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Baghpat News: बागपत के श्मशान घाट में गायब हो रही अस्थियां, रहस्यमयी घटनाओं ने गांव म...

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Baghpat News: रात का अंधेरा, श्मशान घाट की खामोशी और जलती चिताओं से उठता धुआं… इन सब के बीच बागपत के एक छोटे से गांव में कुछ ऐसा हो रहा है, जिसे सुनकर किसी का भी दिल थम जाए। यहां लोग कहते हैं कि मुर्दे भी अब सुरक्षित नहीं हैं, क्योंकि श्मशान घाट में अस्थियां रहस्यमयी तरीके से गायब हो रही हैं। हिम्मतपुर सूजती गांव में कुछ महीने से लगातार हो रही इन घटनाओं ने गांववालों को हैरान और डरा दिया है। अब तो यह श्मशान घाट गांववालों के लिए एक रहस्यमयी और डरावनी जगह बन चुका है, जहां रात के अंधेरे में न सिर्फ मुर्दे, बल्कि ज़िंदा लोग भी खौ़फ के साए में जीने को मजबूर हो गए हैं।

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गायब हो रही अस्थियां और तंत्र-मंत्र का सामान- Baghpat News

कुछ दिन पहले गांव में एक व्यक्ति का निधन हुआ था। उसकी पारंपरिक अंतिम क्रिया करने के बाद परिवार के लोग जब तीसरे दिन अस्थियां लेने श्मशान गए, तो जो दृश्य सामने आया, वह हैरान करने वाला था। चिता के पास दीपक जल रहे थे, कुछ उपले सुलग रहे थे, और वहां तंत्र-मंत्र की सामग्री बिखरी पड़ी थी, लेकिन अस्थियां गायब थीं।

बीजेंद्र, जिनके भाई का हाल ही में अंतिम संस्कार हुआ था, बताते हैं, “जब हम अस्थियां लेने गए, तो देखा कि चिता के पास कुछ अजीब सा था। शव का एक हिस्सा बाहर था, दीपक जल रहे थे और कुछ अवशेष गायब थे। समझ में नहीं आया कि यह किसने किया।”

गांववालों का डर बढ़ता जा रहा है

यह पहली बार नहीं था जब ऐसी घटनाएं सामने आई थीं। पिछले आठ महीनों से लगातार ऐसी घटनाएं हो रही हैं। पहले तो ग्रामीणों को लगता था कि यह किसी जानवर का काम होगा, लेकिन जब हर बार चिता के पास पूजा सामग्री, अगरबत्तियां, नींबू और राख का ढेर मिलता, तो गांव वालों के मन में संदेह और डर बढ़ने लगा।

गांववालों ने श्मशान घाट पर सुरक्षा बढ़ाने के लिए रात में पहरा भी लगाना शुरू कर दिया। लेकिन जब वे सुबह लौटे, तो वही दृश्य देखने को मिला अस्थियां गायब और तंत्र-मंत्र का सामान बिखरा हुआ। अब यह स्थिति गांव में अंधविश्वास और डर का रूप ले चुकी है।

तांत्रिक साधना की अफवाहें

कुछ लोग मानते हैं कि श्मशान पर कोई तांत्रिक साधक काले जादू के लिए मुर्दों की अस्थियों का उपयोग करता है। किसी का कहना है कि श्मशान के दक्षिणी हिस्से में रात को अजीब सी रोशनी दिखाई देती है, जबकि कुछ लोग दावा करते हैं कि वहां से मंत्रोच्चारण जैसी आवाजें आती हैं। हालांकि, इन अफवाहों की कोई ठोस पुष्टि नहीं हो पाई है, फिर भी गांव में डर का माहौल इतना गहरा हो गया है कि अब गांव की महिलाएं सूर्यास्त के बाद श्मशान की दिशा में देखना भी पसंद नहीं करतीं।

गांववालों की बढ़ती बेचैनी

गांव के बुजुर्ग किसान रामपाल सिंह कहते हैं, “हमने तो जिंदगी में बहुत कुछ देखा है, लेकिन कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि चिता से अस्थियां गायब हो जाएं। अब तो हालत ये हो गई है कि जब भी कोई अस्थियां लेने जाता है, तो दो-तीन लोग उसके साथ चलते हैं, डर है कि कहीं कुछ गलत न हो जाए।”

गांव के बच्चे अब श्मशान घाट के पास भी नहीं जाते। शाम होते ही घाट की तरफ जाने वाला रास्ता सुनसान हो जाता है। यह डर अब गांव के बच्चों और युवाओं तक फैल चुका है, और लोग अब श्मशान के पास से गुजरते समय अपनी चाल तेज कर लेते हैं। किसी को दीपक दिख जाता है, तो कोई कहता है कि उसने वहां परछाई को चलते देखा।

ग्राम प्रधान का बयान

ग्राम प्रधान सनोज ने बताया, “पहले तो ऐसी अफवाहें सुनने को मिलती थीं, लेकिन अब घटनाएं सामने आ रही हैं। लोग डर के साए में जी रहे हैं। यह गंभीर मामला है। हम अधिकारियों से मिलकर इस पर कार्रवाई करने की योजना बना रहे हैं, ताकि पूरी सच्चाई सामने आ सके।”

गांववालों का मानना है कि श्मशान घाट में कुछ तांत्रिक साधक अस्थि तंत्र साधना करते हैं। अब यह बहस नहीं बल्कि डर और बेचैनी का मुद्दा बन चुका है। उनका सवाल है, “अगर इस धरती पर मुर्दे भी सुरक्षित नहीं हैं, तो जिंदा लोग कैसे चैन से रह सकते हैं?”

