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Delhi Blast NIA Report: लाल किला धमाके में एनआईए ने खोली आतंक की गुत्थी, आमिर राशिद अ...

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Delhi Blast NIA Report: दिल्ली के लाल किला इलाके में 10 नवंबर को हुए कार बम धमाके ने पूरी राजधानी और देश को हिला कर रख दिया था। इस आतंकवादी घटना की जांच अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के हाथों में है, और एजेंसी को मामले में बड़ी सफलता मिली है। जांच के दौरान एनआईए ने उस शख्स को गिरफ्तार किया है, जिसने आत्मघाती हमलावर के साथ मिलकर इस गंभीर साजिश को अंजाम दिया।

गिरफ्तार आरोपी का नाम आमिर राशिद अली बताया जा रहा है। जांच में सामने आया कि धमाके में इस्तेमाल की गई कार उसी के नाम पर रजिस्टर्ड थी। एनआईए ने उसे दिल्ली से हिरासत में लिया। शुरुआत में धमाके की जांच दिल्ली पुलिस कर रही थी, लेकिन बाद में केस को एनआईए को सौंपा गया। अपने हाथ में मामला लेने के बाद एनआईए ने बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान शुरू किया और इसी दौरान आमिर राशिद अली को पकड़ने में सफलता मिली।

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आमिर राशिद अली और उसकी भूमिका- Delhi Blast NIA Report

जांच में सामने आया कि आमिर जम्मू-कश्मीर के सांबूरा, पंपोर का रहने वाला है। उसने पुलवामा के उमर उन नबी के साथ मिलकर यह हमला प्लान किया था। आमिर का काम दिल्ली में कार खरीदने और उसे धमाके के लिए इस्तेमाल होने वाले आईईडी (बम) के रूप में तैयार करने में मदद करना था।

गौर करने वाली बात यह है कि आमिर को पहले 11 नवंबर को हिरासत में लिया गया था, लेकिन लंबी पूछताछ और उसकी भूमिका स्पष्ट होने के बाद उसे औपचारिक रूप से रविवार को गिरफ्तार किया गया।

आत्मघाती हमलावर की पहचान

एनआईए ने फोरेंसिक जांच के जरिए उस ड्राइवर की पहचान की, जो धमाके के वक्त कार चला रहा था। उसकी पहचान उमर उन नबी के रूप में हुई। उमर पुलवामा का रहने वाला था और हरियाणा के फरीदाबाद स्थित अल-फलाह यूनिवर्सिटी में जनरल मेडिसिन विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर था। यानी, एक डॉक्टर खुद आतंकवादी साजिश में शामिल था।

एनआईए ने उमर की एक और गाड़ी भी जब्त की है, जिसकी जांच अभी जारी है। अब तक एजेंसी ने 73 गवाहों से पूछताछ की है, जिनमें धमाके में घायल लोग भी शामिल हैं। शुरुआती जानकारी के अनुसार, इस धमाके में कुल 10 लोगों की मौत हुई, जबकि पहले अधिकारियों ने 13 लोगों की मौत की बात कही थी।

कई राज्यों की पुलिस के साथ समन्वय

एनआईए इस मामले की जांच दिल्ली पुलिस, जम्मू-कश्मीर पुलिस, हरियाणा पुलिस, यूपी पुलिस और अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर कर रही है। जांच अब राज्य-स्तर पर फैल चुकी है। एजेंसी यह पता लगाने में लगी हुई है कि इस धमाके के पीछे कौन-कौन लोग और संगठन शामिल थे और उनकी साजिश कितनी व्यापक थी। यह मामला RC-21/2025/NIA/DLI के तहत दर्ज किया गया है।

सूत्रों के मुताबिक, अब तक 20 से अधिक डॉक्टरों से पूछताछ हो चुकी है, जिनमें से अधिकांश को छोड़ दिया गया। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने लगभग 200 लोगों को संदिग्ध गतिविधियों के आधार पर हिरासत में लिया, लेकिन उनमें से कई को बाद में रिहा किया गया।

इस मामले में अब तक चार मुख्य आरोपी गिरफ्तार किए गए हैं डॉ. अदील, डॉ. मुझम्मिल, डॉ. शाहीन और मौलवी इरफान। बाकी सभी को केवल पूछताछ और संदिग्ध गतिविधियों की पुष्टि के लिए हिरासत में लिया जा रहा है।

एनआईए का कहना है कि पूरा मॉड्यूल काफी संगठित और तकनीकी समझ रखने वाला था, इसलिए जांच कई स्तरों पर हो रही है। फिलहाल एजेंसियां किसी भी जानकारी पर आधिकारिक बयान देने से बच रही हैं क्योंकि मामला शुरुआती चरण में है।

रविवार को हुए अहम घटनाक्रम

रविवार को लाल किला धमाके के मामले में कई अहम घटनाक्रम सामने आए। सबसे पहले, लाल किला मेट्रो स्टेशन, जो धमाके के बाद सुरक्षा कारणों से बंद था, दोबारा खोला गया। स्टेशन के सभी गेट अब आम जनता के लिए खुले हैं। लाल किले के सामने लगाया गया सफेद परदा भी हटा दिया गया, जिससे इलाके में सामान्य गतिविधियां लौटने लगीं।

उधर, अल-फलाह यूनिवर्सिटी में भी सुरक्षा एजेंसियों की जांच जारी रही। यहां से धमाके के मुख्य आरोपी उमर नबी और उसके नेटवर्क से जुड़े महत्वपूर्ण सुराग मिले। दिनभर की कार्रवाई में पुलिस ने दो और संदिग्धों को गिरफ्तार किया, जिन्हें उमर नबी का करीबी बताया जा रहा है।

जांच में एक और बड़ा खुलासा हुआ। धमाके स्थल से मिले 9mm के कारतूस सीमित श्रेणी के पाए गए हैं। इन कारतूसों का स्रोत क्या है और ये वहां कैसे पहुंचे, इसका पता लगाने के लिए फोरेंसिक और इंटेलिजेंस टीमें मिलकर काम कर रही हैं।

तकनीकी और संगठित मॉड्यूल

जांच एजेंसियों का कहना है कि यह मॉड्यूल काफी संगठित और तकनीकी रूप से सक्षम प्रतीत हो रहा है। उमर और उसके साथियों ने एक “व्हाइट-कॉलर” आतंकवादी मॉड्यूल बनाया था, जिसमें मेडिकल फील्ड से जुड़े लोग शामिल थे। यही वजह है कि जांच कई स्तरों पर हो रही है।

धमाके में इस्तेमाल विस्फोटक, कारतूस और अन्य उपकरणों को समझने के लिए फॉरेंसिक टीम लगातार काम कर रही है। जांच अब संभावित विदेशी कनेक्शन और अन्य संदिग्धों तक फैल चुकी है।

घटनास्थल और विश्वविद्यालय से मिले सुराग

हाल ही में धमाके स्थल से 9mm कैलिबर के तीन कारतूस बरामद हुए हैं, जिनमें दो जिंदा और एक खाली खोखा शामिल है। ये कारतूस आम नागरिकों के लिए प्रतिबंधित होते हैं, लेकिन अब तक किसी हथियार का अवशेष मौके से नहीं मिला।

जांच के दौरान अल-फलाह यूनिवर्सिटी से भी महत्वपूर्ण साक्ष्य मिले। यहीं पर आरोपी उमर ने कार को कुछ समय के लिए खड़ा किया था और यहां से विस्फोटक सामग्री भी बरामद हुई।

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Sheikh Hasina Death Penalty: हसीना को फांसी की सज़ा… बांग्लादेश बारूद के ढेर पर, क्या...

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Sheikh Hasina Death Penalty: बांग्लादेश की राजनीति सोमवार को उस मोड़ पर पहुंच गई, जहां पूरा देश सांस थामकर बैठ गया था। पिछले साल जुलाई में हुए बड़े पैमाने की हिंसा को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री और अवामी लीग प्रमुख शेख हसीना को स्पेशल कोर्ट (ICT) ने मौत की सज़ा सुनाई है। महीनों तक चले हाई-प्रोफाइल मुकदमे के बाद यह फैसला आया, जिसने न केवल बांग्लादेश की राजनीतिक जमीन को हिला दिया, बल्कि आने वाले चुनावों पर भी गहरा असर डाल दिया है।

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ढाका की कड़ी सुरक्षा के बीच आया बड़ा फैसला- Sheikh Hasina Death Penalty

78 वर्षीय हसीना के खिलाफ इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने अपना फैसला ढाका के एक कड़े सुरक्षा इंतज़ाम वाले कोर्टरूम में सुनाया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में सफल रहा कि 15 जुलाई से 15 अगस्त 2024 के बीच छात्रों द्वारा किए गए प्रदर्शनों पर घातक कार्रवाई के पीछे हसीना ही थीं। कोर्ट के मुताबिक यह कोई प्रशासनिक चूक नहीं बल्कि “संगठित और योजनाबद्ध हिंसा” थी, जिसमें सैकड़ों निर्दोष प्रदर्शनकारियों को मारा गया। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय की एक रिपोर्ट के अनुसार उस एक महीने के ‘जुलाई विद्रोह’ में करीब 1,400 लोग मारे गए थे।

भारत में रह रहीं हसीना पहले ही भगोड़ा घोषित

पांच अगस्त 2024 को भारी विरोध और हिंसा के बाद सत्ता से बेदखल हुईं हसीना, बांग्लादेश छोड़कर भारत आ गई थीं। गिरफ्तारी की आशंका के बीच वे आज तक भारत में ही ठहरी हुई हैं। अदालत ने पहले उन्हें फरार घोषित किया था और फिर अनुपस्थिति में मुकदमा चलाकर यह फैसला सुनाया। यह पूरी कार्यवाही ऐसे समय में हुई जब देश में फरवरी 2025 में संसदीय चुनाव होने हैं। हसीना की अवामी लीग को पहले ही चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया गया है। इस फैसले ने राजनीतिक तनाव को और बढ़ा दिया है।

ICT कैसे बना हसीना के खिलाफ कार्रवाई का मंच?

इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल (ICT) मूल रूप से 1971 के युद्ध अपराधों की सुनवाई के लिए बनाया गया था। लेकिन वर्तमान सरकार ने इसमें संशोधन कर इसके दायरे को बढ़ाया और हसीना तथा उनके शासनकाल के वरिष्ठ नेताओं को भी इसके अधिकार क्षेत्र में शामिल कर दिया। हसीना सरकार के पतन के बाद से ज्यादातर अवामी लीग नेता गिरफ्तार हुए, कई देश छोड़कर भाग गए और बांग्लादेश का राजनीतिक संतुलन पूरी तरह बदल गया। ICT ने अपने आदेश में कहा कि हसीना ने निहत्थे छात्रों और प्रदर्शनकारियों पर हमलों को रोकने के बजाय बढ़ावा दिया, और अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई न करना भी मानवता के खिलाफ अपराध के दायरे में आता है।

हसीना पर लगाए गए 5 बड़े आरोप

ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में पाँच संगीन आरोप गिनाए, जिनमें से हर एक उन्हें सबसे कठोर सज़ा देने के लिए काफी था।

1. प्रदर्शनकारियों की हत्या का आदेश

अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि हसीना ने खुद घातक बल के उपयोग की अनुमति दी, जिससे भारी संख्या में मौतें हुईं। इसे “संगठित नरसंहार” माना गया।

2. हेलीकॉप्टरों से गोलीबारी

गवाहों ने बताया कि प्रदर्शनों के दौरान ऊपर से गोलियों की बारिश हुई। अभियोजन के अनुसार यह कार्रवाई हसीना के आदेश पर की गई थी।

3. छात्र अबू सईद की हत्या

22 वर्षीय अबू सईद की मौत को अदालत ने “टारगेटेड किलिंग” माना। आरोप है कि यह भी हसीना के निर्देश पर हुआ।

4. शवों को जलाकर सबूत मिटाने का प्रयास

अशुलिया इलाके में प्रदर्शनकारियों के शव जलाए जाने का दावा किया गया, ताकि असली मौत का आंकड़ा छिपाया जा सके। हालांकि हसीना खेमे ने यह आरोप सिरे से खारिज किया।

5. चंखरपुल हमला

अदालत ने माना कि हसीना और उनके सहयोगियों ने चंखरपुल क्षेत्र में किए गए घातक हमले की मंजूरी दी थी, जिसमें छह निहत्थे प्रदर्शनकारी मारे गए।

क्या भारत हसीना को वापस भेजेगा?

यह फैसला आते ही दो बड़े सवाल उठे कि क्या भारत उन्हें वापस भेजने के लिए बाध्य होगा? और उनका भविष्य क्या होगा? कई रणनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो भारत फिलहाल ऐसा कदम नहीं उठाएगा।
कारण स्पष्ट हैं कि हाल के महीनों में पाकिस्तानी सेना और बांग्लादेश के सैनिक अधिकारियों के बीच बढ़ती नज़दीक़ी, ढाका का ISI के प्रभाव में आना, और भारत-बांग्लादेश संबंधों का कमजोर होना। भारत बांग्लादेश को उस दिशा में धकेलने से बचना चाहेगा, जहां उसके लिए सुरक्षा चुनौतियाँ और बढ़ जाएँ।

बांग्लादेश का अगला कदम क्या?

फैसले के तुरंत बाद देशभर में सुरक्षा और कड़ी कर दी गई है। ढाका में पहले से तनाव है, और विपक्ष यह फैसला राजनीतिक बदले की कार्रवाई बता रहा है। वहीं, यूनुस सरकार इसे “न्याय की जीत” बता रही है।

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केवल विपक्ष पर ही मिडिया मेहरबान क्यों..सत्ता पक्ष के विवादों को क्यों नहीं मिलता हवा

कहते है कि मीडिया के पास वो ताकत है कि जो छोटे से चोरी के मामले को भी सीधा पूरे देश में फैले भष्ट्राचार से जोड़ दे तो वहीं बड़ा भ्रष्टाचार भी एक मामली चोरी बन जाये। बिहार में जो विधानसभा चुनाव हुए है, उसके नतीजो के आने के बाद आरजेडी में शुरु हुई पारिवारिक कलाह को मीडिया ने काफी हाइलाइट करके नमक मिर्च लगा कर परोस दिया है, लोगों को कलाह का ये स्वाद शायद पसंद भी आ रहा है और जमकर राजनीति भी हो रही है।

पहले हार और फिर पारिवारिक कलाह एक तो करेला और ऊपर से नीम चढ़ा जैसा हो गया है। और उस पर मीडिया वाकई में अपनी भूमिका अच्छे से निभा रहा है। लेकिन सवाल ये है कि जो मीडिया निष्पक्ष पत्रकारिता का हवाला देता है..क्या वो वाकई में निष्पक्षता के पक्ष में है। ऐसा हम क्यों कह रहे है… तो चलिए आपको बताते है कि वाकई में हमारी मीडिया किसके लिए काम कर रही है।

राजा भैया का हथियार जखीरा

3 जून 2025 में एक मामला सामने आया था,  कुंडा विधानसभा सीट से कई बार के विधायक रह चुके और जनसत्ता दल’ के अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया, जो अपनी बाहुबली छवि के लिए मशहूर है, उनकी पत्नी भावनी सिंह ने पीएमओ में एक शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने कहा कि उनके पति के पास असल भारी मात्रा में हथियारो का जखीरा है, ये हथियार मास डिस्ट्रक्शन का कारण हो सकता है, जो कि लोगो की सुरक्षा और देश के आंतरिक शांति को भंग करने के लिए पर्याप्त है।

भावनी सिंह ने राजा भैया से अपनी जान को भी खतरा बताया और खुलासा किया कि बंद कमरे में राजा भैया ने उन पर गोली चलाई थी, जिसमें उनकी छोटी बेटी बाल बाल बची थी। भावनी ने पहले भी इस मामले में सीबीआई को सारी शिकायत भेजी थी अब वो पीएमओ ऑफिस आकर शिकायत दर्ज करा रही है।

शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न

बता दे कि भावनी मे मार्च 2025 में राजा भैया के खिलाफ दिल्ली के सफदरजंग एन्क्लेव थाने में शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न करने की एफआईआर दर्ज कराई थी..इससे पहले अगस्त 2023 में भानवी सिंह ने एक फैमिली कोर्ट में भी अर्जी दी थी कि पिछले 30 सालों से वो  घरेलू हिंसा, दुर्व्यवहार और राजा भैया के अवैध संबंधों को झेल रही है। मदद के लिए भानवी सिंह ने राष्ट्रीय महिला आयोग और दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण से भी अर्जी डाली थी।

राजा भैया और भानवी कई सालों से अलग रह है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि दोनो की बीच तलाक की अर्जी देने की खबरें है,, लेकिन इतने सालों में राजा भैया जैसी शख्सियत की खबर मीडिया ने छोड़ दी.. इतने बड़े बाहुबलि नेता की खबर सामने नहीं आई..जबकि मीडिया तो एक छोटे से नेता को भी हाइलाइट कर देता है अगर कुछ गलत छोड़िये… कोई गलत टिप्पणी भी कर देते है..तो फिर राजा भैया की जिंदगी में इतनी बड़ी बड़ी घटनायें हो गई..फिर मीडिया कौन सी नींद में सोया हुआ था।

रवि किशन मामला फिरौती का आरोप या ‘पावर प्ले’?

