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Kumbh stampede Shocking Truth: कुंभ मेले में भयंकर भगदड़ से 82 मौतें, मुआवज़े के नाम ...

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Kumbh stampede Shocking Truth: 29 जनवरी, 2025 को प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ के दौरान एक दिल दहला देने वाली घटना घटी, जब कुंभ मेले में चार अलग-अलग स्थानों पर भगदड़ मच गई, जिससे कम से कम 82 लोगों की जान चली गई। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसकी आधिकारिक पुष्टि करते हुए 37 मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने की घोषणा की, लेकिन बीबीसी द्वारा की गई गहन पड़ताल में और भी गंभीर तथ्य सामने आए, जिससे मुआवज़े की प्रक्रिया पर सवाल खड़े हो गए हैं।

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आधिकारिक आंकड़ों और बीबीसी की पड़ताल- Kumbh stampede Shocking Truth

उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार, कुंभ मेले में हुई भगदड़ में 37 लोगों की मौत हुई थी, और उनके परिजनों को 25-25 लाख रुपए का मुआवजा दिया गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 19 फरवरी को विधानसभा में इस घटना के बारे में बयान दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि 29 जनवरी की रात 1.10 बजे से 1.30 बजे के बीच संगम नोज़ के पास भगदड़ मचने से 66 श्रद्धालु घायल हुए थे, जिनमें से 30 की मौत हो गई थी। इसके बाद, 30 में से 29 की पहचान हो पाई और एक की पहचान नहीं हो पाई।

हालांकि, बीबीसी की विस्तृत पड़ताल में पाया गया कि मृतकों की संख्या 37 से कहीं अधिक थी। बीबीसी के अनुसार, कम से कम 82 लोग कुंभ में मची भगदड़ में मारे गए थे। रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि 26 परिवारों को 5 लाख रुपये की कैश राशि दी गई थी, लेकिन उनका नाम मृतकों की आधिकारिक सूची में नहीं था। इस राशि के वितरण के संबंध में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पाई कि यह पैसे सरकारी खजाने से आए थे या किसी अन्य स्रोत से।

मुआवज़े के वितरण में असमंजस

कुंभ मेले के भगदड़ में मारे गए 82 लोगों की मृतकों की सूची में कई नाम शामिल थे, जिनकी पहचान बीबीसी की पड़ताल में सामने आई। इन मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने का मामला भी जटिल बन गया था। यूपी सरकार ने 36 मृतकों के परिवारों को 25-25 लाख रुपये की राशि दी, जबकि 26 परिवारों को 5-5 लाख रुपये का कैश सौंपा गया। कुछ परिवारों ने आरोप लगाया कि उन्हें पैसे लेने के बाद सरकारी कागज़ों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया, जिनमें यह लिखा था कि उनके परिजनों की मौत अचानक तबीयत बिगड़ने के कारण हुई थी, न कि भगदड़ में।

एक बड़ा सवाल यह भी उठा कि 19 परिवारों को किसी भी प्रकार का मुआवजा क्यों नहीं मिला, जिनके अपनों की मौत भगदड़ के दौरान हुई थी। इन परिवारों के पास पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, अस्पताल के मुर्दाघर की पर्ची, और मृतकों के शव की तस्वीरें जैसे ठोस प्रमाण थे, लेकिन उन्हें सरकारी मदद नहीं मिली।

एक भयावह दृश्य

बीबीसी की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि जब भगदड़ हुई, तो कई शवों को घटनास्थल पर घंटों तक पड़ा रहने दिया गया। जैसे ही भगदड़ मची, सैकड़ों लोग जमीन पर गिर पड़े और रौंदे गए। कई शवों के पास परिवार वाले घंटों तक बैठे रहे, लेकिन उन्हें कोई मदद नहीं मिली। इन परिवारों ने बताया कि वे अपनी लाशों को लेकर घटनास्थल पर 4 बजे तक बैठे रहे, लेकिन प्रशासन की तरफ से कोई मदद नहीं आई।

ननकन और उनकी पत्नी रामा देवी का उदाहरण लिया जा सकता है। वे कुंभ के लिए आए थे, लेकिन भगदड़ में ननकन की मौत हो गई। उनके परिवार ने बताया कि उनके पास 15 हजार रुपये का लिफाफा दिया गया और शव को घर भेजने के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था की गई। इसी तरह से अन्य परिवारों को भी कुछ पैसे दिए गए, लेकिन यह राशि हमेशा से मुआवजे के रूप में नहीं दी गई।

भगदड़ की घटनाओं के दौरान सुरक्षा व्यवस्था की खामियाँ

कुंभ मेले में सुरक्षा व्यवस्था के लिए 50,000 से ज्यादा पुलिसकर्मी तैनात थे, साथ ही 2750 सीसीटीवी कैमरे और ड्रोन के माध्यम से निगरानी की जा रही थी। लेकिन इन सारी तैयारियों के बावजूद, भगदड़ जैसी घटनाओं का होना, और उन घटनाओं में लोगों की मौत होना, सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है। मेला प्रशासन ने दावा किया कि सुरक्षा के सभी उपाय किए गए थे, लेकिन बीबीसी की पड़ताल से यह स्पष्ट हो गया कि प्रशासन की तरफ से उचित कदम नहीं उठाए गए थे और पीड़ित परिवारों को मदद देने में भी कई खामियाँ रहीं।

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Noida News: नोएडा पुलिस ने टीवी एंकर शाजिया निसार और आदर्श झा को किया गिरफ्तार, ब्लैक...

