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Sikhism in Alaska: जहां बर्फ गिरती है, वहां गुरबानी गूंजती है: अलास्का में सिख जीवन क...

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Sikhism in Alaska: कल्पना कीजिए, आप अमेरिका के अलास्का के बर्फीले पहाड़ों और सर्द हवाओं के बीच एक सड़क पर चल रहे हों, जहां चारों ओर बर्फ़ की सफेद चादर फैली हो। यहां का ठंडा वातावरण और शांति इतनी गहरी है कि मन करता है बस इसे महसूस करते जाएं। लेकिन अचानक, बीच सड़क पर एक रंग-बिरंगी दुनिया नजर आती है। यह दुनिया है अलास्का में बसे सिख समुदाय की, जिन्होंने इस ठंडे और दूर-दराज के राज्य में अपनी संस्कृति और धर्म को न सिर्फ संजोकर रखा है, बल्कि यहां अपने सपनों को भी साकार किया है।

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क्या आप जानना चाहेंगे कि यह छोटा सा समुदाय यहां कैसे पला-बढ़ा? कैसे उन्होंने बर्फ़ की इस दुनिया में अपनी सांस्कृतिक धरोहर को जिंदा रखा? चलिए, हम आपको इस अद्भुत यात्रा पर ले चलते हैं।

अलास्का में सिख समुदाय- Sikhism in Alaska

अमेरिका में सिखों की संख्या काफी है, लेकिन अलास्का में सिखों की संख्या बहुत बड़ी नहीं है, लेकिन उनका योगदान निश्चित रूप से उल्लेखनीय है। यह सिख समुदाय मुख्य रूप से पंजाबी प्रवासियों का है, जिन्होंने अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए इस ठंडे और दूर-दराज के राज्य का रुख किया। जब से सिख परिवारों ने अलास्का में कदम रखा, उनका सपना था कि वे यहां न केवल अपने लिए एक बेहतर जीवन बनाएंगे, बल्कि अपनी सांस्कृतिक पहचान भी बनाए रखेंगे।

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 2000 के दशक में एंकरेज जैसे शहरों में सिख परिवारों की संख्या बढ़ी, लेकिन समय के साथ बहुत से परिवार सिएटल जैसे बड़े शहरों की ओर चले गए। इसके बावजूद, अलास्का में कुछ पंजाबी परिवार आज भी अपनी सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखते हुए जीवन जी रहे हैं। इन परिवारों ने न सिर्फ अपने धर्म को बनाए रखा, बल्कि यह भी दिखाया कि अगर कोई ठान ले तो किसी भी परिस्थिति में अपनी पहचान बनाई जा सकती है।

गुरुद्वारा: सिख धर्म का केंद्र

अब, हम आपको एक खास जगह के बारे में बताते हैं, जो इस समुदाय के लिए धर्म और संस्कृति का केंद्र है। यह जगह है “द सिख सोसाइटी ऑफ अलास्का”, जो एंकरेज में स्थित है। यह गुरुद्वारा न केवल पूजा और कीर्तन का स्थान है, बल्कि यहां पर लंगर भी चलता है, जो सिख धर्म का महत्वपूर्ण हिस्सा है। लंगर में, न केवल सिख समुदाय के लोग भोजन करते हैं, बल्कि यहाँ पर सभी को, चाहे वो किसी भी धर्म, जाति या संस्कृति से हो, मुफ्त खाना मिलता है। यह सेवा और समानता की भावना को दर्शाता है, जो सिख धर्म का मूलमंत्र है।

अलास्का में सिख धर्म का यह केंद्र न सिर्फ धार्मिक गतिविधियों का स्थान है, बल्कि यह समुदाय को जोड़ने और उनकी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने का माध्यम भी है। इस गुरुद्वारे में हर रोज़ धार्मिक आयोजन होते हैं, और यहाँ सिखों के साथ-साथ अन्य लोग भी आते हैं।

पंजाबी ट्रक ड्राइवर और होटल व्यवसाय: मेहनत और संघर्ष की कहानी

अब बात करते हैं उन सिखों के बारे में जो अलास्का में ट्रक ड्राइविंग और होटल उद्योग में सक्रिय हैं। अमेरिका के अन्य हिस्सों की तरह, अलास्का में भी सिख समुदाय ने ट्रक ड्राइविंग का व्यवसाय अपनाया है। आपको बता दें, अमेरिका में लगभग 150,000 सिख ट्रक ड्राइवर हैं, जिनमें से अधिकतर कैलिफोर्निया और टेक्सास जैसे राज्यों में काम करते हैं। हालांकि, अलास्का के मौसम और कठिन सड़कों को देखते हुए, यहाँ भी कुछ सिख ट्रक ड्राइवर काम कर रहे होंगे। ट्रक ड्राइविंग सिख धर्म के सिद्धांतों के अनुकूल है, क्योंकि इसमें ईमानदारी से काम करना और अपनी मेहनत से जीवन यापन करना पड़ता है।

इसके अलावा, सिख समुदाय होटल और मोटल व्यवसाय में भी सक्रिय है। एंकरेज और फेयरबैंक्स जैसे इलाकों में सिख परिवार होटल व्यवसाय चला रहे हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी लाभ हो रहा है। इस व्यवसाय में सिखों का योगदान अलास्का के पर्यटन उद्योग के लिए भी महत्वपूर्ण है।

सांस्कृतिक योगदान और त्योहार: एक रंगीन दुनिया

जब हम बात करते हैं सिख समुदाय के सांस्कृतिक योगदान की, तो सबसे पहले जिन बातों का ध्यान आता है, वह हैं वैसाखी और गुरु नानक जयंती जैसे बड़े त्योहार। इन त्योहारों को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, और इनका खास हिस्सा है लंगर। इन त्योहारों के दौरान, सिख समुदाय लंगर का आयोजन करता है, जिसमें सभी के लिए मुफ्त भोजन की व्यवस्था होती है। यह सिख धर्म की सेवा और समानता की भावना को जीवित रखने का एक तरीका है।

सिख समुदाय ने हमेशा अपने आसपास के लोगों की मदद करने के लिए स्वयंसेवी कार्य किए हैं। उदाहरण के तौर पर, मुख्या कौर और हरी देव सिंह खालसा जैसे सिख जोड़े, जो जूनो में रहते हैं, बेघर लोगों की मदद करते हैं। यह सिख धर्म के सेवा के सिद्धांत का एक आदर्श उदाहरण है।