चलिए मीडिया की कलाकारी का एक और नमूना पेश करते है.. यूपी के गौरखपुर से बीजेपी सांसद रवि किशन को तो आप पहचानते ही होंगे। सांसद होने से पहले वो एक बड़े एक्टर भी है..तो किसी पहचान के मोहताज नहीं है.. अप्रैल 2024 में एक खबर सामने आई थी कि मुंबई के रहने वाली अपर्णा सोनी उर्फ अपर्णा ठाकुर ने बीजेपी सांसद रवि किशन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि उनकी बेटी सिनोवा सोनी अलग में रवि किशन की बेटी है। और वो उनकी पहली पत्नी है।

लखनऊ की हजरतगंज कोतवाली

लेकिन रवि किशन उन्हें उनका हक देने के लिए तैयार नहीं है। मामला जितना गर्म था। ऐसा लगा था कि काफी दूर तक जायेगी।  लेकिन रवि किशन की पत्नी प्रीती शुक्ला ने लखनऊ की हजरतगंज कोतवाली में अपर्णा ठाकुर ही नहीं, उसके पति राजेश सोनी, बेटी शिनोवा सोनी, बेटे सौनक सोनी के साथ समाजवादी पार्टी के नेता विवेक कुमार पांडे, एक पत्रकार खुर्शीद खान राजू के खिलाफ ही मामला दर्ज करा दिया।

अपर्णा ठाकुर से 20 करोड़ की फिरौती मांगी

इतना ही नहीं प्रीती शुक्ला ने तो ये भी आरोप लगाया कि अपर्णा ठाकुर ने उनसे 20 करोड़ की फिरौती मांगी थी, और धमकी दी थी कि अगर फिरौती नहीं दी तो अंजाम अच्छा नहीं होगा। यहां तक कि अंडरवर्ल्ड की भी धमकी दी.. वहीं अपर्णा ठाकुर ने भी कहा था कि उन्होंने 10 महीने पहले ही नोटिस दिया था कि बेटी की शादी औऱ पढ़ाई के खर्चो के लिए 20 करोड़ रूपय मांगे थे, कोई फिरौती नहीं मांगी थी।

मीडिया ने बढ़ा चढ़ा दिखाया

इन लोगो ने सत्ता के पावर में आकर उन्हें और उनकी बेटी को प्रताड़ित करना शुरु कर दिया है। अपर्णा का बेटा 4 सालों से आउट ऑफ इंडिया रहता है, उनके पति 18 सालों से उर्गम वैली बद्रीनाथ में रह रहे है, लेकिन उन्हें भी नहीं बख्शा जा रहा है। इन दोनो ही मामलो में मिडिया ने केवल राजा भैया और रवि किशन का पक्ष तो बढ़ा चढ़ा दिखाया लेकिन दूसरा पक्ष पूरी तरह से अनदेखा कर दिया गया।

इतना ही नहीं सुर्खियों में मुद्दे ऐसे उठे जैसे कोई छोटी मोटी खबर को और अगले दिन अखबार के दूसरे तीसरे पन्ने में एक छोटी सी खबर बन कर कोने में रख दी गई हो जबकि हाइटलाइट होते तो लोगो न्याय के लिए आवाज उठाते तो सोचा कि मामले को ज्यादा तूल ही न दिया जाये।

जो लोगो के जेहन में सवाल उठाये..वैसे हमारी राय है.. अगर मीडिया वाकई में अपना काम सही से करती तो शायद एक पारिवारिक कलह को राष्ट्रीय रूप न मिलता और देश की सुरक्षा से खिलावाड़ करने के मुद्दे को ठंडे बस्ते में न डाला जाता है… सारी भूमिका पावर और पैसे की है…आपकी इस पर क्या राय है..कमें कमेंट करके जरूर बतायें।

सॉफ्ट पोर्न मेकर से ले कर गन्दी फिल्मों का व्यापार करने वाले आखिर क्यों बने सनातनी

आज के युवाओं को अगर एक विवादित ओटीटी प्लेटफॉर्म ऑल्ट बालाजी के बारे में पूछेंगे, तो शायद ही ऐसे कोई होगा।जो सोशल मीडिया से जुड़ा हो और उसे ऑल्ट बालाजी के बारे में न पता हो ऑफ्कोर्स टीवी पर तुलसी, पार्वती, गौरी जैसे किरदारों की बहार लाकर खुद को कट्टर हिंदूवादी और सनातनी कहने का दावा करने वाली बालाजी टेलीफिल्म की मालकिन एकता कपूर ही ऑल्ट बालाजी की भी मालकिन थी क्यों कहा हमने तो फिल्हाल सूचना प्रसारण मंत्रालय ने ऑल्ट बालाजी को बैन कर दिया है।

क्योंकि एकता कपूर इस प्लेटफोर्म पर टीवी से उलट तुलसी पार्वती नही बल्कि ओटीटी के फ्री गाइडलाइंस का फायदा उठाकर जो अश्लीलता परोस रही थी, जो गंदगी उन्होंने फैलाई उसके खिलाफ ही एक्शन लिया गया था।  अब एक दुकान बंद हो गई तो एकता कपूर पहुंच गई अपनी दूसरी दुकान लगाने सीधे बागेश्वर धाम वाले धीरेंद्र शास्त्री के द्वारे पर क्या है।

धीरेंद्र शास्त्री की सनातन एकता पदयात्रा

दरअसल बाघेश्वर धाम बाबा धीरेंद्र शास्त्री ने भारत में हिंदुओं को एकजुट करने पर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए सनातन एकता पदयात्रा 7 नवंबर से 10 दिनों तक 170 किलोमीटर की पदयात्रा दिल्ली से शुरू की थी जिसका समापन 16 नवंबर को मथुरा वृंदावन में हुआ। इन दस दिनों की यात्रा में धीरेंद्र शास्त्री दिल्ली की 15 किलोमीटर, हरियाणा की 82 किलोमीटर और फिर बाकि की यात्रा यूपी की उन्होंने पैदल चल कर ही की, और यात्रा को दसवें दिन वंदावन में जय श्री राम के नारे के साथ उनका भव्य समापन चारधाम मंदिर परिसर में अंतिम आरती के साथ खत्म हुआ।

हिंदू राष्ट्र बनाने का संकल्प

इस यात्रा में धीरेंद्र शास्त्री ने 7 बड़े संकल्पों को दोहराया, जिसमें भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का संकल्प लिया गया, हिंदू समाज को संगठित करने और एकता बनाने का, गौ-संरक्षण और हिंदू धर्म की रक्षा का संकल्प, सनातन परंपराओं का फिर से मजबूती से उत्थान, लव-जिहाद और धर्मांतरण के प्रति हिंदू युवाओं को जागरूक किया जायेगा, नशा-मुक्त समाज का निर्माण किया जायेगा, देश के सभी हिंदू युवाओं को धर्म से जोड़ने का संकल्प शामिल है। धीरेंद्र शास्त्री की इस यात्रा में सबसे ज्यादा चर्चित अगर कोई रहा तो वो है बालाजी टेलीफिल्म की मालकिन एकता कपूर।

यूजर्स के निशाने पर एकता

जिन्होंने मंच पर सनातन धर्म की पवित्रता और उसके विचारों को बनाये रखने और उसे बढ़ावा देने का दावा दिया। एकता कपूर के धीरेंद्र शास्त्री की यात्रा में आने के बाद से एकता यूजर्स के निशाने पर आ गई है। एकता कपूर ने अपने शोज में किरदारों के नाम हिंदू देवी देवताओं के नाम पर रखे जाने को लेकर कहती नजर आ रही है कि वो एक कट्टर हिंदू है..सबसे पहले एक सनातनी भारतीय है। वहीं दूसरी तरफ एकता कपूर के साथ साथ बॉलीवुड एक्टर शिल्पा शेट्टी भी नजर आ रही है।

पोर्न वीडियो बना कर बेचने के बिजनस

जो कि बाबा के साथ जमीन पर बैठी नजर आ रही है जो ये दिखाने की कोशिश कर रही है कि वो भी भारतीय संस्कृति और परंपरा का पूरा समर्थन करती है..लेकिन हैरानी की बात तो ये है कि एक तरफ एकता कपूर है..जिनकी ऑल्ट बालाजी को जुलाई 2025 में इसलिए बैन कर दिया गया क्योंकि वो अपने टैनस पर अश्लीलता की हद कर गंदगी फैला रही थी, तो दूसरी तरफ शिल्पा शेट्टी है..2021 में जिनके पति राज कुंद्रा का पोर्न वीडियो बना कर बेचने के बिजनस के बारे में भी खूब चर्चा हुई थी..बेचारी शिल्पा शेट्टी के लिए उस वक्त मुंह छिपाना तक मुश्किल हो गया था।

सनातनी परंपरा के साथ खिलवाड़ 

इस आरोप के जवाब देते देते बेचारे की हालात खराब थी.. करीब 64 दिनों बाद वो जेल से निकले थे.. शिल्पा ने धीरेंद्र शास्त्री की तारीफ करते हुए कहा कि उनकी यात्रा जरूर सफल होगी..क्योंकि उन पर हनुमान जी का हाथ है। वो जरूर जितेंगे। उनकी सच्ची श्र्द्धा ही उन्हें जितायेगी। एकता कपूर और शिल्पा शेट्टी जैसे लोग देश की संस्कृति और सनातनी परंपरा की बातें करते है जिन्होंने असल में सबसे ज्यादा खिलवाड़ हमारे सनातनी परंपरा से किया है। जितनी गंदगी इन्होंने फैलाई है। उसे वो शायद कभी समेट ही न पाये तो सोचा क्यों न धीरेंद्र शास्त्री जी की बहाई सनातनी गंगा में ही हाथ धोकर अपने आप को पवित्र बनाने का ढोंग तो कर ही सकते है।

वैसे भक्ति के नाम पर ढोंग कोई नया नहीं है एक वीडियो और सोशल मीडिया पर देख सकते है। हालांकि इसकी सत्यता की घोषणा नहीं करते हम लेकिन वीडियो में जो आपको जो जोड़ा दिख रहा है ये आपको गेरूआ वस्त्र में बाबा धीरेंद्र शास्त्री की सनातन यात्रा में आगे आगे चलते दिखाई देंगे लेकिन इनका विवाद ज्यादा उछला नहीं अब इसके पीछे कौन हो सकता है। ये शायद बताने की भी जरूरत नहीं है। जब ऐसे ऐसे लोग सनातन और धर्म की रक्षा करने के लिए आवाज उठाते है तो बेहद हाय्स्पद लगता है।

Pooja Sharma case: 6,000 लावारिस शवों को दी थी श्रद्धांजलि, अब पूजा शर्मा क्यों बन गई...

