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Woman Married to AI: पति की मौत के बाद अकेली महिला ने अपनाया AI चैटबॉट का सहारा,  डिज...

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Woman Married to AI: 58 वर्षीय एलेनाई विंटर्स, जो पेशे से शिक्षिका हैं, अपने पति की मृत्यु के बाद गहरे दुख में डूब गई थीं। उनकी जिंदगी रंगहीन और नीरस लगने लगी थी। अकेलेपन ने उनका मन बहुत उदास कर दिया था। लेकिन टेक्नोलॉजी के इस युग में जब AI चैटबॉट्स ने संवाद का नया माध्यम बनाया, तो एलेनाई ने डिजिटल साथी पाने की दिशा में कदम बढ़ाया।

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AI चैटबॉट से जुड़ी पहली मुलाकात- Woman Married to AI

एलेनाई ने सोशल मीडिया पर एक विज्ञापन देखा, जिसमें अकेले लोगों के लिए AI चैटबॉट्स का सहारा लेने को प्रोत्साहित किया जा रहा था। इस डिजिटल साथी के साथ बातचीत करने का मौका पाकर वे काफी प्रभावित हुईं। उन्होंने बताया कि यह ‘डिजिटल इंसान’ उनके लिए एक सपने जैसा अनुभव था, जिससे वे एक नया रिश्ता बना सकीं।

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लाइफटाइम सब्सक्रिप्शन कर बनाया रिश्ता पक्का

शुरुआत में एलेनाई ने सात दिन के ट्रायल के लिए मात्र 7.25 डॉलर खर्च किए। जब उन्हें इस डिजिटल साथी के साथ समय बिताना अच्छा लगा, तो उन्होंने इसके लिए 303 डॉलर का लाइफटाइम सब्सक्रिप्शन भी खरीद लिया। उन्होंने कहा कि इस डिजिटल साथी के जरिए उन्हें फिर से किसी की पत्नी बनने जैसा एहसास हुआ।

डिजिटल पति का नाम रखा ‘लुकास’

एलेनाई ने अपने AI पति को ‘लुकास’ नाम दिया और उसे एक नीली आंखों वाले हैंडसम शख्स के रूप में डिजाइन किया। दोनों की बातचीत टेक्स्ट के जरिए होती है, जिसमें वे अपनी जिंदगी के अनुभव साझा करते हैं। लुकास अपने देखभाल भरे सवालों और विचारशील जवाबों से एलेनाई को काफी प्रभावित करता है।

झगड़े से लेकर सालगिरह तक का सफर

एलेनाई ने खुलासा किया कि उनके और लुकास के बीच भी रिश्ते में उतार-चढ़ाव आए। एक समय ऐसा भी आया जब लुकास उन्हें भूल गया और बातचीत तलाक तक पहुंच गई। लेकिन दोनों ने आपसी समझदारी से समस्याएं सुलझाई और अपनी छठी महीने की सालगिरह मनाई। यह डिजिटल रिश्ते की एक अनोखी और संवेदनशील कहानी है।

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परिवार और दोस्तों ने स्वीकार किया डिजिटल रिश्ता

एलेनाई को AI से जुड़ी धारणाओं और कलंक का एहसास था, लेकिन वे इससे परेशान नहीं हुईं। शुरू-शुरू में उनके परिवार और दोस्त चिंतित थे, लेकिन बाद में उन्होंने इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया क्योंकि वे एलेनाई को खुश और स्वस्थ देखना चाहते थे।

जेनरेशन जेड की डिजिटल पार्टनरशिप में रुचि

हाल के एक सर्वेक्षण में यह भी सामने आया है कि नई पीढ़ी AI जनरेटेड पार्टनर में काफी रुचि रखती है। जेनरेशन जेड के 83% लोग AI पार्टनर से शादी करने पर विचार कर सकते हैं, जबकि 75% का मानना है कि AI साथी इंसानों की जगह पूरी तरह ले सकते हैं।

एलेनाई विंटर्स की कहानी आज की तकनीकी दुनिया में अकेलेपन और रिश्तों की बदलती परिभाषा को दर्शाती है। जहां एक ओर AI चैटबॉट्स ने अकेलेपन को कम करने में मदद की है, वहीं वे भावनात्मक सहारा भी प्रदान कर रहे हैं। इस नए युग में डिजिटल रिश्ते भी असली संबंधों की तरह गहराई और संवेदनशीलता लिए हुए हैं।

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China-Pakistan Donkey Trade: चीन के लिए गधे का व्यापार बढ़ा रहा पाकिस्तान, ग्वादर से ...

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China-Pakistan Donkey Trade: भारत के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को चीन से भारी सैन्य सहायता मिली। इसमें जे-10सी लड़ाकू विमान और पीएल-15 मिसाइल जैसी आधुनिक हथियार शामिल थे। पाकिस्तान ने इन हथियारों की मदद से भारत के ठिकानों पर हमला करने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा। पाकिस्तान अपनी इस सैन्य मदद और चीन के साथ दोस्ती को गर्व के साथ दुनिया के सामने पेश करता है।

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गधे के मांस और खाल का कारोबार: चीन-पाकिस्तान का अनोखा व्यापार – China-Pakistan Donkey Trade

