Home Blog Page 24

Priyanka Gandhi on Pahalgam attack: प्रियंका गांधी का सरकार पर जोरदार हमला: पहलगाम हम...

Priyanka Gandhi on Pahalgam attack: कांग्रेसी सांसद प्रियंका गांधी ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले को लेकर केंद्र सरकार पर कड़ा हमला बोला है। उन्होंने इस हमले को सुरक्षा में गंभीर चूक बताते हुए सरकार से सवाल किया कि इस हमले की जिम्मेदारी आखिर किसकी है। प्रियंका गांधी ने कश्मीर को सुरक्षित और शांति का गढ़ बनाने के सरकार की नीतियों पर संदेह जताया और कहा कि अगर सरकार ने अपनी सुरक्षा नीतियों पर सही ढंग से ध्यान दिया होता, तो आज यह स्थिति नहीं होती। उन्होंने कहा कि सरकार के भरोसे पर लोग पहलगाम गए थे, लेकिन सरकार ने लोगों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया, क्योंकि वहां सुरक्षा के कोई ठोस इंतजाम नहीं थे।

और पढ़ें: Operation Sindoor पर गरमाई बहस: Rajnath Singh के बचाव में कांग्रेस के सवाल, क्या सरकार ने दबाव में रोका ऑपरेशन?

प्रियंका गांधी का सवाल: क्या यह गृह मंत्री की जिम्मेदारी नहीं थी? (Priyanka Gandhi on Pahalgam attack)

प्रियंका गांधी ने सरकार से पूछा, “क्या नागरिकों की सुरक्षा रक्षा मंत्री की जिम्मेदारी नहीं है? क्या ये गृह मंत्री की जिम्मेदारी नहीं है?” उन्होंने आतंकवादी संगठन TRF (The Resistance Front) के बारे में भी सवाल उठाए, जो पाकिस्तान समर्थित लश्कर-ए-तैयबा का हिस्सा है। प्रियंका ने कहा कि सरकार की कोई ऐसी एजेंसी नहीं है, जिसे भनक लगे कि ऐसे भयानक हमले की योजना बन रही है। यह सरकारी एजेंसियों की विफलता को दर्शाता है। प्रियंका ने इसे बड़ी विफलता करार दिया और पूछा कि क्या यह सबक नहीं है?

अबाबील आतंकी हमला और शुभम द्विवेदी का जिक्र

प्रियंका ने पहलगाम हमले के बारे में बात करते हुए कानपुर के शुभम द्विवेदी का जिक्र किया। शुभम अपने परिवार के साथ पहलगाम की खूबसूरत वादियों का आनंद लेने गए थे, लेकिन आतंकवादियों ने उन्हें उनकी पत्नी के सामने गोली मार दी। प्रियंका गांधी ने कहा कि शुभम जैसे कई लोग सरकार के शांति-पूर्ण कश्मीर के दावों पर भरोसा करके वहां गए थे, लेकिन उन्हें सुरक्षा के नाम पर कुछ भी हासिल नहीं हुआ। इस घटना ने यह साबित कर दिया कि सरकार की नीतियां पूरी तरह से विफल हो गई हैं।

प्रियंका गांधी ने उठाए गंभीर सवाल

प्रियंका गांधी ने इस आतंकी हमले के बाद पूछे गए कुछ सवालों का जिक्र किया। उन्होंने कहा, “क्या सेना प्रमुख, क्या इंटेलीजेंस प्रमुख ने इस्तीफा दिया? क्या गृह मंत्री ने इस्तीफा दिया? इस्तीफा छोड़िए, जिम्मेदारी तक नहीं ली।” प्रियंका ने यह भी कहा कि जब मनमोहन सरकार के दौरान मुंबई हमले हुए थे, तो तत्कालीन सरकार ने जिम्मेदारी ली थी और इस्तीफा भी दिया था। उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि क्यों राजनाथ सिंह, जो उरी और पुलवामा हमलों के वक्त गृह मंत्री थे, आज भी रक्षा मंत्री हैं? और क्यों अमित शाह, जो मणिपुर और दिल्ली दंगों के दौरान गृह मंत्री थे, अब भी गृह मंत्री हैं? प्रियंका ने कहा कि इन घटनाओं के बाद जिम्मेदारी लेने के बजाय, सरकार की ओर से सिर्फ बचाव की रणनीति अपनाई गई है।

पीएम मोदी का श्रेय लेने पर प्रियंका का तंज

प्रियंका गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि देश जानता है कि हम सभी सरकार के साथ खड़े हो जाएंगे जब देश पर हमला होगा, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं कि वे ऑपरेशन सिंदूर के श्रेय को खुद लें। प्रियंका ने कहा, “संसद में इस समय ऑपरेशन सिंदूर को लेकर चर्चा हो रही है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी खुद को श्रेय देने में व्यस्त हैं।”

अखिलेश यादव का सवाल: पाकिस्तान से ज्यादा चीन से खतरा

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी इस मामले पर तंज कसा। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान से ज्यादा हमें चीन से खतरा है। अखिलेश ने कहा कि पाकिस्तान के खिलाफ सरकार वोट के लिए चर्चा करती है, जबकि चीन से हमारी विदेश नीति पूरी तरह असफल रही है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब हमें जरूरत थी, तब कोई देश हमारे साथ खड़ा नहीं हुआ। इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को यह फैसला लेना चाहिए कि अगले दस साल तक हम चीन से कोई सामान नहीं मंगवाएंगे।

और पढ़ें: Operation Mahadev: पहलगाम और सोनमर्ग हमलों के मास्टरमाइंड को सेना ने किया ढेर, ऑपरेशन महादेव की बड़ी सफलता

अब नाश्ता होगा हेल्दी भी और टेस्टी भी, ट्राई करें काले चने की ये 4 खास रेसिपी

Black Chick pea Breakfast: अगर आप भी रोज़ एक जैसा नाश्ता खाकर बोर हो गए हैं और कुछ नया और हेल्दी ट्राई करना चाहते हैं, तो काले चने एक बेहतर विकल्प हो सकते हैं। काले चने से बनी ये 4 चीज़ें आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प हो सकती हैं। काले चने प्रोटीन, फाइबर और कई ज़रूरी पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, जो इसे नाश्ते के लिए एक बेहतरीन विकल्प बनाते हैं। तो चलिए इस लेख में हम आपको चने से बनने वाले कुछ बेहतरीन व्यंजनों के बारे में बताते हैं।

1. काले चने का सलाद

नाश्ते में हल्का और पौष्टिक कुछ चाहिए तो काले चने का सलाद (Black Chickpea Salad) एक शानदार विकल्प है। इसे बनाने के लिए उबले हुए काले चनों में बारीक कटे प्याज, टमाटर, खीरा, हरी मिर्च, धनिया पत्ती और थोड़ा-सा नींबू का रस मिलाएं। स्वाद के लिए काला नमक और चाट मसाला भी डाल सकते हैं। यह प्रोटीन और फाइबर से भरपूर होता है, जो आपको लंबे समय तक भरा हुआ महसूस कराएगा।

