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Trending GK Quiz: वो कौन सा जानवर है जिसे पानी पीना मना है, वरना होती है मौत? जानिए 1...

Trending GK Quiz: सामान्य ज्ञान, जिसे जनरल नॉलेज भी कहा जाता है, हर व्यक्ति के लिए बेहद आवश्यक होता है। यह न केवल हमारे सोचने-समझने की क्षमता को बढ़ाता है, बल्कि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता हासिल करने में भी मदद करता है। कहा जाता है कि ज्ञान ही वह शक्ति है, जिसके बल पर व्यक्ति दुनिया में अपना दबदबा बना सकता है, भले ही वह अकेला ही क्यों न हो। इसलिए, हर उम्र के लोगों के लिए यह जरूरी है कि वे रोजाना कुछ नया सीखते रहें, खासकर वे जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, उन्हें अपना सामान्य ज्ञान मजबूत बनाए रखना चाहिए।

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आज हम आपके लिए लेकर आए हैं सामान्य ज्ञान से जुड़े 10 ऐसे अनोखे सवाल, जिनके जवाब जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे। इन सवालों को आप नोट भी कर सकते हैं और अपने दोस्तों के साथ भी शेयर कर सकते हैं।

सवाल 1: दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत कौन सा है? (Trending GK Quiz)

जवाब: माउंट एवरेस्ट।
यह पर्वत पृथ्वी की सबसे ऊंची चोटी है, जिसकी ऊंचाई लगभग 8,848.86 मीटर है।

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सवाल 2: कौन सा ग्रह सूर्य के सबसे नजदीक है?

जवाब: बुध।
सौरमंडल का सबसे छोटा और सूर्य के सबसे पास स्थित ग्रह बुध है।

सवाल 3: विश्व का सबसे बड़ा महासागर कौन सा है?

जवाब: प्रशांत महासागर।
यह महासागर क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा महासागर है।

सवाल 4: ताजमहल किस नदी के किनारे स्थित है?

जवाब: यमुना नदी।
आगरा में स्थित ताजमहल यमुना नदी के तट पर बना हुआ है।

सवाल 5: शरीर का सबसे कमजोर अंग कौन सा है?

जवाब: क्लैविकल या कॉलर बोन।
यह हड्डी शरीर की सबसे कमजोर हड्डियों में गिनी जाती है।

सवाल 6: सबसे तेजी से बढ़ने वाला पौधा कौन सा है?

जवाब: बांस (Bamboo)।
बांस एक ऐसा पौधा है जो सबसे तेज गति से बढ़ता है और यह कुछ प्रकार के बांस के पौधे एक दिन में कई फीट तक बढ़ सकते हैं।

सवाल 7: सूर्य चंद्रमा से कितना गुना बड़ा है?

जवाब: सूर्य, चंद्रमा से लगभग 400 गुना बड़ा है।
हालांकि दोनों का आकार आकाश में लगभग समान दिखाई देता है, क्योंकि सूर्य चंद्रमा से बहुत दूर है।

सवाल 8: शरीर का सबसे गंदा अंग कौन सा होता है?

जवाब: नाभी।
नाभी में त्वचा के अंदर गंदगी और जीवाणु जमा हो जाते हैं, इसलिए यह शरीर का सबसे गंदा हिस्सा माना जाता है।

सवाल 9: भारत के किस राज्य को ‘देश का अन्न भंडार’ कहा जाता है?

जवाब: पंजाब।
पंजाब को इसकी उपजाऊ जमीन और कृषि उत्पादन के कारण ‘देश का अन्न भंडार’ कहा जाता है।

सवाल 10: कौन सा जानवर पानी पीने के बाद मर जाता है?

जवाब: कंगारू चूहा।
यह जानवर विशेष परिस्थितियों में पानी पीने से मर सकता है, क्योंकि यह बहुत ही खास जल संतुलन में रहता है।

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इन सवालों से न केवल आपका सामान्य ज्ञान बढ़ेगा, बल्कि ये आपकी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में भी सहायक होंगे। रोजाना थोड़ा-थोड़ा ज्ञान बढ़ाने की आदत बनाएं, क्योंकि ज्ञान ही सफलता की कुंजी है। ऐसे रोचक और उपयोगी सामान्य ज्ञान के सवाल और जवाब समय-समय पर सीखते रहना आपकी सोच और समझ को तेज करेगा और आपको हर स्थिति में बेहतर निर्णय लेने में मदद करेगा।

तो आज ही इन सवालों को अपने दोस्तों और परिवार के साथ शेयर करें और सभी का ज्ञान बढ़ाएं!

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B Praak Struggle Story: बी प्राक के पिता नहीं चाहते थे बेटा बने सिंगर, संघर्ष से बना ...

B Praak Struggle Story: ‘तेरी मिट्टी’, ‘फिलहाल’ और ‘मन भरिया’ जैसे दिल छू लेने वाले गानों से लोगों के दिलों पर राज करने वाले सिंगर बी प्राक को आज किसी पहचान की ज़रूरत नहीं। उनकी दर्दभरी आवाज़ और इमोशनल टोन ने उन्हें पंजाबी और हिंदी म्यूज़िक इंडस्ट्री का जाना-माना नाम बना दिया है। लेकिन इस चमक-दमक के पीछे एक लंबा संघर्ष और पारिवारिक असहमति की कहानी छुपी है, जिसे जानकर हर संगीत प्रेमी भावुक हो सकता है।

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जब पिता ने नहीं माना सिंगिंग को करियर- B Praak Struggle Story

हाल ही में एक इंटरव्यू में बी प्राक ने अपनी जिंदगी के उस पहलू का खुलासा किया, जिसे उन्होंने अब तक दुनिया से छिपाकर रखा था। उन्होंने बताया कि उनके पिता, पंजाबी म्यूज़िक इंडस्ट्री के मशहूर संगीत निर्देशक वरिंदर बचन, नहीं चाहते थे कि उनका बेटा सिंगर बने। वरिंदर बचन ने कई लोकप्रिय पंजाबी गाने और भजन तैयार किए थे और ‘जाट पंजाब दा’ जैसी फिल्मों में भी काम किया था।

