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Akhilesh Yadav Expels Puja Pal: पूजा पाल पर सियासत गरम: योगी की तारीफ करना पड़ा भारी, ...

Akhilesh Yadav Expels Puja Pal: लखनऊ की सियासत में इन दिनों एक नाम सबसे ज़्यादा चर्चा में है—पूजा पाल। कभी समाजवादी पार्टी की विधायक रहीं पूजा पाल अब पार्टी से बाहर हो चुकी हैं, और माना जा रहा है कि उनकी अगली राजनीतिक पारी बीजेपी के साथ शुरू हो सकती है। शनिवार की रात उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की, और उसी के बाद सियासी गलियारों में हलचल मच गई है।

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योगी की तारीफ से बढ़ा बवाल- Akhilesh Yadav Expels Puja Pal

पूजा पाल ने यूपी विधानसभा के मॉनसून सत्र के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जमकर तारीफ की। उन्होंने खुलकर कहा कि योगी सरकार ने उनके पति, दिवंगत विधायक राजू पाल की हत्या मामले में न्याय दिलाया है। ये बयान समाजवादी पार्टी को नागवार गुजरा। पार्टी ने उन्हें पहले चेतावनी दी, लेकिन जब उन्होंने अपने बयानों से कदम पीछे नहीं खींचे, तो उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया।

पहले भी कर चुकी हैं पार्टी लाइन से हटकर काम

यह पहली बार नहीं है जब पूजा पाल ने पार्टी के खिलाफ जाकर काम किया हो। 2024 के राज्यसभा चुनाव में उन्होंने कथित तौर पर क्रॉस वोटिंग की थी, और फूलपुर उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी दीपक पटेल का समर्थन कर सपा नेतृत्व को खुली चुनौती दी थी। यह सब देखते हुए पार्टी ने उन्हें ‘पार्टी विरोधी गतिविधियों’ का दोषी ठहराया और निष्कासित कर दिया।

पूजा पाल कौन हैं?

पूजा पाल कौशांबी जिले की चायल सीट से विधायक हैं। उन्होंने अपनी पहली शादी बहुजन समाज पार्टी के कद्दावर नेता राजू पाल से की थी, जिनकी 2005 में हत्या कर दी गई थी। शादी के सिर्फ़ 10 दिन बाद वह विधवा हो गईं। इस हत्या में अतीक अहमद और उसके गुर्गों का नाम सामने आया, और तब से पूजा पाल ने उसके खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। योगी सरकार के आने के बाद अतीक अहमद पर सख्त कार्रवाई हुई, जिसे लेकर पूजा ने मुख्यमंत्री का आभार जताया।

कितनी है पूजा पाल की संपत्ति?

राजनीति में सक्रिय होने के साथ-साथ पूजा पाल की संपत्ति भी इन दिनों चर्चा में है। 2022 में दिए गए चुनावी हलफनामे के अनुसार, उनके पास कुल 1.16 करोड़ रुपये की अचल संपत्ति है। उनके पास एक बोलेरो कार और एक फॉर्च्यूनर भी है, जो उन्होंने 2021 में खरीदी थी। उन्हें हथियारों का भी खासा शौक है—उनके पास चार गन हैं, जिनमें एक रिवॉल्वर, एक राइफल और दुनाली शामिल हैं।

वेतन और भत्ते की पूरी जानकारी

एक विधायक के रूप में पूजा पाल को हर महीने कुल 2.96 लाख रुपये की सैलरी मिलती है। इस सैलरी में वेतन, निर्वाचन क्षेत्र भत्ता, चिकित्सा भत्ता, जनसेवा भत्ता, सचिवीय भत्ता, टेलीफोन खर्च और पेट्रोल-डीजल खर्च शामिल हैं। इसके अलावा, उन्हें हर साल दो लाख रुपये के यात्रा कूपन भी मिलते हैं। पहले यह सैलरी 2.11 लाख थी, लेकिन अप्रैल 2025 से इसमें 85 हजार रुपये की बढ़ोतरी की गई।

करोड़ों की प्रॉपर्टी और गहनों का भी शौक

पूजा पाल और उनके पति के पास गाजियाबाद, प्रयागराज और लखनऊ में मकान और व्यावसायिक प्रॉपर्टी है, जिसकी कुल कीमत करीब 7 करोड़ रुपये से ज्यादा बताई गई है। लखनऊ के गोमती नगर एक्सटेंशन में उनका एक फ्लैट है जिसकी कीमत 1.85 करोड़ रुपये है। साथ ही, वे करीब 4 लाख रुपये की सोने की ज्वेलरी भी रखती हैं।

उनके पति की चल संपत्ति 1.05 करोड़ रुपये की है, जबकि अचल संपत्ति करीब 6.70 करोड़ की है। हालांकि, पूजा पाल पर 1.67 करोड़ और उनके पति पर 22 लाख रुपये की देनदारी भी है।

क्या बीजेपी में एंट्री तय?

मुख्यमंत्री से मुलाकात और लगातार पार्टी लाइन से हटकर चलने के बाद अब ये चर्चा जोरों पर है कि पूजा पाल जल्द ही बीजेपी जॉइन कर सकती हैं। योगी की तारीफ और माफिया के खिलाफ उनकी मुखरता को बीजेपी अपने एजेंडे के अनुरूप मान सकती है। हालांकि, अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन सियासी संकेत स्पष्ट हैं।

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श्रीकृष्ण की ऐसी 10 अद्भुत और दिव्य लीलाओं के बारें में जिन्हें देखकर हर कोई उन्हें भ...

