रभावी था, तो उसे इतनी जल्दी बदलने की जरूरत क्यों पड़ी? क्या ट्रंप प्रशासन का दावा केवल प्रचार पाने का एक तरीका था, या फिर सच में ईरान के बंकरों को पूरी तरह से नष्ट करने में कोई खामी थी? इस तरह के सवाल इस बात को और भी महत्वपूर्ण बना रहे हैं कि आखिरकार क्या अमेरिका ने ईरान के न्यूक्लियर बंकरों को पूरी तरह से नष्ट किया है, या यह केवल एक प्रचार था?

रणनीति में खामियां और चुनौतियाँ

अगर हम सच का सामना करें, तो यह स्पष्ट है कि अमेरिकी हमला पूरी तरह से सफल नहीं रहा। ईरान के बंकर पूरी तरह से तबाह नहीं हुए और अमेरिका के पास अब उनके खिलाफ हमला करने के लिए अधिक बम नहीं हैं। इससे यह भी संकेत मिलता है कि अमेरिकी सैन्य रणनीति में कुछ खामियां हो सकती हैं। नए बमों की योजना भी इस बात का संकेत देती है कि अमेरिका को अपनी रणनीति में सुधार करना होगा, ताकि भविष्य में ईरान जैसे दुश्मन पर प्रभावी तरीके से कार्रवाई की जा सके।

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Indian Railways New Rules: IRCTC का बड़ा फैसला: 1 जुलाई से इन यूज़र्स की तत्काल टिकट ...

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Indian Railways New Rules: अगर आप भी नियमित रूप से ट्रेन से यात्रा करते हैं और खासकर IRCTC के जरिए टिकट बुक करते हैं, तो जुलाई 2025 से लागू होने वाले भारतीय रेलवे के नए नियमों पर ध्यान देना बेहद जरूरी है। रेलवे ने यात्रियों के अनुभव को बेहतर और पारदर्शी बनाने के लिए कई बड़े बदलाव किए हैं। इन बदलावों में तत्काल टिकट बुकिंग से लेकर वेटिंग लिस्ट, किराया बढ़ोतरी और रिजर्वेशन चार्ट की टाइमिंग तक शामिल हैं। आइए जानते हैं कि 1 जुलाई से लागू होने वाले इन बदलावों का यात्रियों पर क्या असर पड़ेगा।

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तत्काल टिकट बुकिंग के लिए IRCTC अकाउंट का आधार से लिंक होना जरूरी- Indian Railways New Rules

1 जुलाई से तत्काल टिकट बुकिंग के लिए एक नया नियम लागू किया जाएगा। अब से तत्काल टिकट बुक करने के लिए आपके IRCTC अकाउंट का आधार कार्ड से लिंक होना अनिवार्य होगा। रेलवे ने स्पष्ट किया है कि बुकिंग के शुरू होने के पहले 10 मिनट में केवल आधार लिंक्ड यूजर्स ही टिकट बुक कर पाएंगे। इस समय में रेलवे एजेंट टिकट नहीं काट सकेंगे। इसका मतलब है कि अगर आपका IRCTC अकाउंट आधार से लिंक नहीं है, तो तत्काल टिकट बुक करने में कठिनाई हो सकती है। इसलिए, अपनी प्रोफाइल को तुरंत अपडेट करें और आधार लिंक करें, ताकि आप इस सुविधा का लाभ उठा सकें।

टिकट बुकिंग के लिए आधार OTP अनिवार्य

रेलवे ने टिकट बुकिंग को और सुरक्षित बनाने के लिए एक नया कदम उठाया है। 15 जुलाई से, जब आप IRCTC के माध्यम से ट्रेन टिकट बुक करेंगे, तो आपके आधार से जुड़े मोबाइल नंबर पर एक OTP आएगा। इस OTP के बिना टिकट बुक नहीं हो पाएगा। यह कदम फर्जी बुकिंग को रोकने और टिकट बुकिंग प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए उठाया गया है। साथ ही, रेल एजेंट अब 30 मिनट तक तत्काल टिकट नहीं बुक कर सकेंगे।

रेलवे टिकट किराया बढ़ा, AC और नॉन-AC दोनों महंगे होंगे

1 जुलाई से रेलवे ने टिकट किराए में भी मामूली बढ़ोतरी की है। नॉन-AC क्लास के किराए में 1 पैसे प्रति किमी और AC क्लास के किराए में 2 पैसे प्रति किमी का इजाफा किया गया है। इसका मतलब यदि आप 500 किमी की यात्रा करते हैं तो आपको AC क्लास में 10 रुपए और नॉन-AC क्लास में 5 रुपए ज्यादा देने पड़ सकते हैं। यदि यात्रा की दूरी 1000 किमी है, तो यह बढ़ोतरी 10 से 20 रुपए तक हो सकती है। रेलवे को उम्मीद है कि इस कदम से उन्हें साल भर में करीब 900 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व मिलेगा।

