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Pune News: पुणे में पूर्व ACP ससुर पर बहू का आरोप – ‘बच्चा पैदा करने के लिए शारीरिक स...

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Pune News: पुणे से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने न सिर्फ पारिवारिक रिश्तों को कटघरे में खड़ा कर दिया है, बल्कि समाज और कानून व्यवस्था पर भी बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। यहां एक नवविवाहित महिला ने अपने ससुर, जो कि एक रिटायर्ड असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस (ACP) हैं, पर यौन उत्पीड़न और शारीरिक संबंध बनाने का दबाव डालने जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं।

महिला की ओर से दी गई पुलिस शिकायत में न सिर्फ ससुर, बल्कि उसके पति और सास को भी आरोपी बनाया गया है। पीड़िता का दावा है कि उसका पति बच्चा पैदा करने में असमर्थ है, और ये बात पूरे परिवार को पहले से पता थी।

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“ससुर के साथ संबंध बनाओ और बच्चा पैदा करो” Pune News

महिला ने शिकायत में बताया कि जब उसने पति की कमजोरी को लेकर इलाज या किसी और विकल्प की बात की, तो उसके पति और सास ने उसे हैरान करने वाला सुझाव दिया, “अपने ससुर के साथ संबंध बनाओ, ताकि बच्चा हो सके।”

महिला का कहना है कि उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया और उसके सामने बार-बार बच्चा पैदा करने का बहाना देकर शारीरिक संबंध बनाने का दबाव डाला गया।

हनीमून पर हुआ सच्चाई का खुलासा

महिला और उसका पति कुछ महीनों पहले शादी के बाद हनीमून पर महाबलेश्वर गए थे। वहां महिला ने पहली बार अनुभव किया कि पति के साथ शारीरिक संबंध नहीं बन पाए। बाद में पति ने खुद माना कि वो नपुंसक हैं।

इसके बाद जब महिला ने इस बारे में परिवार से बात की, तो किसी ने न डॉक्टर से सलाह ली, न किसी इलाज की पहल की उल्टा सास और पति ने उस पर ससुर के साथ संबंध बनाने का दबाव बनाया।

“बिना इजाजत कमरे में घुसता था ससुर”

NDTV की रिपोर्ट के अनुसार, महिला ने ये भी बताया कि उसका ससुर बिना पूछे उसके कमरे में आ जाता था। अकेले पाकर वह उस पर अश्लील बातें करता और बच्चा पैदा करने के नाम पर छूने की कोशिश करता।

महिला ने कहा कि यह कोई एक-दो बार की बात नहीं थी, बल्कि बार-बार ऐसा होता रहा। जब उसने इसका विरोध किया, तो सास और पति ने उल्टा उसे ही दोषी ठहराना शुरू कर दिया।

पुलिस ने दर्ज किया केस

महिला की शिकायत के बाद पुणे पुलिस ने पूर्व ACP, उनके बेटे (महिला के पति) और सास के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है। फिलहाल पुलिस ने जांच शुरू कर दी है और सभी पक्षों से पूछताछ की जा रही है।

अभी तक आरोपी परिवार की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।

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Vinesh Phogat: जुलाना दौरे पर फसलों की तबाही देखने पहुंचीं विनेश फोगाट, ग्रामीण बोले ...

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Vinesh Phogat: हरियाणा के जुलाना से कांग्रेस विधायक और अंतरराष्ट्रीय रेसलर रह चुकीं विनेश फोगाट को गुरुवार को अपने निर्वाचन क्षेत्र के दौरे पर ग्रामीणों के गुस्से का सामना करना पड़ा। भारी बरसात के कारण खेतों में भरे पानी और फसलें खराब होने की शिकायतों को लेकर विनेश फोगाट गांवों का जायजा लेने पहुंचीं, लेकिन बुआना गांव में उन्हें तीखी नाराजगी झेलनी पड़ी।

दरअसल, सरपंच संघ के जिला प्रधान सुधीर बुआना ने साफ शब्दों में कहा कि जब किसानों की परेशानी चरम पर थी, खेत डूब रहे थे, तब विधायक फोन तक नहीं उठा रही थीं। सुधीर ने आरोप लगाया, “100 से ज्यादा कॉल किए, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। अब जब 75% पानी उतर चुका है, तो दौरे का औचित्य क्या है?”

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“वोटों की ठगी” कहने पर भड़कीं विनेश- Vinesh Phogat

हालात उस वक्त और बिगड़ गए जब सरपंच प्रतिनिधि सुधीर ने यह तक कह दिया कि जुलाना की जनता के साथ वोटों की ठगी हुई है। उन्होंने कहा, “हमने मिलकर आपको जिताया था, लेकिन जब मुसीबत आई, तो आपने मुंह फेर लिया।” इस पर विनेश फोगाट का भी धैर्य जवाब दे गया और उन्होंने गुस्से में पलटकर कहा, “तो क्या अब मेरा भूत आया है?”

दोनों के बीच थोड़ी देर नोकझोंक चलती रही, जिसके बाद बीच-बचाव के लिए गांव के कुछ लोगों को आगे आना पड़ा। स्थिति शांत होने के बाद विनेश ने आगे का दौरा जारी रखा।

ग्रामीणों ने जताई नाराजगी

बुआना के साथ-साथ करेला, झमौला, खरैंटी, बराड़ खेड़ा, मालवी और देवरड़ गांवों में भी विनेश ने जायजा लिया। हालांकि कई ग्रामीणों ने यह भी कहा कि विधायक का यह दौरा सिर्फ औपचारिकता भर लग रहा है। कुछ लोगों का कहना था कि चुनाव जीतने के बाद यह पहला दौरा है, जबकि फसलें खराब होते समय विधायक ने कोई सक्रियता नहीं दिखाई।

