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Mock Drills in India: भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच सुरक्षा तैयारियों के लिए मॉक ड्रिल, ...

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Mock Drills in India: भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए केंद्र सरकार ने सुरक्षा तैयारियों को और तेज कर दिया है। गृह मंत्रालय ने देश भर के सभी राज्यों को एक महत्वपूर्ण निर्देश जारी किया है, जिसके तहत सभी जगह सिविल डिफेंस की तैयारी की जाएगी। इस बीच, 7 मई 2025 को एक मॉक ड्रिल का आयोजन किया जाएगा, जिसमें एयर रेड वॉर्निंग सायरन भी बजाया जाएगा। इस ड्रिल का मुख्य उद्देश्य आम नागरिकों को युद्ध जैसी स्थिति या हवाई हमले की स्थिति में अपनी सुरक्षा के उपायों के बारे में जागरूक करना है।

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क्या है एयर रेड वॉर्निंग सायरन? (Mock Drills in India)

एयर रेड वॉर्निंग सायरन उन देशों में लगाए जाते हैं जहां युद्ध का खतरा बना रहता है। यह सायरन नागरिकों को कुछ सेकंड पहले चेतावनी देता है ताकि वे सुरक्षित स्थानों पर जा सकें। इजराइल और यूक्रेन जैसे देशों में भी हवाई हमले की चेतावनी देने के लिए एयर रेड सायरन का उपयोग किया जाता है। इजराइल तो हवाई हमले की जानकारी देने के लिए आधुनिक मोबाइल ऐप्स का भी इस्तेमाल करता है। भारत में भी एयर अड्डों और एयर फोर्स बेस पर एयर रेड सायरन स्थापित हैं। जब वायुसेना के रडार किसी दुश्मन के हमले को पकड़ लेते हैं, तो कुछ सेकंड पहले एयर रेड सायरन बजता है, जिससे लोगों को खतरे से बचने के लिए समय मिलता है।

Mock Drills in India
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कैसे करें बचाव?

अगर युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न होती है और दुश्मन बड़े शहरों को निशाना बनाता है, तो नागरिकों के पास बचाव के कई उपाय होते हैं। भारत में कई इमारतें और संरचनाएं ऐसी बनाई गई हैं जो हवाई हमलों को झेल सकती हैं। पूर्व DIG एस एस गुलेरिया के अनुसार, बड़े शहरों में बने अंडरपास और सबवे जैसी संरचनाएं हवाई हमलों के दौरान नागरिकों की रक्षा कर सकती हैं। इन संरचनाओं को इस तरह से मजबूत बनाया गया है कि इनमें रॉकेट या मिसाइल का टुकड़ा गिरने पर भी नागरिकों को ज्यादा नुकसान नहीं होगा।

गुलेरिया ने कहा, “अगर आप एयर रेड सायरन सुनते हैं और आप खुली जगह में हैं, तो आपको नजदीकी फ्लाईओवर के नीचे शरण लेनी चाहिए। अगर आप इमारत में हैं, तो मुख्य द्वार से दूर, दीवारों से घिरे किसी सुरक्षित स्थान पर चले जाएं, जैसे कि शौचालय।”

Mock Drills in India
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मॉक ड्रिल का महत्व

इस मॉक ड्रिल का आयोजन नागरिकों को युद्ध जैसी परिस्थितियों में अपना बचाव करने के सही तरीकों के बारे में जागरूक करने के लिए किया जा रहा है। गृह मंत्रालय का कहना है कि यह ड्रिल नागरिकों को बताएगी कि वे एयर रेड सायरन की आवाज सुनते ही क्या करें और किस दिशा में जाएं। इसके अलावा, यह ड्रिल नागरिकों को उन महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचों के बारे में भी जानकारी देगी, जो उनकी सुरक्षा के लिए काम आ सकते हैं, जैसे अंडरपास और सबवे।

सुरक्षा के लिहाज से उठाए गए कदम

सुरक्षा बलों द्वारा इस ड्रिल को आयोजित करने का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी आपातकालीन स्थिति में नागरिकों के पास पर्याप्त जानकारी हो और वे सही निर्णय ले सकें। साथ ही, यह कदम यह सुनिश्चित करेगा कि नागरिकों को समय रहते सुरक्षित स्थानों पर भेजा जा सके और उनकी जान को खतरे से बचाया जा सके। इस प्रकार की तैयारी देश की सुरक्षा को मजबूत करने में सहायक साबित हो सकती है और नागरिकों को किसी भी अप्रत्याशित स्थिति का सामना करने के लिए तैयार करेगी।

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The Kashmir War History: कश्मीर में पाकिस्तानी कबाइलियों का कहर! 78 साल पहले हिंदू पह...

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The Kashmir War History: कश्मीर की जंग कोई नई बात नहीं है, बल्कि यह एक लंबी और जटिल कहानी है, जो लगभग आठ दशकों से भारत और पाकिस्तान के बीच जारी है। पाकिस्तान ने हमेशा कश्मीर को अपना हिस्सा बनाने के लिए भारत के खिलाफ अपनी नापाक चालें चली हैं। इसी संघर्ष में 22 अप्रैल 2025 को जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर से युद्ध जैसे हालात पैदा कर दिए हैं। यह हमला कश्मीर में एक और जख्म की तरह है, जो पाकिस्तान की नापाक करतूतों का परिणाम है। इस खबर में हम कश्मीर के जख्मों और उसके इतिहास की पूरी कहानी पर एक नजर डालते हैं।

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कश्मीर पर कबायली हमला (1947)- The Kashmir War History

जम्मू कश्मीर की राजनीति में पाकिस्तान का हस्तक्षेप 1947 में उस समय शुरू हुआ, जब कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर को स्वतंत्र रखने का निर्णय लिया था। पाकिस्तान ने कश्मीर को अपना हिस्सा बनाने के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया और 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान के इशारे पर हज़ारों कबायली कश्मीर में घुस आए। इस कबायली हमले ने कश्मीर की सूरत बदल कर रख दी थी। यह हमला एक साल दो महीने और तीन दिन तक चला। पाकिस्तान द्वारा भेजे गए इन कबायली हमलावरों ने लूटपाट, हत्या और बलात्कार की घटनाओं को अंजाम दिया। उन्होंने मुज़फ्फराबाद, डोमेल और उरी तक के इलाकों पर कब्जा कर लिया।