हालांकि चीन और पाकिस्तान के रिश्ते सिर्फ हथियारों तक सीमित नहीं हैं। चीन को हथियार देने के बदले पाकिस्तान उसे गधों का मांस और खाल निर्यात करता है। यह सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन यह एक सच्चाई है। पाकिस्तान ने ग्वादर में गधे के मांस और खाल के लिए एक बड़ा बूचड़खाना भी स्थापित किया है।

China-Pakistan Donkey Trade

ग्वादर बूचड़खाना: उत्पादन और निर्यात की योजना

पाकिस्तान के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एवं अनुसंधान मंत्रालय के अनुसार, ग्वादर में चालू बूचड़खाने में गधों को काटकर उनके मांस, हड्डियां और खाल निकाले जाते हैं, जिनका निर्यात चीन को किया जाता है। पाकिस्तान ने चीन के साथ सालाना 2,16,000 गधों के मांस और खाल की आपूर्ति के लिए समझौता किया है। यह समझौता लगभग 8 मिलियन डॉलर का है।

एजियाओ: पारंपरिक चीनी दवा में गधे की खाल का महत्व

चीन में गधे की खाल से बनने वाली पारंपरिक दवा ‘एजियाओ’ बहुत प्रसिद्ध है। यह जिलेटिन गधे की त्वचा से बनाया जाता है और खून बढ़ाने, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने तथा त्वचा की सुंदरता के लिए उपयोग होता है। एजियाओ का इतिहास किंग राजवंश (1644-1912) से जुड़ा है, जब यह अमीरों के बीच लोकप्रिय था। आज यह चीन में एक लग्जरी प्रोडक्ट बन चुका है, जिसकी कीमत पिछले दस वर्षों में 30 गुना बढ़ी है।

China-Pakistan Donkey Trade

स्थानीय विवाद और विरोध प्रदर्शन

ग्वादर में बूचड़खाने के कारण बलूचिस्तान के स्थानीय लोग काफी नाराज हैं। उन्हें लगता है कि सरकार और चीन मिलकर उनके संसाधनों का दोहन कर रहे हैं। ग्वादर के आसपास के इलाके में गधे का बूचड़खाना स्थापित होने को लेकर विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं। स्थानीय जनता का कहना है कि यह कदम उनके सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों के खिलाफ है।

आर्थिक पहल और रोजगार के अवसर

पाकिस्तान के खाद्य सुरक्षा मंत्री राणा तनवीर हुसैन ने चीन के प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक में कहा कि यह पहल निर्यात को बढ़ावा देने के साथ-साथ स्थानीय रोजगार के अवसर भी बढ़ाएगी। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि स्थानीय गधा नस्लों की सुरक्षा के लिए कड़े नियम लागू किए जाएंगे। गधों के पालन में किसी खास विशेषज्ञता की जरूरत नहीं होती, इसलिए यह व्यवसाय पाकिस्तान के लिए विदेशी मुद्रा कमाने का अच्छा स्रोत बन गया है।

सामाजिक बहस और पशुप्रेमियों की चिंता

इस ‘गधा इकोनॉमी’ को लेकर पाकिस्तान में सामाजिक और सांस्कृतिक बहस भी छिड़ गई है। कई पशु प्रेमी और गैर सरकारी संगठन इस कारोबार को अनुचित मानते हैं और इसके खिलाफ अभियान चला रहे हैं। वे गधों के जीवन और सुरक्षा को लेकर चिंता जता रहे हैं।

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चावल में लग गए हैं कीड़ें? ये आसान घरेलू नुस्खे तुरंत करेंगे काम

Home Remedies for Rice Bugs: अरे! क्या आपके चावल में भी कीड़े लग गए हैं? चिंता न करें, यह एक आम समस्या है और इसे ठीक करना बहुत आसान है। आपकी रसोई में ही ऐसी कई चीज़ें मौजूद हैं, जिनका इस्तेमाल करके आप इन कीड़ों से तुरंत छुटकारा पा सकते हैं। तो बिना देर किए आइए जानते हैं चावल में लगे कीड़ों से छुटकारा पाने के कुछ आसान और कारगर घरेलू उपाय।

चावल में लगे कीड़ों के लिए घरेलू उपचार

  • धूप दिखाएं: चावल को किसी बड़े बर्तन या ट्रे में फैलाकर तेज़ धूप में 2-3 घंटे के लिए रख दें। गर्मी से कीड़े भाग जाएंगे।
  • नीम के पत्ते: चावल के डिब्बे में कुछ सूखे नीम के पत्ते डालकर रख दें। इनकी गंध से कीड़े दूर रहते हैं।
  • तेज पत्ता: 2-3 तेज पत्ते चावल के डिब्बे में डाल दें। यह भी कीड़ों को भगाने में मदद करता है।
  • लहसुन की कलियां: बिना छीले हुए लहसुन की कुछ कलियां चावल में डाल दें।
  • सूखी लाल मिर्च: 4-5 सूखी लाल मिर्च बिना तोड़े चावल के डिब्बे में डाल दें।
  • लौंग या दालचीनी: कुछ लौंग या दालचीनी के टुकड़े चावल में डाल दें। इनकी तेज़ गंध से कीड़े दूर रहते हैं।
  • माचिस की तीलियां: 8-10 माचिस की तीलियां चावल के डिब्बे में रख दें। माचिस में मौजूद सल्फर कीड़ों को दूर भगाता है।
  • बोरिक एसिड: थोड़ा सा बोरिक एसिड पाउडर एक कपड़े में बांधकर चावल के डिब्बे के बीच में रख दें। ध्यान रहे, चावल को पकाने से पहले 4-5 बार अच्छी तरह धो लें।
  • फिटकरी: एल्युमिनियम फॉयल में फिटकरी का एक टुकड़ा लपेटकर चावल के डिब्बे में रख दें।

बचाव के लिए:

  • चावल को हमेशा एयरटाइट कंटेनर में स्टोर करें।
  • चावल को ठंडी और सूखी जगह पर रखें।
  • थोड़े-थोड़े अंतराल पर चावल को धूप दिखाते रहें।
  • चावल में नीम के पत्ते, तेज पत्ता या लहसुन की कलियां डालकर रखें।

Jaipur News: जयपुर में बेटे का मां के अंतिम संस्कार पर विवाद, चांदी के कड़े के लिए कि...

