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Rajasthan Cough Syrup: “फ्री दवा बना ज़हर! केसॉन कंपनी के सिरप से बच्चों की मौत, 2 सा...

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Rajasthan Cough Syrup: राजस्थान की ‘फ्री मेडिसिन स्कीम’ अब लोगों के लिए राहत नहीं, बल्कि खतरे का कारण बनती जा रही है। जयपुर की फार्मा कंपनी केसॉन (Kayson) द्वारा बनाए गए कफ सिरप को पीने से दो बच्चों की मौत हो चुकी है, जबकि कई बच्चे गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती हैं। यह वही कंपनी है, जिसके खिलाफ पहले भी दर्जनों बार गंभीर लापरवाही के मामले सामने आ चुके हैं।

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परेशानी की बात यह है कि केसॉन के सिरप के सैंपल पिछले दो साल में 40 बार फेल हो चुके हैं और इसे कई बार ब्लैकलिस्ट भी किया गया है। इसके बावजूद यह कंपनी सरकारी टेंडरों में वापस शामिल हो जाती है और फ्री दवाओं की सप्लाई करती है। वजह है सरकारी विभागों के साथ उसकी कथित मिलीभगत।

मौत का सिरप: कैसे शुरू हुआ मामला? Rajasthan Cough Syrup

रिपोर्ट्स के मुताबिक, केसॉन का कफ सिरप पीने के बाद दो बच्चों की मौत हुई, जबकि कई अन्य की तबीयत बिगड़ गई। शुरुआती जांच में यह सामने आया है कि यह सिरप सरकार की ‘मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा योजना’ के तहत सप्लाई किया गया था। आरएमएससीएल (Rajasthan Medical Services Corporation Limited) के ज़रिए जून 2025 में इसकी सप्लाई शुरू हुई थी।

पहले भी फेल हुई है ये दवा

ये पहली बार नहीं है जब केसॉन की दवा को लेकर सवाल उठे हैं। 2020 में भीलवाड़ा में इस कंपनी की दवा के सैंपल फेल हुए थे। इसके बाद सीकर में 4, भरतपुर में 2, अजमेर में 7, उदयपुर में 17, जयपुर और बांसवाड़ा में 2-2, और जोधपुर में 1 सैंपल फेल हुआ था।

इसके बावजूद कंपनी ने कैसे टेंडर हासिल किया, इस पर अब कई सवाल उठ रहे हैं। दरअसल, रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जब एक लैब से दवा फेल घोषित होती है, तो कंपनी दूसरी प्राइवेट लैब से उसे पास करवा लेती है और फिर सरकारी अफसरों की मिलीभगत से टेंडर हासिल कर लेती है।

फ्री दवा योजना का हाल

आपको बता दें, 2011 में शुरू हुई ‘मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा योजना’ का मकसद था लोगों को सस्ती और सुरक्षित दवाएं मुहैया कराना। लेकिन पिछले कुछ सालों में इसके तहत सप्लाई होने वाली दवाएं खुद खतरा बनती जा रही हैं।

  • 1 जनवरी 2019 से अब तक 915 सैंपल फेल हो चुके हैं।
  • सिर्फ 2024 में 101 सैंपल, और 2025 में अब तक 81 सैंपल फेल हुए हैं।
  • कोरोना काल में सबसे ज़्यादा दवाएं खराब पाई गई थीं।

सरकार ने अब उठाए कदम

मामला तूल पकड़ने के बाद अब सरकार हरकत में आई है। आरएमएससीएल ने सिरप के सभी बैचों की सप्लाई पर रोक लगा दी है। आरएमएससीएल के कार्यकारी निदेशक जयसिंह ने बताया कि दो बैच की जांच कराई जा रही है और बाकी 19 बैच भी होल्ड पर हैं। स्वास्थ्य विभाग की प्रमुख सचिव गायत्री राठौड़ ने कहा है कि संबंधित दवाओं के सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं और रिपोर्ट आने पर सख्त कार्रवाई होगी।

सवाल उठ रहे हैं…

सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस कंपनी का रिकॉर्ड पहले से ही दागदार है, उसे बार-बार टेंडर कैसे मिल रहे हैं? क्या सरकारी दवा योजना में लापरवाही और भ्रष्टाचार की वजह से मासूम बच्चों की जान जा रही है? सरकार के लिए यह वक्त आत्ममंथन का है। लोगों को फ्री दवा देना अच्छी बात है, लेकिन अगर वो दवा ज़िंदगी की जगह मौत दे, तो ऐसी स्कीम पर दोबारा सोचने की ज़रूरत है। फिलहाल पूरे राज्य में इस मुद्दे को लेकर लोगों में गुस्सा है।

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POK Protest Update: POK से उठी चिंगारी, पूरे पाकिस्तान में फैला गुस्सा… शहबाज श...

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POK Protest Update: पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ इस वक्त तगड़े राजनीतिक और सामाजिक दबाव में हैं। वजह? पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) में शुरू हुए एक जबरदस्त जनविरोध ने पूरे देश की सियासी ज़मीन हिला दी है। बात अब सिर्फ प्रदर्शन की नहीं रही, बल्कि सवाल सीधे-सीधे शहबाज सरकार की साख, स्थिरता और भविष्य पर उठ रहे हैं।

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पीओके से शुरू हुआ जनआंदोलन- POK Protest Update

सब कुछ शुरू हुआ अवामी एक्शन कमेटी के नेतृत्व में हुए पीओके के प्रदर्शनों से। मुजफ्फराबाद और रावलकोट जैसे इलाकों में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए। जनता ने सिर्फ महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ आवाज नहीं उठाई, बल्कि खुलकर पाकिस्तान की फौज और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। सरकारी इमारतों के बाहर प्रदर्शनकारियों की भीड़ जुटी और देखते ही देखते माहौल बेकाबू हो गया।

पहले तो सरकार ने हमेशा की तरह ताकत से निपटने की कोशिश की। सेना को भेजा गया, गोलियां चलाई गईं और 15 से ज़्यादा लोगों की जान चली गई। लेकिन हालात तब पलटे जब प्रदर्शनकारी हिंसा पर उतर आए और फौज पर ही हमला बोल दिया। फौज के जवान भी घायल हुए और कई जगहों पर 172 पुलिसकर्मी अस्पताल में भर्ती कराए गए। जवाब में सरकार को पीछे हटना पड़ा।

अब बातचीत की बात

स्थिति बिगड़ती देख शहबाज शरीफ को बैकफुट पर आना पड़ा। उन्होंने तुरंत बातचीत का ऑफर दिया और कहा कि सरकार कश्मीरी भाइयों की समस्याओं को गंभीरता से ले रही है। उन्होंने ये भी दावा किया कि राहत सहायता भेजी जा रही है और प्रदर्शनकारियों की बात सुनी जाएगी।