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Noida News: नोएडा के सेक्टर-58 थाना पुलिस ने हाल ही में दो प्रमुख टीवी पत्रकारों को रंगदारी और ब्लैकमेलिंग के आरोप में गिरफ्तार किया है। इन दोनों पत्रकारों में शाजिया निसार, जो न्यूज-24 चैनल में एंकर के तौर पर कार्यरत हैं, और आदर्श झा, जो अमर उजाला डिजिटल में कार्य कर रहे हैं, शामिल हैं। दोनों पर आरोप है कि उन्होंने मिलकर 65 करोड़ रुपये की रंगदारी की मांग की थी और ब्लैकमेलिंग सिंडिकेट चलाया था। इस मामले में चैनल प्रबंधन ने सेक्टर-58 थाने में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके बाद पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए दोनों को गिरफ्तार किया।

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रंगदारी की मांग और धमकियां– Noida News

पुलिस के मुताबिक, शाजिया और आदर्श झा ने न्यूज चैनल प्रबंधन से 65 करोड़ रुपये की रंगदारी की मांग की थी। शुरुआत में यह मांग 5 करोड़ रुपये से हुई थी, लेकिन समय के साथ यह बढ़कर 65 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। आरोप है कि शाजिया निसार ने चैनल के एडिटर सैयद उमर को झूठे यौन उत्पीड़न के आरोप में फंसाने की धमकी दी थी। साथ ही, दोनों पत्रकारों ने धमकियों के माध्यम से पैसे की मांग की। पुलिस ने बताया कि इस मामले में चैनल प्रबंधन द्वारा तीन अलग-अलग FIR दर्ज की गई हैं, जिनमें आरोप लगाए गए हैं कि शाजिया और आदर्श ने उगाही के लिए एक सिंडिकेट चलाया था।

शाजिया के घर से 34 लाख रुपये बरामद

गिरफ्तारी से पहले पुलिस ने शाजिया निसार के घर पर छापेमारी की, जहां से ₹34.50 लाख नकद बरामद किए गए। इसके अलावा, जांच में यह भी सामने आया कि शाजिया और आदर्श झा की धमकियों और पैसों की मांग की कई ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग मौजूद हैं। इन रिकॉर्डिंग्स से यह साफ हो गया कि दोनों पत्रकारों ने एक साजिश के तहत इस अवैध गतिविधि को अंजाम दिया।

कोर्ट में पेशी और न्यायिक हिरासत

गिरफ्तारी के बाद, शाजिया और आदर्श को गौतमबुद्ध नगर के सिविल जज जुही आनंद की अदालत में पेश किया गया। अदालत ने दोनों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया, जो 21 जून 2025 तक जारी रहेगी। इस मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दीपक चौहान ने पैरवी की।

मीडिया जगत में विवादित इतिहास

इस मामले को लेकर मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि शाजिया निसार का पिछले कई सालों से विवादों से गहरा नाता रहा है। करीब 7-8 साल पहले आदर्श झा ने उन्हें जी सलाम चैनल में नौकरी दिलवाने में मदद की थी। कुछ समय बाद, नवंबर 2022 में वह भारत 24 चैनल से जुड़ीं, लेकिन चैनल में उनका व्यवहार हमेशा विवादास्पद ही रहा। रिपोर्ट्स के मुताबिक, शाजिया का लगातार HR और वरिष्ठ संपादकों से तनावपूर्ण रिश्ता रहा, जिससे चैनल में उनकी स्थिति कमजोर हो गई थी।

पुलिस की जांच और भविष्य की दिशा

नोएडा पुलिस इस मामले को एक ब्लैकमेलिंग सिंडिकेट के रूप में देख रही है, जिसमें शाजिया और आदर्श झा प्रमुख आरोपी हैं। पुलिस यह जांच भी कर रही है कि क्या इस गिरोह में अन्य पत्रकार, यूट्यूबर या सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर भी शामिल हैं। वहीं, चैनल प्रबंधन ने इस मामले को लेकर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि जिस चैनल ने शाजिया और आदर्श को पहचान और मंच दिया, आज वही संस्था उनके द्वारा लगाए गए झूठे आरोपों से बदनाम हो रही है।

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Indian Student in USA: न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर भारतीय छात्र की बर्बर गिरफ्तारी, हथकड़ी ...

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Indian Student in USA: अमेरिका के न्यूजर्सी स्थित न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर एक भारतीय छात्र के साथ हुई बर्बरता ने एक बार फिर विदेशी छात्रों पर बढ़ती सख्ती को लेकर सवाल उठाए हैं। भारतीय मूल के अमेरिकी बिजनेसमैन कुणाल जैन ने रविवार को इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किया, जिसमें एक युवा भारतीय छात्र को अपराधियों की तरह जमीन पर पटका जाता है और फिर उसे हथकड़ी लगाकर भारत डिपोर्ट कर दिया जाता है। जैन ने इस घटना पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए लिखा कि यह छात्र अपने सपनों को साकार करने के लिए आया था, न कि किसी को नुकसान पहुँचाने।

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घटना का विवरण और जैन की चिंता- Indian Student in USA

जैन ने ट्विटर (X) पर वीडियो शेयर करते हुए लिखा, “मैंने न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर एक युवा भारतीय छात्र को हथकड़ी लगाकर, रोते हुए, अपराधी की तरह ट्रीट होते देखा। वह अपने सपनों को सच करने आया था, किसी को नुकसान पहुंचाने नहीं।” उन्होंने बताया कि छात्र हरियाणवी में कह रहा था, “मैं पागल नहीं हूं, ये लोग मुझे पागल साबित करने की कोशिश कर रहे हैं।” हालांकि, अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि उस छात्र को किस वजह से डिपोर्ट किया गया था।

भारतीय विदेश मंत्री से हस्तक्षेप की अपील

कुणाल जैन ने इस घटना के बाद भारतीय दूतावास, अमेरिका और भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर से हस्तक्षेप की अपील की है। उन्होंने लिखा, “ये बच्चे वीजा लेकर फ्लाइट से आते हैं, लेकिन कुछ कारणों से इमिग्रेशन अधिकारी उन्हें अपने आने का कारण समझा नहीं पाते। इसके बाद उन्हें हाथ-पैर बांधकर, मुजरिमों की तरह डिपोर्ट कर दिया जाता है।” जैन का कहना था कि पिछले कुछ दिनों में ऐसे मामले बढ़ गए हैं, और अब इस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।

भारतीय दूतावास की प्रतिक्रिया

इस घटना के बाद न्यूयॉर्क में भारतीय वाणिज्य दूतावास ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। दूतावास ने बताया कि वे इस मामले में स्थानीय अधिकारियों के संपर्क में हैं और पूरी स्थिति की जांच कर रहे हैं। हालांकि, इस मामले पर अभी तक कोई विस्तृत जानकारी सामने नहीं आई है।