अभी तक कोई औपचारिक शिकायत नहीं

अब तक इस मामले में कोई औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं की गई है, लेकिन हिम्मतपुर सूजती का श्मशान घाट अब गांववालों के लिए एक तिलिस्मी जगह बन चुका है। लोग रात के अंधेरे में श्मशान के पास से गुजरते हुए तेज़ी से अपने कदम बढ़ा देते हैं। कोई कहता है कि उसने वहां दीपक जलते देखे, तो कोई दावा करता है कि उसने वहां एक परछाई चलते हुए देखी। अफवाहों का दौर बढ़ता जा रहा है और डर हर घर तक पहुंच चुका है।

सवालों का अंधेरा

अब सवाल यह उठता है कि वह शख्स कौन है जो रात के अंधेरे में श्मशान पहुंचकर अस्थियां उठा ले जाता है? क्या यह सच में तांत्रिकों का काम है, या फिर किसी मानसिकता का नतीजा? इन सवालों के जवाब अभी भी धुएं में लिपटे हुए हैं, जैसे वह धुआं जो श्मशान से हर रात उठता है।

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Sikhism in Uttarakhand: देवभूमि में सिखों की मौजूदगी…जब नानक से लेकर गोबिंद तक ...

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Sikhism in Uttarakhand: जब बात उत्तराखंड की होती है, तो ज़हन में सबसे पहले बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियाँ, बहती गंगा और चारधाम यात्रा की भीड़ नजर आती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसी देवभूमि में सिख धर्म की भी एक गहरी और ऐतिहासिक जड़ें बसी हैं?

उत्तराखंड सिर्फ हिंदू तीर्थों का प्रदेश नहीं है यहां ऐसी जगहें भी हैं जहां गुरु नानक देव जी की चरण धूल पड़ी, जहां गुरु गोबिंद सिंह जी ने ध्यान लगाया और जहां आज भी उनकी आवाज़ लंगर और अरदास के रूप में गूंजती है।

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यहां के गुरुद्वारे न केवल सिख श्रद्धालुओं के लिए आस्था के केंद्र हैं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए भी एक सुकून भरी मंज़िल हैं, जो आध्यात्म और शांति की तलाश में है।

आइए, जानते हैं कि उत्तराखंड में सिखों की उपस्थिति कितनी है, उनका इतिहास इस भूमि से कैसे जुड़ा है और कौन-कौन से गुरुद्वारे इस विरासत को आज भी संजोए हुए हैं।

उत्तराखंड में कितने हैं सिख? Sikhism in Uttarakhand

वर्तमान जनगणना के अनुसार, उत्तराखंड में सिखों की कुल आबादी लगभग 2,36,340 है। हालांकि सिख समुदाय की संख्या राज्य की कुल जनसंख्या का छोटा हिस्सा है, लेकिन इनकी उपस्थिति विशेष रूप से ऊधम सिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून और नैनीताल जिलों में काफ़ी मजबूत है।

इन चार जिलों को छोड़ दें तो बाकी इलाकों में सिखों की जनसंख्या में गिरावट देखने को मिली है। उदाहरण के तौर पर, ऊधम सिंह नगर में जहां राज्य के दो-तिहाई सिख रहते हैं, वहाँ उनकी जनसंख्या में 15.06% की वृद्धि दर्ज हुई है। इसके मुकाबले हिन्दू समुदाय की 32.62%, मुस्लिम की 46.33% और ईसाइयों की 56.29% वृद्धि हुई है।

उत्तराखंड और सिख इतिहास का गहरा रिश्ता

आपकी जानकारी के लिए बता दें, सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का उत्तराखंड से विशेष लगाव रहा है। उन्होंने अपनी तीसरी उदासी (धर्म प्रचार यात्रा) के दौरान साल 1514 में करतारपुर से यात्रा शुरू कर कांगड़ा, कुल्लू और देहरादून होते हुए अल्मोड़ा, रानीखेत, नैनीताल और नानकमत्ता तक का सफर तय किया।

उनका संदेश था –
“नाम जपो, किरत करो, वंड छको”
यानी भगवान का नाम लो, मेहनत करो और जो कमाओ उसे मिल-बांट कर खाओ। यह संदेश आज भी गुरुद्वारों में चल रहे लंगर के रूप में जीवंत है, जहां हर जाति-धर्म के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं।

गुरु नानक देव जी के उत्तराखंड दौरे से जुड़ी कई प्रसिद्ध घटनाएं और चमत्कार आज भी स्थानीय गुरुद्वारों की पहचान हैं।

अब जानते हैं उत्तराखंड के प्रमुख सिख गुरुद्वारों के बारे में:

हेमकुंड साहिब (जिला चमोली)

ये गुरुद्वारा सिर्फ सिख धर्म का नहीं, बल्कि भारत का भी एक बेहद खास तीर्थ स्थल है। दुनिया का सबसे ऊंचा गुरुद्वारा, जो लगभग 15,200 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
यहाँ ऐसा माना जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह जी ने 20 वर्षों तक तप किया था।

गुरुद्वारा सिर्फ 5 महीने (मई से अक्टूबर) के लिए खुलता है, क्योंकि बाक़ी समय यहाँ बर्फबारी होती है। दिलचस्प बात ये है कि इसका ज़िक्र दसम ग्रंथ में भी आता है, और कुछ मान्यताएं इसे रामायण काल से भी जोड़ती हैं। कहते हैं, लक्ष्मण जी ने भी यहां तप किया था।

गुरु राम राय दरबार साहिब, देहरादून

देहरादून के बीचोंबीच स्थित यह दरबार साहिब इतिहास, संस्कृति और कला का बेहतरीन मेल है। बाबा राम राय जी द्वारा बनवाए गए इस गुरुद्वारे में सिख और इस्लामी आर्किटेक्चर का अनोखा संगम देखने को मिलता है।

गुरुद्वारे की दीवारों पर बनी भित्ति चित्र और जटिल नक्काशी इस जगह को सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि कलात्मक रूप से भी खास बनाते हैं। यह सालभर खुला रहता है, और यहां पहुंचना बेहद आसान है क्योंकि देहरादून में रेलवे और एयरपोर्ट दोनों ही मौजूद हैं।

नानकमत्ता साहिब: योगियों से संवाद की जगह

ऊधम सिंह नगर जिले का यह गुरुद्वारा उस ऐतिहासिक पल की याद दिलाता है जब गुरु नानक देव जी ने यहां आकर योगियों से संवाद किया था। इस जगह का पुराना नाम गोरखमत्ता था, लेकिन गुरु नानक देव जी के आगमन के बाद इसे नानकमत्ता साहिब कहा जाने लगा।

यहां का पीपल साहिब, दूध का कुआं और बावली साहिब आज भी उस समय की यादें समेटे हुए हैं। एक मान्यता के अनुसार, गुरु नानक देव जी के प्रभाव से यहां का सूखा पीपल का पेड़ भी हरा हो गया था।

