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Jharkhand News: ना पैसा, ना प्रचार… बस जुनून! 32 सालों से 40,000 लड़कियों को दे...

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Jharkhand News: झारखंड के हजारीबाग जिले के एक ऐसे शिक्षक की कहानी जिसने बिना शोर मचाए हजारों जिंदगियों को एक नई दिशा दी है। हम बात कर रहे हैं उदय कुमार की, जो पिछले 32 सालों से कराटे की मुफ़्त ट्रेनिंग देकर बेटियों को न सिर्फ़ आत्मनिर्भर बना रहे हैं, बल्कि उन्हें ये यकीन भी दिला रहे हैं कि वे किसी से कम नहीं हैं। उदय कुमार का नाम आज हजारीबाग में ही नहीं, बल्कि पूरे झारखंड में सम्मान से लिया जाता है। अब तक वे करीब 40,000 लड़कियों को कराटे में निपुण बना चुके हैं। इनमें से कई लड़कियां आज राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत चुकी हैं, और अपने साथ-साथ जिले का नाम भी रोशन कर रही हैं।

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बचपन से था कराटे का जुनून- Jharkhand News

लोकल मीडिया से बातचीत में उदय कुमार ने बताया कि उन्हें बचपन से ही कराटे का शौक था। वो सिर्फ़ शौक तक सीमित नहीं रहे, बल्कि उन्होंने देश और विदेश के कई अनुभवी गुरुओं से ट्रेनिंग ली। ये उनका जुनून ही था, जिसने उन्हें खुद तक सीमित नहीं रहने दिया बल्कि उन्होंने अपने ज्ञान को समाज के लिए समर्पित कर दिया।

लड़कियों के लिए कुछ करने का ख्याल

जब उदय खुद कराटे की ट्रेनिंग ले रहे थे, तभी उन्होंने महसूस किया कि लड़कियां समाज में कई तरह की चुनौतियों का सामना करती हैं, खासकर छेड़छाड़ और असुरक्षा का डर। उस वक़्त उन्होंने ठान लिया कि वो ऐसी लड़कियों को ट्रेन करेंगे, ताकि वे खुद अपनी रक्षा कर सकें और आत्मविश्वास के साथ अपनी ज़िंदगी जी सकें।

शुरुआत आसान नहीं थी

कहना आसान था, लेकिन करना मुश्किल। शुरुआत में उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। गांव-गांव जाकर लोगों को समझाना, पैरेंट्स को मनाना कि वो अपनी बेटियों को कराटे सीखने भेजें, ये सब आसान नहीं था। कई बार उन्हें नकारात्मक बातें भी सुननी पड़ीं। लेकिन उदय ने हार नहीं मानी।

धीरे-धीरे लड़कियों की संख्या बढ़ने लगी, और जैसे-जैसे बेटियों ने कराटे में हुनर दिखाया, लोगों का नजरिया भी बदलने लगा। आज स्थिति ये है कि उदय कुमार की कई स्टूडेंट्स अब खुद ट्रेनर बन चुकी हैं और अपने-अपने इलाकों में लड़कियों को ट्रेनिंग दे रही हैं।

समर्पण ही है असली ताकत

उदय कुमार कहते हैं कि शहरों में तो खेल की तमाम सुविधाएं मिल जाती हैं, लेकिन गांव की लड़कियां अक्सर इनसे वंचित रह जाती हैं। इसी सोच के साथ उन्होंने गांव-गांव जाकर बेटियों को मजबूत बनाने का फैसला लिया था। और आज भी, बिना किसी सरकारी सपोर्ट या बड़े फंडिंग के, वो उसी समर्पण के साथ ये सेवा कर रहे हैं।

एक सादा इंसान, बड़ी प्रेरणा

उदय कुमार की कहानी बताती है कि अगर इरादा नेक हो और हौसला मजबूत, तो बदलाव लाना नामुमकिन नहीं। उन्होंने यह साबित कर दिया कि अकेला इंसान भी समाज की सोच और दिशा दोनों बदल सकता है, वो भी बिना किसी नाम या शोहरत के पीछे भागे।

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Indian Cricketers T20 Retirement: टी20 की दुनिया में नई पीढ़ी का राज, क्या राहुल-शमी-...

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Indian Cricketers T20 Retirement: भारतीय क्रिकेट टीम इन दिनों बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है, खासकर टी20 फॉर्मेट में। जहां एक ओर सूर्यकुमार यादव की कप्तानी में टीम अच्छा प्रदर्शन कर रही है, वहीं दूसरी ओर कुछ पुराने और जाने-माने नाम लंबे समय से टीम से बाहर हैं। इन खिलाड़ियों की फॉर्म, फिटनेस और टीम मैनेजमेंट की रणनीति को देखते हुए ये सवाल अब खुलकर सामने आ गया है कि  क्या अब इन सीनियर खिलाड़ियों को टी20 से रिटायरमेंट ले लेना चाहिए?

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केएल राहुल: शानदार आईपीएल के बावजूद टीम से बाहर- Indian Cricketers T20 Retirement

केएल राहुल एक वक्त टीम इंडिया के ऑल-फॉर्मेट प्लेयर माने जाते थे, लेकिन टी20 वर्ल्ड कप 2022 के बाद से उन्होंने इस फॉर्मेट में भारत के लिए कोई मैच नहीं खेला है। माना जा रहा है कि एशिया कप 2025 के लिए भी उन्हें टी20 स्क्वाड में जगह नहीं मिलेगी।

हालांकि, केएल राहुल ने आईपीएल 2025 में दिल्ली कैपिटल्स की ओर से शानदार प्रदर्शन किया। उन्होंने 539 रन बनाए, वो भी 53.9 की औसत और लगभग 150 के स्ट्राइक रेट के साथ। लेकिन इसके बावजूद, टीम मैनेजमेंट उन्हें इस फॉर्मेट के लिए भविष्य में शायद नहीं देख रहा है। ऐसे में राहुल के सामने विकल्प बहुत सीमित हैं या तो घरेलू क्रिकेट और आईपीएल तक सीमित रहें, या फिर टी20 से संन्यास लेकर बाकी फॉर्मेट्स पर फोकस करें।

मोहम्मद शमी: इंजरी और खराब फॉर्म ने किया किनारे

शमी का नाम जब भी आता है, तो उनका अनुभव और तेज़ गेंदबाज़ी की क्लास सामने आती है। लेकिन टी20 फॉर्मेट से उनका नाता अब लगभग टूट चुका है।

आईपीएल 2025 में मोहम्मद शमी ने सनराइजर्स हैदराबाद की टीम के लिए 9 मैच खेले। इन 9 मैचों में उन्होंने सिर्फ 6 विकेट ही लिए, यानी औसतन हर मैच में एक विकेट से भी कम। और उन्होंने बहुत ज़्यादा रन लुटाए — उनका इकॉनमी रेट (Economy Rate) 11 रन प्रति ओवर था।
ऊपर से बार-बार की इंजरी ने उनकी वापसी की राह और मुश्किल बना दी है। शमी ने अब तक टी20 से रिटायरमेंट को लेकर कोई बयान नहीं दिया है, लेकिन जिस तरह से वो टीम इंडिया की योजना में नहीं हैं, उसे देखकर ये कयास तेज हो गए हैं कि उनका टी20 करियर अब खत्म माना जा सकता है।

भुवनेश्वर कुमार: फॉर्म तो लौटी, पर क्या मौके भी मिलेंगे?

