Home Blog Page 51

Nitin Gadkari Slams NHAI Officers: गडकरी का सिस्टम पर तगड़ा वार: “ऑर्डर देने वा...

0

Nitin Gadkari Slams NHAI Officers: केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने एक कार्यक्रम में दिए गए अपने तीखे बयान से पूरे प्रशासनिक तंत्र की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। उन्होंने अपने ही मंत्रालय और नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) के अधिकारियों पर नाराजगी जताते हुए कहा कि गलत फैसलों और खराब प्लानिंग की वजह से उन्हें दुनिया भर में आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।

गडकरी ने अपने भाषण में NHAI से जुड़े एक इंजीनियर का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे एक साधारण से डायवर्जन निर्माण में भी लापरवाही बरती जाती है। उन्होंने कहा, “जब मैंने इंजीनियर से पूछा कि भारी ट्रैफिक वाले इलाकों में डायवर्जन ठीक से क्यों नहीं बनते? तो उसका जवाब था – जैसा सरकार के ऑर्डर में लिखा है, हम वैसा ही करते हैं।” इस पर गडकरी ने व्यंग्य करते हुए कहा, “कौन है वो महान आदमी जिसने ये ऑर्डर दिया? उसका सम्मान करिए, क्योंकि उसी की वजह से मुझे दुनिया भर में गालियां सुननी पड़ती हैं।”

और पढ़ें: Sushila Karki: कौन है नेपाल की नई PM, कहां तक की है पढ़ाई?

अफसरशाही पर सीधा हमला- Nitin Gadkari Slams NHAI Officers

गडकरी यहीं नहीं रुके। उन्होंने अफसरशाही की उस सोच पर भी चोट की जहां निर्णय लेने की बजाय सिर्फ कागजों पर काम करने को ही प्राथमिकता दी जाती है। उनका कहना था कि प्रैक्टिकल नॉलेज और फील्ड एक्सपीरियंस के बिना फैसले लिए जा रहे हैं, जिससे न सिर्फ प्रोजेक्ट्स की क्वालिटी पर असर पड़ता है, बल्कि आम जनता को भी भारी परेशानी उठानी पड़ती है।

उन्होंने कहा, “अगर कोई सीनियर अफसर कहता है कि गधा घोड़ा है, तो जूनियर को भी वही मानना पड़ता है। बॉस कभी गलत नहीं हो सकता, यही सोच दफ्तरों में बैठी हुई है।”

“जब जूनियर होते हैं तो रोका जाता है, सीनियर बनते हैं तो रोकते हैं”

गडकरी ने सिस्टम की एक बड़ी खामी की तरफ इशारा करते हुए कहा कि अधिकारी चाहे जितना सक्षम और मेहनती हो, उसे सही काम करने से रोका जाता है। उन्होंने बताया, “जब कोई अफसर जूनियर होता है तो उससे कहा जाता है कि ये मत करो, तुम्हें अनुमति नहीं है। और जब वही अधिकारी सीनियर बनता है, तो वो अपने जूनियर्स को वही बातें दोहराता है।”

गडकरी के मुताबिक, “अगर कोई अफसर पहल करता है, तो उससे पूछताछ शुरू हो जाती है। उससे सवाल होता है कि तुमने ऐसा क्यों किया? और फिर उसके खिलाफ जांच बैठा दी जाती है।”

“सोचने और निर्णय लेने वाले अफसर बहुत कम हैं”

मंत्री ने अफसोस जताया कि सिस्टम में ऐसे अधिकारियों की बहुत कमी है जो खुद सोचकर निर्णय लेते हों। ज़्यादातर अफसर सिर्फ वही करते हैं जो फाइलों में लिखा होता है, फिर चाहे वो निर्णय सही हो या गलत। यही वजह है कि सुधार की गुंजाइश कम होती जा रही है।

गडकरी की नाराजगी सिर्फ बयान नहीं, एक बड़ा संकेत

गडकरी का यह बयान इस बात की तरफ साफ इशारा करता है कि वे सड़क और हाईवे प्रोजेक्ट्स में लेट-लतीफी, प्लानिंग की कमी और डायवर्जन जैसे अहम मुद्दों पर सिस्टम की सुस्त रफ्तार से परेशान हैं। उन्होंने कहा, “जनता मुझसे सवाल करती है, आलोचना मुझे झेलनी पड़ती है, लेकिन हकीकत ये है कि जो आदेश और गाइडलाइंस जारी करते हैं, असली जिम्मेदार वही लोग हैं।”

और पढ़ें: Vinesh Phogat: जुलाना दौरे पर फसलों की तबाही देखने पहुंचीं विनेश फोगाट, ग्रामीण बोले – जब जरूरत थी तब नहीं आईं, अब क्या फायदा?

Delhi Police: अश्रम महारानी बाग में नॉर्थ-ईस्ट की युवती से ASI पर छेड़छाड़ का आरोप, ह...

0

Delhi Police: दिल्ली पुलिस के एक एएसआई (ASI) पर एक गंभीर आरोप लगा है, जिसने पूरे शहर में चिंता और आक्रोश की लहर पैदा कर दी है। मामला राजधानी के अश्रम महारानी बाग इलाके का है, जहाँ शनिवार सुबह एक नॉर्थ-ईस्ट की युवती के साथ छेड़छाड़ और उत्पीड़न की वारदात सामने आई है। आरोपी पुलिसकर्मी की पहचान अश्रम थाने में तैनात असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर विरेंद्र कुमार के रूप में हुई है।

और पढ़ें: Jhansi News: झाँसी में झूठे SC/ST केस का शिकार हुआ आकाश पांडेय, तीन साल की जेल के बाद निकला निर्दोष, माता-पिता की मौत और बर्बाद हुआ करियर  

क्या है पूरा मामला? Delhi Police

यह पूरी घटना 13 सितंबर को सुबह करीब 10 बजे घटी। अश्रम महारानी बाग में जीवन हॉस्पिटल के पास एक दुकान पर यह युवती मौजूद थी। तभी ASI विरेंद्र कुमार वर्दी में वहाँ पहुंचे और बिना किसी वारंट के शराब की तलाशी के बहाने दुकान में घुस गए। जब युवती ने उनके इस अवैध कार्रवाई पर आपत्ति जताई, तो उन्होंने उसकी बात को नजरअंदाज कर तलाशी जारी रखी।

