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Top Gurudwaras in Maharashtra: मराठों की धरती पर गूंजती है अरदास, जानें महाराष्ट्र के...

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Top Gurudwaras in Maharashtra: महाराष्ट्र को अक्सर मराठा वीरता, ऐतिहासिक किलों और सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यह राज्य सिख धर्म के अनुयायियों के लिए भी एक पवित्र भूमि के रूप में जाना जाता है। यहां मौजूद कई ऐतिहासिक और आध्यात्मिक गुरुद्वारे न केवल धर्म के प्रतीक हैं, बल्कि भाईचारे, सेवा और आंतरिक शांति की मिसाल भी पेश करते हैं। इन गुरुद्वारों में सिर्फ सिख ही नहीं, बल्कि सभी धर्मों के लोग श्रद्धा और आस्था के साथ आते हैं। आइए महाराष्ट्र के कुछ प्रमुख गुरुद्वारों की बात करते हैं, जो सिख परंपरा, इतिहास और संस्कृति को आज भी जीवंत रखते हैं।

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हज़ूर साहिब: नांदेड़ की आत्मा- Top Gurudwaras in Maharashtra

महाराष्ट्र के गुरुद्वारों की बात हो और हज़ूर साहिब का नाम न लिया जाए, ऐसा हो ही नहीं सकता। नांदेड़ के हर्ष नगर में स्थित यह गुरुद्वारा गुरु गोबिंद सिंह जी की याद में बनाया गया था। यहीं 1708 में उनकी अंतिम क्रिया हुई थी और अंगीठा साहिब नामक स्थान पर उनका स्मारक बना हुआ है। इसकी खास बात है इसका सोने से मढ़ा गुंबद और तांबे का कलश, जो इसे दूर से ही एक अलग पहचान देता है। यहां दर्शन के लिए सालभर संगत आती है, लेकिन अक्टूबर से मार्च के बीच भीड़ कुछ ज्यादा होती है।

गुरुद्वारा नग़ीना घाट – सफेद संगमरमर की शांति में लिपटा विश्वास

वज़ीराबाद में स्थित गुरुद्वारा नग़ीना घाट अपने सुंदर सफेद संगमरमर के ढांचे और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। इसका निर्माण राजा गुलाब सिंह सेठी की विधवा ने शुरू करवाया था और यह 1968 में पूरा हुआ। यह गुरुद्वारा अपने पहले तल पर एक छोटे से कक्ष में गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना के लिए प्रसिद्ध है, जहां एक सफेद संगमरमर की पालकी (पलकी साहिब) के नीचे पवित्र ग्रंथ विराजमान हैं। यह स्थान अपने सादगी भरे सौंदर्य और आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए संगत को बहुत आकर्षित करता है। यहां साल भर दर्शन की सुविधा रहती है, लेकिन नवंबर से जनवरी के बीच यहां आना सबसे बेहतर समय माना जाता है।

यहां तक पहुंचना भी बेहद आसान है, यहां पहुँचने के लिए सियालकोट नजदीकी शहर है जहां से सड़क मार्ग से गुरुद्वारे तक पहुंचा जा सकता है। रेलवे से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए नजदीकी स्टेशन नेरल है, जबकि हवाई यात्रा करने वालों के लिए वज़ीराबाद एयरपोर्ट सबसे पास है। गांधी नगर बस स्टैंड भी पास ही स्थित है। अगर आप आसपास थोड़ा घूमना चाहें तो फन दुन्या थीम पार्क, कलापूल और रणबिरेश्वर मंदिर जैसी जगहें आपके सफर को और यादगार बना सकती हैं।

गुरुद्वारा बांदा घाट – एक संत से योद्धा बनने की प्रेरक कहानी

गुरुद्वारा बांदा घाट, वज़ीराबाद में स्थित है और इसका महत्व उस महान योद्धा को समर्पित है जो कभी भई माधो दास बैरागी के नाम से जाने जाते थे। बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी के आशीर्वाद से वे बाबा बंदा सिंह बहादुर बने और सिख धर्म की रक्षा के लिए संघर्षरत रहे। यह गुरुद्वारा उनकी बहादुरी, बलिदान और आस्था का प्रतीक है। यहां का शांत वातावरण और ऐतिहासिक ऊर्जा श्रद्धालुओं को भीतर तक छू जाती है।

यह स्थान पूरे साल खुला रहता है, लेकिन फरवरी से अप्रैल के बीच यहां आकर दर्शन करना विशेष रूप से अच्छा माना जाता है, जब मौसम भी अनुकूल रहता है। यात्रा की सुविधा के लिहाज से यह भी सियालकोट से सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। नेरल रेलवे स्टेशन और वज़ीराबाद एयरपोर्ट यहां के नजदीकी ट्रांजिट प्वाइंट्स हैं। वहीं गांधी नगर बस स्टैंड से भी यह स्थान अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। दर्शन के बाद, आप मनार डैम, विसावा गार्डन या गांधी प्रतिमा जैसे स्थानों की सैर कर सकते हैं जो पास ही स्थित हैं और कुछ पल प्रकृति के साथ बिताने का अच्छा अवसर देते हैं।

गुरुद्वारा शिकार घाट – जहां शिकार बना एक आत्मिक अनुभव

वज़ीराबाद का ही एक और महत्वपूर्ण स्थल है गुरुद्वारा शिकार घाट। इस गुरुद्वारे से एक दिलचस्प लोककथा जुड़ी है – कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह जी ने यहां एक खरगोश का शिकार किया था, जिसे वे अपने पुराने साथी भाई मौला करार का पुनर्जन्म मानते थे। यह घटना इस स्थल को और भी खास बनाती है क्योंकि यह हमें गुरु साहिब की दूरदर्शिता और आध्यात्मिक दृष्टिकोण की झलक देती है।

यह गुरुद्वारा भी साल के 12 महीने 24 घंटे खुला रहता है, लेकिन अक्टूबर से नवंबर का समय दर्शन के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। यहां पहुंचने के लिए सियालकोट से सड़क मार्ग सबसे बेहतर विकल्प है। नेरल रेलवे स्टेशन, वज़ीराबाद एयरपोर्ट और गांधी नगर बस स्टैंड पास के मुख्य ट्रांजिट पॉइंट्स हैं। गुरुद्वारे के पास के दर्शनीय स्थलों में शिव टेम्पल हिल्स, कलापूल और रणबिरेश्वर मंदिर शामिल हैं, जो आपके यात्रा अनुभव को और भी समृद्ध बना सकते हैं।