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बी प्राक ने बताया कि बचपन में जब वो अपनी मां के साथ बैठते थे, तो हमेशा कुछ न कुछ गुनगुनाते रहते थे। वे तब से ही सिंगर बनना चाहते थे। लेकिन पिता का सपना कुछ और था — वो चाहते थे कि उनका बेटा म्यूजिक डायरेक्टर बने, न कि गायक। उन्होंने साफ शब्दों में बी प्राक से कह दिया था, “तुम अच्छा नहीं गाते, मैं तुम्हें सिंगर के तौर पर लॉन्च नहीं कर सकता।”

खुद से खुद को साबित करने की जिद

अपने बेटे को गायक बनने से रोकने के पीछे वरिंदर बचन की मंशा खराब नहीं थी, बल्कि वह चाहते थे कि बी प्राक पहले संगीत को गहराई से समझें। इसके लिए उन्होंने उन्हें कई स्टूडियो में भेजा, जहां यह सख्त हिदायत दी गई कि उनके साथ किसी भी तरह की विशेष व्यवहार ना किया जाए। पिता ने स्पष्ट कहा कि बी प्राक को अपने दम पर अपनी पहचान बनानी होगी।

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बी प्राक बताते हैं कि उन्हें यह बात चुभी जरूर, लेकिन अब जब पीछे मुड़कर देखते हैं, तो समझते हैं कि पिता का वह निर्णय ही उनकी असली ताकत बना। उन्होंने सरस्वती स्टूडियो में असिस्टेंट की तरह काम शुरू किया, जहां उन्हें पानी तक पिलाने का काम करना पड़ा। लेकिन यहीं से उन्होंने संगीत को जड़ से समझा और अपने करियर की नींव रखी।

संघर्ष से चमक तक का सफर

पिता के नाम के बिना, अपनी पहचान बनाना आसान नहीं था। लेकिन बी प्राक ने हार नहीं मानी। उनके अनुसार, “ये मेरी जिंदगी की सबसे बेहतरीन सीख थी। उस समय तकलीफ जरूर हुई, लेकिन आज मैं जो भी हूं, उसी फैसले की वजह से हूं।” यही कारण है कि जब उनकी आवाज़ ‘तेरी मिट्टी’ में गूंजी, तो हर दिल को छू गई।

एक भावुक विरासत

बी प्राक के पिता, वरिंदर बचन का साल 2021 में निधन हो गया। हालांकि वह बेटे को सिंगर बनते नहीं देख पाए, लेकिन उन्होंने जो सख्ती और मार्गदर्शन दिया, वही बी प्राक के करियर की सबसे मजबूत नींव बन गया।

आज बी प्राक जिस मुकाम पर हैं, वह न सिर्फ उनकी मेहनत की कहानी है, बल्कि उस पिता-पुत्र के रिश्ते की भी मिसाल है, जिसमें सख्ती के पीछे गहरी सोच और प्यार छिपा होता है। बी प्राक की यह कहानी हर उस युवा के लिए प्रेरणा है जो अपने सपनों को सच्चाई में बदलना चाहता है – चाहे रास्ता कितना ही मुश्किल क्यों न हो।

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Venice of africa: पानी पर बसा अनोखा गनवी गांव जिसने सोशल मीडिया पर मचाई धूम

Venice of africa: दुनिया में कई तरह के अनोखे और विचित्र गांव मौजूद हैं, जो अपनी विशेषता के कारण सबका ध्यान आकर्षित करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी ऐसा गांव देखा है जो पूरी तरह से पानी पर बना हो? यदि नहीं, तो अफ्रीका के बेनिन देश में स्थित गनवी (Ganvie) गांव की कहानी आपके लिए बेहद रोचक साबित होगी। इस गांव को ‘अफ्रीका का वेनिस’ कहा जाता है, और इसका एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसने लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है।

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पानी पर बसे गनवी गांव की कहानी- Venice of africa

गनवी गांव बेनिन के नोकोई झील के बीचों-बीच स्थित है। लगभग 30,000 लोगों की आबादी वाला यह गांव पूरी तरह पानी पर ही टिका हुआ है। यहां के घर लकड़ी और बांस से बनाए गए हैं, जो मजबूत खंभों पर टिके हुए हैं और पानी के ऊपर लहराते रहते हैं। इस गांव में सड़कें नहीं हैं, और वहां के लोग अपने दैनिक जीवन की गतिविधियां नावों से ही करते हैं। घरों तक पहुंचने, बाजार जाने और कामकाज के लिए भी वे नावों का ही सहारा लेते हैं।

 

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अनोखा जीवन और रोजमर्रा की गतिविधियां

सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में गनवी गांव का अनूठा जीवन दिखाया गया है। वीडियो में कई बच्चे पानी में खेलते नजर आते हैं, जबकि तैरते हुए बाजार में दुकानदार नावों पर सामान बेच रहे होते हैं। इस बाजार में हाथ से बनी वस्तुएं, ताजी सब्जियां, मछलियां और अन्य जरूरी चीजें मिलती हैं। यह नजारा ऐसा लगता है जैसे आप किसी फिल्मी दुनिया में आ गए हों।

गांव के ज्यादातर लोग मछली पकड़ने का काम करते हैं। वे पारंपरिक तरीके से, बांस और जाल का उपयोग कर मछली पकड़ते हैं। इसके अलावा, कुछ परिवार पास के मैदानी इलाकों में जमीन लेकर जानवरों का पालन करते हैं। यहां पानी पर ही कई रेस्टोरेंट भी हैं, जहां लोग नाव से पहुंच कर भोजन का आनंद लेते हैं।

