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Bhilwara News: होंठ फेवीक्विक से सिले, मुंह में पत्थर ठूंस दिए…राजस्थान में नवज...

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Bhilwara News: राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के सीताकुंड जंगल में जो मंजर सामने आया, उसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया। घने पेड़ों के बीच पसरी खामोशी उस वक्त टूट गई, जब एक चरवाहे ने पत्थरों के नीचे किसी मासूम की हलचल महसूस की। पास जाकर देखा तो रूह कांप गई…. 15 दिन का एक नवजात बच्चा, जिसके मुंह में पत्थर ठूंस दिया गया था और होंठ फेवीक्विक से सिले हुए थे। किसी ने उसकी चीख को हमेशा के लिए दबाने की कोशिश की थी, लेकिन कुदरत को शायद कुछ और ही मंजूर था। मौत के मुंह से वापस आई इस नन्ही सी जान की कहानी आपको भीतर तक हिला देगी।

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जिंदगी और मौत के बीच लटका था 15 दिन का जीवन- Bhilwara News

जिस हाल में वो बच्चा मिला, वो किसी के भी रोंगटे खड़े कर देने के लिए काफी था। मुंह पर जबरन चिपकाया गया पत्थर, दाईं जांघ पर जलने के निशान और पत्थरों के नीचे दबी एक नन्ही सी जान ये मंजर दिल दहला देने वाला था।

चरवाहे ने बिना वक्त गंवाए उसे बाहर निकाला, धीरे-धीरे उसके मुंह से पत्थर हटाया और तुरंत पुलिस और अस्पताल को सूचना दी। बच्चा अब सरकारी अस्पताल में इलाज के बाद सुरक्षित है। डॉक्टरों का कहना है कि समय पर इलाज मिल गया, वरना जान बचाना मुश्किल होता।

 डॉक्टर बोले: जिंदा हैं पर जख्म गहरे हैं

बिजौलिया अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. मुकेश धाकड़ ने जानकारी दी कि बच्चा करीब 15 से 20 दिन का है। उसके मुंह पर फेवीक्विक लगाया गया था और शरीर पर जलाने के निशान भी मिले हैं। उसे दूध पिलाया गया, और अब उसकी हालत स्थिर है, लेकिन ज़्यादा अच्छे इलाज के लिए उसे भीलवाड़ा हायर सेंटर भेज दिया गया है।

पुलिस की जांच शुरू, दरिंदे की तलाश जारी

पुलिस ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लिया है। जांच तेजी से चल रही है। आसपास के अस्पतालों के डिलीवरी रिकॉर्ड खंगाले जा रहे हैं, ताकि पता लगाया जा सके कि ये बच्चा किसका है और किसने उसे इस हालत में छोड़ दिया।

मांडलगढ़ और बिजौलिया क्षेत्र के गांवों में पूछताछ हो रही है। पुलिस का कहना है कि ऐसे अपराध को अंजाम देने वाला कोई और नहीं, शायद माता-पिता या उनके जानने वाले ही हो सकते हैं।

सवाल जो रह गए हैं…

  • कोई कैसे एक नन्हे से बच्चे के मुंह में पत्थर चिपका सकता है?
  • क्या ये बच्चा किसी गैरकानूनी रिश्ते का नतीजा था?
  • क्या कोई परिवार का दबाव, समाज का डर या मानसिक बीमारी इस क्रूरता के पीछे है?

इन सवालों का जवाब अभी बाकी है, लेकिन एक बात साफ है इंसानियत ने यहां हार मान ली, लेकिन कुदरत ने उस मासूम को हारने नहीं दिया।

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Sikhism in British Columbia: जब ब्रिटिश कोलंबिया में सफेद जहाज़ से उतरे कुछ पगड़ीधारी...

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Sikhism in British Columbia: पंजाब की मिट्टी में पले-बढ़े कुछ जांबाज सिख फौजी पहली बार कनाडा की धरती पर कदम रखते हैं। साल था 1897, जब महारानी विक्टोरिया की डायमंड जुबली के मौके पर ब्रिटिश आर्मी के हिस्से के रूप में कुछ पंजाबी सैनिक ब्रिटिश कोलंबिया आए। ये एक आधिकारिक दौरा था, बस कुछ दिनों का ठहराव था, लेकिन इस छोटी सी यात्रा ने बहुत बड़ी कहानी की नींव रख दी।

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इन फौजियों ने जब ब्रिटिश कोलंबिया की हरी-भरी वादियों और खेतों को देखा, तो उन्हें पंजाब की याद आ गई। वही मिट्टी की खुशबू, वही खेतों का फैला हुआ विस्तार मानो कोई छोटा पंजाब हो। लोकल लोगों ने भी इन सिख फौजियों को बड़े सम्मान से देखा। उस वक़्त वैंकूवर के अख़बारों में हेडलाइन छपी: “Turbaned Men Excite Interest: Awe-Inspiring Men from India Held the Crowds.”