 ब्राह्मनवाड़ा: माता साहिब कौर और गुरु जी की सेवा भूमि

ब्राह्मनवाड़ा में स्थित गुरुद्वारा हीरा घाट साहिब वह स्थान है जहां गुरु गोबिंद सिंह जी ने पहली बार नांदेड़ में डेरा डाला था। कहा जाता है कि यहीं पर बहादुर शाह ने उन्हें एक कीमती हीरा भेंट किया था। पास ही बना गुरुद्वारा श्री माता साहिब गुरु गोबिंद सिंह जी की पत्नी माता साहिब कौर की याद में बनाया गया है, जिन्होंने यहां लंगर की सेवा संभाली थी। दोनों स्थानों का वातावरण बेहद शांत और दिव्य महसूस होता है।

अमरावती का मालटेकड़ी साहिब: गुरु नानक जी की पदयात्रा का पड़ाव

1512 में श्रीलंका की यात्रा के दौरान, गुरु नानक देव जी अमरावती में गुरुद्वारा मालटेकड़ी साहिब पर रुके थे। यहां उनकी मुलाकात लाकड़ शाह फकीर से हुई थी जो देख और चल नहीं सकते थे। यह गुरुद्वारा सिख इतिहास में उस करुणा और इंसानियत की भावना को दर्शाता है जिसे गुरु नानक देव जी ने हमेशा अपनाया।

गनिपुरा का संगत साहिब: जहां संगत ने दिया था ढाल का दान

गुरुद्वारा श्री संगत साहिब, गनिपुरा में स्थित है और इसकी जड़ें काफी पुरानी मानी जाती हैं। कहा जाता है कि यहां सिख संगत गुरु नानक देव जी के समय से ही मौजूद थी। एक ऐतिहासिक घटना के मुताबिक यहां 300 सैनिकों को एक ढाल बतौर धन भेंट में दी गई थी।

बसमत नगर का दमदमा साहिब: प्रकृति की गोद में आठ दिन

गुरु गोबिंद सिंह जी 1708 में जब नांदेड़ की ओर जा रहे थे, तब उन्होंने गुरुद्वारा श्री दमदमा साहिब, बसमत नगर में आठ दिन का विश्राम लिया। चारों तरफ फैली हरियाली और शांति ने उन्हें यहां रुकने को प्रेरित किया। इस दौरान कई संगत उनके दर्शन के लिए यहां पहुंचे और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया।

नानकसर साहिब, पांगरी: जहां नौ दिन तक चली साधना

गुरुद्वारा श्री नानकसर साहिब, पांगरी में स्थित है और इसका महत्व इसलिए है क्योंकि यहां गुरु नानक देव जी ने एक बेर के पेड़ के नीचे नौ दिन और नौ घंटे ध्यान साधना की थी। यह स्थान आज भी उसी सादगी और पवित्रता को संजोए हुए है।

गुरुद्वारा श्री रतनगढ़ साहिब वाडेपुरी

वाडेपुरी में स्थित गुरुद्वारा श्री रतनगढ़ साहिब सिख संगत के लिए भावनात्मक रूप से बहुत खास जगह है। ऐसा कहा जाता है कि जब गुरु गोबिंद सिंह जी के दिवंगत होने की खबर फैली, तो लोग दुखी और दिशाहीन हो गए। तब गुरु जी ने उन्हें आशीर्वाद देकर समझाया कि वे उनकी शिक्षाओं को अपनाएं और सिख धर्म के रास्ते पर अडिग रहें। इसी संदेश को यह गुरुद्वारा आज भी जीवित रखे हुए है।

यह स्थल सालभर, 24 घंटे खुला रहता है, लेकिन अक्टूबर से मार्च के बीच आने का समय सबसे अच्छा माना जाता है। यहां पहुंचने के लिए वाडेपुर शहर से सड़क मार्ग आसान है। नजदीकी स्टेशन हज़ूर साहिब नांदेड़, और एयरपोर्ट श्री गुरु गोबिंद सिंह जी एयरपोर्ट है। पास में माता गुजरी जी विसावा गार्डन, कंधार किला और कलेश्वर मंदिर भी दर्शनीय स्थल हैं।

यात्रा की योजना बना रहे हैं? तो ये बातें ध्यान रखें

इन सभी गुरुद्वारों की यात्रा के लिए अक्टूबर से मार्च का समय सबसे अच्छा माना जाता है। अधिकतर स्थानों तक सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है, और नजदीक ही रेलवे स्टेशन व एयरपोर्ट भी मौजूद हैं। हर गुरुद्वारे के पास कुछ दर्शनीय स्थल भी हैं, जहां आप प्राकृतिक सुंदरता और स्थानीय संस्कृति का अनुभव कर सकते हैं। सबसे अच्छी बात ये है कि अधिकतर गुरुद्वारे 24 घंटे खुले रहते हैं और श्रद्धालुओं के लिए लंगर सेवा भी उपलब्ध होती है।

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P Chidambaram controversial statement: मुंबई अटैक से अफजल गुरु तक… जब चिदंबरम न...

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P Chidambaram controversial statement: कभी कांग्रेस पार्टी के रणनीतिकारों में शुमार रहे वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम इन दिनों अपने बयानों को लेकर पार्टी को बार-बार असहज कर रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में उन्होंने ऐसे कई मुद्दों पर सार्वजनिक रूप से टिप्पणियां की हैं जो कांग्रेस के आधिकारिक स्टैंड से मेल नहीं खातीं। नतीजा ये कि कांग्रेस को बार-बार सफाई देनी पड़ रही है और बीजेपी को बैठे-बिठाए हमलावर होने का मौका मिल जाता है।

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मणिशंकर अय्यर के बयानों की तरह ही चिदंबरम की बातें भी राष्ट्रीय सुरक्षा, इतिहास और कूटनीति जैसे संवेदनशील मसलों पर पार्टी की छवि पर असर डाल रही हैं। कांग्रेस हाईकमान इससे बेहद खफा है और अंदरखाने से खबरें आ रही हैं कि पार्टी ने उन्हें स्पष्ट चेतावनी दी है कि अब आगे ऐसा ना हो।

आइए, नजर डालते हैं उन 6 बयानों पर, जिन्होंने कांग्रेस को मुश्किलों में डाल दिया।

INDIA गठबंधन पर सवाल- P Chidambaram controversial statement

जब राहुल गांधी INDIA गठबंधन की ताकत गिनवाने में लगे थे, उस वक्त चिदंबरम ने मंच से कुछ ऐसा कहा, जिसने पूरे गठबंधन की एकजुटता पर ही सवाल खड़े कर दिए। उन्होंने कहा था कि “INDIA गठबंधन का भविष्य उतना उज्ज्वल नहीं है जितना कुछ लोग सोच रहे हैं।”

उन्होंने आगे यह भी कहा कि भाजपा जितनी मज़बूती से संगठित पार्टी भारत में शायद ही कभी रही हो। इस बयान ने न केवल कांग्रेस को बैकफुट पर डाला बल्कि गठबंधन में शामिल अन्य दलों के बीच भी असहजता फैला दी।

पहलगाम हमले पर पाकिस्तान को क्लीन चिट?