अमेरिकी सरकार की सख्ती और विदेशी छात्रों पर असर

यह घटना ऐसे वक्त पर हुई है, जब अमेरिकी सरकार ने अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर सख्ती बढ़ा दी है। हाल ही में अमेरिकी सरकार ने बिना नोटिस के कई छात्रों के वीजा को रद्द कर दिया है। इस सख्ती का कारण फिलिस्तीन के समर्थन से लेकर ट्रैफिक उल्लंघन जैसे विभिन्न मुद्दे रहे हैं। इसके अलावा, अमेरिका सरकार ने हाल ही में विदेशी छात्रों के लिए नए वीजा इंटरव्यू पर भी रोक लगा दी है।

विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने आदेश जारी कर कहा कि अमेरिकी दूतावासों को छात्रों के वीजा के लिए नए इंटरव्यू शेड्यूल करने से रोका जाए। इसके पीछे यह कारण बताया गया कि अमेरिका में छात्रों के सोशल मीडिया प्रोफाइल की जांच और सख्त की जाएगी।

ट्रम्प प्रशासन का छात्र नीति पर बदलाव

ट्रम्प प्रशासन ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि कोई विदेशी छात्र बिना जानकारी के कोर्स छोड़ता है, क्लास में नहीं जाता या पढ़ाई बीच में छोड़ देता है, तो उसका स्टूडेंट वीजा रद्द किया जा सकता है। इससे विदेशी छात्रों में चिंता का माहौल बन गया है कि कहीं उनका वीजा भी रद्द न हो जाए।

अमेरिकी दूतावास ने भी हाल ही में भारत में एक बयान जारी कर छात्रों को सलाह दी थी कि वे वीजा शर्तों का पालन करें ताकि किसी भी समस्या से बचा जा सके। इसके साथ ही, ट्रम्प सरकार ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के साथ 850 करोड़ रुपए के कॉन्ट्रैक्ट को रद्द कर दिया है, जो 28 मई 2025 को हुआ था।

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Sonam Raghuvanshi Latest News: सबसे बड़ा सवाल, आखिर गाजीपुर क्यों और कैसे पहुंची सोनम...

Sonam Raghuvanshi Latest News: इंदौर की सोनम रघुवंशी इन दिनों पूरे देश में चर्चा का विषय बनी हुई हैं। शिलांग से लेकर इंदौर और अब गाजीपुर तक फैली इस कहानी में कई पेचीदा सवाल उठने लगे हैं। एक महीने पहले ही शादी के बंधन में बंधी सोनम पर अपने पति राजा रघुवंशी की हत्या की साजिश में शामिल होने का आरोप लगा है। यह साजिश प्रेमी राज कुशवाह और सुपारी किलर विशाल चौहान, आकाश राजपूत व आनंद के साथ मिलकर रची गई थी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि सोनम गाजीपुर क्यों और कैसे पहुंची?

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शिलांग से गाजीपुर का 1162 किलोमीटर लंबा सफर- Sonam Raghuvanshi Latest News

गूगल मैप्स के अनुसार, शिलांग से गाजीपुर की दूरी लगभग 1162 किलोमीटर है और सड़क मार्ग से इसे तय करने में 24 से 26 घंटे का समय लगता है। हालांकि, यह सवाल बना हुआ है कि क्या सोनम ने यह पूरा सफर गाड़ी से तय किया या वह बीच में किसी ट्रेन या फ्लाइट से आई? फिलहाल, इस पर कोई स्पष्ट प्रमाण सामने नहीं आया है। पुलिस का मानना है कि वह रेलवे या फ्लाइट से नहीं आई, क्योंकि इस समय तक इस संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली है। इस वजह से कयास लगाए जा रहे हैं कि सोनम सड़क मार्ग से गाजीपुर पहुंची हो सकती है, लेकिन वह किस गाड़ी से आई, कब और किस रूट से, यह अभी तक रहस्य बना हुआ है।

कई संभावनाएँ, लेकिन कोई पक्का जवाब नहीं

यह संभावना जताई जा रही है कि सोनम वाराणसी से होकर गाजीपुर पहुंची हो। वाराणसी शिलांग से गाजीपुर तक जाने के लिए एक बड़ा कनेक्शन वाला शहर है, और वहां से गाजीपुर की यात्रा भी आसानी से की जा सकती है। लेकिन वाराणसी से गाजीपुर तक का सफर और सोनम का वहां पहुंचना अब तक रहस्यमय बना हुआ है। ट्रेन से आने की संभावना भी बहुत कम है, क्योंकि जिस हालत में वह गाजीपुर में मिली, उससे ऐसा नहीं लगता कि वह ट्रेन के एसी कोच या स्लीपर क्लास में बैठकर आई हो। जनरल कोच में लंबा सफर भी अव्यावहारिक माना जा रहा है। इसके अलावा, शिलांग या गुवाहाटी से गाजीपुर के लिए कोई सीधी फ्लाइट नहीं है, अगर फ्लाइट ली भी गई तो वह गुवाहाटी या कोलकाता से वाराणसी तक हो सकती थी। वहां से गाजीपुर क्यों आई, यह सवाल अब भी अनुत्तरित है।

गाजीपुर में ढाबे पर मिली सोनम, गाड़ी गायब

गाजीपुर में जिस छोटे से ढाबे पर सोनम को गिरफ्तार किया गया, वहां के मालिक ने बताया कि सोनम रात के समय आई थी। ढाबे के पास बैठे ग्राहकों में एक महिला, उनके पिता और दो बच्चे थे। सोनम पहले उन्हीं के पास गई और मदद मांगी। जब उन्हें मदद नहीं मिली, तो वह शाहिल यादव के पास आई और मोबाइल मांगा। उसने फिर फोन पर रोते हुए अपने परिवार से बात की और उन्हें वहां का पता बताया। इस बातचीत के बाद पुलिस को सूचना दी गई और सोनम को गिरफ्तार कर लिया गया।

