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IIT Roorkee Thomso 2025: कला, म्यूजिक और ऊर्जा का तूफ़ान… थॉम्सो 2025 ने बदल दिया IIT...

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IIT Roorkee Thomso 2025: भारत के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थानों में से एक, IIT रुड़की, ने इस साल अपने वार्षिक सांस्कृतिक उत्सव “थॉम्सो 2025” को बेहद भव्य और शानदार स्तर पर आयोजित किया। तीन दिनों तक चले इस उत्सव में संगीत, नृत्य, कला और संस्कृति का अद्भुत मिश्रण देखने को मिला। कार्यक्रम का समापन मशहूर गायक शान की जोशीली परफॉर्मेंस और सलीम-सुलेमान के सुरीले संगीत से हुआ, जिसने दर्शकों को थिरकने पर मजबूर कर दिया।

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मुख्य मंच और रचनात्मक डिजाइन- IIT Roorkee Thomso 2025

इस बार थॉम्सो का मुख्य मंच गैलेक्सी इवेंट्स के कुंवर शाहिद द्वारा डिजाइन किया गया, जो अपने आप में उत्तराखंड में अनोखा और आकर्षक अनुभव साबित हुआ। दर्शकों और मेहमानों ने मंच की भव्यता और रचनात्मकता की काफी प्रशंसा की। इस आयोजन में गैलेक्सी इवेंट्स और स्पेक्टाल मैनेजमेंट के रवीन बिश्नोई का योगदान भी महत्वपूर्ण रहा, जिन्होंने पूरे उत्सव को नए स्तर तक पहुंचाया।

 

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 थॉम्सो फेस्टिवल में जेम्स थॉमसन की भूमिका 

आपको बता दें, थॉम्सो फेस्टिवल का नाम जेम्स थॉमसन (1804–1853) के सम्मान में रखा गया है। वे ब्रिटिश शासनकाल में नॉर्थ-वेस्टर्न प्रॉविंस के लेफ्टिनेंट गवर्नर थे और भारत में इंजीनियरिंग शिक्षा की नींव रखने में उनकी भूमिका बेहद अहम रही। थॉमसन ने रुड़की में इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित करने का सुझाव दिया, जो आगे चलकर भारत की तकनीकी शिक्षा का केंद्र बना। वर्ष 1847 में स्थापित थॉमसन कॉलेज ऑफ सिविल इंजीनियरिंग आगे चलकर यूनिवर्सिटी ऑफ रुड़की बना और 2001 में इसे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) रुड़की का दर्जा मिला।

‘थॉम्सो’ का इतिहास और श्री कामेंद्र कुमार की भूमिका

आईआईटी रुड़की के प्रतिष्ठित सांस्कृतिक उत्सव ‘थॉम्सो’ का एक गौरवशाली और अविस्मरणीय इतिहास रहा है। इस भव्य आयोजन की नींव श्री कामेंद्र कुमार के ऊर्जावान नेतृत्व में पड़ी, जिन्होंने इसके पहले संयोजक (Founding Convener) के रूप में इस परंपरा की शुरुआत की। वर्ष 1981-82 में वे स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उनके मार्गदर्शन और दूरदर्शिता ने थॉम्सो को न सिर्फ एक कॉलेज फेस्ट के रूप में, बल्कि आईआईटी रुड़की की पहचान का प्रतीक बना दिया।

श्री कामेंद्र कुमार का पेशेवर जीवन भी उतना ही प्रेरणादायक रहा है। वे टीसीआईएल (Telecommunications Consultants India Limited)—जो संचार मंत्रालय के अधीन एक सार्वजनिक उद्यम है—में निदेशक पद पर कार्य कर चुके हैं। इसके अलावा, उन्होंने एलजी, एलस्टॉम और डीआरडीओ जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई हैं। तकनीकी विशेषज्ञता और नेतृत्व कौशल का यही संगम थॉम्सो की बुनियाद में झलकता है, जिसने इस फेस्ट को आज भारत के सबसे प्रतिष्ठित और ऊर्जावान सांस्कृतिक आयोजनों में शुमार कर दिया है।

कैंपस में सांस्कृतिक और रचनात्मक ऊर्जा

थॉम्सो 2025 में तीन दिनों तक संगीत, नृत्य, फ़ैशन शो, कला प्रदर्शनियों और विभिन्न प्रतियोगिताओं की रंगारंग झलक देखने को मिली। इस उत्सव में 150 से अधिक कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिसमें रोमांचक संगीत समारोह, नृत्य प्रतियोगिताएँ, नाटक, साहित्यिक प्रतियोगिताएँ और थीम-आधारित प्रस्तुतियाँ शामिल थीं। 800 से अधिक कॉलेजों के लगभग 40,000 लोगों की उपस्थिति ने कैंपस को ऊर्जा, रचनात्मकता और उत्साह का जीवंत केंद्र बना दिया।

थॉम्सो: युवा प्रतिभा और प्रेरणा का केंद्र

थॉम्सो सिर्फ एक सांस्कृतिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह IIT रुड़की की युवाओं की रचनात्मक ऊर्जा, सांस्कृतिक विविधता और प्रतिस्पर्धात्मक भावना का प्रतीक बन चुका है। यह फेस्टिवल छात्रों के बीच सहयोग, प्रतिस्पर्धा और प्रेरणा को बढ़ावा देता है। जेम्स थॉमसन बिल्डिंग जैसी ऐतिहासिक इमारतें आज भी उनके योगदान और विरासत को जीवित रखती हैं।

नवीनता और परंपरा का संगम

थॉम्सो 2025 में प्रस्तुतियों, आकर्षक सजावट और अत्याधुनिक तकनीक का मिश्रण देखने को मिला। परंपरा और नवीनता का यह संगम हर दर्शक के लिए कुछ न कुछ पेश करता है, चाहे वह कला में रुचि रखता हो या तकनीकी प्रदर्शन में। यह उत्सव भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा और रचनात्मकता का एक सशक्त मंच बन चुका है।

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चमकीले सेब से डर कैसा? 6 घरेलू तरीकों से हटाएँ मोम की हानिकारक परत

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Remove Wax chemicals from apples: आजकल सब्ज़ियाँ हों या फल, हर चीज़ पर केमिकल की परत चढ़ी होती है। हम अक्सर देखते हैं कि फलों को जल्दी पकाने के लिए तरह-तरह के केमिकल उत्पाद बनाए जाते हैं, और फिर उन्हें बाज़ार में ऐसे ही केमिकल उत्पादों के साथ बेचा जाता है, जो सेहत के लिए बेहद हानिकारक होते हैं। लेकिन आपके मन में अक्सर यह सवाल उठता होगा कि सेब से मोम और केमिकल की परत कैसे हटाई जाए। तो चलिए आपको इस लेख में फलो पर लगे केमिकल को हटाने के 6 असरदार घरेलू उपाय के बारे में विस्तार से हैं।