रीठा साहिब: जब कड़वा फल मीठा हो गया

पिथौरागढ़ के इस गुरुद्वारे से जुड़ी एक बहुत ही दिलचस्प कथा है। कहते हैं कि जब गुरु नानक देव जी अपने शिष्य भाई मरदाना के साथ यहां पहुंचे और मरदाना ने भूख की शिकायत की, तो गुरुजी ने उन्हें रीठा का फल खाने को कहा। रीठा जो आमतौर पर कड़वा होता है, गुरुजी की कृपा से मीठा हो गया। आज भी इस गुरुद्वारे में प्रसाद के रूप में मीठा रीठा बांटा जाता है।

यह जगह बैसाखी के मौके पर लगने वाले मेले के लिए भी मशहूर है और अक्टूबर से मई के बीच यहां आने का सबसे अच्छा समय होता है।

इसलिए उत्तराखंड के ये गुरुद्वारे सिर्फ धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि वो संस्कृति, एकता, और सेवा के जीवंत प्रतीक हैं। यहां का हर गुरुद्वारा एक कहानी कहता है कभी तपस्या की, कभी चमत्कार की, कभी सेवा की। और इन कहानियों में छुपा है वो अनुभव, जो किसी किताब में नहीं, सिर्फ यहां आकर ही महसूस किया जा सकता है।

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Karwa Chauth 2025: जानें क्यों छलनी से देखना होता है चंद्रमा और पति का चेहरा?

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Karwa Chauth 2025: करवा चौथ का नाम सुनते ही हर विवाहित महिला के चेहरे पर एक अलग सी चमक और खुशी की लहर दौड़ जाती है। यह व्रत भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें प्यार, विश्वास और समर्पण की मिसाल देखी जाती है। करवा चौथ का पर्व विशेष रूप से सुहागिन महिलाओं के लिए है, जो अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करते हुए यह व्रत करती हैं। हर साल यह पर्व कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चौथी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 10 अक्टूबर, शुक्रवार को मनाया जाएगा।

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करवा चौथ का महत्व और व्रत की प्रक्रिया- Karwa Chauth 2025

करवा चौथ का व्रत एक तरह से विवाहित जीवन की सफलता और खुशहाली की कामना है। इस दिन महिलाएं पूरे दिन बिना पानी और भोजन के व्रत करती हैं। शाम को, पूजा की तैयारी करते वक्त महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और पूजा की थाली में दीपक, मिठाई, करवा (जल से भरा हुआ पात्र), और छलनी रखती हैं। सबसे खास बात यह है कि रात को जब चांद दिखता है, तो महिलाएं पहले छलनी से चांद को देखती हैं, फिर उसी छलनी से अपने पति का चेहरा देख कर व्रत खोलती हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर क्यों महिलाएं चांद और पति को छलनी से देखती हैं?

छलनी से चांद देखने की परंपरा का कारण

इस परंपरा के पीछे एक गहरा धार्मिक और पौराणिक कारण छिपा हुआ है। कहा जाता है कि करवा चौथ पर महिलाएं छलनी से चांद को इसलिए देखती हैं, क्योंकि छलनी में कई छोटे-छोटे छेद होते हैं, जिनसे चांद की रोशनी होकर गुजरती है। यह रोशनी सौभाग्य और दीर्घायु का प्रतीक मानी जाती है। माना जाता है कि जब महिलाएं छलनी से चांद को देखती हैं, तो चांद की रोशनी उनके जीवन में सुख और समृद्धि लेकर आती है। इसके बाद जब महिलाएं उसी छलनी से अपने पति का चेहरा देखती हैं, तो उनका पति लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य का आनंद उठाता है। यही कारण है कि इस व्रत को बिना छलनी से चांद और पति को देखे बिना अधूरा माना जाता है।

पौराणिक कथा का रहस्य

यह परंपरा एक प्राचीन पौराणिक कथा से जुड़ी हुई है। कथानुसार, चंद्र देव को अपनी सुंदरता पर बहुत गर्व था। एक दिन उन्होंने भगवान गणेश का मजाक उड़ाया और उनकी महिमा को कम करके दिखाया। इससे गणेशजी क्रोधित हो गए और उन्होंने चंद्र देव को श्राप दे दिया कि जो भी उन्हें देखेगा, वह कलंकित हो जाएगा। बाद में, चंद्र देव ने अपनी गलती मानी और गणेशजी से क्षमा मांगी। गणेशजी ने चंद्र देव को माफ कर दिया, लेकिन यह कहा कि उनका श्राप केवल एक दिन के लिए रहेगा। इस दिन को “कलंक चतुर्थी” के नाम से जाना जाता है, जो भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चौथी तिथि को आता है। तब से यह परंपरा बन गई कि महिलाएं चांद को सीधे नहीं देखतीं, बल्कि छलनी से देखती हैं ताकि किसी प्रकार का कलंक न लगे।

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Bihar Politics: शब्द जो बनाते और बिगाड़ते हैं राजनीति…बिहार की ‘जंगलराज’ कहानी

Bihar Politics: बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव की सत्ता का पर्याय बने ‘सामाजिक न्याय’ के नारे के साथ-साथ ‘जंगलराज’ शब्द ने भी एक जादू की तरह दशकों तक गूंज मचाई। यह शब्द न केवल लालू-राबड़ी के दौर की राजनीति को परिभाषित करता है, बल्कि आज भी बिहार की राजनीति में एक शक्तिशाली राजनीतिक हथियार बना हुआ है।

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लेकिन सवाल उठता है कि ‘जंगलराज’ शब्द बिहार की राजनीति में कैसे आया? क्या यह कोई राजनीतिक नारा था, या फिर इसका कोई और इतिहास है? इस सवाल का जवाब एक दिलचस्प कहानी के साथ जुड़ा है, जो बताती है कि शब्द कैसे किसी धारणा को जन्म देते हैं और उसी धारणा के आधार पर किसी नेता या सत्ता की पूरी तस्वीर खींची जाती है।