शाहिल यादव ने बताया कि सोनम ने कहा कि उसकी शादी मई में हुई थी और कुछ दिन बाद वह अपने पति के साथ मेघालय घूमने गई थी। वहां उसका अपहरण किया गया था और जेवर लूटने की कोशिश की गई। इसके दौरान उसके पति की हत्या हो गई और वह बेहोश हो गई। इसके बाद, वह गाजीपुर कैसे पहुंची, यह सवाल अब भी अनुत्तरित है।

CCTV फुटेज की जांच

सोनम जिस ढाबे पर मिली थी, वहां के पास स्थित टोल प्लाजा पर CCTV कैमरे लगे हुए हैं। पुलिस इन कैमरों की जांच कर रही है, ताकि यह पता चल सके कि सोनम किस गाड़ी से आई और उसे वहां किसने छोड़ा। इसके अलावा, गाजीपुर शहर और उसके बाहरी हिस्सों के प्रवेश बिंदुओं पर लगे CCTV कैमरों की भी जांच की जा रही है।

गाजीपुर पुलिस का बयान

गाजीपुर पुलिस ने इस मामले पर अब तक कोई बयान नहीं दिया है, क्योंकि घटना स्थल मेघालय है और अभियुक्त वहीं वांछित है। गाजीपुर पुलिस ने सोनम को मेघालय पुलिस को सौंप दिया है, जो अब उससे सघन पूछताछ करेगी।

सोनम रघुवंशी की गाजीपुर पहुंचने की कहानी में कई रहस्य हैं और इस मामले की जांच अभी जारी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में और क्या तथ्य सामने आते हैं।

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Highest Paid Cameo Actor: अजय देवगन का कैमियो रोल में तगड़ा कमाई रिकॉर्ड, सबसे ज्यादा...

Highest Paid Cameo Actor: फिल्म इंडस्ट्री में अब कैमियो रोल भी एक बड़ा ट्रेंड बन चुका है, जहां अभिनेता छोटी लेकिन प्रभावशाली भूमिकाओं के लिए शानदार कमाई कर रहे हैं। इन कैमियो रोल्स के लिए अभिनेता कई बार तगड़ी फीस लेते हैं, और इनमें से एक अभिनेता ऐसा है, जिसने कैमियो के लिए एक मिनट के 4.35 करोड़ रुपये तक चार्ज किए हैं। यह अभिनेता कोई और नहीं, बल्कि बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता अजय देवगन हैं।

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कैमियो रोल में सबसे ज्यादा कमाई करने वाले अभिनेता- Highest Paid Cameo Actor

फिल्मों में कैमियो रोल करने का ट्रेंड कुछ सालों से बढ़ रहा है, और कई बड़े स्टार्स अब इन छोटी भूमिकाओं से भी तगड़ी कमाई कर रहे हैं। लेकिन अजय देवगन ने कैमियो रोल के लिए जिस तरह की फीस चार्ज की है, उसने पूरी फिल्म इंडस्ट्री को चौंका दिया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अजय देवगन ने एसएस राजामौली की फिल्म “आरआरआर” में अपने कैमियो के लिए हर मिनट 4.35 करोड़ रुपये चार्ज किए थे।

‘आरआरआर’ में अजय देवगन का कैमियो

2022 में आई फिल्म “आरआरआर” में अजय देवगन ने महज 8 मिनट का कैमियो किया था। यह फिल्म तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर निर्देशक एसएस राजामौली द्वारा बनाई गई थी, जो पहले से ही अपनी बड़ी फिल्मों के लिए जाने जाते हैं। अजय देवगन के कैमियो रोल के लिए चार्ज की गई रकम ने सबको हैरान कर दिया। उन्होंने सिर्फ 8 मिनट के लिए इस फिल्म में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, और इसके लिए उन्होंने 25 करोड़ रुपये की फीस वसूली। यदि इसे प्रति मिनट के हिसाब से देखा जाए, तो यह रकम करीब 4.35 करोड़ रुपये प्रति मिनट बैठती है, जो कि किसी भी अभिनेता द्वारा कैमियो रोल के लिए ली गई सबसे ज्यादा फीस है।

‘आरआरआर’ की सफलता

फिल्म “आरआरआर” ने बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त सफलता हासिल की। फिल्म का बजट लगभग 550 करोड़ रुपये था, और इसने दुनिया भर में 1387 करोड़ रुपये की कमाई की। इस फिल्म में राम चरण और जूनियर एनटीआर मुख्य भूमिका में थे, और अजय देवगन ने एक महत्वपूर्ण कैमियो रोल अदा किया। फिल्म की सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह एक ब्लॉकबस्टर साबित हुई और पूरी दुनिया में इसे बेहद पसंद किया गया। राजामौली की इस फिल्म ने भारतीय सिनेमा को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया।

अजय देवगन की अपकमिंग फिल्में

अजय देवगन अपनी एक्टिंग के लिए मशहूर हैं और उनके पास इस वक्त कई बड़ी फिल्में हैं। “सन ऑफ सरदार 2”, “दे दे प्यार दे 2”, “दृश्यम 3”, और “शैतान 2” जैसी फिल्मों में वह जल्द ही नजर आएंगे। अजय का अभिनय और फिल्मों में उनका प्रभाव हमेशा दर्शकों के दिलों में गहरा असर छोड़ता है। उनकी फिल्मों में विविधता और गहरी भूमिका निभाने की क्षमता उन्हें भारतीय सिनेमा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाती है।

कैमियो रोल्स का बढ़ता प्रभाव

फिल्म इंडस्ट्री में कैमियो रोल्स की लोकप्रियता बढ़ने का कारण यह है कि इन छोटे लेकिन प्रभावी रोल्स से फिल्मों में ताजगी आती है। बड़े स्टार्स के कैमियो रोल से फिल्म को एक नया आकर्षण मिलता है, और दर्शकों को फिल्म में कुछ खास देखने को मिलता है। अजय देवगन का कैमियो रोल “आरआरआर” में उनके अभिनय की गुणवत्ता और स्क्रीन पर उनकी मौजूदगी को लेकर एक बेहतरीन उदाहरण है। यह साबित करता है कि एक अभिनेता अपने छोटे से रोल से भी दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ सकता है।

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International Turban Day: अंतर्राष्ट्रीय पगड़ी दिवस क्यों मनाया जाता है? जानें इससे ज...

