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SC Waqf Act Hearing: वक्फ अधिनियम 2025 पर सुप्रीम कोर्ट में गरमाई बहस, पंजीकरण से लेक...

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SC Waqf Act Hearing: सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर एक बार फिर सुनवाई हुई। इस दौरान पक्षकारों के बीच कई संवेदनशील मुद्दों पर तीखी बहस देखी गई। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों पर सवाल उठाए, जबकि सॉलिसिटर जनरल और अन्य पक्षकार सुनवाई को सीमित करने की कोशिश कर रहे थे।

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सुनवाई के दौरान उठाए गए अहम मुद्दे- SC Waqf Act Hearing

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पहले सुनवाई के लिए तीन मुख्य मुद्दे तय किए थे, जिन पर तुषार मेहता ने लिखित जवाब दाखिल किए। हालांकि, कपिल सिब्बल ने कहा कि सभी मुद्दों पर दलील दी जाएगी। उन्होंने इस दौरान कहा कि मस्जिदों में चंदे की तुलना मदिरों से नहीं की जा सकती क्योंकि मस्जिदों में लाखों-करोड़ों का चंदा नहीं आता।

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सिब्बल ने यह भी बताया कि पुराने वक्फ, जो कई सौ साल पहले बनाए गए थे, उनमें पंजीकरण का प्रावधान था, लेकिन अगर पंजीकरण नहीं हुआ तो इसे वक्फ नहीं माना जाता था। इसके बावजूद, 2013 तक ‘वक्फ बाय यूजर’ की प्रथा में पंजीकरण अनिवार्य नहीं था।

जब चीफ जस्टिस ने पूछा कि क्या ‘वक्फ बाय यूजर’ के मामले में पंजीकरण जरूरी था, तो सिब्बल ने माना कि 1954 से पहले नहीं था, लेकिन उसके बाद यह आवश्यक हो गया। उन्होंने मंदिरों में चढ़ावा होने और मस्जिदों में न होने की बात दोहराई और बाबरी मस्जिद को भी इसी श्रेणी में बताया।

वक्फ संपत्तियों पर विवाद और सरकार की भूमिका

कपिल सिब्बल ने यह भी तर्क दिया कि वक्फ को दी गई निजी संपत्तियां सिर्फ इसलिए सरकार छीन रही है क्योंकि उन पर विवाद हैं। उनका कहना था कि यह कानून वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए बनाया गया है। इस पर अदालत ने सवाल किया कि दरगाहों में तो चढ़ावा होता है, तो क्या मस्जिदों में नहीं? इस पर सिब्बल ने स्पष्ट किया कि वे मस्जिदों की बात कर रहे हैं, दरगाह अलग हैं।

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सिब्बल ने आगे कहा कि वक्फ एक बार हो गया तो वह स्थायी हो जाता है और सरकार आर्थिक सहायता नहीं दे सकती। मस्जिदें दान पर निर्भर होती हैं क्योंकि उनमें चढ़ावा नहीं होता।

जांच प्रक्रिया और संवैधानिक सवाल

सिब्बल ने कहा कि कलेक्टर जांच करेंगे, लेकिन जांच की कोई समय सीमा नहीं है। जांच रिपोर्ट आने तक संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा। जब चीफ जस्टिस ने पूछा कि क्या इससे धर्म पालन पर रोक लगती है, तो सिब्बल ने कहा कि यह अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है।

उन्होंने कहा कि सरकार ने वक्फ को अपने नियंत्रण में ले लिया है, जिससे मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का हनन हो रहा है। खासकर अनुसूचित जनजाति मुस्लिमों के लिए यह बड़ा खतरा है, जो वक्फ संपत्ति बनाना चाहते हैं।

अन्य संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन

सिब्बल ने यह भी बताया कि सरकार को यह दिखाना गलत है कि वे मुस्लिम हैं, और पांच साल तक इंतजार करना अनुच्छेद 14, 25 और 26 के अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि ‘वक्फ बाय यूजर’ को अब हटा दिया गया है जबकि यह एक धार्मिक अधिकार है और इसे समाप्त नहीं किया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट में बहस के अन्य पहलू

सीजेआई बीआर गवई ने उदाहरण देते हुए कहा कि खजुराहो का मंदिर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है, फिर भी वहां पूजा की जा सकती है। कपिल सिब्बल ने बताया कि नए कानून के तहत यदि संपत्ति एएसआई के संरक्षण में है तो वह वक्फ नहीं मानी जा सकती।

सिब्बल ने एक अन्य प्रावधान का भी उल्लेख किया जिसमें वक्फ करने वाले का नाम, पता, वक्फ की विधि और तारीख मांगी जाती है, जो कि सदियों पुराने वक्फ के लिए असंभव है। यदि ये जानकारी नहीं दी जाती है तो मुतवल्ली को छह महीने की जेल हो सकती है।

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World’s First Bladder Transplant: दुनिया का पहला ब्लैडर ट्रांसप्लांट, 7 साल बाद मरीज ...

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World’s First Bladder Transplant: लॉस एंजिल्स, कैलिफ़ोर्निया के एक अस्पताल ने चिकित्सा के क्षेत्र में एक अनूठी उपलब्धि हासिल की है। यहां रोनाल्ड रीगन यूसीएलए मेडिकल सेंटर में 4 मई को डॉक्टरों ने पहली बार इंसान का पूरी तरह से नया ब्लैडर ट्रांसप्लांट करने में सफलता पाई है। यह उन मरीजों के लिए बेहद खुशखबरी है जो मूत्राशय से जुड़ी गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं और जिनके लिए पहले विकल्प सीमित थे।

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मरीज की जटिल स्थिति और सर्जरी की ज़रूरत- World’s First Bladder Transplant

इस ऐतिहासिक ऑपरेशन का लाभ ऑस्कर लार्रैनज़ार नाम के 41 वर्षीय मरीज को मिला, जो चार बच्चों के पिता हैं। कई साल पहले कैंसर के कारण उन्हें अपना ब्लैडर का एक बड़ा हिस्सा निकालना पड़ा था। इसके बाद कैंसर और किडनी की बीमारी के चलते उनकी दोनों किडनियां भी निकालनी पड़ीं, जिससे वे पिछले सात सालों से डायलिसिस पर निर्भर थे।

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लार्रैनज़ार को एक अंग दानकर्ता से ब्लैडर और किडनी दोनों प्राप्त हुए। आठ घंटे की लंबी और जटिल सर्जरी के बाद डॉक्टरों ने दोनों अंगों का सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट किया। यह मरीज के लिए एक नई जिंदगी की शुरुआत साबित हो सकती है।