भेदभाव और एकीकरण की चुनौती

अलास्का में सिख समुदाय के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी 9/11 के बाद का दौर, जब सिखों को उनकी पगड़ी और दाढ़ी के कारण गलत पहचान का सामना करना पड़ा। कई बार उन्हें मुसलमानों या अरबी समुदाय से जोड़ा गया, जिसके कारण भेदभाव और हिंसा का शिकार होना पड़ा। लेकिन इस मुश्किल दौर में, सिख समुदाय ने अपना सिर ऊंचा रखा और समाज में अपनी पहचान बनाई।

सिखों ने यह साबित किया कि वे किसी भी स्थिति में अपने धर्म और संस्कृति को नहीं छोड़ेंगे। यही कारण है कि आज भी अलास्का के सिख समाज ने अपनी पहचान बनाए रखी है, चाहे उन्हें समाज में एकीकरण के लिए संघर्ष करना पड़ा हो।

सिख धर्म की बढ़ती पहचान अमेरिका में

अब, आपको यह जानकर खुशी होगी कि सिख धर्म की पहचान अमेरिका में बढ़ती जा रही है। हाल ही में, वर्जीनिया राज्य के स्कूलों में सिख धर्म की पढ़ाई शुरू की गई है, और इस तरह, अमेरिका के कई राज्यों ने अपने पाठ्यक्रम में सिख धर्म को शामिल किया है। इसके साथ ही, अमेरिका में सिख धर्म का महत्व अब किसी से छिपा नहीं है।

सिखों ने अमेरिका में नागरिक अधिकारों, राजनीति, कृषि, इंजीनियरिंग और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में अपना योगदान दिया है। इस बढ़ती पहचान का हिस्सा अलास्का के सिख समुदाय ने भी निभाया है।

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Harley-Davidson New Bike: हार्ले-डेविडसन की सस्ती बाइक ‘स्प्रिंट’ से बदले...

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Harley-Davidson New Bike: जब भी हार्ले-डेविडसन का नाम लिया जाता है, ज़ेहन में एक भारी-भरकम, दमदार आवाज़ वाली बाइक की तस्वीर उभर आती है जो आमतौर पर फिल्मी हीरो या फिर किसी बाइक लवर के सपने में ही देखी जाती है। लेकिन अब इस आइकॉनिक ब्रांड की रणनीति थोड़ी बदल रही है। जी हां, हार्ले-डेविडसन अब आम लोगों के लिए भी अपनी पहुंच आसान करने जा रही है। कंपनी जल्द ही एक ऐसी बाइक लॉन्च करेगी जो सस्ती होगी, हल्की होगी और खासकर युवा राइडर्स को ध्यान में रखकर बनाई जा रही है।

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क्या है हार्ले की नई प्लानिंग? (Harley-Davidson New Bike)

कंपनी के सीईओ ने हाल ही में हुए एक मीटिंग में इस नई बाइक ‘Sprint’ की जानकारी साझा की है। यह एक एंट्री-लेवल मोटरसाइकिल होगी, जिसका मकसद है ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को ब्रांड से जोड़ना, खासकर उन लोगों को जो हार्ले-डेविडसन तो खरीदना चाहते हैं, लेकिन बजट आड़े आ जाता है।

‘Sprint’ नाम की इस बाइक पर काम 2021 से चल रहा है और यह 2026 में आधिकारिक तौर पर बाजार में उतारी जाएगी। हालांकि, इसके फर्स्ट लुक को लेकर काफी उम्मीदें हैं कि इसे इसी साल 2025 के आखिर में आयोजित होने वाले EICMA शो में दुनिया के सामने पेश किया जा सकता है।

कितनी होगी कीमत और क्या होगा खास?

खबर है कि इस बाइक की कीमत लगभग 6,000 डॉलर यानी करीब ₹5 लाख के आसपास रखी जा सकती है। हार्ले की दूसरी बाइकों की तुलना में यह बेहद किफायती मानी जाएगी। माना जा रहा है कि ‘Sprint’ एक कम डिस्प्लेसमेंट वाली मोटरसाइकिल होगी, यानी हल्की और रोजमर्रा के इस्तेमाल के लिहाज़ से ज्यादा सुविधाजनक।

कंपनी की प्लानिंग सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। ‘Sprint’ सिर्फ एक मॉडल नहीं होगा, बल्कि यह एक नए प्लेटफॉर्म की शुरुआत है, जिस पर भविष्य में और भी कई बाइक्स तैयार की जाएंगी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसी सीरीज में एक क्रूज़र बाइक भी होगी, जिसे ‘Sprint’ के बाद 2026 में लॉन्च किया जाएगा।

युवाओं को साधने की तैयारी

अभी तक हार्ले-डेविडसन की पहचान ऐसे राइडर्स से रही है जो उम्र में थोड़े परिपक्व होते हैं और जिन्हें लंबी दूरी की राइडिंग का शौक होता है। लेकिन अब कंपनी का फोकस युवाओं और पहली बार हार्ले खरीदने वालों की तरफ बढ़ रहा है। ‘Sprint’ जैसी बाइक इस सोच को बदल सकती है और नए ग्राहकों को ब्रांड से जोड़ सकती है।

पहले भी की थी ऐसी कोशिश

यह पहली बार नहीं है जब हार्ले-डेविडसन ने किफायती सेगमेंट में उतरने की कोशिश की है। 2014 में कंपनी ने भारत में Street 750 लॉन्च की थी, जो मिड-सेगमेंट की बाइक थी। भले ही वह मॉडल कंपनी की उम्मीदों पर पूरी तरह खरा नहीं उतरा, लेकिन वह भारत में हार्ले की सबसे ज्यादा बिकने वाली बाइक बन गई थी।

‘Sprint’ के साथ हार्ले अब और बड़ा दांव खेलने जा रही है। कंपनी को उम्मीद है कि सस्ती और स्टाइलिश बाइक के जरिए वह मुनाफा भी बढ़ाएगी और एक नई ग्राहक वर्ग को भी जोड़ पाएगी।

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Madhuri Elephant News: कोल्हापुर की ‘माधुरी’ हथिनी की विदाई से टूटा गांव का दिल, इंसा...