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International Turban Day: हर साल 13 अप्रैल को ‘अंतर्राष्ट्रीय पगड़ी दिवस’ मनाया जाता है, जो सिख धर्म और संस्कृति के महत्वपूर्ण पहलुओं को सम्मानित करने का अवसर है। यह दिन विशेष रूप से पगड़ी की सांस्कृतिक और धार्मिक महत्ता को स्वीकार करने के लिए समर्पित है, और यह सिख समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक महत्व रखता है। इस दिन का उद्देश्य धार्मिक सद्भाव और अंतर-सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देना है।

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13 अप्रैल को क्यों मनाया जाता है ‘अंतर्राष्ट्रीय पगड़ी दिवस’? (International Turban Day)

‘अंतर्राष्ट्रीय पगड़ी दिवस’ 13 अप्रैल को मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार, बैसाखी, मनाया जाता है। बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1699 को, गुरु गोबिंद सिंह जी ने आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की थी, जिससे यह दिन सिख समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण तारीख बन गई। गुरु गोबिंद सिंह जी के इस ऐतिहासिक कदम ने न केवल सिख समुदाय को एकजुट किया, बल्कि पगड़ी को भी सिखों के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का अनिवार्य हिस्सा बना दिया।

सिखों में पगड़ी का ऐतिहासिक संदर्भ

सिख धर्म में पगड़ी का महत्व बेहद गहरा है। 2004 से, 13 अप्रैल को पगड़ी दिवस के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई थी, ताकि सिख समुदाय में पगड़ी पहनने की आवश्यकता और इसके सांस्कृतिक महत्व को समझाया जा सके। गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 में बैसाखी के दिन सिखों को पगड़ी पहनने का आदेश दिया था, जो उस समय मुगलों और राजपूतों द्वारा अपने सम्मान और प्रतिष्ठा के प्रतीक के रूप में पहनी जाती थी। गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसे सिखों की पारंपरिक पोशाक के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे यह उनकी पहचान और सम्मान का प्रतीक बन गया।

गुरु गोबिंद सिंह जी ने न केवल पगड़ी पहनने का आदेश दिया, बल्कि सिखों को तलवार चलाने और ‘सिंह’ (पुरुषों के लिए) और ‘कौर’ (महिलाओं के लिए) नाम अपनाने की अनुमति भी दी। यह निर्णय सिख समुदाय में समानता को बढ़ावा देने और प्रत्येक सिख को एक सम्मानित पहचान देने के उद्देश्य से था।

दस्तार बंदी: एक महत्वपूर्ण सिख संस्कार

सिख संस्कृति में ‘दस्तार बंदी’ एक महत्वपूर्ण धार्मिक संस्कार है, जो एक सिख लड़के के पगड़ी पहनने की शुरुआत का प्रतीक होता है। यह समारोह आमतौर पर तब आयोजित किया जाता है जब लड़के की उम्र 11 से 16 साल के बीच होती है। दस्तार बंदी एक युवा सिख के जीवन की महत्वपूर्ण घटना है, जो उसकी आस्था और पहचान का प्रतीक होती है। यह समारोह उसे पगड़ी पहनने के लिए तैयार करता है, जिससे वह अपनी धार्मिक आस्थाओं और सिख धर्म के सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को व्यक्त करता है।

कनाडा में पगड़ी दिवस का औपचारिक स्वीकार

2022 में कनाडा के मैनिटोबा प्रांत ने पगड़ी दिवस अधिनियम पारित किया, जिसके तहत 13 अप्रैल को पूरे प्रांत में पगड़ी दिवस घोषित किया गया। इस अधिनियम ने पगड़ी के महत्व को एक धार्मिक प्रतीक के रूप में मान्यता दी और यह स्वीकार किया कि पगड़ी सिख समुदाय के लिए सम्मान, गरिमा और धार्मिक पहचान का प्रतीक है। इस कदम ने पगड़ी के महत्व को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाई और सिख समुदाय के योगदान को सम्मानित किया।

सिखों में पगड़ी का महत्व

सिख धर्म में पगड़ी का महत्व सिर्फ एक कपड़े के टुकड़े से कहीं अधिक है। यह पगड़ी सिख धर्म के सिद्धांतों को और सिख समुदाय के विचारधाराओं को प्रकट करती है। पगड़ी पहनना एक सिख की पहचान का प्रतीक है, जो उसकी बहादुरी, करुणा और सामुदायिक सेवा के सिद्धांतों को दर्शाता है। पगड़ी सिख धर्म के महत्वपूर्ण मूल्यों जैसे कि समानता, सहिष्णुता और आत्म-निर्भरता को भी प्रदर्शित करती है। यह सिख समुदाय की एकता और गौरव का प्रतीक है, जिसे वे अपनी सांस्कृतिक पहचान के रूप में गर्व से पहनते हैं।

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Arpita Thube Success Story: अर्पिता थुबे की संघर्षपूर्ण यात्रा! पहली बार प्रीलिम्स मे...