भुवनेश्वर कुमार की गेंदबाज़ी कभी भारत की सबसे बड़ी ताकत हुआ करती थी। लेकिन उन्होंने नवंबर 2022 के बाद से भारत के लिए कोई टी20 मैच नहीं खेला है। हालांकि, उन्होंने आईपीएल 2025 में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु के लिए बढ़िया प्रदर्शन किया और 14 मैचों में 17 विकेट चटकाए।
इस प्रदर्शन से उन्होंने दिखाया कि उनमें अब भी दम है, लेकिन टीम इंडिया की मौजूदा तेज़ गेंदबाज़ी लाइनअप में जसप्रीत बुमराह, अर्शदीप सिंह, मोहसिन खान जैसे नामों के सामने उनकी वापसी आसान नहीं लग रही।

रिटायरमेंट ही आखिरी रास्ता?

क्रिकेट में किसी का करियर एक पल में खत्म नहीं होता, लेकिन वक्त के साथ बदलाव ज़रूरी होता है। टीम इंडिया अब युवा खिलाड़ियों पर फोकस कर रही है, जो टी20 की तेज़ रफ्तार और आक्रामक सोच के साथ बेहतर तालमेल बिठा पा रहे हैं।

ऐसे में केएल राहुल, मोहम्मद शमी और भुवनेश्वर कुमार जैसे खिलाड़ी अगर खुद से टी20 को अलविदा कहते हैं, तो ये एक सम्मानजनक विदाई हो सकती है बगैर बेंच पर बैठे वक्त बिताए।

हालांकि, इनमें से किसी भी खिलाड़ी ने अब तक रिटायरमेंट का ऐलान नहीं किया है, लेकिन अब फैसला लेने का वक्त शायद बहुत दूर नहीं है।

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Uttarakhand Disaster: 10 साल में 4654 लैंडस्लाइड, 12758 बार बाढ़, 1100 से ज़्यादा मौत...

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Uttarakhand Disaster: उत्तराखंड, जिसे लोग श्रद्धा से ‘देवभूमि’ कहते हैं, वहां अब हर साल बरसात के मौसम में जैसे डर का मौसम भी उतर आता है। जहां एक ओर पहाड़ों की खूबसूरती लोगों को अपनी ओर खींचती है, वहीं दूसरी ओर बारिश, भूस्खलन, बादल फटना, बिजली गिरना और बाढ़ जैसी आपदाएं जिंदगी पर आफत बनकर टूटती हैं। बीते 10 सालों में उत्तराखंड में जो हुआ है, वो सिर्फ आंकड़े नहीं हैं वो दर्द, डर और तबाही की कहानियां हैं।

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10 सालों की तबाही की तस्वीर- Uttarakhand Disaster

उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि यहां हर साल कुदरत का कहर जारी है। साल 2015 से 2024 तक राज्य में:

  • 4654 बार भूस्खलन,
  • 92 बार एवलांच (हिमस्खलन),
  • 259 बार बिजली गिरी,
  • 67 बार बादल फटे,
  • और लगभग 12,758 बार तेज बारिश-बाढ़ जैसी घटनाएं दर्ज की गईं।

इन घटनाओं में लगभग 1000 से 1100 लोगों की जान गई है, जिसमें सबसे ज्यादा जानें भूस्खलन की वजह से गईं। अकेले लैंडस्लाइड ने ही 319 से ज्यादा जिंदगियां निगल लीं।

पौड़ी और उत्तरकाशी सबसे ज़्यादा प्रभावित

अगर जिलेवार बात करें तो सबसे ज़्यादा घटनाएं पौड़ी ज़िले में दर्ज़ हुई हैं। यहां 2040 भूस्खलन की घटनाएं हुईं। इसके अलावा:

  • पिथौरागढ़ – 1426
  • टिहरी – 279
  • चमोली – 258
  • चंपावत – 173
  • उत्तरकाशी – 80
  • रुद्रप्रयाग – 48
  • अल्मोड़ा – 30

उत्तरकाशी जिले ने भी बीते 10 सालों में काफी आपदाएं झेली हैं। यहां 1525 प्राकृतिक घटनाएं दर्ज़ की गईं जिनमें भूस्खलन, बाढ़, ओलावृष्टि, बादल फटना और जंगल की आग शामिल हैं।

1000 से ज़्यादा लोगों ने गंवाई जान

आपदा प्रबंधन विभाग और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले 10 सालों में उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं के चलते करीब 1000 से 1100 लोगों की मौत हो चुकी है। इन मौतों में सबसे ज़्यादा यानी 35 से 40 प्रतिशत लोगों की जान भूस्खलन की घटनाओं में गई है। वहीं, 25 से 30 प्रतिशत मौतें बाढ़ और भारी बारिश की वजह से हुई हैं। इसके अलावा, 15 से 20 प्रतिशत मौतें बादल फटने (क्लाउडबर्स्ट) जैसी घटनाओं के कारण दर्ज की गई हैं।

अगर सिर्फ भूस्खलन की बात करें, तो अब तक 319 लोग इसकी चपेट में आकर अपनी जान गंवा चुके हैं। यह आंकड़ा बताता है कि एक सामान्य-सी लगने वाली बारिश भी पहाड़ों में कितनी खतरनाक साबित हो सकती है। हर बरसात के साथ यहां के लोगों के सिर पर मौत मंडराने लगती है और कभी-कभी तो वो बचने का मौका भी नहीं देती।

05 अगस्त की त्रासदी: धराली और हर्षिल की दहशत

हाल ही में 05 अगस्त को उत्तरकाशी के धराली और हर्षिल में जो हुआ, उसने लोगों को अंदर तक झकझोर दिया। बारिश के साथ आए मलबे ने पूरे इलाके को तहस-नहस कर दिया। लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भागते नजर आए। सोशल मीडिया पर इस घटना के वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिन्हें देख हर कोई सहम जाता है।

सरकार का दावा: राहत के लिए हो रहा काम

उत्तराखंड आपदा प्रबंधन सचिव विनोद कुमार सुमन का कहना है कि सरकार आपदाओं के असर को कम करने के लिए लगातार काम कर रही है। जहां-जहां बार-बार भूस्खलन हो रहा है, वहां ट्रीटमेंट वर्क कराया जा रहा है। साथ ही हर घटना पर नज़र रखी जा रही है ताकि भविष्य में उसका समाधान निकाला जा सके।

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Haider Ali Rape Case: हीरो से विलेन बना हैदर अली! इंग्लैंड में रेप केस में फंसा पाक ब...