सूत्रों के अनुसार, तलाशी में कुछ भी बरामद नहीं हुआ, लेकिन इसके बावजूद ASI ने न केवल नियमों की अनदेखी की, बल्कि अपनी हद भी पार कर दी। आरोप है कि तलाशी के बाद उन्होंने युवती के चेहरे को जबरन पकड़ा और उसके साथ अश्लील हरकत की। इस पूरी घटना से पीड़िता बुरी तरह से डरी-सहमी और मानसिक रूप से आहत हुई है।

समुदाय में आक्रोश, कार्रवाई की माँग

घटना की जानकारी मिलते ही नॉर्थ-ईस्ट समुदाय के प्रतिनिधि बड़ी संख्या में अश्रम थाने पहुंच गए और आरोपी पुलिसकर्मी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की माँग की। जब तक यह रिपोर्ट दर्ज की गई, उस समय तक FIR दर्ज नहीं की गई थी, जिससे समुदाय का गुस्सा और भी बढ़ गया।

हालाँकि, नॉर्थ-ईस्ट के प्रतिनिधियों ने लाजपत नगर के एसीपी से मुलाकात की और दबाव बनाने के बाद यह जानकारी सामने आई कि आरोपी एएसआई को सस्पेंड कर दिया गया है और मामले की जांच शुरू हो चुकी है।

भरोसे पर सवाल

इस घटना ने एक बार फिर दिल्ली में रहने वाले नॉर्थ-ईस्ट समुदाय की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रतिनिधियों ने कहा है कि अगर खुद दिल्ली पुलिस का कोई अफसर ऐसी शर्मनाक हरकत करे, तो आम जनता किस पर भरोसा करे? इस मामले ने कानून व्यवस्था और पुलिस की विश्वसनीयता पर गहरा सवाल खड़ा कर दिया है।

वर्दी में छिपा दरिंदा

घटना के बाद युवती की मानसिक स्थिति बेहद खराब बताई जा रही है। घटना के बाद पूरे नॉर्थ-ईस्ट समुदाय में गुस्सा है। वे यह कह रहे हैं कि अगर समय रहते कड़ी कार्रवाई नहीं हुई, तो यह मामला और भी बड़ा रूप ले सकता है। समुदाय की माँग है कि इस पूरे मामले की निष्पक्ष और तेज़ जांच हो।

और पढ़ें: Pune News: पुणे में पूर्व ACP ससुर पर बहू का आरोप – ‘बच्चा पैदा करने के लिए शारीरिक संबंध बनाने को किया मजबूर’

Jhansi News: झाँसी में झूठे SC/ST केस का शिकार हुआ आकाश पांडेय, तीन साल की जेल के बाद...

0

Jhansi News: उत्तर प्रदेश के झाँसी से सामने आया एक चौंकाने वाला मामला एक बार फिर से इस बहस को हवा देता है कि क्या एससी-एसटी एक्ट जैसे कड़े कानूनों का दुरुपयोग समाज के निर्दोष लोगों की ज़िंदगी को तबाह कर रहा है? यहां एक युवक आकाश पांडेय को झूठे आरोपों में तीन साल से ज्यादा जेल में रहना पड़ा। न सिर्फ उसकी पढ़ाई छूट गई, बल्कि जेल के दौरान उसके माता-पिता की भी मौत हो गई। अब कोर्ट ने उसे निर्दोष करार दे दिया है, लेकिन उसकी जिंदगी जो उजड़ गई, क्या वो फिर से पटरी पर लौट पाएगी?

और पढ़ें: Pune News: पुणे में पूर्व ACP ससुर पर बहू का आरोप – ‘बच्चा पैदा करने के लिए शारीरिक संबंध बनाने को किया मजबूर’

पूरा मामला क्या था? Jhansi News

मामला 8 जून 2018 का है। झाँसी निवासी मातादीन अहिरवार की बेटी की लाश उसके घर में फांसी पर लटकी मिली थी। इस घटना के बाद मातादीन ने दावा किया कि उसकी बेटी ने आत्महत्या की है और इसके पीछे आकाश पांडेय और उसका ममेरा भाई अंकित मिश्रा जिम्मेदार हैं। कोर्ट के आदेश पर उनके खिलाफ गंभीर धाराओं में FIR दर्ज हुई जिसमें छेड़छाड़, आत्महत्या के लिए उकसाना, SC/ST एक्ट और POCSO एक्ट शामिल थे।

पुलिस जांच में आकाश का भाई सचिन निर्दोष पाया गया, लेकिन आकाश और अंकित को जेल भेज दिया गया। अंकित को एक साल बाद ज़मानत मिल गई, लेकिन आकाश को तीन साल से ज्यादा वक्त सलाखों के पीछे बिताना पड़ा।

जेल में बर्बाद हुई जिंदगी

जब केस का ट्रायल चल रहा था, उस दौरान आकाश के मां-बाप का निधन हो गया। रिपोर्ट के मुताबिक, बेटे की गिरफ्तारी और समाज की बातें शायद वे सहन नहीं कर सके। दूसरी तरफ, आकाश की पढ़ाई पूरी नहीं हो सकी। घर की ज़मीन बिक गई और सारी जमा-पूंजी कानूनी लड़ाई में खत्म हो गई।

अब जाकर, सात साल बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया कि लड़की ने आत्महत्या नहीं की थी, बल्कि उसकी हत्या की गई थी, और ये हत्या उसके ही घरवालों ने मिलकर की थी। कोर्ट ने इस मामले को झूठा करार देते हुए मातादीन पर झूठे केस दर्ज कराने और सबूत गढ़ने के आरोप में केस दर्ज करने का आदेश दिया है। साथ ही, लड़की की मौत के बाद परिवार को जो मुआवज़ा मिला था, उसे भी वसूलने का निर्देश दिया गया है।

हम बाहर तो आ गए हैं, पर जिंदगी वैसी नहीं रही

फैसले के बाद कोर्ट में आकाश और अंकित दोनों रो पड़े। आकाश ने कहा, “जेल से बाहर आना कोई बड़ी बात नहीं है, असली सज़ा तो बाहर मिल रही है। लोग अब भी शक की नजरों से देखते हैं।” उसने बताया कि आज वो सिर्फ ₹6,000 महीने की नौकरी कर पा रहा है। जबकि अगर उसकी ITI की पढ़ाई पूरी होती तो वह कहीं बेहतर स्थिति में होता।

उधर अंकित की भी ज़िंदगी बुरी तरह प्रभावित हुई। डिफेंस में नौकरी की तैयारी कर रहा था, लेकिन केस लगते ही उसे बाहर कर दिया गया।

और पढ़ें: Drug Factory Exposed: 12 हजार करोड़ की ड्रग्स फैक्ट्री का भंडाफोड़: मीरा-भायंदर पुलिस की अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई, 13 गिरफ्तार

Mumbai Congress News: 3472 करोड़ की डील से भड़की कांग्रेस, बोली- हमारी जमीन RBI को कै...