वेटिंग टिकट पर लिमिट तय

अब रेलवे ने वेटिंग टिकट जारी करने पर भी एक नई सीमा तय की है। अब किसी भी क्लास में कुल सीटों के मुकाबले 25% से ज्यादा वेटिंग टिकट नहीं जारी होंगे। यानी यदि किसी कोच में 100 सीटें हैं, तो वेटिंग टिकट की संख्या 25 से ज्यादा नहीं होगी। हालांकि, महिला और दिव्यांग यात्रियों को इस नियम से राहत दी गई है। इस कदम का उद्देश्य बुकिंग प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और क्लियर बनाना है, हालांकि इससे कुछ भीड़भाड़ वाले रूट्स पर कन्फर्म टिकट पाने में यात्रियों को दिक्कत हो सकती है।

रिजर्वेशन चार्ट का समय बदला, अब ट्रेन के रवाना होने से 8 घंटे पहले बनेगा चार्ट

रेलवे ने रिजर्वेशन चार्ट तैयार करने का समय भी बदल दिया है। अब ट्रेन के चलने से ठीक 8 घंटे पहले रिजर्वेशन चार्ट तैयार कर दिया जाएगा। पहले यह चार्ट 4 घंटे पहले तैयार होता था। इस बदलाव से यात्रियों को यह जानकारी पहले ही मिल जाएगी कि उनका टिकट कंफर्म हुआ है या नहीं। यदि टिकट वेटिंग में है, तो यात्रियों के पास 8 घंटे का समय होगा दूसरा विकल्प चुनने के लिए। इस कदम से यात्रियों को यात्रा की योजना बनाने में आसानी होगी।

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Cricketer dies on pitch: क्रिकेट के मैदान पर छक्का पड़ते ही दिल का दौरा, युवा खिलाड़ी...

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Cricketer dies on pitch: इन दिनों कम उम्र में दिल का दौरा पड़ने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं, और अब इसी तरह का एक दर्दनाक हादसा पंजाब के फिरोजपुर जिले में हुआ है। क्रिकेट के मैदान पर एक खिलाड़ी की हार्ट अटैक से मौत हो गई, जिससे खेल के साथ-साथ स्वास्थ्य की गंभीरता पर भी चर्चा हो रही है। यह घटना डीएवी स्कूल ग्राउंड पर उस वक्त हुई जब एक खिलाड़ी ने छक्का मारा और इसके तुरंत बाद मैदान पर गिर पड़ा। मृतक की पहचान हरजीत सिंह के रूप में की गई है।

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दिल दहला देने वाला वीडियो- Cricketer dies on pitch

इस हादसे का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें साफ तौर पर देखा जा सकता है कि कैसे खिलाड़ी ने छक्का मारा और फिर नॉन-स्ट्राइक पर खड़े अपने साथी से मिलने के बाद पिच के बीच में ही अचानक घुटनों के बल बैठ गया। इसके बाद वह मुंह के बल गिर पड़ा। उसके गिरते ही बाकी खिलाड़ी दौड़ते हुए उसके पास पहुंचे और उसे सीपीआर देने की कोशिश की। हालांकि, वह होश में नहीं आया और हार्ट अटैक के कारण उसकी तुरंत मौत हो गई।

पहले भी हो चुके हैं ऐसे हादसे

यह पहला मामला नहीं है जब क्रिकेट के मैदान पर दिल का दौरा पड़ने से किसी खिलाड़ी की मौत हुई है। इससे पहले भी जून 2024 में मुंबई में इसी तरह की घटना घटी थी, जब 42 वर्षीय एक व्यक्ति क्रिकेट मैच के दौरान छक्का मारते हुए बेहोश हो गया और बाद में उसे अस्पताल ले जाने पर डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया था। यह घटनाएं न केवल क्रिकेट प्रेमियों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए चिंता का विषय बन गई हैं।

देशभर में दिल के दौरे की बढ़ती घटनाएं

हाल के दिनों में दिल का दौरा पड़ने से मौत की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। 20 साल की उम्र के युवा भी अब इस खतरे का सामना कर रहे हैं, जिससे यह एक और संकेत है कि लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति गंभीरता से ध्यान दें। हाल ही में ‘बिग बॉस 13’ की कंटेस्टेंट और एक्ट्रेस शेफाली जरीवाला का भी 42 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था, जो इस ट्रेंड को और भी गंभीर बना देता है।