इसके बाद सरकार ने बातचीत की एक टीम मुजफ्फराबाद भेजी, जिसमें केंद्रीय मंत्री सरदार यूसुफ, अहसान इकबाल, राना सनाउल्लाह, मसूद खान और कमर जमान कैरा शामिल हैं। प्रधानमंत्री खुद इस प्रक्रिया की निगरानी कर रहे हैं। लेकिन जनता अब सिर्फ आश्वासनों से मानने के मूड में नहीं दिख रही।

प्रदर्शन के पीछे की मांगें

प्रदर्शनकारियों की मांगें साफ हैं –

  • शरणार्थियों के लिए आरक्षित 12 सीटों को खत्म किया जाए,
  • अमीरों को मिलने वाले विशेषाधिकार रद्द किए जाएं।

इन मांगों के पीछे ये भावना है कि सरकार पीओके के लोगों को दूसरे दर्जे का नागरिक मानती है। लेकिन अगर ये मांगे मानी जाती हैं, तो पाकिस्तान की सत्ता पर इसका बड़ा असर पड़ सकता है, क्योंकि इन्हीं राजनीतिक चालों से वहां की हुकूमत अब तक बनी रही है।

मामला अब सिर्फ पीओके तक नहीं

इस बार समस्या सिर्फ पीओके तक सीमित नहीं रही। लाहौर, कराची, इस्लामाबाद और पेशावर जैसे बड़े शहरों में भी प्रदर्शन तेज हो गए हैं। लोग सिर्फ कश्मीर को लेकर नहीं, बल्कि बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, प्रशासनिक भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था से परेशान हैं।
ट्रेड यूनियन से लेकर स्टूडेंट ग्रुप्स तक, हर कोई सड़कों पर है।

सरकार ने पुलिस को अलर्ट पर रखा है, लेकिन साफ है कि अगर प्रदर्शन और तेज हुए, तो हालात काबू से बाहर जा सकते हैं।

क्या दोहराया जाएगा हसीना-ओली वाला इतिहास?

राजनीतिक विश्लेषक साफ कह रहे हैं – पाकिस्तान की स्थिति अब बांग्लादेश और नेपाल जैसी हो सकती है, जहां जनता के भारी विरोध के बाद शेख हसीना और केपी ओली जैसे नेताओं को सत्ता छोड़नी पड़ी। अगर शहबाज शरीफ जल्द कोई संतुलित समाधान नहीं निकाल पाए, तो उनके लिए सत्ता में बने रहना मुश्किल हो सकता है।

सरकार की रणनीति: सहमति और संयम

फिलहाल सरकार की रणनीति यही है कि बात को संवाद के जरिए सुलझाया जाए। प्रधानमंत्री ने कानून-व्यवस्था से जुड़े अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए हैं कि कोई भी कार्रवाई प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कठोर न हो और आम जनता के गुस्से को शांत करने की कोशिश की जाए।

लेकिन असली चुनौती ये है कि क्या जनता अब सरकार पर भरोसा करने को तैयार है?

दबाव में शरीफ सरकार

सोशल मीडिया पर भी सरकार के खिलाफ जबरदस्त विरोध देखने को मिल रहा है। लोग शहबाज शरीफ से जवाब मांग रहे हैं। ऐसे में सवाल ये है कि क्या ये सरकार इस गुस्से को झेल पाएगी?

फिलहाल, देश के हालात बेहद नाजुक हैं। प्रदर्शन अगर लंबे समय तक चले, तो ये सिर्फ सरकार ही नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम के लिए खतरे की घंटी बन सकते हैं।

अब देखना यही है कि शहबाज शरीफ सिर्फ शब्दों से हालात संभालते हैं या कोई ठोस कदम भी उठाते हैं – क्योंकि जनता अब चुप बैठने के मूड में नहीं दिख रही।

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US Shutdown 2025: अमेरिका में फेडरल शटडाउन, सरकारी कामकाज ठप, इमिग्रेंट्स पर बढ़ी चिं...

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US Shutdown 2025: अमेरिका में एक बार फिर से फेडरल शटडाउन हो गया है। इसका सीधा मतलब है कि सरकार के खर्चों को लेकर संसद में सहमति नहीं बन पाई। रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स के बीच खींचतान इतनी बढ़ गई कि कई अहम बिल पास नहीं हो सके और नतीजतन सरकारी फंडिंग रुक गई। इससे पहले अमेरिका में ऐसा 2018-19 के दौरान हुआ था, जब डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति थे। अब एक बार फिर वही हालात बन गए हैं।

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क्या होता है शटडाउन? US Shutdown 2025

शटडाउन का मतलब होता है कि जिन सरकारी एजेंसियों को फंडिंग की जरूरत होती है, उनका कामकाज या तो रुक जाता है या सीमित हो जाता है। इस बार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है। अमेरिका की तमाम सरकारी सेवाओं में से सिर्फ बेहद जरूरी सर्विसेज ही चालू रहेंगी। बाकी विभागों में काम या तो थम गया है या बहुत धीमी रफ्तार से चल रहा है।

कहां फंसी बात?

दरअसल, अमेरिका की सरकार चलाने के लिए संसद से सालाना बजट पास होना जरूरी होता है। लेकिन इस बार रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स किसी आम सहमति तक नहीं पहुंच सके। एक-दूसरे पर आरोप लगते रहे और बजट अटक गया। अब जब तक दोनों पार्टियां किसी सहमति पर नहीं आतीं, तब तक सरकारी एजेंसियों को फंड नहीं मिल पाएगा।

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इस शटडाउन की वजह से करीब 8 लाख से ज्यादा सरकारी कर्मचारी घर बैठ सकते हैं। इनमें से कई को अनपेड लीव पर भेजा जाएगा, यानी उन्हें इस दौरान वेतन भी नहीं मिलेगा।

किन सेवाओं पर असर नहीं पड़ेगा?

एक राहत की बात ये है कि यूएस सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज (USCIS) पर फिलहाल बड़ा असर नहीं पड़ेगा। इस विभाग का काम आवेदन शुल्क से चलता है, इसलिए ज्यादातर कर्मचारी अपनी ड्यूटी पर बने रहेंगे। यहां ग्रीन कार्ड, वीजा, और नागरिकता से जुड़े आवेदन प्रोसेस किए जाते हैं। हालांकि, स्टाफ की कमी के चलते कुछ मामलों में देरी जरूर हो सकती है।

कहां हो सकती है दिक्कत?