जुलाई 2025 में हुए पहलगाम हमले के बाद चिदंबरम का बयान सुर्खियों में रहा। उन्होंने कहा कि “सरकार ने कैसे मान लिया कि आतंकी पाकिस्तान से ही आए थे? हो सकता है वो देश के भीतर तैयार हुए हों।”

इस बयान से बीजेपी को सीधा हमला करने का मौका मिल गया। भाजपा ने कहा कि चिदंबरम पाकिस्तान को क्लीन चिट दे रहे हैं और आतंकियों की पहचान को लेकर सरकार पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। अमित मालवीय ने तो यह तक कह डाला कि चिदंबरम भारत की बजाय इस्लामाबाद के वकील लगते हैं।

2008 मुंबई हमला: ‘यूपीए दबाव में झुकी’

30 सितंबर को एक कार्यक्रम में चिदंबरम ने कबूल किया कि 26/11 मुंबई हमले के बाद वे पाकिस्तान पर सैन्य कार्रवाई के पक्ष में थे, लेकिन अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय दबाव की वजह से ऐसा नहीं हो पाया।

उन्होंने कहा, “मेरे मन में सैन्य कार्रवाई का विचार था लेकिन विदेश मंत्रालय और बाकी लोगों ने संयम रखने की सलाह दी।”

यह बयान भी कांग्रेस के लिए सिरदर्द बन गया। भाजपा ने इसे ‘कायरता’ करार दिया और पूछा कि क्या कांग्रेस की विदेश नीति विदेशी दबाव से चलती थी?

ऑपरेशन ब्लू स्टार को बताया ‘गलत तरीका’

हिमाचल में एक लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान चिदंबरम ने कहा कि “स्वर्ण मंदिर को खाली कराने का जो तरीका अपनाया गया, वह गलत था।”

उन्होंने यह भी कहा कि इंदिरा गांधी ने इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकाई। यह बयान आते ही पंजाब कांग्रेस के भीतर से नाराजगी की आवाजें उठने लगीं। बीजेपी ने फिर से कांग्रेस पर सिख विरोधी मानसिकता का आरोप मढ़ दिया।

कांग्रेस आलाकमान को भी यह बयान पसंद नहीं आया। सूत्रों की मानें तो पार्टी ने चिदंबरम को दो टूक कह दिया है कि सार्वजनिक मंच से इस तरह की बातें करने से परहेज करें।

अफजल गुरु के पक्ष में बयान

हालांकि यह बयान 2016 का है, लेकिन इसका जिक्र हर बार होता है जब चिदंबरम की विवादित टिप्पणियों की चर्चा होती है। उन्होंने कहा था कि “अफजल गुरु का केस सही तरीके से नहीं सुना गया।”

यह वही अफजल गुरु है जिसे संसद पर हमले का दोषी मानकर 2013 में फांसी दी गई थी। चिदंबरम का कहना था कि सत्ता में रहते हुए वो चुप रहे, लेकिन अब एक आजाद नागरिक के तौर पर अपनी राय रख रहे हैं।

यह बयान संसद हमले में शहीद जवानों का अपमान करार दिया गया और कांग्रेस को इससे तुरंत किनारा करना पड़ा।

‘भाजपा सबसे संगठित पार्टी’ वाला बयान

किताब लॉन्च के मौके पर चिदंबरम ने भाजपा को ‘अब तक की सबसे संगठित राजनीतिक पार्टी’ बता दिया। उन्होंने कहा कि “इतिहास की मेरी समझ के अनुसार, भाजपा जैसी मजबूत राजनीतिक पार्टी देश में पहले नहीं रही।”

यह बयान सुनकर कांग्रेस कार्यकर्ता खुद दंग रह गए। जब पार्टी भाजपा के खिलाफ 24×7 लड़ाई के मूड में है, ऐसे में इस तरह की प्रशंसा पार्टी के एजेंडे को कमजोर करती है।

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Renault की नई इलेक्ट्रिक Kwid E-Tech 2026 लॉन्च! फीचर्स, रेंज और कीमत जानिए, भारत में...

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2026 Renault Kwid Electric: रेनॉ ने आखिरकार अपनी नई इलेक्ट्रिक कार Kwid E-Tech 2026 को ब्राज़ील में लॉन्च कर दिया है, और ये कहना गलत नहीं होगा कि कंपनी ने छोटे बजट वाले इलेक्ट्रिक कार सेगमेंट में एक बार फिर नया बेंचमार्क सेट किया है। पहले से ज्यादा स्टाइलिश, स्मार्ट और सेफ बनी ये कार अब न सिर्फ लुक्स में दमदार है, बल्कि टेक्नोलॉजी और परफॉर्मेंस के मामले में भी पहले से कहीं ज्यादा एडवांस हो गई है।

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स्टाइल और डिजाइन में बड़ा बदलाव- 2026 Renault Kwid Electric

नई Kwid E-Tech अब पहले से कहीं ज्यादा प्रीमियम और मॉडर्न दिखती है। रेनॉ ने इसमें लगभग सभी एक्सटीरियर पैनल्स को री-डिजाइन किया है। सामने की ग्रिल में पियानो-ब्लैक फिनिश, डे-टाइम रनिंग लाइट्स से लेकर टेललाइट्स तक फुल LED सेटअप और नए शार्प एलिमेंट्स इसे स्पोर्टी अपील देते हैं।

इस बार रेनॉ ने कलर ऑप्शन में भी कुछ नया किया है नए रंग स्लेट ब्लू और टेराकोटा रेड जोड़े गए हैं, वहीं पुराने रंग जैसे ग्लेशियर व्हाइट, एटोइल सिल्वर और नोरोन्हा ग्रीन भी मौजूद हैं।

केबिन में आया है बड़ा अपग्रेड

कार के अंदर की बात करें तो डैशबोर्ड का पूरा लेआउट अब नया है। इसमें 7-इंच का डिजिटल इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर और 10-इंच का टचस्क्रीन इंफोटेनमेंट सिस्टम दिया गया है, जो वायरलेस Apple CarPlay और Android Auto को सपोर्ट करता है।

कैबिन में व्हाइट एक्सेंट और एडवांस स्टोरेज स्पेस के साथ 33 लीटर तक की अतिरिक्त जगह दी गई है। डबल ग्लवबॉक्स और बड़े डोर पॉकेट्स इसकी यूटिलिटी को और बढ़ाते हैं।