‘जंगलराज’ का असली उद्भव: पटना हाईकोर्ट की टिप्पणी- Bihar Politics

आइए चलते हैं लगभग 28 साल पीछे, जब बिहार की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था काफी जर्जर स्थिति में थी। 1997 में चारा घोटाले में फंसे लालू प्रसाद यादव ने 25 जुलाई को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। जेल जाने से पहले उन्होंने सत्ता की बागडोर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सौंप दी। उस साल बिहार की राजनीति में कोहराम मचा हुआ था और राज्य की मशीनरी पूरी तरह ठप पड़ चुकी थी।

पटना शहर में उस समय मॉनसून की भारी बारिश ने बाढ़ की स्थिति पैदा कर दी थी। पूरे शहर में पानी जमा हो चुका था, कई कॉलोनियों में पानी घरों तक घुस चुका था। कीचड़ और गंदगी के कारण हालत नर्क जैसी थी। इस समय एक सामाजिक कार्यकर्ता कृष्ण सहाय ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें पटना नगर निगम, बिहार जल निगम और अन्य विभागों की उदासीनता पर सवाल उठाए गए थे।

इसी मामले की सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट की खंडपीठ (जस्टिस बीपी सिंह और जस्टिस धर्मपाल सिन्हा) ने कहा, “बिहार में राज्य सरकार नाम की कोई चीज़ नहीं है और जंगलराज कायम है। यहां मुट्ठी भर भ्रष्ट नौकरशाह प्रशासन चला रहे हैं।” कोर्ट ने कहा कि पटना शहर का ड्रेनेज और सीवरेज सिस्टम पूरी तरह से विफल है, और राज्य के निकायों की उदासीनता को “आपराधिक उदासीनता” कहा जा सकता है।

इस टिप्पणी में कोर्ट ने पटना को “भारत की सबसे गंदी राजधानी” तक कहा और सवाल उठाया कि ऐसी संस्थाओं की जनता को क्या जरूरत है जो अपना संवैधानिक दायित्व भी निभाने में असफल रहती हैं।

जंगलराज का राजनीतिक सफर और लालू-राबड़ी का सफर

दिलचस्प बात यह है कि यह ‘जंगलराज’ शब्द किसी राजनीतिक दल का घोषणापत्र नहीं था और न ही किसी राजनीतिक विरोध की पहली आवाज। यह एक न्यायिक टिप्पणी थी, लेकिन जल्दी ही यह शब्द राजनीति का हिस्सा बन गया। 2000 के विधानसभा चुनाव में जनता ने फिर से लालू-राबड़ी को चुना, लेकिन विपक्ष ‘जंगलराज’ शब्द का खूब इस्तेमाल करने लगा।

फरवरी 2000 में राबड़ी देवी ने एक चुनावी रैली में अपने समर्थकों से कहा था, “हाँ बिहार में जंगलराज है, जंगल में एक ही शेर रहता है और सभी लोग उस शेर का शासन मानते हैं।” यह बयान उस दौर की राजनीतिक समझ को दर्शाता था, जब बिहार में अपराध, अपहरण, रंगदारी और माफिया का बोलबाला था।

1990 में सामाजिक न्याय का वादा करके सत्ता में आए लालू यादव पर भ्रष्टाचार, जातिवाद, तुष्टिकरण और बिगड़ती कानून व्यवस्था के आरोप लगने लगे। वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर बताते हैं कि ‘जंगलराज’ शब्द को विपक्ष ने अपनाया और हर बार सत्ता पर सवाल उठाने के लिए इसका सहारा लिया गया। खासतौर से जब किडनैपिंग की घटनाओं में वृद्धि हुई, तब यह शब्द और भी ज्यादा जोर पकड़ने लगा।

‘जंगलराज’ बनाम ‘सुशासन’ का चुनावी संग्राम

2005 के विधानसभा चुनाव में बिहार की राजनीति ने नया मोड़ लिया। उस वक्त नीतीश कुमार ने ‘जंगलराज’ शब्द को पकड़कर ‘सुशासन’ का नारा दिया और इसे राजनीतिक नैरेटिव के रूप में स्थापित किया। इस चुनाव में जनता ने ‘सुशासन’ को चुना और आरजेडी सत्ता से बाहर हो गई।

आरजेडी नेता मनोज झा बताते हैं कि ‘जंगलराज’ शब्द की असली कहानी समझना जरूरी है। उन्होंने कहा कि यह शब्द पटना नगर निगम के एक खास मामले से जुड़ा था, न कि पूरे राज्य से। लेकिन लालू यादव ने सही मीडिया मैनेजमेंट नहीं किया और इस शब्द ने राजनीति में अपना स्थान बना लिया।

चारा घोटाले को उजागर करने वाले सुशील मोदी ने भी ‘जंगलराज’ के इस मेटाफर को भुनाया और इसे लालू शासन से जोड़ा। नीतीश कुमार ने इस नैरेटिव को और मजबूती दी और कहा कि बिहार को ‘जंगलराज’ से निकालकर ‘सुशासन’ देना होगा।

लालू यादव की छवि का बदलता दौर

लालू के लिए यह नैरेटिव नुकसानदेह साबित हुआ। जो ‘सामाजिक मसीहा’ की छवि थी, वह ‘अराजक प्रशासक’ की छवि में बदल गई। 2005 के चुनाव में नीतीश कुमार की जीत ने इस धारणा को जनता के बीच और मजबूत कर दिया।

मणिकांत ठाकुर बताते हैं कि लालू के दो साले साधु यादव और सुभाष यादव के काले कारनामों ने ‘जंगलराज’ की छवि को और भी गहरा किया। 1990 से 2004 के बीच बिहार में हुए कई बड़े अपराध जैसे कि चंपा विश्वास कांड, शिल्पी गौतम हत्या, कार चोरी, सामूहिक हत्याएं, डॉक्टरों की किडनैपिंग और व्यवसायियों का पलायन ने ‘जंगलराज’ शब्द को मजबूती दी।

आज भी ‘जंगलराज’ का साया

जब पटना हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की थी, उस वक्त तेजस्वी यादव मात्र 7 साल के थे। अब, 20 साल बाद भी आरजेडी सत्ता से बाहर है और तेजस्वी यादव पार्टी की कमान संभाल चुके हैं। लेकिन ‘जंगलराज’ का यह जुमला आज भी एनडीए के लिए एक शक्तिशाली राजनीतिक हथियार बना हुआ है और तेजस्वी यादव के लिए चुनौतियां खड़ी करता है।

विश्लेषक मानते हैं कि ‘जंगलराज’ केवल एक शब्द नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति का एक बड़ा अध्याय है। यह हमें बताता है कि कैसे एक न्यायिक टिप्पणी समय के साथ एक व्यापक राजनीतिक प्रतीक बन जाती है, जो सत्ता और छवि दोनों को प्रभावित करती है।

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Asia Cup 2025: टीम इंडिया की एशिया कप जीत पर ‘अदृश्य ट्रॉफी’ के साथ जश्न, जानिए किसने...