फिर शुरू हुआ असली सफर- Sikhism in British Columbia

पहली यात्रा के बाद, 1902 में फिर एक दूसरी टुकड़ी आई, किंग एडवर्ड VII की ताजपोशी के मौके पर। और फिर तो जैसे दरवाज़ा खुल गया। 1904 से 1908 के बीच करीब 5,000 पंजाबी पुरुष ब्रिटिश कोलंबिया में आकर बस गए। उस वक़्त महिलाएं और बच्चे कम ही आ पाते थे, इसलिए ये सभी पुरुष अकेले रहते थे वो भी छोटे-छोटे ग्रुप्स में, किसी फैक्ट्री में, किसी खेत में काम करते, और एक-दूसरे को परिवार की तरह मानकर रहते।

लेकिन ये ज़िंदगी आसान नहीं थी। परिवार दूर, संस्कृति अलग, भाषा नई सब कुछ अलग। फिर भी, इन सिखों ने हार नहीं मानी। दिन में मेहनत करते और रात में एक-दूसरे के साथ बैठकर घर की बातें करते, गाना-बजाना करते। धीरे-धीरे इन्होंने एक मजबूत कम्युनिटी बनानी शुरू की।

खालसा दीवान सोसाइटी और पहला गुरुद्वारा

1906 में Khalsa Diwan Society का गठन हुआ यह कनाडा की पहली सिख संस्था थी। फिर 1908 में वैंकूवर में बना पहला गुरुद्वारा, Second Avenue Gurdwara। ये सिर्फ एक धार्मिक जगह नहीं थी, बल्कि एक सहारा था। यहां लंगर चलता, कीर्तन होता और सबसे बड़ी बात कोई नया आता, तो उसे वहीं से मदद मिलती।

खालसा दीवान सोसाइटी ने बाद में विक्टोरिया, एबॉट्सफोर्ड और न्यू वेस्टमिंस्टर में भी गुरुद्वारे बनवाए। यही वो जगहें थीं, जहां सिखों की पहचान रची जा रही थी एक नई ज़मीन पर, नए सपनों के साथ।

लेकिन रास्ता आसान नहीं था…

इसी बीच, 1908 में सिखों का वोट देने का अधिकार छीन लिया गया। ‘हिंदू’ कहकर उन्हें बाकी समाज से अलग किया गया (तब सभी भारतीयों को ‘हिंदू’ कह दिया जाता था)। अकेले रह रहे इन पुरुषों की हालत और मुश्किल हो गई। लेकिन फिर भी, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। कुछ सिख 1914 में भारत लौटे, ग़दर मूवमेंट से जुड़े, भारत की आज़ादी के लिए लड़े।

फिर 1920 के दशक में हालात थोड़े बदले। नियमों में ढील दी गई और महिलाएं-बच्चे भी आना शुरू हुए। परिवार बनने लगे, सिख आबादी फिर से बढ़ने लगी। धीरे-धीरे लोग “कनाडियनाइज़” होने लगे। कपड़े बदले, बच्चों को स्कूल भेजा, लेकिन दिल अब भी पंजाब में ही धड़कता था।

British Columbia में बढ़ता सिख समुदाय

आज अगर ब्रिटिश कोलंबिया की बात करें, तो यहां सिखों की मौजूदगी हर जगह महसूस होती है खासकर लोअर मेनलैंड, वैंकूवर, सरे, एबॉट्सफोर्ड और डेल्टा जैसे इलाकों में।

2021 की जनगणना के मुताबिक:

  • Surrey में सिख आबादी 27.5% है — यानी हर चार में से एक व्यक्ति सिख है। न्यूटन और व्हाली जैसे इलाकों में तो सिख बहुमत में हैं।
  • Abbotsford में ये आंकड़ा 25.5% है। यहां के क्लियरब्रुक और टाउनलाइन हिल जैसे इलाकों में तो सिख 60% से भी ज्यादा हैं।
  • Delta, Mission, Squamish, Oliver और New Westminster जैसे इलाकों में भी सिख समुदाय की अच्छी खासी संख्या है।

यह आंकड़े सिर्फ संख्या नहीं दिखाते ये इस बात की गवाही हैं कि कैसे एक छोटी सी शुरुआत आज इतने बड़े स्तर पर पहुंच चुकी है।

गुरुद्वारों का नेटवर्क एक कम्युनिटी की रीढ़

इतना ही नहीं, आज ब्रिटिश कोलंबिया में दर्जनों गुरुद्वारे हैं। कुछ मुख्य गुरुद्वारों के नाम देखिए:

  • खालसा दीवान सोसाइटी – एबॉट्सफोर्ड
  • गुरु नानक सिख मंदिर – फोर्ट सेंट जॉन
  • गोल्डन सिख सांस्कृतिक सोसाइटी – गोल्डन
  • गुरुद्वारा साहिब – 100 माइल हाउस
  • गुरुद्वारा सिख संगत – न्यू वेस्टमिंस्टर
  • मेरिट सिख सोसाइटी – मेरिट
  • सिख सांस्कृतिक सोसाइटी – कैमलूप्स
  • ओकानागन सिख मंदिर – केलोना

ये गुरुद्वारे सिर्फ पूजा स्थल नहीं हैं, बल्कि एक पूरी कम्युनिटी सेंटर की तरह काम करते हैं। बच्चों को पंजाबी पढ़ाई जाती है, युवाओं को इतिहास बताया जाता है, लंगर चलता है, और जरूरतमंदों की हर तरह से मदद की जाती है।

पंजाबी भाषा और शिक्षा में योगदान

आपको बता दें, ब्रिटिश कोलंबिया में पंजाबी सिर्फ घरों में बोली जाने वाली भाषा नहीं रही। अब ये स्कूलों में पढ़ाई जाती है खासकर सरे और एबॉट्सफोर्ड में। सरे में पंजाबी भाषा को पांचवीं क्लास से कोर्स में शामिल किया गया है। हालांकि एबॉट्सफोर्ड में इसे लेकर विवाद भी हुआ, कुछ लोगों ने कहा कि सिर्फ अंग्रेज़ी और फ्रेंच पढ़ाई जानी चाहिए, लेकिन सिख समुदाय ने इसे अपनी पहचान और सम्मान से जोड़ा और आज पंजाबी को वहां भी स्वीकार किया जा चुका है।

सांस्कृतिक त्योहार और समुदाय का रंग

वसाखी, नगर कीर्तन, गुरु पर्व पर ब्रिटिश कोलंबिया में इन त्योहारों का जोश देखने लायक होता है। खासकर सरे और वैंकूवर का नगर कीर्तन, जिसमें लाखों की संख्या में लोग शामिल होते हैं। एबॉट्सफोर्ड में Labor Day Weekend पर होने वाला नगर कीर्तन भी बेहद प्रसिद्ध है।

वसाखी पर न केवल कीर्तन और लंगर होता है, बल्कि झांकियां निकलती हैं, पंजाबी स्कूल और एकेडेमियां भी इसमें हिस्सा लेती हैं। ये त्योहार अब सिर्फ सिख समुदाय तक सीमित नहीं हैं, बल्कि कनाडा की मुख्यधारा में शामिल हो चुके हैं।

धार्मिक पहचान और चुनौतियां

जहां एक तरफ सिखों ने समाज में सम्मान पाया, वहीं कई बार अपनी धार्मिक पहचान को लेकर विवादों में भी घिरे। जैसे किरपान (सिखों का पवित्र कृपाण) को लेकर कई कोर्ट केस हुए खासकर Québec में। लेकिन 2006 में सुप्रीम कोर्ट ऑफ कनाडा ने साफ किया कि किरपान पर बैन कनाडा के संविधान का उल्लंघन है। बाद में RCMP (कनाडा की पुलिस) ने भी टर्बन पहनने की अनुमति दी, जो पहले नहीं दी जाती थी।

इन फैसलों से सिखों को न केवल कानूनी हक मिले, बल्कि उनकी पहचान को भी सम्मान मिला।

सिख आबादी का घर कनाडा

आपको जानकार हैरानी होगी कि कनाडा में सिख धर्म को चौथा सबसे बड़ा धर्म माना जाता है, जिसकी 2021 की जनगणना के अनुसार लगभग 8,00,000 अनुयायी हैं, यानी कनाडा की कुल जनसंख्या का लगभग 2.1 प्रतिशत। कनाडा में सिख समुदाय सबसे अधिक ओंटारियो, ब्रिटिश कोलंबिया और अल्बर्टा में केंद्रित है, और यह भारत के बाहर सबसे बड़ी सिख आबादी का घर है।

वहीं, आज ब्रिटिश कोलंबिया का सिख समुदाय न केवल अपनी संस्कृति और पहचान को संजोए हुए है, बल्कि कनाडा की विविधता, सहिष्णुता और बहुलता का एक शानदार उदाहरण बन चुका है।

और ये सब एक सफेद जहाज से आए कुछ “पगड़ीधारी फौजियों” से शुरू हुआ था… जो यहां की मिट्टी को देखकर बोले थे — “यह तो बिलकुल पंजाब जैसा है!”

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West Bengal Flood: 252 मिमी बारिश में थमा कोलकाता, 10 की मौत, 90 फ्लाइट्स रद्द, हालात...