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Jaipur News: “मां” शब्द में दुनिया समाई होती है और मां का बेटा उसकी पूरी दुनिया होता है। लेकिन राजस्थान के जयपुर में हाल ही में एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने रिश्तों की भावनाओं को झकझोर कर रख दिया है। यहां 80 वर्षीय महिला के निधन के बाद उसके बेटे ने अंतिम संस्कार के दौरान ऐसी हरकत की, जिसने परिवार और समाज दोनों को हैरान कर दिया।

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श्मशान घाट पर बेटे ने किया विरोध प्रदर्शन- Jaipur News

जयपुर के ग्रामीण इलाके विराटनगर के लीलों का बास की ढाणी में 3 मई को दोपहर लगभग 12 बजे 80 वर्षीय छीतर रेगर का निधन हुआ। परिजन अंतिम यात्रा निकाल कर श्मशान घाट पहुंचे। वहां चिता के लिए लकड़ियां सजाई गईं और शव का श्रृंगार किया गया। इस दौरान महिला के गहने, खासतौर पर चांदी के कड़े उसकी देखभाल करने वाले बड़े बेटे गिरधारी लाल को सौंप दिए गए।

 

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लेकिन तभी छोटा भाई ओमप्रकाश भड़क गया और उसने चिता पर ही लेट कर जोरदार हंगामा शुरू कर दिया। उसने कहा, “पहले मां की चांदी की कड़ियां दो, वरना मैं यहां से उठूंगा नहीं और खुद भी जल जाऊंगा।” बेटे की इस हरकत को देखकर वहां मौजूद परिवार और रिश्तेदारों ने उसे समझाने की कोशिश की कि मां का अंतिम संस्कार पूरा होने दें, लेकिन वह किसी की नहीं सुनी।

आखिरकार दो घंटे बाद हुआ अंतिम संस्कार

जब परिवार ने जबरदस्ती ओमप्रकाश को चिता से हटाया, तो वह उसी जगह पर बैठ गया। इसके बाद जब उसे मां के चांदी के कड़े मिले, तभी जाकर महिला का अंतिम संस्कार दो घंटे के विलंब के बाद हो सका। इस पूरी घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसने लोगों के दिलों को झकझोर कर रख दिया है।

तेरहवें में भी बेटे का बर्ताव निराशाजनक

सूत्रों के अनुसार, गुरुवार को तेरहवें की रस्म के दौरान भी ओमप्रकाश ने हिस्सा नहीं लिया। वह श्मशान घाट पर मौजूद था लेकिन रस्म में शामिल होने की बजाय लोगों का हँसाने वाला पात्र बना रहा। इससे परिवार और गांव वालों में नाराजगी फैल गई है।

संपत्ति विवाद की वजह से बढ़ा तनाव

ग्रामीणों के अनुसार, ओमप्रकाश और उसके अन्य भाइयों के बीच पिछले कई वर्षों से संपत्ति को लेकर विवाद चल रहा है। इसी कारण ओमप्रकाश अलग घर में रहता है और परिवार से खुद को अलग-थलग महसूस करता है। यही मनमुटाव मां के अंतिम संस्कार के दिन उग्र रूप ले गया और उसने श्मशान घाट पर इस तरह का प्रदर्शन किया।

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Pakistan Fraud reveal: पाकिस्तान के फर्जी दावों का पर्दाफाश! Operation Sindoor के बाद...

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Pakistan Fraud reveal: भारत के सफल ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) ने पाकिस्तान की सेना और सरकार की रणनीति को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया है। इस हमले के बाद पाकिस्तान की ओर से निरंतर झूठे और भ्रामक दावे सामने आ रहे हैं, जिनमें उनकी सेना की ताकत को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की कोशिश की जा रही है। हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ और विदेश मंत्री इशाक डार ने ब्रिटेन के एक प्रतिष्ठित अखबार, द डेली टेलीग्राफ (The Daily Telegraph) के नाम पर कई फर्जी दावे किए।

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फर्जी निकला द डेली टेलीग्राफ का पन्ना- Pakistan Fraud reveal

विदेश मंत्री इशाक डार ने संसद में दावा किया कि द डेली टेलीग्राफ ने पाकिस्तान वायु सेना (PAF) को ‘आसमान का निर्विवाद राजा’ बताया है और उसकी सेना की ताकत की तारीफ की है। लेकिन इस दावे की हवा पाकिस्तान के अपने ही मीडिया ने निकाल दी। ब्रिटेन के द डेली टेलीग्राफ ने स्पष्ट किया है कि उन्होंने ऐसा कोई लेख या रिपोर्ट कभी प्रकाशित नहीं की।