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Shri Krishna Leela: आज पूरे भारत में भगवान कृष्ण का जन्म उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है. इसे लेकर हर तरफ हर्ष और उलास देखने को मिलता है. लेकिन क्या आप जानते है.भगवान कृष्ण का जीवन, उनकी लीलाएँ और उनकी शिक्षाएँ हमें न केवल धार्मिक शिक्षा देती हैं, बल्कि जीवन के हर पहलू में प्रेरणा भी देती हैं। अगर नहीं तो चलिए आपको इस लेख में उनकी अद्भुत लीलाओं के बारे में बताते है जिन्हें लोगों को यह विश्वास दिलाया कि वे कोई साधारण मनुष्य नहीं, बल्कि स्वयं भगवान हैं।

श्री कृष्ण की 10 ऐसी प्रमुख लीलाएँ 

1. पूतना वध

श्री कृष्ण के जन्म के समय कंस ने उन्हें मारने के लिए पूतना नामक राक्षसी को भेजा। पूतना ने एक सुंदर स्त्री का रूप धारण किया और श्री कृष्ण को विषैला दूध पिलाने का प्रयास किया। लेकिन बाल कृष्ण ने न केवल उसका दूध पिया, बल्कि उसके प्राण भी हर लिए और उसके वास्तविक रूप में उसका वध भी कर दिया। यह उनकी पहली अलौकिक लीला थी, जिसने लोगों को उनके असाधारण स्वरूप का बोध कराया।

2. शकटासुर और तृणावर्त का वध

शिशु अवस्था में ही श्री कृष्ण ने दो और राक्षसों, शकटासुर (गाड़ी के रूप में) और तृणावर्त (तूफ़ान के रूप में) का वध कर दिया। ये दोनों घटनाएँ दर्शाती हैं कि वे किसी भी रूप में किसी भी संकट का अंत करने में सक्षम हैं।

माखन चोरी और यशोदा के मुख में ब्रह्मांड के दर्शन

श्रीकृष्ण अपनी माखन चोरी की लीलाओं के लिए प्रसिद्ध हैं। एक बार जब यशोदा माँ ने उन्हें माखन चुराते हुए पकड़ लिया और मुँह खोलने को कहा, तो उन्होंने यशोदा को अपने मुँह में संपूर्ण ब्रह्मांड के दर्शन करा दिए। यह अद्भुत दृश्य देखकर यशोदा माँ को विश्वास हो गया कि उनका पुत्र कोई साधारण बालक नहीं, बल्कि स्वयं भगवान हैं।

4. कालिया नाग का वध

कालिया नाग ने अपने विष से यमुना नदी को दूषित कर दिया था, जिससे गाँव के लोगों और पशुओं का जीवन खतरे में पड़ गया था। श्री कृष्ण नदी में कूद पड़े और कालिया नाग के फन पर नृत्य करके उसे वहाँ से जाने पर मजबूर कर दिया। इस घटना ने न केवल यमुना को शुद्ध किया, बल्कि श्री कृष्ण की वीरता और दिव्यता को भी सिद्ध किया।

5. गोवर्धन पर्वत उठाना

एक बार इंद्रदेव ने अपनी पूजा न होने पर क्रोधित होकर गोकुल में भयंकर वर्षा और तूफान भेजा। सभी गाँववासियों की रक्षा के लिए, श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया और सभी को उसके नीचे आश्रय दिया। यह लीला उनकी शक्ति और प्रजा के प्रति उनके प्रेम का सबसे बड़ा प्रमाण है।

6. रास लीला

रास लीला श्री कृष्ण की सबसे सुंदर और आध्यात्मिक लीलाओं में से एक है। इसमें उन्होंने अनेक रूप धारण किए और प्रत्येक गोपी के साथ नृत्य किया। यह लीला केवल नृत्य नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है, जिसने उन्हें प्रेम का अवतार बना दिया।

7. दुर्योधन को विराट रूप का दर्शन

जब दुर्योधन ने पांडवों को उनके अधिकार देने से इनकार कर दिया, तो श्री कृष्ण शांतिदूत बनकर हस्तिनापुर गए और उसे समझाने का प्रयास किया। जब दुर्योधन ने उसे बंदी बनाने का प्रयास किया, तो श्री कृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाया, जिसमें संपूर्ण ब्रह्मांड समाया हुआ था। इस दृश्य ने सभी को स्तब्ध कर दिया।

8. महाभारत में अर्जुन को गीता का ज्ञान देना

जब महाभारत के युद्ध में अर्जुन अपने ही सगे-संबंधियों के विरुद्ध युद्ध करने में हिचकिचा रहे थे, तब श्री कृष्ण ने उन्हें भगवद् गीता का उपदेश दिया। यह उपदेश केवल युद्ध के लिए ही नहीं, बल्कि जीवन का सार, धर्म, कर्म और मोक्ष भी था। यह उपदेश आज भी मानवजाति का मार्गदर्शन करता है।

9. द्रौपदी की चीर हरण से रक्षा

जब कौरवों ने भरी सभा में द्रौपदी का अपमान करने के लिए उनका वस्त्रहरण करने का प्रयास किया, तो द्रौपदी ने श्रीकृष्ण को पुकारा। श्रीकृष्ण ने अपने चमत्कारी रूप से उनकी साड़ी इतनी लंबी कर दी कि दुशासन उसे खींचते-खींचते थक गया। इस घटना ने उनके भक्तों के प्रति उनकी असीम करुणा को दर्शाया।

10. सुदामा से मित्रता

सुदामा एक गरीब ब्राह्मण थे और श्रीकृष्ण के बचपन के मित्र थे। जब सुदामा उनसे द्वारका में मिलने गए, तो श्रीकृष्ण ने उन्हें एक राजा की तरह गले लगाया और बिना कुछ माँगे उनकी दरिद्रता दूर कर दी। यह लीला दर्शाती है कि भगवान के लिए कोई अमीर या गरीब नहीं होता, वे केवल सच्चे प्रेम और भक्ति को देखते हैं।

Taal Unknown Facts: ‘ताल’ की कहानी! कैसे अनिल कपूर ने निभाया वो रोल जो आमिर-गोविंदा न...

