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IPS Y Puran Kumar: जो भ्रष्टाचार से लड़ा, वो खुद जिंदगी से हार गया… कौन थे IPS वाई. प...

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IPS Y Puran Kumar: हरियाणा पुलिस के तेज-तर्रार और विवादों में घिरे आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार अब हमारे बीच नहीं रहे। 7 अक्टूबर 2025 को चंडीगढ़ स्थित अपने सरकारी आवास पर उन्होंने आत्महत्या कर ली। उनका निधन न सिर्फ पुलिस महकमे, बल्कि प्रशासनिक दुनिया के लिए एक बड़ा झटका है। उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा, और उन्होंने अपने पूरे करियर में ईमानदारी और निष्पक्षता का झंडा बुलंद किया। लेकिन उनकी मौत ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या वह प्रशासनिक दबाव और मानसिक तनाव के शिकार हुए?

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वाई. पूरन कुमार: एक निष्कलंक अधिकारी की कहानी (IPS Y Puran Kumar)

वाई. पूरन कुमार हरियाणा कैडर के 2001 बैच के आईपीएस अधिकारी थे। वह सख्त, निर्भीक और बेबाक अफसर के रूप में जाने जाते थे। अपने करियर में उन्होंने कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाईं। रोहतक रेंज के आईजीपी, कानूनी व्यवस्था के आईजीपी, और हाल ही में पुलिस ट्रेनिंग सेंटर (PTC) सुनारिया, रोहतक के आईजी के पद पर तैनात रहे। उनका काम हमेशा अपनी ईमानदारी और कड़ी मेहनत के लिए पहचाना गया। हालांकि, 2025 के मध्य में सरकार ने उन्हें ट्रांसफर कर दिया था और उन्हें PTC सुनारिया भेज दिया था। यह उनकी आखिरी तैनाती थी।

आत्महत्या: सवालों के घेरे में

7 अक्टूबर 2025 की सुबह, चंडीगढ़ के सेक्टर-11 स्थित उनके सरकारी आवास से गोली चलने की आवाज आई। जब पुलिस टीम मौके पर पहुंची, तो उन्होंने वाई. पूरन कुमार को खून से लथपथ पाया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्होंने अपनी सर्विस रिवॉल्वर से खुद को गोली मारी थी। उस समय उनकी पत्नी, आईएएस अधिकारी अमनीत कौर, मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के साथ जापान यात्रा पर थीं। चंडीगढ़ पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है, और फिलहाल पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है।

वाई. पूरन कुमार के करियर की छायाएँ

वाई. पूरन कुमार का करियर हमेशा विवादों और संघर्षों से घिरा रहा। वे प्रशासनिक फैसलों के खिलाफ खुलकर अपनी आवाज उठाते थे। उन्होंने कई बार अपने विभाग के भीतर की भेदभावपूर्ण और गैर-कानूनी गतिविधियों के खिलाफ संघर्ष किया।

  • जुलाई 2020 में उन्होंने तत्कालीन डीजीपी मनोज यादव पर गंभीर आरोप लगाए, जिसमें उन्होंने कहा कि उन्हें व्यक्तिगत रंजिश और जातीय भेदभाव के चलते टारगेट किया जा रहा था। इसके अलावा, उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उन्हें लगातार ऐसी पोस्टिंग दी जा रही हैं, जो उनके कैडर से बाहर हैं।
  • वाई. पूरन कुमार ने गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजीव अरोड़ा पर भी पक्षपाती जांच रिपोर्ट तैयार करने का आरोप लगाया। इसके अलावा, उन्होंने हरियाणा हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल कीं, जिसमें उन्होंने पुलिस विभाग के भीतर पद सृजन, तबादलों और आवास आवंटन जैसे प्रशासनिक निर्णयों की वैधता पर सवाल उठाए थे।
  • उन्होंने 2024 में डीजीपी शत्रुजीत कपूर के खिलाफ चुनाव आयोग को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने हरियाणा पुलिस सेवा (HPS) अधिकारियों के अस्थायी ट्रांसफर के आदेशों की जांच की मांग की थी।

प्रशासनिक उत्पीड़न का सामना

वाई. पूरन कुमार ने बार-बार कहा कि उन्हें वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा था। उन्होंने यह भी कहा कि उनके खिलाफ साजिश रची जा रही थी और उनकी सुरक्षा को लेकर खतरा महसूस हो रहा था। उन्होंने अपनी शिकायतों को दबाने का आरोप लगाया और यहां तक कि हरियाणा के डीजीपी से अपनी सुरक्षा स्थिति का आकलन करने की मांग की थी।

यह सब बताते हुए वे कई बार प्रशासनिक स्तर पर खुद को अकेला और असहाय महसूस कर रहे थे। उनकी शिकायतों का न तो उचित समाधान मिला और न ही उनके आरोपों पर कोई ठोस कदम उठाया गया।

ईमानदारी का बलिदान

वाई. पूरन कुमार का पूरा करियर ईमानदारी और पारदर्शिता के लिए संघर्ष का प्रतीक रहा। वे हमेशा कहते थे कि पुलिस सेवा में निष्पक्षता और संवैधानिक मूल्य सर्वोपरि हैं। हालांकि, इन आदर्शों के लिए लड़ते-लड़ते वे खुद सिस्टम के भीतर अकेले पड़ गए। उनकी मौत ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या उनके साथ प्रशासनिक स्तर पर कुछ गलत हुआ?

जांच और प्रशासनिक प्रतिक्रिया

चंडीगढ़ पुलिस ने इस घटना की जांच शुरू कर दी है। हालांकि, इस मामले को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं, जिनका उत्तर ढूंढना पुलिस के लिए एक चुनौती बन गया है। वाई. पूरन कुमार की पत्नी अमनीत कौर के लौटने के बाद बयान दर्ज किए जाएंगे। हरियाणा सरकार ने इसे एक “दुर्भाग्यपूर्ण घटना” करार दिया है, लेकिन पुलिस महकमे में यह सवाल गूंज रहा है कि क्या वाई. पूरन कुमार प्रशासनिक दबाव और मानसिक तनाव का शिकार हो गए थे?

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China-Taiwan Conflict: AIS सिग्नल से खेल… ताइवान की सीमाओं में चीन की ‘नक...