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West Bengal Flood: कोलकाता में बीते 48 घंटे की बारिश ने शहर को पूरी तरह से थाम दिया है। 252 मिमी से ज्यादा बारिश ने कोलकाता की सड़कों को दरिया बना दिया, मेट्रो स्टेशन पानी में डूब गए और एयरपोर्ट पर फ्लाइट्स की कतारें रद्द होती चली गईं। गरिया, जोधपुर पार्क और कालीघाट जैसे इलाके जलमग्न हैं। बारिश की ये मात्रा शहर की सालाना बारिश का करीब 20% है और सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि खतरा अभी टला नहीं है। मौसम विभाग ने नए निम्न दबाव के कारण और तेज बारिश की चेतावनी दी है। हालात ऐसे हैं कि 1978 की भयावह बाढ़ की यादें ताजा हो गई हैं।

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गरिया में सबसे ज़्यादा पानी बरसा- West Bengal Flood

बारिश की सबसे ज्यादा मार गरिया क्षेत्र ने झेली, जहां 332 मिमी तक पानी बरस चुका है। इसके अलावा जोधपुर पार्क (285 मिमी), कालीघाट (280 मिमी), तोस्पिया (275 मिमी), बल्लीगंज (264 मिमी), चेतला (262 मिमी), मोमिनपुर (234 मिमी), बेलेघाटा (217 मिमी), धापा (212 मिमी), उल्टाडांगा (207 मिमी), थंथनिया (195 मिमी), बेलगछिया (178 मिमी) और मानिकतला (169 मिमी) जैसे इलाकों में भी हालात बेहद खराब हैं। सड़कों पर गाड़ियों की लंबी कतारें, दुकानें बंद और निचले इलाकों में घरों के अंदर तक पानी घुस चुका है।

खतरा अभी टला नहीं, नया सिस्टम बना रहा है दबाव

हालात को देखते हुए मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि ये बस शुरुआत हो सकती है। 25 सितंबर को बंगाल की खाड़ी के उत्तर-पश्चिम में एक और निम्न दबाव बनने वाला है, जो ओडिशा और आंध्र प्रदेश की ओर बढ़ सकता है। क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र के डिप्टी डायरेक्टर HR बिस्वास ने कहा कि यह सिस्टम धीरे-धीरे और मजबूत होगा और इसका असर पूरे दक्षिण बंगाल में पड़ेगा। विशेषकर पूजा की शुरुआत तक मध्यम से भारी बारिश की संभावना बनी हुई है।

बारिश बनी जानलेवा, 10 मौतें, ज्यादातर करंट से

इस मूसलधार बारिश ने जान भी ली है। कम से कम 10 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें से 9 लोग करंट लगने से मारे गए। कई जगह खुले तारों और पानी के संपर्क में आने से खतरा और भी बढ़ गया है। प्रशासन ने लोगों से अपील की है कि जलभराव वाले इलाकों में बिजली उपकरणों से दूरी बनाकर रखें।

फ्लाइट्स-ट्रेन्स पर भी पड़ा असर, सफर हुआ मुश्किल

कोलकाता एयरपोर्ट भी इस बारिश की चपेट में आ गया। 90 से ज्यादा फ्लाइट्स प्रभावित हुईं, जिनमें 42 इनबाउंड और 49 आउटबाउंड उड़ानें रद्द करनी पड़ीं। इसके अलावा 33 आने वाली और 62 जाने वाली फ्लाइट्स को देरी का सामना करना पड़ा। एक फ्लाइट को डायवर्ट भी किया गया।

रेलवे का हाल भी कुछ ऐसा ही रहा। कोलकाता मेट्रो के कई स्टेशनों में पानी भर गया, जिसके चलते शहीद खुदीराम से मेडन स्टेशन तक सेवा बंद करनी पड़ी। हावड़ा और सियालदह के यार्ड में भी भारी जलभराव के कारण कई ट्रेनों को रद्द या री-शिड्यूल किया गया।

रद्द की गई प्रमुख ट्रेनें:

  • कोलकाता-हल्दीबाड़ी एक्सप्रेस (12363)
  • हाजारदुआरी एक्सप्रेस (13113)
  • सियालदह-जंगीपुर एक्सप्रेस (13177)

री-शिड्यूल की गई ट्रेनों में शामिल हैं:

  • हावड़ा-न्यू जलपाईगुड़ी वंदे भारत एक्सप्रेस
  • हावड़ा के अन्य इंटरसिटी रूट्स

अल नीनो का भी असर, बारिश की तीव्रता बढ़ी

CEEW के जलवायु विशेषज्ञ विश्वास चितले का कहना है कि इस बारिश की तीव्रता अल नीनो प्रभाव से भी जुड़ी है। उन्होंने बताया कि पिछले 10 वर्षों में दक्षिण बंगाल में भारी बारिश वाले दिनों की संख्या लगातार बढ़ी है। कोलकाता को अब जल्द से जल्द शहरी बाढ़ से निपटने के लिए योजना बनानी होगी, ताकि भविष्य में ऐसे हालात से निपटा जा सके।