Taal Unknown Facts: करीब दो दशक से ज्यादा वक्त बीत चुका है, लेकिन सुभाष घई की फिल्म ‘ताल’ आज भी दर्शकों के दिलों में बसी हुई है। 13 अगस्त 1999 को रिलीज़ हुई इस फिल्म में अक्षय खन्ना, ऐश्वर्या राय और अनिल कपूर ने अहम भूमिकाएं निभाई थीं। एक त्रिकोणीय प्रेम कहानी को शानदार निर्देशन, दमदार अभिनय और बेमिसाल संगीत के साथ पेश करने वाली ये फिल्म आज भी कई मायनों में खास मानी जाती है।

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जब आमिर और गोविंदा ने ठुकराया अनिल कपूर वाला रोल- Taal Unknown Facts

फिल्म से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा ये भी है कि जो किरदार अंत में अनिल कपूर को मिला, वह शुरुआत में आमिर खान और गोविंदा को ऑफर किया गया था। IMDb की रिपोर्ट के मुताबिक, सुभाष घई ने पहले आमिर को स्क्रिप्ट सुनाई थी लेकिन उन्हें यह कहानी खास नहीं लगी। इसके बाद गोविंदा को अप्रोच किया गया, मगर वो उन दिनों हसीना मान जाएगी की शूटिंग में व्यस्त थे। आखिर में ये रोल अनिल कपूर को मिला और उन्होंने इस किरदार को अपनी स्टाइल में निभाकर सबका दिल जीत लिया।

ताल की कहानी: प्रेम, संघर्ष और आत्मविश्वास

चलिए आपको फिल्म की कहानी से थोड़ा रूबरू करवाते हैं। फिल्म की कहानी शुरू होती है हिमालय की वादियों में रहने वाली मानसी शंकर (ऐश्वर्या राय) से, जो अपने पिता तारा बाबू (आलोक नाथ) के साथ शहर आती है। वहां उनकी मुलाकात पुराने परिचित जगमोहन मेहता (अमरीश पुरी) से होती है, जिनका बेटा मानव मेहता (अक्षय खन्ना) पढ़ाई पूरी करके विदेश से लौटा होता है।

मानव और मानसी एक-दूसरे को दिल दे बैठते हैं, लेकिन उनके रिश्ते को मानव के परिवार से मंजूरी नहीं मिलती। तिरस्कार के बाद मानसी ठान लेती है कि वह कुछ बनकर दिखाएगी। उसकी इसी राह में उसे मिलता है मशहूर म्यूजिक डायरेक्टर विक्रांत कपूर (अनिल कपूर), जो उसे एक स्टार बना देता है। कहानी वहीं से नया मोड़ लेती है और दर्शकों को अंत तक बांधे रखती है।

बॉक्स ऑफिस पर फिल्म की सफलता

ताल को सिर्फ कहानी या कलाकारों की वजह से नहीं बल्कि उसके संगीत और प्रस्तुति के लिए भी सराहा गया। फिल्म का बजट लगभग 15 करोड़ रुपये था और इसने वर्ल्डवाइड करीब 50 करोड़ रुपये की कमाई की। यानी निवेश के मुकाबले तीन गुना रिटर्न। फिल्म को व्यावसायिक रूप से ‘हिट’ माना गया और इसने भारत ही नहीं, विदेशों में भी अच्छा प्रदर्शन किया।

संगीत जिसने फिल्म को अमर बना दिया

ए. आर. रहमान का संगीत इस फिल्म की जान रहा। ‘इश्क बिना’, ‘रमता जोगी’, ‘कहीं आग लगे’, ‘नहीं सामने ये अलग बात है’ जैसे गाने आज भी म्यूजिक प्रेमियों की प्लेलिस्ट में शामिल होते हैं। फिल्म के सभी गानों ने उस वक्त चार्टबस्टर की सूची में जगह बनाई थी और रहमान को इस फिल्म के लिए कई पुरस्कार भी मिले।

ओटीटी पर कहां देख सकते हैं ताल?

अगर आपने ये फिल्म नहीं देखी है या दोबारा देखना चाहते हैं, तो ताल अब Zee5 पर स्ट्रीमिंग के लिए उपलब्ध है। इसके अलावा यह फिल्म कुछ अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर रेंट के विकल्प में भी मौजूद है।

‘ताल 2’ पर क्या सोचते हैं सुभाष घई?

वहीं, जब लोगों ने सुभाष घई से पूछा कि क्या वो ताल 2 बनाएंगे, तो उन्होंने साफ कह दिया कि बिना दमदार कहानी के वे कोई सीक्वल नहीं बनाएंगे। उनका कहना था कि कई निर्देशक सिर्फ कमाई के लिए पुराने नाम का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन वे ऐसा नहीं करेंगे। उनका मानना है कि दर्शकों के साथ ईमानदारी जरूरी है, और तभी कोई फिल्म टिक सकती है।

क्यों कहा जाता है सुभाष घई को ‘शोमैन’?

सुभाष घई को यूं ही ‘शोमैन’ नहीं कहा जाता। वे अपनी हर फिल्म को एक मजबूत स्क्रिप्ट, दमदार संवाद और यादगार म्यूजिक के साथ पेश करते हैं। ताल भी इसी सोच की उपज थी। आज जब बॉलीवुड कंटेंट की कमी से जूझ रहा है, तब घई जैसे फिल्ममेकर की दृष्टि और समझ की कमी साफ महसूस होती है।

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Gujarat News: देश के 79वें स्वतंत्रता दिवस पर सूरत में बड़ा बदलाव, ‘पाकिस्तानी मोहल्ल...