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Madhuri Elephant News: कोल्हापुर जिले के शिरोल तालुका का एक छोटा सा गांव नांदनी, इन दिनों भावनाओं की लहरों से झूल रहा है। वजह है – एक हथिनी, ‘माधुरी’। जिसे गांव वाले प्यार से ‘महादेवी’ बुलाते हैं। वो सिर्फ एक जानवर नहीं थी, बल्कि गांव की परंपरा, आस्था और विरासत की जीती-जागती मिसाल थी। लेकिन अब वह माधुरी गांव में नहीं है, उसे कोर्ट के आदेश पर गुजरात के जामनगर स्थित ‘वनतारा’ नाम के संरक्षण केंद्र में भेज दिया गया है।

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इस फैसले ने गांव की आत्मा को झकझोर दिया है। लोग टूटे हुए हैं, भावनाएं आहत हैं और सबसे बड़ी बात – इंसाफ की गुहार लग रही है। इसी भावना ने रविवार को हजारों लोगों को एक कर दिया और एक शांतिपूर्ण लेकिन बेहद मार्मिक पदयात्रा निकाली गई, जिसमें गांव-गांव से लोग 45 किलोमीटर पैदल चलकर कोल्हापुर जिला कलेक्टर तक पहुंचे।

हर धर्म के लोग साथ आए, इंसानियत की मिसाल बनी पदयात्रा – Madhuri Elephant News

सुबह 5 बजे नांदनी से शुरू हुई यह पदयात्रा सिर्फ एक जानवर की वापसी की मांग नहीं थी, यह उस जुड़ाव की कहानी थी जो इंसान और जानवर के बीच होती है। इस यात्रा में जैन, हिंदू, मुस्लिम, सिख – सभी धर्मों के लोग शामिल हुए। हर हाथ में एक ही संदेश था – “माधुरी को वापस लाओ।” इस मूक पदयात्रा का नेतृत्व किसान नेता और पूर्व सांसद राजू शेट्टी ने किया, जिन्होंने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपते हुए कहा – “महादेवी सिर्फ एक हथिनी नहीं, हमारी संस्कृति का प्रतीक है। उसकी आंखों में आंसू थे जब वो गई, और हमारी आंखों में भी हैं जब हम उसे याद करते हैं।”

क्या था पूरा मामला? क्यों गई माधुरी?

आपको बता दें, PETA इंडिया की एक याचिका के बाद यह मामला हाई कोर्ट पहुंचा, जिसमें हथिनी माधुरी की तबीयत, आर्थराइटिस और कथित आक्रामक व्यवहार का जिक्र था। कोर्ट ने हाई पावर्ड कमेटी की सिफारिश पर माधुरी को जामनगर स्थित ‘वनतारा’, जो अंबानी परिवार का वन्यजीव संरक्षण केंद्र है, भेजने का आदेश दिया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर मुहर लगा दी।

वनतारा की ओर से जारी बयान में साफ किया गया कि यह ट्रांसफर उनकी मर्ज़ी से नहीं, बल्कि कोर्ट के आदेश पर हुआ। वे यह भी बोले कि वे स्थानीय लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हैं और मठ के प्रमुखों से बात करने को तैयार हैं।

राजनीतिक घमासान और भावनात्मक तूफान

वहीं, माधुरी की विदाई सिर्फ एक कानूनी प्रक्रिया नहीं रही, वह भावनाओं का तूफान बन गई। जब हथिनी को ले जाया गया, तो गांव में आंसू थे, नाराजगी थी और विद्रोह भी। पुलिस की गाड़ियों पर पत्थर फेंके गए, जियो के खिलाफ नारेबाजी हुई – क्योंकि जियो अंबानी समूह का ही हिस्सा है।

राजू शेट्टी ने खुलकर कहा – “अब तो ऐसा लगने लगा है जैसे ये देश मुकेश और अनंत अंबानी का गुलाम बन चुका है। 700 साल से हाथियों की सेवा करने वाले मठ पर आरोप लगाना कि वो हथिनी से भीख मंगवाता है – ये हमारे इतिहास और परंपरा पर चोट है।”

उन्होंने वनतारा को ‘बोगस संस्था’ बताया और सवाल उठाया कि क्या किसी कॉर्पोरेट की मर्जी पर हमारी परंपराएं कुर्बान होंगी?

जनता का आक्रोश, नेताओं पर दबाव

इस मामले ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। हाल ही में जब अजित पवार कोल्हापुर पहुंचे तो युवाओं ने जनसभा रोककर “दादा, महादेवी को वापस लाओ!” के नारे लगाए। कोल्हापुर से लेकर कर्नाटक तक विरोध तेज हो रहा है। सोशल मीडिया पर जियो के बहिष्कार की मुहिम चल रही है और जगह-जगह हस्ताक्षर अभियान भी जारी हैं।

क्या माधुरी फिर लौटेगी नांदनी?

सवाल यही है – क्या ‘माधुरी’ की वापसी अब संभव है?

राजनीतिक और सामाजिक संगठनों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दाखिल करने की तैयारी हो रही है। वहीं वनतारा ने भी बातचीत की पेशकश की है। देखना होगा कि यह मामला सिर्फ कोर्ट के आदेशों में उलझा रहेगा या जनता की भावनाओं को भी जगह मिलेगी।

एक हथिनी, एक गांव और एक संस्कृति का संघर्ष

माधुरी अब जामनगर में है, लेकिन उसकी यादें आज भी नांदनी की गलियों में घूम रही हैं। गांव के बुजुर्ग उसकी बात करते हुए रो पड़ते हैं। शायद यह पहली बार है जब एक जानवर को लेकर इतनी बड़ी आवाज उठी है और वो भी इतनी शांति, सम्मान और आस्था के साथ।

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IND vs ENG 5th Test: ओवल टेस्ट में भारत की रोमांचक जीत, 6 रन से हराया इंग्लैंड को, मो...