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Haider Ali Rape Case: पाकिस्तान क्रिकेट टीम के युवा बल्लेबाज हैदर अली एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं, लेकिन इस बार मामला बेहद गंभीर है। 24 साल के हैदर को इंग्लैंड में रेप के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। यह घटना 3 अगस्त की है, लेकिन इसकी जानकारी अब सामने आई है, जिसने पाकिस्तान क्रिकेट में हड़कंप मचा दिया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, हैदर अली उस वक्त पाकिस्तान शाहीन (ए टीम) का हिस्सा थे और इंग्लैंड के कैंटरबरी मैदान में MCSAC (मेलबर्न क्रिकेट क्लब की टीम) के खिलाफ मैच खेल रहे थे। खेल के दौरान ही ग्रेटर मैनचेस्टर पुलिस मैदान में पहुंची और उन्हें सबके सामने गिरफ्तार करके ले गई। इस घटना ने खिलाड़ियों और दर्शकों सभी को हैरान कर दिया।

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मैच से सीधे गिरफ्तारी, पासपोर्ट जब्त- Haider Ali Rape Case

गिरफ्तारी के बाद हैदर को जमानत पर छोड़ दिया गया है, लेकिन उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया गया है ताकि वो देश छोड़कर न जा सकें। इस समय वह ब्रिटेन में ही हैं और जांच प्रक्रिया का हिस्सा हैं।

रेप का आरोप लगाने वाली लड़की भी पाकिस्तानी मूल की बताई जा रही है। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए ज्यादा जानकारी फिलहाल सामने नहीं लाई गई है।

PCB का बयान: निलंबन के साथ कानूनी मदद का भरोसा

पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (PCB) ने इस मामले में आधिकारिक बयान जारी किया है। PCB के प्रवक्ता ने कहा, “हमें हैदर की गिरफ्तारी की जानकारी मिली है। जांच पूरी होने तक उन्हें सस्पेंड कर दिया गया है। हम UK में अपनी जांच भी करेंगे और इस मुश्किल वक्त में हैदर को पूरी कानूनी सहायता दी जाएगी।”

UK दौरे पर थी पाकिस्तान ए टीम, ज्यादातर खिलाड़ी लौटे

पाकिस्तान की ए टीम 17 जुलाई से 6 अगस्त तक इंग्लैंड दौरे पर थी। इस दौरान उन्होंने दो तीन-दिवसीय मैच (जो ड्रॉ रहे) और तीन वनडे मैच खेले, जिसमें पाकिस्तान ने सीरीज 2-1 से अपने नाम की। हैदर अली और कप्तान सऊद शकील को छोड़कर बाकी सभी खिलाड़ी 7 अगस्त को पाकिस्तान लौट चुके हैं। सऊद निजी कारणों से दुबई में रुके हुए हैं।

उभरता सितारा, अब विवादों का हिस्सा

हैदर अली को एक समय पाकिस्तान का भविष्य का सुपरस्टार माना जाता था। उन्होंने देश के लिए अब तक 2 वनडे और 35 टी-20 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं। 2020 के अंडर-19 वर्ल्ड कप में भारत के यशस्वी जायसवाल के साथ उनकी तुलना की जाती थी।

UK दौरे में कोच माइक हेसन उनकी फॉर्म और प्रोफेशनल रवैये से प्रभावित थे और उन्हें इस महीने शारजाह में होने वाली T20 ट्राई सीरीज़ में शामिल करने का सोच रहे थे। लेकिन अब ये घटना उनके इंटरनेशनल कमबैक पर बड़ा सवाल खड़ा कर रही है।

पहले भी विवादों में रहे हैं हैदर

यह पहली बार नहीं है जब हैदर विवादों में फंसे हैं। 2021 में PSL के दौरान अबू धाबी में उन्होंने कोविड प्रोटोकॉल तोड़ा था, जिसके कारण उन्हें इंग्लैंड और वेस्टइंडीज दौरे से बाहर कर दिया गया था।

करियर पर गहरा संकट

रेप केस में नाम सामने आने के बाद हैदर अली का करियर अब संभवतः सबसे बड़े संकट में है। और अगर वह निर्दोष भी साबित होते हैं, तब भी यह दाग उनके करियर पर हमेशा के लिए रह जाएगा।

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Naresh Barsagade sucess story: भारत में कीकर की गोंद तोड़ने वाला दलित बच्चा अमेरिका म...

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Naresh Barsagade sucess story: कभी सोचिए, जब आप अपनी ज़िंदगी के सबसे निचले मोड़ों पर होते हैं, तब क्या होता है अगर आपके पास वो सारी सुविधाएँ नहीं होतीं जिनका हम आजकल मजा लेते हैं? नरेश बरसागड़े की कहानी कुछ ऐसी ही है, जो दिल छूने वाली और उम्मीद जगाने वाली है। यह कहानी एक छोटे से गांव में जन्मे उस लड़के की है, जिसकी हथेलियों पर कीकर के पेड़ की गोंद चिपकी रहती थी, जो दिन-रात कड़ी मेहनत करता था, लेकिन कभी नहीं हारा। और आज वही लड़का, अपनी मेहनत और आत्मविश्वास के दम पर अमेरिका के लॉस एंजेलिस में सीनियर मैनेजर के पद पर काबिज है।

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एक वक्त था जब नरेश के पास कुछ नहीं था, न पढ़ाई के लिए किताबें, न समृद्धि की कोई राह। लेकिन आज वह उस स्थिति में हैं जहां वे अपनी तक़दीर खुद लिख रहे हैं। यह कहानी न केवल संघर्ष की है, बल्कि उस अनदेखी उम्मीद और संघर्ष की भी है, जो हर इंसान के अंदर छिपी होती है। आइए, हम आपको नरेश की उसी यात्रा से रूबरू कराते हैं, जो हर किसी के लिए एक प्रेरणा बन सकती है।

गरीबी से जूझते हुए बचपन- Naresh Barsagade sucess story

नरेश का जन्म महाराष्ट्र के एक गरीब दलित परिवार में हुआ था। वह जब छोटे थे, तो बाकी बच्चे खिलौनों से खेलते थे, लेकिन नरेश को 7 साल की उम्र में ही काम पर जाना पड़ता था। उनकी मां और दादी खेतों में काम करती थीं, लेकिन नरेश को सिर्फ आधी मजदूरी मिलती थी, क्योंकि वह बच्चा था। फिर भी उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी। 1980 के दशक के शुरुआती सालों में जब उनके घर में सूखा पड़ा, तो नरेश को दिनभर मेहनत करने के बदले ₹1 मिलते थे, जबकि उनकी मां को पूरी मजदूरी मिलती थी।

उनकी कहानी यहीं से शुरू होती है। नरेश ने कभी भी अपनी मुश्किलों के आगे घुटने नहीं टेके। वह जंगलों में जाकर कीकर के पेड़ों से गोंद इकट्ठा करते, ताकि उनका पढ़ाई का खर्च निकल सके। उन्होंने कभी भी गरीबी को अपनी सीमा नहीं समझा।