वहीं डिपार्टमेंट ऑफ लेबर की बात करें तो उसकी अधिकतर सेवाएं ठप कर दी गई हैं। इस विभाग के ज़रिए H-1B वीजा जैसी सर्विसेस प्रोसेस होती हैं। इसका मतलब ये हुआ कि जो लोग अमेरिका में काम करने के लिए वीजा या ग्रीन कार्ड के इंतजार में हैं, उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ सकता है।

इसी तरह इमिग्रेशन कोर्ट्स भी काफी प्रभावित होंगी। जिन केसों में लोग हिरासत में नहीं हैं, उन्हें फिलहाल पेंडिंग में डाल दिया जाएगा। ऐसे में जिन लोगों ने ग्रीन कार्ड, वर्क वीजा या इमिग्रेशन अपील्स के लिए केस डाले हुए हैं, उनकी सुनवाई में देरी होगी। हालांकि, डिटेन्ड मामलों की सुनवाई जारी रहेगी, ताकि बिना सुनवाई के किसी को लंबे समय तक हिरासत में न रखा जाए।

काम के ग्रीन कार्ड पर भी असर

डिपार्टमेंट ऑफ लेबर एक खास तरह का अप्रूवल भी देता है, जो ग्रीन कार्ड पाने के लिए जरूरी होता है। लेकिन चूंकि यह विभाग ही शटडाउन से बुरी तरह प्रभावित है, इसलिए इस प्रक्रिया में भी देरी होना तय है।

2018-19 का सबसे लंबा शटडाउन

अमेरिका में इससे पहले अक्टूबर 2018 से जनवरी 2019 तक चला शटडाउन इतिहास का सबसे लंबा रहा था। तब भी इमिग्रेशन सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुई थीं। करीब 86 हजार मामलों की सुनवाई टालनी पड़ी थी और हजारों लोगों के वीजा व ग्रीन कार्ड आवेदन अटक गए थे।

अब क्या होगा?

शटडाउन खत्म कब होगा, इसका फिलहाल कोई ठोस जवाब नहीं है। ये इस बात पर निर्भर करता है कि सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्ष कब तक किसी समझौते पर पहुंचते हैं। पिछली बार भी शटडाउन खत्म करने के लिए अस्थायी फंडिंग का सहारा लेना पड़ा था।

इस बार भी यही उम्मीद की जा रही है कि या तो कोई तात्कालिक बजट पास हो या फिर कोई समझौता हो जाए। वरना लाखों कर्मचारियों और इमिग्रेशन जैसी जरूरी प्रक्रियाओं पर असर गहराता जाएगा।

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17 की उम्र में दिल लगाया, फिर करियर गवाया… Padmini Kapila की ज़िंदगी किसी फिल्म...

Padmini Kapila: 70 और 80 के दशक में अपनी खूबसूरती और अदाकारी से लोगों के दिलों में जगह बनाने वाली अभिनेत्री पद्मिनी कपिला लंबे वक्त बाद फिर से सुर्खियों में हैं। एक दौर था जब उन्होंने ‘शान’, ‘वो मैं नहीं’, ‘डेरा इश्क दा’ और ‘इंतजार’ जैसी फिल्मों में काम किया और अमिताभ बच्चन, शशि कपूर जैसे सुपरस्टार्स के साथ स्क्रीन शेयर की। लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीता, उनका करियर रफ्तार पकड़ने से पहले ही थम गया। वजह थी कुछ निजी फैसले, और अफवाहों से भरी निजी ज़िंदगी।

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अफवाहों पर तोड़ी चुप्पी- Padmini Kapila

हाल ही में लेहरें टीवी को दिए इंटरव्यू में पद्मिनी कपिला ने उन अफवाहों पर खुलकर बात की, जो उनके करियर के दौरान अक्सर खबरों की ज़ुबान बनी रहती थीं। सबसे चर्चित नाम था अभिनेता नवीन निश्चल का, जिनसे पद्मिनी का नाम जोड़ा गया था। उस वक्त नवीन, डायरेक्टर शेखर कपूर की बहन नीलिमा से शादीशुदा थे।

पद्मिनी ने बताया, “मैं सिर्फ 17 साल की थी, जब मुझे नवीन जी के साथ फिल्म मिली। वो बहुत चार्मिंग थे। वो मुझे देखते रहते थे, शायद मुझे पसंद करते थे, लेकिन ये सब सिर्फ उस उम्र की एक फीलिंग थी। ये प्यार नहीं था।”

उन्होंने साफ किया कि उनका कभी ऐसा इरादा नहीं था कि वो किसी की शादी तोड़ें। “वो लड़की मैं नहीं थी जिसकी वजह से उनकी शादी टूटी। वो अब इस दुनिया में नहीं हैं, इसलिए उनकी इज्जत करना जरूरी है। लेकिन वो अपने दोस्त की पत्नी के साथ इंवॉल्व थे, और वही उनकी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट बना।”

प्रकाश मेहरा के साथ रिश्ते की सच्चाई

एक और रिश्ता जिसने उनकी जिंदगी को झकझोरा, वो था मशहूर डायरेक्टर प्रकाश मेहरा के साथ। अफवाहें थीं कि दोनों के बीच अफेयर था, जबकि प्रकाश पहले से शादीशुदा थे। इस पर पद्मिनी ने कहा, “मुझे उस रिश्ते का कोई पछतावा नहीं है। लेकिन जब प्रकाश ने इंटरव्यू में कहा कि ‘पत्नी, पत्नी होती है और गर्लफ्रेंड, गर्लफ्रेंड’, तब मैंने फैसला किया कि अब आगे नहीं बढ़ना चाहिए।”

उन्होंने आगे कहा कि उन्हें ऐसा जीवन नहीं चाहिए था जिसमें उन्हें हमेशा किसी की ‘दूसरी पसंद’ बनना पड़े। “मैं हमेशा एक परिवार चाहती थी। किसी शादीशुदा मर्द के साथ रहना मेरी जिंदगी का हिस्सा नहीं बन सकता था।”

करियर में अकेली रहीं

पद्मिनी कपिला का ये भी कहना था कि उनकी जिंदगी में जितने भी पुरुष आए, उनमें से किसी ने भी उन्हें करियर में आगे बढ़ने में मदद नहीं की। “कभी कोई सपोर्ट नहीं मिला, चाहे रिश्ता कैसा भी रहा हो।”

वर्कफ्रंट की बात करें तो पद्मिनी आखिरी बार जेपी दत्ता की फिल्म ‘रिफ्यूजी’ (2000) में नजर आई थीं। उसके बाद उन्होंने फिल्मों से दूरी बना ली।

आज की लड़कियों को क्या सलाह देंगी?