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China-Taiwan Conflict: ताइवान और चीन के बीच बढ़ते तनाव के बीच एक नई रणनीति सामने आई है, जिसने साइबर और समुद्री सुरक्षा को लेकर नई चिंता खड़ी कर दी है। अमेरिका स्थित थिंक टैंक इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ वॉर (ISW) की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि चीन अब पारंपरिक सैन्य दबाव से हटकर ‘संज्ञानात्मक युद्ध’ (Cognitive Warfare) की ओर बढ़ रहा है और इसका केंद्र है ताइवान का समुद्री क्षेत्र।

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रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन अब अपने जहाजों से नकली ऑटोमैटिक आइडेंटिफिकेशन सिस्टम (AIS) सिग्नल भेज रहा है, जो ताइवान के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन (EEZ) में भ्रम फैलाने और प्रतिक्रिया प्रणाली को परखने की एक सुनियोजित रणनीति मानी जा रही है।

नकली सिग्नल, असली मकसद- China-Taiwan Conflict

ताइपे टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कुछ महीनों में कई चीनी मछली पकड़ने वाले जहाजों ने झूठे AIS सिग्नल भेजे हैं। इनमें से कुछ जहाज रूसी युद्धपोत या चीनी कानून प्रवर्तन जहाजों का रूप लेते नजर आए। जैसे, एक नाव ‘मिन शि यू 06718’ ने कई बार अपने AIS सिग्नल की जगह ‘हाई शुन 15012’ नामक पोत का सिग्नल प्रसारित किया।

दिलचस्प बात यह है कि ‘हाई शुन’ पोत आमतौर पर चीन की मैरीटाइम सेफ्टी एडमिनिस्ट्रेशन (CMSA) द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, जो कोई सैन्य एजेंसी नहीं है। इसका मतलब साफ है मछली पकड़ने वाली नावें CMSA जहाजों का छद्मवेश धारण कर रही हैं, ताकि ताइवान के रडार और निगरानी तंत्र में भ्रम पैदा किया जा सके।

रूसी युद्धपोत बनकर आई चीनी नाव?

17 सितंबर को एक और चौंकाने वाली घटना सामने आई, जब ‘मिन शि यू 07792’ नाम की नाव ने रूसी युद्धपोत ‘532’ का AIS सिग्नल ताइवान के उत्तर में प्रसारित किया। इतना ही नहीं, उसी दिन अन्य ‘मिन शि यू’ नावों ने भी अलग-अलग झूठे सिग्नल भेजे किसी ने खुद को टगबोट बताया, तो किसी ने दूसरी मछली पकड़ने वाली नाव का रूप लिया।

यह कोई इत्तेफाक नहीं बल्कि पूरी तरह से समन्वित कार्रवाई थी। ISW ने इसे चीन की AIS स्पूफिंग तकनीक का हिस्सा बताया है, जो ताइवान की प्रतिक्रिया रणनीति की परीक्षा लेने और उसके सूचना तंत्र को गड़बड़ाने की कोशिश का हिस्सा है।

कौन हैं ये नाविक?

रिपोर्ट के अनुसार, ये मछली पकड़ने वाली नावें चीनी समुद्री मिलिशिया का हिस्सा हो सकती हैं। चीन पहले भी इन नावों का इस्तेमाल दक्षिण चीन सागर और ताइवान जलडमरूमध्य में ‘ग्रे जोन’ रणनीति के तहत कर चुका है यानी ऐसा दबाव, जो पूरी तरह युद्ध नहीं है, लेकिन तनाव पैदा करने के लिए काफी है।

ताइवान पर चौतरफा दबाव

AIS सिग्नल से छेड़छाड़ ही नहीं, 15 से 17 सितंबर के बीच चीनी तटरक्षक जहाजों ने चार बार ताइवान के किनमेन काउंटी के प्रतिबंधित जलक्षेत्र में घुसपैठ की। यह सब मिलकर चीन की उस रणनीति की ओर इशारा करता है, जिसमें वो पारंपरिक युद्ध के बिना ही विरोधी को मानसिक और सूचना के स्तर पर कमजोर करना चाहता है।

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Harjas Singh Triple Century: क्रिकेट में इतिहास रचने वाला भारतीय मूल का खिलाड़ी, हरजस...

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Harjas Singh Triple Century: ऑस्ट्रेलिया में घरेलू क्रिकेट खेलते हुए एक भारतीय मूल के युवा बल्लेबाज ने कुछ ऐसा कर दिखाया, जो अब तक सिर्फ कल्पना में ही मुमकिन लगता था। हम बात कर रहे हैं हरजस सिंह की, जिन्होंने 50 ओवर के मैच में तिहरा शतक ठोक कर क्रिकेट की दुनिया में तहलका मचा दिया है।

हरजस ने 141 गेंदों पर 314 रन ठोक दिए, जिसमें उन्होंने 35 छक्के और कई चौके भी जड़े। यह पारी ना सिर्फ उनकी काबिलियत की मिसाल है, बल्कि क्रिकेट के लिमिटेड ओवर्स फॉर्मेट में भी एक नया इतिहास बन गई है।

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50 ओवर के मैच में पहली ट्रिपल सेंचुरी! Harjas Singh Triple Century

हरजस सिंह की यह पारी न्यू साउथ वेल्स प्रीमियर फर्स्ट-ग्रेड क्रिकेट के मुकाबले में आई, जहां उन्होंने वेस्टर्न सबर्ब्स क्लब की ओर से खेलते हुए सिडनी क्रिकेट क्लब के खिलाफ यह धमाका किया। इससे पहले इस ग्रेड में फिल जैक्स (321) और दिग्गज विक्टर ट्रंपर (335) जैसे बड़े नाम ट्रिपल सेंचुरी बना चुके हैं, लेकिन उन्होंने ये उपलब्धि फर्स्ट क्लास क्रिकेट में पाई थी।

हरजस की पारी की खास बात यह रही कि ये 50 ओवर के फॉर्मेट में खेली गई पहली ट्रिपल सेंचुरी थी। यानी वनडे जैसे लिमिटेड ओवर गेम में इससे पहले किसी बल्लेबाज ने इतने रन नहीं बनाए।

गेंदबाजों की कर दी धज्जियां

हरजस के सामने जो भी गेंदबाज आया, वह मानो सिर्फ गेंद फेंकने आया था, विकेट लेने नहीं। 35 छक्कों के साथ उन्होंने मैदान के हर कोने में बॉल पहुंचाई। यह पारी इतनी धमाकेदार थी कि जिसने भी देखी, वो तारीफ करते नहीं थका। ये सिर्फ एक पारी नहीं थी, बल्कि एक घोषणा थी कि हरजस सिंह आने वाले समय में क्रिकेट का बड़ा नाम हो सकते हैं।