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महाराजा हरि सिंह के पास तीन विकल्प थे: कश्मीर को पाकिस्तान को सौंप दें, खुद लड़ाई करें (जो असंभव था) या फिर भारत से मदद लें। महाराजा ने भारत के साथ कश्मीर का विलय करने का निर्णय लिया, और इसके बाद भारतीय सेना ने कश्मीर की रक्षा में कदम रखा। भारतीय सेना ने बहादुरी से मुकाबला करते हुए कश्मीर के दो-तिहाई हिस्से पर कब्जा किया। इस संघर्ष के बाद संयुक्त राष्ट्र में मामला पहुंचा, और 5 जनवरी 1949 को सीज़फायर हुआ, जिसके बाद लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC) का निर्माण हुआ।

भारत-पाकिस्तान युद्ध और संघर्ष

कश्मीर संघर्ष यहां खत्म नहीं हुआ, बल्कि इसके बाद पाकिस्तान ने भारत से तीन युद्ध लड़े:

  1. 1965 भारत-पाकिस्तान युद्ध – इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान के 2,000 वर्ग किलोमीटर इलाके पर कब्जा किया। भारत के 3,264 जवान शहीद हुए, जबकि पाकिस्तान के 3,500 सैनिक मारे गए।
  2. 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध – इस युद्ध के बाद पाकिस्तान दो टुकड़ों में बंट गया, और बांग्लादेश का जन्म हुआ। भारत ने 15,000 वर्ग किलोमीटर पर कब्जा किया, लेकिन शिमला समझौते के तहत उसे वापस कर दिया गया। इस युद्ध में भारत के 3,843 सैनिक शहीद हुए।
  3. 1999 करगिल युद्ध – यह युद्ध अब तक का सबसे खर्चीला था, जिसमें भारतीय सेना ने पाकिस्तान द्वारा कब्जे किए गए पोस्टों को वापस लिया। इस युद्ध में 522 भारतीय जवान शहीद हुए, जबकि पाकिस्तान के 700 सैनिक मारे गए।

आतंकी हमले और पहलगाम में युद्ध जैसे हालात

22 अप्रैल 2025 को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर से युद्ध जैसे हालात पैदा कर दिए। इस हमले ने भारतीय सेना को खुली छूट दी है और स्थिति को तनावपूर्ण बना दिया है। यह घटना पाकिस्तान द्वारा आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने का एक और उदाहरण है, जो कश्मीर की स्थिति को और भी जटिल बना देती है।

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अगर भारत और पाकिस्तान के बीच आज युद्ध होता है, तो यह अब तक की सबसे महंगी जंग साबित हो सकती है। दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने के साथ ही यह संघर्ष और भी विकट रूप ले सकता है, जो न केवल कश्मीर बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए गंभीर परिणाम हो सकता है।

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गर्मी में लें इन मसालों का आनंद, पाएं ठंडक और स्वाद

Cooling effect of spices: गर्मियों में शरीर को ठंडक पहुंचाने वाले कई ऐसे मसाले हैं जिनका आप खूब सेवन कर सकते हैं। ये न केवल आपके व्यंजनों का स्वाद बढ़ाते हैं बल्कि आपको गर्मी से राहत दिलाने में भी मदद करते हैं। तो चलिए इस लेख में हम आपको उन मसालों के बारे में बताते हैं जिनकी तासीर ठंडी होती है।

गर्मियों में शरीर को ठंडक पहुंचाने मसाले 

  • इलायची (Cardamom)-छोटी और हरी इलायची अपनी सुखद खुशबू और ठंडक देने वाली तासीर के लिए जानी जाती है। यह पाचन क्रिया को बेहतर बनाती है और शरीर को ठंडक पहुँचाती है। आप इसका इस्तेमाल चाय, शर्बत, मिठाई या फिर सब्ज़ी में भी कर सकते हैं।

  • पुदीना (Mint) – पुदीना अपने ताज़गी और ठंडक के लिए मशहूर है। यह पेट को आराम पहुंचाता है और गर्मी से राहत देता है। आप इसकी चटनी बना सकते हैं, रायते में मिला सकते हैं या शर्बत बनाकर पी सकते हैं।

  • धनिया (Coriander) – धनिया के पत्ते और बीज दोनों ही ठंडे होते हैं। यह पाचन में मदद करते हैं और शरीर को ठंडक देते हैं। आप इसे सब्जी, दाल, रायता या चटनी में इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके अलवा धनिया के पानी में फाइबर और एंजाइम होते हैं जो पाचन में सुधार करते हैं और कब्ज, गैस और अपच जैसी समस्याओं से राहत दिलाते हैं।

  • सौंफ (Fennel) – सौंफ अपनी मीठी खुशबू और ठंडी तासीर के लिए जानी जाती है। यह पाचन को दुरुस्त रखती है और पेट की गर्मी को शांत करती है। आप इसे मुखवास के तौर पर चबा सकते हैं, चाय बना सकते हैं या फिर सब्जियों में डाल सकते हैं।

जीरा का पानी गर्मियों में बहुत फायदेमंद (Cumin) 

जीरा भले ही थोड़ा गर्म माना जाता है, लेकिन इसका पानी गर्मियों में बहुत फायदेमंद होता है। जीरे का पानी शरीर को हाइड्रेटेड रखता है और पाचन को भी ठीक करता है। भुने हुए जीरे को रायते या छाछ में डालकर पीने से ठंडक मिलती है। यह आपके शरीर को डिटॉक्स करता है, आपकी त्वचा को चमकदार बनाता है, पाचन में सुधार करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। ये छोटे-छोटे बदलाव आपके जीवन में बड़े स्वास्थ्य लाभ ला सकते हैं।

  • खसखस (Poppy Seeds) – खसखस की तासीर ठंडी होती है और यह शरीर को ठंडक पहुंचाने में मदद करता है। इसका इस्तेमाल शरबत, मिठाई या फिर करी में किया जा सकता है।

  • मेथी (Fenugreek) –  मेथी के बीज और पत्ते दोनों ही ठंडी तासीर वाले होते हैं। यह पेट की गर्मी को शांत करते हैं और पाचन में सुधार करते हैं। आप मेथी के पत्तों की सब्जी बना सकते हैं या फिर मेथी के दानों को पानी में भिगोकर पी सकते हैं।

Hindu Temples in London-Canada: लंदन और कनाडा के हिंदू मंदिर, धार्मिक आस्था से लेकर स...