पद्मिनी कहती हैं कि अगर उन्हें मौका मिले, तो वो अपने यंगर वर्जन को यही सलाह देना चाहेंगी: “कभी भी किसी शादीशुदा आदमी के साथ रिश्ते में मत पड़ो।”

उनकी यह साफगोई और ईमानदारी आज की पीढ़ी के लिए एक सीख है कि शोहरत के पीछे भागते हुए अगर निजी फैसलों में चूक हो जाए, तो उसका असर सालों तक महसूस होता है।

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POK Protest Against Pakistan: PoK में उबाल! बढ़ती हिंसा, इंटरनेट बंदी और पाकिस्तान के...

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POK Protest Against Pakistan: पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में हालात बेहद चिंताजनक हो चुके हैं। मुजफ्फराबाद और आसपास के इलाकों में भारी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और पाकिस्तानी फौज की कार्रवाई ने इसे और भड़का दिया है। अब तक सामने आई जानकारी के मुताबिक, पुलिस और रेंजर्स की गोलीबारी में 12 लोगों की जान जा चुकी है, दर्जनों घायल हैं। इस बीच इंटरनेट शटडाउन और हिंसा ने पूरे PoK को एक ‘ब्लैकआउट जोन’ बना दिया है।

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अपने ही लोगों पर फायरिंग, नेताओं ने लगाई लानत | POK Protest Against Pakistan

स्थानीय नेताओं और संगठनों ने पाकिस्तान पर सीधा आरोप लगाया है कि वह PoK को एक उपनिवेश की तरह चला रहा है। ‘ज्वाइंट आवामी एक्शन कमेटी’ के नेता शौकत नवाज मीर ने कहा कि यह रियासत अब ‘डायन’ बन चुकी है, जो अपने ही बच्चों को खा रही है। उनका कहना था कि “आजाद कश्मीर” सिर्फ नाम का है, असल में यहां कोई आजादी नहीं। यहां के लोगों को उनके बुनियादी हकों के लिए भी गोलियों का सामना करना पड़ रहा है।

मुजफ्फराबाद की सड़कों पर खून और गुस्सा

रविवार को मुजफ्फराबाद की गलियां नारों से गूंज उठीं— “कातिलों जवाब दो, खून का हिसाब दो”। प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे आम लोगों पर फायरिंग हुई, जिसमें 8 प्रदर्शनकारियों की मौके पर ही मौत हो गई। वायरल वीडियो में देखा गया कि घायल प्रदर्शनकारी इलाज के बिना अस्पतालों में तड़प रहे हैं, वहीं कुछ वीडियो में पाकिस्तानी रेंजर्स खुद भीड़ के गुस्से का शिकार होते नजर आए।

इंटरनेट ब्लैकआउट: आवाज़ को दबाने की साजिश

पाकिस्तानी प्रशासन ने पूरे PoK में संचार सेवाएं बंद कर दी हैं। न इंटरनेट चल रहा है, न फोन काम कर रहे हैं। जेनेवा में UNHRC के 60वें सत्र में UKPNP के नेता सरदार नासिर अजीज खान ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। उन्होंने कहा, “3 मिलियन कश्मीरी घेराबंदी में हैं। न कोई हथियार उठा रहा है, न हिंसा कर रहा है। ये लोग सिर्फ रोटी, पानी और हक मांग रहे हैं और बदले में मिल रही है गोलियां।”

ब्रिटेन में भी उठी PoK की आवाज

ब्रिटेन की ऑल पार्टी पार्लियामेंट्री ग्रुप (APPG) ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए वहां की सरकार से कार्रवाई की मांग की है। ब्रिटिश सांसद इमरान हुसैन ने कहा कि संचार बंद होने से उनके निर्वाचन क्षेत्र के लोग अपने परिवारों से संपर्क नहीं कर पा रहे। APPG ने इसे सीधा मानवाधिकार उल्लंघन बताया है।

अंतरराष्ट्रीय दबाव में पाकिस्तान

लंदन हो या जेनेवा, पाकिस्तान के खिलाफ विरोध की आवाजें तेज हो गई हैं। UKPNP के प्रवक्ता ने कहा कि पाकिस्तान कश्मीरियों की आवाज दबाना चाहता है, लेकिन लोग शांतिपूर्ण तरीकों से संघर्ष जारी रखेंगे। ब्रिटेन में पाकिस्तानी दूतावास के बाहर भी प्रदर्शन हुए, जहां प्रदर्शनकारियों ने ‘कातिलों जवाब दो’ के नारे लगाए।

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Punjab Drug Case: पंजाब में नशा तस्करी का बढ़ता जाल…नशेड़ी नहीं, तस्कर बन रहे ह...

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Punjab Drug Case: पंजाब में नशा अब सिर्फ एक सामाजिक समस्या नहीं, बल्कि एक संगठित अपराध का रूप ले चुका है। ताज़ा NCRB (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) रिपोर्ट ने राज्य की एक डरावनी सच्चाई को उजागर किया है कि यहां नशा करने वालों से कहीं ज्यादा लोग नशा बेच रहे हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब में प्रति लाख जनसंख्या पर जहां 12.4 मामले नशे के सेवन के दर्ज हुए, वहीं ड्रग्स तस्करी के 25.3 मामले दर्ज किए गए। यानी नशा करने वालों की तुलना में लगभग दो गुनी संख्या तस्करी में पकड़े गए लोगों की है। यह आंकड़ा दिखाता है कि पंजाब में नशे का कारोबार एक सिस्टमेटिक नेटवर्क की तरह फैलता जा रहा है, और लोग खुद को नशे के आदी बनाने से पहले, इसे बेचने वाले बनते जा रहे हैं।

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ओवरडोज़ से मौतों में भी पंजाब सबसे ऊपर- Punjab Drug Case

2023 में पूरे देश में नशीले पदार्थों के ओवरडोज़ से 654 मौतें दर्ज हुईं, जिनमें सबसे ज़्यादा 89 मौतें अकेले पंजाब में हुईं। यह लगातार दूसरा साल है जब पंजाब इस शर्मनाक आंकड़े में सबसे आगे रहा। हालांकि यह संख्या पिछले साल के मुकाबले (144 मौतें) थोड़ी कम है, मगर ये किसी भी सूरत में राहत की बात नहीं कही जा सकती।

मध्य प्रदेश (85 मौतें) और राजस्थान (84 मौतें) भी इस लिस्ट में शामिल रहे, लेकिन पंजाब की स्थिति अब भी सबसे गंभीर बनी हुई है।