ट्रांसप्लांट में इस्तेमाल हुई अनूठी तकनीक

यूसीएलए के यूरोलॉजी विभाग के चेयरमैन डॉ. मार्क लिटविन ने बताया कि ब्लैडर ट्रांसप्लांट डॉ. नसीरी का वर्षों से शोध विषय रहा है। उन्होंने कहा कि इसे प्रयोगशाला से क्लीनिकल ट्रायल और फिर मरीजों तक लाना एक बड़ी सफलता है।

इस प्रक्रिया में यूएससी के यूरोलॉजिस्ट डॉ. इंदरबीर गिल का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। डॉ. नसीरी और डॉ. गिल ने मिलकर तकनीक और ट्रायल्स विकसित किए जिससे इस तरह की सर्जरी संभव हो सकी।

तकनीकी चुनौतियाँ और सफलता की कहानी

डॉ. नीमा नासिरी, जो इस ट्रांसप्लांट सर्जरी में शामिल प्रमुख सर्जन थीं, ने बताया कि पहले ब्लैडर ट्रांसप्लांट करना इसलिए कठिन था क्योंकि पेल्विस (श्रोणि) की रक्तवाहिकाएं जटिल होती हैं, जो ऑपरेशन को बेहद चुनौतीपूर्ण बनाती हैं। उन्होंने कहा, “ब्लैडर ट्रांसप्लांट की यह पहली कोशिश चार साल से अधिक समय से चल रही थी।”

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सर्जरी में पहले किडनी ट्रांसप्लांट की गई, फिर नए ब्लैडर को किडनी से जोड़ा गया। ऑपरेशन के बाद मरीज की किडनी ने तुरंत काम करना शुरू कर दिया, और डायलिसिस की जरूरत खत्म हो गई। पेशाब भी नए ब्लैडर में सही तरीके से पहुंच रहा था, जो एक बड़ा संकेत था।

पहले के विकल्प और इसके फायदे

पहले जिन मरीजों का ब्लैडर खराब हो जाता था, उनके लिए आंत के हिस्से से नया ब्लैडर बनाना या पेशाब इकट्ठा करने के लिए स्टोमा बैग का इस्तेमाल करना पड़ता था। इन तकनीकों से संक्रमण, आंतों की समस्याएं और ब्लीडिंग जैसी जटिलताएं होती थीं। अब उम्मीद है कि पूरे ब्लैडर ट्रांसप्लांट से इन जोखिमों को कम किया जा सकेगा।

ब्लैडर ट्रांसप्लांट की जरूरत क्यों?

दुनिया भर में लाखों लोग ब्लैडर डिसफंक्शन और गंभीर मूत्र संबंधी बीमारियों से जूझ रहे हैं। वर्तमान में उपलब्ध इलाज सीमित हैं और अक्सर मरीजों को लंबे समय तक असुविधा झेलनी पड़ती है। यूसीएलए ने इस नई तकनीक के माध्यम से इन मरीजों के लिए एक क्रांतिकारी विकल्प प्रस्तुत किया है।

भविष्य की संभावनाएं

यूसीएलए मेडिकल सेंटर की यह पहली सफल ब्लैडर ट्रांसप्लांट सर्जरी मेडिकल विज्ञान में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इससे न केवल मरीजों को बेहतर जीवन मिलने की उम्मीद बढ़ी है, बल्कि यह मेडिकल रिसर्च में नई दिशा भी निर्धारित करेगी।

डॉक्टरों का कहना है कि यह प्रक्रिया और भी अधिक परिष्कृत होगी और भविष्य में इससे लाखों लोगों को मूत्राशय से जुड़ी बीमारियों से पूरी तरह छुटकारा मिलेगा।

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Dhruv Rathi Viral Video: मशहूर यूट्यूबर ध्रुव राठी के एआई आधारित सिख इतिहास वीडियो पर...

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Dhruv Rathi Viral Video: मशहूर यूट्यूबर ध्रुव राठी द्वारा हाल ही में अपने यूट्यूब चैनल पर अपलोड किया गया एक वीडियो ‘द सिख वॉरियर’ विवादों में घिर गया है। इस वीडियो में ध्रुव राठी ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद से सिख गुरुओं और शहीद योद्धाओं की कहानी दिखाई थी, जिसमें बंदा सिंह बहादुर को ‘रॉबिन हुड’ की उपमा दी गई। वीडियो के इस पहलू ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) समेत सिख समुदाय और राजनीतिक दलों की नाराजगी को जन्म दिया।

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वीडियो में दिखाए गए विवादित पहलू– Dhruv Rathi Viral Video

ध्रुव राठी ने वीडियो में बंदा सिंह बहादुर की कहानी को नए अंदाज में पेश किया, जिसमें उन्होंने एआई तकनीक का इस्तेमाल कर सिख गुरुओं, शहीद योद्धाओं और उनके परिवार के सदस्यों का चित्रण किया। वीडियो में बंदा सिंह बहादुर को ‘रॉबिन हुड’ के रूप में बताया गया, जिससे एसजीपीसी ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। एसजीपीसी के सदस्य गुरचरण सिंह ग्रेवाल ने कहा कि यह वीडियो सिख इतिहास को गलत तरीके से प्रस्तुत करता है और गुरु तेग बहादुर जी व बाबा बंदा सिंह बहादुर के सम्मान की अवहेलना करता है।

ग्रेवाल ने सरकार से ध्रुव राठी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की मांग की। उन्होंने कहा कि वीडियो में यह भी गलत दावा किया गया कि बाबा बंदा सिंह बहादुर कभी सिख नहीं थे, जो इतिहास के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि सिख समुदाय को इसके खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए और इसका प्रभावी जवाब देना चाहिए।

राजनीतिक दलों का विरोध और कार्रवाई की मांग

एसजीपीसी के अलावा भाजपा के वरिष्ठ नेता मनजिंदर सिरसा ने भी वीडियो को लेकर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि इस वीडियो ने सिख समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है और दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को इस पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। उन्होंने राठी के खिलाफ धार्मिक भावनाओं को आहत करने की धारा 295 के तहत मामला दर्ज करने की बात कही।

अकाली दल के युवा नेता सरबजीत सिंह ने भी वीडियो की निंदा की और इसे सोशल मीडिया पर साझा करते हुए सवाल उठाए। भाजपा प्रवक्ता प्रितपाल सिंह बलिएवाल ने भी आरोप लगाया कि ध्रुव राठी कांग्रेस से जुड़े हैं और इस मामले में सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने यूट्यूबर के अकाउंट पर प्रतिबंध लगाने और वीडियो हटाने की मांग भी की।