शिक्षा की तरफ पहला कदम

नरेश का मानना था कि शिक्षा ही वह रास्ता है, जिससे कोई भी मुश्किल पार की जा सकती है। जब वह सातवीं कक्षा में थे, उनके पेरेंट्स काम की वजह से घर से बाहर गए हुए थे। नरेश अकेले ही घर संभालते थे और खेतों में काम करते थे। सुबह-सुबह 5 बजे उठकर खेतों में काम करने के बाद, वह कीकर के पेड़ों से गोंद इकट्ठा करते और उसे ₹5 में बेचते थे। नरेश का कहना था, “मैं जानता था कि शिक्षा ही मेरे जीवन का सबसे बड़ा हथियार है। यही एक रास्ता था जिससे मैं अपनी जिंदगी बदल सकता था।”

हाई स्कूल और संघर्ष की अगली मंजिल

नरेश की मेहनत और लगन रंग लाई। वह हाई स्कूल के लिए गांव से बाहर गए और इसके लिए उन्होंने खुद अपनी फीस और हॉस्टल का खर्च उठाया। नरेश ने कभी अपने माता-पिता पर कोई बोझ नहीं डाला। उनकी मेहनत और कड़ी लगन ने उन्हें एक नई दिशा दी। वह अपने सपनों के लिए अकेले ही लड़ते रहे, और इसके बाद उन्हें यह महसूस हुआ कि अगर वह मेहनत करें तो हर मुश्किल का हल निकाला जा सकता है।

हाई स्कूल और कॉलेज की कठिन यात्रा

नरेश का सफर हाई स्कूल में आगे बढ़ा, जहां पर वह सरकारी हॉस्टल में रहते हुए पढ़ाई करते थे। उनका संघर्ष इस स्तर तक बढ़ चुका था कि वह कभी कभी खाना छोड़ कर अपनी किताबें खरीदने के लिए पैसे बचाते थे। नरेश बताते हैं, “जब मैं कॉलेज गया, तो मैंने कभी मैस का खाना छोड़कर पैसे बचाए, ताकि किताबें खरीद सकूं।”

उसके बाद, नरेश ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और जालंधर में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (NIT) से कंप्यूटर साइंस में डिग्री हासिल की। यहाँ भी गरीबी उनका पीछा नहीं छोड़ रही थी। लेकिन, नरेश ने इसे भी अवसर में बदलते हुए खुद को बेहतर करने की दिशा में काम किया।

अमेरिका में एक नई शुरुआत

1998 में नरेश को अमेरिका में नौकरी मिल गई। यहां तक पहुंचने के बाद भी नरेश ने कभी अपनी पढ़ाई को पीछे नहीं छोड़ा। उन्होंने अमेरिका में कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स किया और वहां भी शिक्षा के महत्व को समझा। आज नरेश लॉस एंजेलिस में एक बड़ी अमेरिकी कंपनी में सीनियर मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं और वहाँ एक शानदार जीवन जी रहे हैं।

नरेश का कहना है, “मेरे पेरेंट्स ने हमेशा मुझे पढ़ाई की अहमियत समझाई, और उनके कारण ही मैं आज अमेरिका में हूं।”

अमेरिका में जीवन की सफलता

नरेश आज लॉस एंजेलिस में एक आलीशान घर में रहते हैं, जहां उन्हें सभी सुख-सुविधाएं हासिल हैं। वह अपने जीवन के संघर्षों को याद करते हुए कहते हैं, “यह सब मेरी शिक्षा और बाबा साहब डॉ. अंबेडकर की प्रेरणा का फल है। अगर वह शिक्षा की क्रांति न लाते, तो शायद मैं आज यहां नहीं होता।”

नरेश की सफलता यह साबित करती है कि अगर किसी इंसान के पास लगन और शिक्षा का सही रास्ता हो, तो वह किसी भी मुश्किल को पार कर सकता है। नरेश ने आज तक जितनी भी सफलता पाई, वह केवल और केवल उनकी मेहनत और संघर्ष का परिणाम है।

नरेश का संदेश

नरेश का संदेश है, “हमारे जैसे बच्चों के लिए शिक्षा सबसे बड़ी ताकत है। अगर हम शिक्षा को समझें और उसकी अहमियत जानें, तो कोई भी सपना असंभव नहीं है।” वह मानते हैं कि सरकारी स्कूलों का होना बहुत जरूरी है, क्योंकि यही वह जगह है जहां गरीब बच्चों को शिक्षा मिलती है। अगर सरकारी स्कूल बंद हुए तो नरेश जैसे हजारों सपने मर जाएंगे।

आज नरेश की सफलता सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि उन सभी लोगों की है जो समाज में बदलाव लाने के लिए काम कर रहे हैं। नरेश का जीवन यह साबित करता है कि शिक्षा ही हर समस्या का हल है। तो, अगर हम अपने बच्चों को शिक्षा देंगे, तो हम न केवल उनके जीवन को संवार सकते हैं, बल्कि पूरे समाज को भी एक नई दिशा दे सकते हैं।

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US bounty on Venezuela President: वेनेजुएला के राष्ट्रपति पर 50 मिलियन डॉलर का इनाम, ...

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US bounty on Venezuela President: क्या आप विश्वास करेंगे कि वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो की गिरफ्तारी पर अब ओसामा बिन लादेन से भी ज्यादा इनाम रखा गया है? हां, आपने सही सुना! अमेरिका ने एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो पर अपना इनाम दोगुना कर दिया है। अब मादुरो की गिरफ्तारी की सूचना देने पर अमेरिका 50 मिलियन डॉलर (करीब 438 करोड़ रुपये) का इनाम देने की घोषणा कर रहा। आखिर अमेरिका ने क्यों रखा इतना बड़ा इनाम, और मादुरो पर क्या हैं गंभीर आरोप, आइए जानते हैं।

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दरअसल, ट्रंप प्रशासन का आरोप है कि मादुरो दुनिया के सबसे बड़े ड्रग तस्करों में से एक हैं और उन्होंने कार्टेल्स के साथ मिलकर अमेरिका में फेंटानिल-मिश्रित कोकीन की सप्लाई की साजिश रची। अमेरिकी अधिकारियों के इस कदम ने दुनिया भर में हलचल मचा दी है।

मादुरो पर क्या हैं आरोप? (US  bounty on Venezuela President)

2020 में, ट्रंप प्रशासन ने मादुरो पर नार्को-टेररिज्म और कोकीन के आयात की साजिश में शामिल होने के आरोप लगाए थे। उस समय उनकी गिरफ्तारी के लिए 15 मिलियन डॉलर का इनाम रखा गया था। बाद में बाइडन प्रशासन ने इस राशि को बढ़ाकर 25 मिलियन डॉलर कर दिया। अब ट्रंप प्रशासन ने इस राशि को दोगुना कर 50 मिलियन डॉलर कर दिया है, जो ओसामा बिन लादेन पर रखे गए इनाम से भी ज्यादा है।