गांव की अन्य सुविधाएं और अनूठी चुनौतियां

गनवी गांव में स्कूल, बैंक, डाकघर, चर्च, मस्जिद और मेडिकल सुविधाएं भी उपलब्ध हैं, जो इस गांव के रहने वालों को शहर जैसी सुविधाएं प्रदान करती हैं। हालांकि, यहां की सबसे बड़ी चुनौती कब्रिस्तान का प्रबंधन है। क्योंकि पूरा गांव पानी पर स्थित है, मृतकों को दफनाने के लिए मिट्टी बाहर से लानी पड़ती है।

सोशल मीडिया पर गनवी गांव की लोकप्रियता

यह दिलचस्प वीडियो इंस्टाग्राम के vmotorshowofficial अकाउंट से पोस्ट किया गया है और अब तक इसे चार लाख से अधिक बार देखा जा चुका है। वीडियो को देखकर दर्शक इसकी अनोखी जीवनशैली और प्राकृतिक खूबसूरती की तारीफ कर रहे हैं। कई लोग तो इसे देखकर दंग रह गए और इस अद्भुत गांव को दुनिया के लिए एक चमत्कार मानने लगे हैं।

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Defence Investiture Ceremony 2025: राष्ट्रपति भवन में रक्षा अलंकरण समारोह 2025 के प्र...

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Defence Investiture Ceremony 2025: 22 मई, 2025 को राष्ट्रपति भवन में आयोजित रक्षा अलंकरण समारोह के प्रथम चरण में देश के वीर सशस्त्र बलों, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों तथा राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस के बहादुर जवानों को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने चार मरणोपरांत सहित कुल छह कर्मियों को कीर्ति चक्र और सात मरणोपरांत सहित 33 कर्मियों को शौर्य चक्र प्रदान किया।

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इस समारोह में भारतीय वायु सेना (IAF) के चार बहादुर पायलटों को भी शौर्य चक्र से नवाजा गया, जिनकी वीरता और साहस की गाथा हर युवा के लिए प्रेरणा का स्रोत है। इन चारों में विंग कमांडर वर्नोन डेसमंड कीन, स्क्वाड्रन लीडर दीपक कुमार, फ्लाइट लेफ्टिनेंट अमन सिंह हंस और कॉर्पोरल (अब सार्जेंट) डाभी संजय हिफ्फाभाई शामिल हैं।

विंग कमांडर वर्नोन डेसमंड कीन की बहादुरी- Defence Investiture Ceremony 2025

विंग कमांडर कीन को एक उड़ान के दौरान लड़ाकू विमान के ऑयल सिस्टम में अचानक आई गंभीर खराबी और दोनों इंजन बंद हो जाने के बावजूद सुरक्षित लैंडिंग कराने के लिए शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया। भारतीय वायु सेना ने बताया कि कीन ने विमान को नियंत्रण में रखते हुए रिहायशी इलाकों से दूर ले जाकर एक इंजन पुनः चालू किया और सुरक्षित लैंडिंग सुनिश्चित की। इस साहसपूर्ण कार्रवाई ने बहुमूल्य राष्ट्रीय संपत्ति और मानवीय जीवन की रक्षा की।

स्क्वाड्रन लीडर दीपक कुमार का अद्भुत पराक्रम

रात के समय एक इंस्ट्रक्शनल उड़ान के दौरान, जब लड़ाकू विमान के इंजन में आग लग गई, तब दीपक कुमार ने सीमित विकल्पों के बावजूद असाधारण निर्णय और कुशलता दिखाते हुए विमान को रनवे पर सुरक्षित उतारा। यह स्थिति बेहद खतरनाक थी क्योंकि वह मात्र 1000 फीट की ऊंचाई पर थे। उनकी वीरता ने न केवल विमान को बचाया, बल्कि संभावित जान-माल के नुकसान को टाल दिया।

फ्लाइट लेफ्टिनेंट अमन सिंह हंस की साहसिक पहल

मार्च 2024 में, फ्लाइट लेफ्टिनेंट अमन सिंह हंस एक लंबी दूरी की रात की उड़ान पर थे, जब 28,000 फीट की ऊंचाई पर उनके विमान के कॉकपिट में विस्फोट हो गया। इस हादसे में विमान के महत्वपूर्ण उपकरण बंद हो गए। गंभीर परिस्थिति के बावजूद, उन्होंने धैर्य बनाए रखा, नियंत्रण वापस पाया और विमान को सुरक्षित रूप से नजदीकी हवाई अड्डे पर उतारा। उनके इस साहस ने विमान और जमीनी जीवन को बचाया।

कॉर्पोरल डाभी संजय हिफ्फाभाई की अद्भुत बहादुरी

मई 2024 में जम्मू-कश्मीर में एक आतंकवादी हमले के दौरान कॉर्पोरल डाभी संजय हिफ्फाभाई ने गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद अपनी स्थिति को मजबूत रखा और अपनी टीम की सुरक्षा के लिए दुश्मन से मुकाबला किया। उन्होंने गोली लगने के बावजूद बिना घबराए सामरिक कौशल और साहस दिखाया, जिससे उनकी टीम के कई सदस्य बच गए।

भारतीय वायु सेना का सम्मान

भारतीय वायु सेना ने अपने आधिकारिक ‘X’ (पूर्व ट्विटर) हैंडल से इन चारों वीर योद्धाओं की बहादुरी की कहानी साझा की है। आईएएफ ने इनके साहसिक कारनामों को यादगार बताया और कहा कि ऐसे जवान राष्ट्र की सुरक्षा की धुरी हैं।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा प्रदान किए गए ये सम्मान न केवल इन बहादुर जवानों के अदम्य साहस को सराहते हैं, बल्कि पूरे देश के लिए गौरव और प्रेरणा का स्रोत हैं। यह समारोह भारतीय सशस्त्र बलों की प्रतिबद्धता, त्याग और देशभक्ति को उजागर करता है, जो हर भारतीय के दिल में देशप्रेम और गर्व की भावना को जगाता है।

इस प्रकार, रक्षा अलंकरण समारोह 2025 के प्रथम चरण ने देश के वीर सपूतों को सम्मानित कर उनकी अद्भुत वीरता को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण साबित होगी।

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Shashi Tharoor on Pakistan: टीम इंडिया का ग्लोबल मिशन, पाकिस्तान की पोल खोलने विदेश र...