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Asia Cup 2025: 28 सितंबर 2025 को दुबई इंटरनेशनल स्टेडियम में एशिया कप 2025 का फाइनल मैच खेला गया, जिसमें टीम इंडिया ने पाकिस्तान को 5 विकेट से हराकर अपनी आठवीं बार नहीं, बल्कि नौवीं बार यह खिताब अपने नाम किया। यह जीत भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के लिए बेहद खास थी, लेकिन इस खिताबी जश्न में एक बड़ी अनोखी बात सामने आई, जिसने पूरे टूर्नामेंट को चर्चा का विषय बना दिया। दरअसल भारत ने यह बड़ा टूर्नामेंट जीतने के बाद न तो ट्रॉफी पाई और न ही मेडल, जिससे टीम को मैदान पर ही ‘अदृश्य ट्रॉफी’ के साथ सेलिब्रेशन करना पड़ा। यह मॉक सेलिब्रेशन आखिर हुआ कैसे? इसका आइडिया किसका था? टीम के स्टार खिलाड़ी वरुण चक्रवर्ती ने इस बात का बड़ा खुलासा किया है।

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ट्रॉफी नहीं मिली, तो हुआ क्या? Asia Cup 2025

अक्सर क्रिकेट में जीत के बाद ट्रॉफी और मेडल खिलाड़ियों को दिए जाते हैं, जिससे उनका उत्साह और बढ़ जाता है। मगर इस बार टीम इंडिया को एशिया कप जीतने के बावजूद न तो ट्रॉफी दी गई और न ही विजेता मेडल मिले। इसका कारण था पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (PCB) के प्रमुख मोहसिन नकवी से ट्रॉफी लेने से भारतीय खिलाड़ियों का मना कर देना। टीम ने ट्रॉफी किसी और अधिकारी से लेने की कोशिश भी की, लेकिन वह भी मंजूर नहीं हुई। इस वजह से प्रेजेंटेशन सेरेमनी असफल रही और टीम के सामने ट्रॉफी का इंतजार खाली हाथ ही रह गया।

मॉक सेलिब्रेशन का आईडिया किसका था?

इस बीच टीम इंडिया ने हार मानने की बजाय एक अनोखा तरीका निकाला। टीम के मिस्ट्री स्पिनर वरुण चक्रवर्ती ने CEAT अवॉर्ड्स समारोह में बताया कि यह मॉक सेलिब्रेशन का आइडिया तेज गेंदबाज अर्शदीप सिंह का था। वरुण ने बताया, “हम ट्रॉफी का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, लेकिन जब वह नहीं आई तो अर्शदीप ने कहा कि क्यों न हम अपनी ही ‘अदृश्य ट्रॉफी’ के साथ सेलिब्रेशन करें।” उन्होंने हँसते हुए कहा, “मेरे पास एकमात्र कप था, वो भी कॉफी का कप।”

मैदान पर हुआ दिल छू लेने वाला जश्न

जब अधिकारी प्रेजेंटेशन के बाद चले गए, तब भी टीम के खिलाड़ी पीछे नहीं हटे। उन्होंने अपने अंदाज में खुशी मनाई। कप्तान सूर्यकुमार यादव ने ट्रॉफी उठाने का नाटक किया और रोहित शर्मा के टी20 वर्ल्ड कप सेलिब्रेशन को दोहराया। इस अंदाज ने दर्शकों के दिलों को छू लिया और दिखाया कि टीम के अंदर जश्न मनाने का जज्बा कितना बड़ा है।

संजू सैमसन ने भी जताई भावना

CEAT अवॉर्ड समारोह में मेन्स T20I बैटर ऑफ द ईयर का पुरस्कार पाने वाले संजू सैमसन ने भी इस अनुभव को साझा किया। उन्होंने कहा, “बिना ट्रॉफी के जश्न मनाना थोड़ा अजीब जरूर था, लेकिन हमारे ड्रेसिंग रूम का माहौल बहुत पॉजिटिव था। हम इस खुशी को पूरी तरह से जीए और सेलिब्रेट किया जैसे हमारे पास सब कुछ हो।”

सोशल मीडिया पर टीम का तंज

एशिया कप जीतने के बाद टीम इंडिया ने सोशल मीडिया पर भी अपनी खुशी का अनोखा अंदाज दिखाया। उन्होंने ट्रॉफी की असल तस्वीर की जगह ट्रॉफी का इमोजी इस्तेमाल करते हुए हल्का-फुल्का तंज किया। इससे साफ हो गया कि टीम ने इस विवाद को भी मजाकिया अंदाज में लिया और हार-जीत की भावना से ऊपर उठकर टीम स्पिरिट को सबसे अहम माना।

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Jaipur LPG Cylinder Blast: जयपुर में दिल दहला देने वाला हादसा, तेज धमाकों के बीच LPG ...