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Hindu Temples in London-Canada: क्या आप जानते हैं कि लंदन और कनाडा में कुछ ऐसे हिंदू मंदिर हैं जो सिर्फ पूजा स्थल नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं का जीवंत उदाहरण भी हैं? इन मंदिरों में न सिर्फ भव्य पूजा-अर्चना होती है, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव, धार्मिक अनुष्ठान और सामुदायिक गतिविधियों के माध्यम से भारतीय जड़ों को मजबूत करने का काम भी किया जाता है। इन मंदिरों की वास्तुकला, धार्मिक अनुष्ठान और उनके ऐतिहासिक महत्व के बारे में जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे। अगर आप भी इन अद्भुत धार्मिक स्थलों के बारे में जानने के इच्छुक हैं, तो चलिए एक यात्रा पर चलते हैं और जानते हैं लंदन और कनाडा के प्रमुख हिंदू मंदिरों के बारे में।

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लंदन के प्रमुख हिंदू मंदिर- Hindu Temples in London-Canada

बीएपीएस श्री स्वामीनारायण मंदिर (नेसडेन मंदिर)

स्थान: नेसडेन, लंदन

खासियत:

यह यूरोप का पहला पारंपरिक हिंदू मंदिर है, जिसे 1995 में स्थापित किया गया। सफेद संगमरमर से बना यह मंदिर भारतीय वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है। भगवान स्वामीनारायण को समर्पित इस मंदिर में धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है, जिसमें दीपावली और होली के भव्य आयोजन शामिल हैं। मंदिर परिसर में ‘अंडरस्टैंडिंग हिंदुइज्म’ प्रदर्शनी है, जो हिंदू धर्म और संस्कृति को समझाने का प्रयास करती है।

BAPS Shri Swaminarayan Mandir
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श्री वेंकटेश्वर (बालाजी) मंदिर

स्थान: कैरी, उत्तरी लंदन

खासियत:

यह मंदिर भगवान वेंकटेश्वर (बालाजी) को समर्पित है और तिरुपति मंदिर की शैली में निर्मित है। दक्षिण भारतीय वास्तुकला और पूजा पद्धतियों का पालन करते हुए यहां विशेष रूप से दक्षिण भारतीय समुदाय के लिए धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। मंदिर में नियमित वैदिक अनुष्ठान, भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। इसके अलावा, यहां पर्यावरण संरक्षण और सामुदायिक एकता को बढ़ावा देने वाले आयोजनों का भी आयोजन किया जाता है।

Sri Venkateswara Temple
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लंदन श्री मुरुगन मंदिर

स्थान: ईस्ट हैम, लंदन

खासियत:

भगवान मुरुगन (कार्तिकेय) को समर्पित यह मंदिर खासतौर पर तमिल हिंदू समुदाय द्वारा पूजित है। थाई पुसम जैसे तमिल त्योहारों का भव्य आयोजन इस मंदिर में किया जाता है। मंदिर की वास्तुकला दक्षिण भारतीय शैली को दर्शाती है और यहां तमिल समुदाय की सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी आयोजित होती हैं।

Sri Murugan Temple, London
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कनाडा के प्रमुख हिंदू मंदिर

हिंदू सभा मंदिर

स्थान: ब्रैम्पटन, ओंटारियो

खासियत:

यह कनाडा का सबसे बड़ा हिंदू मंदिरों में से एक है, जो 1970 के दशक में स्थापित हुआ था। विभिन्न हिंदू देवताओं जैसे राम, शिव, और गणेश को समर्पित इस मंदिर में नवरात्रि और दीपावली जैसे सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजनों का केंद्र बन चुका है। मंदिर में योग, ध्यान और बच्चों के लिए धार्मिक कक्षाएँ आयोजित की जाती हैं। हाल ही में इस मंदिर को खालिस्तान समर्थकों के हमले का शिकार होना पड़ा, जिसने स्थानीय समुदाय को एकजुट किया।

श्री वेंकटेश्वर मंदिर

स्थान: टोरंटो, ओंटारियो

खासियत:

भगवान वेंकटेश्वर को समर्पित यह मंदिर दक्षिण भारतीय भक्तों का प्रमुख केंद्र है। तिरुपति मंदिर की पूजा पद्धतियों और वैदिक अनुष्ठानों का पालन करते हुए यहां नियमित भक्ति सभाएँ और सामुदायिक भोज आयोजित होते हैं। मंदिर परिसर में सांस्कृतिक हॉल भी है, जहां संगीत और नृत्य कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

लक्ष्मी नारायण मंदिर

स्थान: सरे, ब्रिटिश कोलंबिया

खासियत:

यह मंदिर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित है और उत्तर भारतीय शैली में निर्मित है। यहां हवन, भजन और सत्संग जैसे धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस मंदिर को नवंबर 2024 में खालिस्तान समर्थकों द्वारा तोड़फोड़ का सामना करना पड़ा, जिसकी व्यापक निंदा की गई थी।

त्रिवेणी मंदिर

स्थान: टोरंटो, ओंटारियो

खासियत:

त्रिवेणी मंदिर गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम का प्रतीक है। यहां विभिन्न हिंदू परंपराओं को एक मंच पर लाने का प्रयास किया जाता है। मंदिर में नियमित धार्मिक प्रवचन, सांस्कृतिक उत्सव और सामुदायिक सेवा का आयोजन किया जाता है। नवंबर 2024 में सुरक्षा चिंताओं के कारण भारतीय वाणिज्य दूतावास द्वारा एक कार्यक्रम रद्द कर दिया गया था।

लंदन और कनाडा के ये हिंदू मंदिर भारतीय संस्कृति और परंपरा को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लंदन के मंदिर अपनी वास्तुकला और सांस्कृतिक योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं, जबकि कनाडा के मंदिर न केवल धार्मिक स्थल हैं, बल्कि ये समुदायों को एकजुट करने में भी सक्रिय हैं। इन मंदिरों में न केवल पूजा की जाती है, बल्कि यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम, धार्मिक अनुष्ठान और सामुदायिक सेवाएँ भी आयोजित की जाती हैं, जो हिंदू धर्म के विविध पहलुओं को प्रदर्शित करती हैं। इन स्थलों की मौजूदगी प्रवासी भारतीयों के लिए सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है और यहां के धार्मिक आयोजनों के माध्यम से संस्कृति का संरक्षण और प्रचार किया जाता है।

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UNESCO World Heritage Sites: भारत की 10 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल! अद्भुत सांस्कृतिक ...