भारत से हैं गहरी जड़ें

हरजस सिंह भले ही ऑस्ट्रेलिया में पैदा हुए हों, लेकिन उनकी जड़ें भारत के चंडीगढ़ से जुड़ी हैं। उनके माता-पिता साल 2000 में ऑस्ट्रेलिया शिफ्ट हो गए थे। उनके पिता इंद्रजीत सिंह एक स्टेट लेवल बॉक्सिंग चैंपियन रह चुके हैं और मां स्टेट लॉन्ग जंपर थीं। खेल उनके खून में है, और हरजस ने इस विरासत को क्रिकेट के जरिए आगे बढ़ाया।

वह महज 8 साल की उम्र से क्रिकेट खेल रहे हैं और अपने स्किल्स से लगातार सबको प्रभावित कर रहे हैं।

भारत के खिलाफ पहले ही कर चुके हैं कमाल

हरजस का नाम पहले भी सुर्खियों में आ चुका है। 2024 अंडर-19 वर्ल्ड कप के फाइनल में उन्होंने भारत के खिलाफ शानदार 55 रन की पारी खेली थी। उस मैच में भी वह ऑस्ट्रेलिया के एकमात्र बल्लेबाज थे जिन्होंने अर्धशतक लगाया था। उसी पारी की बदौलत ऑस्ट्रेलिया ने भारत को 79 रन से हराकर ट्रॉफी अपने नाम की थी।

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Zubeen’s death: बैंडमेट के चौंकाने वाले खुलासे से जुबीन की मौत का रहस्य हुआ और ...

Zubeen Garg passes away: हाल ही में मशहूर सिंगर जुबीन गर्ग (Zubeen Garg) की मौत हुयी है। अपने प्रसिद्ध गीत “या अली” से लाखों लोगों को मंत्रमुग्ध करने वाले इस बहुमुखी कलाकार का सिंगापुर (Singapore) में एक दुखद स्कूबा डाइविंग दुर्घटना में निधन हो गया। जिसके बाद से उनकी मौत एक रहस्य बनी हुई है। हर-दिन इस मामले में कोई न कोई नया खुलासा हो रहा है वही अब उनके बैंडमेट शेखर ज्योति गोस्वामी (Shekhar Jyoti Goswami) का एक सनसनीखेज दावा है। तो चलिए आपको इस लेख में पूरे मामले के बारे में विस्तार से बताते हैं।

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ज़ुबीन गर्ग की मौत रहस्य 

सिंगर ज़ुबीन गर्ग के बैंडमेट, शेखर ज्योति गोस्वामी ने उनकी मौत के बारे में एक चौंकाने वाला बयान दिया है। शेखर का आरोप है कि ज़ुबीन गर्ग की मौत एक दुर्घटना नहीं, बल्कि एक हत्या थी और उन्हें ज़हर दिया गया था।

ज़ुबीन के मैनेजर सिद्धार्थ शर्मा (Siddharth Sharma) और इवेंट ऑर्गनाइज़र श्यामकानु महंत (Shyamkanu Mahant) ने उन्हें ज़हर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने हत्या को एक दुर्घटना का रूप देने की योजना बनाई थी।

शेखर ज्योति गोस्वामी का आरोप  

शेखर ने बताया कि मैनेजर सिद्धार्थ शर्मा ने बीच समंदर में ड्राइवर को नाव से उतारकर उसे अपने नियंत्रण में ले लिया। जैसे ही ज़ुबीन नीचे उतरा, उसकी साँस फूलने लगी। इसके बावजूद, शर्मा लगातार कहते रहे, “आगे बढ़ो, आगे बढ़ो।” शेखर ज्योति गोस्वामी ने यह भी दावा किया कि ज़ुबीन के मुँह और नाक से झाग निकल रहा था, जिसका कारण मैनेजर ने एसिड रिफ्लक्स बताया था। वही शेखर ने बताया ज़ुबिन एक प्रशिक्षित तैराक था।

उसने मुझे और शर्मा को तैरना भी सिखाया था, इसलिए उनकी मौत डूबने से नहीं हुई होगी। इसके अलवा शर्मा ने मुझसे कहा था कि मैं नाव का कोई भी वीडियो किसी के साथ साझा न करूँ।

मामले की जाँच कर रही पुलिस

आपको बता दें, इन सभी आरोपों के बाद, मामले की जाँच कर रही पुलिस (CID) ने मैनेजर सिद्धार्थ शर्मा और इवेंट आयोजक श्यामकानु महंत सहित कई अन्य लोगों को गिरफ्तार किया है। ज़ुबीन की मौत के मामले में आपराधिक षडयंत्र, गैर इरादतन हत्या और लापरवाही से मौत के आरोप भी जोड़े गए हैं। वही इस मामले में पुलिस और न्यायिक आयोग की जांच जारी है, और सच्चाई सामने लाने के लिए जुबीन की दूसरी पोस्टमार्टम रिपोर्ट का भी इंतजार है।

वही इस घटना की दो बार पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट तैयार की गई, एक सिंगापुर में और दूसरी गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज में। ये दोनों रिपोर्ट जुबीन की मौत की जांच कर रही सीआईडी और उनकी पत्नी गरिमा सैकिया को सौंपी गईं, लेकिन सार्वजनिक नहीं की गईं. जुबीन की पत्नी ने रिपोर्ट देखने के बाद उसे सीआईडी को वापस लौटा दिया। उनका कहना है की उन्हें क़ानूनी जाँच पर पूरा भरोसा है। जल्द ही सच सामने आयेगा।

असम सरकार ने दिए जाँच के आदेश 

इसके अलावा असम सरकार ने जुबीन की मौत की घटना की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग का भी गठन किया है। जिसका ऐलान खुद हेमंत सरमा ने किया है। इस मामले की जाँच खुद गुवाहाटी हाईकोर्ट के न्यायाधीश सौमित्र सैकिया करेंगे।

Indore Phooti Kothi: 365 कमरे, लेकिन एक भी छत नहीं… इंदौर की रहस्यमयी ‘फूटी कोठ...