2. चना दाल चीला

अगर आप भी चीला खाने के शौकीन हैं, तो चना दाल चीला (Chana Dal Cheela) ट्राई करें। इसे बनाने के लिए काले चनों को रात भर भिगो दें और सुबह पीसकर गाढ़ा घोल बना लें। इसमें अपनी पसंद की सब्जियां जैसे प्याज, गाजर, पालक और मसाले मिलाकर तवे पर चीला बनाएं। यह स्वादिष्ट होने के साथ-साथ काफी पौष्टिक भी होता है।

3. काले चने की घुगनी

बिहार (Bihar) और उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में मशहूर काले चने की घुगनी (Black gram ghugni) नाश्ते के लिए एक बेहतरीन और चटपटा विकल्प है। इसे बनाने के लिए उबले हुए काले चनों को तेल में जीरा, प्याज, अदरक-लहसुन पेस्ट और कुछ मसालों (Spices)के साथ भूनें। ऊपर से हरा धनिया डालकर (Coriander Powder) गरमागरम परोसें। इसे आप ऐसे भी खा सकते हैं या फिर पाव के साथ।

4. काले चने की टिक्की/कबाब

नाश्ते में कुछ क्रिस्पी और टेस्टी खाना चाहते हैं तो काले चने की टिक्की या कबाब बना सकते हैं। उबले हुए काले चनों को मैश करके उसमें उबले आलू, प्याज, हरी मिर्च, धनिया पत्ती और अपनी पसंद के मसाले मिलाएं। इसकी टिक्की बनाकर शैलो फ्राई करें। ये बाहर से क्रिस्पी और अंदर से सॉफ्ट होती हैं, जो बच्चों और बड़ों दोनों को पसंद आएंगी।

इन सभी रेसिपीज़ को बनाना आसान है और ये आपको दिन भर ऊर्जावान बनाए रखने में मदद करेंगी। तो अगली बार जब नाश्ते में कुछ नया ट्राई करना हो, तो काले चने को अपनी लिस्ट में जरूर शामिल करें!

Varanasi News: वाराणसी में कांवड़ियों की पिटाई, मुस्लिम युवकों ने शिव भक्तों पर किया ...

0

Varanasi News: उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में एक गंभीर घटना सामने आई है, जहां राजातालाब थाना क्षेत्र के पंचक्रोशी मार्ग पर स्थानीय दुकानदारों और कांवड़ियों के बीच विवाद हो गया। इस विवाद के बाद दुकानदारों ने कांवड़ियों की पिटाई कर दी। पिटाई का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिससे इलाके में हलचल मच गई। बताया जा रहा है कि पिटाई करने वाले युवक मुस्लिम समुदाय से थे।

और पढ़ें: Deoghar Road Accident: कांवड़ियों से भरी बस और ट्रक के बीच भीषण टक्कर, 18 की मौत, 23 घायल; पीएम मोदी ने जताया शोक

घटना के बाद नाराज कांवड़ियों ने विरोध स्वरूप चौराहे पर सड़क जाम कर दी और राजतिलक चौकी का घेराव कर दिया। इसके चलते इलाके में यातायात प्रभावित हुआ और स्थिति तनावपूर्ण हो गई।

पुलिस की त्वरित प्रतिक्रिया- Varanasi News

घटना की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने तुरंत एक्शन लिया। पुलिस प्रशासन ने कांवड़ियों से उनकी शिकायतें लीं और विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों से समझाया। पुलिस का कहना था कि किसी भी प्रकार की हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और इस मामले में उचित कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इसके बाद, चार मुस्लिम युवकों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया। पुलिस की सक्रियता से कांवड़ियों ने अपना विरोध प्रदर्शन खत्म किया और रास्ता खोल दिया, जिससे स्थिति सामान्य हो गई।

सामाजिक सद्भाव की अहमियत

इस घटना ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया कि समाजों के बीच समझ और सहिष्णुता बनाए रखना कितना जरूरी है। अगर हम सभी मिलजुल कर रहें और एक-दूसरे के प्रति सम्मान बनाए रखें, तो ऐसे विवादों से बचा जा सकता है। प्रशासन की त्वरित प्रतिक्रिया और पुलिस की भूमिका ने यह सुनिश्चित किया कि किसी भी तरह की हिंसा को रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

प्रशासन और पुलिस की भूमिका

यह घटना यह भी बताती है कि प्रशासन और पुलिस की भूमिका ऐसी परिस्थितियों में बहुत अहम होती है। अगर पुलिस सक्रिय और संवेदनशील तरीके से काम करती है, तो स्थिति को जल्द से जल्द नियंत्रण में लिया जा सकता है। स्थानीय पुलिस ने एक मिसाल पेश की है, जहां उन्होंने विवाद बढ़ने से पहले ही समाधान निकाल लिया।

समाज में शांति और सौहार्द बनाए रखना है जरूरी

इस घटना से यह भी सिखने को मिलता है कि समाज में शांति और सौहार्द बनाए रखना हम सभी की जिम्मेदारी है। ऐसे समय में प्रशासन की सतर्कता और समाज के हर वर्ग की समझदारी से ही हम एक दूसरे के बीच मेलजोल बनाए रख सकते हैं। अब समय आ गया है कि हम सभी समुदायों के बीच संवाद और सहयोग बढ़ाएं, ताकि इस तरह के तनावपूर्ण हालात से बचा जा सके।

और पढ़ें: Operation Mahadev: पहलगाम और सोनमर्ग हमलों के मास्टरमाइंड को सेना ने किया ढेर, ऑपरेशन महादेव की बड़ी सफलता

Pakistan-Bangladesh visa-free deal: भारत के खिलाफ पाक-बांग्लादेश की खतरनाक साजिश: ...