UNESCO World Heritage Sites: भारत, जो चार प्राचीन सभ्यताओं में से एक है, अपनी विविध सांस्कृतिक धरोहर, वास्तुकला और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। 2023 तक, भारत के पास कुल 40 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं, जिनमें से 32 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और 1 मिश्रित धरोहर स्थल हैं। आइए, जानते हैं भारत के 10 प्रमुख यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों के बारे में, जो इसके अद्वितीय इतिहास और संस्कृति को दर्शाते हैं।

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ताज महल, आगरा (UNESCO World Heritage Sites)

ताज महल, मुग़ल सम्राट शाहजहाँ द्वारा अपनी पत्नी मुमताज़ महल की याद में बनवाया गया एक भव्य मकबरा है। यह स्थल दुनिया के सबसे खूबसूरत मकबरों में से एक माना जाता है और कवि रवींद्रनाथ ठाकुर ने इसे “शाश्वतता के गाल पर आंसू की बूँद” कहा था। सफेद संगमरमर से बने इस इमारत में भारतीय और पारसी वास्तुकला का अद्भुत मिश्रण है। यह हर समय अलग-अलग रंगों में बदलता है – सुबह में सुनहरा, दिन में सफेद और रात में चाँदी जैसा चमकता है।

UNESCO World Heritage Sites taj mahal
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मानस नेशनल पार्क, असम

असम में स्थित मानस नेशनल पार्क, जो हिमालय की तलहटी में स्थित है, एक जैविक विविधता से भरपूर स्थल है। यह पार्क भारतीय गैंडे, हाथी, बाघ और कई अन्य दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियों का घर है। इसे बर्ड वॉचिंग के लिए भी आदर्श स्थान माना जाता है और यहां पर्यटकों को जीप सफारी, हाथी सफारी और नदी राफ्टिंग जैसी रोमांचक गतिविधियों का अनुभव मिलता है।

Manas National Park, Assam
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सूर्य मंदिर, कोणार्क

कोणार्क का सूर्य मंदिर 13वीं शताब्दी का एक प्रमुख हिन्दू मंदिर है, जो भगवान सूर्य को समर्पित है। इस मंदिर की वास्तुकला में एक विशाल पत्थर की रथ-गाड़ी का चित्रण है, जिसमें 12 जोड़ी पहिए और सात घोड़े दिखाई देते हैं। यह मंदिर अपनी अद्वितीय कला और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, और 1984 में इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त हुई थी।

Sun Temple, Konark
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आगरा किला

आगरा किला, जो यमुनापार स्थित है, मुग़ल सम्राटों का एक प्रमुख किला था। यह किला लाल बलुआ पत्थर से बना है और इसमें कई महत्वपूर्ण महल और कक्ष शामिल हैं, जो मुग़ल वास्तुकला की उत्कृष्टता को दर्शाते हैं। आगरा किला से ताज महल का दृश्य भी अत्यधिक आकर्षक होता है।

Agra Red Fort
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फतेहपुर सीकरी

फतेहपुर सीकरी, जो एक समय मुग़ल साम्राज्य की राजधानी था, मुग़ल वास्तुकला का एक अद्वितीय उदाहरण है। यह स्थल प्रसिद्ध बुलंद दरवाजा, Jama मस्जिद और पंच महल जैसी इमारतों के लिए जाना जाता है। फतेहपुर सीकरी को 1571 में मुग़ल सम्राट अकबर द्वारा स्थापित किया गया था और यह 14 साल बाद पानी की कमी के कारण खाली कर दिया गया।

Fatehpur Sikri
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महाबलीपुरम के स्मारक

महाबलीपुरम, तमिलनाडु में स्थित, प्राचीन पालव वंश के स्थापत्य कला का एक अद्भुत उदाहरण है। यहां के रथ, मंदिर और विशाल शिल्पकृतियाँ भारतीय वास्तुकला के अद्वितीय उदाहरण हैं। इन स्थापत्यों में “गंगावतरण” की राहत कला विशेष रूप से प्रसिद्ध है। 1984 में इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।

Monuments of Mahabalipuram
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अजंता और एलोरा की गुफाएँ

अजंता और एलोरा की गुफाएँ, महाराष्ट्र में स्थित, प्राचीन भारतीय बुद्धिज्म और हिन्दू धर्म की महान कृतियाँ हैं। इन गुफाओं में गहरी खुदाई की गई मंदिरों और चित्रित दीवारों पर उकेरी गई कला, भारतीय सभ्यता की गहरी समझ और धार्मिक आस्थाओं का प्रतिबिंब है।

Ajanta and Ellora Caves
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जंतर मंतर, जयपुर

जयपुर में स्थित जंतर मंतर, एक प्राचीन खगोलशास्त्र वेधशाला है, जो भारत के प्राचीन खगोलशास्त्र की अविश्वसनीय उपलब्धियों को दर्शाता है। यहां सूर्य घड़ी, मेरिडियन और अन्य खगोलशास्त्र यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता था। यह स्थान भारतीय खगोलशास्त्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

Jantar Mantar
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काज़ीरंगा नेशनल पार्क, असम

काज़ीरंगा नेशनल पार्क, असम में स्थित है, और यह एक सींग वाले गैंडे का सबसे बड़ा आवास है। यहाँ की जैव विविधता और प्राचीन वन्यजीवों के संरक्षण के प्रयासों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है। यह पार्क बाघ, हाथी, और अन्य संकटग्रस्त प्रजातियों का घर है।

Kaziranga National Park, Assam
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गोवा के चर्च और मठ

गोवा के चर्च और मठ, जो पुर्तगाली उपनिवेशकाल के दौरान बनाए गए थे, गोवा की कैथोलिक वास्तुकला और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इन चर्चों में से बासीलीका ऑफ बॉम जीसस, जिसमें सेंट फ्रांसिस जेवियर के अवशेष रखे गए हैं, एक प्रमुख धार्मिक स्थल है।

Churches and Convents of Goa
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Paresh Rawal drank urine: परेश रावल का विवादित दावा- ‘पेशाब पीने से घुटने की चोट ठीक ...