हिमाचल भी पीछे नहीं, नशे की चपेट में पहाड़

पंजाब से सटा हुआ हिमाचल प्रदेश भी अब इस नशे के नेटवर्क से अछूता नहीं रहा। NCRB की रिपोर्ट बताती है कि 2023 में यहां NDPS एक्ट के तहत कुल 2,146 मामले दर्ज किए गए। आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि इसमें से 1,599 मामले ड्रग्स तस्करी से जुड़े थे और सिर्फ 547 नशा सेवन से।

यहां भी प्रति लाख जनसंख्या पर तस्करी के 21.3 और सेवन के 7.3 मामले सामने आए। पंजाब और जम्मू-कश्मीर की सीमा से सटे होने की वजह से हिमाचल अब ड्रग ट्रैफिकिंग का नया रास्ता बनता जा रहा है।

दक्षिण भारत में अलग ट्रेंड: केरल और महाराष्ट्र का हाल

ड्रग्स तस्करी के मामलों में पंजाब देशभर में नंबर एक है, लेकिन NDPS (नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस) कानून के तहत दर्ज कुल मामलों की बात करें तो पंजाब तीसरे नंबर पर आता है। 2023 में यहां 11,589 मामले दर्ज हुए, जो केरल (30,697 मामले) और महाराष्ट्र (15,610 मामले) से कम हैं।

हालांकि इन राज्यों में ज्यादातर केस नशा करने से जुड़े हैं, न कि तस्करी से। ये दर्शाता है कि जहां पंजाब और हिमाचल जैसे राज्य सप्लाई चेन का हिस्सा बनते जा रहे हैं, वहीं केरल और महाराष्ट्र जैसे राज्य ज़्यादा उपभोक्ता बनते जा रहे हैं।

खतरे की घंटी

NCRB की यह रिपोर्ट साफ इशारा करती है कि पंजाब में नशा अब एक आम लत नहीं, बल्कि माफियाओं के हाथों में पल रही एक साजिश बन चुका है। लोगों के पास रोजगार नहीं, लेकिन तस्करी का रास्ता खुला है और यही सबसे बड़ा खतरा है।

अब सवाल यह है कि क्या सरकारें इस पर सख्त एक्शन लेंगी? या फिर पंजाब का भविष्य यूं ही नशे की आग में जलता रहेगा?

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Dr. Ambedkar vs Gandhi: डॉ. अंबेडकर ने गांधी को क्यों कहा था ‘अछूतों का सबसे बड़ा दुश...

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Dr. Ambedkar vs Gandhi: भारतीय इतिहास में ऐसे कई पल आए हैं, जब दो महान व्यक्तित्वों के विचार आमने-सामने खड़े हो गए। लेकिन जब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने महात्मा गांधी को “भारत में अछूतों का सबसे बड़ा दुश्मन” कहा, तो ये सिर्फ एक व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं थी ये एक ऐतिहासिक हकीकत, एक चेतावनी और एक गहरी पीड़ा का नतीजा थी।

यह बयान अपने आप में भारी है, इसलिए यह समझना बेहद जरूरी है कि आखिर डॉ. अंबेडकर ने ऐसा क्यों कहा? क्या वे महात्मा गांधी के विरोधी थे? या फिर उनके पास इसके पीछे कोई ऐतिहासिक, सामाजिक और कानूनी आधार था? यह खबर उन्हीं सवालों की तह में जाने का प्रयास है।

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आरंभ: अलग निर्वाचिका का अधिकार और गांधी का अनशन

1930 के दशक की बात है। लंदन में आयोजित राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस (RTC) में डॉ. अंबेडकर ने एक ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। उन्होंने वहाँ पर यह साबित कर दिया कि अछूत जिन्हें आज अनुसूचित जातियों के नाम से जाना जाता है हिंदू समाज का हिस्सा नहीं हैं। वे वर्ण व्यवस्था के किसी भी वर्ग में नहीं आते थे, ना ब्राह्मण, ना क्षत्रिय, ना वैश्य और ना ही शूद्र। यानी वे ‘अवर्ण’ थे वर्ण से बाहर।

इसी आधार पर डॉ. अंबेडकर ने उनके लिए अलग निर्वाचिका (separate electorate) की मांग की और यह अधिकार ब्रिटिश सरकार ने मान भी लिया। यह अधिकार पहले से मुसलमानों, सिखों और एंग्लो-इंडियंस को मिल चुका था, तो फिर अछूतों को क्यों नहीं?

लेकिन जैसे ही यह अधिकार अछूतों को मिलने वाला था, महात्मा गांधी ने इसका कड़ा विरोध किया। उन्होंने इसे हिंदू धर्म के लिए “जहर का इंजेक्शन” कहा और इसके खिलाफ आमरण अनशन पर बैठ गए। यह अनशन किसी नैतिक दबाव का नहीं, बल्कि एक भावनात्मक ब्लैकमेल का रूप ले चुका था।

पूना समझौता: विवशता में लिया गया फैसला |Dr. Ambedkar vs Gandhi

गांधी के अनशन ने देशभर में तनाव फैला दिया था। डॉ. अंबेडकर पर दबाव डाला गया राजनीतिक, सामाजिक और यहां तक कि हिंसा की धमकियों के जरिए भी। उन्हें बताया गया कि अगर गांधी की मृत्यु हो गई, तो पूरे भारत में अनुसूचित जातियों के खिलाफ नरसंहार हो सकता है। हजारों घर जलाए जा सकते हैं, हजारों जानें जा सकती हैं।

अंततः डॉ. अंबेडकर ने पूना समझौते पर हस्ताक्षर किए। उन्होंने अपने कानूनी रूप से मिले अधिकार को छोड़ दिया इसलिए नहीं कि उन्हें गांधी से सहानुभूति थी, बल्कि इसलिए कि वो अपने लोगों की जान बचाना चाहते थे। उन्होंने सोचा कि अगर लोग जिंदा रहेंगे, तो संघर्ष आगे भी जारी रखा जा सकता है।

“हिंदू” शब्द का बदलता अर्थ: इतिहास का सबसे बड़ा छल

यहां एक अहम सवाल खड़ा होता है — जब डॉ. अंबेडकर ने साबित कर दिया कि अछूत हिंदू नहीं हैं, तो गांधी किस ‘हिंदू समाज’ को बचाना चाह रहे थे?