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Arpita Thube Success Story: यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (UPSC) की परीक्षा को भारत की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक माना जाता है। यह परीक्षा हर साल लाखों युवाओं का सपना होती है, लेकिन कुछ ही लोग इसे पार कर पाते हैं। कई उम्मीदवार कठिनाईयों का सामना करके हार मान लेते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो मेहनत, समर्पण और दृढ़ संकल्प से मिसाल कायम करते हैं। ऐसी ही एक प्रेरणादायक कहानी है IAS अधिकारी अर्पिता थुबे की।

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अर्पिता का शुरुआती सफर- Arpita Thube Success Story

अर्पिता थुबे महाराष्ट्र के ठाणे शहर की रहने वाली हैं। उनका एकेडमिक रिकॉर्ड शुरू से ही शानदार था। उन्होंने सरदार पटेल कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। अर्पिता के भीतर हमेशा से देश की सेवा करने की प्रबल इच्छा थी, और इसी लक्ष्य को लेकर उन्होंने UPSC की परीक्षा की तैयारी शुरू की।

पहली असफलता और प्रेरणा

अर्पिता ने पहली बार 2019 में UPSC परीक्षा दी, लेकिन अफसोस की बात यह थी कि वह प्री एग्जाम पास नहीं कर पाईं। यह उनके लिए बड़ा झटका था, लेकिन अर्पिता ने हार मानने के बजाय इसे एक सीखने का अवसर मानते हुए अपनी तैयारी में और भी सुधार किया। उन्होंने खुद को मजबूत किया और 2020 में दोबारा परीक्षा में भाग लिया। इस बार उनकी मेहनत रंग लाई, और उन्होंने 383वीं रैंक हासिल की, जिसके बाद उन्हें भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में नियुक्ति मिली।

हालांकि, अर्पिता का असली सपना भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में जाने का था, और इसके लिए वह पूरी तरह से समर्पित थीं। उनका लक्ष्य अभी भी अधूरा था, और उन्होंने अपनी यात्रा जारी रखी।

दूसरी असफलता और संकल्प

अर्पिता ने 2021 में फिर से UPSC परीक्षा दी, लेकिन इस बार भी वह अपने लक्ष्य से चूक गईं। एक बार फिर उन्हें झटका लगा, लेकिन उनका मनोबल और संकल्प बिल्कुल अडिग रहा। अर्पिता ने खुद से वादा किया कि वह हार नहीं मानेंगी, और यह कि वह अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ेंगी।

चौथा प्रयास और सफलता की कहानी

अर्पिता के चौथे और अंतिम प्रयास में उन्होंने अपनी तैयारी पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करने के लिए अपनी IPS ड्यूटी से ब्रेक लिया। यह उनका आखिरी मौका था, और उन्होंने इसे पूरी तरह से सही तरीके से इस्तेमाल किया। 2022 में, उनकी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प ने उन्हें सफलता दिलाई। अर्पिता ने 214वीं रैंक प्राप्त की और भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में सफलता हासिल की।

युवाओं के लिए प्रेरणा

अर्पिता थुबे की सफलता की कहानी यह साबित करती है कि असफलताएं केवल सीखने के अवसर होती हैं। उनकी कहानी उन लाखों युवाओं के लिए एक प्रेरणा है, जो जीवन में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं और हार मानने की बजाय अपने सपनों को हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अर्पिता ने यह दिखाया कि अगर आपके अंदर दृढ़ संकल्प, धैर्य और मेहनत हो, तो कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती। उनकी यात्रा सिर्फ सफलता तक नहीं सीमित है, बल्कि यह अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जरूरी लचीलापन और दृढ़ता की गहरी समझ को भी दर्शाती है।

अर्पिता थुबे की सफलता उन सभी के लिए एक प्रेरणा है, जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए लगातार संघर्ष करते रहते हैं, चाहे रास्ते में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं।

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Cargo vessel Morning Midas: अलास्का तट के पास आग में घिरा ‘Morning Midas’...

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Cargo vessel Morning Midas: चीन से मैक्सिको जा रहे एक मालवाहक जहाज, ‘Morning Midas’, में मंगलवार को अलास्का के तट के पास आग लगने से सनसनी मच गई। जहाज पर इलेक्ट्रिक वाहनों के साथ लिथियम आयन बैटरियां मौजूद थीं, जिससे आग को काबू करना और भी कठिन हो गया। चालक दल ने आग पर काबू पाने की कोशिश की, लेकिन स्थिति बिगड़ने के बाद उन्हें मदद के लिए अमेरिकी तटरक्षक बल से संपर्क करना पड़ा।

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आग की शुरुआत और बचाव कार्य- Cargo vessel Morning Midas

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, लंदन स्थित शिपिंग कंपनी जोडियाक मैरीटाइम का यह मालवाहक जहाज चीन से लगभग 3,000 इलेक्ट्रिक कारों को लेकर मैक्सिको के लिए रवाना हुआ था। जब जहाज अलास्का के तट से 1200 मील की दूरी पर था, तो उसमें धुआं निकलने लगा। चालक दल ने आग पर काबू पाने की कोशिश की, लेकिन जब वे सफल नहीं हो सके, तो उन्होंने अमेरिकी तटरक्षक बल को आपातकालीन कॉल किया।

अधिकारियों के अनुसार, तटरक्षक बल ने घटनास्थल पर पहुंचकर जहाज के चालक दल के 22 सदस्यों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया। एक तटरक्षक अधिकारी ने बताया, “हमने चालक दल को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया, और जहाज की स्थिति पर लगातार निगरानी रखी जा रही है।” उन्होंने यह भी बताया कि जहाज पर इलेक्ट्रिक वाहनों की लिथियम आयन बैटरियां मौजूद थीं, जिनके फटने का खतरा हमेशा बना रहता है। यदि ऐसा होता, तो जहरीली गैस फैलने की संभावना भी थी। इस कारण से आग को बुझाना बेहद मुश्किल और खतरनाक हो सकता था, इसलिए उसे जलने दिया गया और उसकी निगरानी की जा रही है।

आग पर काबू क्यों नहीं पाया जा सका?