0

Mumbai Congress News: मुंबई के सबसे पॉश इलाकों में से एक नरीमन पॉइंट की 4.2 एकड़ जमीन को लेकर एक नया राजनीतिक और सामाजिक विवाद खड़ा हो गया है। मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (MMRCL) द्वारा यह जमीन भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को 3,472 करोड़ रुपये में बेचे जाने की डील पर कांग्रेस ने कड़ा ऐतराज जताया है। कांग्रेस का आरोप है कि वह इस जमीन की स्टेकहोल्डर है और अगर यह सौदा रद्द नहीं हुआ, तो वह कोर्ट का रुख करेगी।

और पढ़ें: Supreme Court News: क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी पर तय हो सकती है टाइम लिमिट? सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिन बहस के बाद फैसला सुरक्षित रखा

कांग्रेस का आरोप: हमें पुनर्वास का वादा किया गया था – Mumbai Congress News

कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत ने आरोप लगाया कि पार्टी को सरकार की तरफ से यह वादा किया गया था कि मेट्रो निर्माण के चलते हटाए गए दफ्तरों के लिए वहीं पर पुनर्वास की व्यवस्था की जाएगी। लेकिन अब बिना किसी पारदर्शिता के यह जमीन रिज़र्व बैंक को बेच दी गई। उनका कहना है कि इस जमीन का असली बाजार मूल्य लगभग 5,200 करोड़ रुपये है, जबकि यह सौदा 3,472 करोड़ में करके लगभग 1,800 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया गया है। सावंत ने इस डील को “मनमानी और अहंकारपूर्ण” बताते हुए इसे तत्काल रद्द करने की मांग की है।

पहले राजनीतिक पार्टियों के दफ्तर थे इस जमीन पर

बता दें कि यह जमीन पहले कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना जैसे दलों के दफ्तरों के लिए दी गई थी। लेकिन बाद में मेट्रो लाइन-3 के तहत विधान भवन मेट्रो स्टेशन के निर्माण के लिए इन दफ्तरों को हटाया गया। अब जब मेट्रो प्रोजेक्ट का काम लगभग पूरा हो चुका है, तो कांग्रेस को उम्मीद थी कि उसी जगह पर उसे वापस जगह दी जाएगी।

MMRCL का बचाव: सरकारी जमीन थी, अस्थायी तौर पर दी गई थी

इस बीच, MMRCL की मैनेजिंग डायरेक्टर अश्विनी भिड़े ने कांग्रेस के आरोपों को सिरे से खारिज किया है। उन्होंने साफ कहा कि यह जमीन हमेशा से सरकार की थी और पार्टियों को अस्थायी तौर पर दी गई थी। भिड़े ने कहा कि यह डील पूरी तरह पारदर्शी है और इससे मिले पैसे राज्य सरकार को ट्रांसफर किए जाएंगे, ताकि जरूरत के मुताबिक पुनर्वास किया जा सके। उनका यह भी कहना है कि यह सौदा मेट्रो प्रोजेक्ट्स के लिए जरूरी फंड जुटाने के उद्देश्य से किया गया है।

पर्यावरण कार्यकर्ताओं की भी आपत्ति

इस डील पर पर्यावरण कार्यकर्ता जोरू भठेना ने भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने मांग की है कि इस जमीन को आरबीआई को देने के बजाय यहां फिर से हरित क्षेत्र और सार्वजनिक खेल मैदान बनाया जाए। उनका कहना है कि पहले यहां पेड़ों से घिरा मैदान हुआ करता था और मेट्रो प्राधिकरण ने वादा किया था कि काम खत्म होने के बाद ग्रीन स्पेस को दोबारा बहाल किया जाएगा।

RBI के लिए क्यों अहम है यह डील?

यह डील इस साल की सबसे बड़ी लैंड डील मानी जा रही है। यह जगह मंत्रालय, बॉम्बे हाईकोर्ट और कई बड़े कॉर्पोरेट ऑफिसों के पास है, जिससे इसकी अहमियत और भी बढ़ जाती है। RBI ने इस जमीन को अपने मुख्यालय के विस्तार के लिए खरीदा है। पहले से ही उसका मुख्यालय मिंट रोड पर स्थित है, और यह नई जमीन उसे मुंबई में अपनी मौजूदगी को और मजबूत करने का मौका देगी।

टेंडर रद्द कर सीधे RBI को दी गई जमीन

दिलचस्प बात यह है कि पिछले साल MMRCL ने इस जमीन को बेचने के लिए अंतरराष्ट्रीय टेंडर जारी करने की योजना बनाई थी, लेकिन जनवरी 2025 में RBI ने सीधे रुचि दिखाई और फिर टेंडर को रद्द कर यह डील RBI को दे दी गई। 5 सितंबर को यह सौदा आधिकारिक रूप से रजिस्टर्ड हुआ और इसके लिए 208 करोड़ रुपये से ज्यादा की स्टांप ड्यूटी भी चुकाई गई।

और पढ़ें: Zakir Naik AIDS News: क्या मलेशिया में एड्स से जूझ रहा है जाकिर नाइक? विवादों के बीच वकील ने खोली सच्चाई

Asia Cup 2025: भारत-पाकिस्तान महामुकाबला आज, दुबई में फिर गूंजेगा क्रिकेट का शोर, कौन...

0

Asia Cup 2025: एशिया कप 2025 में आज का दिन क्रिकेट फैंस के लिए बेहद खास होने वाला है, क्योंकि भारत और पाकिस्तान की टीमें आमने-सामने होंगी। ये मुकाबला दुबई इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम में खेला जाएगा, जहां दोनों देशों के बीच पहले भी कई हाई-वोल्टेज मैच हो चुके हैं। इस मैच को लेकर दोनों देशों के फैंस में जबरदस्त उत्साह है, और सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि आज कौन बाज़ी मारेगा।

और पढ़ें: Asia Cup 2025: एशिया कप 2025 में पहली बार दिखेंगे ये 5 नए चेहरे, बदल सकते हैं मैच का रुख