विवाद बढ़ने पर वीडियो हटाना पड़ा

विवाद के बाद, ध्रुव राठी ने कुछ देर में ही अपने विवादित वीडियो को यूट्यूब से हटा दिया। वीडियो हटाने के बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि उन्होंने यह निर्णय दर्शकों की प्रतिक्रिया के मद्देनजर लिया है। राठी ने बताया कि कई लोगों को वीडियो पसंद भी आया, लेकिन कुछ दर्शकों का मानना था कि सिख गुरुओं का एनिमेटेड चित्रण उनके धार्मिक विश्वासों के खिलाफ है।

ध्रुव ने कहा, “मैं नहीं चाहता कि यह कोई राजनीतिक या धार्मिक विवाद बने। यह वीडियो केवल हमारे भारतीय नायकों की कहानियों को एक नए शैक्षिक रूप में पेश करने का प्रयास था। भविष्य में मैं इतिहास की अन्य कहानियों को नए तरीके से पेश करने पर विचार करूंगा और देखूंगा कि क्या इस कहानी को बेहतर तरीके से दोबारा बताया जा सकता है।”

ध्रुव राठी का वीडियो बनाने का मकसद

विडिओ डिलीट करने से पहले ध्रुव राठी ने अपनी एक पोस्ट में कहा कि इस वीडियो को बनाने में काफी मेहनत लगी है और एआई की मदद से यह संभव हुआ कि बिना किसी फोटो के सिख गुरुओं और योद्धाओं की कहानी को एनिमेशन के जरिए प्रस्तुत किया जा सके। उन्होंने दर्शकों से सुझाव मांगे कि क्या उन्हें वीडियो हटाना चाहिए या इसे ऐसे ही रखना चाहिए, या फिर कुछ हिस्सों को ब्लर कर देना चाहिए।

मामला क्यों महत्वपूर्ण है?

यह विवाद डिजिटल युग में इतिहास और सांस्कृतिक विरासत की संवेदनशीलता को उजागर करता है। खासकर जब किसी समुदाय के धार्मिक और ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को प्रस्तुत किया जाता है, तो उसमें सम्मान और सही संदर्भ बनाए रखना अनिवार्य हो जाता है।

एसजीपीसी और अन्य राजनीतिक दल इस मामले में कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं ताकि इतिहास का सही चित्रण हो और किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे। वहीं, इस मामले ने डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स के लिए भी चेतावनी दी है कि वे इतिहास और धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए सामग्री बनाएं।

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Dalai Lama Reincarnation Process: दलाई लामा की अनोखी खोज का रहस्य! बौद्ध धर्म की गुप्...

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Dalai Lama Reincarnation Process: दुनिया में विभिन्न धर्मों में अपने आध्यात्मिक गुरु या नेता को चुनने की प्रक्रिया भले ही अलग-अलग हो, लेकिन तिब्बत के सर्वोच्च बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा का चयन सबसे अनोखा और रहस्यमय माना जाता है। यह कोई चुनाव या परीक्षा नहीं होती, बल्कि यह एक आध्यात्मिक खोज है, जो विश्वास और परंपरा का अद्भुत संगम है। तिब्बती लोगों का मानना है कि दलाई लामा कभी मरते नहीं, बल्कि वे केवल शरीर छोड़कर पुनर्जन्म लेते हैं। इसीलिए उनका चयन ‘चुनाव’ नहीं बल्कि ‘खोज’ कहलाता है। आइए जानते हैं इस अनोखी परंपरा और चुनौतियों के बारे में।

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दलाई लामा का अर्थ- Dalai Lama Reincarnation Process

दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रमुख धार्मिक गुरु हैं और दगे-लुग्स-पा (Gelukpa या Yellow Hat) संप्रदाय के आध्यात्मिक नेता माने जाते हैं। 1959 से पहले वे तिब्बत के आध्यात्मिक और सांसारिक शासक भी थे। वर्तमान में 14वें दलाई लामा, तेनज़िन ग्यात्सो, भारत में निर्वासन में रह रहे हैं और विश्वभर में शांति और सहिष्णुता के संदेशवाहक के रूप में विख्यात हैं। ‘दलाई’ शब्द तिब्बती “लामा” (गुरु या नेता) और मंगोलियन “ताले” (महासागर) का संयोजन है, जो 16वीं सदी में इस पद के लिए इस्तेमाल होना शुरू हुआ।

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तिब्बती बौद्ध धर्म में लामाओं की भूमिका

तिब्बती बौद्ध धर्म में लामाओं को रहस्यमय और गूढ़ ज्ञान के शिक्षक माना जाता है। वज्रयान बौद्ध धर्म के भारत से तिब्बत तक आने के साथ यह परंपरा विकसित हुई। तिब्बती बौद्ध धर्म का इतिहास दो मुख्य चरणों में फैला है—पहली बार बौद्ध धर्म चीन और नेपाल से तिब्बत में आया था, जहां इसे राजा स्रोंग-ब्रत्सन-सम्पो (605–660 ईस्वी) ने स्थापित किया। बाद में 9वीं सदी में बौद्ध धर्म कमजोर पड़ा, लेकिन 10वीं सदी के मध्य से दूसरी बार पुनर्जीवित हुआ।

वज्रयान बौद्ध धर्म में एक आवश्यक पहलू था अभिषेक (आध्यात्मिक दीक्षा), जो योग्य गुरु या लामा से मिलता था। इसी कारण विभिन्न संप्रदायों का विकास हुआ—न्यिंगमा, साक्या, कग्यु और जेलुकपा मुख्य हैं। कग्यु संप्रदाय ने 13वीं सदी में पुनर्जन्म के आधार पर धार्मिक नेतृत्व की परंपरा शुरू की, जिसे अन्य संप्रदायों ने भी अपनाया। जेलुकपा ने इस रीति को दलाई लामाओं के लिए स्थापित किया।

दलाई लामाओं का इतिहास

पहला दलाई लामा, गे-दुन-ग्रुब-पा (1391–1474), ताशिल्हुनपो मठ के संस्थापक और प्रमुख थे। उनकी मौत के बाद उन्हें करुणामयी बोधिसत्व अवलोकितेश्वर का अवतार माना गया। उनके उत्तराधिकारी, गे-दुन-रग्य-मत्शो (1475–1542), ड्रेपुंग मठ के प्रमुख बने।

तीसरे दलाई लामा, सोनाम ग्यात्सो (1543–1588), को मंगोल सरदार अल्तन खान ने “दलाई” उपाधि से नवाजा, जिसका अर्थ ‘महासागर’ है और यह बुद्धि और ज्ञान की गहराई का प्रतीक माना गया। यह उपाधि उनके पूर्वजों को भी दी गई। चौथे दलाई लामा, योन्टन ग्यात्सो, अल्तन खान के महान-पौत्र थे और वे तिब्बत के बाहर जन्मे एकमात्र दलाई लामा थे।