युवाओं के लिए चेतावनी

हरजीत सिंह की दुखद मौत ने फिर से यह सवाल उठाया है कि आजकल के युवा अपने स्वास्थ्य के प्रति कितने सचेत हैं। दिल का दौरा अब केवल उम्रदराज लोगों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि युवा भी इसके शिकार हो रहे हैं। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम अपनी जीवनशैली और स्वास्थ्य को पर्याप्त महत्व दे रहे हैं।

स्वास्थ्य की जागरूकता की आवश्यकता

जैसे-जैसे दिल के दौरे की घटनाएं बढ़ रही हैं, यह जरूरी है कि हम अपने शरीर की स्थिति और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हों। व्यायाम, संतुलित आहार और मानसिक तनाव से बचाव जैसी छोटी-छोटी चीजों का पालन करके हम दिल के दौरे के खतरे को कम कर सकते हैं। क्रिकेट जैसे खेलों के दौरान भी शारीरिक स्वास्थ्य की पूरी जांच-पड़ताल और सही तकनीकों का पालन जरूरी हो जाता है, ताकि ऐसे हादसों से बचा जा सके।

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Israel America Relations: मिडिल ईस्ट में अचानक भड़की जंग, जब दो मुस्लिम देशों ने इज़र...

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Israel America Relations: ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते संघर्ष में एक बार फिर अमेरिका ने खुलकर इजरायल का साथ दिया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, इजरायल ने ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर हमले किए, जिसके बाद ईरान ने पलटवार शुरू किया। इस पर अमेरिका ने इजरायल की रक्षा के लिए बड़े पैमाने पर हमले किए और लाखों डॉलर खर्च किए। अमेरिका ने इस दौरान इजरायल के लिए आधुनिक एंटी-मिसाइल सिस्टम्स में से लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा खर्च किया, जिसमें THAAD (Terminal High Altitude Area Defense) सिस्टम भी शामिल है, जिसे इजरायल में इंस्टॉल किया गया है।

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इजरायल की सुरक्षा में अमेरिका का खुला समर्थन- Israel America Relations

यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने इजरायल की सुरक्षा के लिए इस तरह खुलकर समर्थन दिया है। एक ऐतिहासिक उदाहरण के रूप में, अमेरिका ने इजरायल की सुरक्षा के लिए अपनी भी परवाह नहीं की थी, जिससे न केवल इजरायल बल्कि अमेरिका को भी बड़ा ऊर्जा संकट झेलना पड़ा था। 1967 में हुए छह दिन के युद्ध के बाद इजरायल ने वेस्ट बैंक, गाजा, सिनाई और गोलान हाइट्स पर कब्जा कर लिया था। इसने अरब देशों, विशेषकर मिस्र और सीरिया के साथ तनाव को बढ़ा दिया था। हालांकि, ईरान और तुर्की ने उस समय इजरायल को राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी थी, जिससे इजरायल की स्थिति में सुधार आया था।

1973 का योम किप्पुर युद्ध

इजरायल के कैलेंडर में ‘योम किप्पुर’ सबसे पवित्र दिन माना जाता है, और यह दिन 1973 में इजरायल के लिए एक काले दिन के रूप में सामने आया। इस दिन अचानक मिस्र और सीरिया ने इजरायल पर हमला किया। इस हमले के लिए इजरायल तैयार नहीं था। तुरंत इजरायल ने अमेरिका से मदद मांगी, और अमेरिका ने बिना कोई देरी किए सैन्य सहायता भेजी। इस युद्ध को ‘योम किप्पुर युद्ध’ के नाम से जाना जाता है, जो 6 अक्टूबर से 25 अक्टूबर 1973 तक चला।

युद्ध के दौरान की स्थिति

इस युद्ध की शुरुआत में मिस्र और सीरिया की सेनाओं ने गोलान हाइट्स और सिनाई में तेजी से बढ़त बना ली थी। युद्ध की दिशा इस तरह से बदल रही थी कि ऐसा लग रहा था कि अरब देशों को जीत मिल सकती है। लेकिन फिर अचानक इजरायल ने दोनों देशों की सेनाओं को पीछे धकेलते हुए उन्हें रोका और दमिश्क पर गोलाबारी की। इस सफलता का श्रेय अमेरिका को जाता है, जिसने इजरायल को रणनीतिक मदद मुहैया कराई। इजरायल की यह सफलता अमेरिकी सैन्य मदद के बिना संभव नहीं हो सकती थी।