पहले मुकाबले में दोनों टीमों ने किया दमदार आगाज़- Asia Cup 2025

भारतीय टीम की अगुवाई कर रहे सूर्यकुमार यादव ने टूर्नामेंट की शुरुआत धमाकेदार अंदाज़ में की है। भारत ने अपने पहले मैच में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) को सिर्फ 9 विकेट से हराकर यह साफ कर दिया कि वे ट्रॉफी के प्रबल दावेदार हैं। वहीं, पाकिस्तान की टीम ने भी अपने पहले मुकाबले में ओमान को 93 रनों के बड़े अंतर से हराकर अपना दबदबा बनाया है। यानी दोनों ही टीमें जीत के आत्मविश्वास के साथ आज मैदान पर उतरेंगी।

दुबई स्टेडियम में भारत का रिकॉर्ड ठीक-ठाक

दुबई इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम की बात करें तो यहां भारत का प्रदर्शन मिला-जुला रहा है। अब तक इस मैदान पर भारत ने 10 टी20 इंटरनेशनल मुकाबले खेले हैं, जिनमें से 6 में जीत हासिल की है, जबकि 4 में हार का सामना करना पड़ा है। हालांकि, पाकिस्तान के खिलाफ यहां भारत का रिकॉर्ड उतना मजबूत नहीं है। दोनों टीमों ने इस मैदान पर तीन बार आमना-सामना किया है, जिसमें भारत को सिर्फ एक बार जीत मिली है, जबकि दो बार पाकिस्तान ने बाज़ी मारी।

टी20 वर्ल्ड कप 2021 में यहीं पर पाकिस्तान ने भारत को 10 विकेट से हराया था, जो कि एक ऐतिहासिक जीत रही थी। इसके बाद एशिया कप 2022 में दोनों टीमें दो बार भिड़ीं, जिसमें एक बार भारत और एक बार पाकिस्तान ने 5-5 विकेट से जीत दर्ज की थी। ऐसे में आज का मुकाबला दोनों टीमों के बीच टक्कर को 2-2 करने का मौका बन गया है।

टॉस बन सकता है गेमचेंजर

दुबई स्टेडियम में टॉस का रोल भी काफी अहम होता है। आंकड़ों की मानें तो भारत ने इस मैदान पर जब-जब टॉस जीता, जीत भी उसी की हुई। कुल 10 मुकाबलों में से भारत ने 4 बार टॉस जीतकर मैच अपने नाम किया। वहीं, बाकी 6 में से 2 बार भारत ने टॉस हारने के बाद भी जीत दर्ज की, लेकिन 4 बार उसे हार झेलनी पड़ी।

पूरा रिकॉर्ड देखें तो इस मैदान पर अब तक 95 टी20 इंटरनेशनल मुकाबले खेले जा चुके हैं, जिनमें से 55 बार टॉस जीतने वाली टीम को जीत मिली है। यानी टॉस यहां निर्णायक भूमिका निभा सकता है।

दोनों टीमों की स्क्वॉड पर एक नज़र

भारत की टीम:

सूर्यकुमार यादव (कप्तान), शुभमन गिल (उप-कप्तान), अभिषेक शर्मा, तिलक वर्मा, हार्दिक पंड्या, शिवम दुबे, जितेश शर्मा (विकेटकीपर), अक्षर पटेल, अर्शदीप सिंह, रिंकू सिंह, संजू सैमसन (विकेटकीपर), हर्षित राणा, जसप्रीत बुमराह, कुलदीप यादव, वरुण चक्रवर्ती।

पाकिस्तान की टीम:

सलमान अली आगा (कप्तान), अबरार अहमद, फखर जमां, हारिस रऊफ, हसन अली, हुसैन तलत, हसन नवाज, खुशदिल शाह, मोहम्मद हारिस, मोहम्मद नवाज, मोहम्मद वसीम जूनियर, सलमान मिर्जा, शाहीन आफरीदी, सुफियान मुकीम, सैम अयूब, साहिबजादा फरहान, फहीम अशरफ।

नतीजा कुछ भी हो, मुकाबला दमदार होगा

भारत और पाकिस्तान के बीच मुकाबले हमेशा से खास रहे हैं, फिर चाहे वो वर्ल्ड कप हो, एशिया कप या कोई और टूर्नामेंट। आज का मैच भी सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि करोड़ों फैंस की भावनाओं से जुड़ा है। कौन जीतेगा, ये तो वक्त बताएगा, लेकिन इतना तय है कि क्रिकेट का असली मज़ा आज दुबई के मैदान में ही देखने को मिलेगा।

और पढ़ें: Ross Taylor: 41 की उम्र में रॉस टेलर की मैदान पर वापसी, इस बार न्यूजीलैंड नहीं, समोआ के लिए खेलेंगे क्रिकेट

Sushila Karki: कौन है नेपाल की नई PM, कहां तक की है पढ़ाई?

Who is Sushila Karki: नेपाल में राजनीतिक भ्रष्टाचार और कुशासन को लेकर लंबे समय से गहरी निराशा व्याप्त है। युवा पीढ़ी का मानना ​​है कि पुराने नेता सिर्फ़ अपनी जेबें भर रहे हैं और देश के विकास के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। नेपाल में उच्च बेरोज़गारी दर और आर्थिक संकट एक बड़ी समस्या है। युवाओं को लगता है कि शिक्षा के बावजूद देश में नौकरी के अवसर नहीं हैं, जिसके कारण उन्हें रोज़गार के लिए विदेश जाना पड़ता है। हाल ही में genZ ने इसे लेकर नेपाल में एक बड़ा आंदोलन चलाया, जिससे काफ़ी संपत्ति का नुकसान भी हुआ। जिसके बाद सुशीला कार्की (Sushila Karki) को नेपाल (Nepal) का नया अंतरिम प्रधानमंत्री (Prime Minister) बनाया गया है। तो चलिए आपको इस लेख में बताते है आखिर कौन है सुशीला कार्की कौन है?