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Jaipur LPG Cylinder Blast: जयपुर-अजमेर नेशनल हाईवे पर मंगलवार रात को दूदू क्षेत्र के मौजमाबाद के पास एक भीषण सड़क हादसा हुआ। एक एलपीजी गैस सिलेंडर से भरा ट्रक महादेव ढाबे के पास खड़ा था, और तभी तेज रफ्तार से आ रहे केमिकल से भरे टैंकर ने उसे जोरदार टक्कर मार दी। टक्कर के बाद उठी चिंगारी से ट्रक और टैंकर दोनों में आग लग गई, जो जल्द ही विकराल रूप धारण कर गई।

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आग की चपेट में आए 6-7 वाहन, आग के गुबार 5 किलोमीटर दूर तक नजर आए

हादसे के बाद आग ने इतनी तेजी से फैलाव किया कि पास के 6-7 वाहन भी जलकर खाक हो गए। गैस सिलेंडर के ब्लास्ट होने से आग और भड़क गई, और सिलेंडर हवा में उछलकर दूर-दूर गिरते दिखाई दिए। हादसे के बाद आग का गुबार 5 किलोमीटर तक दिखाई दिया, जो इसकी भयावहता को दर्शाता है।

लोहे का ट्रक मोम की तरह पिघल गया, 70 धमाके हुए- Jaipur LPG Cylinder Blast

आग पर काबू पाने में दो से ढाई घंटे का वक्त लगा। राहत कार्यों के दौरान यह देखा गया कि लोहे का ट्रक आग में पूरी तरह से पिघल चुका था। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार इस हादसे में लगभग 70 धमाके हुए। आग के दौरान केमिकल से भरे टैंकर और गैस सिलेंडर के धमाकों ने हादसे को और भयावह बना दिया।

एक व्यक्ति की जलकर मौत, चार अन्य लोग गंभीर रूप से झुलसे

हादसे के तुरंत बाद बचाव कार्य शुरू हुआ, लेकिन जब तक आग पर काबू पाया गया, एक व्यक्ति की जलकर मौत हो चुकी थी। वह व्यक्ति टैंकर की केबिन में फंसा हुआ था और आग लगने के कारण उसकी मौत हो गई। इसके अलावा, चार अन्य लोग गंभीर रूप से झुलस गए, जिन्हें तत्काल सवाई मानसिंह अस्पताल में भर्ती कराया गया।

प्लास्टिक की थैली में लाए गए कंकाल की डीएनए जांच

रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान राहतकर्मियों को टैंकर के केबिन से एक कंकाल मिला। यह कंकाल उस व्यक्ति का था, जो केबिन में फंसा हुआ था और आग लगने से उसकी जान चली गई। कंकाल को एसएमएस अस्पताल लाया गया, जहां उसकी डीएनए जांच कराई जाएगी।

हाईवे पर 10 किलोमीटर लंबा जाम, ट्रैफिक डायवर्ट किया गया

इस घटना के बाद हाईवे पर करीब 10 किलोमीटर लंबा जाम लग गया, जिससे यातायात प्रभावित हुआ। पुलिस ने तत्काल ट्रैफिक को रोककर वैकल्पिक मार्गों पर डायवर्ट कर दिया था। आग के गुबार और धमाकों ने पूरे इलाके में दहशत फैला दी।

स्थानीय प्रशासन और नेताओं ने घटना पर गहरा शोक व्यक्त किया

हादसे की जानकारी मिलते ही डिप्टी सीएम डॉ. प्रेमचंद बैरवा, भाजपा विधायक कैलाश वर्मा, जयपुर रेंज के आईजी राहुल प्रकाश और एसपी राशि डोगरा डूडी घटनास्थल पर पहुंचे। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और अन्य मंत्रियों ने भी हादसे पर शोक व्यक्त किया और प्रभावित परिवारों के प्रति संवेदना जताई है।

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Rajvir Jawanda Death: बाइक हादसे के 11 दिन बाद जिंदगी से हारा पंजाबी सिंगर राजवीर जवं...

Rajvir Jawanda Death: पंजाबी सिंगर और एक्टर राजवीर जवंदा का बुधवार सुबह 10:55 बजे इलाज के दौरान मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में निधन हो गया। वे बीते 12 दिनों से अस्पताल में एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे। 27 सितंबर को हुए एक सड़क हादसे में उन्हें गंभीर चोटें आई थीं, जिसके बाद से उनकी हालत लगातार नाजुक बनी हुई थी।

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हादसा कैसे हुआ? Rajvir Jawanda Death

राजवीर का एक्सीडेंट पंचकूला के पिंजौर इलाके में उस वक्त हुआ जब वह अपनी बीएमडब्ल्यू बाइक से बद्दी से पिंजौर की ओर जा रहे थे। रास्ते में पिंजौर-नालागढ़ रोड पर सांडों की लड़ाई हो रही थी। इसी दौरान एक सांड अचानक सामने आ गया, जिससे उनकी बाइक अनियंत्रित होकर हाईवे पर गिर गई। इस टक्कर में सिर और रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट आई।

पहले उन्हें पास के सिविल अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वहां कार्डियक अरेस्ट आने के बाद उन्हें तुरंत फोर्टिस हॉस्पिटल शिफ्ट किया गया। तभी से वे ICU में वेंटिलेटर पर थे।

पंजाबी म्यूजिक और फिल्म इंडस्ट्री में शोक की लहर

राजवीर जवंदा के निधन की खबर सामने आते ही उनके प्रशंसकों और पूरी पंजाबी इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ गई। सोशल मीडिया पर नीरू बाजवा, गुरप्रीत घुग्गी, बीएन शर्मा जैसे कई कलाकारों ने भावुक पोस्ट शेयर कीं।

नीरू बाजवा ने लिखा, “बहुत जल्दी चले गए, लेकिन कभी भुलाए नहीं जा सकेंगे। एक होनहार सिंगर की दुखद मौत से दिल टूट गया है।”

 

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वहीं, गुरप्रीत घुग्गी ने लिखा, “मौत जीत गई, जवानी हार गई। कैसे भूलेंगे तुम्हें छोटे भाई?”