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Gujarat News: देश 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है और गुजरात के सूरत में एक खास खुशी का माहौल है। यहां के सैकड़ों लोग लंबे अरसे से चले आ रहे ‘पाकिस्तानी मोहल्ला’ नाम से अपनी पहचान बदलने की उम्मीद में थे। अब उनकी ये इच्छा पूरी हो गई है। इस मोहल्ले का नाम अब आधिकारिक तौर पर ‘हिन्दुस्तानी मोहल्ला’ रखा गया है। यह बदलाव वहां के निवासियों के लिए गर्व और खुशी का कारण बना है।

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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि- Gujarat News

रामनगर के नाम से जाना जाने वाला यह इलाका देश के बंटवारे के बाद ‘पाकिस्तानी मोहल्ला’ के नाम से पहचाना जाने लगा। 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, तब बड़ी संख्या में सिंधी समुदाय के लोग पाकिस्तान से भारत आए और सूरत के रामनगर में बस गए। करीब 600 परिवारों ने यहां नई जिंदगी की शुरुआत की। धीरे-धीरे यह इलाका ‘पाकिस्तानी मोहल्ला’ के रूप में प्रसिद्ध हो गया और यह नाम दस्तावेजों तक पहुंच गया।

नाम बदलने की पुरानी कोशिशें

स्थानीय लोग इस नाम से हमेशा से परेशान थे क्योंकि यह उनकी पहचान पर कलंक जैसा लग रहा था। उन्हें इस नाम की वजह से शर्मिंदगी उठानी पड़ती थी। कई बार नाम बदलने की कोशिशें हुईं, लेकिन असल बदलाव नहीं हो पाया। एक बार चौराहे का नाम ‘हेमु कल्याणी चौक’ रखा गया था, लेकिन वह नाम भी लोकप्रिय नहीं हो पाया और लोग अभी भी मोहल्ले को ‘पाकिस्तानी मोहल्ला’ ही बुलाते थे।

नाम परिवर्तन का ऐतिहासिक फैसला

इस बार स्थानीय विधायक पूर्णेश मोदी ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया। उन्होंने नाम बदलने के लिए नगर निगम और अन्य संबंधित विभागों में पहल की। कुछ वर्षों की मेहनत के बाद अब ‘पाकिस्तानी मोहल्ला’ का नाम बदलकर ‘हिन्दुस्तानी मोहल्ला’ किया गया है। विधायक मोदी ने इस अवसर पर कहा, “बंटवारे के बाद सिंधी समाज के लोग यहां आए और यह इलाका पाकिस्तान मोहल्ला के नाम से जाना जाने लगा। मैंने नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू की और अब इसे मंजूरी मिल चुकी है।”

स्थानीय लोगों की खुशी

निवासी इस बदलाव से बेहद खुश हैं। उनका मानना है कि अब उनकी पहचान और सम्मान दोनों बेहतर होंगे। उन्होंने कहा कि इस बदलाव से मोहल्ले की छवि सुधरेगी और लोग गर्व के साथ अपने दस्तावेजों पर ‘हिन्दुस्तानी मोहल्ला’ का नाम लिखवा सकेंगे। विधायक मोदी ने लोगों से अनुरोध किया है कि वे अपने आधार कार्ड और वोटर आईडी जैसे दस्तावेजों में नया पता अपडेट कराएं ताकि आधिकारिक पहचान में भी यह बदलाव दर्ज हो सके।

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Trump-Putin Meeting: रूस से खरीदा, दुनिया ने उड़ाया मजाक… अब वही अलास्का बना शांति की...

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Trump-Putin Meeting: अमेरिका क राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 15 अगस्त को अलास्का के सबसे बड़े शहर एंकरिज में एक महत्वपूर्ण बैठक करने जा रहे हैं। यह मुलाकात यूक्रेन युद्धविराम (सीजफायर) को लेकर हो रही है और इसे वैश्विक स्तर पर बेहद अहम माना जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि जहां ये दो महाशक्तियों के नेता आमने-सामने बैठेंगे, वह जगह कभी खुद रूस का हिस्सा हुआ करती थी।

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ऐतिहासिक जमीन पर हो रही है ऐतिहासिक मुलाकात- Trump-Putin Meeting

दरअसल ट्रंप और पुतिन की यह बैठक अलास्का में हो रही है, जिसे कभी अमेरिका ने 1867 में रूस से खरीदा था। उस समय यह सौदा 7.2 मिलियन डॉलर (करीब 60 करोड़ रुपये) में हुआ था। उस वक्त कई अमेरिकी विशेषज्ञों ने इस डील को “मूर्खतापूर्ण” करार दिया था। लेकिन बाद के वर्षों में जब अलास्का में तेल, प्राकृतिक गैस और सोना जैसे संसाधनों की खोज हुई, तो यह सौदा अमेरिका के लिए अत्यंत लाभकारी साबित हुआ।

कैसे बना अलास्का अमेरिका का हिस्सा?

अलास्का की खोज 17वीं सदी में हुई थी, जिसमें रूसी खोजकर्ताओं और स्थानीय जनजातियों की भूमिका रही। 1741 में डेनमार्क के खोजकर्ता वाइटस बेरिंग ने इस इलाके का सर्वे किया था। बाद में यह क्षेत्र समुद्री व्यापार, खासकर जानवरों की खाल के लिए प्रसिद्ध हुआ।

19वीं सदी के मध्य में रूस और अमेरिका के बीच व्यापारिक प्रतिस्पर्धा बढ़ी, और आर्थिक दबाव के चलते रूस ने अलास्का को अमेरिका को बेचने का फैसला किया। 1867 में यह डील हुई, जिसे अमेरिकी कांग्रेस में कड़ी बहस के बाद मंजूरी मिली।

अमेरिका के लिए ‘सौदा नहीं, सौभाग्य’ साबित हुआ अलास्का

शुरुआत में उपेक्षित रहे अलास्का में जल्द ही खनिज संपदा की खोज हुई। 1959 में इसे आधिकारिक रूप से अमेरिका का 49वां राज्य घोषित किया गया। आज अलास्का अपनी भू-रणनीतिक स्थिति, प्राकृतिक संसाधनों और जलवायु के लिए जाना जाता है।

यहां की राजधानी जूनो तक कोई सीधा सड़क मार्ग नहीं है, और केवल हवाई या जल मार्ग से ही वहां पहुंचा जा सकता है। एंकरिज शहर में स्थित दुनिया का सबसे बड़ा सी-प्लेन बेस हर दिन लगभग 200 उड़ानों को संभालता है।

ट्रंप बोले– “शांति की दिशा में अहम पहल”

इस बैठक को लेकर ट्रंप ने कहा है कि यह “शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम” है। दुनिया की निगाहें इस बातचीत पर इसलिए भी टिकी हैं क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक स्थिरता पर गहरा असर डाला है। ऐसे में यह मुलाकात एक नए मोड़ की ओर इशारा कर सकती है।

ट्रंप और पुतिन की मुलाकात को न सिर्फ राजनीतिक दृष्टिकोण से, बल्कि इतिहास और भूगोल की नजर से भी अहम माना जा रहा है। यह वही अलास्का है, जो कभी रूस की धरती थी और अब अमेरिका की ताकत बन चुका है। आज वही भूमि संभावित शांति समझौते की गवाह बनने जा रही है।

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Nobel Peace Prize: नोबेल की जिद में ट्रंप! नॉर्वे के मंत्री से टैरिफ के बहाने मांगा श...