कौन है सुशीला कार्की

हाल ही में नेपाल (Nepal) में genZ प्रोटेस्ट के बाद सुशीला कार्की (Sushila Karki) को नेपाल की नई और अंतरिम प्रधानमंत्री बनया गया है। उन्होंने नेपाल (Nepal) की अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली है। सुशीला कार्की एक नेपाली क़ानूनी जानकर और लेखिका हैं, जो 12 सितंबर, 2025 से नेपाल की अंतरिम प्रधानमंत्री (Prime Minister) के रूप में कार्यरत हैं। वह नेपाल का नेतृत्व करने वाली पहली महिला हैं। इससे पहले, वह 2016 से 2017 तक नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश थीं। सुशीला कार्की भ्रष्टाचार (Corruption) के खिलाफ अपने कड़े रुख के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने कानून और राजनीति विज्ञान (Political Science) की पढ़ाई की है और 1979 में अपना कानूनी करियर शुरू किया था।

उनकी शिक्षा का विवरण इस प्रकार है

  • उन्होंने 1972 में नेपाल के महेंद्र मोरंग कैंपस (Mahendra Morang Campus) से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
  • साल 1975 में उन्होंने भारत के वाराणसी स्थित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से राजनीति विज्ञान (Political) में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की फिर उन्होंने 1978 में नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय (Tribhuvan University of Nepal) से कानून की डिग्री प्राप्त की।
  • सुशीला कार्की ने 1979 में अपने कानूनी करियर की शुरुआत की और 2016 में नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice) बनीं। उनकी न्यायिक और कानूनी पृष्ठभूमि ने उन्हें एक ईमानदार और भ्रष्टाचार विरोधी नेता के रूप में पहचान दिलाई है।
  • साल 2009 में कार्की को नेपाल सुप्रीम कोर्ट में एडहॉक (Adhoc in Supreme Court) जज नियुक्त किया गया, जिसके बाद 2010 में वो परमानेंट जज बनीं।
  • सुशीला कार्की 2016 में नेपाल की पहली महिला चीफ जस्टिस बनीं, जिसके बाद 2017 में उन्हें पद से हटाने के लिए उनके खिलाफ महाभियोग लाया गया।

नेपाल में लोकतंत्र कितने साल का है?

नेपाल में लोकतंत्र अभी 17 साल का ही हुआ है लेकिन नेपाल में 13 सरकारें बदल चुकी हैं. 2008 में लोकतंत्र घोषित होने के बाद नेपाल में 13 प्रधानमंत्री बन चुके हैं। जिसमें पुष्प कमल दहल प्रचंड 3 बार, शेर बहादुर देउबा 2 बार और केपी शर्मा ओली 3 बार प्रधानमंत्री बन चुके हैं। बीते दिन केपी शर्मा ओली को अपने पद से इस्तीफा देकर भागना पड़ा था। नेपाल के लोग 239 साल राजशाही व्यवस्था के अंतर्गत रहे और 2006 से शुरु हुए संघर्ष के बाद 2008 में यहां लोकतंत्र की स्थापना हुई।

यह सामाजिक न्याय और समावेशन के सिद्धांतों पर ज़ोर देता है, और यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रावधान करता है कि दलितों और मूल निवासियों जैसे हाशिए पर पड़े समुदायों को समान अवसर प्राप्त हों। इसके अलावा, संविधान एक संघीय ढाँचे की स्थापना करता है, जिसमें सात प्रांत, 77 ज़िले और 753 स्थानीय इकाइयाँ शामिल हैं। इसका उद्देश्य देश के भीतर राजनीतिक और आर्थिक शक्तियों का विकेंद्रीकरण करना है।

Dakshayani Velayudhan: दलित समाज की पहली ग्रेजुएट, जिसने विद्रोह को आवाज़ और संविधान ...

0

Dakshayani Velayudhan: सोचिए एक ऐसा वक्त जब किसी लड़की का स्कूल जाना गुनाह था, उसका ऊपरी वस्त्र पहनना बगावत मानी जाती थी, और उसका बोलना… बस बर्दाश्त से बाहर। अब सोचिए, उसी दौर में एक लड़की न सिर्फ पढ़ी, बल्कि देश की संविधान सभा तक पहुंच गई। उसने संसद में खड़े होकर वो कहा, जो उस दौर में कहने की हिम्मत शायद ही किसी ने की हो।

दक्षिणायनी वेलायुधन ये वो नाम है जो आज भी किताबों में कम है, लेकिन इतिहास की हर उस पंक्ति में ज़िंदा है, जहां बराबरी, सम्मान और इंसानियत की बात होती है। वह सिर्फ भारत की पहली दलित महिला ग्रेजुएट नहीं थीं, वो एक चलती-फिरती क्रांति थीं।

और पढ़ें: Caste discrimination in cities: शहरी हवा में भी जातिवाद जिंदा है — बस वो अब अंग्रेज़ी बोलता है

जात-पांत, भेदभाव और बेड़ियों से भरे उस वक्त में उन्होंने जो किया, वो किसी आंदोलन से कम नहीं था। उनकी कहानी न सिर्फ प्रेरणा देती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कभी-कभी विद्रोह भी खूबसूरत होता है जब वो न्याय के लिए हो।

चलिए जानते हैं उस नायिका की कहानी, जिसे इतिहास में भले कम लिखा गया हो, लेकिन जिसने इतिहास को गहराई से बदल दिया।

एक विद्रोही जन्म- Dakshayani Velayudhan

4 जुलाई 1912 को केरल के कोच्चि के पास एक छोटे से द्वीप मुलावुकड में जन्मी दक्षिणायनी वेलायुधन का जीवन बेहद कठिन दौर में शुरू हुआ। वे पुलाया समुदाय से थीं, जो कि समाज के सबसे निचले पायदान पर गिना जाता था। उस वक्त केरल में जाति व्यवस्था इतनी सख्त थी कि पुलाया महिलाओं को ना तो सड़क पर चलने की छूट थी, ना ही सार्वजनिक कुओं से पानी भरने की। उन्हें ऊपरी वस्त्र पहनने तक की इजाजत नहीं थी केवल मोतियों का हार पहनना चलता था। अगर कोई ऊंची जाति का व्यक्ति सामने आ जाए, तो झुक कर रास्ता देना पड़ता था, और बाहर निकलने से पहले ज़ोर से आवाज़ लगानी पड़ती थी कि कोई ‘छू न ले’।

लेकिन दक्षिणायनी की कहानी यहीं से बदलनी शुरू हो गई थी। जहां उस समय दलित लड़कियों के नाम आमतौर पर ‘काली’, ‘चक्की’ जैसे रखे जाते थे, वहीं उनके माता-पिता ने उनका नाम रखा ‘दक्षिणायनी’, जो देवी दुर्गा से जुड़ा है। यानी विद्रोह और आत्म-सम्मान की भावना उनके नाम से ही शुरू हो गई थी।

स्कूल यूनिफॉर्म में इतिहास रचने वाली लड़की

दक्षिणायनी अपने समुदाय की पहली लड़की बनीं जिन्होंने स्कूली यूनिफॉर्म में ऊपर का वस्त्र पहना। यह कोई मामूली बात नहीं थी, बल्कि उस वक्त के सामाजिक ढांचे के खिलाफ एक सीधा विरोध था। पढ़ाई के दौरान उन्हें कई बार भेदभाव झेलना पड़ा। जब वह रसायन विज्ञान की पढ़ाई कर रही थीं, तो उन्हें लैब में प्रयोग नहीं करने दिया जाता था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