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Indore Phooti Kothi: भारत में मुगलों और अंग्रेजों के दौर की कई शानदार इमारतें आज भी इतिहास की गवाही देती हैं। लेकिन कुछ ऐसी इमारतें भी हैं, जिनकी पहचान उनकी भव्यता नहीं बल्कि अधूरापन बन जाता है। मध्य प्रदेश के इंदौर में स्थित फूटी कोठी ऐसी ही एक ऐतिहासिक इमारत है, जो देखने में किसी किले से कम नहीं लगती, लेकिन इसकी खासियत या कहें कि रहस्य यह है कि इसके 365 कमरों में से किसी के ऊपर छत नहीं है।

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इतिहास की गोद में अधूरी रह गई कोठी- Indore Phooti Kothi

फूटी कोठी का निर्माण 19वीं सदी के अंतिम वर्षों में महाराजा शिवाजी राव होलकर ने शुरू करवाया था। मकसद था एक ऐसी मजबूत और सुरक्षित जगह बनाना, जहां सैनिकों और सैन्य साजो-सामान को रखा जा सके। ये इमारत न केवल सुरक्षा का केंद्र बनने वाली थी, बल्कि इसकी बनावट और भव्यता इसे होलकर रियासत की शान भी बनाती। पर आज, ये कोठी एक वीरान और अधूरी विरासत बनकर रह गई है।

क्यों नहीं बनी एक भी छत?

फूटी कोठी के निर्माण में ब्लैक स्टोन और चूने जैसी पारंपरिक सामग्री का इस्तेमाल हुआ। इसके आर्किटेक्चर को इस तरह डिजाइन किया गया था कि छत बिना किसी सपोर्ट के, झूलते हुए ढांचे में बने। शुरुआत में कुछ हिस्सों में छत का काम भी हुआ, लेकिन तभी अंग्रेज अधिकारियों को इसकी भनक लग गई।

ब्रिटिश शासन ने तुरंत काम रुकवा दिया, और जो थोड़ा बहुत निर्माण हुआ था, उसे भी नुकसान पहुंचाया गया। तब से लेकर अब तक ये कोठी एक अधूरी इमारत के रूप में ही जानी जाती है, जिसका नाम ‘फूटी कोठी’ खुद इस अधूरेपन की कहानी कहता है।

धरती के नीचे भी बसा है एक ‘राज’

इस इमारत की खासियत सिर्फ इसके अधूरेपन तक सीमित नहीं है। कोठी के नीचे भी एक विशाल भूमिगत ढांचा मौजूद है। कहा जाता है कि जमीन के नीचे भी सैकड़ों कमरे बने हैं, जिन्हें आज तक ठीक से खोजा या समझा नहीं जा सका है।

इसके स्तंभ गोल आकार के हैं, जिनके ऊपर विशेष नक्काशी और पुष्प आकृतियां बनाई गई हैं। पूरे ढांचे को पुराने भारतीय और ब्रिटिश आर्किटेक्चर के मेल से तैयार किया गया है।

एक कोठी, कई मंदिर, एक गुफा

हाल ही में, फूटी कोठी के परिसर में करीब 18 मंदिर बनाए गए हैं, जिनमें अलग-अलग देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं। यहां सर्वजन कल्याण समिति का नियंत्रण है और पूजा-पाठ नियमित रूप से होता है।

मंदिर में पूजा करने वाली मनोरमा तिवारी बताती हैं कि कोठी के अंदर एक अंडरग्राउंड गुफा भी है, जिसका इस्तेमाल कभी सैनिकों के छिपने के लिए होता था। यहां एक दुर्गा माता का मंदिर भी है, लेकिन ज्यादा अंधेरा और डरावना होने की वजह से वहां जाना आसान नहीं होता।

‘डरावनी’ है ये कोठी?

इतिहासकार सदाशिव कौतुभ बताते हैं कि इस तरह की इमारतें अक्सर राजाओं की सैन्य जरूरतों और शिकारगाह के रूप में बनाई जाती थीं। लेकिन समय के साथ यह इमारत अपनी उपयोगिता और देखरेख दोनों खो बैठी है। उन्होंने माना कि आज यह कोठी जर्जर और उपेक्षित स्थिति में है।

स्थानीय लोगों का मानना है कि ये कोठी ‘शापित’ या ‘भुतहा’ है। सालों से वीरान और अधूरी पड़ी इस इमारत में लोग अंधेरे के कारण अकेले जाना पसंद नहीं करते। कुछ का तो यह भी कहना है कि रात में यहां अजीब आवाजें सुनाई देती हैं।

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India Slams Pakistan:अपने ही लोगों पर गिराए बम और 4 लाख महिलाओं का बलात्कार…भूल...

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India Slams Pakistan: संयुक्त राष्ट्र के मंच पर एक बार फिर भारत ने पाकिस्तान की बोलती बंद कर दी है। जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की झूठी और भ्रामक बयानबाज़ी पर भारत ने दो टूक शब्दों में करारा जवाब देते हुए उसे उसकी औकात याद दिला दी। भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत पी. हरीश ने न सिर्फ पाकिस्तान के बार-बार दोहराए गए झूठ को बेनकाब किया, बल्कि उसके इतिहास के काले पन्नों को भी पूरी दुनिया के सामने खोलकर रख दिया।

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“जम्मू-कश्मीर था, है और रहेगा भारत का हिस्सा” India Slams Pakistan

राजदूत हरीश ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान के उस बयान पर पलटवार किया जिसमें उसने फिर से जम्मू-कश्मीर को लेकर विवाद खड़ा करने की कोशिश की थी। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि, “जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा था, है और हमेशा रहेगा।”

भारत ने यह भी कहा कि पाकिस्तान का ये रवैया नया नहीं है। हर साल वो इस वैश्विक मंच का इस्तेमाल भारत के खिलाफ गलत और भ्रामक कहानियां फैलाने के लिए करता है। लेकिन हकीकत यह है कि पाकिस्तान खुद अपने नागरिकों के खिलाफ बर्बरता का इतिहास रखता है।

“जो अपने लोगों को नहीं बचा सका, वो हमें क्या सिखाएगा?”

भारत ने पाकिस्तान की कथनी और करनी का फर्क उजागर करते हुए 1971 के ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ की याद दिलाई। राजदूत पी. हरीश ने कहा कि उस समय पाकिस्तान ने अपनी ही सेना के जरिए 4 लाख महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार और बड़े पैमाने पर नरसंहार को अंजाम दिया था।

उन्होंने पूछा, “जो देश अपने नागरिकों के साथ ऐसी क्रूरता कर चुका हो, वह कैसे भारत को महिलाओं की सुरक्षा और शांति के मुद्दे पर उपदेश दे सकता है?”