जहाज की कंपनी, जोडियाक मैरीटाइम, के प्रवक्ता डस्टिन एनो ने बताया कि जब चालक दल को आग लगने का पता चला, तो उन्होंने तुरंत अपनी ओर से इसे बुझाने की कोशिश की। उस समय अग्निशामक जहाज की दूरी पर कोई नहीं था। उन्होंने उम्मीद जताई कि सोमवार तक बचाव दल घटनास्थल पर पहुंच जाएगा और मदद करेगा।

अमेरिकी तटरक्षक बलों ने भी इस मामले की जांच शुरू कर दी है और आग लगने के कारणों का पता लगाने की योजना बनाई है।

जहाज में इलेक्ट्रिक गाड़ियों का बड़ा काफिला

‘Morning Midas’ जहाज में करीब 3,000 गाड़ियां रखी गई थीं, जिनमें 800 इलेक्ट्रिक गाड़ियां शामिल हैं। यह जहाज चीन से मैक्सिको के कार्डेनस पोर्ट के लिए जा रहा था, और 15 जून तक वहां पहुंचने की उम्मीद थी। इलेक्ट्रिक गाड़ियों में लिथियम आयन बैटरियां लगी होती हैं, जो बहुत जल्दी गर्म हो सकती हैं और आग फैलने की स्थिति में जोखिम बढ़ा सकती हैं। इस वजह से, तटरक्षक बल और बचाव दल को स्थिति को संभालने में काफी सावधानी बरतनी पड़ी।

भविष्य में जोखिम और बचाव

जैसा कि आग के कारणों का अब तक पता नहीं चला है, तटरक्षक बल और संबंधित अधिकारियों का कहना है कि वे जल्द ही इस पर जांच करेंगे। फिलहाल, जहाज को जलने दिया गया है, और उसे सुरक्षित स्थान से मॉनिटर किया जा रहा है। इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बढ़ती संख्या और उनमें इस्तेमाल होने वाली लिथियम आयन बैटरियों के कारण इस तरह की घटनाएं अधिक जोखिमपूर्ण हो सकती हैं।

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Trump vs Musk: ट्रंप-मस्क की जंग में अमेरिका के पावर कपल का दिलचस्प टर्न! पति ने ट्रं...

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Trump vs Musk: अमेरिका में दो कद्दावर शख्सियतों, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और अरबपति कारोबारी एलॉन मस्क के बीच के विवाद ने एक नया मोड़ लिया है, जो अब एक प्रमुख पावर कपल, स्टीफन और केटी मिलर के बीच फंसा हुआ दिखाई दे रहा है। इस घटनाक्रम ने इसे और भी दिलचस्प बना दिया है, क्योंकि दोनों मिलर के बीच अब ट्रंप और मस्क के बीच चुनने का दबाव बढ़ गया है।

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स्टीफन और केटी मिलर की भूमिका- Trump vs Musk

स्टीफन मिलर, जो ट्रंप प्रशासन में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और नीतिगत मामलों के डिप्टी डायरेक्टर के रूप में काम कर चुके हैं, ने हमेशा ट्रंप का समर्थन किया है। वह अवैध प्रवासियों के खिलाफ उनकी सख्त नीतियों के बड़े समर्थक रहे हैं और 2009 से ही इस मुद्दे पर सक्रिय रहे हैं। 2016 में जब ट्रंप राष्ट्रपति बने, तो स्टीफन का ट्रंप से रिश्ता और भी मजबूत हो गया था। ट्रंप के भाषणों में जो कट्टर रुख अवैध प्रवासियों और मुस्लिमों के खिलाफ देखा जाता है, उसमें स्टीफन की बड़ी भूमिका रही है।

वहीं, स्टीफन की पत्नी केटी मिलर ने ट्रंप से अपनी वफादारी को स्पष्ट करते हुए मस्क से नाता तोड़ लिया। केटी, जो मस्क के डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशियंसी (DOGE) में सलाहकार के तौर पर काम कर रही थीं, ने व्हाइट हाउस छोड़ दिया और मस्क की कंपनियों, टेस्ला और स्पेसएक्स में अहम भूमिका निभाई। केटी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर मस्क और उनकी कंपनियों की लगातार तारीफ की है और उन्हें प्रमोट किया है।

ट्रंप और मस्क के बीच तनाव

इस विवाद के बीच मस्क और ट्रंप के बीच की खाई और गहरी होती जा रही है। ट्रंप प्रशासन के एक प्रस्ताव में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EV) की खरीद पर मिलने वाली टैक्स छूट को खत्म करने का प्रस्ताव है, जो सीधे तौर पर मस्क की कंपनी टेस्ला को नुकसान पहुंचा सकता है। ट्रंप का यह कदम टेस्ला के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है, क्योंकि बाइडेन प्रशासन ने EV खरीदने पर 7,500 डॉलर की टैक्स छूट दी थी, जो अब ट्रंप के प्रस्ताव से खत्म हो जाएगी।

एक और कारण जो मस्क और ट्रंप के बीच खटास का कारण बना, वह था मस्क का अपने भरोसेमंद सहयोगी जेरेड इसाकमैन को NASA में एडमिनिस्ट्रेटर के रूप में नियुक्त करवाना। मस्क का मानना था कि इसाकमैन के NASA में एडमिनिस्ट्रेटर बनने से उनकी कंपनी SpaceX को लाभ होगा, लेकिन ट्रंप ने इस सिफारिश को नजरअंदाज कर दिया।

इसके अलावा, ट्रंप ने मस्क को DOGE की जिम्मेदारी दी थी, जिसका मुख्य उद्देश्य सरकारी खर्चों में कटौती करना था। इस प्रक्रिया के दौरान हजारों सरकारी कर्मचारियों की छंटनी की गई, जिससे मस्क की छवि को नुकसान हुआ। हालांकि, कई लोगों का मानना था कि मस्क ने अपनी मर्जी से कर्मचारियों को निकाला था, जिससे उनका सार्वजनिक रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

केटी और स्टीफन का चयन

अब, इस पूरे घटनाक्रम में स्टीफन और केटी मिलर के बीच बढ़ते तनाव को लेकर एक दिलचस्प मोड़ आया है। केटी को अब किसी एक पक्ष को चुनने का दबाव है, क्योंकि वह ट्रंप और मस्क दोनों के साथ काम कर चुकी हैं। सूत्रों के अनुसार, वह दोनों में से एक को चुनने के लिए मजबूर हैं, और उन्होंने मस्क का समर्थन किया है। वहीं, स्टीफन ने पूरी तरह से ट्रंप का साथ दिया है, जो उनके राजनीतिक करियर और नीतिगत विचारों के अनुरूप है।

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Indian Media Fake information: भारत-पाकिस्तान संघर्ष में फैलती अफवाहें: भारतीय मीडिया...