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Pooja Sharma case: दिल्ली की वह लड़की, जिसे हजारों लोग फरिश्ता कहकर सम्मान देते थे, आज खुद एक सनसनीखेज़ मर्डर केस में फंसी नज़र आ रही है। लावारिस शवों को कंधा देकर अंतिम संस्कार करने वाली पूजा शर्मा, जो रोज किसी न किसी अनजान व्यक्ति की आख़िरी यात्रा में शामिल होती थी, अब उसी समाज के शक के घेरे में खड़ी है जिसकी सेवा वह पिछले कई सालों से करती आई है। एक तरफ उसका मानवता से जुड़ा मिशन और दूसरी तरफ हत्या के गंभीर आरोप पूजा का पूरा जीवन मानो एक झटके में बदल गया है।

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कौन है पूजा शर्मा? (Pooja Sharma case)

आईए पहले जानते हैं कि ये पूजा शर्मा आखिर है कौन? पूजा शर्मा दिल्ली की एक जानी-मानी समाजसेविका हैं। उनकी कहानी 2022 से शुरू होती है, जब घर पर लगातार दो बड़े सदमे आए पहले मां की मौत और फिर बड़े भाई की हत्या। भाई के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया के दौरान पूजा को एहसास हुआ कि कितने लोग ऐसे होते हैं जिनका अंतिम संस्कार करने वाला कोई नहीं होता। इसी ने उनके भीतर बदलाव पैदा किया।

उन्होंने फैसला किया कि वे ऐसे लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करेंगी, जिन्हें कोई अपनाने वाला नहीं बचता। अब तक पूजा 6,000 से ज्यादा शवों को सम्मानपूर्वक विदाई दे चुकी हैं। उन्होंने धर्म, जाति, किसी भी आधार पर फर्क नहीं किया। जिस धर्म का मृतक होता, उसी रीति से उसकी विदाई करतीं।
इसी काम को संगठित करने के लिए उन्होंने Bright the Soul Foundation नाम का एनजीओ बनाया और नौकरी तक छोड़ दी। अस्पतालों और पुलिस मॉर्चुरी से सूचना मिलने पर वे खुद गाड़ी, लकड़ी और पूरे संस्कार का इंतज़ाम करती थीं। धीरे-धीरे लोग भी उनके अभियान से जुड़ते चले गए। पूजा एक उम्मीद बन चुकी थीं। लेकिन इसी बीच एक घटना ने उनकी पूरी छवि उलट कर रख दी।

8 नवंबर की रात, सन्नी मेहरा की हत्या और पूजा का नाम

अब आईए जानते हैं कि उनपर आरोप क्या है, नंद नगरी इलाके में 8 नवंबर की रात एक ऐसा मर्डर हुआ जिसने पूरे इलाके में दहशत फैला दी। मारे गए युवक का नाम था सन्नी मेहरा। पुलिस की शुरुआती जांच में जो सामने आया, उसने लोगों को चौंका दिया। आरोप है कि पूजा और उसका भाई रवि शर्मा, दोनों को शक था कि सन्नी, 2022 में उनके भाई छटंकी की हत्या में शामिल था। इस संदेह ने इस मामले को खूनी मोड़ दे दिया।

पुलिस के अनुसार क्या हुआ था?

जांच के मुताबिक, रवि ने सनी को ई-रिक्शा से उतारकर एक पार्क में ले गया। उसने उसे केबल वायर से लोहे की बेंच से बांध दिया और लगभग 30 मिनट तक डंडे से पीटा। इसी दौरान पूजा भी मौके पर पहुंच गई। पुलिस के मुताबिक, पूजा रवि को उकसाती हुई दिखाई दे रही है। इसके बाद रवि वहां से चला गया और लगभग 20 मिनट बाद पिस्तौल लेकर लौटा। उसने बंधे हुए सनी के सीने और कनपटी में गोली मार दी। सनी की मौके पर ही मौत हो गई। घटना के बाद सभी आरोपी फरार हो गए।

सीसीटीवी फुटेज ने खोला राज

पार्क के आसपास लगे कैमरों में जो दिखा, उसने केस को पूरी तरह पलट दिया। फुटेज में पूजा और एक अन्य आरोपी साफ दिखाई देते हैं। फुटेज सामने आने के बाद पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया है। हालांकि, मुख्य आरोपी रवि शर्मा अभी तक फरार है और पुलिस उसकी तलाश में लगातार छापेमारी कर रही है।

क्या वास्तव में पूजा दोषी है?

यही वह सवाल है जिसने पूरी दिल्ली को उलझा दिया है। जिस लड़की को लोग मानवता का चेहरा मानते थे, वही आज हत्या में शामिल दिखाई दे रही है। क्या पूजा सच में घटना की हिस्सा थी? या वह सिर्फ भावनाओं में बहकर गलत समय पर गलत जगह मौजूद थी? फिलहाल, पुलिस जांच कर रही है और कई बातों का खुलासा होना अभी बाकी है।

इलाके में दहशत, समाज में सवाल

सन्नी मेहरा मर्डर केस एक साधारण झगड़ा नहीं बल्कि शक और बदले की भावना से जुड़ा जघन्य अपराध है। घटना के बाद से इलाके में डर का माहौल है। लोगों का कहना है कि पूजा जैसी लड़की का इस तरह के मामले में नाम आना चौंकाने वाला है।

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रोहिणी आचार्य से जुड़े विवाद की पूरी कहानी, आखिर क्यों सबसे प्यारी बेटी बन गई सबसे बड...

Rohini Acharya Controversy: एक कहावत आपने जरूर सुनी होगी….जब नाश मनुष्य पर छाता है, पहले विवेक हर जाता है. ये कहावत इस वक्त आरजेडी सुप्रीमों लालू यादव के बेटे और आरजेडी के तथाकथित युवराज तेजस्वी यादव पर काफी सटीक बैठ रही है..14 नवंबर को जब बिहार विधानसभा चुनावों के नतीजे आये तो खलबली केवल महागठबंधन में ही नहीं मची थी. बल्कि बिहार की कभी सबसे बड़ी पार्टी रही लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी में भी उथलपुथल मच गई।

रोहिणी आचार्य ने पटना का घर छोड़

15 नवंबर को अचानक खबर आई कि लालू की सबसे प्यारी बेटी रोहिणी आचार्य ने पटना का घर छोड़ दिया और वो दिल्ली चली गई। आरजेडी (RJD) को विधानसभा में मिली करारी हार ने एक तरफ ये बता दिया कि अब आरजेडी का समय खत्म हो रहा है, तो वहीं उनके परिवार के बीच भी अंदरूनी कलेश की खबरों से सुर्खियों का बाजार गर्म होने लगा। एक तरफ तेजस्वी यादव हार से तिलमिला गए.

चुनावी रैलियों में उनका बिहेविय़र जितना अभद्र था, जनता ने भी उतनी ही निर्दयता से उन्हे सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया है…वहीं अब ऐसा लगता है कि इस हार से बौखलायें तेजस्वी यादव की बौखलाहद परिवार पर निकल रही है। रोहिणी आचार्य ने खुद अपने पिता और भाई के खिलाफ बयानबाजी करते हुए चिराग पासवान और बीजेपी के गुण गाने शुरु कर दिये है। आइये जानते है क्या है पूरा मामला… और क्यों शुरु हुआ ये विवाद..

कैसे शुरु हुआ मामला

दरअसल इसी साल 16 सितंबर को तेजस्वी यादव ने बिहार की जनता को लुभाने के लिए बिहार अधिकार यात्रा शुरु की थी जो जहानाबाद से शुरू हुई थी…इस यात्रा में देखा गया कि आरजेडी के एक प्रमुख नेता संजय यादव फ्रंट सीट पर बैठे है. जबकि कायदे से वो सीट लालू प्रसाद यादव की होनी चाहिए थी. और अगर वो नहीं थे तो उनके सम्मान में वो खाली होनी चाहिए थी. लेकिन तेजस्वी यादव ने उस जगह पर अपने करीबी सलाहकार संजय यादव को विराजित कर दिया था. बस फिर क्या था, पिता की लाडली रोहिणी आचार्य ने इसके खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर किया.