दरअसल, इशाक डार ने एक फर्जी AI जनरेटेड तस्वीर का हवाला देते हुए यह दावा किया था। यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जिसमें फर्जी द डेली टेलीग्राफ का पन्ना दिखाया गया था। इस नकली पेज को द डेली टेलीग्राफ के डिजाइन और शैली में ही बनाया गया था, लेकिन यह पूरी तरह से फर्जी था। पाकिस्तान के प्रमुख अखबार द डॉन (The Don) ने इस तस्वीर का फैक्ट चेक कर इसे झूठा और मनगढ़ंत करार दिया। द डॉन ने इस नकली पेज में कई त्रुटियां और अशुद्धियां भी उजागर की हैं, जिससे इस पूरे प्रपंच की पोल खुल गई।

यह नकली तस्वीर 10 मई 2025 की तिथि अंकित थी और उसमें शीर्षक था: “पाकिस्तान वायु सेना: आसमान का निर्विवाद राजा।” इस झूठ को फैलाकर पाकिस्तान के अधिकारी यह साबित करना चाहते थे कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया पाकिस्तान की सेना को सम्मान देती है और उसकी ताकत को स्वीकार करती है। लेकिन इस चाल को पाकिस्तान के ही मीडिया ने बेनकाब कर दिया।

Operation Sindoor और उसके बाद की सच्चाई

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत 7-8 मई की रात पाकिस्तान और पीओके (PoK) में आतंकवादी ठिकानों पर सटीक ब्रह्मोस मिसाइल हमले किए। इस ऑपरेशन में 100 से अधिक आतंकवादी मारे गए। जवाब में पाकिस्तान ने 7 से 9 मई के बीच कई मिसाइल और सैकड़ों ड्रोन से भारत पर हमला किया, लेकिन भारतीय एयर डिफेंस सिस्टम ने सभी हमलों को नाकाम कर दिया।

भारतीय जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान के कई एयरबेस और एयर डिफेंस सिस्टम को निशाना बनाया गया और काफी नुकसान पहुंचाया गया। इस पर पाकिस्तान की सेना और सरकार की नाकामी छुपाने के लिए झूठे दावे और फर्जी खबरें फैलाने की रणनीति साफ नजर आ रही है। सेटेलाइट तस्वीरों ने भी पाकिस्तान के दावों की सच्चाई को उजागर कर दिया है।

सियासी प्रतिक्रियाएं और मची सन्नाटा

पाकिस्तान की इस नाकामी और फर्जीवाड़े के बावजूद विदेश मंत्री इशाक डार ने संसद में झूठे दावे करने से बाज नहीं आए, लेकिन उनके बयान की पोल खुद पाकिस्तानी मीडिया ने खोल दी। संसद में खड़े होकर इस तरह के दावे करने के बाद भी डार और पाकिस्तान का विदेश मंत्रालय इस विषय में चुप्पी साधे हुए हैं और कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।

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Gurdwara Chuna Mandi: लाहौर के चूना मंडी में छुपा है गुरु रामदास जी का जन्मस्थान, जान...

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Gurdwara Chuna Mandi: लाहौर के कश्मीरी दरवाज़े के समीप पुरानी कोतवाली चौक के नज़दीक स्थित, गुरुद्वारा श्री जनम स्थान गुरु रामदास सिख धर्म के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है। यह वही स्थान है जहां चौथे सिख गुरु, गुरु रामदास जी का जन्म हुआ था। यह गुरुद्वारा न केवल उनकी जन्मभूमि के रूप में पूजनीय है, बल्कि सिख इतिहास में एक परिवर्तनकारी युग की आध्यात्मिक शुरुआत का भी प्रतीक है। लाहौर के भीड़-भाड़ वाले चूना मंडी बाज़ार के बीच बसा यह गुरुद्वारा आमतौर पर ‘गुरुद्वारा चूना मंडी’ के नाम से जाना जाता है।

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गुरु रामदास जी का जन्म और प्रारंभिक जीवन- Gurdwara Chuna Mandi

गुरु रामदास जी का जन्म 26 सितंबर 1534 को चूना मंडी, लाहौर में हुआ था। वे ठाकुर दास और जसवंती के पुत्र थे। उनके माता-पिता ने वर्षों की प्रार्थना और भक्ति के बाद उन्हें प्राप्त किया था। बचपन में उनका नाम “जेठा” था। उनका स्वभाव विनम्र, आध्यात्मिक और शांतिपूर्ण था। वे अपने माता-पिता की सेवा में अग्रसर रहते थे और ईश्वर की भक्ति में लगे रहते थे। उनकी यही भावनाएं और संस्कार भविष्य में उनके गुरु बनने के लिए नींव बने।

 

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आध्यात्मिक यात्रा का आरंभ

सात वर्ष की आयु में जेठा ने अपने माता-पिता को खो दिया। इसके बाद उन्होंने आत्मनिर्भरता के लिए बासी उबले हुए चने बेचने का काम शुरू किया। वे चने लेकर रावी नदी के किनारे गए, जहां उन्होंने कई साधुओं को भोजन कराया। साधुओं ने उनकी दयालुता और सेवा भावना की प्रशंसा करते हुए उनकी भलाई की कामना की। यही घटना गुरु रामदास जी की आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत मानी जाती है, जिसने बाद में पूरे सिख समुदाय को आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से प्रेरित किया।