साइंस जर्नल में प्रकाशित न्यूयॉर्क के सिटी कॉलेज के प्रोफेसर स्पेंसर हिल के शोध के मुताबिक, अल नीनो अब केवल सूखे की वजह नहीं है, बल्कि ये अत्यधिक दैनिक बारिश को भी बढ़ाता है। उनका कहना है कि यह ट्रेंड वैज्ञानिकों के लिए भी चौंकाने वाला है, क्योंकि लंबे समय से अल नीनो को सिर्फ मानसून में कमी से जोड़ा जाता रहा है।

मेट्रो स्टेशन के अंदर तक पानी, पंप लगाने के बाद भी काबू नहीं

कोलकाता के उत्तम कुमार और रवींद्र सरोवर मेट्रो स्टेशनों के बीच का हिस्सा पूरी तरह जलमग्न हो गया। रेलवे यार्ड और कार शेड्स में पानी भरने से ट्रेनों की आवाजाही बुरी तरह प्रभावित हुई है। कई जगहों पर वाटर पंप लगाए गए हैं, लेकिन बारिश के लगातार जारी रहने और आसपास के इलाकों से वापस पानी आने के कारण हालात में सुधार नहीं हो पा रहा।

1978 और 1986 की बाढ़ की आई यादें

यह हालात 1978 की उस भयानक बाढ़ की याद दिला रहे हैं, जब दुर्गा पूजा से ठीक पहले कोलकाता पूरी तरह डूब गया था। उस साल एक दिन में 280 मिमी बारिश हुई थी। 1986 में भी 259.5 मिमी बारिश ने पूजा की तैयारियों को बुरी तरह प्रभावित किया था। इस बार फिर वैसा ही संकट मंडरा रहा है।

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India at UNHRC: पाकिस्तान ने खुद पर ही गिराए बम, भारत ने UN में खोली पोल

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India at UNHRC: 22 सितंबर की रात पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के तिराह घाटी इलाके में जो कुछ हुआ, उसने पूरे इलाके को दहला दिया। पाकिस्तान की वायुसेना ने इस क्षेत्र में हवाई हमले किए जिसमें करीब 30 लोग मारे गए। मरने वालों में महिलाएं और मासूम बच्चे भी शामिल थे।

स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने इसे ‘जेट बॉम्बिंग’ करार दिया है। सोशल मीडिया पर आईं मिट्टी में सने मृत बच्चों की तस्वीरें और खाटों पर पड़ी लाशों की कतारें दिल को झकझोर देती हैं। स्थानीय लोगों ने सवाल उठाया, “क्या ये मासूम बच्चे आतंकवादी थे?”

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भारत ने संयुक्त राष्ट्र में उठाई आवाज़- India at UNHRC

इस गंभीर मामले को भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाया है। जिनेवा में चल रही संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) की बैठक में भारत के स्थायी मिशन के काउंसलर क्षितिज त्यागी ने पाकिस्तान की इस बर्बर कार्रवाई को लेकर दुनिया का ध्यान खींचा।

त्यागी ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया कि वह न सिर्फ अपने ही नागरिकों पर बम बरसाता है, बल्कि आतंकवाद को भी खुलेआम समर्थन देता है। उन्होंने कहा, “ये वही देश है जो लड़ाकू विमानों से अपने ही लोगों पर हमला करता है और फिर खुद को पीड़ित बताता है।”

UN मंच के दुरुपयोग का आरोप

भारत ने साफ शब्दों में कहा कि पाकिस्तान बार-बार संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों का दुरुपयोग करता है। वह भारत के खिलाफ झूठा प्रचार करने में लगा रहता है जबकि हकीकत यह है कि उसके अपने ही नागरिक उसकी गलत नीतियों के शिकार हैं।

भारत के खिलाफ झूठा प्रचार, आतंकियों को पनाह

भारत ने UNHRC में पुलवामा, उरी, पठानकोट, मुंबई और हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमलों का जिक्र करते हुए पाकिस्तान की भूमिका पर सवाल उठाया। क्षितिज त्यागी ने कहा, “पाकिस्तान को अपने कब्जे वाले भारतीय क्षेत्रों से हट जाना चाहिए। अगर उन्हें आतंक फैलाने, अपने लोगों पर बम गिराने और प्रतिबंधित आतंकियों को पालने से फुर्सत मिले, तो वो अपनी चरमराती अर्थव्यवस्था पर ध्यान दें।”

उन्होंने ये भी याद दिलाया कि पाकिस्तान के नेताओं ने एक समय में ओसामा बिन लादेन को शहीद कहा था। इससे साफ है कि पाकिस्तान आतंकियों को सिर्फ पनाह ही नहीं देता, बल्कि उन्हें गौरव भी प्रदान करता है।