हालांकि चुनावी माहौल था तो मामले को ज्यादा हवा देने के बजाये उसे दबा दिया गया। लेकिन चुनावो के नतीजे आने के बाद रोहिणी ने संजय यादव और तेजस्वी यादव के तथाकथित दोस्त रमीज पर संगीन आरोप लगाया कि तेजस्वी की छत्रछाया में ही इन दोनो ने रोहिणी आचार्य के साथ गालीगलौच की, उन्हें चप्पल से मारने की कोशिश की और इन सब में तेजस्वी यादव की भूमिका सबसे अहम थी. नतीजा रोहिणी आचार्य ने न केवल हमेशा के लिए परिवार छोड़ दिया बल्कि राजनीति छोड़ने का भी ऐलान कर दिया।

तेजस्वी यादव से विवाद

रोहिणी ने अपने भाई तेजस्वी के साथ साथ अपने पिता को भी सोशल मीडिया पर अनफॉलो कर दिया… जिसके साथ रोहिणी ने एक पोस्ट लिखा- वो अनाथ हो गई है, उन्हें मायके से निकाल दिया गया है। उन्हें असल में सच बोलने की सजा मिली है। रोहिणी ने दावा किया है कि आज आरजेडी की करारी हार का सबसे बड़ा कारण संजय यादव और रमीज. ये दोनो ही है, लेकिन तेजस्वी की आंखो पर इन दोनो ने ऐसी पट्टी बांधी कि पैरो तले से जमीन सरका दी गई लेकिन अभी भी वो नींद से नहीं जागा. इतना ही नहीं रोहिणी ने जब इन दोनो पर आरजेडी की हार का ठींकरा फोड़ा तो तेजस्वी यादव को इतना चुभा कि उन्होंने बहन को बुरी तरह से बेज्जत किया।

संजय यादव पर कार्यवाई

इन नामों का जिक्र भी करना परिवार में उन्हें अपराधी की तरह बना गया। सोर्सेज की माने तो हार के अगले दिन 15 नवंबर को जब हार की समीक्षा करने के लिए आरजेडी खेमे में बैठक हुई तो रोहिणी ने संजय यादव को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं के अंसतोष को लेकर संजय यादव पर कार्यवाई करने के लिए कहा था, लेकिन तेजस्वी झल्ला गए और उल्टा रोहिणी को ही कह दिया कि ये सब तुम्हारे श्राप के कारण हुआ है. तुम्हारी वजह से हम हारे है और जब बहस और ज्यादा तीखी होती गई तो तेजस्वी यादव ने अपनी चप्पल फेंक कर रोहिणी आचार्य को मार दिया।

इतना ही नहीं अपनी पोस्ट में भी रोहिणी ने कहा था कि उन्हें गंदा बुलाया गया.. उनसे कहा गया कि उन्होंने अपनी गंदी किडनी पिता को लगवा दी.. किडनी के बदले करोड़ो रूपय लिए, पार्टी का टिकट लिया. रोहिणी का दर्द उनके पोस्ट से झलक रहा था कि कैसे अपने ससुराल के खिलाफ जाकर रोहिणी ने अपनी किडनी दी.. अगर पिता की इतनी फिक्र थी तो बेटे ने क्यों नहीं दे दी.. लेकिन फिर भी कहूंगी कि शादीशुदा बेटियों को अपने परिवार के बारे में सोचना चाहिए..मायके के बारे में नहीं।

तेज प्रताप का रिएक्शन

लालू परिवार से पहले से ही बर्खास्त हो चुके उनके बड़े बेटे तेज प्रताप यादव के साथ जो कुछ भी भेदभाव हुआ.. उसके बाद उन्हें फैमिली लाइन से ही बाहर कर दिया गया..लेकिन अब बहन को साथ हुए इस व्यावहार पर अपना रोष जताते हुए उन्होंने कहा कि तेजस्वी यादव के सहयोगी..जो परिवार को तोड़ने की साजिश कर रहे है, जनता सब देख रही है समझ रही है…जनता अब कभी माफ नहीं करेंगी। रोहिणी जैसी बेटी के साथ अन्नाय परिवार को ही नहीं बल्कि पूरे आरजेडी को बहुत भारी पड़ेगा।

वहीं पारिवारिक कलह अब खुल कर और ज्यादा तब सामने आ गया जब रोहिणी के अलावा लालू की तीन और बेटियों रागिनी, चंदा और राजलक्ष्मी यादव भी अपने परिवार समेत पटना छोड़ कर दिल्ली शिफ्ट हो गई। वहीं राजनीति और लालू परिवार को छोड़ कर अब रोहिणी हमेशा के लिए सिंगापुर रवाना हो गई.. जहां उनके पति और बच्चे रहते है।

क्या बोले साधू यादव

राबड़ी देवी के भाई और रोहिणी के मामा साधू यादव ने भी इस मामले में अपना रिएक्शन दिया है। साधू यादव ने सीधे रोहिणी पर ही निशाना साधते हुए कहा कि जब आप किसी के घर में रहते है तो आपको उस घर के नियम मानने होते है। और जब आप ऐसा नहीं कर सकते तो आप बाहर जा सकते है. हालांकि साधू यादव ने बात को घुमाते हुए कहा कि लालू का घर उनकी बेटी का भी घर है। जो भी विवाद है उसमें जो सही होगा वो सहीं साबित होगा।

वहीं लोजपा प्रमुख चिराग पासवान ने भी रोहिणी को ढांढस बंधाते हुए कहा कि वो इस हालात से खुद गुजर चुके है, पारिवारिक कलाह आपको तोड़ देता है। एक बेटी होने के नाते आपने जो कुछ भी अपने परिवार के लिए किया उसके बदले आपको जो अपमान मिला वो बेहद ही निंदनीय है। मैं उम्मीद करता हूं कि लालू परिवार का ये आपसी कलह जल्द खत्म हो जाये।

हैरानी की बात है कि इतना बड़ा विवाद हो गया। परिवार में फूट पड़ गई घर की 4 बेटियां घर छोड़ कर चली गई. लेकिन तेजस्वी यादव या फिर लालू यादव की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं है। राजनीतिक मद इस कदर सिर पर सवाल है कि सामने से आता पतन भी नजर नहीं आता है। करारी हार मिली लेकिन आंखो में शर्म नही. जो हमेशा साथ खड़े रहे..उनसे बैर ले लिया. शायद इसी को कहते है विनाशकाले विपरीत बुद्धि…

Reliance Jio spectrum scam: अरबों की परतें, स्पेक्ट्रम की साज़िश? रिलायंस डील्स के दस...

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Reliance Jio spectrum scam: देश के सबसे बड़े उद्योगपतियों में गिने जाने वाले मुकेश अंबानी का नाम एक बार फिर विवादों की हलचल में है। यह विवाद किसी एक घटना का नहीं, बल्कि करीब दो से तीन दशक लंबी उस कहानी का है जो कॉरपोरेट फैसलों, शेयर बाज़ार के उतार-चढ़ाव, कथित फर्जीवाड़े, वित्तीय जाल, विदेशी निवेश संरचनाओं और टेलीकॉम स्पेक्ट्रम तक फैली हुई बताई जाती है। कहानी में कई किरदार हैं महेंद्र नाठा, विनय मालू और अंत में धागा जाकर जुड़ता है रिलायंस जियो तक। जो आरोप सामने रखे गए हैं, वे सिर्फ किसी कंपनी के कारोबारी फैसलों की क्रोनोलॉजी नहीं, बल्कि उस इकोसिस्टम का आईना बताए जाते हैं जिसमें जनता का पैसा, सार्वजनिक संसाधन और नीतियों की दिशा कभी-कभी ‘सिस्टम’ के हिसाब से मोड़ दी जाती है।

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कहानी की शुरुआत 1987 में बनी एक दूरसंचार कंपनी और पहला वित्तीय जाल

दस्तावेज़ों के अनुसार इस गाथा की जड़ें 1987 में दिखाई देती हैं, जब एक दूरसंचार कंपनी अस्तित्व में आई। आने वाले वर्षों में कंपनी ऑप्टिकल फाइबर, माइक्रोवेव, इलेक्ट्रॉनिक्स, ब्रॉडबैंड उपकरणों और नेटवर्क इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे कारोबारों में सक्रिय रही।1995–2000 के बीच कंपनी ने कई सहायक कंपनियाँ बनाईं, एक के बाद एक अधिग्रहण किए और कथित रूप से एक बड़ा वित्तीय नेटवर्क तैयार किया। आरोप यह है कि इस दौरान शेयरों की कीमत को कृत्रिम रूप से ऊपर ले जाने, फिर गिराने और आम निवेशकों को नुकसान पहुँचाने का खेल खेला गया।

दस्तावेजों में बताया गया है कि:

  • 1 अक्टूबर 1999 को कंपनी का शेयर ₹250 के करीब था।
  • 7 मार्च 2000 तक यह ₹2415 तक पहुंच गया।
  • कुछ महीनों के भीतर ही ₹230 तक गिर गया।

आरोप यह है कि संबंधित संस्थाओं ने बड़े पैमाने पर शेयर जमा किए, बाजार में कृत्रिम कमी का माहौल बनाया और कई छोटे निवेशक ऊंचे दामों पर फंस गए।

एचएफसीएल ट्रेड इन्वेस्ट लिमिटेड और 10,648 करोड़ का स्थानांतरण (Reliance Jio spectrum scam)

4PM की रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय लेन-देन का एक और बड़ा हिस्सा 2001–2002 में दिखाई देता है। दस्तावेज़ों के अनुसार कंपनी समूह ने करीब ₹10,648 करोड़ की हिस्सेदारी एक सहायक कंपनी में स्थानांतरित की। अगले ही वर्ष कंपनी ने इसे बैलेंस शीट में समायोजित किया और ₹1,088 करोड़ का ‘राइट डाउन’ (घाटा) दिखा दिया।