बैकवाटर सम्मेलन: विद्रोह की नींव

1913 में जब दक्षिणायनी छोटी थीं, तब उनके समुदाय ने जातिगत भेदभाव के खिलाफ एक अनोखा विरोध किया जिसे बैकवाटर सम्मेलन कहा जाता है। जातिगत प्रतिबंधों की वजह से ज़मीन पर सभा नहीं कर सकते थे, तो उन्होंने नावों पर सभा की, कोचीन के बैकवाटर में। इस सभा का नेतृत्व समाज सुधारक पंडित करुप्पन ने किया था, और दक्षिणायनी का परिवार भी इसमें शामिल था। यह वह क्षण था, जिसने दक्षिणायनी के भीतर आग पैदा की।

संविधान सभा की सबसे युवा महिला

1946 में दक्षिणायनी को संविधान सभा की सदस्य चुना गया और वह न सिर्फ दलित समुदाय की पहली महिला प्रतिनिधि बनीं, बल्कि सबसे युवा महिला सदस्य (32 वर्ष की उम्र में) भी रहीं।

संविधान सभा में उनके साथ कुल 14 और महिलाएं थीं सुचेता कृपलानी, सरोजिनी नायडू, राजकुमारी अमृत कौर जैसी नामी महिलाएं, लेकिन दक्षिणायनी अलग थीं वह दलित समाज की आवाज थीं। उन्होंने संविधान के मसौदे की भी आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि यह मसौदा भारत सरकार अधिनियम 1935 की “प्रतिकृति” जैसा है, और इसमें लोकतंत्र और विकेंद्रीकरण की भावना गायब है।

गांधी और अंबेडकर से असहमत होकर भी प्रेरित रहीं

उन्होंने गांधी और अंबेडकर दोनों की नीतियों से कुछ हद तक असहमति जताई थी, लेकिन दोनों की प्रेरणा बनी रहीं। उन्होंने हमेशा कहा कि दलितों को ‘हरिजन’ या किसी और नाम से बुला देने से उनका दर्द कम नहीं होगा। उन्हें सम्मान, सुरक्षा, समान अवसर और न्याय चाहिए।

एक अनोखी शादी और प्रेरणादायक जोड़ी

1940 में उन्होंने आर. वेलायुधन से शादी की यह विवाह महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी की मौजूदगी में हुआ। इस शादी में एक कुष्ठ रोगी ने पुजारी का काम किया था, ताकि समाज को संदेश दिया जा सके कि बीमारी और जाति के नाम पर भेदभाव बंद हो। यह जोड़ी भारत की पहली दलित सांसद जोड़ी बनी।

आर. वेलायुधन वामपंथ की ओर चले गए, लेकिन दक्षिणायनी ने कांग्रेस में रहकर अपने मिशन को जारी रखा। संसद में वह ज्यादा प्रश्न पूछने वाली महिलाओं में गिनी जाती थीं, और वे मुद्दों पर बोलने में कभी पीछे नहीं रहीं।

सक्रिय राजनीति से आगे का सफर

राजनीति से हटने के बाद भी उन्होंने अपने सपने नहीं छोड़े। उन्होंने “महिला जागृति परिषद” नाम से एक संगठन शुरू किया, जो झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाली महिलाओं के साथ काम करता था।

20 जुलाई 1978 को उनका निधन हुआ। लेकिन जब वे गईं, तब तक वे अपने समाज के लिए आत्म-सम्मान, बराबरी और न्याय की लड़ाई के कई कांटे साफ कर चुकी थीं।

आज की जरूरत फिर वही

महिला अधिकार कार्यकर्ता सहबा हुसैन द्वारा किए गए एक साक्षात्कार में, उनकी बेटी मीरा वेलायुधन कहती हैं कि लोग उनकी मां को सिर्फ संविधान सभा की सदस्य के तौर पर याद करते हैं, लेकिन उनकी असली ताकत न्याय की गहरी समझ थी।

आज संविधान लागू हुए 73 साल से ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन क्या हम सच में कह सकते हैं कि दक्षिणायनी का सपना पूरा हो गया? देश में दलित आज भी भेदभाव का सामना कर रहे हैं। समाज के बड़े हिस्से को अभी भी गरिमा, सम्मान और बराबरी के लिए लड़ना पड़ रहा है।

और पढ़ें: Ambedkar Park in Punjab: डॉ. आंबेडकर के नाम पर पंजाब में बना ऐसा पार्क, जिसे देखकर हर कोई हैरान!

Ajab Gajab: झारखंड का रहस्यमय गांव, जहां ना कोई इंसान बचा, ना घर – बस रह गईं यादें और...

0

Ajab Gajab: झारखंड के खूंटी जिले में एक गांव है, जिसका नाम सुनकर आप चौंक सकते हैं – बिरहोर चुआं। नाम तो है, लेकिन वहां न कोई इंसान रहता है, न कोई घर दिखता है। पेड़-पौधों और हरियाली से ढका ये इलाका अब सिर्फ एक भूगोलिक निशान बनकर रह गया है। हां, अगर कुछ बचा है तो वो हैं आम के पेड़ के नीचे मौजूद कब्रगाहें, जो गवाही देती हैं कि यहां कभी लोग रहा करते थे।

और पढ़ें: Snake Venom: सांप के जहर से अब कैंसर और हार्ट अटैक का इलाज, जानिए पूरा सच

कहां है ये गांव? Ajab Gajab

बिरहोर चुआं, खूंटी जिले के रनिया प्रखंड की जयपुर पंचायत में स्थित है। सरकारी दस्तावेजों में ये गांव आज भी राजस्व ग्राम के रूप में दर्ज है। लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि यहां जनसंख्या शून्य है। न कोई घर है, न बस्ती, न खेत, न खलिहान और न ही कोई इंसान। सिर्फ जंगल और खामोशी।

कौन थे बिरहोर?

इस गांव में कभी बिरहोर समुदाय के लोग रहा करते थे। बिरहोर झारखंड की एक आदिम जनजाति है, जो पारंपरिक रूप से घुमंतू जीवन जीती थी। ये लोग जंगलों में रहकर, लकड़ी काटकर, शहद इकठ्ठा करके या छोटी-मोटी खेती करके जीवन यापन करते थे।

बिरहोर चुआं में भी दशकों पहले बिरहोर समुदाय के परिवार बसे थे। गांव का नाम भी शायद इसी वजह से पड़ा – “बिरहोर” यानी उस समुदाय के नाम पर, और “चुआं” यानी पानी का स्रोत। बताया जाता है कि वे एक छोटे से जलस्रोत (चुआं) से पीने का पानी लेते थे और उसे ही अपनी जरूरतों के लिए इस्तेमाल करते थे।

फिर अचानक सब कहां चले गए?