संकट का सामना करने वाला अमेरिका

हालांकि युद्ध के बाद इजरायल ने विजय प्राप्त की, लेकिन अमेरिका के लिए भी इस संघर्ष के परिणाम गंभीर थे। अमेरिका, जो इजरायल के समर्थन में था, को भी इससे जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा। युद्ध के बाद अरब देशों ने अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों को तेल निर्यात करना बंद कर दिया। इस फैसले के बाद अमेरिका को तेल संकट का सामना करना पड़ा, और यह संकट वैश्विक स्तर पर महसूस किया गया।

परमाणु युद्ध की संभावना

1973 का योम किप्पुर युद्ध केवल एक सैन्य संघर्ष नहीं था, बल्कि यह परमाणु युद्ध तक भी पहुंचने की स्थिति में था। अमेरिका और सोवियत संघ, दोनों देशों ने अपनी-अपनी सेनाओं को इस युद्ध में घसीट लिया था। युद्ध के दौरान एक समय ऐसा भी आया जब दोनों देशों के बीच परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने की संभावना उत्पन्न हुई। हालांकि, अंत में दोनों पक्षों ने सीजफायर पर सहमति व्यक्त की और युद्ध का अंत हुआ।

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Iran 400kg Uranium Missing: ईरान से गायब हुआ 400 KG यूरेनियम! छिपे सेंट्रीफ्यूज और बा...

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Iran 400kg Uranium Missing: ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर लगातार चिंता बढ़ती जा रही है, खासकर जब से यह जानकारी सामने आई कि ईरान के पास मौजूद 400 किलोग्राम एनरिच्ड यूरेनियम का एक हिस्सा गायब हो सकता है। यह यूरेनियम अब तक 60% शुद्धता तक एनरिच किया जा चुका था, जो हथियार ग्रेड यूरेनियम (HEU) के लगभग 90% के करीब है। अब सवाल यह है कि यह गायब यूरेनियम कहां है, खासकर जब अमेरिका द्वारा ईरान के परमाणु स्थलों पर हमले के बाद इसका पता नहीं चल पा रहा है।

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अमेरिकी हमले के बाद गायब हुआ यूरेनियम- Iran 400kg Uranium Missing

इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) पहले ही स्वीकार कर चुका है कि फोर्डो न्यूक्लियर प्लांट पर अमेरिकी हमले के बाद नुकसान का आकलन करना मुश्किल है। IAEA प्रमुख राफेल ग्रॉसी ने एक बयान में कहा कि यह संभावना है कि हमले में इस्तेमाल किए गए सेंट्रीफ्यूज बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए हों, जिनसे यूरेनियम एनरिच किया जाता था। हालांकि, यह साफ नहीं है कि इस हमले में 400 किलोग्राम यूरेनियम नष्ट हुआ या नहीं। इस स्थिति ने पश्चिमी देशों की सरकारों को चिंता में डाल दिया है, जो अब यह जानने के लिए प्रयास कर रहे हैं कि वह यूरेनियम कहां गया।

हमले से पहले हटाया गया यूरेनियम

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान ने हमले से पहले ही अपने यूरेनियम का कुछ हिस्सा वहां से हटा लिया होगा। IAEA प्रमुख ग्रॉसी ने कहा था कि 13 जून को, जब इजरायल ने हमला किया था, तब ईरान ने अपने परमाणु उपकरणों और सामग्रियों की सुरक्षा को लेकर कदम उठाए थे। हालांकि, इस सुरक्षा उपायों के बारे में कोई विस्तृत जानकारी सामने नहीं आई है। एक पश्चिमी राजनयिक ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि ऐसा लगता है कि फोर्डो से अधिकांश एनरिच्ड यूरेनियम को हमले से कई दिन पहले ही स्थानांतरित कर दिया गया था।

“चूहा-बिल्ली” का खेल

ईरान के यूरेनियम के गायब होने का रहस्य अब “चूहे-बिल्ली” की दौड़ बन चुका है। विशेषज्ञों का कहना है कि आईएईए और ईरान के बीच रिश्ते पहले से ही खराब थे, और अब यूरेनियम के भंडार की स्थिति की पुष्टि करना और भी कठिन हो जाएगा। ईरान पर कई बार आरोप लगे हैं कि उसने अपने परमाणु कार्यक्रम से जुड़ी सामग्री को छिपाया है, लेकिन वह इस बारे में कोई ठोस जवाब देने में नाकाम रहा है। IAEA का कहना है कि ईरान अपने परमाणु भंडार के बारे में विश्वासपूर्वक जानकारी देने में विफल रहा है, और यह समस्या तब और बढ़ जाती है जब यूरेनियम की वास्तविक स्थिति का पता नहीं चल पा रहा है।