अमेरिकी अटॉर्नी जनरल पैम बॉन्डी ने वीडियो संदेश में कहा, “राष्ट्रपति ट्रंप के नेतृत्व में मादुरो को न्याय से बचने का मौका नहीं मिलेगा और उन्हें उनके अपराधों की सजा मिलेगी।” वेनेजुएला के राष्ट्रपति पर आरोप है कि उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े ड्रग तस्कर समूहों, जैसे ट्रेन डी अरागुआ और सिनालोआ कार्टेल्स के साथ मिलकर अमेरिका में कोकीन भेजने की साजिश रची।

मादुरो की सत्ता पर पकड़

हालांकि, भारी इनाम और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद मादुरो सत्ता पर काबिज हैं। 2024 में उनके चुनाव को लेकर अमेरिका, यूरोपीय संघ और कई लैटिन अमेरिकी देशों ने मादुरो की जीत को धोखाधड़ी बताया था और उनके प्रतिद्वंदी को वेनेजुएला का वैध राष्ट्रपति माना। लेकिन मादुरो ने इन सभी आरोपों को नकार दिया और अपनी सत्ता पर मजबूत पकड़ बनाई हुई है।

वेनेजुएला का पलटवार

अमेरिका के इस कदम के बाद वेनेजुएला सरकार ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। वेनेजुएला के विदेश मंत्री इवान गिल ने इस इनाम को ‘दयनीय’ बताते हुए कहा कि अमेरिकी अटॉर्नी जनरल “सस्ती राजनीतिक प्रचारबाजी” कर रही हैं। गिल ने आरोप लगाया कि यह वही शख्स है, जिसने ‘एप्स्टीन की सीक्रेट लिस्ट’ का झूठा वादा किया था। वेनेजुएला ने इसे केवल अमेरिका की नाकामी को छुपाने की एक कोशिश करार दिया।

वेनेजुएला के विदेश मंत्री युवान गिल ने अमेरिका सरकार के फैसले पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा, ‘जो ऐसा कर रहे हैं, हमें इस बात से कोई हैरानी नहीं है। वही जिसने एप्सटीन की गुप्त सूची होने का दावा किया था और जो राजनीतिक फायदों के लिए स्कैंडल में शामिल रहा हो।’

अमेरिका और वेनेजुएला के रिश्तों में खटास

इस घटना ने अमेरिका और वेनेजुएला के रिश्तों में और खटास बढ़ा दी है। आपको बता दें, पिछले महीने ट्रंप प्रशासन ने वेनेज़ुएला में बंद 10 अमेरिकी नागरिकों की रिहाई के लिए एक डील की थी। इसके बदले, अमेरिका ने वेनेज़ुएला के कई प्रवासियों को, जिन्हें ट्रंप की इमिग्रेशन नीति के तहत अल साल्वाडोर भेजा गया था, वापस लाने की अनुमति दी। इस डील के बाद, व्हाइट हाउस ने अमेरिकी तेल कंपनी शेवरॉन को वेनेज़ुएला में फिर से ड्रिलिंग की अनुमति दे दी, जो पहले विभिन्न प्रतिबंधों के चलते रुकी हुई थी।

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Trump Tariff War: भारत, रूस और चीन का उभार: क्या टैरिफ से ट्रंप अमेरिका की खोती हुई श...

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Trump Tariff War: जब दुनिया की सबसे बड़ी ताकतें आपस में टकराती हैं, तो केवल राजनीति या व्यापार नहीं, बल्कि वैश्विक शक्तियों के बीच सत्ता की लड़ाई भी होती है। एक ओर जहां भारत अपनी अर्थव्यवस्था और कूटनीतिक प्रभाव से दुनिया में नए स्थान बना रहा है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका जैसे महाशक्ति की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं। अमेरिकी नीतियाँ और उनके द्वारा भारत पर लगाए गए व्यापारिक टैरिफ़ इस बात का संकेत हैं कि अमेरिका को अब अपने एक पुराने दोस्त से ही खतरा महसूस होने लगा है।

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पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के शासनकाल में भारत और अमेरिका के रिश्तों में काफी गर्मजोशी थी, लेकिन जब से डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बने, अमेरिकी नीतियों में एक पूरी तरह से नया बदलाव देखा गया। भारत को हमेशा अमेरिका का करीबी दोस्त माना गया, लेकिन अब ट्रंप प्रशासन की नीतियों ने भारत को एक नई चुनौती दी है, और उस चुनौती का नाम है टैरिफ। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अमेरिका को डर है कि भारत अब वैश्विक मंच पर उसकी भूमिका चुनौती दे सकता है? आइए जानते हैं कि कैसे बदल रही है दुनिया और कैसे भारत इस नई स्थिति में अपने कदम मजबूती से रख रहा है।

अमेरिका की नई नीति: एकतरफा कूटनीति का दबाव – Trump Tariff War

अमेरिका, जो हमेशा भारत को अपना मित्र राष्ट्र बताता रहा है, अब भारत पर अपनी एकतरफा कूटनीतिक और व्यापारिक इच्छाएं थोप रहा है। भारत द्वारा इन इच्छाओं को ठुकराने के बाद अमेरिका ने भारत पर 50 फीसदी के टैरिफ़ लगा दिए। ये कदम न केवल व्यापारिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वैश्विक शक्ति समीकरणों को भी प्रभावित कर रहे हैं। अमेरिका के इस कड़े कदम का मुख्य कारण यह है कि वह भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव से चिंतित है, खासकर जब भारत, रूस और चीन जैसे देशों के साथ साझेदारी मजबूत कर रहा है।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से बदलते विश्वव्यवस्था के नियम

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत रूस के बीच शक्ति का बंटवारा हुआ था। लेकिन 1990 के दशक के अंत तक सोवियत रूस का पतन हो गया और अमेरिका दुनिया का एकमात्र सुपरपावर बन गया। हालांकि, 2000 के बाद भारत की अर्थव्यवस्था ने एक नया मोड़ लिया। भारत ने वैश्वीकरण और उदारवाद की दिशा में क़दम बढ़ाए और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में 8% की विकास दर हासिल की। इसके बाद, भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है।

चीन की बढ़ती शक्ति और अमेरिका की चिंता

वहीं चीन भी अपनी आर्थिक ताकत में तेजी से बढ़ रहा है। 2001 में WTO में शामिल होने के बाद चीन ने वैश्विक व्यापार में अपनी हिस्सेदारी को बढ़ाया और 2024 तक वह 14% वैश्विक निर्यात करता है। बुनियादी ढांचे में भारी निवेश और तकनीकी विकास ने चीन को दुनिया में प्रमुख नवाचार शक्ति बना दिया है। 2024 में चीन की GDP अमेरिका से कुछ ही कम होकर 18.3 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचने की संभावना है।

भारत और चीन का उभार अब अमेरिका के लिए एक चुनौती बन गया है, खासकर तब जब ये दोनों देशों ने रूस के साथ मिलकर BRICS और SCO जैसे मंचों पर अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती दी है।