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गुनगुना पानी और मुलायम ब्रश

सेब खाने से पहले हर कोई उन्हें धोता है, लेकिन सबसे आसान तरीका है कि उन्हें थोड़ी देर गुनगुने (गर्म नहीं) पानी में भिगो दें। फिर, उन्हें किसी मुलायम ब्रश (सब्जी साफ़ करने वाला ब्रश या नया टूथब्रश) से धीरे से रगड़ें, फिर उन्हें किसी साफ़ कपड़े या पेपर टॉवल से थपथपाकर सुखा लें। तो सेब फिर केमिकल फ्री हो जाते हैं और खाने के लायक हो जाता है तब इससे किसी भी तरह की को दिक्कत नहीं हो सकती हैं।

सिरके (विनेगर) का पानी

एक कटोरे में 1 टेबल स्पून सफेद सिरका (White Vinegar) और 3 कप पानी मिलाएँ। इस मिश्रण में सेबों को 10-15 मिनट के लिए भिगोएँ। साफ पानी से धोकर सुखा लें। सिरका मोम और कीटनाशकों को हटाने में बहुत कारगर है।

नींबू का रस और बेकिंग सोडा

1 कप पानी में 1 छोटा चम्मच बेकिंग सोडा और 2 छोटे चम्मच नींबू का रस मिलाएं। सेबों को इस घोल में 5-10 मिनट तक भिगोएं। हल्के से रगड़ें और फिर साफ पानी से धो लें। यह मिश्रण मोम और पेस्टिसाइड्स दोनों को हटाता है।

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नमक के पानी में भिगोना

एक कटोरे में गुनगुना पानी लें और उसमें 1-2 बड़े चम्मच नमक डालें। सेबों को इस घोल में 10 मिनट तक भिगोएं। हल्के से रगड़ें और साफ पानी से धो लें। नमक बैक्टीरिया और केमिकल हटाने में मदद करता है।

गर्म पानी में डुबोना

पानी को उबाल आने तक गरम करें। सेबों को 10-15 सेकंड के लिए इसमें डुबोएं। तुरंत निकालकर कपड़े से रगड़ें और ठंडे पानी से धो लें। ध्यान दें: ज़्यादा देर तक न डुबोएं!

इसके अलवा अगर आपको ऊपर दिए गए किसी भी तरीके पर पूरा भरोसा न हो, तो आप सेब को छीलकर भी खा सकते हैं। लेकिन छीलने से पहले सेब को अच्छी तरह धोना ज़रूरी है, ताकि कटते समय गंदगी या केमिकल अंदर न जाएं।

Largest Ever Police Encounter: ब्राजील में 64 अपराधी ढेर, 2500 जवानों की टीम ने चलाया...

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Largest Ever Police Encounter: एनकाउंटर की खबरें हमारे देश में आम हैं कभी उत्तर प्रदेश से आती हैं, तो कभी महाराष्ट्र या दिल्ली से। लेकिन इस बार जो घटना सामने आई है, उसने पूरी दुनिया को हिला दिया। भारत नहीं, बल्कि हजारों मील दूर ब्राजील में ऐसा एनकाउंटर हुआ, जिसे वहां का अब तक का सबसे बड़ा पुलिस ऑपरेशन बताया जा रहा है। इस एक्शन में कम से कम 64 अपराधी मारे गए, जबकि चार पुलिसकर्मियों ने भी अपनी जान गंवाई।

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कैसे शुरू हुआ ऑपरेशन– Largest Ever Police Encounter

यह मुठभेड़ ब्राजील के रियो डी जेनेरो में मंगलवार को हुई। शहर के उत्तरी इलाकों खासकर एलेमाओ और पेनहा कॉम्प्लेक्स फेवेला में पुलिस ने एक संगठित अपराधी गिरोह के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया। ये इलाका लंबे समय से ‘कमांडो वर्मेल्हो’ (रेड कमांड) नामक कुख्यात अपराधी संगठन के नियंत्रण में था। इस संगठन की पकड़ इतनी गहरी है कि यहां आम नागरिकों का निकलना तक मुश्किल होता है।

रियो डी जेनेरो के गवर्नर क्लाउडियो कास्ट्रो ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि यह ऑपरेशन पिछले एक साल से प्लान किया जा रहा था। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक मुठभेड़ नहीं, बल्कि एक “संगठित अपराध के खिलाफ युद्ध” था।

भारी हथियारों और ड्रोन का इस्तेमाल

अधिकारियों के अनुसार, इस कार्रवाई में करीब 2,500 पुलिसकर्मी शामिल थे जिनमें सिविल और मिलिट्री पुलिस दोनों की टीमें थीं। पुलिस ने बताया कि अपराधियों के पास अत्याधुनिक हथियार थे और उन्होंने ड्रोन तक का इस्तेमाल किया।
राज्य सरकार ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर एक वीडियो साझा किया जिसमें दिखा कि अपराधियों ने पुलिस पर ड्रोन से बम गिराने की कोशिश की। यह पहली बार था जब ब्राजील में किसी अपराधी गिरोह ने इस तरह की तकनीक का प्रयोग किया।

पुलिस ने जवाबी कार्रवाई में 42 राइफलें और भारी मात्रा में ड्रग्स जब्त कीं। इसके अलावा 81 संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कई अपराधी गुटों ने अपने ठिकानों को जला हुए वाहनों से बैरिकेड बनाकर सुरक्षित करने की कोशिश की, जिससे इलाके में कई घंटों तक घना काला धुआं फैल गया।

कौन है ‘कमांडो वर्मेल्हो’?