भारत की सख्त चेतावनी और प्रतिबद्धता

भारत ने UNHRC से अपील की कि वह निष्पक्ष, वस्तुनिष्ठ और गैर-चयनात्मक रवैया अपनाए। साथ ही यह भी कहा गया कि भारत अपने नागरिकों की सुरक्षा और देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

क्षितिज त्यागी ने पाकिस्तान के बयानों को ‘रिसाइकल किया हुआ झूठ’ करार देते हुए कहा कि भारत ऐसे फर्जी प्रचार और दोगली नीतियों का हर मंच पर पर्दाफाश करता रहेगा।

पाकिस्तान की सच्चाई दुनिया के सामने

भारत ने इस बार सिर्फ शब्दों से नहीं, बल्कि तथ्यों और सबूतों के साथ पाकिस्तान की पोल खोली है। खैबर पख्तूनख्वा में अपने ही नागरिकों पर की गई बमबारी और आतंक को समर्थन देने वाली नीतियां अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उजागर हो रही हैं। भारत की यह पहल न सिर्फ पीड़ितों को न्याय दिलाने की दिशा में है, बल्कि दुनिया को यह दिखाने का भी प्रयास है कि कौन देश मानवाधिकारों का सच में हकदार है, और कौन सिर्फ उसका दिखावा करता है।

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Navratri Special: साबूदाना से बनाएं व्रत वाले मोमोज, जानें मोमोज बनाने की विधि

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Sabudana Momos recipe: अगर आपने भी नवरात्री के व्रत रखे है और आपका भी हर दिन कुछ अच्छा खाने मन है या फिर आपका भी नवरात्र के व्रत में मोमोज खाने का मन कर रहा है, तो आप इन्हें साबूदाना से आसानी से बना सकते हैं. ये खाने में बहुत ही स्वादिष्ट और अलग लगेंगे. तो चलिए आपको इस लेख में साबूदाना (saaboodaana)
के मोमोस (Momos) बनाने की विधि के बारे में विस्तार से बताते हैं.

साबूदाना मोमोज बनाने की विधि

  • 1 कप साबूदाना (कम से कम 4-5 घंटे भिगोया हुआ)
  • 1 उबला हुआ आलू (मैश किया हुआ)
  • 2-3 हरी मिर्च (बारीक कटी हुई)
  • 1 इंच अदरक (कद्दूकस किया हुआ)
  • 1/2 कप सिंघाड़े का आटा या राजगीरा का आटा
  • 1 चम्मच नींबू का रस
  • हरा धनिया (बारीक कटा हुआ)
  • सेंधा नमक (स्वाद अनुसार)
  • तेल या घी (तलने के लिए या चिकना करने के लिए)

मोमोस कैसे बनाये 

साबूदाना तैयार करें – सबसे पहले, भीगे हुए साबूदाने को एक बड़े कटोरे में निकाल लें। इसमें मसले हुए आलू, हरी मिर्च, अदरक, नींबू का रस, हरा धनिया और सेंधा नमक डालें। इन सभी सामग्रियों को अच्छी तरह मिलाकर नरम आटा गूंथ लें।

भरावन तैयार करें – आप अपनी पसंद का कोई भी व्रत का भरावन इस्तेमाल कर सकते हैं, जैसे पनीर, उबले आलू या मूंगफली का पाउडर। भरावन में सेंधा नमक और हरी मिर्च डालना न भूलें।

मोमोज बनाएँ – साबूदाने के आटे से छोटी-छोटी लोइयाँ बनाएँ, उन पर थोड़ा सा सिंघाड़े का आटा लगाकर बेल लें। उनमें अपनी पसंद का भरावन भरें और मोमोज का आकार दें।

मोमोज को भाप में पकाएँ – स्टीमर या इडली मेकर में पानी गरम करें। मोमोज को एक चिकनी प्लेट पर रखें और 10-15 मिनट तक भाप में पकाएँ जब तक कि वे पक न जाएँ।

गरमागरम परोसें – गरमागरम साबूदाना मोमोज को व्रत की चटनी, जैसे धनिया-पुदीना चटनी, के साथ परोसें। आपको बता दें, आप इन मोमोज़ को तलकर या एयर फ्रायर में भी बना सकते हैं, लेकिन इन्हें भाप में पकाने से तेल कम लगेगा और स्वास्थ्यवर्धक भी। तो इस नवरात्रि, आप भी साबूदाना से बने मोमोज़ का आनंद लें और अपने व्रत को और भी स्वादिष्ट बनाएँ!

Kumar Sanu Controversy: ‘प्रेग्नेंसी में भूखा रखा, घर से बाहर नहीं निकलने देते थे…’री...