इसका जवाब छिपा है ‘हिंदू’ शब्द की ऐतिहासिक परिभाषाओं में:

फारसी हिंदू (Persian Hindu):

जब ‘हिंदू’ शब्द की उत्पत्ति हुई, तो इसका धार्मिक अर्थ नहीं था। यह सिर्फ एक भौगोलिक पहचान थी — सिंधु नदी के पार रहने वाले लोग। यानी हिंदुस्तान के निवासी। इस पहचान का धर्म से कोई लेना-देना नहीं था।

ब्रिटिश हिंदू (British Hindu):

अंग्रेजों के शासनकाल में ‘हिंदू’ शब्द को एक सामाजिक संरचना में ढाला गया। इसमें चार वर्ण थे — ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। अछूत इस व्यवस्था से बाहर थे। वे ‘अवर्ण’ कहलाते थे। उनके लिए कोई वर्ण धर्म नहीं था, कोई जाति नहीं थी। इसलिए वे हिंदू नहीं थे।

गांधीवादी हिंदू (Gandhian Hindu):

महात्मा गांधी ने एक नया प्रयोग किया। उन्होंने अछूतों को भी ‘हिंदू’ घोषित कर दिया। यानी एक ऐसा “हिंदू समाज” गढ़ा गया जिसमें सबको शामिल किया गया चाहे वे वर्ण व्यवस्था में हों या नहीं। यह एक सामाजिक और राजनीतिक मिलावट थी, ताकि अछूतों को हिंदू समाज का हिस्सा दिखाया जा सके और उन्हें अलग पहचान से वंचित किया जा सके।

धर्म या जीवनशैली: पहचान की राजनीति

गांधी ने “हिंदू धर्म” को एक धर्म की तरह प्रस्तुत किया, और अछूतों को उसमें शामिल करके कहा कि उनकी अलग निर्वाचिका हिंदू धर्म को तोड़ देगी। लेकिन डॉ. अंबेडकर के अनुसार, यह तो एक झूठी पहचान थोपने की साजिश थी।

अगर अछूतों को अलग पहचान मिल जाती, तो आज कोई भी अनुसूचित जाति का व्यक्ति हिंदू न कहलाता। और तब उनकी धार्मिक स्वतंत्रता और राजनीतिक पहचान दोनों ही मजबूत होतीं।

आज का सवाल: क्या हम वाकई अंबेडकर के मिशन के साथ हैं?

डॉ. अंबेडकर की सबसे बड़ी चिंता यह थी कि कहीं ऐसा न हो कि समय के साथ-साथ अछूत खुद को हिंदू मानने लगें उस पहचान को जो कभी उनकी थी ही नहीं। दुर्भाग्य से, आज का सच यही है। अनुसूचित जातियों के लोग आज ‘दलित हिंदू’, ‘बौद्ध दलित’, ‘सिख दलित’ जैसे मिश्रित पहचानें अपनाते हैं जो इतिहास और सच्चाई को धुंधला कर देती हैं।

यह पहचान न केवल भ्रम फैलाती है, बल्कि डॉ. अंबेडकर के उस ऐतिहासिक संघर्ष को भी मिटा देती है, जिसमें उन्होंने साबित किया था कि अछूत कभी हिंदू नहीं थे।

क्या यह पहचान का बलात्कारीकरण नहीं है?

जब किसी को उनकी मर्जी के खिलाफ कोई धर्म या पहचान थोप दी जाए, तो उसे जबरन पहचान परिवर्तन (forced identity conversion) कहा जाता है। और यही हुआ है अनुसूचित जातियों के साथ — उन्हें बिना उनकी सहमति के ‘हिंदू’ बना दिया गया।

इसलिए डॉ. अंबेडकर का यह कथन — “gandhi is the greatest enemy the untouchables ever had in India” — केवल एक व्यक्तिगत मतभेद नहीं था, बल्कि यह एक बहुत ही गहरे और लंबे सामाजिक धोखे की तरफ इशारा था।

क्या अब भी समय नहीं आया जागने का?

डॉ. अंबेडकर ने जिस संघर्ष की नींव रखी थी, क्या हम उसे समझ पा रहे हैं? क्या हम इस बात से वाकिफ हैं कि आरक्षण केवल जाति नहीं, बल्कि पेशेवर और सामाजिक बहिष्कार पर आधारित था? और क्या हम यह मानते हैं कि अगर हम खुद को आज भी हिंदू कहते हैं, तो हम उसी व्यवस्था का हिस्सा बन जाते हैं जिसने हमें कभी इंसान तक नहीं समझा?

डॉ. अंबेडकर ने पूना समझौते पर हस्ताक्षर करके अपने लोगों की जान बचाई थी, लेकिन आज अगर वे देख रहे होते कि उनके लोग उसी पहचान को गर्व से अपना रहे हैं जिससे वो आजीवन संघर्ष करते रहे — तो क्या उन्हें संतोष होता?

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इंदिरापुरम में 6 साल के मासूम की कार से कुचलकर मौत, बेटे के लिए बिलखती मां कार से लिप...

गाजियाबाद (Ghaziabad) के इंदिरापुरम (Indirapuram) से हाल ही में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। एक कार दुर्घटना में 6 साल के बच्चे की मौत हो गई। घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हो रहा है। घटना की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुँची और शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। साथ ही, शिकायत दर्ज कर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया। वही इस घटना के बाद से पूरा परिवार शोक में डूबा हुआ है। तो चलिए आपको इस लेख में पूरे ममाले के बारे में विस्तार से बताते हैं।

नाबालिग बच्चे की कार दुर्घटना में मौत

जहाँ पूरा देश बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक दशहरा के त्योहार रावण दहन की धूम में डूबा हुआ है, वहीं गाजियाबाद के इंदिरापुरम स्थित शक्ति खंड 4 में एक दिल दहला देने वाली घटना घटी है। उत्सव और खुशियों के इस माहौल के बीच, एक 6 साल के मासूम नाबालिग बच्चे की कार दुर्घटना में मौत हो जाने से पूरा परिवार गहरे सदमे में है और इलाके में सन्नाटा पसरा हुआ है।

सोशल मीडिया पर वायरल विडियो 

दरअसल यह हादसा गुरुवार दोपहर को इंदिरापुरम थाना क्षेत्र के शक्तिखंड-चार में हुआ। नेड्रिक न्यूज़ की खबर के खबर के अनुसार मृतक बच्चे का नाम युवराज (6 वर्ष) बताया गया है, जो अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था। वह घर के पास लगे दुर्गा पंडाल के सामने खेल रहा था, तभी एक तेज रफ्तार कार की चपेट में आ गया और उसकी मौके पर ही मौत हो गई। बता दें, हादसे के बाद बच्चे का सिर फट गया। वही घटना का एक विडियो सोशल मीडिया पर काफी तेजी से वायरल हो रहा है। दूसरी और सीसीटीवी फुटेज में कैद हुई घटना में देखा जा सकता है कि कार ने पहले अपने अगले टायर और फिर पिछले टायर से बच्चे को कुचल दिया।