किसानों को मिला भरोसा

विनेश फोगाट ने हालांकि सभी जगह किसानों से बातचीत की और उन्हें भरोसा दिलाया कि उनकी समस्याओं का समाधान जल्द कराया जाएगा। उन्होंने प्रशासन और संबंधित विभागों को निर्देश दिए कि खेतों से पानी की निकासी जल्द से जल्द हो, ताकि जो फसलें बची हैं, उन्हें नुकसान से बचाया जा सके।

उन्होंने यह भी कहा कि नुकसान का आकलन करवाकर किसानों को मुआवजा दिलाया जाएगा। फोगाट ने दावा किया कि वह किसानों के साथ हैं और उनकी चिंता समझती हैं।

बरसात से भारी नुकसान

जुलाना क्षेत्र में इस बार भारी बरसात के कारण कई गांवों के खेतों में पानी भर गया, जिससे किसानों की खड़ी फसलें पूरी तरह बर्बाद हो गईं। ग्रामीणों की मांग है कि इस नुकसान की भरपाई की जाए और भविष्य में जलभराव से बचने के लिए स्थायी समाधान निकाला जाए।

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Supreme Court News: क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी पर तय हो सकती है टाइम लिमिट...

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Supreme Court News: राज्य विधानसभाओं में पास किए गए विधेयकों को राष्ट्रपति या राज्यपाल कब तक मंजूरी देंगे, क्या इसकी कोई समयसीमा तय की जा सकती है? इस संवैधानिक सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने करीब 10 दिन की लंबी बहसों के बाद गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

यह मामला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय मांगने से जुड़ा है। दरअसल, राष्ट्रपति ने जानना चाहा था कि क्या कोर्ट यह तय कर सकता है कि राज्यपाल या राष्ट्रपति, विधानसभा से पारित बिलों को मंजूरी देने में कितने समय तक का विवेकाधिकार इस्तेमाल कर सकते हैं या नहीं।

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राष्ट्रपति का यह संदर्भ तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित विधेयकों से निपटने में राज्यपाल की शक्तियों पर उच्चतम न्यायालय के आठ अप्रैल के फैसले के बाद आया था।

कौन-कौन जज थे बेंच में? Supreme Court News

इस मामले की सुनवाई संविधान पीठ के पांच सदस्यों की बेंच कर रही थी, जिसमें चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की जगह इस बार CJI बीआर गवई मौजूद थे। उनके साथ बेंच में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रमनाथ, जस्टिस पी एस नरसिम्हा, और जस्टिस ए एस चंदुरकर भी शामिल थे।

सुनवाई के दौरान जहां गहन कानूनी बहसें चलीं, वहीं कुछ हल्के-फुल्के पल भी देखने को मिले। एक दिलचस्प मोड़ तब आया जब बहस के दौरान ब्रेक हुआ और जज आपस में बातचीत में मशगूल हो गए। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मजाक में कहा, “काश मैंने लिप रीडिंग सीखी होती, ताकि पता चलता आप क्या चर्चा कर रहे हैं!”

CJI गवई ने सुनाए पुराने किस्से

इस मौके पर CJI गवई ने बंबई हाईकोर्ट के एक पूर्व जज को याद करते हुए बताया कि कैसे वो बहस के दौरान ड्रॉइंग बनाते थे या लकड़ी से कला रचते थे, लेकिन फैसले सुनाने में पीछे रह जाते थे। उन्होंने कहा कि हम आज भी पूरी सुनवाई गंभीरता से लेते हैं और फैसला पूरी तरह कानूनी पहलुओं पर ही आधारित होता है।

CJI ने दिल्ली के वकीलों की पढ़ने की स्पीड को लेकर भी मजाक में कहा, “मैं 2019 में सुप्रीम कोर्ट में आया था, लेकिन अब भी दिल्ली के वकीलों की स्पीड के साथ मेल नहीं बैठा पाता।” उन्होंने बताया कि वो और बाकी जज 5000 पन्नों तक के दस्तावेज बारीकी से पढ़ते हैं, जिससे कई बार बहस के दौरान खो भी जाते हैं।

इस पर जस्टिस नरसिम्हा ने कहा, “यह नई पीढ़ी के वकीलों के लिए एक संदेश है कि पढ़ना छोड़ने की आदत न डालें।”

अब आगे क्या?

कोर्ट ने इस संवैधानिक मामले पर अपनी सुनवाई पूरी कर ली है और फैसला सुरक्षित रख लिया है। अब पूरे देश की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर टिकी हैं, जो तय करेगा कि क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति को विधेयकों पर फैसला देने के लिए कोई तय समयसीमा बांधी जा सकती है या नहीं।

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Japan Railgun Speed: ‘तोपें पुराने ज़माने की बात हैं!’ जापान नेवी ने समुद...

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Japan Railgun Speed: जापान ने हाल ही में एक ऐसा कारनामा कर दिखाया है, जिसने भविष्य की जंग की तस्वीर ही बदल दी है। जापान की नेवी ने पहली बार अपने युद्धपोत से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेलगन का सफल टेस्ट किया है। यह ट्रायल समुद्र में मौजूद एक असली टारगेट शिप पर किया गया और बिल्कुल सटीक तरीके से अंजाम दिया गया। इस टेस्ट के साथ ही जापान ने साफ कर दिया है कि अब परंपरागत तोपों और बारूद के दिन लदने वाले हैं।

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जापान के रक्षा मंत्रालय के तहत काम करने वाली Acquisition, Technology & Logistics Agency (ATLA) ने इस कामयाबी की जानकारी साझा की। एजेंसी ने बताया कि यह टेस्ट जून से जुलाई 2025 के बीच नौसेना के ट्रायल शिप JS Asuka से किया गया। ATLA ने रेलगन टेस्ट की चार तस्वीरें भी जारी कीं और कहा, “यह पहली बार है जब किसी वारशिप से रेलगन का परीक्षण किया गया और वह भी सीधे एक वास्तविक जहाज पर।”