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि किसी को ठीक-ठीक नहीं पता कि बिरहोर चुआं के लोग कहां और क्यों चले गए। कोई रिकॉर्ड, कोई दस्तावेज, कोई आधिकारिक बयान नहीं है जो बता सके कि यह जनजाति वहां से किस वजह से गई। सिर्फ अनुमान हैं कि शायद बेहतर जीवन की तलाश में गए, या किसी बीमारी, सरकारी विस्थापन या आपसी विवाद के कारण गांव छोड़ दिया। लेकिन वे कभी लौटकर नहीं आए।

आज भी उस जगह मौजूद कब्रगाहें उनकी पुरानी मौजूदगी की चुप गवाही देती हैं।

सरकारी योजनाएं क्यों नहीं बनतीं?

चूंकि अब यहां कोई नहीं रहता, इसलिए इस गांव को प्रशासन ने बेचिरागी गांव यानी ‘निवासीविहीन’ घोषित कर रखा है। जब भी किसी योजना के लिए आंकड़े मांगे जाते हैं, तो बिरहोर चुआं के लिए हमेशा “शून्य आबादी” लिखकर रिपोर्ट भेजी जाती है। यही वजह है कि इस गांव के नाम पर कोई सरकारी योजना नहीं बनती।

सिर्फ जंगल और कब्रें बचीं

बिरहोर चुआं अब एक ऐसा नाम है, जो सरकारी कागजों में तो जीवित है, लेकिन असल में वहां जीवन का कोई निशान नहीं। पूरे 207.75 हेक्टेयर में फैला यह इलाका अब सिर्फ पेड़ों, झाड़ियों और एक दो पगडंडियों से घिरा हुआ है।

खूंटी में ऐसे और गांव भी हैं

बिरहोर चुआं अकेला ऐसा गांव नहीं है। खूंटी प्रखंड के छोटा बांडी नाम का एक और राजस्व गांव है, जिसकी हालत बिल्कुल वैसी ही है यानि 18 हेक्टेयर का इलाका, लेकिन वहां भी कोई नहीं रहता।

रनिया प्रखंड में ही चेंगरे नाम का एक गांव है, जहां सिर्फ एक परिवार रहता है। इस गांव का कुल क्षेत्रफल 87 हेक्टेयर है।

और पढ़ें: Twins Village in Kerala: केरल का ‘ट्विन टाउन’, जहां हर घर में जुड़वा बच्चे पैदा होते हैं, जानें इस अजीबोगरीब गांव का राज

जब माइकल जैक्सन ने 3 हजार डांसर्स में से Yamuna Sangarasivam को चुना, जानिए कहां हैं ...

0

Yamuna Sangarasivam: सोशल मीडिया पर इन दिनों एक पुराना वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें माइकल जैक्सन जैसे लीजेंड के साथ एक भारतीय पारंपरिक ड्रेस पहनी हुई लड़की ओड़िसी डांस करती नजर आ रही है। ये वीडियो MJ के मशहूर गाने Black or White का है, और इसमें दिख रही डांसर हैं यमुना संगरासिवम, जिनकी कहानी आज फिर चर्चा में है। अब सवाल ये है कि आखिर ये यमुना हैं कौन? और 33 साल बाद अब वो क्या कर रही हैं?

और पढ़ें: Manoj Bajpayee-Anurag Kashyap: दुश्मन बना लिए, हाथ तोड़ लिया… अनुराग के गुस्से पर बोले मनोज बाजपेयी

कौन हैं यमुना संगरासिवम? Yamuna Sangarasivam

यमुना संगरासिवम एक श्रीलंकाई-अमेरिकी डांसर, राइटर और अब प्रोफेसर हैं। उनका जन्म श्रीलंका में हुआ था और वहीं से उन्होंने अपनी डांस जर्नी की शुरुआत भी की। यमुना ने भरतनाट्यम के साथ-साथ ओड़िसी डांस भी सीखा और शास्त्रीय नृत्य में गहरी रुचि दिखाई। बचपन से ही उनके भीतर कला के लिए जुनून था।

 

View this post on Instagram

 

A post shared by AALAAP (@aalaap_concepts)

उनके पिता सिंगापुर-सीलोन मूल के थे और मां मलेशिया से थीं। जब यमुना सिर्फ 6 साल की थीं, तभी उन्होंने भरतनाट्यम सीखना शुरू कर दिया था। इसके बाद ओड़िसी में ट्रेनिंग लेने के लिए वो भारत के ओडिशा में रहीं और वहां अपनी कला को और निखारा।

माइकल जैक्सन के साथ डांस कर मिली पहचान

साल 1991 में जब माइकल जैक्सन ने अपना सुपरहिट गाना Black or White लॉन्च किया, तब यमुना को भी उस गाने में डांस करने का मौका मिला। MJ इस गाने के लिए खास डांसर्स की तलाश में थे और इसके लिए 3,000 से ज्यादा डांसरों ने ऑडिशन दिया था। लेकिन माइकल जैक्सन की नजर यमुना पर ठहर गई।

गाने की शूटिंग करीब 14 घंटे तक चली और इसका प्रीमियर एक साथ 27 से ज्यादा देशों में हुआ। MJ के साथ क्लासिकल डांस करने वाली यमुना उस दौर में लोगों की नजरों में छा गई थीं।

पढ़ाई और करियर

यमुना सिर्फ एक बेहतरीन डांसर ही नहीं, बल्कि एक गंभीर रिसर्चर भी हैं। अमेरिका जाकर उन्होंने मिनेसोटा यूनिवर्सिटी से म्यूजिक और पियानो में ग्रेजुएशन किया। फिर कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, लॉस एंजेल्स से Anthropology में मास्टर्स और 2000 में उसी विषय में एमफिल की डिग्री भी हासिल की।

उन्होंने पश्चिमी शास्त्रीय पियानो और तमिल कर्नाटक संगीत में भी गहराई से पढ़ाई की है।

अब क्या कर रही हैं यमुना?