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IND vs ENG 5th Test: लंदन के ओवल मैदान पर खेले गए पांचवें टेस्ट मुकाबले में भारतीय टीम ने इतिहास रचते हुए इंग्लैंड को बेहद रोमांचक मुकाबले में 6 रन से हरा दिया। यह भारत की टेस्ट इतिहास में रनों के लिहाज़ से सबसे छोटी जीत रही। इस जीत के साथ ही पांच मैचों की सीरीज़ 2-2 से बराबरी पर खत्म हुई, और टीम इंडिया ने शानदार अंदाज़ में वापसी की।

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आखिरी दिन तक टंगा रहा रोमांच- IND vs ENG 5th Test

इंग्लैंड को इस मैच में जीत के लिए 374 रनों का टारगेट मिला था, जो कि उनकी मजबूत बल्लेबाज़ी को देखते हुए असंभव नहीं था। लेकिन आखिरी दिन यानी रविवार को जब मुकाबला फिर शुरू हुआ, तो स्कोर बहुत करीब था। इंग्लैंड को जीत के लिए सिर्फ़ 35 रन चाहिए थे और भारत को 4 विकेट।

पांचवें दिन की शुरुआत से ही गेंदबाज़ों ने मोर्चा संभाल लिया। तेज़ गेंदबाज़ मोहम्मद सिराज ने सबसे पहले जेमी स्मिथ को विकेट के पीछे कैच आउट कराया, फिर जेमी ओवर्टन को एलबीडब्ल्यू कर दिया। इसके बाद प्रसिद्ध कृष्णा ने जोश टंग की गिल्लियां बिखेर दीं। जब इंग्लैंड को जीत के लिए सिर्फ 17 रन चाहिए थे, तो घायल क्रिस वोक्स मैदान पर उतरे और गस एटकिंसन के साथ 10 रन जोड़ भी लिए। लेकिन फिर 86वें ओवर की पहली ही गेंद पर सिराज ने एटकिंसन को आउट करके भारत को ऐतिहासिक जीत दिला दी।

सिराज बने हीरो, कृष्णा भी छाए

इस जीत के असली हीरो रहे मोहम्मद सिराज, जिन्हें ‘प्लेयर ऑफ द मैच’ चुना गया। सिराज ने मैच में कुल 9 विकेट लिए (पहली पारी में 4 और दूसरी पारी में 5)। उनके साथ प्रसिद्ध कृष्णा भी कम नहीं थे, जिन्होंने कुल 8 विकेट चटकाए (दोनों पारियों में 4-4)। इन दोनों ने इंग्लिश बल्लेबाज़ों की कमर तोड़ दी।

बाकी दो विकेट आकाश दीप के खाते में आए, जो इस मैच में भारत की प्लेइंग इलेवन का हिस्सा थे। इस जीत में गेंदबाज़ी की पूरी भूमिका रही क्योंकि बल्लेबाज़ी में भारतीय टीम पहली पारी में सिर्फ 223 रन ही बना सकी थी।

बारिश ने बढ़ाया रोमांच

चौथे दिन जब भारत जीत की ओर बढ़ रहा था, तभी बारिश ने खलल डाल दिया। तीसरे सेशन में केवल 10.2 ओवर का ही खेल हो पाया और फिर खेल रोक दिया गया। इससे मैच का रोमांच पांचवें दिन तक खिंच गया।

दोनों टीमों में हुए थे बड़े बदलाव

इस मैच में दोनों टीमों ने चार-चार बदलाव किए थे। इंग्लैंड के कप्तान बेन स्टोक्स कंधे की चोट के कारण नहीं खेले। उनकी जगह ओली पोप ने कप्तानी संभाली। इसके अलावा जोफ्रा आर्चर, ब्रायडन कार्स और लियाम डॉसन भी बाहर रहे।

भारत की ओर से करुण नायर, आकाश दीप, प्रसिद्ध कृष्णा और ध्रुव जुरेल को मौका मिला। वहीं, ऋषभ पंत, जसप्रीत बुमराह, अंशुल कम्बोज और शार्दुल ठाकुर को आराम दिया गया।

मैच का संक्षिप्त स्कोर

  • भारत (पहली पारी): 223 रन
  • भारत (दूसरी पारी): 396 रन
  • इंग्लैंड (पहली पारी): 247 रन
  • इंग्लैंड (दूसरी पारी): 367 रन
  • भारत ने 6 रन से मैच जीता

सीरीज 2-2 पर खत्म, लेकिन भारत को बढ़त

यह मुकाबला ना सिर्फ भारत के लिए जीत था, बल्कि टेस्ट क्रिकेट के रोमांच की भी याद दिला गया। इस जीत के साथ भारत ने दिखा दिया कि जब तेज गेंदबाज़ी चलती है, तो मैच कहीं से भी पलट सकता है। सिराज और कृष्णा की जोड़ी ने टीम को सीरीज में बराबरी दिला दी और फैन्स को एक यादगार जीत।

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UP Drone Mystery: ड्रोन की अफवाह ने उड़ाई नींद, गाजियाबाद के 25 गांवों में पहरा, डर औ...

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UP Drone Mystery: गाजियाबाद के करीब 25 गांवों में इन दिनों एक अजीब-सा डर पसरा हुआ है। वजह है – रात के अंधेरे में आसमान में दिखने वाले ड्रोन, जिनके बारे में कोई कुछ पक्का नहीं कह पा रहा। इन ड्रोन्स को लेकर जो अफवाहें फैली हैं, उसने लोगों की नींद उड़ा दी है। हालात ऐसे हैं कि गांवों में लोग रातभर लाठी-डंडा लेकर गश्त कर रहे हैं और शक के आधार पर अजनबियों से सख्त पूछताछ कर रहे हैं।

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ये मामला गाजियाबाद जिले के मोदीनगर, मुरादनगर, निवाड़ी और भोजपुर थानाक्षेत्र के करीब 25 गांवों से जुड़ा है। गांववालों को शक है कि कोई गिरोह ड्रोन के जरिए उनके घरों की रेकी कर रहा है, ताकि बाद में चोरी या लूट जैसी वारदात को अंजाम दिया जा सके।

डर ने बना दी रातें बेचैनUP Drone Mystery

गांववालों का कहना है कि रात करीब 10 बजे के बाद वे आपस में टीम बनाकर गलियों में पहरा देते हैं। बिखोखर, सीकरी खुर्द, मानकी, भोजपुर, फजलगढ़, ईशापुर, ग्यासपुर, कुम्हैड़ा, रावली कलां जैसे गांवों में खुद ही ड्यूटी प्वाइंट बना दिए गए हैं। हर प्वाइंट पर तीन-चार लोग तैनात रहते हैं और एक व्हाट्सएप ग्रुप के जरिए हर गतिविधि की जानकारी साझा करते हैं।