0

Pakistan-Bangladesh visa-free deal: बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच हाल ही में एक समझौता हुआ है, जिसमें दोनों देशों ने डिप्लोमैटिक और ऑफिशियल पासपोर्ट रखने वाले नागरिकों को वीजा-फ्री एंट्री देने का निर्णय लिया है। इस डील का मतलब है कि अब पाकिस्तान के अधिकारी बिना वीजा के बांग्लादेश की सरज़मीन पर आ-जा सकते हैं। यह कदम भारत की सुरक्षा के लिए खतरनाक साबित हो सकता है, क्योंकि इस समझौते के जरिए पाकिस्तान अपनी आतंकवादी गतिविधियों को और बढ़ा सकता है।

और पढ़ें: China Brahmaputra Dam Project: चीन का यारलुंग ज़ांगबो नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर डैम, भारत और बांग्लादेश की बढ़ी चिंता

पाकिस्तान और बांग्लादेश का सहयोग- Pakistan-Bangladesh visa-free deal

खबरों की मानें तो, यह समझौता ढाका में पाकिस्तान के गृहमंत्री मोहसिन नकवी और बांग्लादेश के गृहमंत्री रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल जहांगीर आलम चौधरी के बीच हुआ। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और बांग्लादेश के नए शासक मोहम्मद यूनुस ने इसे ऐतिहासिक कदम बताया, लेकिन भारत के लिए यह कदम बेहद खतरनाक है। पाकिस्तान ने अपनी रणनीति बदलते हुए बांग्लादेश को आतंकियों और जासूसों के भेजने के लिए एक नया रास्ता बना लिया है, जिससे भारत को गंभीर खतरा हो सकता है।

पाकिस्तान का आतंकवाद फैलाने का इतिहास

पाकिस्तान की आतंकवाद फैलाने की भूमिका कोई नई बात नहीं है। दशकों से पाकिस्तान कश्मीर और पीओके सीमा के जरिए आतंकवादियों को भारत में घुसपैठ कराने में शामिल रहा है। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने ऑपरेशन सिंदूर जैसे सख्त कदमों के जरिए पाकिस्तान की इन गतिविधियों को काफी हद तक नियंत्रित कर लिया था। लेकिन अब पाकिस्तान ने अपनी रणनीति बदलते हुए बांग्लादेश की सीमा को चुना है, जहां भारत की निगरानी कम है।

भारत के लिए नई सुरक्षा चुनौती

नई वीजा-फ्री डील के जरिए पाकिस्तान अपनी आतंकवादी गतिविधियों को बांग्लादेश के रास्ते भारत तक पहुंचा सकता है। डिप्लोमैटिक और ऑफिशियल पासपोर्ट का इस्तेमाल कर पाकिस्तान के एजेंट्स और प्रशिक्षित आतंकियों को बांग्लादेश भेजा जा सकता है, जहां से वे भारत में प्रवेश कर सकते हैं। यह पाकिस्तान को भारत के खिलाफ अपनी गतिविधियों को सीधे तौर पर अंजाम देने से बचने का मौका देगा।

बांग्लादेश और पाकिस्तान का कुटिल गठबंधन

पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच बढ़ते हुए इस गठबंधन में एक और बड़ी बात है। बांग्लादेश के वर्तमान शासक मोहम्मद यूनुस, पाकिस्तान के साथ-साथ चीन के भी करीबी माने जा रहे हैं। हाल ही में उनके चीन दौरे के दौरान उन्होंने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को लैंडलॉक क्षेत्र बताकर यह दावा किया कि बांग्लादेश को समुद्र तक पहुंचने के लिए चीन को जरूरत है। यह बयान चीन के विस्तारवादी एजेंडे को बढ़ावा देता है और भारत के लिए एक नया खतरा उत्पन्न करता है।

भारत को तीन तरफ से घेरने की साजिश

भारत के लिए अब स्थिति और भी गंभीर हो गई है। उसे तीन तरफ से सामरिक और रणनीतिक घेराबंदी का सामना करना पड़ रहा है। पाकिस्तान पश्चिम से, चीन उत्तर से, और बांग्लादेश अब पूर्व से भारत को घेरने की चाल चल रहे हैं। भारत के पूर्वोत्तर राज्य, जो केवल 22 किलोमीटर चौड़े चिकन नेक कॉरिडोर के जरिए मुख्यभूमि से जुड़े हुए हैं, पहले ही चीन की नजरों में हैं, और अब बांग्लादेश भी इस घेराबंदी में शामिल हो गया है।

भारत को अपनी सुरक्षा रणनीतियों पर फिर से विचार करना होगा

वहीं, भारत को अब अपनी सीमाओं की सुरक्षा और निगरानी को और मजबूत करने की जरूरत है। यह डील केवल वीजा की सुविधा नहीं, बल्कि एक कूटनीतिक आवरण में छिपी आतंकवादी साजिश है। भारत को अब अपनी सुरक्षा रणनीतियों को फिर से परखने की आवश्यकता है, ताकि वह पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन की बढ़ती घेराबंदी से बच सके और अपनी सांप्रभुता की रक्षा कर सके।

और पढ़ें: Thailand Cambodia War: शिव मंदिर विवाद से छिड़ा थाइलैंड और कंबोडिया के बीच युद्ध! F-16 की बमबारी से उबला तनाव

Deoghar Road Accident: कांवड़ियों से भरी बस और ट्रक के बीच भीषण टक्कर, 18 की मौत, 23 ...

0

Deoghar Road Accident: देवघर जिले के मोहनपुर प्रखंड स्थित जमुनिया के पास आज मंगलवार की सुबह एक भीषण हादसा हुआ, जिसमें कांवड़ियों से भरी एक बस और ट्रक के बीच टक्कर हो गई। इस हादसे में बस चालक समेत 18 श्रद्धालुओं की मौत हो गई। मृतकों में एक नाबालिग भी शामिल है, जबकि 23 अन्य श्रद्धालु घायल हो गए हैं, जिनमें कई की हालत गंभीर बताई जा रही है। घायलों को देवघर सदर अस्पताल और आसपास के स्वास्थ्य केंद्रों में भर्ती कराया गया है, और कुछ गंभीर घायलों को रांची रेफर किया गया है।

और पढ़ें: Operation Mahadev: पहलगाम और सोनमर्ग हमलों के मास्टरमाइंड को सेना ने किया ढेर, ऑपरेशन महादेव की बड़ी सफलता

हादसा कैसे हुआ? (Deoghar Road Accident)

घटना के बारे में जानकारी देते हुए देवघर के एसडीओ रवि कुमार ने बताया कि श्रद्धालु देवघर बाबा धाम से दर्शन करके बासुकिनाथ धाम जा रहे थे। सुबह करीब 5 बजे बस चालक को झपकी आ गई, जिसके बाद बस अनियंत्रित होकर गैस सिलेंडर लदे ट्रक से टकरा गई। इसके बाद बस कुछ और दूर जाकर ईंटों के ढेर से टकरा गई। इस भीषण हादसे में बस चालक की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि अन्य श्रद्धालु गंभीर रूप से घायल हो गए।

मृतकों की पहचान

मृतकों की पहचान देवघर जिले के मनोहरपुर थाना अंतर्गत चकरमा गांव निवासी सुभाष तुरी (40), बिहार के पश्चिम चंपारण जिला के मतराजी गांव निवासी दुर्गावती देवी (45), जानकी देवी (35), पटना जिले के धनरूआ थाना अंतर्गत तरेगना गांव निवासी समदा देवी (40), और वैशाली जिले के महनार गांव निवासी सुनील पंडित का 14 वर्षीय बेटा पीयूष कुमार उर्फ शिवराज के रूप में हुई है।