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Kumar Sanu Controversy: 90 के दशक में अपनी सुरीली आवाज़ से लाखों दिलों को छूने वाले सिंगर कुमार सानू एक बार फिर सुर्खियों में हैं लेकिन इस बार वजह उनके गाने नहीं, बल्कि उनकी निजी ज़िंदगी है। उनकी पहली पत्नी रीटा भट्टाचार्य ने सालों बाद चुप्पी तोड़ते हुए कुछ ऐसे आरोप लगाए हैं, जिन्हें सुनकर हर कोई हैरान है। रीटा का दावा है कि शादी के दौरान उन्हें शारीरिक और मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया गया, यहां तक कि प्रेग्नेंसी के समय भी उन्हें बेसहारा छोड़ दिया गया। यही नहीं, उन्होंने कुमार सानू पर कई एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर और फैमिली में चल रहे “गंदे रिश्तों” का भी खुलासा किया है।

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फिल्मी विंडो को दिए इंटरव्यू में उन्होंने जो कुछ बताया है, वो सिर्फ एक पर्सनल स्टोरी नहीं, बल्कि एक ऐसी हकीकत है, जो चमकते सितारों के पीछे छिपे अंधेरे को उजागर करती है। आइए, एक-एक कर जानें वो कौन से खुलासे हैं, जिन्होंने हिलाया है बॉलीवुड की नींव:

“बोलने का अब डर नहीं” – रीटा भट्टाचार्य

रीटा ने अपने इंटरव्यू में कहा कि उन्हें अब अपने दर्द को छुपाने की कोई जरूरत नहीं लगती। उन्होंने कहा, “इन लोगों को अपने खून की भी इज्जत नहीं। अगर होती, तो एक पिता बुढ़ापे में शादी कर के सबके सामने यूं न घूमते।”  रीटा ने आगे कहा कि उनका बेटा आज भी अपने पिता को बहुत प्यार करता है, लेकिन उस समय वह हमेशा सवाल करता था कि “डैड कहां हैं?”

इमोशनल होते हुए रीता ने कहा, “आज मेरा बच्चा बड़ा हो गया है। भगवान सबको अच्छा रखे, लेकिन मेरी और मेरे बच्चों की ज़िंदगी इस इंसान ने बर्बाद कर दी।”

एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के आरोप- Kumar Sanu Controversy

इतना ही नहीं, रीटा ने सीधे तौर पर कुमार सानू पर एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि जो बातें अब सामने आ रही हैं, वे तो बस शुरुआत हैं। उन्होंने साफ-साफ कहा, “जो गुल इन्होंने खिलाए हैं, दुनिया नहीं जानती। एक के बाद एक सब सामने आएगा।”

रीटा ने कुनिका सदानंद (Kunickaa Sadanand) का भी नाम लिया और तंज कसते हुए कहा, “आज सब सुन रहे हैं कि नाक के नीचे किसी और के साथ अफेयर चल रहा था। हां, मेरे नाक के नीचे भी तो वही अफेयर चल रहा था ना, जो आज बाहर आया है।”

घर में बंदी जैसा व्यवहार

रीटा ने बताया कि कुमार सानू बहुत “इनसिक्योर” थे और उन्हें घर से बाहर निकलने तक की अनुमति नहीं थी।

“मैं कभी गेट के बाहर नहीं गई। पार्लर जाना, वैक्सीन कराना, थोड़ी सी मेकअप करना ये कुछ भी अलाउड नहीं था।”

उनका कहना है कि उन्होंने कभी रोजमर्रा की छोटी‑छोटी चीजें भी नहीं कीं क्योंकि सानू ने उनकी ज़िंदगी को बाँधकर रखा था।

प्रेगनेंसी के दौरान टॉर्चर

सानू पर एक और बेहद गंभीर आरोप है कि प्रेगनेंसी के वक्त रीटा को ठीक से खाना नहीं दिया गया, उल्टियाँ हुईं और जब स्थिति बिगड़ी तो डॉक्टर बुलाना पड़ा।

रीटा ने कहा, “इन लोगों ने मुझे खाना ही नहीं दिया जब मैं प्रेग्नेंट थी … मेरा बच्चे का दूध वाला बंद कर दिया।”

रीटा ने यह भी कहा कि गमलों की तरह घर के हिस्सों को लॉक कर दिया जाता था, जिससे उन्हें और बच्चे को भोजन व अन्य ज़रूरी चीज़ें नहीं मिल पाती थीं।

भतीजी और बच्चों को लेकर बोल‑बाज़ी

रीटा ने एक और परिवार‑संबंधी आरोप लगाया कि सानू के भाई की बेटी के पांच बच्चे हैं और पांचों के पिता अलग‑अलग हैं। उन्होंने इस बात का जिक्र इसलिए किया क्योंकि उन्हें लगता है कि इस तरह की बातें छुपायी जा रही थीं।