‘कमांडो वर्मेल्हो’ ब्राजील का सबसे पुराना और प्रभावशाली आपराधिक संगठन है। इसका गठन 1980 के दशक में उन वामपंथी कैदियों ने किया था, जो उस समय की सैन्य तानाशाही के दौरान जेल में बंद थे। बाद में यह गिरोह धीरे-धीरे ड्रग तस्करी, वसूली और हथियारों के अवैध व्यापार में उतर आया।
थिंक टैंक इनसाइट क्राइम के मुताबिक, आज यह गिरोह एक ट्रांसनेशनल क्रिमिनल नेटवर्क में तब्दील हो चुका है, जो ब्राजील के बाहर भी सक्रिय है।

ऑपरेशन के नतीजे और माहौल

रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, पूरे इलाके में घंटों तक गोलीबारी चली। कई वीडियो में एलेमाओ फेवेला से उठते धुएं के विशाल गुबार साफ नजर आए। पुलिस ने बताया कि यह ऑपरेशन अपराधियों के क्षेत्रीय विस्तार को रोकने के लिए शुरू किया गया था।
रियो डी जेनेरो पुलिस विभाग ने कहा कि हालांकि यह कार्रवाई सफल रही, लेकिन इसमें चार बहादुर पुलिसकर्मी शहीद हो गए। गवर्नर कास्ट्रो ने उनकी शहादत को “राज्य के लिए सर्वोच्च बलिदान” बताया।

दुनिया भर में चर्चा

यह एनकाउंटर अब वैश्विक सुर्खियों में है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया इसे “ब्राजील के इतिहास का सबसे खतरनाक पुलिस ऑपरेशन” बता रहा है। जहां एक तरफ सरकार इसे बड़ी सफलता मान रही है, वहीं कुछ मानवाधिकार संगठन इसे लेकर सवाल भी उठा रहे हैं कि क्या इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौत पुलिस एक्शन में जायज थी या नहीं।

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Bihar Elections 2025: 2020 से 2025 तक… कितना बदला तेजस्वी का घोषणा पत्र और महागठबंधन ...

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Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का माहौल गर्माने लगा है और इसी बीच विपक्षी महागठबंधन ने अपना साझा घोषणा पत्र जारी कर दिया है। इस बार घोषणा पत्र को नया नाम और नया नारा दिया गया है – ‘तेजस्वी पत्र: संपूर्ण बिहार, संपूर्ण परिवर्तन’। इसमें महिलाओं, युवाओं, किसानों और गरीब तबके के लिए कई बड़े वादे किए गए हैं। तेजस्वी यादव की अगुवाई में जारी इस घोषणा पत्र में पुराने मुद्दों पर फोकस तो बरकरार है, लेकिन साथ ही कई नए वादों का तड़का भी लगाया गया है।

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नाम और नारे में बदलाव, लेकिन फोकस वही- Bihar Elections 2025

पिछले चुनाव में महागठबंधन ने अपने घोषणा पत्र को नाम दिया था – ‘प्रण हमारा, संकल्प बदलाव का’ और नारा था ‘न्याय और बदलाव’। इस बार नाम बदला गया है ‘तेजस्वी पत्र’, और नारा रखा गया है – ‘संपूर्ण बिहार के संपूर्ण परिवर्तन के लिए’। हालांकि नाम और नारा नए हैं, लेकिन रोजगार, शिक्षा और युवाओं पर फोकस पहले की तरह बरकरार है।

हर परिवार को सरकारी नौकरी का वादा

साल 2020 के चुनाव में महागठबंधन ने 10 लाख नौकरियां देने का वादा किया था। इस बार वादा और बड़ा हो गया है – हर परिवार के कम से कम एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का भरोसा दिया गया है। तेजस्वी यादव ने कहा है कि सरकार बनने के बाद 20 दिन के भीतर इस संबंध में कानून बनाया जाएगा और 20 महीने के भीतर नौकरी देने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।

महिलाओं के लिए कई बड़ी घोषणाएं

महागठबंधन का यह घोषणा पत्र महिलाओं पर खासतौर से केंद्रित है। इसमें महिलाओं को हर महीने ₹2500 भत्ता देने का वादा किया गया है। इसके अलावा मातृत्व और पीरियड अवकाश को सुनिश्चित करने का संकल्प भी लिया गया है।
घोषणा पत्र में यह भी कहा गया है कि महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा की सुविधा दी जाएगी और इसके लिए 2000 इलेक्ट्रिक बसें खरीदी जाएंगी।

कम्युनिटी मोबिलाइजर्स को राज्यकर्मी का दर्जा

महागठबंधन ने कम्युनिटी मोबिलाइजर्स (सीएम दीदी) को राज्य कर्मचारी का दर्जा देने और उनका वेतन ₹30,000 प्रति माह करने का वादा किया है। वहीं, जीविका कैडर की दीदियों को ₹2000 प्रति माह भत्ता देने की भी घोषणा की गई है।

शिक्षा में डिजिटल फोकस

शिक्षा क्षेत्र को मजबूत करने के लिए भी कई वादे किए गए हैं। 8वीं से 12वीं तक के सभी गरीब छात्रों को मुफ्त टैबलेट देने की बात कही गई है। साथ ही, हर 70 किलोमीटर के दायरे में एक विश्वविद्यालय खोलने की योजना भी तेजस्वी पत्र में शामिल है। पिछले चुनाव में शिक्षा का बजट 12% तक बढ़ाने की बात कही गई थी, इस बार उसे डिजिटल शिक्षा के विस्तार से जोड़ दिया गया है।

किसानों के लिए बीमा और उद्योग का वादा

किसानों के लिए महागठबंधन ने इस बार फसल बीमा योजना के साथ किसान बीमा योजना लागू करने का वादा किया है। साथ ही, राज्य में मखाना प्रसंस्करण उद्योग स्थापित करने की बात कही गई है, जिससे स्थानीय किसानों और श्रमिकों को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे।

शराबबंदी कानून की समीक्षा और ताड़ी से प्रतिबंध हटाने की बात

घोषणा पत्र में एक बड़ा मुद्दा शराबबंदी से जुड़ा भी शामिल है। महागठबंधन ने कहा है कि वह सत्ता में आने पर शराबबंदी कानून की समीक्षा करेगा और ताड़ी से प्रतिबंध हटाया जाएगा। यह निर्णय ग्रामीण अर्थव्यवस्था और स्थानीय रोजगार से जुड़ा माना जा रहा है।

आईटी पार्क और डिजिटल बिहार का विज़न

तेजस्वी यादव ने इस बार युवाओं के लिए आईटी पार्क बनाने का भी वादा किया है। इसका उद्देश्य राज्य में स्टार्टअप और डिजिटल रोजगार को बढ़ावा देना है ताकि युवा बिहार छोड़ने के बजाय यहीं अपने करियर बना सकें।

कांग्रेस की छाप भी दिखी

महागठबंधन के इस घोषणा पत्र में कांग्रेस के एजेंडे की झलक साफ दिखती है। जैसे – प्रतियोगी परीक्षाओं के फॉर्म शुल्क माफ करना, परीक्षा केंद्र तक मुफ्त यात्रा सुविधा देना, ₹500 में गैस सिलेंडर मुहैया कराना और ₹25 लाख तक का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा देना। ये वादे कांग्रेस पहले अन्य राज्यों जैसे हिमाचल और कर्नाटक में कर चुकी है और वहां सफल भी हुए थे।

स्वास्थ्य पर बड़ा ऐलान

स्वास्थ्य क्षेत्र में महागठबंधन ने वादा किया है कि अगर सत्ता में आते हैं, तो हर परिवार को 25 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज उपलब्ध कराया जाएगा। यह योजना कांग्रेस की स्वास्थ्य सुरक्षा नीति से मेल खाती है और गरीब तबके के लिए बड़ी राहत साबित हो सकती है।

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Sikhism in Texas: टेक्सास में सिख पहचान की कहानी! स्कूलों से पुलिस यूनिफॉर्म तक, सम्म...