Shashi Tharoor on Pakistan: पाकिस्तान के काले कारनामों को दुनिया के सामने उजागर करने के लिए टीम इंडिया एक महत्वपूर्ण वैश्विक मिशन पर निकल चुकी है। कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर के नेतृत्व में शनिवार सुबह एक प्रतिनिधिमंडल अमेरिका, पनामा, गुयाना, ब्राजील और कोलंबिया के लिए रवाना हो गया है। इस मिशन का उद्देश्य पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों और साजिशों से संबंधित सच्चाईयों को संबंधित देशों में स्पष्ट करना है।

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शशि थरूर का स्पष्ट रुख- Shashi Tharoor on Pakistan

प्रतिनिधिमंडल के नेतृत्वकर्ता शशि थरूर ने मीडिया से बातचीत में भारत की विदेश नीति और कूटनीति पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि भारत की विदेश नीति पारदर्शिता और संवाद की परंपरा पर आधारित है, लेकिन इसे मध्यस्थता कहना गलत होगा। थरूर ने बताया कि भारत ने न तो पाकिस्तान और न ही किसी अन्य पक्ष के बीच औपचारिक मध्यस्थता की भूमिका निभाई है।

Shashi Tharoor on Pakistan
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थरूर ने उदाहरण देते हुए कहा, “अगर कोई देश हमसे संपर्क करता है और हम उसे अपनी रणनीतियों के बारे में बताते हैं तो क्या इसे मध्यस्थता कहा जाएगा? मुझे नहीं लगता।” उन्होंने यह भी कहा कि भारत के विदेश मंत्री हमेशा सार्वजनिक रूप से उन संपर्कों की जानकारी साझा करते हैं जो विदेशों से होते हैं।

भारत का साझा रुख विदेशों में

शशि थरूर ने कहा कि इस यात्रा का उद्देश्य भारत का एकजुट और स्पष्ट रुख विदेशों में पेश करना है। उन्होंने कहा कि सरकार ने सभी प्रतिनिधिमंडलों को ब्रीफिंग दी है ताकि वे एक साझा संदेश के साथ विदेश यात्रा करें। थरूर ने यह भी कहा कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर देश का प्रतिनिधित्व करते समय पार्टी के मतभेद पीछे रह जाते हैं और सभी सांसद राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हैं।

प्रतिनिधिमंडल में शामिल सांसद

इस मिशन में कांग्रेस के अलावा एलजेपी, जेएमएम, टीडीपी, भाजपा और शिवसेना के सांसद भी शामिल हैं। शशि थरूर ग्रुप 5 का नेतृत्व कर रहे हैं, जो अमेरिका, पनामा, गुयाना, ब्राजील और कोलंबिया के दौरे पर है।

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ट्रंप के मध्यस्थता दावे पर भारत की प्रतिक्रिया

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष में अमेरिका की मध्यस्थता का दावा किया था। ट्रंप ने कहा कि अमेरिका ने संघर्षविराम स्थापित करने में सहायता की है, जो व्यापार वार्ताओं के माध्यम से संभव हुआ। हालांकि, भारत सरकार ने इस दावे को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि यह संघर्षविराम दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच सीधे संवाद का परिणाम था, न कि किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता का।

मिशन का महत्व

यह मिशन भारत की विदेश नीति की प्रतिबद्धता को दर्शाता है और वैश्विक मंच पर पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों को उजागर करने की दिशा में एक मजबूत कदम है। भारत की यह पहल उसके हितों और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

शशि थरूर और उनके साथ के सांसद इस प्रतिनिधिमंडल के जरिए विश्व समुदाय को भारत की सच्चाई समझाने के साथ-साथ देश की छवि को भी मजबूत करने का प्रयास करेंगे। इस यात्रा को भारत की कूटनीति की एक सक्रिय और सकारात्मक छवि माना जा रहा है।

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इसलिए पीरियड्स में डार्क चॉकलेट खाना होता है फायदेमंद, जानिए क्या है एक्सपर्ट्स की रा...

Dark chocolate during periods: पीरियड्स (Periods) के दौरान होने वाली शारीरिक और मानसिक समस्याओं से राहत पाने के लिए महिलाएं अक्सर कई तरह के उपाय अपनाती हैं। इन्हीं उपायों में से एक है डार्क चॉकलेट (Dark Chocolate) का सेवन, जिसकी चर्चा हाल के सालों में खूब हुई है। लेकिन क्या वाकई डार्क चॉकलेट पीरियड्स के दौरान आरामदायक और फायदेमंद विकल्प हो सकता है? तो चलिए आपको इस लेख में इस के बारे में विस्तार से बताते हैं और विशेषज्ञों की राय और वैज्ञानिक शोध क्या कहते हैं।

पीरियड्स में डार्क चॉकलेट खाने के फायदे

  • ऐंठन और दर्द कम करना: डार्क चॉकलेट (Dark Chocolate) मैग्नीशियम का एक अच्छा स्रोत है, जो लालसा को कम करने में मदद करता है। यह किशोरावस्था के दौरान पेट दर्द और ऐंठन से भी राहत प्रदान कर सकता है।
  • मूड बेहतर करना: मूड स्विंग के कारण निवेशकों में मूड स्विंग आम बात है। डार्क चॉकलेट में सेरोटोनिन (जिसे लोकप्रिय “फील-गुड” हार्मोन के रूप में भी जाना जाता है) और फ्लेवोनोइड्स होते हैं, जो मूड को बेहतर बनाते हैं और तनाव को कम करने में मदद करते हैं। यह एक एंटीडिप्रेसेंट के रूप में कार्य कर सकता है।
  • ऊर्जा और स्फूर्ति: कई महिलाएं पीरियड्स के दौरान थका हुआ और कमज़ोर महसूस करती हैं। डार्क चॉकलेट में कैलोरी होती है जो शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है और थकान दूर करने में मदद करती है।
  • सूजन कम करना: डार्क चॉकलेट एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर (Dark chocolate is rich in antioxidants) होती है, जो शरीर में सूजन को कम करने में मददगार होती है। यह पीरियड्स के दौरान होने वाली किसी भी परेशानी को कम करने में भी मदद कर सकती है।
  • हार्मोनल संतुलन: डार्क चॉकलेट हार्मोनल संतुलन को बनाए रखने में भी मदद कर सकती है, खासकर तब जब पीरियड्स के दौरान हार्मोन असंतुलित हो जाते हैं।