सेफ्टी में भी टॉप क्लास

2026 Kwid E-Tech सेगमेंट की पहली कार है जिसमें 6 एयरबैग्स और 11 ADAS फीचर्स स्टैंडर्ड दिए गए हैं। इनमें शामिल हैं:

  • लेन डिपार्चर वार्निंग और लेन कीपिंग असिस्ट
  • ऑटोमैटिक इमरजेंसी ब्रेकिंग
  • ट्रैफिक साइन रिकग्निशन
  • ड्राइवर थकान डिटेक्शन
  • हिल-स्टार्ट असिस्ट
  • स्पीड लिमिटर और क्रूज़ कंट्रोल
  • फ्रंट और रियर पार्किंग सेंसर्स व रियर कैमरा

परफॉर्मेंस और रेंज

इस इलेक्ट्रिक हैचबैक में 65 bhp की मोटर लगी है जो 0 से 50 किमी/घंटा की रफ्तार सिर्फ 4.1 सेकंड में पकड़ लेती है। इसमें 26.8 kWh की बैटरी दी गई है जो ब्राज़ील के इनमेट्रो सर्टिफिकेशन के मुताबिक 180 किमी की रेंज देती है। कार में “B-Mode” नाम का रीजनरेटिव ब्रेकिंग सिस्टम भी दिया गया है, जिससे ब्रेक लगाते समय बैटरी चार्ज होती है और रेंज बढ़ती है।

चार्जिंग ऑप्शंस

  • 220V सॉकेट से: 20% से 80% चार्ज होने में करीब 9 घंटे
  • 7kW AC वॉलबॉक्स से: करीब 3 घंटे से कम
  • 30kW DC फास्ट चार्जर से: सिर्फ 45 मिनट में चार्ज

रोजमर्रा की जरूरतों के लिए कितना फिट?

कार का बूट स्पेस 290 लीटर है, जो रियर सीट फोल्ड करने पर 991 लीटर तक हो जाता है। 172mm का ग्राउंड क्लीयरेंस इसे शहर के साथ-साथ खराब सड़कों पर भी बेफिक्र चलाने लायक बनाता है। और हां, इतनी सारी नई टेक्नोलॉजी के बावजूद इसका वजन सिर्फ 965 किलोग्राम है, यानी पहले से 12 किलो हल्की है।

भारत में लॉन्च को लेकर क्या अपडेट?

फिलहाल रेनॉ ने भारत में इस मॉडल को लॉन्च करने की कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है। लेकिन इसकी साइज, कीमत और स्पेसिफिकेशन को देखते हुए ये भारतीय ग्राहकों के लिए एक बेहतरीन विकल्प बन सकती है।

यदि रेनॉ इसे भारतीय बाज़ार में लॉन्च करती है, तो यह TATA Tiago EV और MG Comet जैसी एंट्री-लेवल इलेक्ट्रिक कारों को टक्कर देने में पूरी तरह सक्षम होगी।

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Gayaji News: अर्थी पर लेटे मुस्कुरा रहे थे मोहन लाल – बिहार में पूर्व वायुसेना कर्मी ...

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Gayaji News: बिहार के गया जिले के गुरारू प्रखंड के कोंची गांव में शनिवार को कुछ ऐसा हुआ, जिसे जिसने भी देखा, हैरान रह गया। गांव के 74 वर्षीय पूर्व वायु सैनिक मोहन लाल की अर्थी बैंड-बाजे और फूलों से सजी हुई निकाली गई, लोग “राम नाम सत्य है” का जाप कर रहे थे, माहौल पूरी तरह शोकपूर्ण था… लेकिन तभी मुक्तिधाम पहुंचते ही अर्थी पर लेटा “मुर्दा” उठ बैठा और मुस्कुराते हुए बोला, “मैं तो बस देखने आया हूं कि मेरी अंतिम यात्रा में कौन-कौन आता है।”

जी हां, यह कोई मज़ाक नहीं था। यह मोहन लाल जी की बाकायदा योजना थी। उन्होंने “जीवित रहते अपनी अंतिम यात्रा” निकालने का फैसला खुद किया था, और उसका आयोजन भी खुद ही करवाया।

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क्या था मोहन लाल का मकसद? Gayaji News

मोहन लाल का मानना है कि लोग जब मर जाते हैं, तब उन्हें पता ही नहीं चलता कि उनके जाने के बाद कौन आया, कौन रोया और किसने याद किया। वे खुद देखना चाहते थे कि उनके लिए लोग कितनी भावनाएं रखते हैं। इसलिए उन्होंने अपने जीवन को ही एक उत्सव मानते हुए यह फैसला लिया

शनिवार को सुबह गांव में जब बैंड-बाजे के साथ “चल उड़ जा रे पंछी…” की धुन पर उनकी अर्थी निकली, तो गांव वाले एक पल को चौंक गए। लेकिन मोहन लाल फूलों से सजी अर्थी पर मुस्कुरा रहे थे और शांत भाव से इस “मृत्यु उत्सव” का हिस्सा बने। सैकड़ों गांववाले इस अनोखे जुलूस में शामिल हुए और जब मुक्तिधाम पहुंचे, तो वहां एक पुतले का प्रतीकात्मक दाह संस्कार किया गया।

उत्सव के बाद सामूहिक भोज

इस पूरे आयोजन के बाद सभी के लिए सामूहिक प्रीतिभोज भी आयोजित किया गया, जहां गांववालों ने मिलकर खाना खाया और मोहन लाल की जिंदादिली की तारीफ की। लोगों ने कहा कि उन्होंने पहली बार किसी को मृत्यु को लेकर इतना सकारात्मक और सहज रवैया अपनाते देखा।

समाज सेवा से भी गहरा नाता

पूर्व वायु सैनिक मोहन लाल लंबे समय से समाजसेवा से जुड़े रहे हैं। उन्होंने बताया कि गांव में बरसात के मौसम में शवदाह में काफी दिक्कतें होती थीं, इसलिए उन्होंने अपने खर्चे पर ही गांव में एक सुविधायुक्त मुक्तिधाम बनवाया। उनका कहना है कि मृत्यु को भय की बजाय स्वीकार और समझने की चीज़ मानना चाहिए।

परिवार और गांववालों की प्रतिक्रिया

मोहन लाल के परिवार में दो बेटे और एक बेटी हैं। एक बेटा डॉ. दीपक कुमार कोलकाता में डॉक्टर हैं, दूसरा बेटा विश्व प्रकाश शिक्षक हैं और बेटी गुड़िया कुमारी धनबाद में रहती हैं। करीब 14 साल पहले उनकी पत्नी जीवन ज्योति का निधन हो गया था। परिवारवालों ने भी मोहन लाल की इस अनोखी सोच को समर्थन दिया और आयोजन में शामिल रहे।

गांव के लोगों के लिए यह घटना अब तक की सबसे अनोखी याद बन गई है। लोगों का कहना है कि मोहन लाल ने सिर्फ एक परंपरा को तोड़ा नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु दोनों को जीने का नया तरीका सिखाया।

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FIR Against Jawed Habib: ‘विदेश में सैलून दिलाएंगे’… जावेद हबीब पर ...