क्या होती है रेलगन? Japan Railgun Speed

अब आप सोच रहे होंगे कि ये रेलगन आखिर है क्या चीज? दरअसल, यह एक ऐसा हथियार है जो परंपरागत गोला-बारूद की बजाय बिजली की ताकत से प्रोजेक्टाइल को लॉन्च करता है। इसमें इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फोर्स का इस्तेमाल होता है, जिससे प्रोजेक्टाइल को इतनी ज्यादा स्पीड मिलती है कि वो भारी-भरकम तोप से दागे गए गोले से कहीं ज्यादा ताकतवर साबित होता है।

जापान की ये रेलगन करीब Mach 6.5 की स्पीड यानी लगभग 8,000 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से फायर कर सकती है। खास बात यह रही कि 120 बार लगातार फायर करने के बाद भी इसके बैरल की परफॉर्मेंस में कोई गिरावट दर्ज नहीं हुई।

अमेरिका और चीन भी पीछे नहीं

रेलगन टेक्नोलॉजी को लेकर चीन और अमेरिका भी लंबे वक्त से काम कर रहे हैं। चीन के भी कुछ सफल ट्रायल की खबरें सामने आई हैं, लेकिन अब तक वो इसे अपने बेड़े में शामिल नहीं कर पाया है।
दूसरी ओर अमेरिका ने इस पर अरबों डॉलर झोंक दिए, लेकिन 2021 में इसे तकनीकी दिक्कतों और खर्चीले बजट की वजह से बंद करना पड़ा। अब जापान इस रेस में सबसे आगे निकल गया है और इसे जल्दी ही अपने डिफेंस सिस्टम में तैनात करने की दिशा में बढ़ रहा है।

क्यों गेम चेंजर है ये हथियार?

जापान के डिफेंस एक्सपर्ट मसाशी मुरानो ने जापान टाइम्स से बातचीत में बताया कि हाई-स्पीड एंटी-शिप मिसाइलों को रोकना आज के समय में बेहद मुश्किल होता जा रहा है। ऐसे में रेलगन एक बड़ा समाधान बनकर उभरा है। इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि यह मिसाइलों की तुलना में सस्ती है और दुश्मन के हथियारों को हाई-स्पीड में टारगेट कर सकती है।

इसके अलावा, रेलगन से एयरबर्स्ट म्युनिशन भी फायर किए जा सकते हैं जो हवा में ही फटकर चारों ओर खतरनाक टुकड़े फैला देते हैं। यह तकनीक खासतौर पर ड्रोन और मिसाइल जैसी हवाई चुनौतियों से निपटने में बेहद प्रभावशाली साबित हो सकती है।

केवल नेवी तक सीमित नहीं रहेगा यह हथियार

जापान की योजना है कि रेलगन को केवल नौसेना तक ही सीमित न रखा जाए, बल्कि इसे जमीनी प्लेटफॉर्म पर भी तैनात किया जाए। इससे न सिर्फ दुश्मन के आर्टिलरी यूनिट्स को दूर से निशाना बनाया जा सकेगा, बल्कि तटीय इलाकों की सुरक्षा भी मजबूत होगी।
ATLA इस समय रेलगन की उड़ान स्थिरता, फायर कंट्रोल सिस्टम और इसकी निरंतर फायरिंग क्षमता को बेहतर बनाने पर फोकस कर रही है। हालांकि, इसकी अधिकतम रेंज और रैपिड फायर की डिटेल्स अभी सार्वजनिक नहीं की गई हैं।

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संतान की लंबी उम्र के लिए बांधा गया धागा कब और कैसे करें विसर्जित, जानें सही तरीका

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Jitiya Vrat 2025: जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत माताओं द्वारा अपनी संतान की लम्बी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए किया जाने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण और कठिन व्रत है। इस व्रत में महिलाएं अपनी संतान की सुरक्षा के लिए एक विशेष धागा भी धारण करती हैं, जिसे जितिया धागा कहते हैं। तो चालिए आपको इस लेख में जितिया व्रत कब है? और जितिया धागे का क्या महत्व है इस धागे से जुड़े नियम और इसके विसर्जन की विधि  के विस्तार से बताते हैं।

जितिया धागे का महत्व

यह धागा लाल और पीले रंग का होता है, जिसे शक्ति, भक्ति, पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। महिलाएं पूजा के दौरान भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद इस धागे को अपने गले या हाथ में धारण करती हैं। यह धागा संतान की रक्षा के लिए सुरक्षा कवच का काम करता है।

इस धागे को जितिया व्रत के पारण के बाद ही उतारना चाहिए। व्रत पूरा होने से पहले इसे नहीं उतारना चाहिए, क्योंकि यह व्रत का एक अभिन्न अंग है। पारण के बाद माताएँ श्रद्धापूर्वक इस धागे को अपने गले या हाथ से उतार सकती हैं। धागा उतारते समय मन ही मन अपनी संतान की दीर्घायु और कल्याण की कामना करनी चाहिए।

जितिया धागा विसर्जन के नियम

जितिया धागा विसर्जन करते समय कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है। जैसे जितिया धागा विसर्जन के लिए सबसे उपयुक्त स्थान किसी पवित्र नदी या तालाब का जल है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस धागे में निहित सकारात्मक ऊर्जा जल में प्रवाहित होकर प्रकृति में वापस मिल जाती है। इसे विसर्जित करते समय सूर्य देव और जीमूतवाहन देवता से अपनी संतान के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।

वही अगर यदि आपके आस-पास कोई नदी या तालाब नहीं है, तो आप इस धागे को पीपल के पेड़ के नीचे रख सकते हैं। पीपल का पेड़ पूजनीय माना जाता है और इसे देवस्थान के समान माना जाता है। धागे को पेड़ की जड़ के पास रखने से भी व्रत का पुण्य फल प्राप्त होता है।