ड्रोन से जुड़ी अफवाहों ने बढ़ाया तनाव

हालांकि अभी तक किसी भी ड्रोन को ज़ब्त नहीं किया गया है और न ही कोई आधिकारिक पुष्टि हुई है कि ये ड्रोन वाकई अपराध के मकसद से उड़ाए जा रहे हैं। लेकिन सोशल मीडिया और गांवों में फैली बातों ने लोगों में डर बैठा दिया है। पुलिस का कहना है कि ड्रोन उड़ाने की किसी को अनुमति नहीं दी गई है, ऐसे में अगर कोई उड़ा भी रहा है तो वह अवैध है।

गलतफहमी में मारपीट की घटनाएं भी

इस अफवाह का असर इतना गहरा हो गया है कि कुछ जगहों पर निर्दोष लोगों को भीड़ ने पकड़कर पीट दिया। 29 जुलाई को भोजपुर गांव में एक युवक अपनी प्रेमिका से मिलने गया था, लेकिन ग्रामीणों ने उसे चोर समझ लिया और मारपीट की। इसी तरह 31 जुलाई को बिसोखर में एक युवक अपने ससुराल गया था, वहां भी उसके साथ मारपीट हुई। ऐसी ही एक और घटना 27 जुलाई को फजलगढ़ गांव में हुई।

पुलिस की अपील: अफवाहों पर न दें ध्यान

इस पूरे मामले में पुलिस अब एक्टिव हो गई है। अधिकारियों ने गांवों में रात की गश्त बढ़ा दी है और बीट कॉन्स्टेबल को लोगों से लगातार संवाद करने के निर्देश दिए हैं। एसीपी मोदीनगर अमित सक्सेना ने साफ कहा है, “कोई भी संदिग्ध चीज़ दिखे तो तुरंत पुलिस को सूचना दें, खुद कानून हाथ में न लें।”

पुलिस ने यह भी स्पष्ट किया है कि ड्रोन उड़ाने के लिए DGCA की अनुमति जरूरी होती है और किसी भी संवेदनशील क्षेत्र में बिना इजाजत ड्रोन उड़ाना गैरकानूनी है।

अब क्या?

गांवों में डर अब भी बना हुआ है। लोग कह रहे हैं कि जब तक पुलिस कोई ठोस एक्शन नहीं लेती या असल वजह सामने नहीं आती, तब तक वे पहरा देना बंद नहीं करेंगे। ये डर कब थमेगा, यह फिलहाल कहना मुश्किल है, लेकिन इतना तय है कि अफवाहों ने लोगों को एकजुट जरूर कर दिया है—भले ही डर की वजह से ही सही।

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Army Officer Attacked SpiceJet Staff: श्रीनगर एयरपोर्ट पर आर्मी अफसर का बवाल: फ्लाइट ...

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Army Officer Attacked SpiceJet Staff: 26 जुलाई को श्रीनगर एयरपोर्ट पर जो हुआ, उसका वीडियो अब सामने आया है और सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। वीडियो में एक आर्मी अफसर एयरलाइन स्टाफ पर हमला करते नजर आ रहे हैं। किसी को घूंसे, किसी को लात, और एक तो बेहोश होकर गिर पड़ा, लेकिन अफसर का गुस्सा थमता ही नहीं दिखा। अब सवाल ये है कि आखिर बात क्या इतनी बिगड़ गई कि सेना का एक अफसर इस हद तक उतर आया?

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क्या हुआ था उस दिन? (Army Officer Attacked SpiceJet Staff)

यह मामला स्पाइसजेट की फ्लाइट SG-386 से जुड़ा है, जो श्रीनगर से दिल्ली जा रही थी। फ्लाइट बोर्डिंग के दौरान एक आर्मी अफसर अपने साथ 16 किलो का केबिन बैग लेकर अंदर जाने की कोशिश कर रहे थे, जबकि केबिन बैग की सीमा सिर्फ 7 किलो तय है। जब स्टाफ ने उनसे एक्स्ट्रा चार्ज मांगा, तो अफसर भड़क गए।

स्पाइसजेट के मुताबिक, जब उन्हें रोका गया तो उन्होंने गुस्से में आकर जबरन एरोब्रिज में घुसने की कोशिश की। इसके बाद CISF को बीच में आना पड़ा और उन्हें बाहर निकाला गया। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई। कुछ देर बाद वो वापस लौटे और चार स्टाफ सदस्यों पर हमला कर दिया। एक स्टाफ को उन्होंने इतना मारा कि वो बेहोश हो गया, फिर भी वो मारते रहे।

अब तक क्या कार्रवाई हुई?

स्पाइसजेट ने इस मामले में FIR दर्ज कराई है। सीसीटीवी फुटेज भी पुलिस को सौंप दी गई है। आरोपी अफसर पर IPC की धारा 323 (चोट पहुंचाना), 325 (गंभीर चोट), 504 (उत्तेजक हरकतें) और 506 (धमकी देना) लग सकती है। अगर किसी कर्मचारी को गंभीर चोट लगी है, जैसे रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर, तो मामला गैर-जमानती बन सकता है।

इसके अलावा DGCA (नागर विमानन महानिदेशालय) के नियमों के अनुसार, ये घटना “लेवल 2” (शारीरिक हिंसा) और संभवतः “लेवल 3” (जान को खतरा) की कैटेगरी में आती है। इस आधार पर उस अफसर पर 6 महीने से लेकर 2 साल या उससे ज्यादा का उड़ान प्रतिबंध भी लगाया जा सकता है। स्पाइसजेट ने उन्हें नो-फ्लाई लिस्ट में डालने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

क्या सेना अपने अफसर के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है?

भारतीय सेना ने बयान जारी कर बताया है कि वो इस घटना को गंभीरता से ले रही है और आंतरिक जांच शुरू कर दी गई है। अगर अफसर ड्यूटी पर न भी हों, तब भी सेना उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकती है। इसमें कोर्ट ऑफ इंक्वायरी, वेतन कटौती, सस्पेंशन या बर्खास्तगी तक शामिल हो सकता है।

अगर मामला ज्यादा गंभीर है, तो सिविल अदालत में मुकदमा चलेगा और साथ ही सैन्य कोर्ट की प्रक्रिया भी शुरू हो सकती है।

क्या उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है?

यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या आर्मी अफसर को सीधे गिरफ्तार किया जा सकता है? इसके जवाब में कानूनी प्रक्रिया थोड़ी अलग है। अगर अफसर ड्यूटी पर हों, तो CrPC की धारा 45 के तहत उनकी गिरफ्तारी से पहले सेना की इजाजत जरूरी होती है। लेकिन अगर वे ड्यूटी पर नहीं थे, यानी आम यात्री की तरह सफर कर रहे थे, तो स्थानीय पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर सकती है।

अब आगे क्या?

26 जुलाई की इस घटना को लगभग 10 दिन बीत चुके हैं, लेकिन अब तक अधिकारी की गिरफ्तारी या सस्पेंशन पर कोई ठोस जानकारी सामने नहीं आई है। सवाल यही है कि क्या सेना और पुलिस इस गंभीर मामले में जल्द कार्रवाई करेंगी या बात यूं ही टल जाएगी?

फिलहाल वीडियो सामने आने के बाद आम लोगों में भी नाराजगी है, क्योंकि अगर कोई आम आदमी ऐसा करता, तो शायद अब तक जेल जा चुका होता।

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Odisha News: सरकारी नौकरी में करोड़ों की कमाई? ओडिशा के MVI के पास मिला सोना, जमीन, ब...

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Odisha News: सरकारी नौकरी करने वाले एक सामान्य कर्मचारी की आमदनी कितनी हो सकती है? ज़्यादातर लोग यही सोचते हैं कि एक ईमानदार कर्मचारी महीने के आखिर में तनख्वाह का हिसाब-किताब ही करता है। लेकिन ओडिशा में एक मोटर वाहन निरीक्षक (MVI) के यहां जब विजिलेंस विभाग की टीम पहुंची, तो जो खुलासे हुए, उसने सबको हैरान कर दिया।

दरअसल बौध जिले में तैनात MVI गोलाप चंद्र हांसदा के पास इतनी ज़मीन, गहने और बैंक बैलेंस निकला कि अब हर कोई यही पूछ रहा है कि  क्या ये सब एक सरकारी सैलरी से मुमकिन है?

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छापेमारी में मिला बेशुमार खजाना- Odisha News

विजिलेंस विभाग ने गोपनीय शिकायत के आधार पर हांसदा के छह ठिकानों पर एक साथ छापा मारा। जांच में जो संपत्ति सामने आई, उसने अफसरों के होश उड़ा दिए। खबरों के मुताबिक:

  • 44 प्लॉट — जिनमें से 43 सिर्फ बारिपदा और आसपास के इलाके में
  • 1 किलो सोना
  • 2.126 किलो चांदी
  • 1.34 करोड़ रुपये से ज्यादा की बैंक डिपॉजिट
  • 2.38 लाख रुपये कैश
  • और एक डायरी, जिसमें बेनामी संपत्तियों के लेन-देन का पूरा हिसाब

इतना ही नहीं, डायरी में यह भी लिखा था कि हांसदा ने अपनी बेटी की मेडिकल पढ़ाई पर 40 लाख रुपये खर्च किए हैं।

1991 से सरकारी सेवा में, लेकिन 44 प्लॉट?

मिली जानकाररी के मुताबिक, गोलाप चंद्र हांसदा ने 1991 में सरकारी नौकरी शुरू की थी। शुरुआत में वो जिला उद्योग केंद्र (DIC) में थे, फिर 2003 में जूनियर MVI बने। 2020 में उन्हें प्रमोट कर बौध जिले में MVI बना दिया गया। उनकी मासिक सैलरी करीब ₹1.08 लाख है, यानी सालभर में करीब ₹13 लाख की आय।

तो फिर सवाल यही है — इतनी आमदनी में 1.49 करोड़ की जमीन, कीमती मकान और करोड़ों की बैंक राशि कहां से आई?

प्लॉट और प्रॉपर्टी की जांच जारी

विजिलेंस की तकनीकी टीम अब एक-एक प्रॉपर्टी की माप, मार्केट वैल्यू और रजिस्ट्रेशन डिटेल्स चेक कर रही है। जो 44 प्लॉट सामने आए हैं, उनमें से सिर्फ एक बालासोर के पास है, बाकी सभी बारिपदा में हैं। टीम का मानना है कि इनकी असली कीमत रजिस्ट्री वैल्यू से कई गुना ज़्यादा हो सकती है।

हांसदा के पास एक 3300 वर्गफुट का दोमंजिला घर भी मिला है, जिसकी सजावट और भव्यता देखकर लगता है कि इसमें लाखों खर्च किए गए होंगे।

डायरी ने खोले कई राज

छापे में मिली डायरी को इस पूरे मामले का ‘सबसे अहम सबूत’ माना जा रहा है। इसमें संपत्ति खरीद, लेन-देन की तारीखें और रकम दर्ज हैं — और कई ऐसे नाम हैं जिनसे यह अंदेशा लगाया जा रहा है कि संपत्तियां बेनामी के नाम से खरीदी गई हैं।

विभाग अब हांसदा के रिश्तेदारों और पत्नी के खातों की भी जांच कर रहा है, जिससे पता चले कि पैसे का लेन-देन किन-किन के जरिए हुआ।

क्या हो सकती है सज़ा?

अगर जांच में हांसदा पर आय से अधिक संपत्ति रखने का आरोप सिद्ध होता है, तो उन पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत केस दर्ज किया जा सकता है। इसके तहत:

  • संपत्ति जब्त हो सकती है
  • निलंबन या सेवा से बर्खास्तगी संभव है
  • और अगर अदालत दोषी ठहराए, तो जेल की सजा भी हो सकती है

विजिलेंस विभाग ने फिलहाल कहा है कि यह जांच का शुरुआती चरण है, और आने वाले दिनों में और भी संपत्तियों का खुलासा हो सकता है।

अब लोगों के बीच यही चर्चा है कि अगर एक MVI इतनी संपत्ति जोड़ सकता है, तो बाकियों की जांच कब होगी? और क्या इस बार सच में कार्रवाई होगी — या मामला फिर धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में चला जाएगा?