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FIR Against Jawed Habib: बालों की दुनिया के बादशाह कहे जाने वाले जावेद हबीब अब ‘फ्रॉड’ के आरोपों में घिर गए हैं। एक वक्त था जब लोग उनके सैलून में बाल कटवाने को स्टेटस सिंबल मानते थे, लेकिन अब उन पर आरोप है कि उन्होंने विदेश में सैलून खोलने का सपना दिखाकर दर्जनों लोगों से करोड़ों की ठगी कर ली। उत्तर प्रदेश के संभल में इस मामले ने इतना तूल पकड़ा है कि अब तक उनके खिलाफ 32 एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं, और लुकआउट नोटिस भी जारी कर दिया गया है।

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क्या है पूरा मामला? FIR Against Jawed Habib

पुलिस जांच के मुताबिक, जावेद हबीब और उनके सहयोगियों पर आरोप है कि उन्होंने एफएलसी (FLC) नाम की एक कंपनी के जरिए लोगों को निवेश के नाम पर 50 से 70 प्रतिशत मुनाफे का झांसा दिया। इस लालच में सैकड़ों लोगों ने भारी-भरकम पैसा लगाया, लेकिन जब रिटर्न नहीं मिला और पैसा डूब गया, तो मामला पुलिस तक पहुंचा।

जावेद हबीब ने सार्वजनिक रूप से कहा था, “मेरे देशभर में सैलून हैं, हम विदेशों में भी जाएंगे, और मुनाफा आएगा तो निवेशकों को फायदा मिलेगा।” लेकिन आज यह वादे धूल में बदल चुके हैं।

जांच में अब तक सामने आया है कि ये घोटाला 5 से 7 करोड़ रुपये तक का हो सकता है। पुलिस अधिकारियों ने पुष्टि की है कि सभी शिकायतों के आधार पर अब तक 32 मुकदमे दर्ज किए जा चुके हैं और जांच तेजी से आगे बढ़ रही है।

देश छोड़कर भाग न जाएं, इसलिए लुकआउट नोटिस

जैसे-जैसे मामला गंभीर होता गया, पुलिस ने जावेद हबीब, उनके बेटे और परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी कर दिया है। राय सत्ती थाना प्रभारी बोविंद्र कुमार के मुताबिक, “हम नहीं चाहते कि आरोपी देश छोड़कर भाग जाएं, इसलिए लुकआउट नोटिस जरूरी था। हमने पूछताछ के लिए नोटिस भी भेजा है, लेकिन अब तक उनका सीधा सहयोग नहीं मिला है।”

सपना दिखाया, पैसा लगाया और मिला धोखा

एक पीड़ित, सरफराज हुसैन, बताते हैं कि 24 अगस्त 2023 को संभल के रॉयल पैलेस में आयोजित एक सेमिनार में उन्होंने हबीब को सुना। हबीब ने कहा था कि उनकी कंपनी FNC (Follic Global Company) अनेक देशों में सैलून खोल रही है, और इनमें निवेश करने वाले को 3 गुना तक मुनाफा मिलेगा। उन्होंने चार्ट दिखाया, योजनाएं बताईं और सुनाया, “हमें विदेशों में फ्रेंचाइजी देंगे, प्रॉफिट आएगा तो आप निवेशकों को लाभ होगा।”

सरफराज ने खुद 3 लाख 15 हजार रूपये निवेश किए। उन्हें बताया गया था कि 36 महीने तक हर महीने 27,890 रुपए दिए जाएंगे। लेकिन समय गुजरा और एक भी पैसा वापस नहीं आया। जब उन्होंने पूछना शुरू किया, तो कहा गया “सिस्टम में दिक्कत है, थोड़ा इंतज़ार कर लो।”

और लोग भी फंसे, करोड़ों की स्कीम

कपड़ा व्यापारी मोहम्मद सादिक का कहना है कि उन्होंने 5.5 लाख रुपए निवेश किए थे। कहा गया था कि कंपनी ने संभल शहर में एक ऑफिस खोला है और एक एप लॉन्च किया है जो निवेश, रिटर्न आदि सब दिखाएगा। आज तक उन्हें सिर्फ चकित चेहरा मिला एक भी रुपया नहीं।

मोहम्मद रेहान, एक अन्य पीड़ित, बताते हैं कि उन्होंने 2 लाख रुपए का पर्सनल लोन लेकर यह निवेश किया था क्योंकि उन्हें 30–40% रिटर्न प्रति महीने की बात सुनाई गई थी। शुरुआत में कुछ पैसे मिले थे, लेकिन फिर रिटर्न बंद हो गया। अब वह बैंक ईएमआई और क्रेडिट कार्ड से बकाया चुका रहे हैं।

क्या बोले हबीब के वकील?

रविवार को जावेद हबीब के वकील पवन कुमार थाना पहुंचे और पुलिस को बताया कि हबीब की तबीयत ठीक नहीं है, उन्हें हृदय संबंधी परेशानी है। साथ ही, हाल ही में उनके पिता का निधन भी हुआ है, जिस वजह से वे थाने नहीं आ सके। वकील ने भरोसा दिलाया कि हबीब पुलिस जांच में पूरा सहयोग करेंगे और समय आने पर खुद भी बयान देने के लिए हाजिर होंगे।

पहले भी विवादों में रहे हैं जावेद हबीब

यह पहला मौका नहीं है जब जावेद हबीब विवादों में आए हैं। साल 2022 में उनका एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह एक महिला के बाल काटते वक्त थूकते नजर आए थे। वीडियो में उन्होंने कहा था, “मेरे थूक में जान है”, जिसके बाद सोशल मीडिया पर जबरदस्त बवाल हुआ था। मामले में उनके खिलाफ केस भी दर्ज हुआ और बाद में उन्होंने माफी मांगी थी।

कौन हैं जावेद हबीब?

जावेद हबीब भारत के सबसे मशहूर हेयर स्टाइलिस्ट्स में से एक हैं। देशभर में उनके करीब 900 से ज्यादा सैलून और 60 हेयर ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट हैं। ‘जावेद हबीब हेयर एंड ब्यूटी लिमिटेड’ फैशन इंडस्ट्री में एक बड़ा नाम है और ये फेमिना मिस इंडिया जैसे बड़े इवेंट्स के साथ भी जुड़ी रही है।

लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में उनका नाम 24 घंटे में 410 लोगों के बाल काटने के लिए दर्ज है। फोर्ब्स की एक रिपोर्ट के अनुसार उनकी नेटवर्थ 265 करोड़ रुपये से अधिक थी और उनकी सालाना कमाई लगभग 30 करोड़ रुपये आंकी गई थी।

अब आगे क्या?