गलती से भी न करें ये भूल 

जितिया धागे को कभी भी कूड़ेदान या किसी अपवित्र स्थान पर नहीं फेंकना चाहिए। इसे व्रत की पवित्रता और आस्था का अपमान माना जाता है और ऐसा करने से व्रत का फल नष्ट हो सकता है। इस धागे को घर में ज़्यादा देर तक नहीं रखना चाहिए, बल्कि नियमानुसार तुरंत विसर्जन कर देना चाहिए।

इसके अलवा आपको बता दें, जितिया व्रत 14 सितंबर 2025, रविवार के दिन है। जिसके एक दिन पहले नहाय-खाय जाता है यानी 13 सितंबर 2025 को ये विधि की है। वही व्रत का समापन 15 सितंबर 2025 किया जायेगा। ध्यान देने वाली बाद यह जानकारी सामान्य मान्यताओं और धार्मिक ग्रंथों पर आधारित है। कृपया अपनी परंपराओं और मान्यताओं के अनुसार इन नियमों का पालन करें।

Caste discrimination in cities: शहरी हवा में भी जातिवाद जिंदा है — बस वो अब अंग्रेज़ी...

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Caste discrimination in cities: जाती के नाम पर भेदभाव अब भी मौजूद है, ये बात अगर किसी गांव की होती तो शायद आप सर हिला देते, “हां, वहां तो होता ही है…”
लेकिन क्या हो अगर हम कहें कि आज मुंबई, दिल्ली, बैंगलुरु जैसे शहर जिन्हें हम ‘प्रगतिशील’, ‘एजुकेटेड’ और ‘आधुनिक’ कहते हैं वहीं पर जातिवाद सबसे शातिर और छिपे हुए तरीके से ज़िंदा है?

‘’हां, अब जाति पूछी नहीं जाती, खोजी जाती है — आपके नाम से, आपकी भाषा से, खाने के तरीकों से, और कभी-कभी तो सिर्फ आपकी चुप्पी से।

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और यही बात डरावनी है। कहने को तो शहरों को ‘मेट्रो सिटीज’, ‘डायवर्स’, और ‘प्रोग्रेसिव’ कहा जाता है पर सच्चाई ये है कि जातिवाद यहां भी ज़िंदा है। फर्क बस इतना है कि गांवों में ये ज़ोर से चिल्लाता है, और शहरों में धीमे से कान में फुसफुसाता है।

तो आज बात करेंगे उस शहरी जातिवाद की, जो दिखता नहीं लेकिन हर जगह मौजूद है। कभी कॉलेज की कैंटीन में, कभी ऑफिस की मीटिंग में, कभी किराए के फ्लैट के बाहर, और कभी रिश्तों के अंदर।
और सबसे डरावनी बात? हम में से कई लोग इसे ‘नॉर्मल’ मान चुके हैं।

जाति सिर्फ गांवों में नहीं, शहरों में भी है मौजूद- Caste discrimination in cities

हमारा मानना है कि शहरों में जाति जैसी पुरानी सोच खत्म हो गई है, लेकिन हकीकत इसके बिलकुल उलट है। शहरों में जाति भेदभाव अब खुले तौर पर नहीं दिखता, लेकिन वह और भी परतदार और चालाकी से पनप रहा है। मुंबई, दिल्ली जैसे महानगरों में भी जाति के नाम पर भेदभाव होता है चाहे वह हाउसिंग मार्केट हो, नौकरी के मौके हों, या यहां तक कि सामाजिक संबंध हों।

2022 में Political and Economic Weekly ने मुंबई और दिल्ली के बारे में एक रिसर्च प्रकाशित की। इसमें पाया गया कि शहरों के हाउसिंग मार्केट्स में भी जाति आधारित सेग्रिगेशन मौजूद है। उच्च जातियों के लोग बेहतर इलाकों में रहते हैं, जबकि अनुसूचित जाति-जनजाति (SC/ST) और मुस्लिम समुदाय के लोग गरीब क्षेत्रों में रहने को मजबूर हैं, जहां पानी, स्वच्छता और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं भी ठीक से उपलब्ध नहीं होतीं। धारावी जैसे इलाके मुंबई में इसी समस्या का ज्वलंत उदाहरण हैं।

शहरों में जाति, धर्म और वर्ग का नक्शा

आपको जानकर हैरानी होगी कि शहरों का नक्शा केवल सड़कों और इमारतों से नहीं बनता, बल्कि इससे कहीं ज़्यादा वह तय करता है कि किसे कहां रहने दिया जाएगा और किन्हें बाहर रखा जाएगा।

डॉ. असफ़ अली लोन, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के शोधकर्ता, कहते हैं कि आज की “अछूतता” फिज़िकल नहीं रही, बल्कि “संस्थागत अछूतता” बन चुकी है। जहां नीति-निर्माण के ज़रिए कुछ समुदायों को शहर के केंद्रों से दूर, गंदगी और कचरे के ढेर के बीच जीने के लिए मजबूर किया जाता है।

डॉ. सुष्मिता पाटी, एनएलएसआईयू बेंगलुरु में राजनीतिक विज्ञान की प्रोफेसर, कहती हैं कि ये कोई नई प्रक्रिया नहीं है। बल्कि ये एक सतत ऐतिहासिक प्रक्रिया है, जिसमें भारत के शहर “एक जाति और वर्ग विशेष के लिए” डिज़ाइन किए जाते हैं।

दिल्ली का उदाहरण: 1947 से शुरू हुआ बहिष्कार

देश के विभाजन के बाद जब दिल्ली में पुनर्वास की नीतियाँ बनाई गईं, तब अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और तथाकथित “अछूत” समुदायों के लिए कोई जगह नहीं रखी गई। CR पार्क, निजामुद्दीन और किंग्सवे कैंप जैसे इलाकों में ‘प्रिविलेज्ड’ लोगों को बसाया गया, जबकि दलितों को रेगरपुरा जैसे किनारे के क्षेत्रों में जगह दी गई – वो भी कच्चे मकानों में।

लेखिका रविंदर कौर लिखती हैं कि इन सरकारी पुनर्वास योजनाओं में ‘जाति’ शब्द कहीं दर्ज नहीं था, लेकिन पूरी योजना उसी के हिसाब से बनाई गई थी।

‘स्लम’ क्यों बनते हैं?