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Sikhism in Texas: ज़रा सोचिए, जब कोई बच्चा टेक्सास के किसी स्कूल में बैठकर “वैशाखी” के बारे में पढ़ रहा होता है साथ में क्रिसमस, रमज़ान, दिवाली और यॉम किप्पुर की बातें भी चल रही होती हैं तो उसे पता भी नहीं होगा कि यह सब किसी लंबे संघर्ष और एक ऐतिहासिक जीत का नतीजा है। यह कहानी है सिख समुदाय की, जिन्होंने अपने धर्म और पहचान को अमेरिका की मुख्यधारा में जगह दिलाने के लिए सालों मेहनत की, और आखिरकार टेक्सास में इतिहास रच दिया। आज के वक्त में टेक्सास में सिख आबादी लगभग 10,777 है यानी करीब ग्यारह हजार के आसपास सिख परिवार इस राज्य में बसे हुए हैं, जो शिक्षा, व्यवसाय और समाजसेवा जैसे कई क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। आईए आपको टेक्सास में सिखों की कहानी के बारे में बताते हैं विस्तार से।

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शुरुआत – जब सिखों का ज़िक्र तक नहीं था (Sikhism in Texas)

साल था 2010। उस वक्त टेक्सास के पब्लिक स्कूलों के पाठ्यक्रम में सिख धर्म का कोई जिक्र नहीं होता था। बच्चों को दुनिया के बड़े धर्मों के बारे में सिखाया जाता था, मगर सिख धर्म  जो समानता और सेवा का संदेश देता है कहीं नहीं था। यह बात टेक्सास के सिख समुदाय को खटकती थी।

फिर शुरू हुआ एक लंबा अभियान। सिख कोएलिशन (Sikh Coalition) और टेक्सास के सिखों ने मिलकर ग्रासरूट स्तर पर एक जन आंदोलन खड़ा किया। आखिरकार, मई 2010 में टेक्सास बोर्ड ऑफ एजुकेशन ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया सिख धर्म को राज्य के सार्वजनिक स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया।

शिक्षा में सिख धर्म की एंट्री

2011 से टेक्सास के छात्रों के लिए यह अनिवार्य हो गया कि वे सिख धर्म के बारे में तीन अलग-अलग स्तरों पर पढ़ेंगे। छठी कक्षा में बच्चे वैशाखी के बारे में जानेंगे, जब वे दूसरे प्रमुख त्योहारों के बारे में पढ़ते हैं। वहीं, हाई स्कूल के छात्रों को सामाजिक अध्ययन (Social Studies) में सिख धर्म के सिद्धांतों, इसके भौगोलिक उद्गम और विश्वभर में बसे सिख समुदाय के बारे में पढ़ाया जाता है।

यह कदम सिर्फ टेक्सास के लिए नहीं, बल्कि पूरे अमेरिका के लिए मायने रखता था। क्योंकि टेक्सास अमेरिका का सबसे बड़ा टेक्स्टबुक खरीदार राज्य है, और यहाँ का पाठ्यक्रम बाकी 46 राज्यों की किताबों पर भी असर डालता है। यानी एक राज्य के फैसले ने पूरे देश के लाखों बच्चों को पहली बार सिख धर्म और सिख समुदाय के बारे में सही जानकारी देने का रास्ता खोल दिया।

क्यों ज़रूरी था यह बदलाव

कहते हैं, अज्ञानता ही भेदभाव की जड़ है। 9/11 के हमलों के बाद अमेरिका में सिखों को अक्सर गलत समझा गया। उनकी पगड़ी और दाढ़ी देखकर कई लोगों ने उन्हें मुस्लिम या “आतंकी” मान लिया। नतीजा यह हुआ कि सिख समुदाय को नफरत के अपराध, स्कूल में बुलिंग, नस्लीय भेदभाव और रोजगार में मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

सिख कोएलिशन का मानना था कि जब तक आने वाली पीढ़ियाँ यह नहीं समझेंगी कि सिख लोग पगड़ी क्यों पहनते हैं, और उनके धर्म की नींव समानता और न्याय पर क्यों रखी गई है, तब तक यह गलतफहमियां खत्म नहीं होंगी। शिक्षा ही वह रास्ता थी जो इन दीवारों को तोड़ सकती थी।

टेक्सास पुलिस में नई शुरुआत – जब पगड़ी को मिला सम्मान

लेकिन सिखों की पहचान की यह कहानी सिर्फ स्कूलों तक सीमित नहीं रही। साल 2015 में टेक्सास से एक और बड़ी खबर आई अब सिख पुलिस अधिकारी अपनी पगड़ी और दाढ़ी के साथ ड्यूटी कर सकते हैं।

वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रेटर ह्यूस्टन के काउंटी शेरिफ ने यह निर्णय लिया, जिससे सिख समुदाय की एक पुरानी मांग पूरी हो गई। ह्यूस्टन अब उन कुछ पुलिस विभागों में शामिल हो गया, जिनमें धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए सिखों को अपनी “आस्था की निशानियाँ” पहनने की अनुमति दी गई।

शेरिफ एड्रियन गार्सिया ने कहा था, “हमारा दफ़्तर उस समुदाय का प्रतिबिंब होना चाहिए जिसकी हम सेवा करते हैं। यह शहर सांस्कृतिक रूप से जितना विविध है, उतना ही समृद्ध भी।”

उन्होंने यह भी कहा, “हमारे डेप्युटी को न सिर्फ लोगों को समझना और उनका सम्मान करना चाहिए, बल्कि उन्हें प्रतिनिधित्व भी देना चाहिए।”

डेप्युटी संदीप धालीवाल – पहचान का चेहरा बने

इस नीति की शुरुआत के साथ ही एक नाम सामने आया डेप्युटी संदीप धालीवाल। उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुईं नीली पुलिस यूनिफॉर्म में, गहरे नीले रंग की पगड़ी और सजी हुई दाढ़ी के साथ। यह तस्वीर सिर्फ एक इंसान की नहीं, बल्कि उस आज़ादी की प्रतीक थी जिसके लिए सिख वर्षों से संघर्ष कर रहे थे।