जानें एक्सपर्ट्स की राय क्या कहती है 

विशेषज्ञ आमतौर पर पीरियड्स के दौरान डार्क चॉकलेट खाने की सलाह देते हैं, लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है जैसे ऐसी डार्क चॉकलेट चुनें जिसमें कम से कम 70% कोको हो। कोको की मात्रा जितनी ज़्यादा होगी, सेहत के लिए उतने ही ज़्यादा फ़ायदे होंगे। डार्क चॉकलेट फ़ायदेमंद हो सकती है, लेकिन इसका सेवन सीमित मात्रा में ही करना चाहिए। दिन में 1-2 छोटे टुकड़े काफ़ी हो सकते हैं।

इसके अलावा डार्क चॉकलेट चुनें जिसमें चीनी कम हो। चीनी का अधिक सेवन स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। आपको बता दें, पीरियड्स के दौरान डार्क चॉकलेट का सेवन दर्द को कम करने, मूड को बेहतर बनाने और ऊर्जा बढ़ाने में मदद कर सकता है। हालांकि, किसी भी अन्य खाद्य पदार्थ की तरह इसका सेवन भी संयमित तरीके से और गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए।

5 Mysterious Temples: भारत के जंगलों में छिपे 5 रहस्यमयी मंदिर, आध्यात्मिक यात्रा के ...

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5 Mysterious Temples: भारत की धार्मिक विरासत केवल प्रसिद्ध तीर्थस्थलों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके जंगलों में कई ऐसे मंदिर और पवित्र स्थल मौजूद हैं जो अपनी अनूठी कहानियों और रहस्यों के लिए जाने जाते हैं। ये कम-ज्ञात मंदिर न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा से भरे हुए हैं बल्कि प्रकृति की गोद में बसे होने के कारण एक अलग ही शांति और भव्यता प्रदान करते हैं। आइए जानते हैं भारत के ऐसे पांच रहस्यमयी मंदिरों के बारे में, जो गूढ़ अनुभव और अध्यात्म की गहराई से परिचित कराते हैं।

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निधिवन, वृन्दावन, उत्तर प्रदेश- 5 Mysterious Temples

वृन्दावन के पवित्र शहर में स्थित निधिवन एक ऐसा उपवन है जो भगवान कृष्ण से जुड़ी रहस्यमयी कथाओं से घिरा हुआ है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, कृष्ण हर रात राधा और गोपियों के साथ अपनी दिव्य रास लीला करते हैं। यहाँ के मुड़े हुए पेड़ शाम होते ही गोपियों में बदल जाते हैं। इस स्थान पर सूर्यास्त के बाद रुकने की मनाही है क्योंकि इसके साथ जुड़े रहस्यों और अनुभवों की कहानियाँ खूब प्रचलित हैं। पास में दक्षिण भारतीय वास्तुकला वाला रंगजी मंदिर भी है, जो आध्यात्मिक माहौल को और गहरा करता है।

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कामाख्या मंदिर, नीलाचल पहाड़ी, असम

गुवाहाटी में स्थित कामाख्या मंदिर देवी कामाख्या को समर्पित है, जो स्त्री शक्ति का एक प्राचीन और शक्तिशाली केंद्र माना जाता है। मंदिर में गर्भगृह में एक प्राकृतिक पत्थर है जिसे योनि के रूप में पूजा जाता है। यह स्थान प्रजनन शक्ति और सृजन का प्रतीक है। यहां का वार्षिक अंबुबाची मेला, जो देवी के मासिक धर्म को मनाता है, तांत्रिक साधकों और भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है। मंदिर के आसपास की पहाड़ियाँ और ब्रह्मपुत्र नदी के दृश्य आध्यात्मिक अनुभव को और प्रगाढ़ करते हैं।

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मारकुला देवी मंदिर, लाहौल घाटी, हिमाचल प्रदेश

लाहौल घाटी के एकांत में स्थित मारकुला देवी मंदिर 11वीं सदी का प्राचीन मंदिर है, जो देवी काली को समर्पित है। लकड़ी की जटिल नक्काशी और हिमालय की बर्फीली चोटियां इस मंदिर की भव्यता को बढ़ाती हैं। यह मंदिर हिंदू और बौद्ध परंपराओं का अनूठा संगम दर्शाता है। वार्षिक उत्सव यहां की समन्वयकारी संस्कृति का प्रतीक हैं।

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काल भैरव मंदिर, उज्जैन, मध्य प्रदेश

उज्जैन के काल भैरव मंदिर का अनूठा पहलू है कि यहां भगवान शिव के इस उग्र रूप को शराब चढ़ाई जाती है। माना जाता है कि देवता चढ़ाई गई शराब को पी लेते हैं, जो रहस्यमयी ढंग से गायब हो जाती है। मंदिर का अंधकारमय माहौल और शिप्रा नदी के किनारे इसकी गूढ़ता को और बढ़ाते हैं।

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टपकेश्वर मंदिर, देहरादून, उत्तराखंड

देहरादून में टोंस नदी के किनारे स्थित यह गुफा मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर के नाम का अर्थ है “गर्म पानी का झरना”, जो यहां के प्राकृतिक जल प्रवाह से जुड़ा है। शिवलिंग पर लगातार गिरता हुआ जलधारा और इसके आसपास के हरे-भरे जंगल इस स्थान को ध्यान और शांति के लिए उपयुक्त बनाते हैं।

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Sai Paranjpye On Nana Patekar: ‘तुम महिला हो, वरना होता कुछ और…’, नाना पाटेकर क...