परमाणु अप्रसार संधि से हटने का ईरान का इरादा

हाल के घटनाक्रमों के बाद, ईरान ने एक बार फिर से परमाणु अप्रसार संधि (NPT) से हटने की इच्छा जाहिर की है। ईरान की संसद ने IAEA के साथ सहयोग न करने के प्रस्ताव पर सहमति दे दी है। इससे पहले, IAEA के सदस्य ईरान के परमाणु स्थलों की नियमित निगरानी कर रहे थे, लेकिन इस हमले के बाद स्थिति बदल गई है। ईरान का कहना है कि वह अपने परमाणु कार्यक्रम के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है और किसी भी बाहरी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेगा।

अंतरराष्ट्रीय चिंता

अगर ईरान के पास 400 किलोग्राम यूरेनियम का एक भी हिस्सा गायब है, तो यह पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चिंता का कारण बन सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान ने अब तक परमाणु हथियार बनाने का इरादा नहीं दिखाया है, लेकिन अगर ईरान ने 60% शुद्धता तक यूरेनियम एनरिच किया है, तो यह उसे परमाणु हथियार बनाने के करीब ले जाता है। यदि यह यूरेनियम फिर से एनरिच किया जाता है, तो यह नौ परमाणु हथियारों के निर्माण के लिए पर्याप्त हो सकता है।

भविष्य की दिशा

आईएईए प्रमुख राफेल ग्रॉसी का कहना है कि हमले के बाद, फोर्डो न्यूक्लियर प्लांट की स्थिति और मलबे का निरीक्षण करना बहुत मुश्किल हो सकता है, क्योंकि वहां विस्फोटक पदार्थ हो सकते हैं। ऐसे में, इस गायब यूरेनियम की खोज और जांच लंबी और जटिल प्रक्रिया हो सकती है। IAEA के पूर्व निरीक्षक ओली हेइनोनेन ने कहा कि इस मामले की जांच में बहुत समय और मुश्किल हो सकती है, क्योंकि मलबे में दबे हुए यूरेनियम के नमूने निकालना कठिन होगा।

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Operation Sindoor News: IAF के जेट लॉस पर बड़ा दावा! ऑपरेशन सिंदूर को लेकर रक्षा अताश...

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Operation Sindoor News: भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंधों के बीच एक नया विवाद सामने आया है। इंडोनेशिया में भारतीय डिफेंस अताशे, कैप्टन शिव कुमार (नौसेना) द्वारा दिए गए एक बयान ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। कैप्टन कुमार ने दावा किया कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के शुरुआती चरण में भारतीय वायुसेना को अपने “कुछ लड़ाकू विमान गंवाने पड़े” क्योंकि राजनीतिक नेतृत्व ने सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमला न करने और केवल आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाने का आदेश दिया था।

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सेमिनार में दिया गया बयान- Operation Sindoor News

10 जून को जकार्ता में आयोजित एक सेमिनार में कैप्टन कुमार ने अपने बयान में कहा, “केवल इसलिए हमें नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि राजनीतिक नेतृत्व की ओर से पाकिस्तान की सैन्य संरचनाओं या एयर डिफेंस को टारगेट न करने को कहा गया था।” उन्होंने आगे बताया कि शुरूआती नुकसान के बाद भारतीय सेनाओं ने अपनी रणनीति बदली और दुश्मन के एयर डिफेंस को नष्ट करते हुए ब्रह्मोस मिसाइलों से सफल हमले किए। इस बयान ने न केवल रक्षा विशेषज्ञों, बल्कि आम जनता में भी सवाल उठाए हैं कि क्या भारत को अपने सुरक्षा हितों से समझौता करने के लिए मजबूर किया गया था।

भारतीय दूतावास की सफाई

कैप्टन कुमार के बयान के बाद विवाद बढ़ता देख भारतीय दूतावास ने बयान दिया कि उनके शब्दों को “बिना संदर्भ के पेश किया गया” और मीडिया ने इसे गलत तरीके से प्रस्तुत किया। दूतावास ने X प्लेटफॉर्म पर एक पोस्ट में स्पष्ट किया कि कैप्टन कुमार का इरादा यह बताने का था कि भारतीय सेना लोकतांत्रिक परंपराओं के तहत राजनीतिक नेतृत्व के अधीन काम करती है। इसके अलावा, दूतावास ने यह भी बताया कि ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य केवल आतंकी ठिकानों को निशाना बनाना था और यह उकसावे वाली कार्रवाई नहीं थी।