स्थानीय ग्रामीणों और प्रशासन की प्रतिक्रिया

हादसे के बाद स्थानीय ग्रामीणों और पुलिस की टीम ने तत्परता दिखाते हुए घायलों को अस्पताल पहुंचाया। एक स्थानीय ग्रामीण ने बताया, “हम पास के खेत में काम कर रहे थे, तभी जोरदार आवाज आई। दौड़कर पहुंचे तो देखा बस ईंटों के ढेर में घुसी थी और कई लोग खून से लथपथ पड़े थे। हमने पुलिस को सूचना दी और घायलों को बाहर निकालने में मदद की।”

स्थानीय महिला रीना देवी ने भी इस मार्ग की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा, “यह जगह बेहद खतरनाक है। यहां कोई स्पीड ब्रेकर नहीं है और न ही चेतावनी बोर्ड हैं। अगर सरकार पहले से ध्यान देती, तो शायद यह हादसा नहीं होता।”

सांसद का बयान

इस घटना पर सांसद निशिकांत दुबे ने दुख व्यक्त करते हुए ट्वीट किया और 18 श्रद्धालुओं की मौत का जिक्र किया। हालांकि, प्रशासन ने अभी तक केवल 5 मौतों की पुष्टि की है।

कांवड़ियों का बयान

बस में सवार एक कांवड़िए ने बताया कि बस बहुत तेज गति से चल रही थी और चालक को झपकी आ गई। इसके बाद बस ट्रक से टकराई और एक पत्थर से टकराते हुए ईंटों के ढेर में जा घुसी। हादसे के बाद कांवड़ियों में अफरा-तफरी मच गई और कुछ समय तक किसी ने भी मदद नहीं की। एक घायल कांवड़ी सुनील कुमार ने बताया, “अगर समय पर मदद मिलती, तो मेरी पत्नी भी बच सकती थी।”

हादसे का एक और विवरण

इससे पहले भी इस जगह पर कई दुर्घटनाएँ हो चुकी हैं, और स्थानीय लोग पहले ही प्रशासन को चेतावनी दे चुके थे कि सावन के महीनों में इस रास्ते पर सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाई जाए।

पीएम नरेंद्र मोदी ने जताया दुख

वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देवघर की दुर्घटना पर अपना बयान देते हुए कहा, झारखंड के देवघर में हुई सड़क दुर्घटना अत्यंत दुखद है। इसमें जिन श्रद्धालुओं को अपनी जान गंवानी पड़ी है, उनके परिजनों के प्रति मेरी गहरी शोक-संवेदनाएं। ईश्वर उन्हें इस पीड़ा को सहने की शक्ति दे। इसके साथ ही मैं सभी घायलों के जल्द से जल्द स्वस्थ होने की कामना करता हूं।

सीएम हेमंत ने भी प्रकट किया दुख

राज्य के सीएम हेमंत सोरेन ने दुख प्रकट करते हुए कहा कि आज सुबह देवघर के मोहनपुर प्रखंड के जमुनिया चौक के पास बस दुर्घटना में बस सवार श्रद्धालुओं की मृत्यु की अत्यंत दुःखद सूचना मिली है। जिला प्रशासन द्वारा राहत और बचाव कार्य के साथ घायलों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराया जा रहा है। बाबा बैद्यनाथ दुर्घटना में मरने वाले श्रद्धालुओं की आत्मा को शांति प्रदान कर शोकाकुल परिवारजनों को दुःख की घड़ी सहन करने की शक्ति दे।

और पढ़ें: Why people leaving India: भारत से बाहर जाने का बढ़ता ट्रेंड: 2024 में 2 लाख से ज्यादा भारतीयों ने छोड़ी अपनी नागरिकता! जानें क्या है वजह

Sikhism in Antarctica: बर्फीले महाद्वीप पर सिखों का बोलबाला: वैज्ञानिक मिशनों में भार...

0

Sikhism in Antarctica: सोचिए, आप दुनिया के सबसे ठंडे महाद्वीप पर खड़े हैं, जहां बर्फ के अलावा कुछ नहीं दिखता और तापमान -89 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं अंटार्कटिका की, वह जगह जो पूरी तरह से बर्फ से ढकी हुई है और जहां कोई स्थायी बस्ती नहीं है। लेकिन क्या आपको पता है कि इस बर्फीले महाद्वीप पर कुछ सिख वैज्ञानिक और पर्यटक भी गए हैं, जिन्होंने ना केवल अपना शोध किया, बल्कि सिख धर्म के मूल्यों को भी यहां अपनी मेहनत और साहस से फैलाया है?

और पढ़ें: Sikhism in Guyana: जहां भारतीय मूल के लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर के साथ बसे हैं, लेकिन सिखों की कहानी थोड़ी अलग है

दरअसल, अंटार्कटिका में सिख धर्म का इतिहास उतना लंबा नहीं है, लेकिन सिख वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की कुछ अद्भुत कहानियां हैं, जिन्होंने इस बर्फीले महाद्वीप पर अपने कदम जमाए और सिख धर्म के जज्बे को पूरी दुनिया के सामने पेश किया।

आइए, जानते हैं अंटार्कटिका में सिखों का क्या इतिहास है और कैसे उन्होंने इस सर्द और बर्फीले स्थान पर अपने सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को जीवित रखा।

अंटार्कटिका कहां है? (Sikhism in Antarctica)

सबसे पहले बात करते हैं अंटार्कटिका की, यह पृथ्वी का सबसे दक्षिणी महाद्वीप है, जो दक्षिणी महासागर से घिरा हुआ है। यहां के तापमान अक्सर -60°C से भी नीचे चला जाता है, और यह जगह पूरी तरह से बर्फ से ढकी हुई है। जैसा कि हमने आपको पहले बताया था अंटार्कटिका में कोई स्थायी मानव बस्ती नहीं है। यहां के रिसर्च स्टेशनों पर दुनिया भर के वैज्ञानिक कुछ महीनों के लिए आते हैं। यह महाद्वीप पूरी तरह से शांति और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए समर्पित है, और अंटार्कटिक संधि के तहत यहां कोई भी धार्मिक या राजनीतिक विवाद नहीं होता।

सिखों का अंटार्कटिका से जुड़ाव

अब सवाल यह है कि क्या अंटार्कटिका में सिखों का कोई इतिहास है? दरअसल, अंटार्कटिका में सिखों की संख्या बहुत कम है, क्योंकि यह कोई स्थायी आबादी नहीं है। लेकिन फिर भी, कुछ सिख वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने इस ठंडे महाद्वीप पर अपने कदम जमाए हैं, और वहां के कठोर वातावरण में भी सिख धर्म का जज्बा देखा गया है।