पाँचवे दलाई लामा, न्गाग-दबांग-ब्लो-बजांग-ग्यात्सो (1617–1682), ने मंगोलियाई खौशुट सेना की मदद से जेलुकपा संप्रदाय की तिब्बत में राजनीतिक सत्ता को स्थापित किया। इसी काल में पोताला महल का निर्माण हुआ, जो दलाई लामाओं का आधिकारिक निवास बना।

छठे दलाई लामा, त्सांगडब्यांग-ग्यात्सो (1683–1706), अपनी जीवनशैली और कविताओं के लिए विख्यात थे, लेकिन मंगोलों द्वारा पद से हटाए गए और चीन ले जाए गए, जहां उनकी मृत्यु हुई।

सातवें से बारहवें दलाई लामाओं के शासनकाल में तिब्बत पर मांचू और चीनी साम्राज्य का प्रभाव रहा। तेरहवें दलाई लामा, थुब्बस्तान ग्यात्सो (1876–1933), ने तिब्बती स्वाधीनता को मजबूत किया और किंगडम की रक्षा की।

14वें दलाई लामा: तेनज़िन ग्यात्सो

14वें दलाई लामा का जन्म 1935 में चीन के किंगहाई प्रांत के आमदो क्षेत्र में हुआ। उन्हें 1937 में तेरहवें दलाई लामा का पुनर्जन्म माना गया और 1940 में उनका राज्याभिषेक हुआ। 1950 में उन्होंने आधिकारिक तौर पर तिब्बत का नेतृत्व संभाला। 1959 में तिब्बती विद्रोह के बाद वे भारत शरण लिए और यहां धर्मशाला में निर्वासन सरकार स्थापित की।

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उनका विश्वव्यापी सम्मान उनके अहिंसात्मक और शांति के संदेश के कारण बढ़ा। 1989 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया। वे विश्वभर में शांति, सहिष्णुता, धार्मिक सह-अस्तित्व और करुणा पर प्रवचन देते रहे हैं।

21वीं सदी की शुरुआत में उन्होंने संकेत दिया कि उनका उत्तराधिकारी पारंपरिक पुनर्जन्म प्रक्रिया के बजाय उनकी स्वयं की नियुक्ति से हो सकता है, लेकिन यह विचार चीन सरकार द्वारा अस्वीकार कर दिया गया, जिसने कहा कि दलाई लामा की परंपरा के तहत पुनर्जन्म के चयन में उनका नियंत्रण आवश्यक है। 2011 में 14वें दलाई लामा ने निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रमुख पद से इस्तीफा दे दिया।

दलाई लामा की खोज कैसे होती है?

तिब्बत में दलाई लामा की खोज का सिलसिला सदियों पुराना है। यह मान्यता है कि दलाई लामा कभी पूरी तरह मरते नहीं, बल्कि पुनर्जन्म लेते हैं। उनके अंतिम संस्कार के समय चिता से उठने वाला धुआं एक संकेत होता है, जिसे ध्यान में रखते हुए उच्च पदस्थ लामाओं का दल खोज अभियान शुरू करता है।

यह दल दलाई लामा के निकटतम सहयोगियों से प्राप्त संकेतों, उनके अंतिम समय के वक्तव्य, और उनके आध्यात्मिक अनुभवों को ध्यान में रखकर पुनर्जन्म के स्थान की पहचान करता है। कभी-कभी यह प्रक्रिया वर्षों तक चलती है।

भविष्यवाणियां और परीक्षाएं

खोज दल अनेक आध्यात्मिक संकेतों, भविष्यवाणियों और दलाई लामा के अपने लेखन और सूक्तियों का अध्ययन करता है। जब उन्हें ऐसा कोई बच्चा मिलता है जो इन संकेतों से मेल खाता है, तो उसे तिब्बती प्रशासन को सूचित किया जाता है। अक्सर कई बच्चे मिलते हैं, इसलिए उन्हें कई परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।

इस परीक्षा में बच्चे को दलाई लामा के व्यक्तिगत वस्त्र, वस्तुएं और स्मृतियां दिखाई जाती हैं। यदि बच्चा उन्हें पहचानता है और उसके पूर्वजन्म की याददाश्त सिद्ध हो जाती है, तभी उसे दलाई लामा का पुनर्जन्म माना जाता है। इसके बाद उस बच्चे को बौद्ध धर्म की गहन शिक्षा दी जाती है और वह आध्यात्मिक गुरु बनने की तैयारी करता है।

चीन का हस्तक्षेप और राजनीतिक विवाद

1951 में चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जा के बाद से ही दलाई लामा और चीनी सरकार के बीच संघर्ष चलता आ रहा है। 1959 में दलाई लामा भारत शरण लिए और तब से वे चीन की तिब्बती संस्कृति और धार्मिक स्वतंत्रता पर हो रहे नियंत्रण की लगातार आलोचना करते रहे हैं।

चीन ने 2007 में एक कानून बनाया जिसमें उसने अगले दलाई लामा के चयन में अपनी भूमिका तय करने का दावा किया। चीन का मकसद तिब्बत की सांस्कृतिक पहचान को खत्म करना और दलाई लामा के प्रभाव को सीमित करना है। इसलिए वह नए दलाई लामा की खोज की परंपरागत प्रक्रिया में दखलअंदाजी करना चाहता है।

इस राजनीतिक विवाद के कारण दलाई लामा का पुनर्जन्म और उनकी आध्यात्मिक विरासत का भविष्य अनिश्चितता के घेरे में है। तिब्बती समुदाय और विश्व भर के बौद्ध धर्मावलंबी इस प्रक्रिया की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए चिंतित हैं।

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Temples for Honeymoon Couples: इन 5 दिव्य मंदिरों में करें अपने नए जीवन की शुरुआत, हन...