सिख अमेरिकन लीगल डिफेंस एंड एजुकेशन फंड (SALDEF) के कार्यकारी निदेशक जसजीत सिंह ने कहा, “यह नीति साबित करती है कि किसी को अपने धर्म और अपने पेशे में से किसी एक को चुनने की ज़रूरत नहीं है।”

ह्यूस्टन में SALDEF के प्रतिनिधियों ने इस फैसले को “ऐतिहासिक जीत” बताया और कहा कि इससे कानून प्रवर्तन एजेंसियों में समुदाय के और लोग शामिल होंगे, जिससे विश्वास और जुड़ाव दोनों बढ़ेंगे।

ह्यूस्टन – सिख समुदाय की बढ़ती ताकत

आपको बता दें, टेक्सास राज्य में स्थित ह्यूस्टन में भी सिखों की मौजूदगी बीते कुछ दशकों में तेजी से बढ़ी है। 1970 के दशक में गिनती के परिवार यहाँ बसे थे, लेकिन अब यह संख्या लगभग 10,000 तक पहुँच चुकी है। अमेरिका में कुल सिख आबादी करीब दो लाख मानी जाती है, जबकि कुछ संगठन इसे सात लाख तक बताते हैं।

यह समुदाय पढ़ा-लिखा और पेशेवर है डॉक्टर, इंजीनियर, व्यापारी, शिक्षक हर क्षेत्र में सिख अमेरिकन योगदान दे रहे हैं। ह्यूस्टन के आसपास कई प्रमुख गुरुद्वारे भी हैं, जैसे Gurudwara Sahib of Houston, Sikh National Center – Houston, और Gurdwara Nanak Sikh Mission Fort Worth।

Sikh National Center, जो 2003 में आधिकारिक तौर पर स्थापित हुआ, इस क्षेत्र के बढ़ते सिख समुदाय की जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाया गया था। वहीं, Gurdwara Akaljot (Garland) और Sikh Center of San Antonio जैसे गुरुद्वारे धार्मिक शिक्षा और पंजाबी भाषा सिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

संघर्ष और सीख की कहानी

लेकिन इस यात्रा में सब कुछ आसान नहीं था। 9/11 के बाद कई सिखों को हमलों और भेदभाव का सामना करना पड़ा। 2012 में विस्कॉन्सिन के एक गुरुद्वारे में गोलीबारी में छह सिख श्रद्धालुओं की मौत ने पूरे समुदाय को हिला दिया था।

ह्यूस्टन में भी 2008 की एक घटना ने कई सवाल खड़े किए थे, जब एक सिख परिवार के घर चोरी की शिकायत के बाद पहुँची पुलिस उनके रूप-रंग से घबरा गई। दाढ़ी और पगड़ी देख अधिकारियों ने परिवार से कठोर पूछताछ की। यह घटना शेरिफ गार्सिया के लिए चेतावनी साबित हुई, और उन्होंने तय किया कि ऐसा फिर कभी न हो।

SALDEF के अधिकारी बॉबी सिंह कहते हैं, “वो सब अब अतीत की बात है। आज गार्सिया ने सिख समुदाय और बाकी अल्पसंख्यक समूहों के लिए एक नई शुरुआत की है।”

अंत में… पहचान से आगे की बात

आज जब टेक्सास के स्कूलों में बच्चे सिख धर्म के बारे में पढ़ते हैं, और ह्यूस्टन की सड़कों पर कोई सिख अधिकारी गर्व से पगड़ी पहनकर ड्यूटी करता है, तो यह सिर्फ प्रतिनिधित्व नहीं बल्कि सम्मान का प्रतीक है।

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BHU Buddhist Research Center: बीएचयू में बौद्ध धर्म का धमाका, ताइवान फाउंडेशन के साथ ...

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BHU Buddhist Research Center: काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में बौद्ध धर्म के अध्ययन और शोध को नई दिशा देने के लिए ताइवान की प्रतिष्ठित संस्था ‘बौद्ध करुणा राहत त्ज़ू ची फाउंडेशन’ और बीएचयू प्रशासन के बीच हाल ही में महत्वपूर्ण बैठक हुई। बैठक में विश्वविद्यालय के कला संकाय के पाली और बौद्ध अध्ययन विभाग के तहत एक शोध केंद्र की स्थापना पर गहन चर्चा की गई।

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प्रतिनिधिमंडल की बैठक और कुलपति से मुलाकात- BHU Buddhist Research Center

इसी साल 13 अक्टूबर को त्ज़ू ची फाउंडेशन की उपाध्यक्ष लिन पी यू के नेतृत्व में 13 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने बीएचयू का दौरा किया। प्रतिनिधिमंडल ने विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अजीत कुमार चतुर्वेदी से मुलाकात कर केंद्र की स्थापना पर विचार-विमर्श किया। कुलपति ने इस पहल का स्वागत करते हुए विश्वविद्यालय की ओर से पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया और कहा कि केंद्र की स्थापना बीएचयू के नियमों के अनुसार शीघ्रता से की जाएगी।

बैठक में कला संकाय की अधिष्ठाता प्रो. सुषमा घिल्डियाल, अंतरराष्ट्रीय केंद्र के समन्वयक प्रो. राजेश सिंह और पाली एवं बौद्ध अध्ययन विभाग के अध्यक्ष अरुण कुमार यादव भी उपस्थित थे।

केंद्र का उद्देश्य और प्रमुख कार्य

प्रस्तावित केंद्र पूरी तरह से शोध-उन्मुख होगा। इसका उद्देश्य थेरवाद और महायान दोनों बौद्ध परंपराओं को बढ़ावा देना है। इसके तहत शास्त्रीय ग्रंथों का गहन अध्ययन, उनका अनुवाद और प्रकाशन किया जाएगा। इसके अलावा, उच्च गुणवत्ता वाले शोध पत्रों और व्याख्यान श्रृंखलाओं का आयोजन कर विद्वानों और साधकों के बीच ज्ञान का आदान-प्रदान बढ़ाया जाएगा।

केंद्र विशेष रूप से महायान परंपरा के पुनरुद्धार पर जोर देगा। बैठक में इस बात पर चर्चा हुई कि महायान बौद्ध धर्म, जो कभी भारत में फूला-फला और समृद्ध था, समय के साथ अपने जन्मस्थान से लगभग लुप्त हो गया। बीएचयू में इस केंद्र की स्थापना से इस परंपरा के अध्ययन और जागरूकता को पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी।

अनुवाद और प्रकाशन पर ध्यान

केंद्र महत्वपूर्ण बौद्ध ग्रंथों और पांडुलिपियों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद करेगा। इसका उद्देश्य विद्वानों और अनुयायियों के लिए अध्ययन और शोध को सुलभ बनाना है। त्ज़ू ची फाउंडेशन ने थेरवाद और महायान दोनों परंपराओं के ग्रंथों और साहित्य के अनुवाद और प्रकाशन में सहयोग की प्रतिबद्धता जताई है।