अमेरिका की टैरिफ नीति: सिर्फ व्यापार नहीं, सत्ताई प्रभुत्व की चिंता

ट्रंप प्रशासन ने भारत, चीन और कई अन्य देशों पर नए टैरिफ़ लगाए। यह केवल व्यापारिक कदम नहीं था, बल्कि एक रणनीतिक चाल भी थी। ट्रंप का असल डर यह था कि अगर भारत और चीन जैसे देश रूस के साथ मिलकर वैश्विक संस्थाओं, व्यापार और वित्तीय संस्थानों में अमेरिका को दरकिनार कर देते हैं, तो वाशिंगटन की पकड़ कमजोर हो जाएगी। यही कारण है कि अमेरिका ने टैरिफ़ का इस्तेमाल आर्थिक हथियार के रूप में किया।

ब्रिक्स, SCO और नई साझेदारियाँ: अमेरिका की दवाब के खिलाफ भारत की रणनीति

भारत, चीन और रूस का बढ़ता गठबंधन अब पश्चिमी देशों की शक्ति को चुनौती दे रहा है। BRICS देशों के पास अब वैश्विक GDP का 26% हिस्सा है, जो G-7 के 44% से कम है, लेकिन यह तेजी से बढ़ रहा है। भारत और चीन, रूस से 80% से अधिक कच्चा तेल खरीदते हैं, और यह साझेदारी अमेरिकी शक्ति को कमजोर कर रही है।

भारत ने चीन के साथ सीमा विवाद और प्रतिस्पर्धा के बावजूद अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखा है। इसका मतलब यह है कि भारत न तो पूरी तरह से अमेरिकी खेमे में है, न ही चीन और रूस के खेमे में।

अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्व: क्या भारत-रूस-चीन गठबंधन इसे कमजोर कर सकता है?

अमेरिका का डर यह है कि अगर भारत, रूस और चीन मिलकर डॉलर के बजाय अपनी मुद्राओं का उपयोग करें या BRICS के गैर-डॉलर व्यापार को बढ़ावा दें, तो अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्व (US Dollar Dominance) कमजोर हो सकता है। 2024 तक वैश्विक व्यापार में डॉलर का हिस्सा 58% तक कम हो गया है, जो 2000 में 71% था।

विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप की टैरिफ नीति का असली उद्देश्य यही है अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को बचाए रखना।

भारत का आत्मनिर्भर और स्वतंत्र दृष्टिकोण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह स्पष्ट किया है कि भारत के लिए उसकी अर्थव्यवस्था और किसानों का हित सर्वोपरि है, और वह किसी भी देश के दबाव में आकर अपनी नीति नहीं बदलेगा। मोदी का यह बयान यह दर्शाता है कि भारत अब अपनी नीति और आर्थिक दृष्टिकोण में अधिक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बन चुका है।

बदलती वैश्विक व्यवस्था

ट्रंप के द्वारा लगाए गए टैरिफ़ और अमेरिका की बढ़ती चिंता के बावजूद, भारत और उसके सहयोगी देशों ने वैश्विक मंच पर अपनी रणनीति में बदलाव किया है। भारत, रूस और चीन के बीच बढ़ती साझेदारी, BRICS और SCO के मंचों पर भारत की बढ़ती भूमिका, और वैश्विक व्यापार में बढ़ते विकल्प, ये सब संकेत दे रहे हैं कि दुनिया अब एक बहुपक्षीय व्यवस्था की ओर बढ़ रही है। भारत की बढ़ती ताकत और आत्मनिर्भरता से अमेरिका की चिंताएँ स्पष्ट हैं, और यही ट्रंप का असली डर है।

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जब देवी-देवताओं ने निभाया भाई-बहन का फर्ज, रक्षाबंधन से जुड़ी पौराणिक कहानियाँ

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Raksha Bandhan Story: भाई-बहन के अटूट प्रेम और कर्तव्य का प्रतीक रक्षाबंधन, सिर्फ़ एक धागा नहीं, बल्कि सदियों से चली आ रही कहानियों और मिथकों से जुड़ा एक त्योहार है। यह त्योहार सदियों से भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण रहा है और हमारी पौराणिक कथाओं में गहराई से निहित है। ये कहानियाँ देवताओं, राजाओं और आम लोगों के बीच के रिश्तों को दर्शाती हैं, जहाँ एक भाई ने अपनी बहन के बुलाने पर उसकी रक्षा करने का वादा निभाया। तो चलिए आपको इस लेख ऐसी ही 5 मिथक कहानियों के बारे में बताते है।

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इंद्र और शचि पौराणिक कथा

माना जाता है कि, एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार दैत्यों और देवताओं के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था। दैत्यों की शक्ति के आगे देवता कमजोर पड़ रहे थे। इंद्र की पत्नी इंद्राणी इस बात से बहुत चिंतित थीं। उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की और भगवान विष्णु ने इंद्राणी को एक पवित्र धागा दिया। इंद्राणी ने वह धागा इंद्र की कलाई पर बांध दिया। इस धागे के प्रभाव से इंद्र को नई शक्ति प्राप्त हुई और उन्होंने दैत्यों पर विजय प्राप्त की। यह घटना रक्षा बंधन के महत्व को भी दर्शाती है, जहाँ एक धागा सुरक्षा और विजय का प्रतीक बन जाता है।

राजा बलि और देवी लक्ष्मी रक्षा का वचन

एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन पग भूमि दान में माँगी थी, तब राजा बलि ने उन्हें सबकुछ दान कर दिया था। भगवान विष्णु राजा बलि की भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्होंने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया। इसके बाद भगवान विष्णु वहीं राजा बलि के द्वारपाल बनकर रहने लगे। इस बात से देवी लक्ष्मी बहुत परेशान हो गईं।

तब देवी लक्ष्मी राजा बलि के पास एक साधारण स्त्री के वेश में गईं और उन्होंने बलि की कलाई पर एक धागा बाँध दिया। बलि ने जब उनसे उनकी इच्छा पूछी, तो देवी लक्ष्मी ने अपने पति भगवान विष्णु को वापस माँगा। बलि ने अपनी बहन के रूप में देवी लक्ष्मी की इच्छा पूरी की और भगवान विष्णु को वापस जाने दिया। तभी से यह दिन भाई-बहन के प्रेम और रक्षा के वचन के रूप में मनाया जाने लगा।

द्रौपदी और भगवान कृष्ण धागे का अटूट बंधन

महाभारत की एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार श्री कृष्ण की उंगली में चोट लग गई थी और उसमें से खून बह रहा था। द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर उनकी उंगली पर बाँधा। इस स्नेह और सम्मान से अभिभूत होकर, कृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि वे हर संकट में उनकी रक्षा करेंगे। द्रौपदी के चीरहरण के समय उन्होंने यह वचन पूरा किया। यह घटना भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक बन गई।

रानी कर्णावती और हुमायूँ

मध्यकालीन इतिहास में एक प्रसिद्ध कथा है कि चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपने राज्य की रक्षा के लिए मुगल सम्राट हुमायूँ को राखी भेजी थी। हुमायूँ उस समय कहीं और युद्ध में व्यस्त थे, लेकिन रानी की राखी मिलते ही वे तुरंत अपनी सेना के साथ रानी की सहायता और रक्षा के लिए चित्तौड़ पहुँच गए। यह घटना धर्म और सीमाओं से परे भाई-बहन के रिश्ते को दर्शाती है।

संतोषी माता

एक प्रचलित कथा के अनुसार, भगवान गणेश के पुत्र शुभ और लाभ अपनी बुआ से राखी बंधवाने की ज़िद पर अड़े थे क्योंकि उनकी कोई बहन नहीं थी। गणेश ने उनकी इच्छा पूरी करने के लिए एक दिव्य ज्योति से संतोषी माता की रचना की। संतोषी माता ने शुभ और लाभ को राखी बांधी और तब से भाई-बहन के बीच इस अटूट बंधन का महत्व और भी गहरा हो गया।

Swetha Menon FIR Case: Shah Rukh Khan की ‘अशोका’ की हीरोइन श्वेता मेनन अश...