Temples for Honeymoon Couples: भारत, अपनी विविध संस्कृति, धार्मिकता और ऐतिहासिक विरासत के लिए विश्व प्रसिद्ध है। देश के हर कोने में अनगिनत मंदिर हैं, जो न केवल श्रद्धालुओं के लिए बल्कि प्रेमी जोड़ों के लिए भी आकर्षण का केंद्र हैं। खासकर हनीमून कपल्स के लिए कुछ मंदिर ऐसे हैं जहां वे न केवल आध्यात्मिक शांति पा सकते हैं, बल्कि अपनी नई जिंदगी की शुरुआत एक खास जगह पर कर सकते हैं। आइए जानते हैं भारत के उन पाँच दिव्य मंदिरों के बारे में जो हनीमून के लिए बेहद उपयुक्त माने जाते हैं।

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रामेश्वरम मंदिर, तमिलनाडु- Temples for Honeymoon Couples

दक्षिण भारत के पवित्र स्थलों में शुमार रामेश्वरम मंदिर, समुद्र के किनारे स्थित है और इसे हिन्दू धर्म के चार धामों में से एक माना जाता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसकी स्थापत्य कला अद्भुत है। यहां के शांत वातावरण में हनीमून कपल्स को शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव होता है। रामेश्वरम की सफेद रेत वाली समुद्र तट भी रोमांटिक वक्त बिताने के लिए उपयुक्त है।

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पुष्कर ब्रह्मा मंदिर, राजस्थान

राजस्थान के पुष्कर शहर में स्थित यह ब्रह्मा जी का मंदिर विश्व में अनोखा है क्योंकि ब्रह्मा को समर्पित मंदिर बहुत कम ही हैं। पुष्कर के रंग-बिरंगे मेले, झील और प्राचीन मंदिर इस जगह को खास बनाते हैं। यहां की सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक माहौल हनीमून कपल्स के लिए यादगार बन सकता है। साथ ही, पुष्कर के आसपास के खूबसूरत स्थान भी रोमांचक ट्रिप के लिए उपयुक्त हैं।

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द्वारका धाम, गुजरात

समुद्र के किनारे बसा द्वारका धाम भगवान श्रीकृष्ण का प्रमुख केंद्र है। यहां का प्राचीन मंदिर अपनी भव्यता और आस्था के लिए प्रसिद्ध है। हनीमून कपल्स यहां की शांति और भव्यता का आनंद लेकर अपने रिश्ते को मजबूत कर सकते हैं। इसके अलावा, समुद्र तट पर रोमांटिक सैर और स्थानीय संस्कृति का अनुभव इस यात्रा को और भी खास बना देता है।

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वैष्णो देवी मंदिर, जम्मू-कश्मीर

हिमालय की गोद में स्थित वैष्णो देवी मंदिर देश के सबसे प्रसिद्ध और पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। लाखों श्रद्धालु हर साल इस मंदिर की यात्रा करते हैं। हनीमून कपल्स के लिए यह जगह खास है क्योंकि यहां की प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक माहौल रिश्ते में नयी ऊर्जा भर देता है। मां वैष्णो देवी का आशीर्वाद जोड़े को जीवन के हर मोड़ पर मजबूत बनाता है।

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कैलाश मंदिर, ओडिशा

पुरी के जगन्नाथ मंदिर के परिसर में स्थित कैलाश मंदिर अपनी भव्यता और शांति के लिए जाना जाता है। यह मंदिर झरनों और हरियाली से घिरा हुआ है, जो कपल्स को प्रकृति के करीब लेकर आता है। यहां का शांत वातावरण और आध्यात्मिक माहौल हनीमून के लिए एक परफेक्ट जगह बनाता है।

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भारत के ये पाँच दिव्य मंदिर न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करते हैं, बल्कि यहां की सांस्कृतिक और प्राकृतिक सुंदरता भी हनीमून कपल्स को एक यादगार अनुभव देती है। अगर आप अपने हनीमून को खास और धार्मिक माहौल में बिताना चाहते हैं तो ये स्थल आपके लिए परफेक्ट हैं। ये जगहें आपको सिर्फ़ प्रेम की मिठास ही नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत की ऊर्जा भी देंगी।

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Maharashtra Famous adventure places: महाराष्ट्र में एडवेंचर की तलाश? यहां जानें सबसे ...

Maharashtra Famous adventure places: महाराष्ट्र, देश के पश्चिमी हिस्से में स्थित, न केवल अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और बॉलीवुड के लिए जाना जाता है, बल्कि यह प्राकृतिक सौंदर्य और एडवेंचर प्रेमियों के लिए भी एक बेहतरीन गंतव्य है। 1960 में स्थापित इस राज्य की खूबसूरत पहाड़ियाँ, कोस्टल लाइन और ऐतिहासिक स्थल इसे पर्यटन का प्रमुख केंद्र बनाते हैं। हालांकि, महाराष्ट्र के प्राचीन किलों, मंदिरों और समुद्री किनारों की चर्चा आम है, लेकिन यहां के एडवेंचर और वन्यजीव स्थलों की खूबी कम ही लोगों तक पहुंचती है। आइए जानें महाराष्ट्र के कुछ बेहतरीन एडवेंचर और वाइल्डलाइफ स्थलों के बारे में, जहां रोमांच और प्रकृति का जबरदस्त मेल देखने को मिलता है।

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भीमाशंकर वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी: जैव विविधता का खजाना- Maharashtra Famous adventure places

भीमाशंकर वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट में स्थित है और इसे 1984 में स्थापित किया गया था। यह क्षेत्र जैव विविधता के लिए जाना जाता है और यहां लगभग 36 से अधिक प्रजातियों के पशु-पक्षी देखे जा सकते हैं। खासतौर पर यह विशालकाय गिलहरियों के लिए प्रसिद्ध है। वन्यजीव प्रेमी यहां जंगल सफारी का आनंद ले सकते हैं, जो सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक आयोजित होती है। प्रवेश शुल्क लगभग 50 रुपये है, जबकि जंगल सफारी के लिए अतिरिक्त चार्ज लगता है। ध्यान रहे कि कैमरा ले जाने पर भी अतिरिक्त शुल्क देना पड़ता है।

 

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ताडोबा अंधारी टाइगर रिजर्व: बाघों की भूमि

महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में स्थित ताडोबा अंधारी टाइगर रिजर्व राज्य का सबसे पुराना और प्रमुख टाइगर रिजर्व है। लगभग 625 वर्ग किलोमीटर में फैला यह क्षेत्र बाघों के संरक्षण के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इसके अलावा, यहां तेंदुआ, चीतल, नीलगाय, भालू, सांभर हिरण और अनेक दुर्लभ जीव जंतु पाए जाते हैं। ताडोबा में प्रवासी पक्षियों की भी अच्छी संख्या रहती है, जो इसे पक्षी प्रेमियों के लिए भी आदर्श बनाती है। यहां जंगल सफारी की टिकट 4,000 से 6,000 रुपये के बीच होती है। सफारी का समय सुबह 6 बजे से 10 बजे तक और दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक होता है। कैमरे के लिए अलग से चार्ज देना होता है।

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मालशेज घाट: एडवेंचर का प्राकृतिक गढ़