वहीं, जब शहरों में जाति या धर्म के आधार पर बस्तियों का निर्माण किया जाता है, तो कुछ इलाकों में मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी होती है, जैसे की पीने का साफ पानी, सफाई, स्वास्थ्य सेवाएं और यहां तक कि राशन कार्ड भी नहीं। इन्हीं को “प्लानिंग ब्लैक होल” कहा गया है।

डॉ. लोन बताते हैं कि शहरों में घरों की कमी का बहाना अक्सर झूठा होता है। असल समस्या है असमान संसाधन वितरण जैसे ज़मीन, पानी, स्कूल, हॉस्पिटल, पार्क ये सब कुछ चंद खास लोगों को मिलता है। बाकी जनता को जैसे-तैसे गुज़ारा करना पड़ता है।

धार्मिक आधार पर भेदभाव: अहमदाबाद का उदाहरण

2020 के एक शोध में अहमदाबाद के दो इलाकों – जूहापुरा (मुस्लिम बहुल) और योगेश्वर नगर (हिंदू बहुल) की तुलना की गई। नतीजे चौंकाने वाले थे: जूहापुरा में नाले भरे हुए, सड़कें टूटी हुई और पानी असुरक्षित था।

यही पैटर्न अन्य शहरों में भी पाया गया – चाहे वो भोपाल हो, मुंबई या दिल्ली।

रेंटल मार्केट में भेदभाव और ‘अच्छे परिवार’ की परिभाषा

शहरों में रहने के लिए मकान खोजना भी आसान नहीं, खासकर उनके लिए जो दलित, मुस्लिम, आदिवासी या सिंगल हैं।

इंतिखाब असलम (35), जो नोएडा में एक बेहतर घर तलाश रहे थे, बताते हैं कि एक बुजुर्ग मकान मालिक उन्हें देखकर खुश थे, लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि वे ‘पंजाबी’ या ‘कश्मीरी’ नहीं हैं, और एक मुसलमान हैं, तो उनका चेहरा उतर गया।

सुष्मिता पाटी बताती हैं कि “रेंटल हाउसिंग मार्केट में भेदभाव इतना गहरा है कि दलित, मुसलमान, या अकेली महिलाएं मकान पाने के लिए झूठ तक बोलने को मजबूर हो जाती हैं।”

क्या है हल?

मॉडल टेनेंसी एक्ट में हाल ही में कुछ बदलाव किए गए हैं जैसे बिना कारण किरायेदार को निकालना मुश्किल हुआ है और लिखित एग्रीमेंट अनिवार्य किया गया है। मगर भेदभाव पर कोई ठोस रोक अब भी नहीं है।

डॉ. सुष्मिता कहती हैं कि हमें ऐसे कानूनों की ज़रूरत है जो किरायेदारों के अधिकारों को जाति, धर्म, वर्ग या लिंग से ऊपर रखकर सुरक्षित करें।

डॉ. असफ़ सुझाव देते हैं कि कानून बनाने की प्रक्रिया “ऊपर से नीचे” नहीं, बल्कि “नीचे से ऊपर” होनी चाहिए ताकि जो लोग हाशिए पर हैं, उनकी असल ज़िंदगी की मुश्किलें भी कानून में दिखें।

नौकरी और करियर में जाति का साया

हालांकि, जाति की दीवारें सिर्फ घर तक सीमित नहीं हैं। 2023 में Oxfam India और News Laundry की रिपोर्ट बताती है कि मीडिया सेक्टर में लगभग 90% नेतृत्व की भूमिकाएं उच्च जाति के लोगों के पास हैं। SC/ST समुदाय के लोग इस स्तर तक पहुंच नहीं पाते। यही हाल टेक, बैंकिंग और कानूनी क्षेत्रों का भी है।

IM Bangalore की एक स्टडी में यह भी दिखा कि एक जैसी जाति वाले फर्म्स का मर्जर (विलय) ज्यादा सफल रहता है, जबकि विभिन्न जातियों के बीच मर्जर के वित्तीय परिणाम कमतर होते हैं। मतलब ये कि हायरिंग और प्रमोशन में जाति का खेल गुप्त तरीके से चलता रहता है।

ऐसे में 2025 में बेंगलुरु के दलित ट्रेनी पायलट शरण कुमार का अनुभव भी चौंकाने वाला है, जिन्होंने इंडिगो में जातिगत भेदभाव का सामना किया। ऑफिस में उन्हें अपमानित किया गया, सैलरी कटौती की गई और उन्हें नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। हालांकि उन्होंने शिकायत दर्ज करवाई, पर कंपनी ने अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।

प्लानिंग से लेकर पॉलिसी तक, भेदभाव ही नीति

अब एक और चौंकाने वाली बात सुनिए, 1930 के दशक में न्यूयॉर्क के मेयर रॉबर्ट मोसेस ने जानबूझकर पुलों की ऊंचाई कम कर दी, ताकि बसें (जो गरीबों की सवारी थीं) उस रास्ते से न जा सकें। यह योजना इस मकसद से बनी थी कि उस एरिया को अमीरों के लिए आरक्षित रखा जाए।

भारत में भी कई शहरों की योजनाएं ठीक इसी तर्ज पर बनती हैं।

जमील ग़ज़ाला, जो शहरी विभाजन पर शोध करती हैं, कहती हैं कि सरकारें लोगों की कमाई और श्रम को महत्व देती हैं, पर उनके “जीवन की जरूरतों” को नहीं।

शादी और डेटिंग में जाति की सच्चाई

आपको जानकारी हैरानी होगी कि आज के डिजिटल युग में जहां ऑनलाइन डेटिंग और मैट्रिमोनियल साइट्स युवाओं के बीच लोकप्रिय हैं, वहां भी जाति का साया बरकरार है। 2021 के एक रिसर्च के मुताबिक, शादी.com पर लगभग 60% उपयोगकर्ता जाति आधारित फिल्टर लगाते हैं। यानि ज्यादातर लोग अपनी जाति के अंदर ही शादी करना चाहते हैं।