1980 के दशक में परमजीत सिंह सेहरा पहले भारतीय बने, जिन्होंने अंटार्कटिका में कदम रखा था। वह सोवियत मिशन का हिस्सा थे और अहमदाबाद के फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी से थे। 2012 में, बंदनजोत सिंह ने अंटार्कटिका के वैज्ञानिक मिशन में हिस्सा लिया और पगड़ीधारी पंजाबी सिख के रूप में अंटार्कटिका में अपनी पहचान बनाई।

इसके अलावा, ब्रिटिश सिख आर्मी के डॉक्टर हरप्रीत चांदी (Polar Preet) ने अंटार्कटिका में सबसे तेज़ महिला के रूप में 1,130 किलोमीटर की दूरी अकेले स्कीइंग करते हुए तय की थी। यह भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जिसने सिखों के साहस और मेहनत की मिसाल पेश की।

अंटार्कटिका में गुरुद्वारा नहीं है

अब बात करें अंटार्कटिका में सिख धर्म की धार्मिक गतिविधियों की तो यहां कोई गुरुद्वारा नहीं है। अंटार्कटिका पूरी तरह से वैज्ञानिक रिसर्च के लिए समर्पित है, और यहां कोई स्थायी धार्मिक इमारत नहीं है। हालांकि, कुछ ईसाई चर्च हैं, जैसे “चैपल ऑफ द स्नोज”, जो बौद्ध और बहाई धर्म के समारोहों के लिए भी इस्तेमाल होते हैं। लेकिन सिखों के लिए कोई गुरुद्वारा नहीं है। हालांकि, सिख धर्म के अनुयायी यहां अपनी श्रद्धा और संस्कृतियों का पालन करते हैं, भले ही यहां उनका कोई स्थायी धार्मिक स्थल नहीं है।

अंटार्कटिका में सिख धर्म का महत्व

अंटार्कटिका में सिखों के धार्मिक योगदान की कोई बड़ी चर्चा तो नहीं है, लेकिन उनके साहस और लगन को देखकर यह कहा जा सकता है कि सिखों ने इस ठंडी धरती पर भी अपनी पहचान बनाई है। अंटार्कटिका के मिशनों में शामिल सिख वैज्ञानिकों ने अपनी मेहनत से न केवल भारत का नाम रोशन किया, बल्कि सिख धर्म के आदर्शों को भी इस धरती के सबसे दूर कोने तक पहुंचाया। चाहे वह परमजीत सिंह हों, जिन्होंने सोवियत मिशन में अंटार्कटिका की ओर रुख किया, या बंदनजोत सिंह हों, जिन्होंने पगड़ी पहनकर अंटार्कटिका के मिशन में हिस्सा लिया, सभी ने सिख धर्म के प्रति अपनी निष्ठा और श्रद्धा को पूरी दुनिया में दिखाया।

अंटार्कटिका का वैज्ञानिक महत्व और सिखों का योगदान

आपकी जानकारी के लिए बता दें, भारत का अंटार्कटिका मिशन 1981 से चल रहा है, और इसके तहत भारत ने कई रिसर्च स्टेशन स्थापित किए हैं, जिनमें से मैत्री और भारती प्रमुख हैं। इन मिशनों में भारत के वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका की जलवायु, पर्यावरण और जैव विविधता के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सिख वैज्ञानिकों ने इस मिशन में अपनी भूमिका निभाई और अंटार्कटिका के कठोर वातावरण में भी भारतीय और सिख धर्म की पहचान को बनाए रखा।

और पढ़ें: Sikhism in Qatar: कतर में सिख समुदाय की आस्था और संघर्ष: बिना गुरुद्वारे के भी कायम हैं धार्मिक प्रथाएँ, जानें हाल के विवाद और योगदान

Operation Sindoor पर गरमाई बहस: Rajnath Singh के बचाव में कांग्रेस के सवाल, क्या सरका...

Operation Sindoor: लोकसभा में सोमवार को ऑपरेशन सिंदूर पर हुई विशेष चर्चा के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विपक्ष पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि विपक्ष के कुछ नेताओं द्वारा यह सवाल उठाना कि “कितने विमान गिरे”, राष्ट्रीय भावनाओं का सही प्रतिनिधित्व नहीं करता। राजनाथ सिंह ने यह भी कहा कि जब लक्ष्य बड़े होते हैं, तो छोटे मुद्दों पर सवाल नहीं उठाए जाते।

और पढ़ें: Operation Mahadev: पहलगाम और सोनमर्ग हमलों के मास्टरमाइंड को सेना ने किया ढेर, ऑपरेशन महादेव की बड़ी सफलता

राजनाथ सिंह ने कहा, “विपक्ष ने यह नहीं पूछा कि हमारे सशस्त्र बलों ने कितने दुश्मन विमान गिराए। अगर सवाल पूछना है, तो यह होना चाहिए कि क्या भारत ने आतंकवादी ठिकानों को नष्ट किया, और इसका जवाब है, हां। क्या ऑपरेशन सिंदूर सफल रहा? इसका जवाब है, हां।” उन्होंने कहा कि इस ऑपरेशन में हमारे किसी भी सैनिक को नुकसान नहीं पहुंचा। उनके मुताबिक, किसी भी परीक्षा के बाद परिणाम मायने रखते हैं और ऑपरेशन सिंदूर ने पूरी तरह से निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त किया है।

1962 और 1971 के युद्ध का उदाहरण देते हुए राजनाथ सिंह ने कहा, “हमने तब यह नहीं पूछा था कि कितने विमान गिरे थे। उस समय हमारा ध्यान देश की सुरक्षा और लक्ष्य पर था।”

ऑपरेशन सिंदूर पर बाहरी दबाव का आरोप खारिज- Operation Sindoor

रक्षा मंत्री ने ऑपरेशन सिंदूर को बाहरी दबाव में रोकने के आरोपों को पूरी तरह से खारिज कर दिया। उनका कहना था, “भारत ने ऑपरेशन सिंदूर इसलिए रोका क्योंकि हमारे तय किए गए राजनीतिक और सैन्य उद्देश्य पूरे हो चुके थे। किसी भी बाहरी दबाव के कारण इसे रोकने का आरोप निराधार और गलत है।” उन्होंने यह भी बताया कि जब भारतीय वायुसेना ने 10 मई को पाकिस्तान के एयरफील्ड पर करारा हमला किया, तो पाकिस्तान ने हार मान ली और संघर्ष रोकने की पेशकश की।

राजनाथ सिंह ने कहा, “हमने पाकिस्तान से जो समझौता किया, वह इस शर्त पर था कि अगर भविष्य में कोई दुस्साहस हुआ, तो ऑपरेशन फिर से शुरू किया जाएगा।”

पाकिस्तान के आतंकवादी शिविरों को नष्ट करने की सफलता

सिंह ने आगे बताया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के सात आतंकवादी शिविर पूरी तरह नष्ट कर दिए गए थे। उन्होंने बताया कि यह ऑपरेशन 22 मिनट में समाप्त हो गया था और पहलगाम हमले का बदला लिया गया था। राजनाथ सिंह ने कहा, “हमारे लक्ष्य थे—आतंकवादी ठिकानों को नष्ट करना और पाकिस्तान को यह संदेश देना कि अगर कोई हमारे नागरिकों को नुकसान पहुंचाता है, तो भारत चुप नहीं बैठेगा।”

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ऑपरेशन में किसी भी निर्दोष नागरिक को निशाना नहीं बनाया गया था। उनका कहना था कि हमारी सैन्य रणनीति में यह सुनिश्चित किया गया था कि कोई भी नागरिक नुकसान न पहुंचे।

गोगोई का सवाल: ऑपरेशन सिंदूर क्यों रोका गया?