Paresh Rawal drank urine: हाल ही में बॉलीवुड अभिनेता और पूर्व भाजपा सांसद, परेश रावल ने एक इंटरव्यू में दावा किया कि उन्होंने अपनी चोट को ठीक करने के लिए अपना पेशाब पीने का तरीका अपनाया था। इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर चर्चा का दौर शुरू हो गया है और कई डॉक्टर्स ने इस दावे पर अपनी राय दी है। परेश रावल का कहना है कि जब उन्होंने अपनी चोट पर इस पद्धति का पालन किया, तो 15 दिन बाद डॉक्टर भी उनके स्वास्थ्य में सुधार देखकर हैरान रह गए थे। लेकिन क्या सच में पेशाब पीने से कोई स्वास्थ्य लाभ हो सकता है? डॉक्टर्स ने इस पर क्या प्रतिक्रिया दी, आइए जानते हैं।

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परेश रावल का दावा- Paresh Rawal drank urine

परेश रावल ने ‘द लल्लनटॉप’ को दिए गए इंटरव्यू में बताया कि वह नानावटी अस्पताल में भर्ती थे और वहां अभिनेता वीरू देवगन उनसे मिलने आए थे। वीरू देवगन ने उन्हें सलाह दी कि सुबह सबसे पहले अपना पेशाब पीने से उन्हें कोई समस्या नहीं होगी। परेश रावल के अनुसार, उन्होंने वीरू देवगन की सलाह मानी और 15 दिन तक अपनी सुबह की शुरुआत अपने पेशाब से की। जब 15 दिन बाद उनका एक्स-रे हुआ, तो डॉक्टर भी यह देखकर दंग रह गए कि उनकी चोट में कितनी तेजी से सुधार हुआ था।

 

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यूरिन थैरेपी का इतिहास

पेशाब पीने की प्रथा, जिसे यूरोफैगी या यूरिन थैरेपी के नाम से जाना जाता है, हजारों साल पुरानी है। इसका प्रयोग प्राचीन मिस्र, यूनान और रोमन साम्राज्यों में भी किया जाता था। उस समय यह माना जाता था कि पेशाब पीने से शरीर की बीमारियां ठीक हो सकती हैं। 1945 में ब्रिटिश चिकित्सक जॉन डब्ल्यू आर्मस्ट्रांग ने अपनी किताब ‘द वॉटर ऑफ लाइफ: ए ट्रीटीज ऑन यूरिन थेरेपी’ में इस पद्धति को बढ़ावा दिया। हालांकि, आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इस थैरेपी का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।

डॉक्टरों की राय

जहां एक ओर परेश रावल ने यूरिन थैरेपी के जरिए अपनी चोट में सुधार का दावा किया, वहीं अधिकांश डॉक्टरों ने इस पद्धति को खारिज किया है और चेतावनी दी है कि पेशाब पीने से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

मैक्स हेल्थकेयर के एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. अम्बरीश मिथल ने कहा, “यह दावा बेहद खतरनाक है। पेशाब में विषाक्त पदार्थ होते हैं जिन्हें शरीर ने बाहर निकालने का निर्णय लिया है। इन पदार्थों को फिर से शरीर में डालने से गंभीर संक्रमण और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।”

दिल्ली के पीएसआरआई अस्पताल के डॉ. सुमीत शाह ने कहा, “हमें ऐसे दावों को अनदेखा करना चाहिए। लोग अपनी पसंद से जो करना चाहें, वह करें, लेकिन चिकित्सा विज्ञान और वैज्ञानिक तथ्यों का पालन करना बहुत जरूरी है।”

डॉ. साइरिएक एबी फिलिप्स, जो सोशल मीडिया पर ‘द लिवर डॉक्टर’ के नाम से प्रसिद्ध हैं, ने भी कहा, “पेशाब पीने से कोई स्वास्थ्य लाभ नहीं होता है। पेशाब में बैक्टीरिया और विषाक्त पदार्थ होते हैं, जो रक्तप्रवाह में प्रवेश कर सकते हैं और शरीर के अन्य हिस्सों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।”

पेशाब पीने के स्वास्थ्य जोखिम

डॉक्टर्स के अनुसार, पेशाब में यूरिया, नमक और अन्य विषाक्त पदार्थ होते हैं जिन्हें शरीर ने बाहर निकालने के लिए फिल्टर किया है। जब इन्हें फिर से शरीर में डाल दिया जाता है, तो यह शरीर में विषाक्तता और असंतुलन पैदा कर सकता है। इसके अलावा, पेशाब पीने से किडनी की कार्यप्रणाली पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है और शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स का असंतुलन हो सकता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि यूरिन थैरेपी के दावे बिना वैज्ञानिक प्रमाण के हैं और इसे अपनाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। इस तरह के प्राचीन और अप्रमाणित उपचारों की बजाय, डॉक्टरों की सलाह लेना और सही इलाज करना बेहतर है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह

फोर्टिस हॉस्पिटल के क्रिटिकल केयर डायरेक्टर डॉ. चरुदत्त वैती ने भी इस बारे में अपनी राय दी। उन्होंने कहा, “पेशाब वास्तव में एक अपशिष्ट पदार्थ है और इसे शरीर से बाहर निकालने का उद्देश्य सिर्फ इसके हानिकारक तत्वों को दूर करना होता है। इसे शरीर में वापस डालने से संक्रमण और अन्य समस्याएं हो सकती हैं।”

मुंबई के पीडी हिंदुजा हॉस्पिटल के ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. आदित्य खेमका ने कहा, “घुटने के दर्द में कभी-कभी सुधार स्वाभाविक रूप से हो सकता है। पेशाब पीने से इस सुधार का कोई संबंध नहीं है।”

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Caste Census Side effects: जातिवार जनगणना का बड़ा प्रभाव, OBC सूची में कई जातियों का ...