“दुनिया देख रही है पाकिस्तान का असली चेहरा”

राजदूत हरीश ने यह भी कहा कि पाकिस्तान की असल मंशा सिर्फ दुनिया का ध्यान भटकाने की है। वह आतंरिक अस्थिरता, आतंकवाद और मानवाधिकार उल्लंघनों को छिपाने के लिए भारत पर झूठे आरोप लगाता है। लेकिन अब दुनिया इस चाल को अच्छी तरह समझ चुकी है।

भारत ने दोहराया कि आतंकवाद को पनाह देने वाले देश को दूसरों पर आरोप लगाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। उन्होंने पाकिस्तान को सलाह दी कि वह दूसरों की तरफ उंगली उठाने से पहले अपने घर की हालत सुधारे।

भारत का सख्त संदेश: झूठ पर अब चुप नहीं रहेंगे

ये पहली बार नहीं है जब भारत ने पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर कठघरे में खड़ा किया हो। लेकिन इस बार भारत का रुख और भी ज्यादा स्पष्ट, सख्त और तथ्य आधारित रहा। भारत ने कहा कि अब वह हर मंच पर पाकिस्तान के झूठ को सामने लाएगा और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सच बताएगा।

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Attack on CJI: “भगवान मुझसे पूछ रहे थे…” CJI पर जूता फेंकने की कोशिश करने वाले वकील र...

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Attack on CJI: सुप्रीम कोर्ट में देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) पर जूता फेंकने की कोशिश करने वाले 72 वर्षीय वकील राकेश किशोर को न तो अपनी हरकत पर पछतावा है और न ही उसने माफी मांगी है। इस अभूतपूर्व घटना के बाद पूरे न्यायिक तंत्र में हलचल मच गई, लेकिन आरोपी वकील का कहना है कि उसने जो किया, वह ‘दैवीय शक्ति’ के मार्गदर्शन में किया।

दिल्ली के मयूर विहार में रहने वाले राकेश किशोर से पुलिस ने करीब तीन घंटे तक पूछताछ की, लेकिन किसी ने औपचारिक शिकायत नहीं दी, इसलिए दोपहर करीब 2 बजे उन्हें छोड़ दिया गया। इतना ही नहीं, पुलिस ने उनका जूता भी वापस कर दिया।

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“भगवान मुझसे पूछ रहे थे…”

हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में किशोर ने साफ कहा कि वह जेल जाने को तैयार था, बल्कि उसके मुताबिक, “अगर जेल चला जाता, तो ज़्यादा अच्छा होता।” उसने यह भी कहा कि वह किसी राजनीतिक संगठन से नहीं जुड़ा है। इस घटना से उसका परिवार बेहद आहत है। किशोर ने कहा, “परिवार बहुत दुखी है। वो समझ नहीं पा रहे कि ये क्या हो गया।”

राकेश किशोर ने बताया कि उसका गुस्सा एक केस में सीजेआई की टिप्पणी को लेकर था। यह मामला भगवान विष्णु की बिना सिर वाली मूर्ति से जुड़ा हुआ था। उसने कहा कि फैसले के बाद वह सो नहीं पाया और दावा किया कि भगवान मुझसे पूछ रहे थे, “ऐसे अपमान के बाद नींद कैसे आ सकती है?”

इसके अलावा, शुक्रवार को मॉरिशस में सीजेआई द्वारा दी गई उस टिप्पणी से भी वह खफा था, जिसमें CJI ने कहा था, “भारत की न्याय व्यवस्था कानून से चलती है, बुलडोजर राज से नहीं।” किशोर को यह बयान भी नागवार गुज़रा।

माफी से इनकार, परिवार नाराज़- Attack on CJI

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के सह-सचिव मीनेश दुबे ने बताया कि किशोर साल 2011 से अस्थायी सदस्य है, लेकिन शायद ही कभी किसी केस में कोर्ट में पेश हुआ हो। दुबे ने कहा, “स्थायी सदस्य बनने के लिए कम से कम दो साल में 20 मामलों में पेश होना जरूरी है, जो उसने कभी नहीं किया।”

दुबे ने घटना के बाद राकेश किशोर से मुलाकात की और बताया कि वकील को कोई अफसोस नहीं है। “उसका कहना था कि उसने जो किया, वह सही किया और उसने माफी मांगने से साफ इनकार कर दिया,” दुबे ने कहा। किशोर के परिवार ने इस पूरे मामले पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की लेकिन उन्होंने नाराज़गी और शर्मिंदगी ज़रूर जताई है।

अदालत में संयम, लेकिन कार्रवाई भी

सीजेआई ने इस घटना को कोर्टरूम में बेहद शांत भाव से हैंडल किया। उन्होंने अधिकारियों और सुरक्षाकर्मियों से कहा कि इस मामले को नजरअंदाज किया जाए और आरोपी वकील को सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ दिया जाए। उनका कहना था, “इन सब से विचलित मत होइए। हम विचलित नहीं हैं। ये चीज़ें मुझे प्रभावित नहीं करतीं।”

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने वकील राकेश किशोर को सोमवार को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया।

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Coldrif Cough Syrup: ‘किलर’ कफ सिरप की फैक्ट्री से हिला देने वाले खुलासे…गंदगी, अवैध ...

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Coldrif Cough Syrup: मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में कफ सिरप पीने से 14 से ज़्यादा बच्चों की मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। ये वही सिरप था जिसे तमिलनाडु की फार्मा कंपनी श्रीसन फार्मास्यूटिकल्स ने तैयार किया था। अब इस फैक्ट्री को लेकर तमिलनाडु सरकार की 26 पन्नों की रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें इतने चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं कि पढ़कर रौंगटे खड़े हो जाएं।

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350 नियमों की धज्जियां उड़ाईं – Coldrif Cough Syrup

इंडिया टुडे/आजतक के पास मौजूद रिपोर्ट में बताया गया है कि श्रीसन फार्मास्यूटिकल्स ने दवा बनाने के नियमों को ताक पर रख दिया था। कफ सिरप बनाने के दौरान 350 से ज़्यादा गाइडलाइन्स का उल्लंघन हुआ, जिनमें 39 ‘क्रिटिकल’ और 325 ‘मेजर’ खामियां पाई गईं। रिपोर्ट में साफ कहा गया कि फैक्ट्री में स्किल्ड मैनपावर, सही मशीनें, क्लीन फैसिलिटी और क्वालिटी चेक जैसी बेसिक चीजें तक मौजूद नहीं थीं।