इसी बीच, कांग्रेस के उप नेता गौरव गोगोई ने सरकार से कुछ अहम सवाल किए। उन्होंने पूछा, “ऑपरेशन सिंदूर क्यों रोका गया? पहलगाम हमले में जो आतंकवादी शामिल थे, उन्हें अब तक क्यों नहीं पकड़ा गया?” गोगोई ने गृह मंत्री अमित शाह से यह सवाल भी किया कि पहलगाम हमले में सुरक्षा चूक की नैतिक जिम्मेदारी उन्हें लेनी चाहिए। उनका कहना था, “जब लोग आतंकवादी हमलों में मारे जाते हैं, तो एंबुलेंस एक घंटे तक नहीं पहुंचती। यह चूक किसकी है?”

गोगोई ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने पहलगाम हमले के बाद टूर ऑपरेटरों को दोषी ठहराया और यह सरकार की कमजोर और बुजदिल रणनीति का हिस्सा था। गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी निशाना साधते हुए कहा, “प्रधानमंत्री मोदी को पहलगाम जाना चाहिए था, लेकिन वे सऊदी अरब से लौटकर सीधे चुनावी भाषण देने बिहार गए।”

पीओके और चीन पर भी सवाल उठाए गए

गोगोई ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) और चीन के खिलाफ सरकार की नीति पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कहते हैं कि हमारा मकसद युद्ध नहीं था, लेकिन अगर पीओके को आज नहीं लेंगे तो कब लेंगे?” गोगोई का कहना था कि सरकार ‘चीन को लाल आंख दिखाने’ की बात करती है, लेकिन चीन का नाम तक नहीं लिया गया।

उन्होंने यह भी सवाल किया, “जब पूरा देश और विपक्ष प्रधानमंत्री के साथ खड़ा था, तो अचानक युद्धविराम क्यों हुआ? अगर पाकिस्तान घुटनों पर था तो सरकार क्यों झुकी?”

ट्रंप के बयान का जिक्र

गोगोई ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयान का हवाला देते हुए कहा कि ट्रंप ने 26 बार यह दावा किया था कि उन्होंने व्यापारिक मुद्दों पर बातचीत करके युद्ध को रुकवाया। गोगोई ने सरकार से यह सवाल किया कि क्या सच्चाई यही है, और अगर यह सच है तो देश की जनता और हमारे सैनिकों को क्यों नहीं बताया जा रहा?

सिंह की प्रतिक्रिया और संदेश

वहीं, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान पर निशाना साधते हुए कहा, “हमारी सेना शेरों की तरह है। शेर जब मेंढकों को मारता है तो उसका संदेश बहुत अच्छा नहीं जाता। पाकिस्तान जैसा देश, जो दूसरों पर निर्भर है, उससे मुकाबला करना हमारे स्तर को गिराना है। हमारी नीति आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई करने की है।”

और पढ़ें: India vs Vietnam MBBS Fees: वियतनाम में MBBS 4 लाख में, भारत में 1 करोड़ में क्यों? श्रीधर वेम्बु ने GDP का गणित खोला, कहा- ये शर्मनाक है!

Operation Mahadev: पहलगाम और सोनमर्ग हमलों के मास्टरमाइंड को सेना ने किया ढेर, ऑपरेशन...

0

Operation Mahadev: जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के खिलाफ भारतीय सेना ने एक और ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। 28 जुलाई को श्रीनगर के लिडवास इलाके में सेना ने लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के खतरनाक कमांडर हाशिम मूसा को मार गिराया, जो न सिर्फ पहलगाम हमले का मास्टरमाइंड था, बल्कि सोनमर्ग टनल हमले में भी शामिल था। यह एनकाउंटर भारतीय सेना की ताकत और रणनीति का एक बेहतरीन उदाहरण साबित हुआ है, जिससे आतंकवादियों के बीच डर का माहौल फैल गया है। आईए आपको इस खबर के बारे में विस्तार से बताते हैं।

और पढ़ें: Why people leaving India: भारत से बाहर जाने का बढ़ता ट्रेंड: 2024 में 2 लाख से ज्यादा भारतीयों ने छोड़ी अपनी नागरिकता! जानें क्या है वजह

पहलगाम और सोनमर्ग हमले- Operation Mahadev

पहलगाम हमला 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के बाइसरन घाटी में हुआ था। इसमें पांच आतंकवादियों ने 26 पर्यटकों पर हमला किया, जिनमें ज्यादातर हिंदू थे। इस हमले में M4 कार्बाइन और AK-47 जैसे खतरनाक हथियारों का इस्तेमाल किया गया था। इस हमले की जिम्मेदारी द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली थी, लेकिन बाद में उसने इससे मुँह मोड़ लिया। हाशिम मूसा का नाम इस हमले में भी सामने आया था।

सोनमर्ग टनल हमला 2024 में हुआ था, जिसमें सात लोगों की जान गई थी, जिनमें छह मजदूर और एक डॉक्टर शामिल थे। इस हमले का भी लश्कर-ए-तैयबा से कनेक्शन था और हाशिम मूसा का नाम इसमें भी शामिल था। इन दोनों हमलों की साजिश और संचालन में हाशिम मूसा की महत्वपूर्ण भूमिका थी।

हाशिम मूसा: आतंकवादी कमांडर की पहचान

आपको बता दें, हाशिम मूसा, जिसे सुलैमान शाह मूसा फौजी भी कहा जाता था, लश्कर-ए-तैयबा का एक खतरनाक कमांडर था। वह पाकिस्तान की स्पेशल सर्विस ग्रुप (SSG) का पैरा-कमांडो था और एक ट्रेन सैनिक था। 2022 में, हाशिम मूसा भारत में घुसपैठ कर लश्कर-ए-तैयबा में शामिल हुआ। इसके बाद उसने कई आतंकवादी हमलों की साजिश रची और उन्हें अंजाम दिया। हाशिम मूसा ने पहलगाम हमले की योजना बनाई और उसे अंजाम दिया। वह बाइसरन घाटी में 15 अप्रैल से मौजूद था और सात दिन तक रेकी (जासूसी) करता रहा।