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Nobel Peace Prize: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी बड़बोली छवि के लिए जाने जाते हैं, लेकिन अब जो खबर सामने आई है, वो उनकी ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ पाने की ललक को नए स्तर पर दिखाती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ट्रंप ने हाल ही में नॉर्वे के वित्त मंत्री जेंस स्टोलटेनबर्ग को फोन करके टैरिफ पर बात शुरू की, लेकिन बातचीत के दौरान बात अचानक नोबेल शांति पुरस्कार की ओर मुड़ गई।

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गौर करने वाली बात ये है कि नॉर्वे की नोबेल कमेटी ही दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा करती है। ऐसे में ट्रंप का इस तरह सीधे तौर पर एक नॉर्वेजियन मंत्री से इस पुरस्कार को लेकर बात करना काफी असामान्य माना जा रहा है।

यह फोन कॉल तब सुर्खियों में आया जब नॉर्वे के एक प्रमुख अखबार डागेंस नेरिंगस्लिव ने इस बातचीत का खुलासा किया। इसके बाद पॉलिटिको जैसी अमेरिकी मैगजीन ने भी ओस्लो में अधिकारियों से इसकी पुष्टि की। ट्रंप पहले भी नोबेल पुरस्कार को लेकर सार्वजनिक रूप से अपनी नाराजगी और अपेक्षा जाहिर करते रहे हैं।

“मैंने दुनिया को युद्ध से बचाया, फिर भी नोबेल नहीं मिलेगा!”- Nobel Peace Prize

ट्रंप ने हाल ही में अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर खुलकर नाराजगी जाहिर की। उन्होंने लिखा कि उन्हें भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने, सर्बिया-कोसोवो विवाद में मध्यस्थता, मिस्र-इथियोपिया टकराव को थामने और अब्राहम समझौते जैसी पहल के बावजूद नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा, क्योंकि ये पुरस्कार सिर्फ ‘लिबरल्स’ को दिया जाता है।

उन्होंने यह भी दावा किया कि अगर उनकी पहलें सफल होती हैं तो पश्चिम एशिया दशकों में पहली बार एकजुट हो जाएगा। इसके बावजूद उन्हें लगता है कि उन्हें नॉर्वे की कमेटी यह पुरस्कार कभी नहीं देगी।

अब तक कई देशों ने किया समर्थन

ट्रंप के लिए नोबेल पुरस्कार की मांग केवल उन्हीं तक सीमित नहीं है। इज़राइल, पाकिस्तान, कंबोडिया, अजरबैजान और आर्मेनिया जैसे देशों की सरकारें भी ट्रंप को यह पुरस्कार देने की मांग कर चुकी हैं। खुद ट्रंप भारत और पाकिस्तान के बीच ‘शांति कायम’ करने का दावा भी कर चुके हैं, जो भारत सरकार के रुख से अलग है।

नोबेल पुरस्कार की प्रक्रिया क्या है?

आपको बता दें, नोबेल शांति पुरस्कार हर साल अक्टूबर में घोषित किया जाता है। इसके लिए केवल कुछ ही लोग नामांकन भेज सकते हैं – जैसे किसी देश के राष्ट्राध्यक्ष, सांसद, अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के अधिकारी, नोबेल विजेता और कुछ खास शैक्षणिक संस्थान के प्रोफेसर।

नामांकन प्रक्रिया सितंबर में शुरू होगी, हालांकि अंतिम तारीख का अभी ऐलान नहीं हुआ है।

अगर ट्रंप इस पुरस्कार को जीतते हैं, तो वे अमेरिका के पांचवें राष्ट्रपति होंगे जिन्हें यह सम्मान मिलेगा। इससे पहले थियोडोर रूजवेल्ट, वुडरो विल्सन, जिमी कार्टर और बराक ओबामा को यह पुरस्कार मिल चुका है।

हालांकि ट्रंप खुद को भले ही नोबेल का हकदार मानते हों, लेकिन नोबेल कमेटी की प्रक्रिया और मानदंड राजनीति से काफी ऊपर माने जाते हैं।

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Asia Cup Top 5 Controversies: जब मैदान बना महाभारत! एशिया कप में हुए वो 5 झगड़े जो आज...

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Asia Cup Top 5 Controversies: एशिया कप 2025 की शुरुआत में अब कुछ ही दिन बचे हैं, लेकिन टूर्नामेंट के शुरू होने से पहले ही एक बार फिर विवादों ने दस्तक दे दी है। खासकर भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले मुकाबले को लेकर सस्पेंस बना हुआ है। टूर्नामेंट का आयोजन 9 से 28 सितंबर के बीच संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के दुबई और अबू धाबी में किया जाएगा। फैंस की नजरें 14 सितंबर को खेले जाने वाले भारत-पाकिस्तान मुकाबले पर टिकी हैं, लेकिन दोनों देशों के बीच जारी राजनीतिक तनाव के कारण मैच का होना तय नहीं माना जा रहा।

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पहले भी रहे हैं कई बड़े विवाद– Asia Cup Top 5 Controversies