 

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कुछ दिन पहले ही दिलजीत दोसांझ ने अपने लाइव शो में राजवीर की सलामती के लिए दुआ की थी। लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी राजवीर जिंदगी की जंग हार गए।

सीएम भगवंत मान ने जताया शोक

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी राजवीर जवंदा के निधन पर गहरा दुख जताते हुए कहा, “पंजाबी संगीत जगत का एक चमकता सितारा हमसे हमेशा के लिए दूर चला गया है। उनकी आवाज हमेशा लोगों के दिलों में गूंजती रहेगी। वाहेगुरु दिवंगत आत्मा को अपने चरणों में स्थान दें और परिवार को यह दुख सहने की शक्ति दें।”

अस्पताल के बाहर जमा हुई भीड़, पुलिस तैनात

जैसे ही राजवीर के निधन की खबर फैली, अस्पताल के बाहर फैंस की भीड़ लगने लगी। स्थिति को संभालने के लिए मोहाली पुलिस ने सिक्योरिटी बढ़ा दी है। बताया जा रहा है कि उनका अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव पौना (जगरांव) में किया जाएगा।

एक चमकता सितारा जो बहुत जल्दी बुझ गया

बता दें, राजवीर जवंदा ने 2014 में ‘मुंडा लाइक मी’ एल्बम से अपने म्यूजिक करियर की शुरुआत की थी। 2016 में ‘कली जवंदे दी’ से उन्हें पहचान मिली। इसके बाद ‘मुकाबला’, ‘कंगणी’, ‘सरनेम’, ‘लैंडलॉर्ड’, और ‘पटियाला शाही पग’ जैसे सुपरहिट गाने दिए।

2018 में उन्होंने फिल्म ‘सूबेदार जोगिंदर सिंह’ से एक्टिंग डेब्यू किया और फिर ‘काका जी’, ‘जिंद जान’, ‘मिंदो तहसीलदारनी’, ‘सिकंदर 2’ जैसी फिल्मों में शानदार अभिनय किया।

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Karwa Chauth Mehndhi Designs: करवा चौथ पर लगाएं पति के नाम की स्पेशल मेहंदी, प्यार मे...

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Karwa Chauth Mehndhi Designs: करवा चौथ एक खास त्योहार है जिसमें विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और खूब सज-धज कर इस दिन को मनाती हैं। इस मौके पर मेहंदी लगाना एक परंपरा भी है और आपके श्रृंगार का एक अहम हिस्सा भी। अगर आप भी इस करवा चौथ पर कुछ अनोखा और ट्रेंडी मेहंदी डिजाईन लगाना चाहती हैं, तो चलिए आपको इस लेख में कुछ बेहतरीन मेहंदी डिजाईन के बारे में बताते हैं।

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रोमांटिक और ट्रेंडी मेहंदी डिज़ाइन

अगर आप भी करवा चौथ कुछ खास और डिज़ाइनर मेहँदी लगाना चाहती है तो आप अपने हाथो पर पोर्ट्रेट और अपनी लव स्टोरी वाला डिजाईन लगा सकती है, या फिर आप कुछ इस तरीके का भी डिजाईन भी ट्राई कर सकती है जिसमे एक तरफ करवा चौथ का चाँद बना हो या फिर दोनों चित्रों के बीच सुंदर अक्षरों में पति का नाम लिखा हो।

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मॉडर्न मोनोग्राम और इनिशियल्स 

आजकल मोनोग्राम मेहंदी डिज़ाइन काफी ट्रेंड में इसे आप आपनी हथेली या उंगलियों पर ट्रेंडिंग स्टाइल के साथ लगा सकते है और साथ में अपने हस्बैंड का नाम का पहला इनिशियल्स वर्ड भी लिख सकते है। इसे फूलों के पैटर्न वाले डिजाईन से बनाया जा सकता है। इसके अलवा आप एक हार्ट शेप का डिजाईन बनाकर भी उसमे अपने पति का नाम लिखवा सकते है।

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मंडला मेहँदी डिजाईन – Mandala mehndi design

सिंपल और इजी मेहंदी डिजाईन के लिए आप सिंपल और सुन्दर सा दिखने वाला मंडला डिज़ाइन लगा सकते है. इसे  आप हाथो के बीच में लगा कर इसके बीच में अपने पार्टनर का नाम भी लिख सकते है. ये देखने भी काफी सुन्दर और खूबसूरत लगता हैं। ये डिजाईन इतना इजी और सुन्दर होता है कि झट से बनके तैयार हो जाता है।

Mandala mehndi desgin
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कलाई डिज़ाइन (Wrist mehndi design) 

कलाई के पीछे बेल्ट या ब्रेसलेट जैसे पैटर्न में नाम लिखे जा सकते हैं। यह डिज़ाइन काफी आकर्षक और अनोखा लगता है। आप एक कलाई पर ‘सदा सौभाग्यवती भव’ और दूसरी पर अपने पति का नाम लिखकर एक खूबसूरत लुक तैयार कर सकती हैं।

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आपको बता दूँ, इन बातों का जरुर ध्यान रखें आप अपनी हथेली, कलाई या उंगलियों पर कहीं भी अपना नाम गुदवा सकती हैं। अपने नाम के लिए अरबी या सुलेख फ़ॉन्ट का इस्तेमाल करें। ये सरल और सुंदर लगते हैं। इसके अलवा मेहँदी को कलर गहरा करने के लिए, सूखने के बाद उस पर नींबू और चीनी का मिश्रण लगाएँ। सूखने के बाद, इसे पानी से धोने के बजाय हल्के हाथों से रगड़कर हटा दें। या फिर उसमे सरसों के तेल और vicks लगाये ऐसा करने से mehndi का रंग काफी गहरा होता है।

Jaunpur News: गंगा स्नान के बहाने वृद्धाश्रम छोड़ आया बेटा, मां अब तन्हा… ये है प्रया...

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Jaunpur News: प्रयागराज की रहने वाली मीरा देवी की जिंदगी आज चार दीवारों में कैद है। उम्र के उस पड़ाव पर जहां इंसान अपने बच्चों के साथ वक्त बिताने का ख्वाब देखता है, मीरा देवी की झोली में आया है सिर्फ अकेलापन और इंतजार। उनका बेटा आज एक सफल दवा व्यापारी है, नाम है, शोहरत है… लेकिन मां के लिए दिल में कोई जगह नहीं बची।

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पति का साथ छूटा तो मां बनकर निभाया हर रिश्ता- Jaunpur News

मीरा देवी की ज़िंदगी का संघर्ष बहुत पहले शुरू हो गया था। जवानी में ही पति का साथ छूट गया था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। बेटे को पालने के लिए दूसरों के घरों में काम किया बर्तन मांजे, कपड़े धोए, और दिन-रात एक कर दिए। उनका एक ही सपना था कि बेटा बड़ा आदमी बने। बेटा बड़ा हुआ और खूब नाम कमाया, लेकिन उस कामयाबी की तस्वीर में मां कहीं पीछे छूट गईं।