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Caste Census Side effects: भारत में जातिवार जनगणना की घोषणा एक ऐतिहासिक कदम है, जो आजादी के बाद पहली बार हो रही है। इस जनगणना के आंकड़े ओबीसी (आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ी जातियों) की सूची में बड़े बदलाव ला सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप, कई जातियां ओबीसी की सूची से बाहर हो सकती हैं, जबकि कई अन्य जातियां इस सूची में शामिल हो सकती हैं। यह कदम जाति आधारित राजनीति को खत्म करने के उद्देश्य से उठाया गया है, ताकि सामाजिक न्याय की दिशा में सही फैसले लिए जा सकें।

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जातिवार जनगणना का उद्देश्य- Caste Census Side effects

भारत सरकार का लक्ष्य है कि जातिवार जनगणना को एक स्थायी प्रक्रिया बना दिया जाए, ताकि हर 10 साल में जातियों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक आंकड़े आसानी से जुटाए जा सकें। वर्तमान में ओबीसी की सूची में कई जातियों को शामिल किया गया है, लेकिन इसका आधार 1931 के आंकड़े हैं। यह आंकड़े अब पुराने और अप्रचलित हो चुके हैं। जातिवार जनगणना के जरिए सरकार के पास नई, ठोस जानकारी होगी, जिससे ओबीसी सूची को सुधारने में मदद मिल सकेगी।

सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बीच इस विषय पर चर्चा हुई थी। बैठक में गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद थे। इस बैठक के बाद सरकार ने जातिवार जनगणना की प्रक्रिया को मंजूरी दी और इसे आगामी जनगणना का हिस्सा बनाने का निर्णय लिया।

जातिवार गणना की स्थायिता

गृह मंत्रालय के उच्च अधिकारियों का कहना है कि यह निर्णय लंबे समय से चल रही सोच और विचार-विमर्श का परिणाम है। सरकार ने इसे स्थायी स्वरूप देने का विचार किया है, ताकि आने वाले समय में हर 10 साल पर होने वाली जनगणना के साथ-साथ जातिवार गणना भी की जाए। इससे देश की सभी जातियों के सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक आंकड़े एक जगह पर जमा होंगे और इन्हें सही तरीके से विश्लेषित किया जा सकेगा।

इससे यह भी होगा कि जिन जातियों की स्थिति अन्य जातियों से बेहतर होगी, उन्हें आसानी से पहचाना जा सकेगा। इसके अलावा, यह ओबीसी सूची में बदलाव के लिए ठोस आधार भी बनेगा। कई जातियों को ओबीसी सूची से बाहर किया जा सकता है, और कई जातियों को इसमें शामिल किया जा सकता है।

ओबीसी सूची में बदलाव का ठोस आधार

जातिवार गणना के आंकड़ों के आधार पर ओबीसी सूची में बदलाव हो सकता है। वर्तमान में ओबीसी सूची का आधार 1931 के आंकड़े हैं, जब जातियों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति का कोई वास्तविक आंकड़ा उपलब्ध नहीं था। 1931 की जनगणना के आधार पर ही भारत में 52 प्रतिशत आबादी को पिछड़ा हुआ माना गया था और उनके लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। लेकिन यह आंकड़े पुराने और असंभावित हो चुके हैं।

समझा जाता है कि जातिवार गणना के आंकड़ों के बाद ओबीसी सूची को सुधारने का रास्ता खुल सकता है। इसके परिणामस्वरूप, न्यायालय का सहारा लिया जा सकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ओबीसी की सूची में सही जातियों को शामिल किया गया है और गलत जातियों को बाहर किया गया है।

1931 के आंकड़े और 2011 की कोशिश

वर्तमान में ओबीसी जातियों की जानकारी का एकमात्र आधार 1931 की जनगणना है, जो अब पुराना हो चुका है। इसके बावजूद, 1991 में ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था पर सवाल उठाए गए थे, लेकिन तब भी अद्यतन आंकड़े जुटाने का प्रयास नहीं किया गया। 2011 में संप्रग सरकार ने सामाजिक, आर्थिक और जातीय जनगणना करने की कोशिश की थी, लेकिन उस प्रक्रिया में कई गड़बड़ियां सामने आईं, जिसके कारण इसे सार्वजनिक नहीं किया गया।

इसके बाद नरेंद्र मोदी और मनमोहन सिंह की सरकारों ने इस आंकड़े को जारी करने पर रोक लगाई। 2011 की सामाजिक-आर्थिक जातीय जनगणना को भी जनगणना से अलग रखा गया था और इसे एक सर्वेक्षण के रूप में किया गया था, लेकिन इसमें बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां सामने आईं, जिससे सरकार को इसे जारी न करने का फैसला करना पड़ा।

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Why Flight Window Open: हवाई यात्रा के दौरान खिड़की के पर्दे को खोलने की वजह, यात्रिय...

Why Flight Window Open: अगर आपने कभी हवाई यात्रा की है, तो आपने एयर होस्टेस को उड़ान भरने और लैंडिंग से पहले यह कहते हुए सुना होगा, “कृपया अपनी खिड़की के शटर खोल दें।” कई लोग सोचते हैं कि इसका उद्देश्य सिर्फ बाहर का नजारा देखना है, लेकिन असल में इसका एक महत्वपूर्ण और सुरक्षा से संबंधित कारण है। आइए जानते हैं कि फ्लाइट में खिड़की के पर्दे को क्यों खोला जाता है और इसका यात्रियों की सुरक्षा से क्या संबंध है।

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इमरजेंसी में त्वरित प्रतिक्रिया- Why Flight Window Open

हवाई जहाज के टेकऑफ और लैंडिंग के दौरान सबसे ज्यादा जोखिम होता है। यही वह समय होता है जब किसी भी प्रकार की आपातकालीन स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जैसे इंजन में आग लगना या अन्य तकनीकी खराबी आना। इस समय, खिड़की के पर्दे को खुला रखने का एक प्रमुख कारण यह है कि यह यात्रियों और केबिन क्रू को जल्दी से बाहर का दृश्य देखने में मदद करता है। यदि किसी स्थिति में विमान को जल्दी से छोड़ने की आवश्यकता हो, तो खुले पर्दे से यह समझने में मदद मिलती है कि बाहर क्या हो रहा है और कहां से बाहर निकलना सबसे सुरक्षित होगा। उदाहरण के लिए, अगर विमान के एक पक्ष में आग लग जाए, तो यात्रियों को दूसरी तरफ से जल्दी से बाहर निकाला जा सकता है।

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आंखों को रोशनी के लिए तैयार करना

दूसरी महत्वपूर्ण वजह यह है कि खिड़की के पर्दे को इसलिये खोला जाता है ताकि यात्रियों की आंखें बाहर की रोशनी के लिए तैयार हो सकें। जब विमान के अंदर का वातावरण अंधेरा होता है और अचानक विमान लैंड करता है, तो बाहर तेज रोशनी हो सकती है। अगर आंखों को इस बदलाव से तुरंत तालमेल नहीं बैठाने दिया जाए, तो देखने में परेशानी हो सकती है। लेकिन यदि खिड़की के पर्दे खुले रहते हैं, तो धीरे-धीरे हमारी आंखें बाहरी रोशनी के अनुसार ढल जाती हैं। इससे इमरजेंसी स्थिति में यात्रियों को बाहर निकलते समय किसी प्रकार की दृष्टि संबंधी समस्या नहीं होती और वे अधिक तेजी से और सुरक्षित रूप से विमान से बाहर निकल सकते हैं।