Swetha Menon FIR Case: 51 वर्षीय अभिनेत्री श्वेता मेनन, जो बॉलीवुड और साउथ इंडियन फिल्मों में अपने अभिनय के लिए पहचानी जाती हैं, इस समय विवादों में घिर गई हैं। उनके खिलाफ कोच्चि में एक शिकायत दर्ज की गई है, जिसमें उन पर अश्लीलता फैलाने का आरोप लगाया गया है। श्वेता, जिन्होंने शाह रुख खान, सलमान खान, और आमिर खान जैसे सुपरस्टार्स के साथ काम किया है, अब एक गंभीर कानूनी मामले का सामना कर रही हैं।

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क्या है पूरा मामला? (Swetha Menon FIR Case)

यह मामला एर्नाकुलम सेंट्रल पुलिस में एक शिकायत के बाद सामने आया, जो एक सामाजिक कार्यकर्ता मार्टिन मेनाचेरी ने दर्ज करवाई है। उनका आरोप है कि श्वेता मेनन ने कुछ अश्लील फिल्मों और विज्ञापनों में काम किया है, जो सार्वजनिक रूप से अश्लीलता फैलाने का कारण बने हैं। इसके बाद, एर्नाकुलम की सीजेएम अदालत ने स्थानीय पुलिस को मामले में कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।

आरोपों की जड़

श्वेता मेनन के खिलाफ एफआईआर में खास तौर पर उनकी फिल्मों “थिनिरवेदम”, “पलेरी माणिक्यम: ओरु पथिरकोलापथकथिंते कथा”, और “कालीमन्नू” में उनकी भूमिकाओं का उल्लेख किया गया है। साथ ही, एक कंडोम विज्ञापन में उनकी उपस्थिति पर भी सवाल उठाया गया है, जिसे आरोपों का आधार माना जा रहा है। श्वेता के खिलाफ यह मामला Prevention of Obscenity Act और IT Act के तहत दर्ज किया गया है।

 

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सामाजिक कार्यकर्ता की शिकायत

मार्टिन मेनाचेरी, जिन्होंने यह शिकायत दर्ज करवाई है, एक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उनका कहना है कि श्वेता का यह व्यवहार सार्वजनिक नैतिकता और समाज के लिए सही नहीं है। उनका आरोप है कि इस प्रकार की फिल्में और विज्ञापन समाज में अश्लीलता को बढ़ावा देते हैं और युवाओं पर बुरा असर डालते हैं।

 

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श्वेता मेनन की फिल्मी यात्रा

श्वेता मेनन ने मलयालम सिनेमा में तो काफी नाम कमाया ही है, साथ ही बॉलीवुड में भी अपनी पहचान बनाई। श्वेता ने 1997 में फिल्म पृथ्वी से बॉलीवुड में कदम रखा था, जिसमें शिल्पा शेट्टी और सुनील शेट्टी जैसे सितारे थे। इसके बाद वह सलमान खान की बंध्न, करिश्मा कपूर और गोविंदा की फिल्म शिकारी, शाह रुख खान की अशोका और मिथुन चक्रवर्ती की फिल्म खतरों के खिलाड़ी में भी नजर आईं। इसके अलावा, वह हां मैंने भी प्यार किया है, वध, अनर्थ, मकबूल, हंगामा और रन जैसी फिल्मों का भी हिस्सा रह चुकी हैं।

उनके करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ उस समय आया जब वह आमिर खान और अजय देवगन की फिल्म इश्क के गाने “हमको तुमसे प्यार है” में नजर आईं। इस गाने की वजह से उन्हें एक व्यापक पहचान मिली। श्वेता मेनन ने अपनी फिल्मों में न केवल अदाकारी की बल्कि संगीत वीडियोज़ और विज्ञापनों में भी काम किया। लेकिन अब यह विवाद उनके करियर पर सवालिया निशान लगाता हुआ दिखाई दे रहा है।

सामाजिक मीडिया पर प्रतिक्रिया

इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर श्वेता मेनन के खिलाफ कई तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कई लोग उनके खिलाफ इस मामले में सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, जबकि कुछ लोग उनके काम को लेकर समर्थन भी जता रहे हैं। यह मामला अब कानूनी दांव-पेंच में फंस चुका है, और इसके आगे क्या रुख होगा, यह तो समय ही बताएगा।

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Vaishno Devi Travel Guide: वैष्णो देवी के लिए कटरा से भवन तक कैसे पहुंचे? पैदल, घोड़ा...

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Vaishno Devi Travel Guide: हर साल लाखों श्रद्धालु मां वैष्णो देवी के दर्शन के लिए जम्मू के कटरा पहुंचते हैं, लेकिन असली परीक्षा तो यहीं से शुरू होती है करीब 13 किलोमीटर लंबी चढ़ाई, जो माता के भवन तक ले जाती है। कोई पैदल चलता है, कोई घोड़े-खच्चरों की सवारी करता है, तो कोई हेलीकॉप्टर या पालकी का सहारा लेता है। अगर आप पहली बार जा रहे हैं, या फिर ये जानना चाहते हैं कि कौन-सा रास्ता या साधन आपके लिए सबसे बेहतर रहेगा, तो ये रिपोर्ट आपके लिए है। इसमें हम आपको बताएंगे कि कटरा से भवन तक पहुंचने के हर छोटे-बड़े विकल्प की पूरी जानकारी, उनके फायदे-नुकसान और जरूरी सुझाव, ताकि आपकी यात्रा बन जाए आसान, सुकूनभरी और यादगार।

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पुराने रास्ते vs ताराकोट मार्ग: कौन-सा बेहतर? (Vaishno Devi Travel Guide)

पुराना मार्ग:

यह मार्ग संकरा होता है और दुकानों, घोड़े-खच्चरों और मानव चहल पहल से भरा रहता है। यहां अक्सर घोड़े-खच्चरों की लीद गिरी होती है और ऊपरी हिस्सों में खड़ी चढ़ाई होती है जिससे थकावट जल्दी होती है। इसलिए पैदल यात्रा करने वालों के लिए यह विकल्प कम सुझाया जाता है।

ताराकोट मार्ग:

ताराकोट वाला नया रास्ता उन लोगों के लिए एकदम सही है जो भीड़-भाड़ और घोड़े-खच्चरों की गंदगी से दूर शांति से माता रानी के दर्शन करना चाहते हैं। इस रास्ते पर वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड ने काफी अच्छी सुविधाएं दी हैं।