जहरीला केमिकल DEG, जो बना मौत की वजह

जांच में पता चला कि जिस सिरप का सेवन बच्चों ने किया, उसमें 48.6% डायएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) मिला था। यह एक बेहद ज़हरीला औद्योगिक सॉल्वेंट होता है, जिसका इस्तेमाल ब्रेक फ्लूइड, पेंट और प्लास्टिक जैसे प्रोडक्ट्स में होता है, न कि दवाओं में। DEG किडनी को फेल कर देता है और कम मात्रा में भी इंसान की जान ले सकता है।

कंपनी ने सिरप बनाने में प्रोपलीन ग्लाइकॉल की जगह DEG का इस्तेमाल किया, जो दुनिया भर में कई बार जानलेवा साबित हो चुका है।

गंदगी और लापरवाही का अड्डा थी फैक्ट्री

रिपोर्ट में कहा गया है कि फैक्ट्री की हालत बेहद खराब थी। न एयर हैंडलिंग यूनिट थी, न ही सही वेंटिलेशन। कई मशीनें टूटी हुई थीं और जंग खाई हुई थीं। सिरप का उत्पादन ऐसे माहौल में हो रहा था जहां साफ-सफाई का नामोनिशान नहीं था। प्लांट का लेआउट ही ऐसा था कि दवा के दूषित होने की संभावना बनी रहती थी।

अवैध केमिकल की खरीद और खराब सिस्टम

श्रीसन कंपनी ने 50 किलो प्रोपलीन ग्लाइकॉल बिना किसी बिल के खरीदा, जो सीधे तौर पर कानून का उल्लंघन है। न तो कोई फिल्ट्रेशन सिस्टम था, न ही फार्माकोविजिलेंस सिस्टम, जिससे दवा के साइड इफेक्ट्स पर नजर रखी जा सके। केमिकल्स को प्लास्टिक पाइप्स से ट्रांसफर किया जा रहा था और गंदा पानी सीधे नालियों में फेंका जा रहा था।

कीड़े, चूहे और बिना जांच के दवाएं

जांच टीम ने फैक्ट्री में कीड़े-मकोड़ों और चूहों से बचाव का कोई इंतज़ाम नहीं पाया। फ्लाई कैचर्स और एयर कर्टेन्स जैसे बेसिक सुरक्षा साधन भी गायब थे। यहां तक कि सिरप के बैच को बिना टेस्ट किए ही रिलीज कर दिया जाता था। सैंपलिंग खुले वातावरण में की जाती थी, जिससे दूषित होना लगभग तय था।

सरकार की कार्रवाई

इस रिपोर्ट के बाद तमिलनाडु सरकार ने तुरंत एक्शन लेते हुए 1 अक्टूबर से पूरे राज्य में कोल्ड्रिफ कफ सिरप की बिक्री पर रोक लगा दी और बाजार से सारा स्टॉक हटाने का आदेश जारी किया। साथ ही फैक्ट्री से मिले सैंपलों में मिलावट की पुष्टि होने के बाद प्रोडक्शन पर भी तत्काल रोक लगा दी गई है।

मध्य प्रदेश सरकार ने भी इस पर सख्त कार्रवाई की है। राज्य के तीन अधिकारियों को निलंबित किया गया है, ड्रग कंट्रोलर को हटाया गया और जिस डॉक्टर (प्रवीण सोनी) ने यह सिरप प्रिस्क्राइब किया था, उसे गिरफ्तार करके निलंबित कर दिया गया है। मृत बच्चों के परिवारों को ₹4 लाख मुआवजा देने का ऐलान किया गया है।

वहीं, केंद्र सरकार ने भी सतर्कता बरतते हुए 6 राज्यों में 19 फार्मा यूनिट्स का जोखिम आधारित निरीक्षण शुरू कर दिया है।

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Karva Chauth 2025: सुहागिनों के साल का सबसे बड़ा त्योहार,जानें इस बार कब मनाया जाएगा स...

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Karva Chauth 2025: हर सुहागिन महिला (Married women) के लिए करवा चौथ (Kavwa Chauth) साल का सबसे खास और महत्वपूर्ण दिन होता है। यह सिर्फ़ एक व्रत नहीं, बल्कि पति-पत्नी के बीच अटूट प्रेम, समर्पण और विश्वास का प्रतीक है।
इस दिन, विवाहित महिलाएँ निर्जला व्रत रखती हैं—सूर्योदय से चंद्रोदय तक उपवास—बिना अन्न-जल ग्रहण किए, अपने पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुखी जीवन की कामना करती हैं। लेकिन क्या आप जानते है इस साल करवा चौथ कब मनाया जाएगा। अगर नहीं तो चलिए आपको इस लेख में विस्तार से बताते हैं।

करवा चौथ कब मनाया जाएगा?

हिंदी पंचांग के मुताबिक इस साल यानी 2025 में करवा चौथ शुक्रवार, 10 अक्टूबर को मनाया जाएगा। यद्यपि चतुर्थी तिथि 9 अक्टूबर की रात से शुरू होती है, उदया तिथि, पूजा का शुभ समय और चंद्रोदय का समय 10 अक्टूबर को है, इसलिए व्रत उसी दिन रखा जाएगा। यह पवित्र त्यौहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।

विवरण समय और तिथि
व्रत की तिथि (मुख्य दिन) 10 अक्टूबर 2025, शुक्रवार
चतुर्थी तिथि प्रारंभ 09 अक्टूबर 2025, रात 10:54 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त 10 अक्टूबर 2025, शाम 07:38 बजे
करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05:57 बजे से 07:11 बजे तक
पूजा की अवधि 1 घंटा 14 मिनट
चंद्रोदय का समय रात 08:13 बजे

 

कैसे करे करवा चौथ व्रत पूजा विधि

करवा चौथ (Karwa Chauth) के दिन, विवाहित महिलाएं सूर्योदय से पहले स्नान करके और अपनी सास द्वारा दी गई सरगी (मीठा पकवान) खाकर निर्जला व्रत रखने का संकल्प लेती हैं। पूरे दिन उपवास करने के बाद, वे सोलह श्रृंगार करके शाम की पूजा की तैयारी करती हैं।