Sai Paranjpye On Nana Patekar: अपने तीखे स्वभाव के लिए प्रसिद्ध अभिनेता नाना पाटेकर ने कई बार अपने गुस्से का प्रभाव फिल्म सेट पर दिखाया है। इसी का एक उदाहरण 1990 में आई फिल्म ‘दिशा’ का सेट है, जहां नाना और डायरेक्टर-सिन्स्क्रीनराइटर सई परांजपे के बीच कई बार तनाव देखने को मिला। हाल ही में सई परांजपे ने इस फिल्म की शूटिंग के दौरान नाना के गुस्से और उनके व्यवहार से जुड़ी कई चौंकाने वाली बातें फिल्मफेयर से साझा कीं।

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गुस्से के लिए पहले से थी चेतावनी- Sai Paranjpye On Nana Patekar

सई परांजपे ने बताया कि उन्हें नाना पाटेकर के स्वभाव और गुस्से के बारे में पहले ही चेतावनी दे दी गई थी, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने नाना को ओम पुरी और शबाना आजमी के साथ फिल्म में कास्ट किया। शुरू में नाना सेट पर बहुत सहयोगी और शांतिपूर्ण थे, लेकिन जल्द ही चीजें बदलने लगीं। सई ने बताया कि उन्होंने नाना से कहा था कि वे चार दिन बाद आएं ताकि पहले शबाना और ओम पुरी के सीन्स शूट किए जा सकें। लेकिन नाना ने जोर देकर कहा कि उन्हें सेट पर आना है, चाहे उनका काम हो या न हो।

Sai Paranjpye On Nana Patekar
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चप्पलों को लेकर भड़क गया नाना

सई ने याद किया कि पहले तीन दिन वे मुख्य रूप से शबाना और ओम पुरी के सीन्स पर काम कर रही थीं। इस वजह से नाना खुद को उपेक्षित महसूस करने लगे। इसके बाद जब नाना का शेड्यूल शुरू हुआ, तो उन्होंने चप्पलों को लेकर गुस्सा किया और सेट पर हंगामा मचा दिया। सारा सेट इस अप्रत्याशित घटना से हैरान रह गया था।

डबिंग के दौरान भी फूटा गुस्सा

डायरेक्टर ने बताया कि नाना का गुस्सा केवल शूटिंग के दौरान ही नहीं, बल्कि डबिंग के समय भी भड़क उठा। सई की बेटी का नाना से फ्रेंडली रिश्ता था, जो उन्हें शांत करने में मदद करता था, लेकिन गुस्सा कम नहीं हुआ। एक बार तो नाना ने डबिंग के दौरान पन्ने फेंक दिए और कहा कि वे यह काम नहीं करेंगे। इस तरह की घटनाएं तीन बार हुईं, जब तक कि सई ने खुद आपा खो दिया।

डायरेक्टर ने भी खोया आपा

सई ने खुलासा किया कि तीसरी बार जब नाना ने डबिंग के दौरान विरोध जताया, तो उन्होंने सख्ती से कहा, “या तो काम करो या बाहर चले जाओ। मैं आपके नखरों से तंग आ चुकी हूं। क्या आप प्रोफेशनल नहीं हो सकते?” इसके बाद नाना गुस्से में सेट छोड़कर चले गए। लेकिन आधे घंटे बाद वे वापस आए और सई को धमकी दी, “तुम सुरक्षित हो क्योंकि तुम महिला हो, नहीं तो तुम्हें यहां नहीं रहने दिया जाता।” इसके बाद वे फिर गुस्से में बाहर चले गए।

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अंत में सुलह

अगले दिन नाना शांत हुए और खुद सई को फोन करके डबिंग का शिफ्ट समय पूछा। यह सुलह इस बात का सबूत थी कि भले ही नाना का स्वभाव गुस्सैल हो, लेकिन वे पेशेवर हैं और अपने काम को गंभीरता से लेते हैं।

बता दें, नाना पाटेकर का गुस्सैल स्वभाव कई बार विवादों का कारण रहा है, लेकिन उनकी प्रतिबद्धता और काम के प्रति समर्पण भी कम नहीं है।

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Elon Musk Leaving Politics: एलन मस्क का अमेरिका सरकार में राजनीतिक सफर, सत्ता से बिजन...

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Elon Musk Leaving Politics: डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका की राजनीति में एक नाम सबसे अधिक चर्चा में रहा, वह था टेस्ला के सीईओ एलन मस्क। ट्रंप की चुनावी जीत में मस्क का आर्थिक समर्थन लगभग 300 मिलियन डॉलर था, जिसके बाद उन्हें डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी का प्रमुख नियुक्त किया गया। लेकिन राजनीति के गलियारों में कदम रखते ही मस्क ने कई विवादों और चुनौतियों का सामना किया, जो अंततः उनके बिजनेस पर भी प्रभाव डालने लगे। हाल ही में मस्क ने साफ कह दिया है कि अब उनका फोकस फिर से अपने कारोबार पर रहेगा।

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ट्रंप सरकार में मस्क की नियुक्ति और कार्यशैली- Elon Musk Leaving Politics

एलन मस्क को सरकार में महत्वपूर्ण पद मिलते ही उन्होंने अमेरिकी सरकारी विभागों में व्यापक बदलाव शुरू कर दिए। बड़े पैमाने पर छंटनी हुई और कई विभागों को बंद किया गया। मस्क ने कामकाज को और अधिक उत्पादक बनाने के लिए ऑटोमेशन को बढ़ावा दिया, लेकिन उनकी कार्यशैली कई वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों को रास नहीं आई।

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वाइट हाउस में मस्क और ट्रेजरी सेक्रेटरी के बीच विवाद

अटलांटिक की एक रिपोर्ट के अनुसार, मस्क और वाइट हाउस के ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बेसेंट के बीच गंभीर झड़पें हुईं। दोनों के बीच गाली-गलौज तक की नौबत आ गई, खासकर आईआरएस अधिकारी के चयन को लेकर विवाद हुआ। यह झगड़ा ओवल ऑफिस के बिल्कुल करीब हुआ, जो बताता है कि सरकार के अंदर मस्क के कार्यशैली को लेकर कितना विरोध था।