यह समस्या सिर्फ शादी तक सीमित नहीं है। डेटिंग ऐप्स जैसे टिंडर और बंबल पर भी दलित महिलाओं को गॉस्टिंग और रिजेक्शन का सामना करना पड़ता है, खासकर जब उनके प्रोफाइल में ‘अंबेडकर राइट’ या ‘बहुजन’ जैसे शब्द होते हैं।

एक नहीं, कई शहर हैं हमारे बीच

शहर अब सिर्फ भौगोलिक रूप से नहीं, बल्कि सामाजिक रूप से भी टुकड़ों में बंट चुके हैं एक शहर अमीरों का है, एक शहर गरीबों का, एक दलितों का, और एक मुसलमानों का।

इन अलग-अलग शहरों की सच्चाई तब तक नहीं बदलेगी, जब तक हमारी सोच, योजनाएं और कानून सभी इंसानों के लिए एक जैसे न हों।

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Manoj Bajpayee-Anurag Kashyap: दुश्मन बना लिए, हाथ तोड़ लिया… अनुराग के गुस्से पर बोल...

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Manoj Bajpayee-Anurag Kashyap: बॉलीवुड में कई ऐसी जोड़ियां हैं जो ऑन-स्क्रीन तो हिट रहीं, लेकिन उनके पीछे की ऑफ-स्क्रीन कहानी कहीं ज़्यादा दिलचस्प रही है। ऐसी ही एक जोड़ी है मनोज बाजपेयी और अनुराग कश्यप की। दोनों का रिश्ता जितना गहरा है, उतना ही उतार-चढ़ाव भरा भी रहा है। ‘सत्या’ से शुरू हुई ये जर्नी ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ तक आते-आते गुस्से, गलतफहमियों और फिर मेल-मिलाप से होकर गुजरी।

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शुरुआत: ‘सत्या’, ‘शूल’ और दोस्ती की नींव- Manoj BajpayeeAnurag Kashyap

मनोज और अनुराग की पहली मुलाकात 1998 की कल्ट फिल्म सत्या के सेट पर हुई थी। अनुराग उस फिल्म के लेखक थे और मनोज, ‘भीकू म्हात्रे’ जैसे यादगार किरदार को जीवंत कर रहे थे। इसके बाद दोनों ने ‘शूल’ और ‘कौन’ जैसी फिल्मों में साथ काम किया। उस समय दोनों ही इंडस्ट्री में अपनी जगह बना रहे थे और दोनों के अंदर एक बात कॉमन थी वो था गुस्सा।

हाल ही में बॉलीवुड हंगामा से बातचीत में मनोज ने कहा कि अनुराग के साथ उनका रिश्ता फिल्मों से नहीं, बल्कि उनके गुस्से से जुड़ा है। उन्होंने कहा,
“अनुराग अपने सिद्धांतों पर अडिग हैं। इसी वजह से उन्होंने बहुत दुश्मन बना लिए हैं। कभी गुस्से में शीशा तोड़ दिया, कभी अपना ही हाथ तोड़ लिया। बीमार भी पड़े, लेकिन पीछे नहीं हटे।”

मनोज भी हैं गुस्से वाले, लेकिन…

मनोज ने खुद को भी गुस्सैल बताया, लेकिन थोड़ा प्रैक्टिकल टाइप। उनका मानना है कि अनुराग का गुस्सा अक्सर सोशल मीडिया तक पहुंच जाता है।
“जिस दिन वो ट्रोल्स को जवाब देने लगते हैं, मैं समझ जाता हूं कि अनुराग आज बैलेंस में नहीं हैं,” मनोज ने हंसते हुए कहा।

लेकिन दोनों के बीच सिर्फ आपसी समझ ही नहीं, टकराव भी रहा है। दरअसल, एक बार ऐसी अनबन हुई कि दोनों ने एक-दूसरे से 11 साल तक बात नहीं की।

11 साल की दूरी और एक कॉल

द लल्लनटॉप को दिए इंटरव्यू में मनोज ने बताया कि उन्हें लगने लगा था कि अनुराग अब उनकी तरह की फिल्में नहीं बना रहे। इसी बीच किसी तीसरे ने अनुराग को मनोज के खिलाफ भड़काया। अनुराग दूसरों की बातों पर जल्दी भरोसा कर लेते हैं, और इसी गलतफहमी ने दोनों के बीच दरार डाल दी।

फिर आया साल जब अनुराग की देव D रिलीज़ हुई। मनोज को फिल्म इतनी पसंद आई कि उन्होंने खुद अनुराग को कॉल कर उनकी तारीफ की। बात तो हुई, लेकिन फिर भी दोनों के बीच कोई खास रिश्ता नहीं बना। दो साल तक फिर से कोई कॉन्टैक्ट नहीं रहा।

‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ बना टर्निंग पॉइंट

असली सुलह तब हुई जब अनुराग ने मनोज को गैंग्स ऑफ वासेपुर ऑफर की। मनोज स्क्रिप्ट सुनने आधी रात को अनुराग के ऑफिस पहुंचे। वहां उन्होंने पूरी कहानी सुनी, एक-दूसरे से गले मिले, और इस तरह दो दोस्तों की वापसी हुई।

फिल्म ने कमाल किया। मनोज का किरदार ‘सरदार खान’ आज भी उनके करियर का सबसे स्ट्रॉन्ग रोल माना जाता है। अनुराग के निर्देशन में बनी इस फिल्म ने दोनों की दोस्ती को फिर से मजबूती दी और एक बार फिर दर्शकों को एक आइकॉनिक कोलैबोरेशन देखने को मिला।

अब क्या कर रहे हैं मनोज?