अब सवाल उठता है कि इतना बड़ा स्थानांतरण, फिर अचानक मूल्य घटाकर दिखा देना… आखिर क्यों? वहीं, आरोप यह भी है कि यही संपत्तियाँ अलग-अलग निजी कंपनियों के चक्कर लगाती रहीं और बाद में उन्हें राइट ऑफ/इम्पेयरमेंट में समा दिया गया।

GDR और विदेशी फंड की परत, 46.5 मिलियन डॉलर वाला केस

2002 के आसपास की एक अंतरराष्ट्रीय फंडिंग कहानी भी दस्तावेज़ों में दर्ज है। आरोप यह है कि एक विदेशी एंटिटी “रोकन” के नाम पर बैंक गारंटी दिखाकर पैसा लिया गया और उसी पैसे से GDR (Global Depository Receipt) जारी किए गए। कुछ समय बाद रोकन को भुगतान बंद कर दिया गया। सेबी के रिकॉर्ड के मुताबिक यह “साधारण प्रक्रिया त्रुटि” नहीं, बल्कि निवेशकों के हितों को प्रभावित करने वाली सूचना वंचना बताई गई। यही वह दौर है जब महेंद्र नाठा (मामा) और विनय मालू (भांजा) की भूमिका कई जगहों पर दिखाई देती है। दस्तावेज़ों के मुताबिक इन दोनों के नाम कई वित्तीय लेन-देन, कंपनियों और बाद में टेलीकॉम लाइसेंसों के चक्र में जुड़े हुए बताते गए हैं।

4000 करोड़ से ज्यादा की मनी रूटिंग?

4PM की रिपोर्ट मे आगे कहा गए कि 2001–2011 के बीच विभिन्न रिपोर्टों में यह भी दर्ज है कि करीब 4000 करोड़ से अधिक की रकम कभी GDR, कभी FCCB, कभी विदेशी प्रेफरेंस शेयरों के नाम पर इधर-उधर घूमती रही और अंत में राइट-ऑफ में समा गई।

यह आरोप पूरी तरह तकनीकी सवाल उठाता है: अगर संपत्ति कल तक “गोल्ड” थी, आज अचानक बेकार कैसे हो गई? और अगर वास्तव में घाटा था, तो पहले उसके एवज में ऊंचा प्रीमियम क्यों दिखाया गया? यही वह “ग्रे ज़ोन” है जहां नियामक, ऑडिटर्स, बैंकर और प्रवर्तक सभी का रोल सवालों के घेरे में आता है।

2004–05: CDR और बैंकों से कर्ज़ माफी

फिर आता है समय 2004–05 का जब कंपनी ने बैंकों और वित्तीय संस्थानों से कहा कि वे ऋण चुकाने में सक्षम नहीं हैं। इसके बाद ₹27.19 करोड़ का कर्ज़ माफ हुआ। बाकी कर्ज़ लंबी किश्तों में बदला गया। फिर 2009-11 में, कंपनी ने ₹65.30 करोड़ ब्याज लाभ और ₹227.84 करोड़ ऋण माफी लाभ का वित्तीय लाभ दिखाया, कुल मिलाकर ₹320 करोड़ (₹320 करोड़) से अधिक। यह सब कानूनी था, पर सवाल आम जनता का है कि बैंकों का पैसा आखिर किसका होता है? आम जनता का ही। जब छोटे उद्योगपति 2–3 किस्त लेट कर दें, उनका खाता NPA हो जाता है। लेकिन बड़े कॉरपोरेट बार-बार राहत ले जाएँ तो यह समानता कहाँ रह जाती है?

और फिर कहानी पहुँचती है 2010 की BWA स्पेक्ट्रम नीलामी तक

यहीं से कहानी का सबसे संवेदनशील हिस्सा शुरू होता है टेलीकॉम लाइसेंस, स्पेक्ट्रम नीलामी और अंततः Reliance Jio का उभरना। दस्तावेजों के अनुसार, 2010 में “इन्फोटेल ब्रॉडबैंड सर्विसेज प्रा. लि.” ने पूरे देश का BWA स्पेक्ट्रम जीत लिया। उसी साल कंपनी का मूल्यांकन कथित तौर पर 5000 गुना प्रीमियम पर दिखाया गया। कुछ ही समय बाद यह कंपनी रिलायंस को बेच दी गई। बाद में CBI ने 2014 में सुझाव दिया था कि नीलामी की जांच हो, और CAG की रिपोर्ट में अनुमान था कि नियमों में बदलाव से ₹2,842 करोड़ का अनुचित फायदा हुआ। फिर से स्पष्ट ये आरोपित दावे हैं। अदालतें और सरकारें ही इसकी वास्तविकता तय करेंगी।

महेंद्र नाठा का रिलायंस जियो से जुड़ना—एक और कड़ी?

दस्तावेज़ों में यह भी दर्ज है कि महेंद्र नाठा, जो पूरी कहानी की शुरुआती पंक्तियों में प्रवर्तकों के तौर पर दिखते हैं, बाद में Reliance Jio के बोर्ड में भी नज़र आते हैं। आरोप यह है कि इन्फोटेल को लाइसेंस दिलाने में नाठा की भूमिका रही और पूरा ढांचा बाद में रिलायंस के हाथों में चला गया। यह रिश्ता संदेह पैदा करता है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से दोष सिद्ध नहीं करता। इसी वजह से जांच की मांग बढ़ती है।

विनय मालू के खिलाफ पुराने मुकदमे और अनुत्तरित सवाल

विनय मालू का नाम दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और कोलकाता पुलिस की कई केस फाइलों में दर्ज बताया गया है। कुछ मामलों में सजा, कुछ में अपीलें, कुछ में बरी लेकिन कई मामले आज भी पेंडिंग हैं। सवाल उठता है अगर इतने मामले हैं, तो गिरफ्तारी क्यों नहीं? जांच क्यों आगे नहीं बढ़ती? और अगर गलत है तो मुकदमे पेंडिंग क्यों रहते हैं?

क्या रिलायंस को नीतिगत लाभ मिले? दोनों सच्चाईयाँ समानांतर

रिलायंस का दावा है कि जियो ने भारत के डिजिटल सेक्टर में क्रांति ला दी और यह बात किसी से छिपी भी नहीं। डेटा सस्ता हुआ, इंटरनेट सुलभ हुआ, देश डिजिटल हुआ। लेकिन विरोधी पक्ष कहता है कि अगर इस क्रांति की नींव ही ‘नीतिगत लचीलापन’ पर टिकी हो, तो सवाल पूछा जाना जरूरी है कि:

  • क्या सभी टेलीकॉम कंपनियों को वही अवसर दिए गए?
  • क्या नीलामी में समान अवसर था?
  • अगर नियम बदले गए, तो क्यों? और किसके लिए?

सवाल एंटी-बिज़नेस नहीं, प्रो-पारदर्शिता हैं।

अब जरूरत एक व्यापक, निष्पक्ष, पारदर्शी जांच की

कई विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के विवादों में पारदर्शिता ही सबसे बड़ा बचाव होती है। मांग उठ रही है कि:

  1. 2000–2014 के सभी CDR, राइट-ऑफ, विदेशी फंड मूवमेंट, कर्ज़ पुनर्गठन का एक व्हाइट पेपर जारी हो।
  2. 2010 की नीलामी और बाद के लाइसेंस परिवर्तन की पूरी फ़ाइल खोलकर सार्वजनिक की जाए।
  3. बैंकों की फोरेंसिक रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।
  4. SEBI और स्टॉक एक्सचेंज की भूमिका की स्वतंत्र जांच हो।
  5. एक संयुक्त कमेटी (सेबी, सीएजी, सीबीआई, DOT, फोरेंसिक ऑडिटर) की समयबद्ध जांच हो।

आम निवेशक और जनता का दर्द, जो इस पूरी कहानी का असली पीड़ित है

यह कहानी सिर्फ कॉरपोरेट्स की लड़ाई नहीं है। यह उस आम आदमी की भी कहानी है, जिसने 2000 के बुल रन में पैसा गंवाया, जिसने 2010 में डिजिटल इंडिया की खबरों पर शेयर खरीदे, जो खुद बैंक की लाइन में खड़ा होता है, और बाद में उसी बैंक को करोड़ों का कॉर्पोरेट कर्ज़ माफ करते देखता है। यह व्यवस्था की कठिनाई है जहां नियम आम लोगों के लिए सख्त और बड़े खिलाड़ियों के लिए लचीले दिखाई देते हैं।

वहीं, अगर सब कुछ नियमों के भीतर है, तो सभी पक्षों को सामने आकर साफ-साफ बताना चाहिए कि:

  • लाइसेंस कैसे मिले?
  • नियम किसने बदले?
  • 5000 गुना प्रीमियम का आधार क्या था?
  • 22842 करोड़ का अनुमानित लाभ किस वजह से हुआ?

सच्चाई चाहे जो हो पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्ष जांच लोकतंत्र के लिए जरूरी है। यह मामला सिर्फ एक कंपनी का नहीं, बल्कि उस सिस्टम का है जिसके भरोसे आम लोग अपना पैसा, अपना भविष्य और देश की अर्थव्यवस्था सौंपते हैं।

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Bihar Elections Prashant Kishor: बिहार चुनाव से पहले 14,000 करोड़ का ट्रांसफर… जन सुर...