ट्रंप की टैरिफ नीति और मस्क का नुकसान

ट्रम्प प्रशासन ने चीन समेत कई देशों पर भारी टैरिफ लगाए, जिनसे टेस्ला को बड़ा नुकसान हुआ। टैरिफ के चलते मस्क की दौलत लगभग 30 हजार करोड़ रुपये तक घट गई। मस्क ने व्यक्तिगत रूप से ट्रंप से इस नीति पर पुनर्विचार की अपील की, लेकिन ट्रंप के फैसले से उनके शेयरों में भारी गिरावट आई।

मस्क और ट्रंप के रिश्ते में आई दूरियां

चुनावी अभियान के दौरान मस्क ट्रंप के बड़े समर्थक थे, लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद सरकार में मस्क के विरोधियों की संख्या बढ़ी। मस्क के डिजिटलीकरण और ऑटोमेशन के प्रयासों को कई वरिष्ठ अधिकारी पसंद नहीं कर पाए। इस वजह से ट्रंप खुद भी दो मुंह वाले हो गए, जिनके करीबी कभी मस्क के पक्ष में और कभी विरोध में दिखे।

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फरवरी और मार्च में ट्रंप ने सोशल मीडिया पर मस्क के समर्थन में कई बार पोस्ट किए, लेकिन पालिटिको की रिपोर्ट बताती है कि दोनों के बीच बातचीत बंद हो गई। मस्क पर जनता और शेयरहोल्डर्स की नाराजगी भी बढ़ने लगी, खासकर टेस्ला और स्टारलिंक की खराब परफॉर्मेंस के चलते।

मस्क ने राजनीति से दूरी बनाई

इन सब मुश्किलों के बाद मस्क ने खुलकर कहा कि अब उनका ध्यान बिजनेस पर होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह अगले कम से कम पांच साल तक टेस्ला के सीईओ रहेंगे और सरकार में उनकी भागीदारी खत्म हो गई है। मस्क ने कहा कि उन्हें राजनीति में आने का कोई पछतावा नहीं है, लेकिन अब वे अपने उद्यमों पर फोकस करना चाहते हैं।

बिजनेस में वापसी और सफलता

राजनीति से दूर हटते ही मस्क की कंपनियों को जनता का भरोसा फिर से मिला। एक महीने के भीतर उनके स्टॉक लगभग 50 प्रतिशत बढ़ गए। मस्क के इस कदम को उद्योग और बाजार में सकारात्मक रूप में देखा गया।

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Britain’s Southhall Gurudwara – Europe’s largest Gurudwara: ब्रिटेन...

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Europe biggest Gurudwara: जब भी सिख धर्म की बात होगी तो उनसे जुड़े गुरुद्वारों का जिक्र भी जरूर होगा। साल 1854 में अमृतसर के अंतिम महाराजा राजशाही सुकेरचकिया साम्राज्य के महाराज दुलीप सिंह जी पहले भारतीय सिख थे जो लंदन में बसे थे। इसके बाद 1911 में लंदन के पुटनी में पहले सिख गुरुद्वारे गुरुद्वारा द खालसा जत्था का निर्माण हुआ। इसे बनाने के लिए पटियाला के महाराज भूपिंदर सिंह ने अपने लन्दन आने के दौरान 1000 यूरो दिए थे ताकि गुरुद्वारे का निर्माण हो सके। तब पुटनी के एक निजी घर में लोगों ने पूजा स्थल बनाया। इस गुरुद्वारे के खुलने के बाद तेजी से सिख धर्म के लोग पलायन करने लगे। केवल एक गुरूद्वारे के कारण सिखों की की आबादी लंदन में तेजी से बढ़ी और आज लंदन का साउथहॉल मिनी पंजाब बन चुका है।

कहानी लंदन के मिनी पंजाब की Story of mini punjab in London

लंदन का साउथहॉल में यहीं पर बना है सिर्फ ब्रिटेन का ही नहीं बल्कि पूरे यूरोप का सबसे बड़ा गुरूद्वारा- श्री गुरु सिंह सभा गुरुद्वारा, जो कि लंदन के साउथहॉल में हेवलोक रोड पर स्थित है। श्री गुरु सिंह सभा गुरुद्वारा सिख धर्म की एकता, अखंडता और पूरे देशी अंदाज की कहानी के रूप में खड़ा है, जो लंदन में रह रहे सिखों के लिए गौरांवित करने वाली बात है। आज के वीडियो में हम आपको पूरे यूरोप में सबसे बड़े गुरुद्वारे के नाम से मशहूर श्री गुरु सिंह सभा गुरुद्वारा के बारे में विस्तार से जानेंगे, क्या है इस गुरुद्वारे का इतिहास, कैसे बना ये सबसे बड़ा गुरुद्वारा, क्या होता है लंगर, कैसे बना साउथहॉल मिनी पजांब।

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लंदन में सिखों का बढ़ता वर्चस्व

पूरे ब्रिटेन में आज के समय में टोटल सिखों की आबादी करीब 5 लाख 35000 है। 2021 में ब्रिटिश पापुलेशन के अनुसार यह करीब 0.8 प्रतिशत है। वही अकेले लंदन में 1,44,543 सिख रहते हैं, यह आंकड़े 2021 के है। जिसमें लंदन के साउथ हॉल में 20,843 सिख रहते हैं जो की लंदन की आबादी का 28.2 प्रतिशत सिख आबादी है। और यही बस है भारत के बाहर का सबसे बड़ा गुरुद्वारा गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा। साउथ हॉल को लंदन का मिनी पंजाब भी कहा जाता है क्योंकि यहां पर दुकानों से लेकर मकान तक में सबसे ज्यादा सिखों का दबदबा है।