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Tejashwi Yadav Voter ID Controversy: क्या फर्जीवाड़ा कर रहे थे तेजस्वी यादव? दो वोटर ...

Tejashwi Yadav Voter ID Controversy: बिहार की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है, और इस बार मामला जुड़ा है राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव से। उन पर दो अलग-अलग वोटर आईडी कार्ड रखने का गंभीर आरोप लगा है। इसको लेकर पटना के दीघा थाने में एक स्थानीय वकील ने शिकायत दर्ज कराई है। वहीं, चुनाव आयोग ने भी इस मामले में नोटिस जारी कर तेजस्वी से जवाब मांगा है।

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कहां से शुरू हुआ मामला? (Tejashwi Yadav Voter ID Controversy)

पटना के दीघा थाना क्षेत्र में रहने वाले अधिवक्ता राजीव रंजन ने तेजस्वी यादव के खिलाफ पुलिस में एक आवेदन दिया है। उनका आरोप है कि तेजस्वी ने चुनाव नियमों का उल्लंघन करते हुए दो अलग-अलग ईपिक नंबर (EPIC Number) वाले वोटर कार्ड बनवाए हैं। उनका कहना है कि यह न सिर्फ नियमों का उल्लंघन है, बल्कि एक आपराधिक मामला भी बनता है। शिकायत मिलते ही दीघा पुलिस ने जांच शुरू कर दी है।

तेजस्वी की सफाई और चुनाव आयोग का जवाब

दरअसल कुछ दिन पहले तेजस्वी यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दावा किया था कि उनका नाम मतदाता सूची से गायब है और उन्होंने एक EPIC नंबर (RAB 2916120) साझा किया जो, उनके मुताबिक, वोटर लिस्ट में मौजूद नहीं था। लेकिन इसके जवाब में चुनाव आयोग ने सबूतों के साथ उनका नाम दिखाया, जो कि क्रमांक 416 पर दर्ज था और उसका EPIC नंबर RAB 0456228 था, जो पहले से 2015 की मतदाता सूची में भी था।

अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या तेजस्वी के पास दो अलग-अलग वोटर कार्ड हैं? और अगर हैं, तो ये कैसे बना?

राजनीति में बवाल

जैसे ही मामला सामने आया, बीजेपी और जेडीयू ने तेजस्वी यादव पर जोरदार हमला बोल दिया। जेडीयू नेताओं ने इसे चुनावी अपराध बताते हुए तेजस्वी की सदस्यता तक रद्द करने की मांग कर डाली। वहीं, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी इसे लेकर तेजस्वी और राहुल गांधी दोनों को आड़े हाथों लिया। गिरिराज बोले, “ये लोग झूठ और भ्रम फैलाने में माहिर हैं, और अब तो इन्होंने संवैधानिक संस्थाओं को भी नहीं छोड़ा।”

पप्पू यादव का अप्रत्याशित समर्थन

चौंकाने वाली बात ये रही कि तेजस्वी यादव के पुराने राजनीतिक आलोचक, पूर्व सांसद पप्पू यादव इस बार उनके बचाव में उतर आए। उन्होंने चुनाव आयोग की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा, “ये आयोग अब बीजेपी का प्रवक्ता बन चुका है। नोटिस वहीं जाता है जहां बीजेपी कहती है।” उन्होंने यह भी पूछा कि आयोग ने और कितनों के नाम वोटर लिस्ट से हटाए हैं, उसकी जानकारी क्यों नहीं दी जाती?

आगे क्या?

बढ़ते विवाद के बीच चुनाव आयोग ने तेजस्वी यादव को नोटिस जारी कर उनसे इस पूरे मामले पर स्पष्टीकरण मांगा है। अब सबकी नजर इस बात पर है कि तेजस्वी इस नोटिस का क्या जवाब देंगे और उनकी पार्टी इस मसले को कैसे संभालती है।

वहीं, पुलिस ने भी प्राथमिक जांच शुरू कर दी है। अगर जांच में आरोप सही पाए जाते हैं, तो तेजस्वी के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई हो सकती है। क्योंकि एक व्यक्ति के पास दो वोटर कार्ड होना न सिर्फ नियमों के खिलाफ है, बल्कि यह एक दंडनीय अपराध भी है।

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Shibu Soren Death News: कब बिगड़ी शिबू सोरेन की तबीयत? झारखंड के ‘गुरुजी’...

Shibu Soren Death News: झारखंड की राजनीति से आज एक बहुत बड़ा नाम हमेशा के लिए चला गया। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक शिबू सोरेन का 4 अगस्त 2025 को सुबह निधन हो गया। दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में उन्होंने सुबह 8:48 बजे अंतिम सांस ली। वो 81 साल के थे और बीते कई हफ्तों से बीमार चल रहे थे। उनकी मौत की खबर फैलते ही पूरे झारखंड में शोक की लहर दौड़ गई। लोग उन्हें प्यार से ‘गुरुजी’ या ‘दिशोम गुरु’ कहकर बुलाते थे, और आज वही गुरुजी सबको हमेशा के लिए छोड़कर चले गए। अब सवाल है कि आखिर शिबू सोरेन का निधन कैसे हो गया, आइए आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं।

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कब से बीमार थे गुरुजी? (Shibu Soren Death News)

खबरों की मानें तों, शिबू सोरेन को कई बीमारियां थीं। वह 19 जून 2025 से दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में भर्ती थे। उन्हें किडनी की पुरानी बीमारी थी, डायबिटीज और दिल से जुड़ी दिक्कतें भी थीं। हाल ही में उन्हें ब्रेन स्ट्रोक आया था, जिसके बाद उनकी हालत और बिगड़ गई। वो डायलिसिस पर थे और उनकी बायपास सर्जरी भी हो चुकी थी। जुलाई में तबीयत थोड़ी ठीक हुई थी, लेकिन अगस्त की शुरुआत में हालत फिर गंभीर हो गई और उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था।

उनके इलाज में सीनियर डॉक्टर्स की पूरी टीम जुटी थी, लेकिन इस बार वो जिंदगी की जंग हार गए। उनके साथ उनकी पत्नी कल्पना सोरेन, बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और पूरा परिवार मौजूद था।

हेमंत सोरेन ने क्या कहा?