इस पहल से न केवल शैक्षणिक शोध को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि भारत और ताइवान के बीच सांस्कृतिक और बौद्ध विरासत के साझा इतिहास को भी मजबूत किया जा सकेगा।

बीएचयू के लिए नई दिशा

विशेषज्ञों का मानना है कि इस केंद्र की स्थापना बीएचयू में बौद्ध धर्म अध्ययन और अनुसंधान को नई ऊंचाई प्रदान करेगी। यह न केवल शैक्षणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि भारत और ताइवान के बीच सांस्कृतिक सहयोग और आदान-प्रदान को भी बढ़ावा देगा।

बीएचयू और त्ज़ू ची फाउंडेशन की यह साझेदारी बौद्ध धर्म पर शोध, ग्रंथों के अनुवाद और प्रकाशन, और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है। इस पहल से भविष्य की पीढ़ियों तक बौद्ध परंपराओं का ज्ञान सुरक्षित और सुलभ रहेगा।

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Gadar Movie Facts: सनी की गदर के काजी फिल्म इंडस्ट्री छोड़ जी रहे हैं ऐसा जीवन

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Gadar Movie Facts: बॉलीवुड की चमक-दमक और बड़े पर्दे की रौनक में कई चेहरे छुपे होते हैं, जिनके नाम तो स्क्रीन पर चमकते हैं, लेकिन उनकी असली कहानी पर्दे के पीछे कहीं छिपी रहती है। ऐसा ही एक रहस्यमय नाम है इशरत अली का। आपने सनी देओल की ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘गदर: एक प्रेम कथा’ देखी होगी और वह काजी का किरदार याद होगा, जिसने अपने अभिनय से दर्शकों के दिलों में जगह बना ली। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस किरदार के पीछे का असली इंसान अब बॉलीवुड की दुनिया से दूर, पूरी तरह अलग जीवन जी रहा है?

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वह इंसान, जिसने करीब ढाई दशक तक बड़े पर्दे पर अपनी पहचान बनाई, अब फिल्मों की चमक-दमक से कोसों दूर, अध्यात्म और सादगी के रास्ते पर चल रहा है। मुंबई के व्यस्त शहर में, स्टारडम की रौशनी से दूर, अपने परिवार के साथ उसने एक ऐसा जीवन चुना है जिसे देखकर कोई भी हैरान रह जाए। आखिर वह क्यों पीछे हट गए? वह क्या कर रहे हैं? और बॉलीवुड में उनके यादगार किरदारों के पीछे की असली कहानी क्या है? आईए जानते हैं विस्तार से

पहली बड़ी पहचान: काल चक्र

इशरत अली का बॉलीवुड डेब्यू 1988 में आई फिल्म ‘काल चक्र’ से हुआ। इस फिल्म में उन्होंने यशवंत कात्रे नामक भ्रष्ट नेता का किरदार निभाया, जिसे दर्शकों ने बेहद पसंद किया। इस रोल ने उन्हें नेगेटिव किरदार निभाने का पहला मौका दिया और इसी के साथ उनके करियर की नींव मजबूत हुई।

विलेन से साइड रोल तक- Gadar Movie Facts

इशरत अली ने अपने करियर में लगभग 150 फिल्मों में काम किया। उन्होंने केवल विलेन के रोल नहीं निभाए बल्कि कई यादगार सपोर्टिंग किरदार भी किए। फिल्म ‘आतंक ही आतंक’ में उन्होंने रजनीकांत के पिता का और ‘तुम मेरे हो’ में आमिर खान के पिता का किरदार निभाया। इसके अलावा ‘क्रांतिवीर’, ‘आंदोलन’, ‘गुंडा’ जैसी फिल्मों में भी उन्होंने अपने अभिनय का लोहा मनवाया।

गदर का काजी: सबसे यादगार किरदार

इशरत अली को असली पहचान मिली सनी देओल की सुपरहिट फिल्म ‘गदर: एक प्रेम कथा’ (2001) से। इस फिल्म में उन्होंने काजी का किरदार निभाया, जो दर्शकों के दिल में छा गया। फिल्म में उनके अलावा अमीषा पटेल और अमरीश पुरी जैसे दिग्गज कलाकार भी थे। इशरत अली ने अपने किरदार के माध्यम से कहानी में गहराई और रोमांच भर दिया। इस फिल्म का सीक्वल ‘गदर 2’ 2023 में भी ब्लॉकबस्टर साबित हुआ, और इशरत अली के किरदार की यादें आज भी ताजा हैं।

स्पॉट बॉय से बड़े पर्दे तक

इंडस्ट्री में शुरुआती दिन मुश्किल थे, लेकिन इशरत ने हार नहीं मानी। कैमरा यूनिट के असिस्टेंट से लेकर बड़े फिल्म सेट पर नेगेटिव और सपोर्टिंग रोल निभाने तक का उनका सफर संघर्ष और मेहनत की कहानी है। उनका अभिनय इतना प्रभावशाली था कि दर्शक उनके किरदार को भूल नहीं पाए।

फिल्मी दुनिया से अध्यात्म की ओर

हालांकि, 2014 के बाद इशरत अली ने फिल्मों से दूरी बना ली। उनका आखिरी टीवी प्रोजेक्ट था ‘चिड़ियाघर’, जिसमें उनकी एक्टिंग को काफी सराहा गया। अब वे मुंबई में अपनी पत्नी निगार सुल्तान और बच्चों के साथ अध्यात्मिक जीवन जी रहे हैं। वे पांचों वक्त की नमाज़ अदा करते हैं, खुदा का शुक्र करते हैं और साधारण जीवन जी रहे हैं।

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Bihar Elections 2025: महागठबंधन का ‘तेजस्वी प्रण’ जारी, हर घर नौकरी से लेकर मुफ्त बिज...