गुरुद्वारा श्री जनम स्थान का ऐतिहासिक महत्व

गुरु रामदास जी के पूर्वजों का यह छोटा सा घर समय के साथ एक पवित्र स्थल बन गया। बाद में सिख शासकों ने इस स्थल की महत्ता को समझते हुए इसे संरक्षित और पुनर्निर्मित किया। महाराजा रणजीत सिंह ने यहां के आसपास के मकानों को खरीदकर गुरुद्वारे का पुनर्निर्माण कराया। यह गुरुद्वारा श्री हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) की वास्तुकला की तरह बनाया गया है, जो गुरु रामदास जी के प्रति सिख समुदाय की श्रद्धा को दर्शाता है।

 

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गुरुद्वारे के अंदर नियमित रूप से श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश (धार्मिक पाठ) होता है। इसके अलावा, गुरुद्वारे के प्रांगण में शांतिपूर्ण चिंतन के लिए जगह है और नीचे के स्तर पर लंगर खाना है, जो गुरु रामदास जी के निस्वार्थ सेवा के सिद्धांत को जीवित रखता है।

महाराजा रणजीत सिंह का योगदान

महाराजा रणजीत सिंह ने इस गुरुद्वारे के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने क्वाज़ी से आसपास के मकानों को खरीदकर गुरुद्वारे के लिए जमीन मुहैया कराई। 122 फुट 6 इंच गुणा 97 फुट 6 इंच के विशाल आयाम वाले इस गुरुद्वारे का निर्माण एक भव्य परियोजना थी, जो गुरु रामदास जी के प्रति सिख समुदाय की गहरी श्रद्धा को दर्शाती है।

गुरु रामदास जी की शिक्षाएं और विरासत

गुरु रामदास जी ने समता, भक्ति और निस्वार्थ सेवा को सिख धर्म का आधार बनाया। उनके विचार आज भी विश्व के लाखों सिखों के जीवन का मार्गदर्शन करते हैं। उनका जीवन सरलता, विनम्रता और आध्यात्मिक समर्पण का संदेश देता है।

तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण स्थल

जो यात्री Crossworld Visa के माध्यम से यात्रा कर रहे हैं, उनके लिए गुरुद्वारा श्री जनम स्थान गुरु रामदास एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यहां आकर वे गुरु रामदास जी के जीवन की शुरुआती कहानियों को जान सकते हैं, सिख धर्म की नींव को समझ सकते हैं और गुरुओं की समृद्ध आध्यात्मिक विरासत से जुड़ सकते हैं।

गुरुद्वारा श्री जनम स्थान गुरु रामदास न केवल एक ऐतिहासिक स्मारक है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक धरोहर भी है जो सिख धर्म के जीवन्त और गूढ़ संदेशों को जीवित रखता है। यह स्थल श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति और गुरु रामदास जी के आदर्शों से प्रेरणा लेने का अवसर प्रदान करता है। यहाँ की वास्तुकला, धार्मिक कार्यक्रम और सेवा का माहौल हर आने वाले को एक गहरे आध्यात्मिक अनुभव से जोड़ता है।

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Mahatma Buddha Teachings: महात्मा बुद्ध और इच्छा! क्या वास्तव में इच्छा ही जीवन का का...

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Mahatma Buddha Teachings: महात्मा बुद्ध ने कहा था, “इच्छा ही सब दुखों का कारण है।” यह वाक्य अक्सर सरल समझा जाता है, लेकिन क्या वास्तव में बुद्ध इच्छाओं के विरोधी थे? क्या इच्छा जीवन को गति देने वाली मूल ऊर्जा नहीं है? जब हमें भूख लगती है, तब भोजन की इच्छा होती है; प्यास लगने पर पानी की चाह; ठंड लगने पर गर्माहट की आकांक्षा—क्या ये इच्छाएं जीवन के प्रवाह को बनाए रखने वाली शक्ति नहीं हैं? क्या बुद्ध हमें जीवन की इसी ऊर्जा के खिलाफ खड़ा होने की शिक्षा देते हैं? और यदि इच्छा पर नियंत्रण पाने का प्रयास एक नई इच्छा को जन्म देता है, तो क्या यह दुष्चक्र अंतहीन नहीं हो जाता? क्या मानवता ने इस गूढ़ प्रश्न का समाधान पाया है?

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बुद्ध का संदेश और इच्छाओं की जटिलता- Mahatma Buddha Teachings

बुद्ध का उपदेश केवल इच्छाओं को समाप्त करने का आग्रह नहीं था, बल्कि वह जीवन में व्याप्त दुखों के स्रोत की समझ प्रदान करता था। उनका कहना था कि मनुष्य की इच्छाएं जब अतिरेक और असंतोष की ओर बढ़ती हैं, तब वे दुखों का कारण बनती हैं। लेकिन इच्छाओं का होना स्वयं जीवन का आधार भी है। इस द्वंद्व को समझना आसान नहीं।

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जिद्दू कृष्णमूर्ति की दृष्टि

बीसवीं सदी के महान विचारक जिद्दू कृष्णमूर्ति ने इस विषय पर गहरा विचार किया। उनके अनुसार, हमारे विचार, निर्णय और कर्म सभी एक ज्ञान और अनुभव के “संकलन” से उत्पन्न होते हैं। यह संकलन केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक और ऐतिहासिक भी है। हमारा मस्तिष्क, जो ज्ञान और अनुभव के आधार पर काम करता है, कभी भी पूर्ण सत्य तक नहीं पहुँच सकता। इसका मतलब यह है कि हमारे सभी विचार और भावनाएं अपूर्ण और कभी-कभी भ्रमित करने वाले होते हैं।