जांच एजेंसियां इस पूरे मामले को बेहद गंभीरता से देख रही हैं। अगर जावेद हबीब और उनके परिवार ने जांच में सहयोग नहीं किया तो आगे गिरफ्तारी की नौबत भी आ सकती है।

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Karandeep Singh Rana Missing: देहरादून का करनदीप 19 दिन से लापता, मर्चेंट नेवी से रहस...

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Karandeep Singh Rana Missing: देहरादून के रहने वाले 22 वर्षीय करनदीप सिंह राणा पिछले 19 दिनों से लापता हैं और अब तक उनका कोई पता नहीं चल पाया है। करनदीप मर्चेंट नेवी में सीनियर डेक कैडेट के पद पर कार्यरत थे और 20 सितंबर को वह उस जहाज से रहस्यमय तरीके से गायब हो गए जिस पर वह ड्यूटी कर रहे थे। इस घटना ने उनके परिवार की ज़िंदगी जैसे थाम दी है। मां शशि राणा और बहन सिमरन राणा दर-दर भटक रही हैं, लेकिन न तो शिपिंग कंपनी से संतोषजनक जवाब मिल रहा है, न ही सरकार से कोई ठोस मदद मिली है।

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आखिरी बातचीत और गायब होने की कहानी- Karandeep Singh Rana Missing

करनदीप 18 अगस्त को सिंगापुर से एमटी फ्रंट प्रिंसेस नाम के जहाज पर सवार हुए थे। जहाज इराक से होते हुए चीन की ओर जा रहा था। 20 सितंबर को दोपहर करीब 2:30 बजे करनदीप ने अपने परिवार से आखिरी बार बात की। सब कुछ सामान्य था, लेकिन उसके कुछ ही घंटों बाद उन्हें “लापता” घोषित कर दिया गया।

 

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शिपिंग कंपनी के मुताबिक, करनदीप श्रीलंका और सिंगापुर के बीच समुद्र में कहीं लापता हुए। जहाज चार दिन तक श्रीलंका में खड़ा रहा और तलाशी अभियान भी चलाया गया, लेकिन कोई ठोस सुराग नहीं मिला।

CCTV नहीं? परिवार को नहीं हजम

करनदीप की बहन सिमरन ने जब कंपनी से जहाज का CCTV फुटेज मांगा, तो उन्हें जवाब मिला कि जहाज नया है और उसमें कैमरे ही नहीं लगे हैं। यह बात परिवार को पूरी तरह से अस्वीकार्य लग रही है। एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऑपरेट करने वाले जहाज में CCTV न होना खुद एक सवाल बन गया है।

मिला सिर्फ एक जूता और कैमरा

करनदीप को जिस जगह पर आखिरी बार देखा गया था, वहां से उनका एक जूता और एक कैमरा बरामद हुआ। सिमरन ने बताया कि करनदीप को हर रात ड्यूटी के बाद चीफ ऑफिसर को फोटो भेजनी होती थी। माना जा रहा है कि वह गायब होने से ठीक पहले वही फोटो खींचने गए थे। DG शिपिंग ने यह जानकारी दो दिन बाद दी, लेकिन न कोई तस्वीर दी गई, न ही कोई प्रमाण।

चीन में जांच, लेकिन परिवार अंधेरे में

अब यह जहाज चीन पहुंच चुका है, जहां जांच शुरू की गई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कैप्टन, चीफ ऑफिसर समेत चार अधिकारियों के बयान लिए जा चुके हैं। परिवार के दो सदस्यों को जांच में शामिल करने की बात कही गई है, लेकिन उन्हें यह नहीं बताया गया कि जाना कब और कहां है।

सरकार से कोई मदद नहीं

सिमरन राणा बताती हैं कि उन्होंने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और तमाम संबंधित अधिकारियों को मेल और पत्र लिखे, लेकिन अभी तक कोई ठोस जवाब नहीं मिला। करनदीप की मां की हालत बेहद खराब है। वह बार-बार बस यही कहती हैं – “मैंने कंपनी को अपना बेटा दिया था, मुझे मेरा बेटा चाहिए… वैसा ही जैसा वो गया था।”

सोशल मीडिया पर चल रही अपील

करनदीप के मामले को लेकर सोशल मीडिया पर लगातार पोस्ट शेयर किए जा रहे हैं, लोग उनकी तलाश की अपील कर रहे हैं। लेकिन परिवार की सबसे बड़ी चिंता है कि इतने दिन बीतने के बाद भी अब तक न तो सच्चाई सामने आई है, न ही कोई कार्रवाई की रफ्तार दिख रही है।

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ATMANIRBHAR BHARAT: ऑर्डर पर ऑर्डर! सरकार हथियार ऐसे खरीद रही जैसे सेल लगी हो, 6 महीन...

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ATMANIRBHAR BHARAT: भारत की सेना को आधुनिक और पूरी तरह स्वदेशी बनाने की दिशा में सरकार लगातार तेज़ी से कदम बढ़ा रही है। इसकी ताजा मिसाल है वित्त वर्ष 2025-26 में रक्षा खरीद के लिए किए गए बजट खर्च का आंकड़ा, जिसने सबका ध्यान खींचा है। इस साल रक्षा मंत्रालय को कैपिटल एक्सपेंडिचर यानी रक्षा उपकरणों की खरीद, अनुसंधान और इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए 1.80 लाख करोड़ रुपये का बजट मिला था। अब मंत्रालय ने खुलासा किया है कि सिर्फ छह महीनों के भीतर ही इस राशि का 51.23% यानी करीब 92,211 करोड़ रुपये खर्च कर दिया गया है।

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क्यों ज़रूरी है ये खर्च? ATMANIRBHAR BHARAT

रक्षा मंत्रालय ने बताया कि इतना तेज़ खर्च इसलिए किया गया है ताकि आधुनिक हथियार और सिस्टम समय पर डिलीवर हो सकें। इनमें मुख्य रूप से एयरक्राफ्ट, एयरो इंजन, पनडुब्बियां, जहाज, हथियार प्रणाली और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर उपकरण शामिल हैं। इससे भारतीय सेना, वायुसेना और नौसेना को तकनीकी रूप से और मजबूत बनाने में मदद मिलेगी।

मंत्रालय के अनुसार, अगर इस गति से खरीद प्रक्रिया जारी रही, तो सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण की योजनाएं समय से पहले पूरी हो सकती हैं। इससे भारत की युद्धक क्षमताएं न केवल बढ़ेंगी, बल्कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था भी पहले से ज्यादा मजबूत होगी।