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Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मियों के बीच महागठबंधन ने मंगलवार को अपना घोषणापत्र जारी कर दिया है। इस घोषणापत्र का नाम रखा गया है ‘तेजस्वी प्रण’। इसका कवर तेजस्वी यादव की तस्वीर से सजा हुआ है, और इसकी हर पंक्ति में बदलाव और सामाजिक न्याय की झलक देखने को मिलती है।

तेजस्वी यादव की अगुवाई में जारी इस घोषणापत्र में रोजगार, महिला सशक्तिकरण, किसानों के अधिकार और सामाजिक न्याय को केंद्र में रखा गया है। महागठबंधन ने कहा कि यह केवल चुनावी घोषणा नहीं बल्कि “एक समृद्ध, न्यायपूर्ण और आत्मनिर्भर बिहार के निर्माण का ऐतिहासिक संकल्प” है।

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मुख्य वादे: हर परिवार से एक को नौकरी- Bihar Elections 2025

महागठबंधन के घोषणापत्र का सबसे बड़ा आकर्षण है रोजगार का वादा। इसमें कहा गया है कि अगर गठबंधन की सरकार बनती है तो सिर्फ 20 दिनों के भीतर हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का अधिनियम लाया जाएगा। इतना ही नहीं, 20 महीनों के भीतर नौकरी की प्रक्रिया भी शुरू कर दी जाएगी।

तेजस्वी यादव ने कहा कि बिहार के युवाओं को अब “रोजगार के लिए पलायन नहीं, अवसर” मिलेगा।

महिलाओं के लिए ‘माई-बहिन मान योजना’

महिलाओं के लिए गठबंधन ने एक नई योजना पेश की है — ‘माई-बहिन मान योजना’। इसके तहत 1 दिसंबर 2025 से महिलाओं को ₹2,500 प्रतिमाह की सहायता दी जाएगी। यानी सालाना ₹30,000 की मदद। इसके साथ बेटियों के लिए ‘BETI’ और माताओं के लिए ‘MAI’ नामक योजनाएं भी शुरू की जाएंगी।

महागठबंधन का कहना है कि बिहार के आर्थिक और सामाजिक विकास में महिलाओं की भागीदारी को मजबूती देना उनकी प्राथमिकता होगी।

संविदाकर्मियों को स्थायित्व और पुरानी पेंशन योजना की वापसी

घोषणापत्र में कहा गया है कि सभी संविदा और आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को स्थायी किया जाएगा। इसके साथ ही पुरानी पेंशन योजना (OPS) को फिर से लागू करने की घोषणा भी की गई है।
जीविका दीदियों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा और ₹30,000 मासिक वेतन देने का वादा किया गया है।

मुफ्त बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार

हर परिवार को 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने का वादा किया गया है। वृद्धजन, विधवा और दिव्यांगों के लिए क्रमशः ₹1,500 और ₹3,000 मासिक पेंशन का प्रावधान होगा।
शिक्षा के क्षेत्र में, प्रत्येक अनुमंडल में महिला कॉलेज और 136 प्रखंडों में नए डिग्री कॉलेज खोले जाएंगे। छात्रों से परीक्षा फॉर्म शुल्क नहीं लिया जाएगा और उन्हें मुफ्त यात्रा सुविधा दी जाएगी।
स्वास्थ्य के लिए हर नागरिक को ₹25 लाख तक का मुफ्त बीमा देने की योजना है। जिला अस्पतालों को सुपर स्पेशलिटी सुविधाओं से लैस करने का भी ऐलान किया गया।

किसानों और मजदूरों के लिए राहत

महागठबंधन ने किसानों के लिए MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर सभी फसलों की खरीद की गारंटी देने की घोषणा की है।
मनरेगा मजदूरी को ₹255 से बढ़ाकर ₹300 करने और काम के दिनों को 100 से बढ़ाकर 200 करने का वादा किया गया है। बंद पड़ी मंडियों को दोबारा शुरू करने की बात भी कही गई है।

अल्पसंख्यकों और वंचित वर्गों के लिए घोषणाएं

गठबंधन ने कहा कि वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा के लिए विशेष कदम उठाए जाएंगे और वक्फ संशोधन विधेयक को लागू नहीं किया जाएगा। बौद्ध गया के मंदिरों का प्रबंधन बौद्ध समुदाय को सौंपने की घोषणा भी की गई है।
साथ ही, OBC और SC/ST वर्गों के लिए आरक्षण बढ़ाने और उसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने की योजना है।

एनडीए पर तीखा हमला

घोषणापत्र जारी करते हुए तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार और एनडीए सरकार पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा,

“बिहार ने पिछले 20 सालों में सुशासन के नाम पर सिर्फ पलायन, अन्याय और बेरोजगारी देखी है। अब बिहार को न्याय, रोजगार और समान अवसर का प्रदेश बनाना होगा।”

कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा,

“महागठबंधन ने मुख्यमंत्री पद का चेहरा सबसे पहले घोषित किया और अब सबसे पहले घोषणापत्र जारी किया। इससे साफ है कि बिहार के भविष्य को लेकर कौन गंभीर है।”

‘30-35 वर्षों की सेवा का प्रण’

वीआईपी प्रमुख और महागठबंधन के डिप्टी सीएम चेहरे मुकेश सहनी ने कहा,

“यह घोषणापत्र सिर्फ पांच साल के शासन का वादा नहीं, बल्कि अगले 30-35 वर्षों तक बिहार की सेवा का संकल्प है। हम जनता की आकांक्षाओं को पूरा करेंगे और बिहार को नई दिशा देंगे।”

महागठबंधन के इस घोषणापत्र ने बिहार की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। रोजगार, महिला सशक्तिकरण और किसानों के हित जैसे मुद्दों पर फोकस करते हुए गठबंधन ने एनडीए सरकार के 20 साल के शासन पर सवाल उठाए हैं। अब देखना यह होगा कि “तेजस्वी प्रण” जनता के दिल तक पहुंच पाता है या नहीं।

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Himachal Pradesh Unique Marriage: सिरमौर में दो भाइयों ने सात फेरों की जगह ली संविधान...

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Himachal Pradesh Unique Marriage: हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले से एक अनोखा और प्रेरणादायक मामला सामने आया है। यहां दो सगे भाइयों ने शादी तो की, लेकिन न पंडित बुलाया गया, न सात फेरे लिए गए, न ही कोई धार्मिक मंत्रोच्चार हुआ। इसके बजाय दोनों भाइयों ने भारतीय संविधान की शपथ लेकर एक-दूसरे का साथ निभाने का वादा किया। यह शादी सिरमौर के शिलाई विधानसभा क्षेत्र के नैनीधार पंचायत के कलोग गांव में हुई।

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संविधान को साक्षी मानकर हुआ विवाह- Himachal Pradesh Unique Marriage

दूल्हे बने सुनील कुमार बौद्ध और विनोद कुमार आज़ाद, दोनों सरकारी कर्मचारी हैं और सामाजिक सुधार के लिए लंबे समय से काम कर रहे हैं। दोनों ने संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर के विचारों से प्रेरणा लेकर यह कदम उठाया। उन्होंने कहा, “विवाह दो दिलों का मिलन है, किसी कर्मकांड या परंपरागत रीति की मजबूरी नहीं।” इसलिए उन्होंने पारंपरिक ब्राह्म विवाह की जगह संविधान को साक्षी मानकर विवाह किया।