ऑपरेशन महादेव और लिडवास एनकाउंटर

भारतीय सेना ने हाशिम मूसा को खत्म करने के लिए ऑपरेशन महादेव शुरू किया था, जो 96 दिन तक चला। सेना ने ड्रोन, थर्मल इमेजिंग और मानव खुफिया का इस्तेमाल किया और लिडवास के जंगलों में उसकी लोकेशन ट्रैक की। 28 जुलाई को सेना ने लिडवास इलाके को घेर लिया और हाशिम मूसा और उसके दो साथियों ने गोलीबारी शुरू कर दी। छह घंटे की मुठभेड़ के बाद तीनों आतंकवादी मारे गए।

मुठभेड़ में AK-47, ग्रेनेड और IED जैसे हथियार बरामद हुए। हाशिम के पास से पाकिस्तानी पासपोर्ट और सैटेलाइट फोन भी मिला, जो पाकिस्तान की ISI से उसका संपर्क दिखाता है।

स्वदेशी तकनीक और सटीक रणनीति

इस ऑपरेशन की खास बात यह थी कि सेना ने स्वदेशी ड्रोन और रडार का इस्तेमाल किया, जिससे जंगलों में छिपे आतंकवादियों को ढूंढने में मदद मिली। थर्मल इमेजिंग से आतंकवादियों की गतिविधियों का पता चला, और IED को निष्क्रिय करने के लिए रोबोट का इस्तेमाल किया गया। इस ऑपरेशन में सेना ने नागरिकों की सुरक्षा का खास ध्यान रखा, ताकि किसी भी तरह का नुकसान न हो।

भारत की सुरक्षा पर असर

हाशिम मूसा का अंत भारतीय सेना की बड़ी कामयाबी है। इससे न केवल जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के मनोबल को तोड़ा गया है, बल्कि यह भी साबित हुआ है कि भारतीय सेना किसी भी आतंकी संगठन से सख्ती से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है।

और पढ़ें: India vs Vietnam MBBS Fees: वियतनाम में MBBS 4 लाख में, भारत में 1 करोड़ में क्यों? श्रीधर वेम्बु ने GDP का गणित खोला, कहा- ये शर्मनाक है!

नाग पंचमी 2025: क्यों मनाई जाती है नाग पंचमी, जानें इसका धार्मिक महत्व साथ ही शुभ मुह...

Naag Panchami 2025: हिंदू धर्म में कई त्यौहार मनाए जाते हैं। इन दिनों सावन माह में नाग पंचमी की पूजा चल रही है। इस महीने में भी कई त्यौहार आते हैं। इन्हीं में से एक है नाग पंचमी। नाग पंचमी को लेकर कई मान्यताएँ हैं। कहा जाता है कि जिन लोगों पर काल सर्प योग होता है, उन्हें नाग पंचमी के दिन पूजा करनी चाहिए। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस साल नाग पंचमी किस दिन है और इसका शुभ मुहूर्त कब है? अगर नहीं, तो आइए आपको इस लेख में विस्तार से बताते हैं।

नाग पंचमी की सही डेट और शुभ मुहूर्त

नाग पंचमी 2025 में 29 जुलाई, मंगलवार को मनाई जाएगी। यह त्योहार श्रावण (सावन) माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। वही पंचमी तिथि प्रारम्भ: 28 जुलाई 2025 रात्रि 11:24 बजे और द्वितीया पंचमी तिथि समाप्त: 30 जुलाई 2025 रात्रि 12:46 बजे साथ ही नाग पंचमी पूजा मुहूर्त: 29 जुलाई 2025 प्रातः 05:41 बजे से प्रातः 08:23 बजे तक है।

नाग पंचमी क्यों मनाई जाती है?

नाग पंचमी का पर्व नागों और नाग देवताओं की पूजा को समर्पित है। इस पर्व से अनेक पौराणिक कथाएँ और मान्यताएँ जुड़ी हैं। जैसे महाभारत काल में राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए एक विशाल नाग यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में सभी नाग जलने लगे। तब आस्तिक मुनि ने जनमेजय को समझाया और यज्ञ रुकवाया, जिससे नागों की रक्षा हुई। यह घटना श्रावण मास की पंचमी तिथि को घटी थी, तभी से यह दिन नागों की रक्षा के लिए समर्पित माना जाता है।

भगवान कृष्ण और कालिया नाग- एक अन्य कथा के अनुसार, श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन भगवान कृष्ण ने वृंदावनवासियों को कालिया नाग से बचाया था। भगवान ने नाग के फन पर नृत्य किया और बांसुरी भी बजाई। तभी से नागों की पूजा की परंपरा चली आ रही है।

कालसर्प दोष से मुक्ति – ऐसा माना जाता है कि नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करने और उन्हें दूध चढ़ाने से कुंडली में मौजूद कालसर्प दोष के अशुभ प्रभाव कम होते हैं।

प्रकृति और नागों का सम्मान 

यह पर्व प्रकृति और जीवों के साथ सह-अस्तित्व का प्रतीक है। नागों को देवता के रूप में पूजा जाता है और उन्हें घर का रक्षक माना जाता है। इस दिन नाग देवता की पूजा करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है, साथ ही सर्पदंश का भय भी कम होता है।

आपको बता दें, इस दिन भक्त दूध, फूल, हल्दी, चंदन, अक्षत आदि चढ़ाकर नाग देवताओं की पूजा करते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। कई लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं।

Sikhism in Guyana: जहां भारतीय मूल के लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर के साथ बसे हैं, लेकिन...

0

Sikhism in Guyana: क्या आपने कभी सुना है गुयाना के बारे में? यह छोटा सा देश, जो दक्षिण अमेरिका के उत्तर में स्थित है, भारत से हजारों किलोमीटर दूर है, लेकिन यहां भारतीय मूल के लोगों की बड़ी संख्या है। मजे की बात यह है कि करीब 40 प्रतिशत आबादी भारतीय मूल की है। इसके अलावा, इस देश का इतिहास भी भारत से गहरा जुड़ा हुआ है। आप सोच रहे होंगे, “लेकिन इसमें सिखों की क्या भूमिका है?” गुयाना में सिख धर्म का क्या इतिहास है और वहां सिखों की क्या स्थिति है? आइए, इस दिलचस्प कहानी को थोड़ा और जानें।

गुयाना में भारतीयों की इतनी बड़ी आबादी कैसे बस गई? क्या ये लोग सच में भारतीय हैं? और क्या यहां सिख धर्म का भी कोई असर है? इन सवालों के जवाब आपको आज इस लेख में मिलेंगा, तो आइए, शुरुआत करते हैं गुयाना के इतिहास और वहां के सिख समुदाय की यात्रा से।

और पढ़ें: Sikhism in Qatar: कतर में सिख समुदाय की आस्था और संघर्ष: बिना गुरुद्वारे के भी कायम हैं धार्मिक प्रथाएँ, जानें हाल के विवाद और योगदान