एशिया कप का इतिहास देख लें तो विवादों से इसका नाता कोई नया नहीं है। कभी टीमें टूर्नामेंट से हट गईं, तो कभी मैदान पर खिलाड़ियों के बीच गर्मागर्म बहस सुर्खियों में रही। चलिए नजर डालते हैं कुछ ऐसे ही बड़े विवादों पर, जो एशिया कप को चर्चा का केंद्र बनाते रहे हैं।

1986: भारत ने श्रीलंका न जाने का फैसला किया

1986 में जब दूसरा एशिया कप श्रीलंका में होना था, तब भारत ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए टूर्नामेंट में हिस्सा लेने से मना कर दिया था। उस समय श्रीलंका में LTTE और सरकार के बीच गृहयुद्ध छिड़ा हुआ था। भारत सरकार ने खिलाड़ियों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी और टीम को वहां नहीं भेजा।

1990: कश्मीर विवाद बना पाकिस्तान के बहिष्कार की वजह

1990 में भारत में आयोजित एशिया कप में पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे पर विरोध जताते हुए भाग नहीं लिया। 1989 के बाद दोनों देशों के संबंध बिगड़ चुके थे, जिसकी सीधी झलक इस टूर्नामेंट में देखने को मिली। पाकिस्तान की गैरमौजूदगी में भारत ने श्रीलंका को हराकर खिताब अपने नाम किया।

2010: जब भज्जी और शोएब आमने-सामने आ गए

2010 में दांबुला में भारत और पाकिस्तान के बीच खेले गए मैच में मैदान पर खूब गर्मी देखने को मिली। मैच के आखिरी ओवरों में शोएब अख्तर और हरभजन सिंह के बीच बहस हो गई। शोएब ने बार-बार उकसाने वाली गेंदें डालीं, जिसका जवाब हरभजन ने छक्के के साथ दिया। मैच के बाद खबरें आईं कि शोएब भज्जी के कमरे तक लड़ने पहुंच गए थे, हालांकि किसी तरह की हाथापाई नहीं हुई।

उसी मैच में अकमल और गंभीर की भी भिड़ंत

उसी दिन मैदान पर एक और विवाद हुआ जब गौतम गंभीर और विकेटकीपर कामरान अकमल आमने-सामने आ गए। शाहिद अफरीदी की एक गेंद पर अपील के बाद दोनों खिलाड़ियों के बीच तीखी बहस हो गई थी। हालात इतने बिगड़ गए कि अंपायर्स और बाकी खिलाड़ी बीच-बचाव करने पहुंचे।

2022: पाक-अफगानिस्तान मैच बना तनाव का केंद्र

2022 में एशिया कप में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच खेले गए मुकाबले में हालात पूरी तरह बिगड़ गए थे। मैदान पर पाकिस्तान के बल्लेबाज आसिफ अली और अफगानिस्तान के फरीद अहमद आपस में उलझ पड़े। स्टैंड्स में दर्शकों के बीच भी हाथापाई हो गई थी। बाद में ICC ने दोनों खिलाड़ियों पर मैच फीस का 25% जुर्माना लगाया।

क्या 2025 भी रहेगा विवादों से घिरा?

अब जब 2025 का एशिया कप सिर पर है, तो फिर से वही सवाल उठ रहा है—क्या भारत और पाकिस्तान आमने-सामने होंगे? या फिर राजनीतिक मतभेद एक और बार क्रिकेट पर हावी हो जाएंगे? खास बात ये है कि हाल ही में WCL (वर्ल्ड चैम्पियनशिप ऑफ लीजेंड्स) में भी भारत की टीम ने पाकिस्तान के खिलाफ खेलने से इनकार कर दिया था, जिससे यह अटकलें और तेज़ हो गई हैं।

फिलहाल क्रिकेट प्रेमियों की नजरें 14 सितंबर पर टिकी हैं। सबको उम्मीद है कि राजनीति से ऊपर उठकर क्रिकेट एक बार फिर दोनों देशों को मैदान पर आमने-सामने लाएगा।

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Kishtwar Cloudburst: ‘एक झटके में उजड़ गया सब कुछ’ – हादसे के चश्मदीदों क...

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Kishtwar Cloudburst: जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले का चशोटी गांव गुरुवार दोपहर एक दिल दहला देने वाली त्रासदी का गवाह बना। करीब 12:25 बजे बादल फटने की वजह से गांव में ऐसी तबाही मची कि पल भर में घर-मकान, रास्ते और ज़िंदगियां सब बर्बाद हो गए। इस दर्दनाक हादसे में अब तक 46 लोगों की जान जा चुकी है, जिनमें दो CISF के जवान भी शामिल हैं। वहीं, 69 लोग अब भी लापता हैं और उनके परिजन आस लगाए रेस्क्यू टीमों की ओर देख रहे हैं।

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बारिश की वजह से गुरुवार रात राहत कार्य रुक गया था, लेकिन शुक्रवार सुबह से फिर से अभियान तेज़ी से शुरू हुआ। सेना, पुलिस, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और स्थानीय लोग लगातार मलबा हटाकर दबे लोगों को ढूंढने में लगे हुए हैं। हालात कितने खराब हैं, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रेस्क्यू के लिए भारी मशीनें, जेसीबी और अर्थमूवर्स बुलाए गए हैं ताकि रास्ता साफ किया जा सके। अब तक 167 घायलों को मलबे से निकालकर अस्पताल पहुंचाया गया है।

गांव का नक्शा ही बदल गया– Kishtwar Cloudburst

इस बाढ़ ने चशोटी गांव की शक्ल ही बदल दी। 16 मकान, कई सरकारी दफ्तर, तीन मंदिर, चार पानी की चक्कियां और एक 30 मीटर लंबा पुल बह गया है। दर्जनों गाड़ियां बाढ़ में बहकर चकनाचूर हो गईं। यहां तक कि एक अस्थायी बाजार, लंगर का स्थान और एक सुरक्षाबल की चौकी भी बर्बाद हो गई है।