‘चलो गंगा स्नान’ कहकर छोड़ा वृद्धाश्रम में

मीरा देवी आज भी उस दिन को नहीं भूल पातीं। बेटा अचानक एक दिन बोला “मां, चलो गंगा स्नान के लिए चलते हैं।” सालों बाद बेटे के साथ बाहर जाने का मौका मिला था। उन्होंने नई साड़ी पहनी, माथे पर बिंदी लगाई और बेटे के साथ गाड़ी में बैठ गईं। मगर गाड़ी गंगा घाट नहीं, सीधे एक वृद्धाश्रम के बाहर आकर रुकी।

बेटा बोला, “मां, आप यहीं बैठो, मैं दवा की दुकान से होकर आता हूं।” लेकिन वो कभी नहीं लौटा। घंटों बीत गए, और फिर वृद्धाश्रम की एक महिला ने आकर कहा “मां, आपका बेटा जा चुका है। अब यही आपका घर है।”

अब सिर्फ यादें हैं साथ… बेटा नहीं

मीरा देवी की आंखों में आज भी वो पल बसा है जब बेटा उनकी गोद में सोया करता था। वो रातें जब बेटे को खांसी आती थी, तो वो सारी रात जागकर सिर सहलाती थीं। लेकिन आज जब वो खुद बीमार होती हैं, तो हाल पूछने वाला कोई नहीं है। वृद्धाश्रम की दीवारें उनकी नई दुनिया हैं, और पुराने दिनों की यादें उनका सहारा।

सिर्फ मीरा देवी की नहीं, समाज की भी कहानी है ये

मीरा देवी की कहानी कोई अकेली मिसाल नहीं है। ये उन हजारों माओं की कहानी है जिन्हें उम्र के इस मोड़ पर उनके अपने छोड़ जाते हैं। समाज में माता-पिता को भगवान का दर्जा तो दिया जाता है, लेकिन जब उन्हें साथ की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, तब वही ‘भगवान’ अकेले रह जाते हैं।

अब भी आंखों में एक उम्मीद है

मीरा देवी की आंखें आज भी दरवाजे की तरफ उठती हैं… शायद बेटा लौट आए और कहे—”मां, चलो घर चलें।” लेकिन अब वो जान चुकी हैं कि घर सिर्फ दीवारों से नहीं बनता, घर वो होता है जहां अपने हों। और आज, वो अपने कहीं खो गए हैं।

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Premanand Maharaj: राधा रानी को ‘मां’ कहना गलत नहीं, भाव ही है सबसे बड़ा…प्रेमा...

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Premanand Maharaj: जब भी हम राधा रानी का नाम लेते हैं, दिल अपने आप भक्ति और प्रेम से भर उठता है। राधा सिर्फ श्रीकृष्ण की प्रेयसी नहीं, बल्कि आध्यात्मिक प्रेम और दिव्य शक्ति की जीवंत प्रतीक मानी जाती हैं। भक्ति परंपरा में उन्हें “किशोरी जी” या “श्रीजी” के नाम से भी पूजा जाता है। लेकिन एक सवाल लंबे समय से भक्तों के मन में गूंजता रहा है कि क्या राधा रानी को भी ‘मां’ कहा जा सकता है, जैसे हम सीता माता या रुक्मिणी माता कहते हैं?

इस पर संत प्रेमानंद महाराज का जवाब न सिर्फ सरल है, बल्कि भाव से भरा हुआ भी है। उन्होंने इस सवाल का जो उत्तर दिया है, वो भक्तों के दिल को छू लेने वाला है।

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राधा रानी का स्वरूप – प्रेम और शक्ति दोनों

प्रेमानंद महाराज बताते हैं कि रुक्मिणी जी श्रीकृष्ण की पत्नी थीं और उनके दस पुत्रों का उल्लेख भागवत पुराण में भी मिलता है। इसलिए उन्हें ‘मां’ कहना स्वाभाविक है। सीता माता को भी मातृत्व के कारण ही लोक में माता का दर्जा मिला। लेकिन राधा रानी के जीवन में ऐसी कोई संतान संबंधी कथा नहीं मिलती।

इसके बावजूद, महाराज कहते हैं कि राधा रानी को ‘मां’ कहना बिल्कुल भी अनुचित नहीं है। उनका स्वरूप खुद प्रेममयी और करुणामयी है। वे केवल एक प्रेमिका नहीं, बल्कि सृष्टि की हर शक्ति का मूल स्रोत हैं।

राधा रानी: आदिशक्ति का रूप

प्रेमानंद महाराज आगे समझाते हैं कि सृष्टि की जितनी भी शक्तियां हैं देवी, देवता, अलग-अलग रूप वे सभी राधा रानी से ही प्रकट हुए हैं। इस नज़र से देखा जाए तो राधा रानी खुद आदि शक्ति हैं। और जब हर शक्ति का मूल राधा रानी हैं, तो उन्हें ‘मां’ कहना नियमों का उल्लंघन नहीं बल्कि भक्त का स्वाभाविक प्रेम है।

वे कहते हैं, “जो उन्हें किशोरी जी मानकर पूजते हैं, उनके लिए वह एक सखा भाव की देवी हैं। और जो उन्हें मां के रूप में देखते हैं, उनके लिए राधा रानी ममता, करुणा और स्नेह की साक्षात मूर्ति हैं।”

भक्ति में भाव का महत्व- Premanand Maharaj

भक्ति का रास्ता नियमों से नहीं, भाव से चलता है। राधा रानी को कोई मां कहे या किशोरी, ये उसका व्यक्तिगत प्रेम और अनुभूति है। प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि भक्त के मन में जो भाव सबसे सच्चा हो, वही ईश्वर तक पहुंचने का माध्यम बनता है। और अगर कोई राधा रानी को ‘मां’ कहकर बुलाता है, तो उसमें कोई दोष नहीं, बल्कि उसमें राधा के प्रति श्रद्धा और आत्मीयता झलकती है।

राधा और कृष्ण: अधूरे एक-दूसरे के बिना

राधा रानी और श्रीकृष्ण का संबंध महज लौकिक प्रेम का नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक है। संतों ने सदियों से कहा है “राधा बिन श्याम अधूरे, श्याम बिन राधा नहीं”। यह सिर्फ एक पंक्ति नहीं, बल्कि राधा-कृष्ण की एकात्मता को दर्शाता है।

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