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कांग्रेस का तीखा हमला

कांग्रेस पार्टी ने इस बयान को लेकर मोदी सरकार पर तीखा हमला किया है। पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा, “यह टिप्पणी सीधे तौर पर सरकार की विफलता को दर्शाती है। प्रधानमंत्री क्यों इस मुद्दे पर ऑल-पार्टी मीटिंग नहीं बुला रहे हैं?” उन्होंने यह भी कहा कि इस बयान ने राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करने के आरोपों को और मजबूती दी है।

खेड़ा ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और पूरी सरकार पर आरोप लगाया कि उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में गंभीरता से काम नहीं किया। उन्होंने सेना प्रमुख जनरल अनिल चौहान के बयान का भी हवाला दिया, जिन्होंने पहले ऑपरेशन सिंदूर के प्रारंभिक चरणों में नुकसान की बात स्वीकार की थी, हालांकि उन्होंने नुकसान की संख्या नहीं बताई थी। पिछले महीने, जनरल चौहान ने सिंगापुर में ब्लूमबर्ग को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि पाकिस्तान के छह भारतीय जेट विमानों को मार गिराने का दावा “पूरी तरह गलत” था और इस तरह की जानकारी को खारिज कर दिया था।

सैन्य रणनीति और राजनीतिक निर्णय

कैप्टन शिव कुमार का बयान और उसके बाद भारतीय दूतावास की सफाई यह सवाल उठाते हैं कि क्या भारत को सैन्य कार्रवाइयों में राजनीतिक निर्देशों को ध्यान में रखते हुए सीमित करना पड़ा। अगर सैन्य निर्णयों को राजनीतिक नेतृत्व के अधीन रखा जाता है, तो क्या यह भारतीय सुरक्षा हितों के लिए सही है? यह सवाल अब सार्वजनिक चर्चा का विषय बन गया है।

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इस दिन से शुरू होगा शिव का प्रिय महीना, जानिए कितने होंगे सावन सोमवार और क्या है धार्...

Sawan Somwar Vrat 2025: हर साल ही तरह इस साल भी सावन के व्रत रखे जायेंगे महिलाये और कुवारी कन्या ये व्रत जरुर करती है लेकिन क्या आप जानते है इस साल सावन का महिना कब से शुरू हो रहा है अगर नहीं तो आपको बताते हैं…भगवान शिव (Lord Shiv) को समर्पित सावन का पवित्र महीना 2025 में 11 जुलाई से शुरू हो रहा है और 9 अगस्त को रक्षा बंधन के त्योहार के साथ इसका समापन होगा। यह महीना शिव भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है, जिसमें भोलेनाथ की पूजा और व्रत करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

सावन सोमवार 2025 की तिथियां

सावन भगवान शिव की आराधना का महीना है। हिंदू धर्म में इस महीने का बहुत महत्व है। यह महीना हर साल बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ की विधि-विधान से पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है। सावन के पूरे महीने में शिव भक्त अपने घरों और नजदीकी शिव मंदिरों में भगवान शिव की पूजा करते हैं और जलाभिषेक करते हैं।

सावन के महीने के हर दिन और खासकर सोमवार को शिव मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। वही इस साल सावन 11 जुलाई 2025 से शुरू हो रहा है और  पहला सोमवार – 14 जुलाई 2025

  • दूसरा सोमवार – 21 जुलाई 2025
  • तीसरा सोमवार – 28 जुलाई 2025
  • चौथा और अंतिम सोमवार – 4 अगस्त 2025

सावन महीने का धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म में सावन का महीना बहुत ही पवित्र माना जाता है। यह महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और मान्यता है कि इस दौरान भगवान शिव धरती पर निवास करते हैं। इस महीने में भगवान शिव की पूजा और व्रत करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। आपको बता दें, सावन के महीने में भक्त शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा, भांग, शमी और गंगाजल चढ़ाकर भोले भंडारी को प्रसन्न करते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि सावन के महीने में सोमवार का व्रत (Sawan Mondays Fsating) रखने और भोलेनाथ की पूजा करने से विवाह संबंधी परेशानियां दूर होती हैं।

पौराणिक कथा 

आपको बता दें, पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब समुद्र मंथन के दौरान विष निकला तो भगवान शिव ने उसे पीकर सृष्टि की रक्षा की। यह घटना सावन के महीने में हुई थी, इसलिए उन्हें ‘नीलकंठ’ भी कहा जाता है। इसके अलावा माता पार्वती ने भी भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी और सावन में सोमवार का व्रत रखा था, जिससे भोलेनाथ प्रसन्न हुए थे।