पुलिस ने आरोपी को किया गिरफ्तार 

गुस्साई भीड़ ने कार चालक को घटनास्थल पर ही रोक लिया और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की। वही मौके पर पहुँची पुलिस ने किसी तरह भीड़ को शांत किया और कार चालक नितिन (निवासी राजेंद्र नगर) को गिरफ्तार कर कार जब्त कर ली। इसके अलवा बच्चे के पिता की शिकायत पर पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर कानूनी कार्रवाई कर रही है।

आपको बता दें, यह दुर्भाग्यपूर्ण हादसा इस पर्व की खुशियों पर गम का साया डाल गया है। बच्चे की असमय मृत्यु ने परिवार के इकलौते चिराग को बुझा दिया है, जिससे परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। पुलिस ने इस मामले में कार चालक को गिरफ्तार कर लिया है और कानूनी कार्रवाई कर रही है।

Sonam Wangchuk Arrested: सोनम वांगचुक को क्यों लिया गया हिरासत में? लद्दाख में हिंसा ...

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Sonam Wangchuk Arrested: लद्दाख में 24 सितंबर को हुई हिंसा ने पूरे देश का ध्यान एक बार फिर इस शांतिप्रिय क्षेत्र की ओर खींच लिया है। एक ओर पुलिस और प्रशासन का दावा है कि हिंसा सुनियोजित थी और कुछ “तथाकथित पर्यावरण कार्यकर्ताओं” द्वारा भड़काई गई, वहीं दूसरी ओर लोगों का आरोप है कि शांतिपूर्ण विरोध को जबरदस्ती दबाने की कोशिश की गई और निर्दोष लोगों को निशाना बनाया गया।

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डीजीपी ने लगाए गंभीर आरोप- Sonam Wangchuk Arrested

लद्दाख के पुलिस महानिदेशक एसडी सिंह जम्वाल ने लेह में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दावा किया कि 24 सितंबर को जो हिंसा हुई, वो कोई सामान्य विरोध नहीं था, बल्कि एक साज़िश के तहत इसे अंजाम दिया गया। उन्होंने इस पूरी घटना के पीछे प्रमुख रूप से प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक का नाम लिया। डीजीपी के अनुसार, सोनम वांगचुक ने न केवल सरकार के साथ चल रही बातचीत को पटरी से उतारने की कोशिश की, बल्कि “अनशन मंच” का दुरुपयोग करते हुए जनता को भड़काया भी।

उन्होंने बताया कि करीब 5000 से 6000 लोगों की भीड़ ने सरकारी इमारतों और राजनीतिक दलों के दफ्तरों पर हमला किया, पथराव किया और एक कार्यालय को आग के हवाले कर दिया। इस दौरान हिल काउंसिल और सचिवालय में तैनात कई अधिकारियों की जान को खतरा हो गया, जिसके चलते गोलीबारी करनी पड़ी, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई।

भीड़ में शामिल थे असामाजिक तत्व: पुलिस

डीजीपी के अनुसार, हिंसा में 70 नागरिक, 17 सीआरपीएफ जवान, और 15 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। उन्होंने बताया कि अब तक 44 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है और जांच जारी है। पुलिस का कहना है कि इंटरनेट मीडिया पर हिंसा से पहले ही भड़काऊ भाषणों और वीडियो की बाढ़ आ गई थी, जो कानून-व्यवस्था के लिए बेहद खतरनाक थे।

साथ ही यह भी बताया गया कि सीआरपीएफ के जवानों पर हमला हुआ, तीन महिला पुलिस अधिकारी उस इमारत में फंसी थीं जिसे भीड़ ने आग लगा दी थी।

क्या वाकई वांगचुक के भाषणों से भड़की हिंसा?

हालांकि, सोनम वांगचुक और उनके समर्थकों का दावा इससे बिल्कुल उलट है। वांगचुक की पत्नी गीतांजलि जे. अंगमो ने खुलकर सरकार और पुलिस प्रशासन पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि यह एक सोची-समझी “मनगढ़ंत कहानी” है, ताकि लद्दाख में उठ रही छठी अनुसूची और राज्य के दर्जे की मांग को दबाया जा सके।

उनका कहना है कि हिंसा की ज़िम्मेदारी उन लोगों पर थोप दी जा रही है जो शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगें रख रहे थे। उन्होंने डीजीपी के बयानों की कड़ी निंदा करते हुए कहा, “हम पूछना चाहते हैं कि CRPF को गोली चलाने का आदेश किसने दिया? अपने ही नागरिकों पर कौन गोली चलाता है?”

गीतांजलि ने साफ किया कि सोनम वांगचुक उस वक्त किसी और जगह पर शांतिपूर्ण भूख हड़ताल कर रहे थे और उन्हें इस घटना की जानकारी बाद में मिली।

पुलिस पर “एजेंडा” के तहत काम करने का आरोप

वांगचुक की पत्नी ने आरोप लगाया कि पुलिस एक खास राजनीतिक एजेंडे के तहत काम कर रही है। उन्होंने कहा, “लेह के लोग हमेशा से शांतिप्रिय, देशभक्त और लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले रहे हैं। लेकिन अब उन्हें उकसाने की कोशिश की जा रही है और दमनकारी नीतियों के जरिए डराने की रणनीति अपनाई जा रही है।”

हिरासत में लिए गए सोनम वांगचुक, NSA लगाया गया

आपको बता दें, हिंसा के बाद प्रशासन ने सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत हिरासत में लिया है और जोधपुर सेंट्रल जेल में स्थानांतरित कर दिया गया है। यह कार्रवाई भी सवालों के घेरे में आ गई है, क्योंकि वांगचुक के समर्थकों का कहना है कि सरकार उनकी लोकप्रियता और प्रभाव से घबरा गई है।

लद्दाख की मांगें और राजनीति

लद्दाख में लोगों की लंबे समय से मांग रही है कि इस क्षेत्र को राज्य का दर्जा मिले और इसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए, जिससे यहां के मूल निवासियों को राजनीतिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक अधिकार मिल सकें।

5 अगस्त 2019 को जब जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया, तब लेह में इसका स्वागत किया गया था। लेकिन अब वहां के बीजेपी से अलग हुए नेता, जैसे कि छेवांग और लकरुक, राज्य के दर्जे की मांग को लेकर सरकार के खिलाफ खड़े हो गए हैं। इन नेताओं का कहना है कि बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्रों में खुद छठी अनुसूची में लद्दाख को शामिल करने का वादा किया था और अब इससे पीछे हटना वादाखिलाफी है।

क्या विदेशी हाथ भी है पीछे?