वही पूजा स्थल पर गौरी और गणेश की मूर्ति स्थापित की जाती हैं और उन्हें सुहाग का सामान चढ़ाया जाता है। इतना ही नहीं एक करवा (मिट्टी का बर्तन) पानी और अनाज से भरा होता है।

सुहागिन महिला को दे सुहाग का सामान 

सभी विवाहित महिलाएं करवा चौथ व्रत कथा सुनने और गौरी, गणेश और करवा माता की पूजा करने के लिए एकत्रित होती हैं। जब चंद्रमा उदय होता है, तो महिलाएं सबसे पहले छलनी से चंद्रमा को देखती हैं और अर्घ्य (जल) देती हैं। इसके बाद, वे उसी छलनी से अपने पति का चेहरा देखती हैं। अंत में, वे अपने पति के हाथ से पानी पीकर और मिठाई खाकर अपना व्रत तोड़ती हैं। इसके अलवा आपको बता दें, अपनी सास या किसी अन्य सुहागिन महिला (जेठानी, पंडिताइन) को बायना (पूजन सामग्री, मिठाई, वस्त्र आदि) देकर उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें।

Sikhism in Washington: 1907 की राख से उठे सिख, आज वाशिंगटन की पहचान हैं

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Sikhism in Washington: अगर आप आज वाशिंगटन के किसी गुरुद्वारे में जाएं चाहे वो वाशिंगटन का गुरुद्वारा सिंह सभा हो या सिएटल का गुरुद्वारा सिख केंद्र, वहां की रौनक, श्रद्धा और भाईचारा देखकर शायद आप अंदाज़ा भी न लगा पाएं कि इस समुदाय ने यहां तक पहुंचने के लिए कितने ज़ख्म सहे हैं, कितनी दीवारें तोड़ी हैं।

यह कहानी है उन सिखों की, जो करीब 125 साल पहले भारत से अमेरिका आए थे…सपनों की तलाश में, बेहतर जिंदगी की उम्मीद में। लेकिन यहां कदम रखते ही उन्हें जिस हकीकत का सामना करना पड़ा, वो किसी भी मायने में आसान नहीं थी।

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शुरुआत: जब सिखों ने अमेरिका का रुख किया

सब कुछ शुरू हुआ 19वीं सदी के आखिर में, जब पंजाब से कई सिख अमेरिका आए। ब्रिटिश राज की वजह से भारत में हालत खराब थे राजनीतिक दबाव, आर्थिक तंगी और नौकरियों की कमी। ऐसे में कई नौजवानों ने अमेरिका की तरफ रुख किया, खासकर वेस्ट कोस्ट के शहरों जैसे सैन फ्रांसिस्को, सिएटल, एस्टोरिया और वैंकूवर। उस वक्त यह लोग खेती, रेल लाइन बिछाने और लकड़ी की मिलों में काम करते थे।

पर उनका अलग पहनावा पगड़ी और बिना कटे बाल उन्हें बाकी लोगों से अलग बना देता था। नस्लीय भेदभाव, जो पहले से ही चीनी और जापानी प्रवासियों के खिलाफ था, अब सिखों की तरफ भी मुड़ गया।

बेलिंगहैम की वो डरावनी रात- Sikhism in Washington

4 सितंबर 1907 की रात वाशिंगटन राज्य के बेलिंगहैम शहर में कुछ ऐसा हुआ जिसने सिख इतिहास में एक काला अध्याय जोड़ दिया। उस वक्त सिख मज़दूर बड़ी तादाद में यहां की लकड़ी मिलों में काम कर रहे थे। सख्त मेहनत करने की आदत और शराब से दूरी रखने की वजह से ये मालिकों की पहली पसंद बन चुके थे।

लेकिन यही चीजें कुछ स्थानीय गोरे मजदूरों को खटकने लगीं। एक गैंग, जिसमें करीब 400 लोग थे और जो ‘एशियाटिक एक्सक्लूजन लीग’ से जुड़े थे, उन्होंने सिखों के घरों पर हमला कर दिया। सिखों को घसीट कर बाहर निकाला गया, मारा-पीटा गया और शहर छोड़ने पर मजबूर किया गया। कई सिख उत्तर में ब्रिटिश कोलंबिया चले गए, कुछ दक्षिण की ओर कैलिफोर्निया की तरफ निकल पड़े।

इसी साल, 2 नवंबर 1907 को वाशिंगटन के एवरेट शहर में भी सिखों पर ऐसा ही हमला हुआ। अमेरिका के कई हिस्सों में एशियाई विरोधी कानूनों ने सिखों को ज़मीन खरीदने, अपने परिवारों को साथ लाने और यहां बसने के अधिकार से भी वंचित कर दिया।

अन्याय के खिलाफ खड़ी होती एक आवाज: गदर आंदोलन

अमेरिका में मिले इस अन्याय और भारत में पहले से चल रहे ब्रिटिश जुल्म ने सिखों के भीतर एक अलग ही चेतना जगा दी। उन्होंने महसूस किया कि जब तक भारत आज़ाद नहीं होगा, तब तक दुनिया के किसी कोने में सिख सुरक्षित नहीं रहेंगे। इसी सोच ने जन्म दिया ग़दर पार्टी को…एक क्रांतिकारी आंदोलन जिसने ब्रिटिश राज के खिलाफ आवाज़ उठाई।

ग़दर पार्टी में ज्यादातर लोग सिख थे जो अमेरिका के वेस्ट कोस्ट में बसे थे…ओरेगन, वाशिंगटन और कैलिफोर्निया में। बाबा सोहन सिंह भकना, जो अप्रैल 1909 में सिएटल पहुंचे थे, इस आंदोलन के शुरुआती नेताओं में से थे। वो ओरेगन की लकड़ी मिलों में काम करने के बाद धीरे-धीरे क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए।

1915 में कैलिफोर्निया के स्टॉकटन में अमेरिका का पहला गुरुद्वारा बना—स्टॉकटन गुरुद्वारा, जो ना सिर्फ आध्यात्मिक केंद्र बना, बल्कि गदर आंदोलन की गतिविधियों का केंद्र भी।

भूप सिंह थिंड और अमेरिकी कानून से टकराव

सिखों के संघर्ष की एक और अहम कहानी है भगत सिंह थिंड की। 1913 में सिएटल पहुंचने के बाद उन्होंने ओरेगन की मिलों में काम किया और फिर 1918 में पहले पगड़ीधारी सिख के रूप में अमेरिकी सेना में शामिल हुए। पर जब उन्होंने नागरिकता के लिए आवेदन किया, तो अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने उनका आवेदन सिर्फ इसलिए खारिज कर दिया क्योंकि वो “गोरों जैसे नहीं दिखते थे।”