इसके अलवा व्रत की विधि एवं अनुष्ठान (Method and rituals of the fast) प्रातः स्नान करके शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा, पंचामृत आदि से अभिषेक करें, ‘ॐ नमः शिवाय’ या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें, सायंकाल आरती करें – ऐसा करने से यह व्रत अधिक फलदायी माना जाता है।

US-India Trade Deal: भारत-अमेरिका ट्रैड डील पर लगी मुहर, 8 जुलाई को हो सकता है बड़ा ऐ...

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US-India Trade Deal: भारत और अमेरिका के बीच एक महत्वपूर्ण व्यापार समझौते का ऐलान आठ जुलाई को किया जा सकता है। इस समझौते के बारे में सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, दोनों देशों के बीच शर्तों पर सहमति बन चुकी है और इसे अंतिम रूप देने के लिए तैयारियां पूरी की जा रही हैं। यह समझौता ऐसे समय पर हो रहा है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दुनियाभर के देशों पर लगाए गए रेसिप्रोकल टैरिफ (प्रतिसंवादी शुल्क) की समयावधि 9 जुलाई को समाप्त हो रही है।

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व्यापार समझौते की पृष्ठभूमि- US-India Trade Deal

यह समझौता भारत और अमेरिका के व्यापारिक रिश्तों में एक नया अध्याय जोड़ सकता है। अमेरिका ने जुलाई 2025 में चीन के साथ एक महत्वपूर्ण व्यापार समझौता किया था, और इसके बाद ट्रंप ने यह संकेत दिया था कि भारत के साथ भी एक बड़ी डील करने की योजना है। उन्होंने कहा था कि “हमने हाल ही में चीन के साथ एक समझौता किया है और अब हम भारत के साथ भी एक बड़ी डील करने जा रहे हैं।”

यह समझौता भारत और अमेरिका के व्यापारिक संबंधों में सामंजस्य और विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। व्यापार और आपूर्ति श्रृंखला के मामले में दोनों देशों के बीच सहयोग को मजबूती मिल सकती है, जिससे वैश्विक व्यापार में दोनों देशों का प्रभाव बढ़ सकता है।

प्रमुख वार्ताकार राजेश अग्रवाल

भारत की ओर से इस महत्वपूर्ण व्यापार समझौते के मुख्य वार्ताकार वाणिज्य विभाग के विशेष सचिव राजेश अग्रवाल थे। उन्होंने वॉशिंगटन में अमेरिकी अधिकारियों के साथ कई दौर की वार्ता की, जिनमें दोनों देशों के बीच व्यापारिक मुद्दों पर गहरी चर्चा की गई। राजेश अग्रवाल की अगुवाई में इस समझौते की शर्तों पर सहमति बनी, और अब यह समझौता अंतिम चरण में है।

अमेरिका द्वारा टैरिफ में स्थगन

अमेरिका द्वारा 2 जुलाई 2025 को दुनियाभर के कई देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाए गए थे। इन टैरिफ की वजह से वैश्विक व्यापार में तनाव उत्पन्न हुआ था। भारत के साथ इस टैरिफ को लेकर भी विवाद उठे थे। हालांकि, इन टैरिफ के बाद अमेरिकी सरकार ने भारत पर लगाए गए 26 प्रतिशत रेसिप्रोकल टैरिफ को 9 जुलाई तक स्थगित कर दिया था। लेकिन 10 प्रतिशत का बेसलाइन टैरिफ भारत पर लागू रहेगा, जिससे भारत को व्यापारिक राहत मिल सकती है। भारत इस अतिरिक्त 26 प्रतिशत टैरिफ से छूट प्राप्त करने के लिए प्रयासरत है।

ट्रंप का भारत के साथ बड़ी डील पर इशारा

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते का इशारा करते हुए कहा था कि भारत के साथ एक बहुत बड़ी डील की घोषणा जल्द की जाएगी। उन्होंने चीन के साथ किए गए समझौते की सफलता के बाद भारतीय अधिकारियों के साथ एक बड़े व्यापारिक समझौते की बात की। ट्रंप का यह बयान अमेरिकी वैश्विक व्यापार संबंधों और आपूर्ति श्रृंखला स्थिरता को मजबूत करने के प्रयासों का हिस्सा है।

समझौते के संभावित फायदे

भारत और अमेरिका के बीच इस समझौते से दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों को एक नई दिशा मिल सकती है। यह व्यापार समझौता विशेष रूप से व्यापारिक संतुलन, निवेश, और अन्य व्यापारिक क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा दे सकता है। अमेरिका और भारत के बीच सहयोग से न केवल दोनों देशों के व्यापारिक लाभ में वृद्धि हो सकती है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एक सकारात्मक संदेश जाएगा।

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Jagannath Puri Rath Yatra: सिर्फ रथ नहीं, रस्सियां भी हैं पवित्र! जानिए जगन्नाथ यात्र...