सोशल मीडिया पर जो वीडियो सामने आए हैं, उनमें देखा जा सकता है कि कैसे पूरे गांव को कीचड़ और बोल्डर ने ढंक लिया है। मकान ताश के पत्तों की तरह गिर पड़े हैं और सड़कों पर चलना तक मुश्किल हो गया है।

मचैल यात्रा भी रोकी गई

चशोटी वही जगह है जहां से मचैल माता मंदिर की यात्रा शुरू होती है। यह गांव किश्तवाड़ से करीब 90 किलोमीटर दूर है और यहां से श्रद्धालु 8.5 किलोमीटर पैदल चलकर लगभग 9500 फीट की ऊंचाई पर स्थित मंदिर पहुंचते हैं। यात्रा इस बार 25 जुलाई से शुरू हुई थी और 5 सितंबर तक चलनी थी, लेकिन अब इस त्रासदी के बाद यात्रा को दूसरे ही दिन रोक दिया गया है।

अस्पताल में अपनों की तलाश

किश्तवाड़ का जिला अस्पताल इस समय सिर्फ इलाज का नहीं, बल्कि उम्मीद और डर के बीच झूल रहे लोगों का ठिकाना बना हुआ है। अपने गुमशुदा परिवार वालों की तस्वीरें लिए लोग हर कोने में उन्हें ढूंढते घूम रहे हैं। स्टाफ की कमी है, लेकिन SDRF के जवान लोगों की मदद में जुटे हुए हैं।

घटना में घायल उषा देवी ने बताया, “हमें लगा कि अब सब खत्म हो गया। चारों ओर पानी और पत्थर ही पत्थर थे। हम किसी तरह बचकर निकले हैं।” वहीं एक महिला जो बोल नहीं पा रही, उसकी आंखों में जो डर है, वो सब बयां कर देता है।

अनु नाम की एक मां, जो अपने छोटे बेटे के लिए परेशान है, कहती है, “मेरा बच्चा बस बच जाए। अभी तो उसकी ज़िंदगी शुरू हुई है।”

तिलक राज शर्मा अपने आंसू नहीं रोक पाए जब उन्होंने अपनी लापता भाभी की तस्वीर दिखाते हुए कहा, “पता नहीं वो किस हालत में होगी। हम हर जगह तलाश कर रहे हैं।” अनुज कुमार अपने बेटे को ढूंढने के लिए हर अस्पताल, हर रेस्क्यू कैंप में जा रहे हैं। वहीं देश कुमार की दो बहनें अब तक नहीं मिलीं। वो बस यही दुआ कर रहे हैं कि वो सुरक्षित हों।

सेना और प्रशासन मोर्चे पर

सेना की व्हाइट नाइट कॉर्प्स ने जानकारी दी है कि राहत और बचाव का काम लगातार जारी है। जवान बेहद कठिन हालातों में सर्च लाइट, रस्सियों और खुदाई के औज़ारों के साथ लोगों को मलबे से बाहर निकाल रहे हैं। किश्तवाड़ के डिप्टी कमिश्नर पंकज कुमार शर्मा और एसएसपी नरेश सिंह खुद घटनास्थल पर मौजूद हैं और हर गतिविधि की निगरानी कर रहे हैं।

प्रशासन को अंदेशा है कि मृतकों की संख्या और बढ़ सकती है, क्योंकि अभी भी दर्जनों लोग लापता हैं और कई इलाकों में मलबा हटाया जाना बाकी है।

यह तबाही अकेली नहीं

गौर करने वाली बात यह है कि ऐसी ही एक भयावह घटना महज नौ दिन पहले उत्तराखंड के उत्तरकाशी में हुई थी, जहां धराली गांव में फ्लैश फ्लड से एक की मौत हुई थी और 68 लोग लापता हो गए थे।

अब सवाल ये है कि क्या पहाड़ी इलाकों में हो रहे ये हादसे सिर्फ प्राकृतिक आपदा हैं या फिर किसी बड़ी चेतावनी का संकेत? फिलहाल, चशोटी गांव के लोग इस सदमे से कब उबरेंगे, ये कहना मुश्किल है। राहत और उम्मीद दोनों अभी मलबे के नीचे दबे हुए हैं।

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Independence Day 2025: लाल किले से रोजगार और टैक्स सुधार का ऐलान, स्वतंत्रता दिवस पर ...

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Independence Day 2025: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए युवाओं और कारोबारी वर्ग को राहत देने वाली दो अहम घोषणाएं कीं। एक तरफ उन्होंने रोजगार की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए प्रधानमंत्री विकसित भारत रोजगार योजना की शुरुआत की, तो दूसरी ओर GST सिस्टम में बड़ा सुधार लाने का ऐलान भी किया।

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रोजगार योजना से मिलेंगे लाखों को मौके- Independence Day 2025

अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा कि PM विकसित भारत रोजगार योजना देश के करीब 3.5 लाख नौजवानों को नए रोजगार का अवसर देगी। खास बात ये है कि इस योजना की शुरुआत आज से ही कर दी गई है।

इस स्कीम के तहत प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले युवाओं को ₹15,000 की मदद दी जाएगी, जो दो चरणों में मिलेगी। पहली किश्त 6 महीने की नौकरी पूरी होने पर और दूसरी किस्त 1 साल तक सेवा में टिके रहने के बाद दी जाएगी।

किन्हें मिलेगा इस योजना का लाभ?