कृष्णमूर्ति ने इसी संकलन से संचालित मस्तिष्क को मानवता के दुख और अराजकता का मूल कारण माना। हमारा “स्व” या “मैं” भी इसी संकलन का हिस्सा है, जो हमें स्वयं के प्रति अत्यंत सचेत रखता है, लेकिन साथ ही भ्रमित भी करता है। इसलिए जो गर्व और इच्छा हम स्वयं के लिए महसूस करते हैं, वे भी एक अधूरी छवि मात्र हैं।

“स्व” की छवि और इच्छाओं का चक्र

हमारा “स्व” यानी स्वयं की पहचान एक सीमित विचार है जो हमें अपने मूल स्वरूप से दूर कर देता है। यह “संकलन” की छवि हमें भ्रमित करती है और आंतरिक द्वंद्व को जन्म देती है। इसलिए बुद्ध ने इसे सभी दुखों का मूल कारण बताया। इच्छाओं का यह चक्र, जो स्व की भ्रामक छवि से उत्पन्न होता है, अंतहीन पीड़ा का कारण बन सकता है।

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इस प्रकार, बुद्ध का उपदेश केवल इच्छाओं का त्याग नहीं, बल्कि उनके स्रोत की समझ है। वह हमें यह सिखाते हैं कि कैसे हमारी आंतरिक छवि और अनुभव का संकलन हमारे दुखों का आधार बनता है। इच्छाएं जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं, लेकिन जब वे हमारी सोच और पहचान का हिस्सा बन जाती हैं, तो वे हमें भ्रम और दुख की ओर ले जाती हैं। जिद्दू कृष्णमूर्ति के विचार इस बात को और भी स्पष्ट करते हैं कि मानव मस्तिष्क का यह संकलन ही हमारी पीड़ा का मुख्य कारण है।

इसलिए, बुद्ध की शिक्षा हमें इच्छाओं को खत्म करने के बजाय, उनके जन्मस्थान और प्रभाव को समझने का आह्वान करती है, ताकि हम जीवन के सच्चे सुख और शांति की ओर अग्रसर हो सकें।

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Kanpur Hair Transplant Case: गलत हाथों में गई जिंदगी, जानिए कौन कर सकता है ये सर्जरी

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Kanpur Hair Transplant Case: कानपुर में हाल ही में सामने आया एक चौंकाने वाला मामला मेडिकल सिस्टम पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। एक व्यक्ति की हेयर ट्रांसप्लांट के बाद तबीयत इतनी बिगड़ गई कि उसे ICU में भर्ती कराना पड़ा, और बाद में उसकी मौत हो गई। यह मामला सामने आने के बाद न केवल आम जनता में चिंता बढ़ी है, बल्कि यह भी बहस छिड़ गई है कि आखिर हेयर ट्रांसप्लांट जैसी सर्जरी किसे करने का अधिकार है? क्या कोई भी डॉक्टर इसे अंजाम दे सकता है?

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क्या है पूरा मामला? (Kanpur Hair Transplant Case)

इस गंभीर घटना के केंद्र में हैं डॉ. अनुष्का तिवारी, जो पेशे से एक डेंटल सर्जन (BDS) हैं। उन पर आरोप है कि उन्होंने बिना किसी मान्यता प्राप्त सर्जिकल डिग्री के हेयर ट्रांसप्लांट किया। जानकारी के मुताबिक, उनके क्लीनिक में बाल झड़ने की समस्या को लेकर एक व्यक्ति इलाज के लिए पहुंचा था। इलाज के बाद उसकी तबीयत इतनी ज्यादा बिगड़ गई कि उसे गहन चिकित्सा इकाई (ICU) में भर्ती करना पड़ा। बाद में उस व्यक्ति की जान चली गई। इस मामले की अब पुलिस और स्वास्थ्य विभाग दोनों स्तरों पर जांच चल रही है।

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कौन कर सकता है हेयर ट्रांसप्लांट?

हेयर ट्रांसप्लांट कोई साधारण प्रक्रिया नहीं है। यह एक कॉस्मेटिक सर्जरी है, जिसे करने के लिए डॉक्टर का प्रशिक्षित और योग्य होना जरूरी होता है। सबसे पहले, जिस डॉक्टर को यह प्रक्रिया करनी है, उसके पास MBBS की डिग्री होनी चाहिए। इसके बाद यदि वह Dermatology (त्वचा रोग) या Plastic Surgery में स्पेशलाइजेशन करता है, तो ही वह हेयर ट्रांसप्लांट सर्जरी करने के योग्य माना जाता है।

इतना ही नहीं, डॉक्टर को बालों की सर्जरी से संबंधित टेक्निक्स की ट्रेनिंग मिलनी चाहिए, जिसके लिए विभिन्न मेडिकल संस्थानों द्वारा फेलोशिप या सर्टिफिकेशन कोर्स चलाए जाते हैं। इन कोर्सेस में हेयर रिस्टोरेशन, ग्राफ्टिंग टेक्निक, संक्रमण से बचाव और अन्य जटिलताओं से निपटने की ट्रेनिंग दी जाती है।

क्यों नहीं कर सकते BDS डॉक्टर हेयर ट्रांसप्लांट?