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अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा नियम

खिड़की के पर्दे को खोलने की यह सलाह सिर्फ एक सुझाव नहीं है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण सुरक्षा नियम है जो कई अंतरराष्ट्रीय विमानन संस्थाओं द्वारा निर्धारित किया गया है। अमेरिकी FAA (फेडरल एविएशन अथॉरिटी), ICAO (अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन) और EASA (यूरोपीय संघ नागरिक उड्डयन सुरक्षा एजेंसी) जैसी संस्थाएं इस नियम को अनिवार्य मानती हैं। दुनियाभर की प्रमुख एयरलाइंस इसे कड़ी सख्ती से पालन करती हैं। यह नियम केवल यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नहीं, बल्कि विमान की स्थिति और आस-पास के वातावरण का आकलन करने के लिए भी जरूरी है।

खतरे से पहले स्थिति का मूल्यांकन

खिड़की के पर्दे खुले रखने से यह सुनिश्चित होता है कि विमान के आस-पास का वातावरण स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। यदि विमान किसी खतरनाक इलाके, जैसे बिल्डिंग या पेड़ के पास है, तो यह देखने के बाद केबिन क्रू और यात्रियों को सही निर्णय लेने का समय मिलता है। यह एक महत्वपूर्ण कदम है, जो यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी खतरे के समय सही निर्णय जल्दी से लिया जा सके, जिससे यात्रियों की जान बचाई जा सकती है।

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India and Pakistan War: भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव, अगर युद्ध होता है तो कौन...

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India and Pakistan War: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव एक नई ऊंचाई पर पहुंच चुका है। इस हमले में 26 लोगों की मौत हुई थी, और भारत ने पाकिस्तान को इस हमले का जिम्मेदार ठहराया है। पाकिस्तान ने इन आरोपों से इनकार किया, लेकिन इस बीच पाकिस्तान की ओर से परमाणु हमले की धमकियां भी सामने आई हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर दोनों देशों के बीच युद्ध होता है, तो दुनिया के कौन से देश किसका समर्थन करेंगे? इस लेख में हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि कौन से देश भारत का साथ देंगे और कौन से पाकिस्तान का।

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भारत के साथ कौन-कौन से देश खड़े हो सकते हैं? (India and Pakistan War)

भारत ने पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक स्तर पर अपनी छवि को मजबूत किया है और अब वह दुनिया के प्रमुख ताकतवर देशों में शामिल है। पहलगाम हमले के बाद भी कई देशों ने भारत के साथ खड़े होने का संकेत दिया है। यदि युद्ध की स्थिति उत्पन्न होती है, तो निम्नलिखित देश भारत का समर्थन कर सकते हैं:

India and Pakistan War
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अमेरिका

अमेरिका और भारत के बीच पिछले कुछ वर्षों में रक्षा और रणनीतिक साझेदारी मजबूत हुई है। खासकर क्वाड (QUAD) के तहत दोनों देशों के रिश्ते और भी प्रगाढ़ हुए हैं। अमेरिका अब भारत को इंडो-पैसिफिक रणनीति का अहम सहयोगी मानता है। युद्ध की स्थिति में अमेरिका भारत को कूटनीतिक समर्थन, खुफिया जानकारी, और सैन्य उपकरणों की आपूर्ति कर सकता है। हालांकि, अमेरिका खुलकर सैन्य हस्तक्षेप से बच सकता है, लेकिन फिर भी कूटनीतिक और अन्य समर्थन मिल सकता है।

रूस

भारत और रूस के बीच रक्षा संबंध दशकों पुराना है। रूस ने हमेशा भारत का समर्थन किया है, खासकर 1971 के युद्ध में। वर्तमान में भी, रूस भारत को अत्याधुनिक हथियारों की आपूर्ति करता है, जैसे सुखोई-30 और S-400। युद्ध के दौरान रूस भारत को हथियारों की आपूर्ति और संयुक्त राष्ट्र में समर्थन प्रदान कर सकता है।

फ्रांस

फ्रांस और भारत के बीच मजबूत रक्षा समझौते हैं, जिसमें राफेल लड़ाकू विमान शामिल हैं। फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने पहलगाम हमले के बाद भारत के साथ फोन पर चर्चा की थी। युद्ध में फ्रांस भारत को हथियारों की आपूर्ति और कूटनीतिक समर्थन दे सकता है।

इजरायल

भारत और इजरायल के बीच रक्षा और तकनीकी सहयोग मजबूत है। इजरायल ने 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान भारत को ड्रोन और नाइट विजन डिवाइस मुहैया कराए थे। यदि युद्ध होता है, तो इजरायल भारत को सैन्य तकनीकी सहायता और खुफिया जानकारी दे सकता है।

जापान और ऑस्ट्रेलिया

दोनों देश क्वाड के सदस्य हैं और भारत के साथ मजबूत रणनीतिक रिश्ते रखते हैं। ये देश विशेष रूप से चीन के क्षेत्रीय आक्रामकता को संतुलित करने के लिए भारत का समर्थन करते हैं। युद्ध की स्थिति में ये देश भारत को कूटनीतिक और आर्थिक सहायता प्रदान कर सकते हैं।

संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और सऊदी अरब

UAE और सऊदी अरब ने हाल के वर्षों में भारत के साथ आतंकवाद विरोधी और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा दिया है। पाकिस्तान के साथ UAE के रिश्ते हाल के वर्षों में तनावपूर्ण रहे हैं, जिससे भारत के पक्ष में उनका समर्थन अधिक हो सकता है। इन देशों से कूटनीतिक और आर्थिक समर्थन की संभावना है।

अफगानिस्तान

भारत ने अफगानिस्तान में बुनियादी ढांचे और शिक्षा में भारी निवेश किया है। तालिबान और पाकिस्तान के रिश्तों को लेकर तनाव के कारण अफगानिस्तान भारत के समर्थन में खड़ा हो सकता है। अफगानिस्तान से भारत को क्षेत्रीय खुफिया जानकारी और कूटनीतिक समर्थन मिल सकता है।

पाकिस्तान के साथ कौन से देश खड़े हो सकते हैं?