मालशेज घाट पश्चिमी घाट की खूबसूरत वादियों में स्थित है और एडवेंचर प्रेमियों के लिए स्वर्ग के समान है। यहां ट्रैकिंग, हाईकिंग, कैम्पिंग के साथ-साथ पैराग्लाइडिंग, हॉट एयर बैलून राइड और जिप लाइनिंग जैसे रोमांचक अनुभव उपलब्ध हैं। मानसून के मौसम में इस घाट की सुंदरता देखते ही बनती है और पर्यटकों की भीड़ यहां सबसे अधिक होती है।

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महाबलेश्वर हिल स्टेशन: प्रकृति और रोमांच का संगम

महाराष्ट्र का प्रसिद्ध हिल स्टेशन महाबलेश्वर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ एडवेंचर गतिविधियों के लिए भी लोकप्रिय है। यहां ट्रैकिंग, हाईकिंग, रॉक क्लाइम्बिंग, पैराग्लाइडिंग और जिप लाइनिंग का अनुभव किया जा सकता है। इसके अलावा, वेन्ना झील, आर्थर सीट, एलिफेंट हेड प्वाइंट और विल्सन प्वाइंट जैसी प्राकृतिक खूबसूरती देखने के लिए पर्यटक यहां बड़ी संख्या में आते हैं।

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महाराष्ट्र में ये स्थल न केवल प्रकृति प्रेमियों बल्कि साहसिक गतिविधियों के शौकीनों के लिए भी उपयुक्त हैं। चाहे आप वाइल्डलाइफ की खोज में हों या एडवेंचर की दुनिया में कदम रखने के इच्छुक, महाराष्ट्र के ये जगहें आपके लिए बेहतरीन विकल्प साबित होंगी।

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Luxury Supermarkets in Bangalore: बेंगलुरु के लग्जरी सुपरमार्केट में कीमतें देखकर उड़...

Luxury Supermarkets in Bangalore: बेंगलुरु में एक ऐसा सुपरमार्केट है, जहां रोजमर्रा की चीजें इतनी महंगी कीमतों पर बिकती हैं कि सुनकर आप दंग रह जाएंगे। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो में इस सुपरमार्केट की लग्जरी और अकल्पनीय कीमतों ने लोगों के होश उड़ा दिए हैं। यह सुपरमार्केट 1 एमजी लिडो मॉल में स्थित है और इसका नाम Fresh Pik है। इसे खास तौर पर अमीर ग्राहक ध्यान में रखकर बनाया गया है, जहां सामान की कीमतें सामान्य से कई गुना अधिक हैं।

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गाजर भी लग्जरी आइटम- Luxury Supermarkets in Bangalore

जहां आमतौर पर गाजर एक सामान्य सब्जी मानी जाती है, वहीं इस सुपरमार्केट में इसकी कीमत 4600 रुपये प्रति किलो है। यह सुनकर हर कोई हैरान रह जाएगा क्योंकि आम बाजार में गाजर की कीमत इससे कहीं कम होती है। इसी तरह, खास किस्म की मिर्च भी यहां मिलती है, जिसकी कीमत 40,000 रुपये प्रति किलो है।

 

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चायपत्ती की कीमत हैरान कर देगी

यहां चाय की पत्तियों को भी आम वस्तु नहीं, बल्कि एक लग्जरी आइटम माना गया है। खास चायपत्ती की कीमत 90,000 रुपये प्रति किलो तक है, जो सामान्य चाय की कीमत से कई गुना ज्यादा है। यह दर्शाता है कि यहां मिलने वाला हर सामान प्रीमियम कैटेगरी का है।

नमक भी है बेहद महंगा

हम सब रोज इस्तेमाल करने वाले नमक की कीमत आमतौर पर सस्ती होती है, लेकिन इस सुपरमार्केट में 40,000 रुपये प्रति किलो के हिसाब से नमक बेचा जा रहा है। इसकी कीमत सुनकर आप यकीन नहीं कर पाएंगे कि नमक भी एक महंगा कमोडिटी बन सकता है।

बटर और मशरूम की कीमतें भी चौंकाने वाली

इस लग्जरी बाजार में बटर की कीमत 66,000 रुपये प्रति किलो है। सोचिए, इस बटर को आम ब्रेड पर लगाना कितना महंगा होगा! साथ ही, मशरूम की कीमत भी यहां काफी अधिक है, जो 3400 रुपये प्रति किलो है। आम बाजार के मुकाबले यह कीमतें असाधारण लगती हैं।

खजूर और ड्रायफ्रूट्स की भी खास कीमतें

यहां मिलने वाले ड्रायफ्रूट्स भी आम से बिल्कुल अलग हैं। खासतौर पर खजूर की कीमत 3440 रुपये प्रति किलो है, जो बाजार की तुलना में कई गुना ज्यादा है।

सबसे सस्ती वस्तु भी महंगी

इस सुपरमार्केट की सबसे सस्ती चीज भी आपकी जेब पर भारी पड़ सकती है। एक चीज प्लेटर की कीमत यहां 3500 रुपये है, जो आम जगहों पर काफी महंगा माना जाएगा।

Fresh Pik: अमीरों का खरीदारी ठिकाना

Fresh Pik नामक यह सुपरमार्केट बेंगलुरु के प्रसिद्ध 1 एमजी लिडो मॉल में स्थित है। यह खास तौर पर उन लोगों के लिए है जो खरीदारी में लग्जरी और एक्सक्लूसिविटी को महत्व देते हैं। यहां मिलने वाले उत्पादों की कीमतें देख कर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह बाजार आम लोगों के बजट से काफी ऊपर है।

सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो

इस सुपरमार्केट का वीडियो इंस्टाग्राम के लोकप्रिय फूड अकाउंट foodie_incarnate पर शेयर किया गया, जो देखते ही देखते वायरल हो गया। वीडियो में दिखाए गए महंगे सामानों को देखकर लोग हैरानी जाहिर कर रहे हैं और अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं।

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शरीर की ये 3 परेशानियां दूर कर सकता है आम, यूं ही नहीं कहते इसे फलों का राजा

Health Benefits of Mango: आम को सिर्फ़ इसकी अद्भुत मिठास और स्वाद की वजह से ही फलों का राजा नहीं कहा जाता। यह अद्भुत फल अपने भीतर सेहत के खजाने छिपाए हुए है और हमें कई तरह की शारीरिक समस्याओं से निजात दिलाने में मदद कर सकता है। तो चलिए जानते हैं आम खाने के फायदे जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।