गुयाना: भारत से दूर, लेकिन गहरे कनेक्शन के साथ – Sikhism in Guyana

गुयाना, जैसा कि हम जानते हैं, एक छोटा सा देश है। इसका क्षेत्रफल लगभग 1 लाख 60 हजार वर्ग किलोमीटर है और यहां की कुल आबादी 8 लाख 17 हजार के आसपास है। दिलचस्प बात यह है कि यहां 40 प्रतिशत लोग भारतीय मूल के हैं, यानी एक बड़ा हिस्सा भारतीय संस्कृति, धर्म और परंपराओं से जुड़ा हुआ है। यह देश उन भारतीयों के पूर्वजों की धरती है, जो 19वीं सदी में गिरमिटिया मजदूरों के रूप में यहां आए थे।

गुयाना और भारत के बीच का यह कनेक्शन सिर्फ जनसंख्या तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके इतिहास में गहरे संस्कृतिक संबंध हैं। आपको जानकार हैरानी होगी कि गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली भी भारतीय मूल के हैं, और उनके पूर्वज 19वीं सदी में गिरमिटिया मजदूर बनकर यहां आए थे। यही कारण है कि भारत और गुयाना के बीच इस गहरे रिश्ते को और भी मजबूत किया है।

गिरमिटिया मजदूरों का इतिहास: भारत से गुयाना तक का सफर

अगर हम गुयाना में भारतीयों की उपस्थिति की बात करें, तो इसका इतिहास 19वीं सदी में जाता है। ब्रिटिश शासन के दौरान जब गुयाना ब्रिटिश उपनिवेश था, तब यहां गन्ने के बागानों में काम करने के लिए मजदूरों की भारी कमी हो गई थी। 1834 में ब्रिटेन में गुलामी प्रथा को समाप्त किया गया, लेकिन फिर भी मजदूरों की आवश्यकता बनी रही। इस दौरान, भारत से हजारों मजदूरों को “गिरमिटिया मजदूर” के रूप में गुयाना लाया गया। यह प्रक्रिया 1838 से लेकर 1917 तक जारी रही, और लगभग 2 लाख भारतीय मजदूरों को यहां लाया गया। इनमें से अधिकांश उत्तर भारत के बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड से थे, जबकि कुछ सिख भी पंजाब से आए थे।

गुयाना में सिख धर्म की नई शुरुआत

अगर सिखों की बात करें तो, सिख मजदूरों की मेहनत और संघर्ष ने गुयाना की अर्थव्यवस्था को आकार दिया और चीनी उद्योग को एक नई दिशा दी। इन मजदूरों का भारतीय संस्कृति और धार्मिक जीवन से गहरा संबंध था, और उन्होंने यहां अपने सिख रीति-रिवाजों और त्योहारों को बनाए रखा। यही कारण था कि गुयाना में बैसाखी, गुरुपर्व और अन्य भारतीय त्योहार बड़े धूमधाम से मनाए जाते थे।

हालांकि, गुयाना में सिखों की संख्या बहुत कम थी, लेकिन उन्होंने अपनी पहचान बनाए रखी। लेकिन समय के साथ, सिख धर्म की उपस्थिति यहां कम होती चली गई, और कई सिख हिंदू धर्म में घुल-मिल गए।

सिख धर्म की पहचान यहां धीरे-धीरे कम होती गई, और सिख धर्म की धार्मिक गतिविधियाँ भी सीमित हो गईं। इसके बावजूद, गुयाना में सिख धर्म से जुड़े कुछ पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन अब भी कुछ परिवारों में किया जाता है। लेकिन यहां का सिख समुदाय बहुत छोटा है और धार्मिक पहचान प्रमुख नहीं है।

गुयाना में सिखों का वर्तमान स्थिति: क्या है आज का परिदृश्य?

आज के वक्त में, गुयाना में सिखों का एक छोटा सा समुदाय बसा हुआ है। यहां सिखों की धार्मिक गतिविधियाँ सीमित हैं, और उनका प्रभाव मुख्यधारा में नहीं है। हालांकि, कुछ परिवारों में सिख धर्म की मान्यताएँ और परंपराएँ अभी भी जीवित हैं, लेकिन कुल मिलाकर, सिख धर्म का प्रभाव गुयाना की संस्कृति और समाज में बहुत कम है।

गुयाना में सिख धर्म से जुड़ी एक प्रमुख बात यह है कि यहां कोई बड़ा गुरुद्वारा नहीं है। जॉर्जटाउन में एक गुरुद्वारा है, जो 1950 के दशक में स्थापित किया गया था, लेकिन यह गुरुद्वारा बाकी देशों के गुरुद्वारों की तरह बड़ा और भव्य नहीं है। यहां के लोग अधिकतर हिंदू और मुस्लिम धर्मों का पालन करते हैं, और सिख धर्म के अनुष्ठान और रीति-रिवाजों का अनुसरण बहुत कम लोग करते हैं।

Sikhism in Guyana Gurudwara Sahib
source: Google

गुयाना में सिख धर्म का प्रभाव: क्या बची हुई है पहचान?

शायद यही कारण है कि वर्तमान में गुयाना में सिख धर्म की पहचान कमजोर होती जा रही है। यहां की संस्कृति और समाज में भारतीय मूल के लोगों का महत्वपूर्ण योगदान है, लेकिन सिख धर्म के प्रभाव का अभाव है। हिंदू और मुस्लिम धर्मों की तुलना में सिख धर्म का यहाँ बहुत सीमित प्रभाव है। फिर भी, गुयाना में कुछ सिख परिवार आज भी अपने धर्म और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं।

गुयाना में सिखों का सफर और भविष्य

गुयाना में सिख धर्म का इतिहास एक दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण यात्रा रही है। शुरुआत में, सिखों ने यहां अपनी पहचान बनाए रखी, लेकिन समय के साथ उनकी संख्या कम होती गई और उनका प्रभाव भी समाप्त होता चला गया। हालांकि, गुयाना में सिख धर्म की प्रमुख पहचान अब नहीं रही, फिर भी यह कहना गलत नहीं होगा कि यहां के सिख परिवार अब भी अपनी पहचान बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

गुयाना में सिख धर्म की उपस्थिति को लेकर बहुत कुछ बदल चुका है, लेकिन इस देश के भारतीय समुदाय का योगदान आज भी बहुत महत्वपूर्ण है। चाहे वह कृषि, उद्योग, या समाजसेवा हो, भारतीय मूल के लोग यहां अपनी भूमिका निभा रहे हैं, और सिखों का इतिहास भी इस महान सफर का हिस्सा बन चुका है।

और पढ़ें: Sikhism in Bahrain: बहरीन में सिख धर्म की पहचान: गुरुद्वारों से लेकर सांस्कृतिक योगदान तक, एक धार्मिक यात्रा की अनकही कहानी