स्वदेशीकरण को मिल रही है प्राथमिकता

रक्षा बजट में स्वदेशी हथियारों और तकनीक को लेकर खास फोकस दिख रहा है। सरकार की कोशिश है कि देश की सुरक्षा जरूरतों को देश में बने उत्पादों से पूरा किया जाए। वित्तीय वर्ष 2025-26 में घरेलू उद्योगों के लिए 1.11 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम अलग रखी गई है। खास बात यह है कि इसमें से 45% राशि अब तक खर्च भी की जा चुकी है।

यह फैसला आत्मनिर्भर भारत (Aatmanirbhar Bharat) मिशन को मजबूत करता है, जिसका उद्देश्य है कि भारत अपनी रक्षा ज़रूरतों के लिए बाहरी देशों पर निर्भर न रहे। इस मुहिम का फायदा छोटे और मझोले उद्योगों (MSMEs), स्टार्टअप्स और नए इनोवेटर्स को भी मिल रहा है, जो अब इस क्षेत्र में बड़े स्तर पर भागीदारी कर रहे हैं।

पिछले साल भी रहा अच्छा रिकॉर्ड

इससे पहले, वित्तीय वर्ष 2024-25 में भी रक्षा मंत्रालय ने आवंटित पूंजीगत खर्च का 100% उपयोग किया था। उस समय कुल बजट 1.59 लाख करोड़ रुपये था। इस बार ये आंकड़ा और बढ़ाकर 1.80 लाख करोड़ रुपये किया गया है, जिसमें अब तक आधा खर्च किया जा चुका है और वो भी साल के पहले छह महीनों में ही।

आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ी सफलता

पिछले पांच सालों में रक्षा क्षेत्र के पूंजीगत खर्च में करीब 60% की बढ़ोतरी हुई है। इसका सीधा मतलब है कि भारत अब अपने हथियार और तकनीक खुद तैयार करने की ओर बड़ी तेजी से बढ़ रहा है।

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तालिबानी मंत्री के स्वागत पर भड़के Javed Akhtar, बोले – “मेरा सिर शर्म से झुक गया”

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Javed Akhtar: बॉलीवुड के मशहूर लेखक और शायर जावेद अख्तर अपने बेबाक बयानों के लिए हमेशा सुर्खियों में रहते हैं। देश-दुनिया के तमाम मुद्दों पर खुलकर बोलने वाले जावेद अख्तर इस बार अफगानिस्तान के तालिबानी विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी के भारत दौरे को लेकर चर्चा में हैं। खासकर यूपी के देवबंद में मुत्तकी के ‘भव्य स्वागत’ पर उन्होंने नाराजगी जताई है।

जावेद अख्तर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पहले ट्विटर) पर एक तीखा पोस्ट करते हुए कहा, “मेरा सिर शर्म से झुक जाता है।” उनका ये बयान देवबंद में तालिबानी मंत्री के स्वागत के बाद आया, जहां फूलों से उनका स्वागत हुआ और उन्हें विशिष्ट अतिथि जैसा सम्मान दिया गया।

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क्या बोले जावेद अख्तर? Javed Akhtar

अपने एक्स पोस्ट में जावेद अख्तर ने लिखा,

“मेरा सिर शर्म से झुक जाता है, जब देखता हूं कि दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन तालिबान के एक प्रतिनिधि का भारत में इस तरह स्वागत किया गया। देवबंद को भी शर्म आनी चाहिए कि उसने अपने ‘इस्लामिक हीरो’ का इतना सम्मान किया। ये वही लोग हैं जिन्होंने लड़कियों की शिक्षा पर पूरी तरह से बैन लगा दिया है। मेरे भारतीय भाइयों और बहनों, हमारे साथ क्या हो रहा है?”

सोशल मीडिया पर बंटा रिएक्शन

जावेद अख्तर के इस पोस्ट पर सोशल मीडिया पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। कई यूज़र्स ने उनका समर्थन करते हुए लिखा कि ये वाकई चिंताजनक है कि तालिबान जैसे संगठन के मंत्री का स्वागत किया जा रहा है। वहीं कुछ लोगों ने उल्टा जावेद अख्तर पर ही सवाल उठा दिए।

किसी ने उन्हें याद दिलाया कि भारत में महिलाओं की स्थिति भी कई बार सवालों के घेरे में रही है, तो किसी ने फिल्म शोले का डायलॉग शेयर करते हुए तंज कस दिया – “लोहा ही लोहे को काटता है।”

देवबंद में कैसे हुआ तालिबानी मंत्री का स्वागत?

शनिवार को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर स्थित देवबंद मदरसे में आमिर खान मुत्तकी का जबरदस्त स्वागत किया गया। उनके आगमन को लेकर खास तैयारियां की गई थीं। करीब 15 प्रमुख उलेमाओं की मौजूदगी रही और इलाके में भारी सुरक्षा व्यवस्था थी। मदरसे के अंदर प्रवेश करते वक्त तालिबानी मंत्री पर फूलों की बारिश की गई, और वहां मौजूद भीड़ ने जमकर फोटो-वीडियो बनाए। इस आयोजन को लेकर स्थानीय स्तर पर काफी चर्चाएं रहीं।

मुत्तकी की भारत यात्रा और सियासी मायने

अमीर खान मुत्तकी इस समय भारत के 6 दिवसीय दौरे पर हैं। इससे पहले वे दिल्ली में विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात कर चुके हैं। यह भारत और तालिबान के बीच 2021 में अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद पहली बड़ी आधिकारिक बातचीत मानी जा रही है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से अस्थायी यात्रा छूट मिलने के बाद मुत्तकी भारत पहुंचे हैं।

दिल्ली में तालिबान की पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों को न बुलाने पर विवाद भी खड़ा हो गया था। हालांकि बाद में जब दूसरी प्रेस कांफ्रेंस हुई तो उसमें महिला पत्रकारों को शामिल किया गया। मुत्तकी ने सफाई देते हुए कहा कि पहली बार सिर्फ चुनिंदा लोगों को ही बुलाया गया था।

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Bihar Election 2025: लालू से सिंबल मिला, तेजस्वी ने छीन लिया! सीट बंटवारे से पहले RJD...