आम खाने के फायदे – benefits of eating mango

  • पाचन क्रिया को बेहतर बनाना – जैसा कि आप सभी जानते हैं कि आम एक ऐसा फल है जिसे खाना हर कोई पसंद करता है, लेकिन आपको बता दें कि आम में फाइबर की अच्छी मात्रा होती है, जो पाचन तंत्र को सुचारू रूप से चलाने में मदद करता है। इसमें एमाइलेज जैसे एंजाइम भी होते हैं, जो जटिल कार्बोहाइड्रेट को शर्करा में तोड़कर भोजन को पचाने में मदद करते हैं। आम कब्ज से राहत दिलाने में भी कारगर हो सकता है।

त्वचा को स्वस्थ रखना मददगार

  • आजकल मौसम बदलने के साथ ही हमारी त्वचा में भी कई तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं। इसी तरह आप मौसमी फल खाकर अपनी त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बना सकते हैं। इसके लिए आम एक बहुत अच्छा फल है। इसमें विटामिन ए, विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होते हैं। ये पोषक तत्व त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। विटामिन सी कोलेजन के उत्पादन में मदद करता है, जो त्वचा की लोच बनाए रखता है और झुर्रियों को कम करता है। एंटीऑक्सीडेंट त्वचा को फ्री रेडिकल्स से होने वाले नुकसान से बचाते हैं।

वजन प्रबंधन में सहायक  

  • जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आम एक बहुत ही मीठा फल है और इसमें कैलोरी की मात्रा सबसे अधिक होती है। कुछ लोगों को यह भी लगता है कि मीठा खाने से वजन तेजी से बढ़ता है। वैसे तो आम में नेचुरल शुगर होती है, लेकिन इसमें फाइबर भी भरपूर मात्रा में होता है। फाइबर पेट को लंबे समय तक भरा हुआ महसूस कराता है, जिससे अधिक खाने की इच्छा कम होती है और वजन प्रबंधन में मदद मिलती है। आपको बता दें कि वजन कम करने की कोशिश कर रहे लोगों के लिए भी आम का सेवन फायदेमंद हो सकता है।

इसके अतिरिक्त, आम आंखों के स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है, प्रतिरक्षा को बढ़ाता है और हृदय स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में भी मदद कर सकता है।

10 Most Powerful Navies: दुनिया की 10 सबसे दमदार नौसेनाओं में भारत का शानदार प्रदर्शन...

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10 Most Powerful Navies: वर्ल्ड डाइरेक्टरी ऑफ मॉडर्न मिलिट्री वॉरशिप 2025 की ताजा रिपोर्ट ने दुनिया की सबसे ताकतवर नौसेनाओं की सूची जारी की है। इस सूची में अमेरिका नौसैनिक ताकत और आधुनिक तकनीक के मामले में शीर्ष स्थान पर है, जबकि चीन की संख्या में सबसे बड़ी नौसेना है। भारत इस रैंकिंग में 7वें स्थान पर है। आइए विस्तार से जानते हैं इस सूची में शामिल देशों और उनकी नौसैनिक क्षमताओं के बारे में।

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अमेरिका: नौसैनिक शक्ति का समुंदरों का राजा- 10 Most Powerful Navies

अमेरिका की नौसेना को विश्व की सबसे आधुनिक और शक्तिशाली माना जाता है। इसके बेड़े में 11 परमाणु ऊर्जा संचालित एयरक्राफ्ट कैरियर हैं, जिनमें 10 निमिट्ज क्लास और 1 फोर्ड क्लास शामिल है। कुल मिलाकर अमेरिका के पास 232 युद्धपोत हैं, जिनमें 68 पनडुब्बियां, 76 डेस्ट्रॉयर और 34 एम्फीबियस जहाज शामिल हैं। हालांकि अमेरिका के पास फ्रिगेट जहाज नहीं हैं, लेकिन उसकी डेस्ट्रॉयर की तकनीक उसे मजबूती प्रदान करती है।

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चीन: संख्या में सबसे बड़ा बेड़ा

चीन के पास कुल 405 सक्रिय युद्धपोत हैं, जो संख्या में सबसे अधिक हैं। इसमें 3 एयरक्राफ्ट कैरियर, 73 पनडुब्बियां (जिनमें से 18 परमाणु चालित हैं), 47 डेस्ट्रॉयर और 127 कोस्टल पेट्रोल जहाज शामिल हैं। यद्यपि तकनीक के मामले में चीन अभी भी सुधार कर रहा है, लेकिन उसकी तेजी से बढ़ती नौसैनिक ताकत किसी से छुपी नहीं है।

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रूस: सबमरीन और तेज कोरवेट्स में माहिर

रूसी नौसेना में 283 जहाज हैं, जिनमें 83 कोरवेट्स, 58 पनडुब्बियां और 1 एयरक्राफ्ट कैरियर शामिल हैं। रूस की ताकत इसकी सबमरीन और उच्च गति वाले जहाजों में है। वह अपने समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देता है।

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इंडोनेशिया: द्वीपसमूह की बड़ी ताकत

दुनिया के सबसे बड़े द्वीपसमूह वाले देश इंडोनेशिया के पास 245 युद्धपोत हैं। इनमें 168 कोस्टल पेट्रोल जहाज और 25 कोरवेट शामिल हैं। इसके अलावा उसके पास 4 पनडुब्बियां भी हैं जो उसकी समुद्री सीमाओं की रक्षा करती हैं।

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दक्षिण कोरिया: आधुनिक तकनीक का सहारा

दक्षिण कोरियाई नौसेना में 147 जहाज हैं, जिनमें 21 पनडुब्बियां और 13 डेस्ट्रॉयर शामिल हैं। देश अमेरिकी तकनीक पर काफी हद तक निर्भर है और सहयोग से अपनी नौसैनिक क्षमता को बढ़ा रहा है।

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जापान: तकनीकी रूप से उन्नत नौसेना

जापान की मरीटाइम सेल्फ डिफेंस फोर्स में कई अत्याधुनिक डेस्ट्रॉयर और पनडुब्बियां शामिल हैं। इसके बेड़े का प्रमुख जहाज हेलिकॉप्टर कैरियर ‘इज़ुमो’ है। जापान को एशिया की सबसे संगठित और तकनीकी रूप से सक्षम नौसेनाओं में से एक माना जाता है।

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भारत: स्वदेशी और आधुनिक तकनीक का संयोजन

भारत की नौसेना इस सूची में सातवें स्थान पर है। भारतीय नौसेना के पास दो विमानवाहक युद्धपोत हैं—आईएनएस विक्रमादित्य, जो सोवियत काल से विरासत में मिला, और आईएनएस विक्रांत, जो पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से निर्मित है। इसके अलावा भारतीय बेड़े में 13 विध्वंसक, 14 फ्रिगेट, 18 कोरवेट, 29 ओशियन पेट्रोल जहाज (ओपीवी), 5 युद्धपोत और 19 पनडुब्बियां शामिल हैं, जिनमें से दो परमाणु ऊर्जा संचालित हैं। कुल मिलाकर भारत के पास लगभग 100 सक्रिय युद्धपोतों का एक मजबूत बेड़ा है।