  • सिर्फ वही युवा इस योजना के तहत पैसा पाने के हकदार होंगे जिनकी मासिक सैलरी 1 लाख रुपये से कम है।
  • इसके अलावा, EPFO (कर्मचारी भविष्य निधि संगठन) में रजिस्टर्ड होना भी अनिवार्य है।
  • जो युवा EPFO से जुड़े नहीं हैं, उन्हें इस योजना का फायदा नहीं मिलेगा।

कंपनियों को भी मिलेगा लाभ

सरकार ने सिर्फ कर्मचारियों का ही नहीं, बल्कि नियोक्ताओं यानी कंपनियों का भी ध्यान रखा है। पीएम मोदी ने बताया कि इस योजना के तहत कंपनियों को भी सब्सिडी दी जाएगी। यदि कोई कंपनी नए कर्मचारी को नौकरी देती है और वह कम से कम छह महीने तक कंपनी में काम करता है, तो सरकार उस कंपनी को प्रति कर्मचारी ₹3,000 तक की सब्सिडी देगी। इससे प्राइवेट सेक्टर को नई नियुक्तियों के लिए प्रोत्साहन मिलेगा और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।

GST में होगा सुधार, टैक्स सिस्टम होगा आसान

प्रधानमंत्री ने व्यापार से जुड़े लोगों के लिए एक और बड़ी घोषणा की। उन्होंने बताया कि दिवाली से पहले GST सिस्टम में अहम बदलाव किए जाएंगे।

इस सुधार के तहत मौजूदा GST टैक्स स्लैब की समीक्षा की जाएगी। अभी देश में वस्तुओं और सेवाओं पर 0%, 5%, 12%, 18% और 28% के टैक्स स्लैब लागू हैं। कुछ मामलों में खास रेट जैसे 0.25% और 3% भी हैं, जो कीमती धातुओं पर लागू होते हैं।

अब इन स्लैब्स की दोबारा जांच की जाएगी ताकि टैक्स स्ट्रक्चर को और ज्यादा पारदर्शी और आसान बनाया जा सके। रिपोर्ट्स की मानें तो सरकार टैक्स की संख्या को घटाकर व्यवस्था को सिंपल और व्यवहारिक बनाना चाहती है।

अन्य योजनाओं का भी किया ज़िक्र

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में पहले से चल रही योजनाओं पर भी चर्चा की। उन्होंने लखपति दीदी योजना को महिलाओं के सशक्तिकरण का मजबूत जरिया बताया और कहा कि इससे लाखों महिलाओं की जिंदगी बदली है। वहीं, PM स्वनिधि योजना का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि रेहड़ी-पटरी वालों को इससे काफी मदद मिली है।

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Sudarshan Chakra: 10 साल में दुश्मनों की हर चाल होगी नाकाम, PM मोदी ने किया ‘सु...

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Sudarshan Chakra: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 79वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से देश को एक और बड़ा तोहफा देने की घोषणा की है। इस बार बात सिर्फ परेड, झंडारोहण और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की नहीं रही, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर एक दूरगामी और ऐतिहासिक कदम उठाया गया है। पीएम मोदी ने “सुदर्शन चक्र” नामक एक नई और आधुनिक सुरक्षा प्रणाली की शुरुआत की घोषणा की, जिसे साल 2035 तक पूरी तरह तैयार किया जाएगा।

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क्या है ‘सुदर्शन चक्र’ मिशन? (Sudarshan Chakra)

प्रधानमंत्री ने बताया कि यह प्रोजेक्ट भारत की सुरक्षा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जाएगा, जो भविष्य की तकनीकी चुनौतियों से निपटने में भी पूरी तरह सक्षम होगा। उन्होंने कहा कि यह पहल श्रीकृष्ण के दिव्य अस्त्र ‘सुदर्शन चक्र’ से प्रेरित है, जो दुश्मन पर सटीक वार करता था और फिर अपने स्थान पर लौट आता था।

पीएम मोदी ने कहा, “हमारा ‘सुदर्शन चक्र’ मिशन न केवल किसी भी हमले को निष्क्रिय करेगा, बल्कि जरूरत पड़ने पर उससे कई गुना ताकत के साथ पलटवार भी करेगा। यह पूरी तरह स्वदेशी तकनीक पर आधारित होगा और इसके रिसर्च से लेकर मैन्युफैक्चरिंग तक की जिम्मेदारी देश के युवाओं और वैज्ञानिकों के हाथ में होगी।”

क्यों है यह कदम जरूरी?

प्रधानमंत्री ने इस मिशन की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि बदलते दौर में युद्ध सिर्फ बॉर्डर पर नहीं लड़े जाते। आज की लड़ाई टेक्नोलॉजी, डेटा, और साइबर स्पेस में भी लड़ी जाती है। ऐसे में भारत को एक ऐसे आधुनिक और आत्मनिर्भर सुरक्षा कवच की जरूरत है, जो हर मोर्चे पर काम आए। उन्होंने साफ किया कि यह प्रणाली न केवल रक्षा बलों को तकनीकी बढ़त देगी, बल्कि भारत की आत्मनिर्भरता (Aatmanirbharta) की दिशा में भी बड़ा कदम होगी।

युवाओं और वैज्ञानिकों पर टिकी जिम्मेदारी

प्रधानमंत्री ने देश के नौजवानों को इस मिशन की रीढ़ बताया। उन्होंने कहा कि इस पूरे प्रोजेक्ट में देश के युवा इंजीनियर, इनोवेटर और वैज्ञानिक शामिल होंगे। इसके तहत रिसर्च, डिजाइनिंग, डिवेलपमेंट और प्रोडक्शन का पूरा काम देश के भीतर ही किया जाएगा।

पीएम मोदी ने यह भी बताया कि इस मिशन के लिए कुछ मूलभूत सिद्धांत पहले ही तय कर लिए गए हैं, जिनके आधार पर आने वाले 10 वर्षों में इसे पूरी मजबूती के साथ आगे बढ़ाया जाएगा।

‘सटीक वार, सटीक सुरक्षा’

अपने संबोधन में पीएम मोदी ने महाभारत का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से सूर्य को ढक दिया था और अर्जुन को प्रतिज्ञा पूरी करने में मदद की थी, वैसे ही भारत का यह आधुनिक ‘सुदर्शन चक्र’ भी दुश्मनों की चालों को नाकाम करेगा और उन्हें जवाब देने में सक्षम होगा।

उन्होंने आगे कहा, “हम इस तकनीक को ऐसा बनाएंगे, जो टारगेट पर सटीक हमला करे और सटीक सुरक्षा दे। यह सिर्फ रक्षा का नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत का भी प्रतीक बनेगा।”

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