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Bihar Elections Prashant Kishor: बिहार विधानसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज ने रविवार को एक बेहद गंभीर आरोप लगाया। पार्टी का दावा है कि चुनाव से ठीक पहले राज्य सरकार ने विश्व बैंक से मिले फंड को डायवर्ट करके महिला मतदाताओं के खाते में पैसा ट्रांसफर किया, जिससे चुनावी माहौल प्रभावित हुआ। जन सुराज के प्रवक्ता और पार्टी के अहम चेहरे पवन वर्मा ने कहा कि जिस पैसे का इस्तेमाल किसी अन्य परियोजना के लिए होना था, उसी को चुनावी लाभ के लिए उपयोग किया गया।

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विश्व बैंक से आए 21,000 करोड़ में से 14,000 करोड़ चुनाव में लगने का दावा

जन सुराज का कहना है कि विश्व बैंक द्वारा फाइनेंस की गई एक परियोजना से जुड़े 21,000 करोड़ रुपये में से 14,000 करोड़ रुपये अचानक चुनाव से ठीक पहले निकालकर मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के नाम पर 1.25 करोड़ महिलाओं के खातों में ₹10,000 के हिसाब से भेज दिए गए।

 

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पवन वर्मा ने आरोप लगाया कि ये मंजूरी आचार संहिता लागू होने से सिर्फ एक घंटे पहले दी गई, जिससे स्पष्ट है कि यह सब ‘सामान्य सरकारी प्रक्रिया’ नहीं थी, बल्कि एक सुनियोजित चुनावी कदम था। उनका कहना है कि यह सीधे तौर पर चुनावी निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है।

“राज्य का खजाना खाली, रोज 63 करोड़ ब्याज” (Bihar Elections Prashant Kishor)

पवन वर्मा ने बिहार की आर्थिक सेहत पर भी चिंता जताई। उनके मुताबिक राज्य पर 4,06,000 करोड़ रुपये का सार्वजनिक कर्ज है और सरकार को रोजाना 63 करोड़ रुपये ब्याज चुकाना पड़ रहा है। उनका कहना है कि ऐसे हालात में इस तरह का भारी कैश ट्रांसफर न सिर्फ जनता के पैसे का दुरुपयोग है, बल्कि इससे बिहार की अर्थव्यवस्था पर लंबा बोझ पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि शिक्षा, स्वास्थ्य और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे जरूरी क्षेत्रों पर इस खर्च का सीधा असर होगा, क्योंकि राज्य की वित्तीय स्थिति पहले ही कमजोर है।

“वोट खरीदे गए, नहीं तो हमें मिलते 15% वोट”

जन सुराज नेताओं का कहना है कि उनकी पार्टी को मूल रूप से 15% वोट मिल सकते थे, लेकिन आखिरी समय में हुए कैश ट्रांसफर और ध्रुवीकरण की वजह से उनका प्रदर्शन चौकाने वाला कमजोर रहा। पार्टी का वोट शेयर 4% से भी कम रह गया।

प्रवक्ता उदय सिंह ने तो यहां तक आरोप लगाया कि बिहार में “बहुमत खरीदा गया” और कैश ट्रांसफर के जरिए वोटों पर असर डाला गया।

वर्मा ने यह भी कहा कि दिल्ली ब्लास्ट की घटना के बाद सीमांचल में भारी ध्रुवीकरण हुआ, जिससे जन सुराज को नुकसान हुआ। उनका कहना है कि प्रशांत किशोर ने जब पार्टी के लिए 25 सीटों का अनुमान लगाया था, तब परिस्थितियाँ बिलकुल अलग थीं। बाद में सरकार ने “खजाना खोल दिया” और हालात पूरी तरह बदल गए।

शराबबंदी पर रुख को लेकर उठे सवालों का जवाब

कुछ विश्लेषकों का मानना था कि शराबबंदी हटाने पर प्रशांत किशोर के बयान से महिला वोटर उनसे दूर हो गईं। लेकिन पवन वर्मा ने इस दावे को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि शराबबंदी पहले ही कागज पर थी, ज़मीन पर शराब “हर नुक्कड़ पर” बिक रही थी और महंगे दाम पर होम-डिलीवरी तक हो रही थी।

उन्होंने बताया कि शराबबंदी कानून के तहत दो लाख से अधिक लोग जेल जा चुके हैं, जिनमें बड़ा हिस्सा दलित और अत्यंत पिछड़े समुदायों का है। उनके मुताबिक इस फैसले का सीधा नुकसान उन महिलाओं को होता है जिन्हें घर चलाने के लिए प्रतिदिन संघर्ष करना पड़ता है।

चिराग पासवान ने आरोपों को बताया ‘खाली दावा’

दूसरी ओर, केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने जन सुराज के आरोपों को पूरी तरह से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि पार्टी “खोखले दावे” कर रही है और यदि उनके पास कोई ठोस सबूत है तो उन्हें सार्वजनिक करें।

चिराग ने सवाल उठाया कि जन सुराज को इतना बड़ा डेटा कहां से मिला और इसे कैसे सत्यापित किया गया? उन्होंने कहा कि सरकार किसी भी तथ्यात्मक आरोप का जवाब देने के लिए तैयार है, लेकिन बयानबाजी से कुछ साबित नहीं होता।

जन सुराज को नहीं मिली एक भी सीट

243 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद जन सुराज एक भी सीट नहीं जीत पाई। पवन वर्मा के अनुसार, आखिरी घड़ी में महिलाओं पर केंद्रित योजनाओं और मतदाताओं के उस वर्ग की एकजुटता, जो “जंगल राज” की वापसी नहीं चाहता था, ने चुनावी परिणामों को पूरी तरह बदल दिया।

उन्होंने कहा कि “नीतीश कुमार इस चुनाव में एक्स-फैक्टर साबित हुए। बिहार के लोग लालू-तेजस्वी के जंगल राज की वापसी नहीं चाहते थे।“

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Prakash Yashwant Ambedkar: बाबासाहेब के पोते प्रकाश आंबेडकर की राजनीति और संघर्ष की क...

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Prakash Yashwant Ambedkar: भारत की राजनीति में कुछ चेहरे ऐसे होते हैं, जो हर दौर में अपना असर छोड़ते हैं। इनमें एक बड़ा नाम है प्रकाश यशवंत आंबेडकर, जिन्हें लोग ‘बालासाहेब आंबेडकर’ के नाम से भी जानते हैं। 10 मई 1954 को जन्मे प्रकाश आंबेडकर की पहचान सिर्फ डॉ. भीमराव आंबेडकर के पोते की नहीं है, बल्कि एक जिद्दी, बेबाक और जनहित के मुद्दों पर आंदोलनों को खड़ा करने वाले नेता की है।

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परिवार और शुरुआती जीवन- Prakash Yashwant Ambedkar

प्रकाश आंबेडकर ऐसे परिवार में पले-बढ़े जहां सामाजिक न्याय और बराबरी सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि जीवनशैली का हिस्सा थे। उनके पिता यशवंत आंबेडकर और मां मीरा ने बच्चों को बौद्ध परंपरा और सामाजिक चेतना की सोच के साथ पाला। परिवार में दो भाई भीमराव और आनंदराज और एक बहन रमाबाई हैं, जिनकी शादी सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुंबड़े से हुई है।

उनकी पत्नी अंजलि आंबेडकर एक गृहिणी हैं और एक बेटा सुजात आंबेडकर है, जो आज राजनीतिक गतिविधियों में पिता का साथ देता है। बचपन से ही विचारधारा का मजबूत माहौल प्रकाश के व्यक्तित्व में ऐसा घुला कि आगे चलकर वे राजनीति और समाज दोनों में सक्रिय भूमिका निभाने लगे।

राजनीति में कदम और ‘अकोला पैटर्न’ की पहचान

प्रकाश आंबेडकर ने 1990 के दशक में राजनीति में कदम रखा और जल्द ही अपनी अलग शैली की वजह से पहचाने जाने लगे। 1994 में उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी भारिप बहुजन महासंघ बनाई। कुछ ही समय बाद 1998 में वे अकुला से लोकसभा पहुंचे। भाजपा के पांडुरंग फुंडकर को हराने के बाद इस जीत ने उनके राजनीतिक सफर को नया मोड़ दिया।

1999 में वे दोबारा जीतकर संसद पहुंचे और इससे पहले वे राज्यसभा में भी सदस्य रह चुके थे। यानी वे उन नेताओं में हैं जिन्होंने भारतीय संसद के दोनों सदनों में अपनी बात रखी है।

लेकिन प्रकाश आंबेडकर का सबसे बड़ा राजनीतिक प्रयोग “अकोला पैटर्न” माना गया, एक ऐसी रणनीति जिसमें दलित, मुस्लिम और वंचित समुदायों को एक साथ लाकर राजनीतिक शक्ति बनाने की कोशिश की गई। यह मॉडल आज भी महाराष्ट्र की राजनीति में चर्चा का विषय है।