बता दें, मनोज बाजपेयी इन दिनों इंस्पेक्टर झेंडे नाम की फिल्म में नजर आ रहे हैं, जो 5 सितंबर को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो चुकी है। ये फिल्म एक असली पुलिस ऑफिसर मधुकर झेंडे की कहानी पर आधारित है, जिन्होंने कुख्यात सीरियल किलर चार्ल्स शोभराज को पकड़ा था।

फिल्म का डायरेक्शन चिन्मय मांडलेकर ने किया है और इसमें मनोज के अलावा जिम सार्भ, सचिन खेड़ेकर, गिरिजा ओक, भालचंद्र कदम और वैभव मांगले जैसे मंझे हुए कलाकार नजर आए हैं।

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Lucky Bisht Viral Video: नेपाल में बवाल के बीच वायरल हुआ लकी बिष्ट का वीडियो, एक महीन...

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Lucky Bisht Viral Video: नेपाल में इन दिनों माहौल पूरी तरह से अशांत बना हुआ है। सोशल मीडिया पर बैन के खिलाफ जनरल Z यानी नई पीढ़ी ने जबरदस्त आंदोलन छेड़ दिया, जो धीरे-धीरे हिंसक हो गया। हालात इतने बिगड़े कि कई लोगों की जान चली गई और आखिरकार प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इस पूरे राजनीतिक तूफान के बीच एक नाम अचानक से चर्चा में आ गया वो है लकी बिष्ट। सोशल मीडिया पर उनका एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें उन्होंने तकरीबन एक महीने पहले ही नेपाल में सत्ता पलटने की भविष्यवाणी कर दी थी।

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लकी बिष्ट ने पहले ही कर दी थी भविष्यवाणी- Lucky Bisht Viral Video

वायरल हो रहे इस वीडियो में लकी बिष्ट बड़े आत्मविश्वास के साथ कहते नजर आ रहे हैं, “आज 12 तारीख है, इसे नोट कर लीजिए। कुछ ही दिनों में नेपाल से जुड़ी एक बड़ी खबर आएगी कि वहां की सरकार गिर गई है।” उन्होंने आगे कहा था कि ये बात लोगों को चौंका सकती है, लेकिन इसे याद रखें, क्योंकि 10-15 दिन में यही खबर दोबारा सुर्खियों में होगी कि नेपाल की सरकार जो कुछ महीने पहले बनी थी, फिर से गिर गई है।

 

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नेपाल की मौजूदा स्थिति पर क्या बोले लकी बिष्ट?

वहीं, नेपाल में चल रही उथल-पुथल के बीच लकी बिष्ट ने एक इंटरव्यू में मौजूदा हालात पर अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि यह प्रदर्शन सिर्फ सोशल मीडिया बैन के खिलाफ नहीं है, बल्कि लोगों का गुस्सा लंबे समय से सरकार की नीतियों के खिलाफ था। उन्होंने पीएम केपी शर्मा ओली पर चीन की तरफ झुकाव रखने का आरोप लगाया और कहा कि नेपाल की सरकार अमेरिका के खिलाफ बयान दे रही है जबकि खुद चीन की गोद में बैठी है।

लकी बिष्ट के मुताबिक, सोशल मीडिया बैन चीन के इशारे पर किया गया था, लेकिन नेपाल की जनता ने इस फैसले को नकार दिया। उन्होंने यह भी कहा कि पूरे हालात की जिम्मेदारी किसी बाहरी देश पर नहीं, बल्कि खुद ओली सरकार पर है।

अब आगे क्या?

ओली के इस्तीफे के बाद नेपाल में फिलहाल अंतरिम सरकार बनाने की प्रक्रिया जारी है। वहीं दूसरी तरफ देश में इंटरनेट और अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर बहस तेज हो गई है। सोशल मीडिया पर लोग लकी बिष्ट के वीडियो को खूब शेयर कर रहे हैं और इस बात पर चर्चा हो रही है कि क्या उन्होंने वाकई कोई खुफिया जानकारी के आधार पर यह दावा किया है।

आखिर कौन हैं लकी बिष्ट?

लकी बिष्ट खुद को पूर्व NSG कमांडो और RAW एजेंट बताते हैं। उनका दावा है कि उन्होंने सिर्फ 16 साल की उम्र में देश की सबसे बड़ी खुफिया एजेंसी के लिए काम करना शुरू कर दिया था। हालांकि उनका नाम विवादों में भी रहा है। साल 2011 में उन पर एक गैंगस्टर की हत्या का आरोप लगा और उन्हें जेल जाना पड़ा। लेकिन साल 2018 में सबूतों की कमी के चलते अदालत ने उन्हें बरी कर दिया।

हल्द्वानी (उत्तराखंड) के रहने वाले लकी बिष्ट अब फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं और स्क्रिप्ट राइटिंग का काम कर रहे हैं। वह बॉलीवुड के लिए कहानियां लिख चुके हैं।

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Sarva Pitru Amavasya 2025: कब है सर्वपितृ अमावस्या, इस शुभ मुहूर्त में करें तर्पण, मि...

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Sarva Pitru Amavasya: हिन्दू मान्यता के मुताबिक हर महीने एक अमावस्या आती है इस दिन लोग अपने पितरो के नाम से दान देते है। ऐसी ही एक सर्व पितृ अमावस्या है जो साल 2025 में सर्व पितृ अमावस्या 21 सितंबर, रविवार को है। यह पितृ पक्ष का अंतिम दिन है, जिसे पितरों की विदाई का दिन माना जाता है। इस दिन उन सभी पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है या जिनका श्राद्ध आप करना भूल गए हैं। तो चलिए आपको इस लेख पितृ अमावस्या के शुभ मुहूर्त के बारे में विस्तार से बताते है।