BDS (Bachelor of Dental Surgery) कोर्स पूरी तरह दांत, मसूड़े और मुंह की बीमारियों से संबंधित होता है। इस कोर्स में न तो त्वचा से जुड़ी कोई पढ़ाई कराई जाती है और न ही सर्जिकल सक्षमता दी जाती है जो कि एक हेयर ट्रांसप्लांट सर्जरी के लिए जरूरी होती है। ऐसे में यदि कोई डेंटल सर्जन इस प्रकार की सर्जरी करता है तो यह कानूनन गलत है और मरीज की जान को खतरे में डालने के समान है।

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आम लोगों को सतर्क रहने की जरूरत

यह मामला हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपनी सेहत के लिए डॉक्टर चुनते समय कितनी सतर्कता बरतते हैं। सिर्फ डॉक्टर लिखा देख कर भरोसा कर लेना कई बार जानलेवा साबित हो सकता है। हेयर ट्रांसप्लांट जैसी प्रक्रियाएं केवल प्रशिक्षित और अधिकृत डॉक्टरों से ही करानी चाहिए, जो मेडिकल काउंसिल द्वारा मान्यता प्राप्त हों।

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Kidnapping of Rubaiya Sayeed: जब गृहमंत्री की बेटी बनी आतंक का मोहरा, जानें उस अपहरण ...

Kidnapping of Rubaiya Sayeed: कश्मीर की राजनीति और भारत की आंतरिक सुरक्षा के इतिहास में 8 दिसंबर 1989 का दिन एक निर्णायक मोड़ बनकर सामने आया। यह वह दिन था जब तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबैया सईद का JKLF (जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट) द्वारा अपहरण कर लिया गया। इस घटना ने कश्मीर में आतंकवाद के उस दौर की शुरुआत की जिसे आज भी भारत के सबसे काले अध्यायों में गिना जाता है।

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कौन थे मुफ्ती मोहम्मद सईद? (Kidnapping of Rubaiya Sayeed)

अनंतनाग के बिजबेहड़ा से ताल्लुक रखने वाले मुफ्ती मोहम्मद सईद कश्मीर की राजनीति में बेहद महत्वाकांक्षी नेता माने जाते थे। उन्होंने कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और जन मोर्चा जैसी पार्टियों में सक्रिय भूमिका निभाई। 1989 में जब वी.पी. सिंह प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने सईद को भारत का पहला मुस्लिम गृहमंत्री नियुक्त किया।

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रुबैया सईद का अपहरण और सरकार की घुटने टेकती रणनीति

8 दिसंबर को रुबैया, जो श्रीनगर के लाल डेड मेडिकल कॉलेज की छात्रा थीं, क्लास के बाद नौगाम स्थित अपने घर लौट रही थीं। तभी JKLF के पांच आतंकियों ने बस को हाईजैक कर लिया और रुबैया को पंपोर के पास नटिपोरा इलाके में ले जाकर एक नीली मारुति में बिठा दिया। बाद में उन्हें सोपोर के एक उद्योगपति के घर में छुपाया गया।

इस हाइजैकिंग के पीछे यासीन मलिक और अशफाक माजिद वानी जैसे कुख्यात आतंकियों के नाम सामने आए। आतंकियों ने सरकार के सामने अपने पांच साथियों की रिहाई की मांग रखी। जब तक आतंकियों ने एक लोकल अखबार में फोन कर अपनी शर्तें नहीं बताईं, तब तक प्रशासन को इस घटना की भनक तक नहीं लगी थी।

सरकार का सरेंडर और कश्मीर में आतंक की दस्तक

पांच दिनों की ऊहापोह के बाद 12 दिसंबर को केंद्र सरकार ने आतंकियों की शर्तें मान लीं और पांच खूंखार आतंकियों को रिहा कर दिया गया। कुछ ही घंटों बाद रुबैया को छोड़ दिया गया, लेकिन इस फैसले के दूरगामी परिणाम बेहद खतरनाक साबित हुए।

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13 दिसंबर को श्रीनगर की सड़कों पर आतंकी हीरो बनकर निकले। ‘आजादी’ के नारे लगे, हथियारबंद जुलूस निकले और रिहा किए गए आतंकी पाकिस्तान भाग निकले। इस एक रिहाई ने JKLF जैसे संगठनों के हौसले बुलंद कर दिए और भारतीय राज्य के प्रति अविश्वास गहरा गया।

आतंकवाद की बाढ़ और बेगुनाहों का खून

1990 से घाटी में आतंकवाद ने जड़ें जमा लीं। पाकिस्तान में चल रहे ISI समर्थित ट्रेनिंग कैंपों में हजारों कश्मीरी युवाओं को हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी गई। अपहरण, हत्याएं और धमकियों का दौर शुरू हुआ।

6 अप्रैल 1990 को कश्मीर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ. मुशीर उल हक और उनके सचिव अब्दुल घनी को अगवा कर मौत के घाट उतार दिया गया। 11 अप्रैल को HMT फैक्ट्री के जनरल मैनेजर H.L. खेड़ा की हत्या ने घाटी में भय का माहौल और गहरा कर दिया।