कब बना साउथहॉल गुरुद्वारा Story of south hall gurudwara

गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा लंदन के साउथअवेन्यू में गुरुनानक रोड पर बना हुआ है। गुरुनानक रोड का पुराना नाम हेवलोक रोड था, लेकिन इसे 2020 में बदल कर गुरूद्वारे के सम्मान में गुरुनानक रोड कर दिया गया। लंदन के थेम्स नदी से करीब 1 किलोमीटर की दूरी पर बसे गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा गुरुद्वारे को बनाने की नींव मार्च 2000 में रखी गई थी, जो 2003 में जाकर बन कर तैयार हुई थी. इस गुरुद्वारो को बनाने में करीब 17.5 मिलियन यूरोस का खर्चा आया था। इस गुरुद्वारे का सारा खर्चा यहां रहने वाली सिख कम्युनिटी ने उठाया था। जो सिख सभाओ के जरिए पैसे इकट्ठा किया करती थी। 30 मार्च 2003 को गुरु नानक रोड गुरुद्वारा स्थल का उद्घाटन एचआरएच प्रिंस ऑफ वेल्स – प्रिंस चार्ल्स जो कि अब किंग चार्ल्स III है उनके  द्वारा गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा का उद्घाटन किया गया था किया गया था। इस गुरुद्वारे की बनावट से प्रिंस चालर्स काफी प्रभावित थे, उनके द्वारा उद्घाटन किये जाने के बाद ये गुरुद्वारा सुर्खियों में आ गया था।

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सिख धर्म के प्रचार प्रसार के लिए इस गुरुद्वारे की ओर से एक स्कूल भी बनाया गया खालसा प्राइमरी स्कूल। ये स्कूल साउथहॉल के ही नॉरवुड हॉल, टेंटेलो लेन में बना हुआ है। इस स्कूल को ईलिंग, हैमरस्मिथ जो कि वेस्ट लंदन कॉलेज के अधीन था, उससे 2.8 मिलियन यूरो में खरीदा गया था। इस गुरुद्वारे के अध्यक्ष है हिम्मत सिंह सोही। गुरुद्वारे में एक बार में 3000 लोगो के आने की कैपेसिटी है। गुरुद्वारे में रोजाना मुफ्त में लंगर बांटा जाता है जो कि पूरी तरह से भारतीय व्यंजन परोसे जाते है। इस गुरुद्वारे में हर हफ्ते करीब 50 हजार लोग हर समुदाय से आते है।

गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा के बनने की कहानी history of gurudwara shri guru singh sabha

1940 से लेकर 1950 के बीच दूसरे विश्वयुद् के बाद मलेशिया और सिंगापुर से सिखों ने लंदन में रहना शुरु कर दिया। इस दौरान वो नीजि घरो को पूजा स्थल के तौर पर इस्तेमाल करते थे। मलेशिया और सिंगापुर दोनो अलग अलग समुदाय से थे और दोनो स्वतंत्र रूप से श्री गुरु नानक सिंह सभा के नाम से संगठन चला रहे थे, जो कि शेकलटन हॉल में प्राथर्ना किया करते थे लेकिन कुछ समय के बाद 11 बेकन्सफील्ड रोड पर सभा लगाने लगे थे, लेकिन 1964 में दोनो ने एक साथ विलय कर लिया और एक गुरुद्वारे का निर्माण करवाया गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा, जो कि ग्रीन साउथहॉल में बनाया गया था। इस दौरान भी ये केवल एक सभा करने का स्थान था लेकिन 30 अप्रैल 1967 में गुरुद्वारा की स्थापना करने के लिए अमृत पर्चा बनाने के लिए अमृतसर के दरबार साहिब गुरूद्वारे के तोशा खाना से खंडा को इंग्लैंड लाया गया, जिसके बाद गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा को गुरुद्वारा की पहचान मिली थी। इस दौरान इस गुरुद्वारे के अध्यक्ष थे श्री सिंह गिल। साउथहॉल की 80 प्रतिशत आबादी सिखो की है, यहां सिख धर्म के प्रभाव को आप इस तरीके से समझ सकते है कि साउथहॉल स्टेशन के बाहर इंग्लिश के साथ साथ गुरमुखी लिपी में भी साउथहॉल स्टेशन का नाम लिखा है।

गुरुद्वारे की बनावट

गुरुद्वारे की बनावट की बात की जाए तो इसके द्वार पर बड़ा सा निशान साहिब है, जो सिखों के प्रमुख चिन्ह के रूप में है। जैसे ही आप अंदर प्रवेश करते है, जूतेचप्पल रखने की व्यवस्था काफी दूर में है। आप पूरे गुरुद्वारे में सिख धर्म के इतिहास और गुरुद्वारे श्री गुरु सिंह सभा के स्थापित होने की कहानी कहती तस्वीरे लगी हुई है। चारों तरफ इस गुरुद्वारे का वो सुनहरा इतिहास है जो इस गुरुद्वारे को सबसे खास बनाता है। गुरुद्वारे के नए हॉल में 3000 लोग एक साथ बैठ सकते है तो वहीं इसमें एक बड़ी सी गैलरी बनी है जहां लोग पूजा कर सकते है। इसके अलावा यहां मल्टी एक्टिविटी हॉल बनाया गया है, जिसमें शादी-विवाह, या फिर अन्य सिख पर्व का आयोजन किया जाता है। इसके लंगर में सातों दिन मुफ्त खाना मिलता है जिसमें हफ्ते में 20 हजार लोग खाना खाते है।

साउथहॉल जाने वाले लोगो का कहना है कि वहां जाकर ये एहसास ही नहीं होता है कि वो विदेश में है। साउथहॉल के बाजार हो, या फिर घर पूरी तरह से पंजाब की याद दिलाता है। यहां आपको भारतीय वंयजनों की भरमार मिल जायेगी। यहां पर आपको अधिकतर हिंदी भाषी लोग मिलेंगे, तो जिन लोगो की इंग्लिंग बेहतर नहीं है वो लोग साउथहॉल आ सकते है, यहां उन्हें पूरा अपनापन महसूस होगा।