यहां हर कुछ दूरी पर साफ़-सुथरे टॉयलेट, पीने के लिए ठंडा पानी और खाने-पीने की चीज़ें मिलती हैं और सबसे अच्छी बात ये कि ये सब कुछ बिल्कुल मुफ्त है। इसके अलावा रास्ते में फ्री लंगर (भोजन) की भी व्यवस्था रहती है, जहां आप आराम से बैठकर खाना खा सकते हैं, थकान मिटा सकते हैं और फिर दोबारा यात्रा शुरू कर सकते हैं।

इस रास्ते की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां सफर करना बहुत आसान लगता है। रास्ता खुला और चौड़ा है, जिससे भीड़ भी कम महसूस होती है और सफर में मन भी शांत रहता है।

आगे चलकर ये रास्ता पुराने रास्ते से अर्धकुंवारी नाम की जगह पर जाकर जुड़ जाता है। वहां से भवन तक यानी आखिरी 3-4 किलोमीटर का रास्ता बचता है, जो ज्यादा मुश्किल नहीं होता और आसानी से पार किया जा सकता है।

यात्रा के आसान संसाधन: जब पैदल चढ़ाई लगे भारी, तो अपनाएं ये विकल्प

वहीं, मां वैष्णो देवी के दर्शन के लिए कटरा से भवन तक की 13 किलोमीटर लंबी चढ़ाई हर किसी के बस की बात नहीं होती। खासकर बुजुर्गों, बच्चों या बीमार यात्रियों के लिए ये सफर थोड़ा थकाने वाला हो सकता है। लेकिन अच्छी बात ये है कि आज इस यात्रा को आसान बनाने के लिए कई सुविधाएं उपलब्ध हैं। चलिए जानते हैं ऐसे 6 प्रमुख विकल्प जो आपकी यात्रा को आरामदायक बना सकते हैं।

हेलिकॉप्टर सेवा

अगर आप बुजुर्ग हैं, स्वास्थ्य से जुड़ी कोई परेशानी है या बस भीड़-भाड़ से बचना चाहते हैं, तो हेलिकॉप्टर यात्रा सबसे बेहतर विकल्प है। इस सेवा के लिए आपको लगभग 60 दिन पहले बुकिंग करानी होती है। एक तरफ की यात्रा का शुल्क करीब ₹1,045 प्रति व्यक्ति है। हेलीकॉप्टर आपको कटरा से सांझीछत तक ले जाता है, जो भवन से लगभग 2.5 किलोमीटर की दूरी पर है। वहां से आप पैदल या अन्य साधनों से माता के भवन तक पहुंच सकते हैं। उड़ान का समय सिर्फ 8 मिनट होता है, यानी कम समय में थकानमुक्त यात्रा।

घोड़े और खच्चर सेवा

यह विकल्प पारंपरिक जरूर है, लेकिन आज भी काफ़ी इस्तेमाल होता है। खासतौर पर जिन लोगों को ज्यादा चलना मुश्किल होता है, वे इस सुविधा का लाभ लेते हैं। कटरा से अर्धकुंवारी तक का किराया लगभग ₹700 और अर्धकुंवारी से भवन तक का किराया ₹400 के आसपास होता है। हालांकि गर्मियों में या ज्यादा भीड़ के वक्त यह सफर कुछ असहज हो सकता है, इसलिए बुजुर्गों और छोटे बच्चों के लिए यह थोड़ा चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

प्रैम सुविधा (पालने जैसा वाहन)

अगर आप छोटे बच्चों के साथ यात्रा पर हैं, तो प्रैम एक बढ़िया विकल्प है। इसमें एक प्रैम में दो बच्चों को आराम से बैठाया जा सकता है। कटरा से अर्धकुंवारी तक का किराया ₹350–₹500 और कटरा से भवन तक ₹700–₹800 तक होता है। यह सुविधा बच्चों के लिए सुरक्षित और आरामदायक होती है, लेकिन बजट थोड़ा बढ़ सकता है।

रोपवे सेवा (भैरव बाबा तक)

माता वैष्णो देवी के भवन से आगे भैरव बाबा के मंदिर तक की चढ़ाई और भी कठिन मानी जाती है। ऐसे में श्राइन बोर्ड ने यहां रोपवे सुविधा शुरू की है। करीब 1.5 किलोमीटर की दूरी वाला यह रोपवे 15 मिनट में आपको सीधे भैरव घाटी पहुंचा देता है। इस सेवा का प्रति व्यक्ति शुल्क ₹100 है और 40–50 लोग एक बार में यात्रा कर सकते हैं। इससे भैरव बाबा के दर्शन अब पहले से कहीं ज्यादा आसान हो गए हैं।

पालकी सेवा

जो लोग घोड़े या खच्चर पर सफर नहीं कर सकते, उनके लिए पालकी सेवा एक सुरक्षित और आरामदायक विकल्प है। पालकी खासकर बुजुर्गों और बीमार लोगों के लिए बेहतर मानी जाती है। अगर वजन 100 किलो से कम है तो शुल्क ₹4,000 और 100 किलो से ज़्यादा है तो ₹4,500 तक लगता है। चार लोग मिलकर पालकी उठाते हैं, इसलिए यह थोड़ा महंगा जरूर है, लेकिन सफर बेहद सहज रहता है।

बैटरी कार सेवा

वैष्णो देवी यात्रा में बैटरी कार सेवा भी अब उपलब्ध है, जो खासतौर पर दिव्यांगों, बुजुर्गों और बीमार यात्रियों के लिए शुरू की गई है। यह सेवा अर्धकुंवारी से भवन तक चलती है और प्रति व्यक्ति लगभग ₹350 का चार्ज लगता है। यह सफर बेहद आरामदायक होता है और यात्रा के दौरान एक तरह का मॉडर्न टच भी देता है।

इन सुविधाओं की मदद से अब मां वैष्णो देवी के दर्शन पहले से कहीं ज्यादा आसान, सुरक्षित और सुविधाजनक हो गए हैं। आप अपनी ज़रूरत और बजट के मुताबिक इनमें से कोई भी विकल्प चुन सकते हैं और बिना थके माता के दर्शन का सुख प्राप्त कर सकते हैं।

यात्रा का सही निर्णय कैसे लें?

  • शारीरिक स्थिति: बुजुर्ग, बच्चा या दिव्यांग होने पर हेलिकॉप्टर, प्रैम, पालकी या बैटरी कार चुनें।
  • बजट: हेलिकॉप्टर और पालकी महंगे हो सकते हैं, जबकि बैटरी कार और प्रैम किफायती हैं।
  • आराम vs अनुभव:
    • अनुभव की तलाश में हैं—ताराकोट मार्ग और थोड़ी पैदल चढ़ाई के साथ आपकी यात्रा स्मरणीय बनेगी।
    • आकस्मिक आराम चाहिए—हेलिकॉप्टर या बैटरी कार बेहतर रहेंगी।

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