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फ्रांस: परमाणु युद्धपोतों की ताकत

फ्रांसीसी नौसेना के पास परमाणु चालित विमानवाहक युद्धपोत ‘शार्ल द गॉल’ है, जिसमें राफाल लड़ाकू विमानों को तैनात किया जाता है। फ्रांस के बेड़े में 8 पनडुब्बियां, 21 विध्वंसक, 17 माइन वारफेयर पोत, 3 उभयचर जहाज और 20 ओपीवी हैं, जो कुल 70 युद्धपोत बनते हैं।

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ब्रिटिश रॉयल नेवी: समृद्ध विरासत के साथ आधुनिक बेड़ा

ब्रिटेन की नौसेना दुनिया की सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित नौसेनाओं में से एक है। इसके पास दो आधुनिक एयरक्राफ्ट कैरियर—‘एचएमएस क्वीन एलिजाबेथ’ और ‘एचएमएस प्रिंस ऑफ वेल्स’—हैं, जो F-35 फाइटर जेट उड़ाने में सक्षम हैं। साथ ही 9 पनडुब्बियां, 6 विध्वंसक, 8 फ्रिगेट और 7 माइन वारफेयर पोत हैं। कुल मिलाकर ब्रिटिश नौसेना के पास 50 सक्रिय युद्धपोत हैं।

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तुर्किए: तेजी से बढ़ती नौसैनिक ताकत

तुर्किए ने अप्रैल 2023 में अपना पहला हेलिकॉप्टरवाहक युद्धपोत शामिल किया। इस देश के पास 13 पनडुब्बियां, 17 फ्रिगेट, 9 कोरवेट, 11 माइन वारफेयर पोत, 34 ओपीवी और 5 उभयचर जहाज हैं। तुर्किए अपनी नौसेना की क्षमता को स्थानीय उत्पादन और उन्नत तकनीक से मजबूत कर रहा है।

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S-400 Features: S-400 हर लक्ष्य पर नहीं करता हमला, जानिए कैसे बनता है भारत का सुदर्शन...

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S-400 Features: भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य टकराव में S-400 एयर डिफेंस सिस्टम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह वही आधुनिक रक्षा प्रणाली है जिसने पाकिस्तान की तरफ से दागे गए मिसाइल और ड्रोन हमलों को प्रभावी ढंग से विफल कर भारत को मुकाबले में बढ़त दिलाई। भारत ने 2018 में रूस से पांच S-400 सिस्टम खरीदने का समझौता किया था, जिसे चीन और पाकिस्तान से बढ़ते खतरे को देखते हुए दोनों सीमा क्षेत्रों पर तैनात किया गया। भारत में इसे ‘सुदर्शन चक्र’ नाम दिया गया है, जो भगवान विष्णु के न अजेय अस्त्र से प्रेरित है। इस सिस्टम की ताकत को देखकर लोग इसके कामकाज और क्षमताओं को समझने के लिए उत्सुक हैं।

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S-400 एयर डिफेंस सिस्टम की विशेषताएं- S-400 Features

S-400 को दुनिया के सबसे उन्नत और प्रभावी एयर डिफेंस सिस्टमों में गिना जाता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत इसकी मोबाइलिटी है, यानी इसे आसानी से किसी भी स्थान पर ले जाकर 10 मिनट के अंदर तैनात किया जा सकता है। इस सिस्टम का रडार अत्यंत संवेदनशील है और 600 किलोमीटर तक की दूरी में 300 से अधिक लक्ष्यों को एक साथ ट्रैक कर सकता है। वहीं, यह 400 किलोमीटर तक की दूरी में दुश्मन की मिसाइल, ड्रोन और विमान को मार गिराने में सक्षम है। एक S-400 स्क्वाड्रन 72 मिसाइलों को एक साथ दाग सकता है, जिससे एक बार में बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई संभव होती है।

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क्या S-400 हर मिसाइल या ड्रोन पर फायर करता है?

यह एक आम भ्रांति है कि S-400 हर लक्ष्य पर हमला करता है। वास्तव में, यह प्रणाली केवल तब सक्रिय होती है जब किसी लक्ष्य से खतरा महसूस किया जाए। सिस्टम 600 किलोमीटर की रेंज में दुश्मन की हर गतिविधि पर नजर रखता है, लेकिन मिसाइल या ड्रोन पर तभी प्रतिक्रिया करता है जब वे हमारे क्षेत्र की तरफ हमला करने की कोशिश करें। इसे कमांड से आदेश मिलने पर ही कार्यवाही करने का अधिकार होता है, ताकि अनावश्यक हमले से बचा जा सके।

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S-400 का संचालन कैसे होता है?

S-400 सिस्टम में चार मुख्य घटक होते हैं:

  • रडार: यह 24 घंटे काम करता है और 600 किलोमीटर के दायरे में दुश्मन की हर गतिविधि को स्कैन करता है। जब कोई संदिग्ध वस्तु 400 किलोमीटर की सीमा में आती है, तो रडार कमांड एंड कंट्रोल यूनिट को सूचना भेजता है।
  • कमांड एंड कंट्रोल यूनिट: यह यूनिट डेटा के आधार पर यह निर्धारित करती है कि किस लक्ष्य से कितना खतरा है, उसकी गति और दिशा क्या है।
  • एंगेजमेंट रडार: यह लक्षित वस्तुओं को ट्रैक करता है और मिसाइलों को निशाना बनाने के लिए कमांड भेजता है।
  • लॉन्चर: प्रत्येक लॉन्चर में चार मिसाइलें होती हैं, जिन्हें एक साथ या अलग-अलग समय पर दागा जा सकता है।

S-400 की ताकत का मतलब भारत की सुरक्षा में मजबूती

भारत के लिए S-400 का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह सीमा क्षेत्रों पर बढ़ते खतरे के बीच एक मजबूत सुरक्षा कवच प्रदान करता है। पाकिस्तान की तरफ से लगातार मिसाइल और ड्रोन हमलों का सामना करते हुए इस सिस्टम ने भारतीय रक्षा बलों को न केवल तत्काल प्रतिक्रिया देने में सक्षम बनाया है, बल्कि शत्रु के हमलों को नाकाम कर भारतीय नियंत्रण रेखा पर नियंत्रण बनाए रखने में भी मदद की है।

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