आज यमुना एक प्रोफेसर और रिसर्चर हैं। वो टीचिंग के साथ-साथ राष्ट्रवाद, आतंकवाद और सामजिक मुद्दों पर रिसर्च कर रही हैं। साल 2021 में उन्होंने एक बायब्लियोग्राफी भी पब्लिश की थी, जिसमें उन्होंने अपनी विचारधारा और रिसर्च के अनुभव साझा किए।

क्यों फिर से हो रही हैं ट्रेंड?

MJ का Black or White गाना हमेशा से नस्लीय भेदभाव के खिलाफ एक मजबूत संदेश रहा है। लेकिन इस वीडियो में जब यमुना की पारंपरिक डांस स्टाइल और उनकी ग्रेस लोगों को दोबारा देखने को मिली, तो सोशल मीडिया पर लोग उनकी तारीफों के पुल बांधने लगे। 33 साल बाद भी उनकी परफॉर्मेंस उतनी ही प्रभावशाली लग रही है।

और पढ़ें: Jacqueline Fernandez News: बीमार बच्चे के लिए फरिश्ता बनीं जैकलीन फर्नांडिज़, सर्जरी का उठाया पूरा खर्च”

Nepal Nepo Kid: गुच्ची बैग, महंगी घड़ियां और विदेशों में छुट्टियां; ये हैं नेपाल के &...

0

Nepal Nepo Kid: नेपाल में इन दिनों युवा आवाज़ों का गूंजता शोर सत्ता के गलियारों तक जा पहुंचा है। सोशल मीडिया से शुरू हुआ #NepoKids आंदोलन अब सड़कों पर उतर चुका है। जनरेशन-Z यानी आज की युवा पीढ़ी ने देश में फैले भ्रष्टाचार और परिवारवाद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इस जनज्वार का असर इतना गहरा हुआ कि नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को आखिरकार अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।

और पढ़ें: Lucky Bisht Viral Video: नेपाल में बवाल के बीच वायरल हुआ लकी बिष्ट का वीडियो, एक महीने पहले कर दी थी तख्तापलट की भविष्यवाणी

क्या है #NepoKids आंदोलन? Nepal Nepo Kid

सब कुछ शुरू हुआ एक ट्रेंड से  #NepoKids। इस हैशटैग के ज़रिए नेपाल के युवाओं ने सवाल उठाया कि आखिर नेताओं के बच्चों को सब कुछ इतना आसानी से क्यों मिल जाता है? क्यों एक आम छात्र नौकरी के लिए संघर्ष करता है और नेताओं के बच्चे विदेशों में ऐशो-आराम की ज़िंदगी जीते हैं? और वो भी आम जनता के टैक्स के पैसे से?

जेन-जी ने खुले तौर पर कहा कि ये ‘नेपो किड्स’ यानी नेताओं के बेटे-बेटियां देश की संपत्ति पर पल रहे हैं और जनता के हक़ पर डाका डाल रहे हैं।

कौन-कौन हैं ‘नेपो किड्स’ जिनसे जनता नाराज़ है?

बीना मगर

पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड की बहू और नेपाल की पूर्व जल मंत्री बीना पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। आरोप है कि उन्होंने ग्रामीण जल योजनाओं के बजट में हेराफेरी की और सरकारी पैसे से विदेश यात्राएं कीं।

सौगत थापा

सौगत, पूर्व कानून मंत्री बिंदु कुमार थापा के बेटे हैं। उन्होंने चैंबर ऑफ कॉमर्स का चुनाव जीता, लेकिन विरोधियों का आरोप है कि योग्यता नहीं, बल्कि पिता की पहुंच ने उन्हें ये कुर्सी दिलाई। उनका विदेशी रहन-सहन, महंगी गाड़ियों में घूमना और लग्ज़री लाइफस्टाइल जनता को खटकने लगी।

शिवाना श्रेष्ठा

नेपाल के पूर्व पीएम शेर बहादुर देउबा की बहू शिवाना भी इस लिस्ट में हैं। इंस्टाग्राम पर उनकी लक्ज़री लाइफ और महंगे कपड़ों के फोटो ने जनता को और नाराज़ कर दिया। लोग पूछ रहे हैं, “जब जनता गरीबी में जूझ रही है, तब ये नेता परिवार क्यों करोड़ों के शौक पूरे कर रहे हैं?”

श्रृंखला खतिवड़ा

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री बिरोध खतिवड़ा की बेटी श्रृंखला ने ‘मिस नेपाल वर्ल्ड’ का खिताब जीता। लेकिन युवाओं का आरोप है कि ये जीत भी पिता की पावर की देन है। विदेश में छुट्टियां और इंस्टाग्राम पर ग्लैमरस तस्वीरें इन्हीं वजहों से उनके एक लाख से ज्यादा फॉलोअर्स घट गए।

आंदोलन ने ली गंभीर शक्ल

ये गुस्सा अब सड़कों पर उतर चुका है। प्रदर्शनकारियों ने नेताओं के घरों के बाहर प्रदर्शन किए, कुछ जगहों पर तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाएं भी हुईं। काठमांडू समेत कई इलाकों में कर्फ्यू लगाना पड़ा। इनमें से कई ‘नेपो किड्स’ ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट डिएक्टिवेट कर लिए हैं।

क्यों भड़की जनता?

आपको बता दें, नेपाल लंबे वक्त से भ्रष्टाचार के मामलों में बदनाम रहा है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्टें दिखाती हैं कि नेपाल एशिया के सबसे भ्रष्ट देशों में गिना जाता है। पोखरा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के निर्माण में 71 मिलियन डॉलर की हेराफेरी और भूटानी शरणार्थी घोटाले में नेताओं की संलिप्तता ने लोगों का भरोसा तोड़ दिया।

यह आंदोलन सिर्फ एक सरकार या एक व्यक्ति के खिलाफ नहीं है। यह पूरे सिस्टम, उस ‘परिवारवादी राजनीति’ के खिलाफ गुस्सा है, जिसमें सत्ता केवल नेताओं की औलादों तक सिमटकर रह गई है।

पीएम ओली ने दिया इस्तीफा

73 वर्षीय प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली पर लगातार जनता और विपक्ष का दबाव बढ़ता गया। हालात इतने बिगड़ गए कि आखिरकार उन्होंने राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल को इस्तीफा सौंप दिया। उनके साथ कई अन्य वरिष्ठ मंत्रियों ने भी पद छोड़े।

राष्ट्रपति पौडेल ने जनता से शांति बनाए रखने की अपील की है और कहा है कि वह संवैधानिक दायरे में रहकर समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं।

और पढ़ें: ‘मैं मोदी जी से प्रभावित हूं’: Sushila Karki ने अंतरिम प्रधानमंत्री बनने के संकेत दिए