शादी के कार्ड भी थे अनोखे

इतना ही नहीं, इनकी शादी के निमंत्रण पत्र भी आम कार्डों से बिल्कुल अलग थे। कार्ड पर भगवान बुद्ध, डॉ. भीमराव आंबेडकर और महात्मा कबीर की तस्वीरें छपाई गई थीं। यह सिर्फ शादी का न्योता नहीं बल्कि समाज में समानता, शिक्षा और सुधार का संदेश देने की कोशिश भी थी।

रस्में निभीं लेकिन पंडित नहीं बुलाया गया

हालांकि दोनों भाइयों ने शादी की बाकी रस्में निभाईं जैसे मामा स्वागत, वरमाला और बरात की परंपरा। 25 अक्तूबर की शाम मामा स्वागत किया गया और अगले दिन सुबह गांव से बरात रवाना हुई। एक भाई सुनील ने कटाड़ी गांव की रितु से विवाह किया, जबकि विनोद ने नाया गांव की रीना वर्मा को जीवनसाथी बनाया।
बरात के दुल्हन के घर पहुंचने के बाद दूल्हा-दुल्हन ने साथ बैठकर संविधान की शपथ ली और विवाह का वचन दिया। इसके बाद नेवदा की रस्म पूरी हुई और रात को गांव में भोज का आयोजन किया गया।

समाज में सकारात्मक संदेश

इस अनोखी पहल को दुल्हन पक्ष ने भी पूरा समर्थन दिया। शादी देखने आए गांववालों ने इस प्रयास की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा कि ऐसी शादियां समाज में नई सोच और समानता का संदेश देती हैं। समारोह में सैकड़ों लोग शामिल हुए और नवविवाहित जोड़ों को आशीर्वाद दिया।

‘संविधान विवाह’ बना चर्चा का विषय

दोनों भाइयों की इस पहल की चर्चा अब पूरे हिमाचल में हो रही है। इसे लोग “संविधान विवाह” कहकर संबोधित कर रहे हैं। यह शादी न केवल एक उदाहरण बनी है बल्कि उस सोच का प्रतीक भी है जो परंपरा से आगे बढ़कर बराबरी और जागरूकता की दिशा में रास्ता दिखाती है।

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पश्चिम बंगाल का ‘Land Rover Village’: जहां हर घर में दौड़ती है 70 साल पुरानी जीप

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Land Rover Village: पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग से करीब 23 किलोमीटर दूर बसा माने भंजांग भारत-नेपाल की सीमा पर स्थित एक छोटा लेकिन बेहद खास गांव है। इस गांव की पहचान उसके खूबसूरत पहाड़ी नज़ारों या बादलों से घिरी वादियों से ही नहीं, बल्कि वहां चलने वाली पुरानी विंटेज लैंड रोवर जीपों से है। यहां लगभग हर घर के बाहर एक लैंड रोवर खड़ी नजर आती है, कुछ तो 1950 के दशक की हैं। इसी वजह से माने भंजांग को अब लोग प्यार से “द लैंड रोवर विलेज” कहते हैं।

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कैसे पहुंचीं ये लैंड रोवर गाड़ियां इस गांव तक? Land Rover Village

इस गांव और इन गाड़ियों की कहानी अंग्रेजों के ज़माने से जुड़ी है। कहा जाता है कि आज़ादी से पहले यहां रहने वाले ब्रिटिश अधिकारी अपने साथ ये लैंड रोवर जीपें लेकर आए थे, ताकि वे पहाड़ी इलाकों में आसानी से यात्रा कर सकें। जब वे भारत छोड़कर गए, तो उन्होंने ये गाड़ियां स्थानीय लोगों को सौंप दीं। तब से लेकर आज तक ये गाड़ियां यहां की सड़कों पर दौड़ रही हैं कभी सैलानियों को लेकर, तो कभी सामान पहुंचाने के लिए।

 

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पुरानी, लेकिन ताकत में किसी से कम नहीं

इन गाड़ियों की उम्र भले ही सत्तर साल से ज़्यादा हो चुकी है, लेकिन ताकत और मजबूती में ये आज की मॉडर्न एसयूवी को भी टक्कर देती हैं। इनका इंजन पुराना है, मगर दमदार। ये बिना रुके हिमालय की ऊबड़-खाबड़, पतली और खतरनाक सड़कों पर दौड़ती हैं। स्थानीय ड्राइवर इन्हें अपना गर्व मानते हैं और कहते हैं, “लैंड रोवर सिर्फ गाड़ी नहीं, हमारी पहचान है।”

पर्यटन की रफ्तार बढ़ा रही हैं पुरानी जीपें

माने भंजांग, सन्दकफू ट्रेक का शुरुआती बिंदु है — जो दुनिया भर के ट्रेकर्स का सपना माना जाता है। यही वजह है कि यहां की लैंड रोवर जीपें सैलानियों के लिए एक आकर्षण बन चुकी हैं। ये विंटेज टैक्सियां यात्रियों को सन्दकफू तक ले जाती हैं, जहां से लोग माउंट एवरेस्ट और कंचनजंघा जैसी चोटियों का शानदार दृश्य देख सकते हैं। इन गाड़ियों की वजह से न सिर्फ गांव का पर्यटन बढ़ा है, बल्कि स्थानीय लोगों की आजीविका भी इन्हीं पर निर्भर करती है।

सोशल मीडिया पर छाया ‘लैंड रोवर विलेज’

हाल ही में माने भंजांग का एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ। उसमें दिखा कि कैसे पूरा गांव विंटेज गाड़ियों से भरा पड़ा है और लोग अब भी इन्हें गर्व से चला रहे हैं। एक यूजर ने लिखा, “ये जगह विरासत और एडवेंचर का संगम है।” दूसरे ने कमेंट किया, “मेरे पिता के पास भी ऐसी ही लैंड रोवर थी, देखकर पुरानी यादें ताजा हो गईं।” इस वीडियो के बाद लोग इस गांव को “भारत की चलती-फिरती म्यूज़ियम” कहने लगे हैं।

सिर्फ एक गांव नहीं, एक जिंदा इतिहास

माने भंजांग सिर्फ एक पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि एक जीवित विरासत है। यहां इतिहास संग्रहालयों में बंद नहीं, बल्कि सड़कों पर दौड़ता है। इन पुरानी जीपों ने न सिर्फ गांव को पहचान दी है बल्कि लोगों को आत्मनिर्भर भी बनाया है। यह गांव इस बात की मिसाल है कि कैसे पुरानी चीजें भी नई पहचान गढ़ सकती हैं।

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