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Indian Media Fake information: भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुई तीव्र हिंसक घटनाओं के दौरान भारतीय मीडिया में फैलने वाली गलत जानकारियों ने पूरे देश में सनसनी मचा दी। 9 मई की रात एक भारतीय पत्रकार को प्रसार भारती से एक व्हाट्सएप संदेश प्राप्त हुआ, जिसमें दावा किया गया कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख को गिरफ्तार कर लिया गया है और पाकिस्तान में तख्तापलट हो रहा है। यह संदेश तुरंत भारतीय पत्रकारों के बीच फैल गया, और कई प्रमुख मीडिया चैनल्स ने इसे प्रमुख खबर के रूप में प्रसारित किया।

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लेकिन यह खबर पूरी तरह से झूठी थी। पाकिस्तान में कोई तख्तापलट नहीं हुआ था और जनरल असीम मुनीर, जिनके बारे में यह दावा किया गया था कि वे जेल में हैं, दरअसल जल्द ही फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत होने वाले थे। यह घटना भारतीय मीडिया के लिए एक चौंकाने वाली मिसाल बनी, लेकिन यह अकेला उदाहरण नहीं था।

मीडिया में फैलती गलत जानकारियाँ- Indian Media Fake information

इस गलत जानकारी को फैलाने का सिलसिला सिर्फ यहीं नहीं रुका। भारतीय मीडिया चैनल्स ने पाकिस्तान के प्रमुख शहरों के नष्ट होने की खबरें भी प्रसारित की। टाइम्स नाऊ, भारत समाचार, टीवी9 भारतवर्ष और ज़ी न्यूज़ जैसे चैनल्स ने बिना किसी पुष्टि के पाकिस्तान के खिलाफ झूठी खबरें चलाईं। ये खबरें इतनी तेजी से फैल गईं कि कुछ मीडिया चैनल्स ने गाजा और सूडान में हो रही लड़ाई की तस्वीरें और यहां तक कि वीडियो गेम्स की क्लिप्स भी दिखा दीं, ताकि अपने दावे को प्रमाणित किया जा सके।

भारत के मीडिया पर एक और गंभीर सवाल यह खड़ा हुआ कि कई चैनल्स ने इन खबरों का प्रसारण बिना किसी सत्यापन के किया। मीडिया आलोचक मनीषा पांडे ने कहा, “यह टीवी चैनलों का सबसे खतरनाक रूप है, जो बिना किसी जांच के जो भी संदेश व्हाट्सएप पर आता है, उसे प्रसारित कर देते हैं। अब ये चैनल पूरी तरह से नियंत्रण से बाहर हो चुके हैं।”

मीडिया का अव्यवस्थित व्यवहार

यह पहली बार नहीं था जब भारतीय मीडिया के चैनल्स ने बिना पुष्टि के खबरों का प्रसारण किया। मई 8 को एक प्रमुख हिंदी चैनल ने दावा किया कि भारतीय नौसेना ने कराची पर हमला कर दिया था। बाद में यह जानकारी पूरी तरह से झूठी साबित हुई। इन झूठी खबरों को बढ़ावा देने के लिए कुछ चैनल्स ने सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और खुले स्रोतों से प्राप्त जानकारी का भी सहारा लिया।

भारत में इस तरह के मीडिया व्यवहार के पीछे कारण यह है कि चैनल्स अपनी टीआरपी को बढ़ाने के लिए सनसनीखेज खबरों का प्रसारण करने में लगे हुए हैं। इसके अलावा, कुछ चैनल्स की प्राथमिकता अब सरकार के पक्ष में खबरें प्रसारित करना बन गई है, बजाय कि निष्पक्ष और सत्यता की ओर।

अफवाहों से भरा हुआ समय

इससे पहले, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संघर्ष के बारे में कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की थी। हालांकि, बाद में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस मुद्दे पर एक लाइन का ट्वीट किया। जब सरकारी अधिकारियों द्वारा कोई ठोस जानकारी नहीं दी जा रही थी, तो यह शून्य भारतीय मीडिया चैनल्स द्वारा भरा जा रहा था।

पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारी ने कहा, “हमने जानकारी युद्ध में अपनी भ्रामक जानकारी फैलाकर पाई। यहां तक कि यह जानकारी हमारे ही दर्शकों के लिए नुकसानदेह थी, लेकिन यह रणनीतिक रूप से लाभकारी हो सकती है।” हालांकि, इससे यह तो साबित होता है कि भारतीय मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी से मुँह मोड़ा है और गैर जिम्मेदाराना तरीके से खबरों का प्रसारण किया।

परिणाम और आत्मावलोकन

भारत के मीडिया चैनल्स द्वारा प्रसारित की गई गलत खबरों के कारण न केवल नागरिकों को भ्रमित किया गया, बल्कि इससे पूरे संघर्ष के बारे में गलत जानकारी भी फैली। इसके परिणामस्वरूप कई समाचार चैनल्स के लिए आत्ममूल्यांकन की प्रक्रिया शुरू हुई, हालांकि सार्वजनिक माफी का कहीं भी अभाव था। कुछ चैनल्स ने अपनी गलतियों को स्वीकार किया, लेकिन कई पत्रकार और एंकर अभी भी अपने कवर किए गए मामलों की गलतफहमी पर अड़े हुए हैं।

स्वेता सिंह, इंडिया टुडे की एक प्रमुख एंकर, ने कहा था कि “कराची 1971 के बाद सबसे बुरा अनुभव देख रहा है,” लेकिन बाद में यह दावा पूरी तरह से झूठा साबित हुआ। यही नहीं, कुछ पत्रकारों ने तो झूठी खबरों को देश के पक्ष में होने के नाम पर उचित ठहराया।

भारत में गलत जानकारी फैलाने का यह उदाहरण एक गंभीर चेतावनी है कि मीडिया को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और किसी भी खबर को प्रसारित करने से पहले उसके सत्यापन पर जोर देना चाहिए। यह समय है कि मीडिया चैनल्स और पत्रकार समाज में अपनी भूमिका को समझें और अपने कर्तव्यों का सही निर्वाह करें, ताकि जनता को केवल सत्य जानकारी मिले।

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