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Bihar Election 2025: बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारियां तेज हो चुकी हैं और इस बीच राजद (राष्ट्रीय जनता दल) में बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। सोमवार की शाम, जब पार्टी द्वारा कुछ नेताओं को चुनावी चिन्ह (सिंबल) जारी किया गया था, तो उसी रात उन्हें यह चिन्ह वापस करने के लिए कह दिया गया। यह घटनाक्रम तब हुआ जब पार्टी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बेटे और राजद के नेता तेजस्वी यादव दिल्ली से लौटे थे।

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ये है मामला- Bihar Election 2025

रिपोर्ट्स के मुताबिक, सोमवार शाम जिन नेताओं को चुनाव चिन्ह जारी किए गए थे, रात होते-होते उन्हें फिर से फोन कर के वापस बुला लिया गया और कहा गया कि वे यह चिन्ह लौटा दें। हालांकि, पार्टी की ओर से यह स्पष्ट नहीं किया गया कि अचानक यह फैसला क्यों लिया गया। कुछ नेताओं का कहना था कि जिन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर वायरल किया जा रहा था, उनमें दिखाए गए चिन्ह असल में सिर्फ एआई द्वारा तैयार किए गए थे और किसी को भी वास्तविक चुनावी चिन्ह नहीं दिया गया था।

इस घटनाक्रम के बाद, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के पटना स्थित आवास पर भारी हलचल मच गई। दिल्ली से लौटने के बाद, उनके आवास के बाहर टिकट के लिए इंतजार कर रहे नेताओं और कार्यकर्ताओं की भीड़ जुट गई। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी के कुछ नेताओं को अंदर बुलाया गया और वे पीले लिफाफों के साथ बाहर निकले, जिससे इस बात की संभावना जताई जा रही है कि ये लिफाफे पार्टी की टिकट वितरण प्रक्रिया से जुड़ी जानकारी दे रहे थे।

सीट बंटवारे पर भी उलझनें जारी

यह घटनाक्रम ऐसे समय पर हुआ है, जब बिहार में महागठबंधन और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे को लेकर विवाद खुलकर सामने आ चुका है। अब तक, महागठबंधन में सीटों के बंटवारे पर कोई औपचारिक सहमति नहीं बन पाई है। बताया जा रहा है कि लालू प्रसाद यादव नहीं चाहते कि कांग्रेस 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में 54 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़े, जबकि कांग्रेस इस समय मुख्यमंत्री पद के चेहरे पर भी कोई स्पष्ट फैसला नहीं कर पाई है।

वहीं, दूसरी ओर, सत्तारूढ़ एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) ने रविवार (12 अक्टूबर) को अपनी सीट बंटवारे की घोषणा कर दी है। इसके तहत, जेडी(यू) और भाजपा 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी, जबकि बाकी सीटें छोटे सहयोगियों के लिए छोड़ दी गई हैं।

राजद के रणनीतिक बदलाव

हाल ही में जदयू छोड़ने वाले सुनील सिंह (परबत्ता) और मटिहानी से कई बार विधायक रहे नरेंद्र कुमार सिंह उर्फ बोगो समेत कुछ प्रमुख नेताओं को राजद का चुनाव चिन्ह सौंपा गया था। यह कदम तेजस्वी यादव की एक रणनीति के तहत उठाया गया था, जिसके तहत वे भूमिहार समुदाय के एक महत्वपूर्ण हिस्से को राजद के साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे थे। भूमिहार समुदाय पारंपरिक रूप से भाजपा और एनडीए का समर्थक माना जाता है, और राजद इस समुदाय को अपने पाले में लाने की दिशा में काम कर रहा है।

राजद के कई मौजूदा विधायक भी इस घटनाक्रम का हिस्सा बने और वे लालू प्रसाद यादव के आवास से पार्टी का चुनाव चिन्ह लेकर बाहर निकले। इनमें प्रमुख नाम ‘भाई वीरेंद्र’, चंद्रशेखर यादव (मधेपुरा), और इसराइल मंसूरी (कांटी) जैसे नेता शामिल हैं।

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वो स्टेशन जहां सिर्फ एक लड़की के लिए रुकती थी ट्रेन, जानिए जापान की Kyu-Shirataki Rai...

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Kyu-Shirataki Railway Station: इस दौर में, जहां हर चीज़ को प्रॉफिट और लॉस के तराजू पर तौला जाता है, वहीं जापान ने एक ऐसा फ़ैसला लिया जो आज भी इंसानियत की सबसे खूबसूरत मिसालों में गिना जाता है। ये कहानी है जापान के होक्काइदो द्वीप की एक शांत जगह पर बने छोटे से रेलवे स्टेशन क्यू-शिराताकी की। एक ऐसा स्टेशन जो सुनसान सा था, जहां कोई भीड़ नहीं थी, ना ही कोई धंधा। लेकिन फिर भी ये स्टेशन सालों तक खुला रहा। वजह जानकर आप भी मुस्कुरा देंगे – ये स्टेशन सिर्फ एक हाई स्कूल छात्रा, काना हराडा के लिए चालू रखा गया था।

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स्टेशन जो एक सपने की तरह था- Kyu-Shirataki Railway Station

जापान रेलवे इस स्टेशन को बंद करने वाला था। यहां से ना तो कोई मालगाड़ी जाती थी, ना ही यात्रीगणों की गहमागहमी दिखती थी। प्रॉफिट के लिहाज से देखें तो इसे बंद करना एक “बिज़नेस डिसीज़न” बनता था।

 

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लेकिन जब अधिकारियों को पता चला कि इसी स्टेशन से एक लड़की रोज़ स्कूल जाती है, और अगर ये बंद हो गया तो उसे रोज़ 73 मिनट पैदल चलकर दूसरी ट्रेन पकड़नी पड़ेगी  तब सब कुछ बदल गया।

रेलवे ने ठान लिया कि जब तक काना अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर लेती, तब तक स्टेशन चालू रहेगा।

सिर्फ उसी के लिए रुकती थी ट्रेन

सालों तक, इस स्टेशन पर सिर्फ दो ट्रेनें रुकती थीं एक सुबह उसे स्कूल ले जाने के लिए, और दूसरी शाम को वापस लाने के लिए।

काना के लिए ये सफर आसान नहीं था। उसे किसी भी एक्स्ट्रा एक्टिविटी में हिस्सा नहीं लेना पड़ता था क्योंकि ट्रेन का टाइम फिक्स था। कई बार क्लास खत्म होते ही उसे दौड़कर स्टेशन पहुंचना पड़ता था ताकि ट्रेन न छूटे। लेकिन वो जानती थी कि यही एक रास्ता है उसके सपनों तक पहुंचने का।

जब स्टेशन ने कहा अलविदा

मार्च 2016 में, जब काना ने हाई स्कूल से ग्रेजुएट किया, तब जाकर क्यू-शिराताकी स्टेशन को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया। उसके आखिरी स्कूल दिन के साथ ही स्टेशन का सफर भी खत्म हुआ।

ये कहानी उस वक्त पूरी दुनिया में वायरल हुई। हर किसी ने जापान रेलवे के इस फैसले को सलाम किया। क्योंकि यहां न कोई वोट बैंक था, न ही कोई बड़ा आंदोलन। बस एक लड़की का सपना था… और एक सिस्टम जिसने उसे टूटने नहीं दिया।

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