तर्पण का सबसे शुभ मुहूर्त

कुटुप मुहूर्त: दोपहर 12:08 से 12:57 बजे तक

रोहिणी मुहूर्त: दोपहर 12:57 से 1:45 बजे तक

दोपहर का समय: दोपहर 1:45 से 4:11 बजे तक

तर्पण विधि – सर्व पितृ अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके तर्पण करें। तर्पण के लिए हाथ में जौ, कुश और काले तिल लेकर जल अर्पित करें और ‘ॐ पितृ देवतायै नमः’ मंत्र का जाप करें। साथ ही अपने पूर्वजों का स्मरण करें और उनका नाम लेकर जल अर्पित करें। इसके अलवा तर्पण के बाद ब्राह्मणों या ज़रूरतमंदों को भोजन कराएँ और दान-दक्षिणा दें।

सर्व पितृ अमावस्या की विशेषताएँ

पितरों की विदाई – यह पितृ पक्ष का अंतिम दिन होता है, जब पूर्वज अपने लोक वापस चले जाते हैं। इस दिन विधि-विधान से तर्पण करने पर वे प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं।

अज्ञात तिथि का श्राद्ध – जिन पूर्वजों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है, उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है।

अपूर्ण श्राद्ध की पूर्ति – यदि किसी कारणवश पितृ पक्ष में किसी पूर्वज का श्राद्ध नहीं हो पाया हो, तो उनका श्राद्ध सर्व पितृ अमावस्या को किया जा सकता है।

पितृ ऋण से मुक्ति – इस दिन तर्पण, पिंडदान और दान करने से व्यक्ति पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

सूर्य ग्रहण का संयोग – इस बार सर्व पितृ अमावस्या पर सूर्य ग्रहण का भी संयोग है, हालाँकि यह भारत में दिखाई नहीं देगा और इसका सूतक काल भी मान्य नहीं होगा। फिर भी इस दिन दान-पुण्य करना विशेष फलदायी माना जाता है।

Sharad Purnima 2025 Date: 6 या 7 अक्टूबर? जानें शरद पूर्णिमा की सही तारीख, मुहूर्त और...

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Sharad Purnima 2025 Date: हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन महीने की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है, जो कि साल की सभी पूर्णिमाओं में सबसे खास मानी जाती है। इसे कोजागरी पूर्णिमा, रास पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन का धार्मिक, आध्यात्मिक और आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व है। खास बात यह है कि मान्यता के अनुसार, इस रात चंद्रमा अपनी सोलहों कलाओं के साथ उदित होता है और अमृत की वर्षा करता है।

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कब है शरद पूर्णिमा 2025? Sharad Purnima 2025 Date

इस बार शरद पूर्णिमा सोमवार, 6 अक्टूबर 2025 को मनाई जाएगी। हालांकि तिथि दो दिन तक चलने के कारण लोगों में थोड़ी उलझन जरूर है।

  • पूर्णिमा शुरू: 6 अक्टूबर दोपहर 12:23 बजे
  • पूर्णिमा समाप्त: 7 अक्टूबर सुबह 9:16 बजे

हिंदू धर्म में पर्वों की तिथि तय करते समय ‘उदय तिथि’ को प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन शरद पूर्णिमा की पूजा खासतौर पर रात्रि में चंद्रमा की रोशनी के समय होती है। इसलिए ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार यह पर्व 6 अक्टूबर की रात को मनाना उचित रहेगा।
पूजा का शुभ मुहूर्त:
रात 11:45 से 12:24 तक
चंद्रमा उदय का समय: शाम 5:27 बजे

क्यों खास होती है ये रात?

शरद पूर्णिमा सिर्फ धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और सकारात्मक ऊर्जा के लिहाज से भी खास मानी जाती है। मान्यता है कि इस रात चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण होते हैं। इसलिए घरों में खीर बनाकर उसे चांदनी में रखने की परंपरा है ताकि उसमें अमृततुल्य गुण समा जाएं। सुबह उसे प्रसाद के रूप में बांटा और खाया जाता है।

शास्त्रों में शरद पूर्णिमा का महत्व

शरद पूर्णिमा की रात को लेकर हिंदू धर्म के विभिन्न पुराणों में बेहद खास मान्यताएं बताई गई हैं। भागवत महापुराण के अनुसार, आश्विन मास की पूर्णिमा की रात को भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन की गोपियों के साथ महारास रचाया था, जिसे रासलीला भी कहा जाता है। इसी कारण इस तिथि को रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

स्कंद पुराण में शरद पूर्णिमा की रात को लेकर उल्लेख है कि इस रात चंद्रमा अमृत की वर्षा करता है। माना जाता है कि चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण होते हैं, जो शरीर और मन के लिए लाभकारी होते हैं।

वहीं, पद्म पुराण में यह भी बताया गया है कि इस विशेष रात मां लक्ष्मी स्वयं पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और जो लोग इस रात जागरण करते हैं, पूजा-पाठ और भक्ति में लीन रहते हैं, उन्हें मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।

इस तरह शरद पूर्णिमा की रात को आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ और फलदायी माना गया है।

मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के उपाय

अगर आप आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, तो शरद पूर्णिमा आपके लिए सुनहरा मौका है।

  • पूजा के दौरान मां लक्ष्मी को कमल का फूल और नारियल चढ़ाएं।
  • 11 पीली कौड़ियों को पीले कपड़े में बांधकर मां लक्ष्मी के सामने रखें और बाद में तिजोरी में रख दें।
  • इस दिन मां लक्ष्मी के बीज मंत्र का जाप करें:

ॐ श्री ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः।

क्या करें और क्या न करें?

  • इस दिन पवित्र नदी में स्नान, व्रत और दान-पुण्य करने से विशेष फल मिलता है।
  • रातभर जागरण और भजन-कीर्तन करने की भी परंपरा है।
  • चंद्रमा की सीधी किरणें खीर पर पड़ें, इसका ध्यान जरूर रखें।

अस्वीकरण: यह जानकारी धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों पर आधारित है। कृपया किसी भी उपाय को अपनाने से पहले स्वयं जांचें या विशेषज्ञ की सलाह लें।

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