आंदोलनों की पहचान और बेबाक आवाज

प्रकाश आंबेडकर सिर्फ नेता नहीं, बल्कि एक आंदोलनकारी चेहरा भी हैं। भीमा कोरेगांव हिंसा, रोहित वेमुला का मामला, ऊना में दलितों की पिटाई, अंबेडकर भवन विवाद हर जगह वे सबसे आगे दिखे। उनकी रैलियां अक्सर बड़ी भीड़ जुटाती हैं और उनका अंदाजा साफ है जो गलत लगे, उसके खिलाफ खड़े हो जाओ।

2017 में उन्होंने अपने बेटे सुजात के साथ बाबा साहेब द्वारा 1956 में शुरू किए गए अखबार प्रबुद्ध भारत को फिर से लॉन्च किया। 2016 में प्रेस तोड़े जाने के बाद यह अखबार बंद हो गया था, लेकिन प्रकाश ने इसे पुनर्जीवित कर, अपने दादा की बौद्धिक विरासत को आगे बढ़ाया।

वह अक्सर कहते हैं—“देश तभी बचेगा, जब संविधान बचेगा।”
उनकी राजनीति इस एक लाइन में पूरी तरह समझी जा सकती है।

विवाद भी रहे साथ-साथ

प्रकाश आंबेडकर की बेबाकी जहां कई लोगों को आकर्षित करती है, वहीं कई बार विवाद भी खड़े करती है। एक टीवी डिबेट के दौरान उन्होंने एंकर को लेकर दिए बयान पर काफी आलोचना झेलनी पड़ी। 2023 में उन्होंने औरंगज़ेब के ऐतिहासिक महत्व की बात कही और इसमें भी विवाद पैदा हो गया।

उनका कहना था, “इतिहास मिटाया नहीं जा सकता, वह 50 साल देश का शासक था।” इस बयान ने महाराष्ट्र में अलग ही बहस छेड़ दी।

संपत्ति और आज की स्थिति

आम धारणा के विपरीत, प्रकाश आंबेडकर करोड़ों के मालिक नहीं हैं। oneindia की रिपोर्ट के मुताबिक उनकी कुल संपत्ति करीब 46 लाख रुपये है और उन पर 12 लाख रुपये से ज्यादा की देनदारियां हैं। उनकी नेटवर्थ लगभग 33.55 लाख रुपये बताई जाती है।

राजनीति के मैदान में अब भी वही तेज आवाज

आज भी प्रकाश आंबेडकर महाराष्ट्र की राजनीति में एक मजबूत और अलग पहचान रखते हैं।
वंचित बहुजन आघाड़ी के प्रमुख होने के नाते वह दलित–मुस्लिम–ओबीसी और हाशिये पर खड़े लोगों के मुद्दों को जोर से उठाते हैं।

उनकी राजनीति सत्ता भले न दिला पाए, लेकिन दबे-कुचले लोगों को आवाज जरूर देती है और शायद यही कारण है कि 71 साल की उम्र में भी वह पहले की तरह ही सक्रिय और जोशीले दिखते हैं।

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Varanasi teaser out: 1000 करोड़ की ‘वाराणसी’ में महेश बाबू ले रही इतनी मोटी फीस, टीज़...

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Varanasi teaser out: एसएस राजामौली निर्देशन में बन रही देश की सबसे बड़ी पैन इंडिया फिल्म SSMB29 का इंतजार महीनों से हो रहा था। आखिरकार फैंस की यह बेचैनी खत्म हुई और हैदराबाद के रामोजी फिल्म सिटी में आयोजित भव्य “ग्लोबट्रॉटर इवेंट” में फिल्म के टाइटल, पहले पोस्टर और टीज़र से पर्दा उठा दिया गया। इस 1000 करोड़ बजट की मेगा फिल्म का नाम रखा गया है “वाराणसी”।

टीजर की रिलीज़ के साथ ही सोशल मीडिया पर हलचल मच गई। महेश बाबू के योद्धा अवतार ने फैंस को खुश कर दिया, वहीं प्रियंका चोपड़ा और पृथ्वीराज सुकुमारन के पहले लुक ने फिल्म को लेकर एक्साइटमेंट कई गुना बढ़ा दी।

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महेश बाबू ‘नंदी’ पर सवार, हाथ में त्रिशूल, लुक ने बनाया माहौल (Varanasi teaser out)

फिल्म के टीज़र की बात करें तो, टीज़र में महेश बाबू का बेहद शक्ति से भरा और माइथोलॉजिकल टच वाला लुक दिखाया गया। वीडियो में वह खून से लथपथ, हाथ में त्रिशूल लिए नंदी (बैल) की सवारी करते दिखाई देते हैं। बैकग्राउंड की भव्यता और स्लो-मोशन शॉट्स ने पूरा माहौल ऐसा बना दिया जैसे दर्शक किसी पुराण कथा के योद्धा को सामने देख रहे हों।

 

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महेश बाबा के इस क्लाइमेटिक लुक को देखकर उनकी बेटी सितारा खुद को रोक नहीं पाईं और खुशी से उछलते हुए पिता को गले लगा लिया। यह पल इवेंट की सबसे खास झलकियों में शामिल हो गया।

प्रियंका चोपड़ा और पृथ्वीराज के दमदार किरदार

पहली बार एसएस राजामौली किसी बॉलीवुड सुपरस्टार एक्ट्रेस को लीड में ले रहे हैं। प्रियंका चोपड़ा फिल्म में ‘मंदाकिनी’ नाम के बेहद शक्तिशाली किरदार निभा रही हैं। इसके अलावा पृथ्वीराज सुकुमारन ‘कुंभा’ के रूप में दिखाई देंगे। पृथ्वीराज ने बताया कि राजामौली ने जब उन्हें संदेश भेजा कि ये उनके करियर का सबसे बेहतरीन विलेन रोल है, तो वे एक्साइटमेंट छुपा नहीं पाए।

 

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इवेंट में गूंजी तालियां, रामोजी फिल्म सिटी बनी ‘वाराणसी का घाट’

वहीं। 15 नवंबर 2025 का दिन रामोजी फिल्म सिटी के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ। इवेंट स्थल को पूरी तरह वाराणसी के घाटों जैसा बनाया गया दीयों की रोशनी, मंदिरों की घंटियां, और लाइव म्यूज़िक ने माहौल को दिव्य बना दिया। फिल्म की टीम, म्यूजिशियन, हजारों फैंस और कई सेलेब्स इस लॉन्च का हिस्सा बने।

एमएम कीरावनी का इमोशनल बयान,“मेरे पास जो घर है, वह महेश बाबू फैंस के दिलों में है”

फिल्म के संगीतकार एमएम कीरावनी, जो ‘आरआरआर’ के लिए ऑस्कर जीत चुके हैं, इवेंट में बेहद भावुक हो गए।
उन्होंने कहा, “मैंने हाल ही में एक घर खरीदा… न हैदराबाद में, न विशाखापत्तनम में। वह किसी सीमेंट का नहीं, बल्कि महेश बाबू फैंस के दिलों में है।”

उन्होंने राजामौली के साथ अपनी जर्नी को “हैरानी और चमत्कारों से भरी यात्रा” बताया और कहा कि “ग्लोबट्रॉटर के जरिए वह दुनिया को नई कहानी दिखाने जा रहे हैं।”

फिल्म 2027 की गर्मियों में होगी रिलीज़

टीज़र के साथ ही यह घोषणा भी कर दी गई कि यह मेगा-एडवेंचर फिल्म समर 2027 में रिलीज होगी।
फैंस ने इसे भारतीय सिनेमा का ‘अगला ऐतिहासिक माइलस्टोन’ बताना शुरू कर दिया है।

फीस को लेकर बड़ा खुलासा, प्रियंका की सबसे महंगी फिल्म

रिपोर्ट्स की मानें तो ‘वाराणसी’ के लिए प्रियंका चोपड़ा ने करीब 30 करोड़ रुपये चार्ज किए हैं। इस रकम के साथ वह एसएस राजामौली की किसी भी फिल्म में काम करने वाली सबसे ज्यादा फीस लेने वाली एक्ट्रेस बन गई हैं। अगर पिछली फिल्मों से तुलना करें तो यह रकम काफी ज्यादा है। उदाहरण के तौर पर, आरआरआर में आलिया भट्ट को लगभग 9 करोड़ रुपये मिले थे, जबकि बाहुबली में अनुष्का शेट्टी की फीस करीब 5 करोड़ रुपये थी। ऐसे में प्रियंका की एंट्री न सिर्फ भव्य है बल्कि साफ दिखाता है कि मेकर्स उनकी ग्लोबल स्टार पावर पर बड़ा दांव लगा रहे हैं।

महेश बाबू नहीं ले रहे फीस, राजामौली के साथ करेंगे कमाई शेयर

इंडस्ट्री सूत्रों के अनुसार महेश बाबू ने फीस लेने से इनकार कर दिया है। वे और राजामौली दोनों फिल्म की कमाई में 40% का हिस्सा शेयर करेंगे। यानी फिल्म जितनी बड़ी हिट महेश बाबू की कमाई उतनी बड़ी।

क्या पृथ्वीराज की फीस सामने आई?

फिल्म में मुख्य विलेन निभा रहे पृथ्वीराज सुकुमारन की फीस का आधिकारिक खुलासा नहीं हुआ है, लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि उनकी फीस भी काफी बड़ी है, क्योंकि उनका रोल फिल्म का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बताया गया है।

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