पिता के निधन पर हेमंत सोरेन ने बेहद भावुक होकर कहा,
“आज मैं शून्य हो गया हूं। गुरुजी हमें छोड़कर चले गए।”

ये शब्द सुनकर समझा जा सकता है कि सिर्फ एक पिता नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक, एक साथी और झारखंड की आत्मा आज हमेशा के लिए खो गई।

कौन थे शिबू सोरेन?

शिबू सोरेन के बारे में बात करें, तो वह सिर्फ एक राजनेता नहीं थे, वो एक आंदोलन थे। झारखंड के आदिवासी समुदाय के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। 1970 के दशक में जब महाजनों का शोषण चरम पर था, तब उन्होंने लड़ाई छेड़ी।

कहा जाता है कि उनके पिता सोबरन मांझी की हत्या ने उन्हें झकझोर दिया और यहीं से उनके सामाजिक संघर्ष की शुरुआत हुई। 1973 में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की। उन्होंने झारखंड को बिहार से अलग एक राज्य बनाने की लड़ाई सालों तक लड़ी, और आखिरकार 2000 में ये सपना पूरा हुआ।

आपको बता दें, वो तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने। आठ बार दुमका से लोकसभा सांसद और तीन बार राज्यसभा सांसद भी रहे। हालांकि उनके राजनीतिक करियर में विवाद भी रहे, लेकिन उनका योगदान इतना बड़ा था कि उस पर ये बातें भारी नहीं पड़ीं।

झारखंड में गहरा शोक

गुरुजी के जाने की खबर से पूरे राज्य में उदासी छा गई है। लोग सोशल मीडिया पर उन्हें याद कर रहे हैं, श्रद्धांजलि दे रहे हैं। राज्य सरकार अब उनके अंतिम संस्कार की तैयारियों में जुटी है। माना जा रहा है कि उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।

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Shibu Soren Death: झारखंड के ‘गुरुजी’ नहीं रहे, झारखंड मुक्ति मोर्चा सुप्...

Shibu Soren Death: झारखंड की राजनीति के दिग्गज नेता, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का 81 की उम्र में निधन हो गया। वह किडनी संबंधी बीमारी के कारण पिछले एक महीने से अस्पताल में भर्ती थे। दिल्ली के गंगा राम अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की जानकारी के बाद पूरे झारखंड में शोक की लहर दौड़ गई है.

शिबू सोरेन के पुत्र और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद दिल्ली में मौजूद हैं और अस्पताल में ही थे जब उन्होंने अपने पिता को खो दिया। सीएम हेमंत सोरेन ने अपने पिता के निधन की जानकारी साझा करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ‘आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूं…’

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सांस लेने में तकलीफ के चलते बिगड़ी थी तबीयत- Shibu Soren Death

पिछले कुछ महीनों से शिबू सोरेन को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। हालत बिगड़ने पर उन्हें झारखंड के रांची स्थित मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों की सलाह के बाद विशेष विमान से उन्हें दिल्ली ले जाया गया, जहां डॉक्टरों की एक विशेष टीम उनकी देखभाल कर रही थी। आपको बता दें, जून के आखिरी हफ़्ते में उन्हें गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया गया था। पिछले कुछ दिनों से उनकी हालत गंभीर थी और वे वेंटिलेटर पर थे। डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका।

Shibu Soren Health Update Jharkhand Politics
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झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पिता के अंतिम समय में रहे साथ

झारखंड के मुख्यमंत्री और उनके बेटे हेमंत सोरेन इलाज के दौरान लगातार अपने पिता के साथ थे। दिल्ली में अस्पताल में भर्ती होने के बाद उनकी स्थिति लगातार नाजुक बनी हुई थी। परिवार और समर्थकों की दुआओं के बावजूद गुरुजी का जाना झारखंड की राजनीति के लिए एक अपूरणीय क्षति है।

झारखंड की राजनीति में ‘गुरुजी’ का योगदान

शिबू सोरेन को झारखंड के लोग ‘गुरुजी’ के नाम से जानते थे। उन्होंने झारखंड को अलग राज्य बनाने की लड़ाई में एक अहम भूमिका निभाई थी। वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक थे और उन्होंने आदिवासी समाज के हक और अधिकारों के लिए दशकों तक संघर्ष किया।

Shibu Soren Health Update Jharkhand Politics
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उन्होंने पहली बार 1977 में लोकसभा का चुनाव लड़ा, हालांकि, तब हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन 1980 में वह पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए। इसके बाद 1986, 1989, 1991, 1996 और 2004 में भी उन्होंने चुनाव जीते।

झारखंड के गठन के बाद, उन्होंने तीन बार मुख्यमंत्री पद संभाला।

  1. पहली बार 2005 में वे मुख्यमंत्री बने, लेकिन बहुमत साबित न कर पाने के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
  2. दूसरी बार 2008 में सीएम बने, लेकिन फिर से सत्ता ज्यादा समय तक टिक नहीं पाई।
  3. तीसरी बार 2009 में वे झारखंड के मुख्यमंत्री बने, लेकिन कुछ ही महीनों बाद उन्हें फिर पद छोड़ना पड़ा।

इसके अलावा, उन्होंने केंद्र सरकार में कोयला मंत्री के रूप में भी कार्य किया। हालांकि, चिरूडीह हत्याकांड में नाम आने के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था।

पूरा झारखंड शोक में, समर्थकों में दुख की लहर

शिबू सोरेन के निधन की खबर सुनते ही झारखंड समेत पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता और उनके समर्थक दिल्ली और झारखंड में बड़ी संख्या में अस्पताल और उनके घर के बाहर जमा हो गए।

झारखंड की राजनीति का एक युग समाप्त

शिबू सोरेन का निधन झारखंड की राजनीति के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है। उनके नेतृत्व और संघर्षों ने झारखंड को एक अलग पहचान दी। वह सिर्फ एक राजनेता नहीं बल्कि एक आंदोलनकारी, सामाजिक कार्यकर्ता और आदिवासी समाज के सबसे बड़े नेता थे।

झारखंड की राजनीति में गुरुजी की भूमिका को हमेशा याद किया जाएगा। उनका संघर्ष, उनकी सोच और उनके आदर्श आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेंगे।

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