भारत ने पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कोशिश की है, लेकिन पाकिस्तान के पास कुछ देश हैं जो उसे समर्थन देने के लिए तैयार हो सकते हैं:

चीन

चीन पाकिस्तान का सबसे बड़ा सैन्य और कूटनीतिक सहयोगी है। दोनों देशों के बीच गहरे रिश्ते हैं, और चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) इसका प्रमाण है। यदि युद्ध होता है, तो चीन पाकिस्तान को सैन्य उपकरण, मिसाइलें, और खुफिया जानकारी दे सकता है। हालांकि, भारत और चीन के व्यापारिक रिश्तों को देखते हुए, चीन का प्रत्यक्ष रूप से युद्ध में शामिल होना उतना आसान नहीं होगा, फिर भी वह पाकिस्तान को समर्थन दे सकता है।

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तुर्की

तुर्की ने हाल के वर्षों में पाकिस्तान के साथ सैन्य सहयोग बढ़ाया है। तुर्की ने पाकिस्तान को सैन्य सामग्री भेजी है और युद्ध में पाकिस्तान को कूटनीतिक और सैन्य समर्थन देने की संभावना है।

इस्लामिक देशों का संगठन (OIC)

पाकिस्तान OIC का सदस्य है, और कुछ इस्लामिक देश, जैसे मलेशिया और ईरान, कूटनीतिक रूप से पाकिस्तान का समर्थन कर सकते हैं। हालांकि, इन देशों के भारत के साथ भी मजबूत आर्थिक रिश्ते हैं, जिससे खुलकर युद्ध में शामिल होने की संभावना कम है।

तटस्थ देश

उत्तर कोरिया

उत्तर कोरिया और पाकिस्तान के बीच पुराने रिश्ते रहे हैं, लेकिन वर्तमान में ये रिश्ते उतने मजबूत नहीं हैं। उत्तर कोरिया ने युद्ध के दौरान तटस्थ रहने की संभावना जताई है।

बांग्लादेश

बांग्लादेश का रुख भी तटस्थ हो सकता है, क्योंकि उसके भारत के साथ ऐतिहासिक रिश्ते हैं, लेकिन पाकिस्तान के साथ भी उसके कुछ रिश्ते हैं, जिससे वह खुलकर किसी के पक्ष में नहीं आ सकता।

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Delhi Crime News: दिल्ली में ‘दाढ़ी वाले बाबा’ का खौ़फनाक कांड! बीच सड़क ...

Delhi Crime News: उत्तर पश्चिम दिल्ली के आदर्श नगर में 20 अप्रैल को हुई दो युवकों की हत्या का पुलिस ने खुलासा करते हुए 65 वर्षीय आरोपी नंद किशोर को गिरफ्तार किया है। आरोपी ने पुलिस पूछताछ में हत्या की वजह के बारे में बताया और अपना अपराध स्वीकार किया। पुलिस ने इस मामले में गंभीरता से जांच करते हुए आरोपी को जल्द पकड़ लिया और उसकी शातिर अपराधिक पृष्ठभूमि का भी खुलासा हुआ।

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हत्या की घटना और आरोप- Delhi Crime News

20 अप्रैल की रात को आदर्श नगर मेट्रो स्टेशन के पास दो युवकों की हत्या की सूचना मिली। मृतकों के साथ उनका एक दोस्त, आबिद, भी मौजूद था, जो इस घटना में घायल हो गया था। आबिद की शिकायत के आधार पर पुलिस ने केस दर्ज किया और जांच की जिम्मेदारी स्पेशल स्टाफ को सौंप दी। जांच टीम के प्रमुख सोमवीर सिंह के नेतृत्व में शुरू हुई इस जांच में पता चला कि हत्या का आरोपी एक बुजुर्ग व्यक्ति था, जिसे ‘बैग वाले दाढ़ी बाबा’ के नाम से भी पहचाना जा रहा था।

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सीसीटीवी फुटेज और आरोपी की पहचान

स्पेशल स्टाफ टीम के हेडकांस्टेबल नरसी ने घटनास्थल के पास लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच की, जिससे महत्वपूर्ण सुराग मिला। फुटेज में आरोपी बुजुर्ग व्यक्ति को ई-रिक्शा पर बैठते हुए देखा गया था। वह शालीमार बाग से होते हुए नानक प्याऊ गुरुद्वारा की ओर जाता दिखाई दिया, और फिर सराय रोहिल्ला रेलवे स्टेशन में घुसकर भाग निकला। इस स्पष्ट फुटेज को पुलिस ने बाइक से घर-घर सामान पहुंचाने वाले युवकों के व्हाट्सऐप ग्रुप पर प्रसारित किया और आरोपी की पहचान में मदद मांगी।

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आरोपी की गिरफ्तारी और पूछताछ

शनिवार को एक युवक ने सिग्नेचर ब्रिज के पास संदिग्ध व्यक्ति को देखा और तुरंत पुलिस को सूचित किया। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया और पूछताछ की। आरोपी ने अपना नाम नंद किशोर बताया और हत्या की वजह का खुलासा किया। नंद किशोर ने बताया कि वह फुटपाथ पर सोता था और घटना वाली रात वह दोस्तों के साथ नशा कर रहा था। इस दौरान वैन चालक कमल ने उसके पास वाहन खड़ा किया, जिससे दोनों के बीच कहासुनी हो गई। इसके बाद कमल ने अपने दोस्तों अमजद और आबिद को बुला लिया, जो आरोपी को धमकाने लगे। इसके बाद नंद किशोर ने अपने झोले से चाकू निकाला और उन पर हमला कर दिया।

शातिर अपराधी की शिनाख्त

पुलिस ने बताया कि नंद किशोर पर पहले से कई मामले दर्ज हैं। पहली एफआईआर 1983 में सब्जी मंडी थाने में दर्ज हुई थी। नंद किशोर राजस्थान के सीकर जिले का निवासी है और 15 साल की उम्र में घर से भागकर दिल्ली आ गया था। वह टीटू पहाड़ी गिरोह में शामिल हुआ था और उस पर हत्या के प्रयास, आर्म्स एक्ट, और चोरी के दो दर्जन से अधिक मामले दर्ज हैं। आखिरी मुकदमा 2013 में दर्ज हुआ था। वर्तमान में, नंद किशोर आदर्श नगर इलाके में भीख मांगकर अपना जीवन यापन कर रहा था।

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