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Jagannath Puri Rath Yatra: ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की ऐतिहासिक रथयात्रा एक बार फिर आस्था का महासागर बन चुकी है। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी लाखों श्रद्धालु इस पावन उत्सव का हिस्सा बनने के लिए उमड़ पड़े हैं। यह सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक एकता और सार्वभौमिक श्रद्धा का प्रतीक बन चुका है, जिसमें धर्म, जाति, वर्ग और भाषा की सीमाएं मिट जाती हैं।

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भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा तीन अलग-अलग रथों पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। इस यात्रा के दौरान रथ को खींचने की परंपरा है, जिसे श्रद्धालु सौभाग्य और मोक्ष की ओर बढ़ा हुआ कदम मानते हैं।

रथ की रस्सियां: सिर्फ एक माध्यम नहीं, बल्कि आस्था का प्रतीक- Jagannath Puri Rath Yatra

रथ को खींचने वाली रस्सियां इस उत्सव की आत्मा मानी जाती हैं। इन्हें छूना या खींचना भगवान के स्पर्श के समान माना जाता है। इन रस्सियों के विशेष नाम हैं और हर नाम के पीछे गूढ़ पौराणिक कथाएं छिपी हुई हैं।

भगवान जगन्नाथ की रस्सी: शंखचूड़

भगवान जगन्नाथ के रथ की रस्सी का नाम शंखचूड़ है। कथा के अनुसार, एक बार राक्षस शंखचूड़ ने भगवान की अधूरी मूर्ति को देखकर उनका अपहरण करने का प्रयास किया। भगवान बलभद्र ने उसे पराजित कर दिया। मरते समय शंखचूड़ ने प्रार्थना की कि उसे भी भगवान की सेवा का अवसर मिले। बलराम जी ने उसकी नाड़ी और रीढ़ से रस्सी बनाई, जो आज भी भगवान के रथ को खींचने में उपयोग होती है। इस रस्सी को खींचना भक्ति और सेवा का प्रतीक माना जाता है।

भगवान बलभद्र की रस्सी: वासुकि

बलभद्र के रथ की रस्सी को वासुकि कहा जाता है। वासुकि वही पौराणिक नाग हैं जो भगवान शिव के गले में स्थान पाते हैं। मान्यता है कि वासुकि ने शेषनाग से भगवान की सेवा करने की इच्छा जताई थी। शेषनाग ने उन्हें वचन दिया कि जब वह बलराम रूप में पृथ्वी पर आएंगे, तब उन्हें सेवा का अवसर मिलेगा। इसलिए यह रस्सी भाईचारे, समर्पण और निष्ठा का प्रतीक है।

देवी सुभद्रा की रस्सी: स्वर्णचूड़

सुभद्रा के रथ की रस्सी को स्वर्णचूड़ कहा जाता है। यह माया, मोह और बंधन का प्रतीक है। मान्यता है कि इसे खींचने से भक्त आध्यात्मिक मुक्त‍ि की ओर अग्रसर होता है। यह आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक बनती है।

कालसर्प दोष से मुक्ति का उपाय भी

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यदि किसी की कुंडली में कालसर्प दोष हो, तो रथयात्रा की रस्सी को श्रद्धा से खींचना या छूना इस दोष को शांत करने का उपाय माना जाता है। विशेष रूप से शंखचूड़ रस्सी को छूने से जीवन की बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

रथयात्रा का पहला दिन: आस्था का सैलाब

इस बार रथयात्रा के पहले दिन भगवान बलभद्र का रथ लगभग 200 मीटर तक खींचा गया। सूर्यास्त के बाद रथ खींचने की परंपरा नहीं होने के कारण यात्रा को शनिवार के दिन फिर से शुरू किया गया। श्रद्धालुओं के लिए यह सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि भगवान से सीधा जुड़ाव है। वे घंटों इंतजार करते हैं बस एक बार रस्सी छूने के लिए, क्योंकि उनके लिए यही मोक्ष, पुण्य और दिव्य अनुभव होता है।

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