घटना की जांच में अब इस पहलू को भी देखा जा रहा है कि क्या इसके पीछे कोई विदेशी संलिप्तता है। डीजीपी ने बताया कि दो और लोगों को हिरासत में लिया गया है और उनसे पूछताछ की जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि इस क्षेत्र में नेपाली मजदूरों का आना-जाना रहा है, इसलिए सभी एंगल से जांच की जा रही है।

कर्फ्यू और निषेधाज्ञा लागू

लेह में अब बीएनएसएस की धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी गई है। पांच या उससे ज्यादा लोगों के एक साथ एकत्र होने पर प्रतिबंध है और किसी भी प्रकार की रैली, जुलूस, मार्च के लिए प्रशासन से पूर्व लिखित अनुमति अनिवार्य कर दी गई है।

अधिकारियों ने कहा है कि कर्फ्यू को दो चरणों में हटाने की योजना बनाई गई है, लेकिन हालात को देखते हुए किसी भी प्रकार की ढील से पहले पूर्ण सतर्कता बरती जा रही है।

24 सितंबर की हिंसा ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है — क्या लद्दाख की लोकतांत्रिक आवाज को सुना जाएगा या फिर उसे कुचलने की कोशिश की जाएगी?

सोनम वांगचुक जैसे व्यक्ति, जो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की सॉफ्ट पावर का चेहरा रहे हैं, जब उन्हीं पर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के आरोप लगते हैं, तो यह न केवल स्थानीय लोगों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए चिंता का विषय बन जाता है। वहीं, यह भी सच है कि कानून व्यवस्था को बनाए रखना प्रशासन की जिम्मेदारी है, लेकिन इसकी आड़ में अगर असहमति की आवाज को कुचला जाए, तो लोकतंत्र की आत्मा ही घायल होती है।

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Mohsin Naqvi News: “मैंने माफी नहीं मांगी!” – मोहसिन नकवी की धमक, मीडिया ...

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Mohsin Naqvi News: एशिया कप 2025 को लेकर एक बड़ा विवाद सामने आया है। एशियाई क्रिकेट परिषद (ACC) के अध्यक्ष और पाकिस्तान के गृहमंत्री मोहसिन नकवी ने बुधवार को एक ऐसा बयान दे दिया जिसने क्रिकेट से ज्यादा राजनीति की चर्चा को हवा दे दी। भारतीय टीम को अब तक एशिया कप की विजेता ट्रॉफी नहीं मिली है, और इस मुद्दे पर उठे विवाद के बीच नकवी ने कहा है कि अगर भारतीय टीम ट्रॉफी चाहती है तो वह ACC मुख्यालय आकर खुद उनसे ट्रॉफी ले सकती है।

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ट्रॉफी देने से किया इनकार या सिर्फ ‘रवैया’?

पूरा मामला रविवार को हुए फाइनल मैच के बाद से शुरू हुआ। भारत ने एशिया कप के फाइनल में पाकिस्तान को हराकर खिताब अपने नाम किया, लेकिन पुरस्कार वितरण समारोह के दौरान भारतीय टीम ने मोहसिन नकवी से ट्रॉफी लेने से इनकार कर दिया। इसके बाद नकवी ट्रॉफी लेकर मंच से चले गए।

बाद में मीडिया में यह खबर आई कि नकवी ने ACC की वार्षिक आम बैठक (AGM) के दौरान भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के अधिकारियों से इस घटना पर माफी मांगी। हालांकि, नकवी ने इसे सिरे से नकारते हुए बुधवार को ‘X’ (पहले ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा,

“मैंने कोई माफी नहीं मांगी और ना ही मांगूंगा। अगर भारतीय टीम को सच में ट्रॉफी चाहिए, तो ACC के दफ्तर आ जाएं, मैं वहीं उन्हें ट्रॉफी देने को तैयार हूं।”

BCCI का विरोध और अगला कदम- Mohsin Naqvi News

ACC की AGM में बीसीसीआई की ओर से आशीष शेलार और राजीव शुक्ला शामिल हुए थे। दोनों ने भारतीय टीम को ट्रॉफी न दिए जाने पर कड़ी नाराजगी जताई। रिपोर्ट्स के मुताबिक, नकवी ने बैठक में कहा था कि वह अब भी ट्रॉफी देने को तैयार हैं, लेकिन इस पर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया।

अब बीसीसीआई इस मामले को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) के सामने उठाने की तैयारी कर रहा है। ICC की अगली बैठक नवंबर में होने वाली है, जिसमें यह मुद्दा जोर-शोर से उठाया जा सकता है।

भारत-पाक संबंध और ‘हाथ न मिलाने’ की रणनीति

यह विवाद सिर्फ क्रिकेट तक सीमित नहीं है, इसके पीछे चल रही भारत-पाक तनाव की पृष्ठभूमि भी अहम है। हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने 26 भारतीय पर्यटकों की हत्या कर दी थी। इसके बाद भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चलाकर सीमा पार आतंकी ठिकानों को खत्म करने की कार्रवाई शुरू कर दी।

इस घटनाक्रम का असर मैदान पर भी दिखा। भारत ने पूरे टूर्नामेंट के दौरान पाकिस्तानी खिलाड़ियों से हाथ नहीं मिलाया। दोनों देशों के बीच खेले गए तीनों मैच भारत ने जीते, जिसमें फाइनल भी शामिल है। इसी ने पीसीबी की नाराजगी को और बढ़ा दिया है।

नकवी के बयान से क्रिकेट की गरिमा पर सवाल

मोहसिन नकवी, जो खुद पाकिस्तान के गृहमंत्री हैं, उनके बयानों को लेकर पहले भी राजनीतिक रंग चढ़ चुका है। अब जब उन्होंने भारतीय टीम को ट्रॉफी लेने के लिए “ACC दफ्तर आने” का आमंत्रण दिया, तो यह खेल भावना के खिलाफ माना जा रहा है।

भारत-पाक मैच पहले से ही दुनिया के सबसे तनावपूर्ण क्रिकेट मुकाबलों में गिना जाता है, लेकिन इस बार हालात और बिगड़ते दिखाई दे रहे हैं। भारतीय क्रिकेट फैंस से लेकर बीसीसीआई तक, सभी ने सवाल उठाए हैं कि क्या यह सिर्फ एक ट्रॉफी का मामला है या इसके पीछे कोई राजनीतिक इशारा भी छिपा है?

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