1923 के थिंड बनाम यूनाइटेड स्टेट्स केस में कोर्ट ने कहा कि आम अमेरिकी की नजर में थिंड गोरे नहीं थे, इसलिए उन्हें नागरिकता नहीं दी जा सकती। नतीजा ये हुआ कि पहले से जिन सिखों को नागरिकता मिल चुकी थी, उनकी भी नागरिकता छीन ली गई।

1965 के बाद फिर खुला रास्ता

दशकों तक सिखों की संख्या अमेरिका में कम होती रही, लेकिन 1965 में पास हुए इमिग्रेशन एक्ट ने उनके लिए नए रास्ते खोले। इसके बाद बड़ी संख्या में सिख अमेरिका आने लगे। लेकिन 1984 में जो हुआ, उसने इस माइग्रेशन को और तेज कर दिया।

पंजाब में 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान भारतीय सेना ने सिखों के सबसे पवित्र स्थानों पर हमला किया। इसके बाद इंदिरा गांधी की हत्या और देशभर में भड़के सिख विरोधी दंगों में हजारों सिखों की जान गई। 1984 से 1994 के बीच भारत में सिखों के खिलाफ हुए दमन को आज पूरी दुनिया में सिख नरसंहार के नाम से जाना जाता है।

कई सिख इस दौर में भारत छोड़कर अमेरिका आए और वाशिंगटन समेत कई राज्यों में बस गए।

आज का सच: गर्व और पहचान

आज वाशिंगटन अमेरिका का तीसरा ऐसा राज्य है जहां सबसे ज्यादा सिख रहते हैं। आंकड़ों की बात करें तो 2021 के अमेरिकन कम्युनिटी सर्वे के मुताबिक सिर्फ वाशिंगटन डीसी मेट्रोपॉलिटन एरिया में 13,054 पंजाबी बोलने वाले लोग रहते हैं। लेकिन सिख समुदाय की जनगणना में कम भागीदारी के चलते यह संख्या हकीकत से कहीं कम है। विशेषज्ञों के मुताबिक इसे 1.6 से गुणा किया जाए तो असली संख्या करीब 20,886 तक पहुंचती है।

पूरे अमेरिका में सिखों की अनुमानित संख्या 5 से 7 लाख के बीच है। लेकिन इनमें से बहुत से लोग जनगणना में अपनी पहचान को सही से दर्ज नहीं करा पाते, जिसकी वजह से उनकी वास्तविक संख्या का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है।

शिक्षा में बदलाव: नई पीढ़ी के लिए नई शुरुआत

इतना ही नहीं सिखों को लेकर 2023 में वाशिंगटन डीसी में एक ऐतिहासिक फैसला हुआ। डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया स्टेट बोर्ड ऑफ एजुकेशन ने स्कूल पाठ्यक्रम में सिख धर्म को शामिल करने के पक्ष में मतदान किया। इसका मतलब है कि अब यहां के 49,800 से ज्यादा छात्र स्कूल में सिख धर्म और सिख अमेरिकियों के इतिहास के बारे में पढ़ेंगे।

यह कदम 17 अन्य अमेरिकी राज्यों की तरह है, जहां पहले से सिख धर्म को स्कूली शिक्षा में शामिल किया गया है। सिख कोएलिशन के शिक्षा निदेशक हरमन सिंह ने इसे “कट्टरता और डराने-धमकाने की घटनाओं को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम” बताया।

वहीं, वर्जीनिया स्टेट बोर्ड ऑफ एजुकेशन ने भी अप्रैल 2023 में इतिहास और सामाजिक विज्ञान के नए मानकों को पास किया, जिसमें सिख इतिहास भी शामिल है।

समुदाय की आवाज़

वाशिंगटन में सिख समुदाय के प्रमुख सदस्य दलजीत सिंह साहनी ने कहा, “ये नए मानक हमारे देश की राजधानी में सिख अमेरिकियों के अनुभवों को पहचान दिलाने का जरिया बनेंगे। समावेशी शिक्षा यह सुनिश्चित करती है कि सिखों को भी देखा और सुना जाए।”

सिख कोएलिशन ने अपने बयान में कहा कि इन प्रयासों से अब 25 मिलियन से अधिक छात्रों को सिख धर्म और सिख इतिहास को जानने का मौका मिलेगा। इससे सिर्फ शिक्षा ही नहीं बदलेगी, समाज में समझदारी और सम्मान की भावना भी बढ़ेगी।

गुरुद्वारों से मजबूत होते रिश्ते

वाशिंगटन में सिखों की उपस्थिति आज सिर्फ जनसंख्या तक सीमित नहीं है, बल्कि यहाँ कई महत्वपूर्ण गुरुद्वारे भी हैं जो ना सिर्फ धार्मिक स्थल हैं, बल्कि कम्युनिटी सेंटर की तरह भी काम करते हैं। इनमें प्रमुख हैं:

  • वाशिंगटन का गुरुद्वारा सिंह सभा (Gurudwara Singh Sabha of Washington)
  • सिएटल का गुरुद्वारा सिख केंद्र (Gurdwara Sikh Centre Of Seattle)
  • याकिमा वाशिंगटन का गुरुद्वारा सिंह सभा (Gurudwara Singh Sabha of Yakima Washington)
  • गुरुद्वारा श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी (Gurudwara Sri Guru Tegh Bahadur Sahib Ji)

यह गुरुद्वारे नई पीढ़ी को ना सिर्फ उनकी जड़ों से जोड़ते हैं, बल्कि अमेरिका में उनके आत्मविश्वास, पहचान और आत्मसम्मान का प्रतीक भी बन चुके हैं।

संघर्ष से आगे बढ़ते कदम

वाशिंगटन में सिखों की कहानी सिर्फ एक प्रवासी समुदाय की गाथा नहीं है, बल्कि यह उस हौसले की कहानी है जो पीढ़ियों तक जिंदा रहा। भले ही शुरुआत में सिखों को नफरत, हिंसा और भेदभाव का सामना करना पड़ा हो, लेकिन आज वो उसी ज़मीन पर अपने धर्म, पहचान और मूल्यों के साथ मजबूती से खड़े हैं।

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