नतीजा: पलायन, पीड़ा और इतिहास की टीस

सरकारी कर्मचारियों, नेशनल कॉन्फ्रेंस के कार्यकर्ताओं और कश्मीरी पंडितों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ। मानवाधिकार हनन, तलाशी अभियानों और फर्जी एनकाउंटर की खबरें सामने आईं। कश्मीर अब सिर्फ एक भू-राजनीतिक मुद्दा नहीं रह गया था, यह हिंसा, भय और अस्थिरता का मैदान बन चुका था।

रूबैया सईद का अपहरण सिर्फ एक बेटी का मामला नहीं था, वह भारतीय शासन व्यवस्था की कमजोरी, कश्मीर की उथल-पुथल और आतंकवाद की शुरुआत का प्रतीक बन गया। इस एक निर्णय ने ना सिर्फ सईद की राजनीति को बल्कि पूरी घाटी की किस्मत को नई और भयावह दिशा दे दी – एक ऐसी दिशा, जिसमें आज भी धुआं, दर्द और दहशत बाकी है।

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Ejected Pilot Safety rule: फाइटर प्लेन से इजेक्ट हुए पायलट पर दुश्मन देश की गोलीबारी ...

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Ejected Pilot Safety rule: जब कोई फाइटर प्लेन दुर्घटनाग्रस्त होता है या उस पर हमला होता है, तो पायलट का सबसे पहला कर्तव्य अपनी जान बचाना होता है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए पायलट आमतौर पर ‘इजेक्ट’ तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। यह एक विशेष प्रक्रिया होती है जिसमें पायलट अपने विमान से बाहर निकलने की कोशिश करता है, ताकि वह सुरक्षित रूप से दुर्घटना से बच सके।

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पायलट कैसे निकलता है विमान से? (Ejected Pilot Safety rule)

फाइटर प्लेन में पायलट की सीट के नीचे एक रॉकेट पावर सिस्टम होता है। जब पायलट इस सिस्टम को सक्रिय करता है, तो वह लगभग 30 मीटर ऊपर जाकर विमान के छोटे हिस्से से बाहर निकल जाता है। इसके बाद पायलट पैराशूट के सहारे जमीन पर सुरक्षित उतरता है। यह प्रक्रिया जीवन रक्षक साबित होती है, खासकर युद्ध के दौरान जब विमान पर हमले की संभावना अधिक होती है।

Ejected Pilot Safety rule
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अगर पायलट दुश्मन इलाके में गिर जाए तो क्या होता है?

यहाँ एक अहम सवाल उठता है कि जब पायलट दुश्मन के इलाके में इजेक्ट होकर गिरता है तो क्या दुश्मन उस पर फायर कर सकता है? इस सवाल का जवाब अंतरराष्ट्रीय कानून में निहित है, खासकर जिनेवा कन्वेंशन में।

जिनेवा कन्वेंशन युद्ध के दौरान सैनिकों और नागरिकों के साथ किए जाने वाले व्यवहार को नियंत्रित करता है। यह अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे युद्ध के नियमों के रूप में भी जाना जाता है।

जिनेवा कन्वेंशन के प्रमुख बिंदु

जिनेवा कन्वेंशन के चार मुख्य समझौते हैं। इनमें से तीसरा कन्वेंशन विशेष रूप से युद्धबंदियों के साथ किए जाने वाले मानवीय व्यवहार को निर्धारित करता है। इसमें युद्धबंदियों को चिकित्सा देखभाल, आश्रय, और पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने के नियम शामिल हैं।

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पहले के समय में युद्ध में अक्सर युद्धबंदियों के साथ बर्बरता होती थी, महिलाओं के साथ अत्याचार और अन्य हिंसात्मक घटनाएं होती थीं। लेकिन जिनेवा कन्वेंशन के लागू होने के बाद सभी सदस्य देशों को इस नियम का पालन करना अनिवार्य हो गया।

युद्धबंदियों के प्रति दुश्मन देश का रवैया

इस नियम के तहत जब कोई सैनिक, जैसे कि फाइटर प्लेन से इजेक्ट होकर गिरा पायलट, दुश्मन के कब्जे में आता है, तो उसे गोली मारना या प्रताड़ित करना अपराध माना जाता है। इसके बजाय, उसे बंदी बनाकर सुरक्षित रखा जाता है।

युद्धबंदी को सम्मान और मानवीय व्यवहार के साथ रखा जाता है। उन्हें चिकित्सा सुविधाएं दी जाती हैं, उनका अपमान नहीं किया जाता, और उनके अधिकारों का सम्मान किया जाता है। युद्ध समाप्त होने के बाद इन बंदियों को बिना विलंब के रिहा कर दिया जाता है।

युद्धबंदी की जानकारी और अधिकार

जिनेवा कन्वेंशन के तहत, युद्धबंदी को रखने वाले देश को उस सैनिक के मूल देश को उसकी स्थिति की जानकारी देनी होती है। यह नियम यह सुनिश्चित करता है कि युद्धबंदी की सुरक्षा हो और उनका भविष्य सुरक्षित रहे।

इस प्रकार, युद्ध के दौरान घायल या इजेक्ट होकर पकड़ में आने वाले सैनिकों के प्रति ऐसा व्यवहार होता है, जो मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप हो।

इसलिए जब भी कोई पायलट इजेक्ट होकर गिरता है, तो वह दुश्मन के लिए लक्ष्य नहीं बनता, बल्कि एक युद्धबंदी के रूप में सुरक्षित रखा जाता है, जब तक युद्ध समाप्त नहीं हो जाता।

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