बहन के साथ संबंधों को लेकर विवाद

सबसे संवेदनशील आरोपों में से एक ये है कि सानू की एक बहन (जानकारी के अनुसार लगभग 45 वर्ष की) उनके (सानू) साथ “रंगरलिया” करती थीं, घर में मीटिंग होती थीं, और वे साझा जीवन बिताते थे।  रीटा ने कहा कि, “मेरी ननद कुमार सानू के साथ सोती थी, जागती थी, रंगरलिया मनाती थी।”

अब तक चुप हैं कुमार सानू

रीटा के इन आरोपों के बाद सोशल मीडिया पर बहस शुरू हो गई है। कुछ लोग उनकी हिम्मत की तारीफ़ कर रहे हैं, तो कुछ यह कहने लगे हैं कि इतने सालों बाद सब सामने लाना क्या सही है? वहीं, अब तक कुमार सानू की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, न ही कोई कानूनी क्रिया की जानकारी मिली है।

बता दें, कुमार सानू और रीटा की शादी 1986 में हुई थी। दोनों के तीन बच्चे हैं जिको, जारी और जान कुमार सानू। हालांकि 1994 में दोनों का तलाक हो गया था। इसके बाद कुमार सानू का नाम लंबे समय तक एक्ट्रेस कुनिका सदानंद से जुड़ा रहा। फिर 2001 में उन्होंने सोनाली भट्टाचार्य से दूसरी शादी कर ली थी।

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North Sea asteroi: समुद्र के नीचे छिपा था रहस्य, अब हुआ खुलासा, यॉर्कशायर के पास मिला...

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North Sea asteroi: यॉर्कशायर से करीब 80 मील दूर उत्तरी सागर के गहरे समुद्र तल में एक रहस्यमयी गड्ढा यानी क्रेटर ने वैज्ञानिकों के बीच कई सालों से बहस छेड़ रखी थी। अब इस पर से पर्दा हट गया है। ताजा शोध में वैज्ञानिकों ने यह पुष्टि की है कि यह गड्ढा किसी साधारण भूगर्भीय गतिविधि का नतीजा नहीं, बल्कि करीब 4.3 करोड़ साल पहले एक विशाल उल्का पिंड या धूमकेतु के धरती से टकराने का परिणाम है।

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इस खोज की पुष्टि हेरियट-वॉट यूनिवर्सिटी, एडिनबर्ग के वैज्ञानिक उइस्डियन निकोलसन और उनकी टीम ने की है। उन्होंने नए सीस्मिक इमेजिंग डेटा की मदद से यह सिद्ध किया कि यह क्रेटर ‘सिल्वरपिट क्रेटर’ वास्तव में एक उल्का टकराव का ही सबूत है, जो समुद्र के नीचे अब तक छिपा हुआ था।

कितना बड़ा था टकराव? North Sea asteroi

वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह उल्का लगभग यॉर्क मिनिस्टर के आकार का था और इसके टकराने से समुद्र में जबरदस्त हलचल मच गई थी। क्रेटर की गहराई करीब 700 मीटर है, और इसका व्यास लगभग 20 किलोमीटर तक फैला हुआ है। अनुमान है कि इस टकराव से करीब 100 मीटर ऊंची सुनामी की लहरें उठी थीं, जिसने आसपास के समुद्री जीवन और शायद तटीय क्षेत्रों को भी काफी नुकसान पहुंचाया होगा।

क्या हुआ था उस दौर में?

हालांकि यह घटना डायनासोर के अंत जैसी विनाशकारी नहीं थी, लेकिन उस समय पृथ्वी पर मौजूद कई प्राचीन स्तनधारियों के लिए यह टकराव घातक साबित हुआ होगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह टकराव जिस समय हुआ, उस वक्त पृथ्वी एक बड़े जैविक परिवर्तन के दौर से गुजर रही थी।

पहले क्यों नहीं हुई पुष्टि?

सिल्वरपिट क्रेटर को पहली बार साल 2002 में पेट्रोलियम भूवैज्ञानिकों ने देखा था। उन्होंने इसकी पहचान समुद्र तल पर मौजूद एक दो मील चौड़े अवसाद और आसपास के 12 मील चौड़े गोलाकार फॉल्ट के रूप में की थी। हालांकि शुरुआत में वैज्ञानिकों के बीच मतभेद था। कुछ का मानना था कि यह नमक के ढेर की हलचल या भूगर्भीय दबाव के कारण बनी संरचना है। लेकिन नई तकनीकों और डेटा के साथ अब उल्का पिंड के सिद्धांत को मजबूती मिल गई है।

क्यों है ये खोज अहम?

यह क्रेटर ब्रिटेन के पास अब तक का एकमात्र ज्ञात उल्का प्रभाव स्थल है। इसकी खोज न केवल पृथ्वी के भूगर्भीय इतिहास को समझने में मदद करती है, बल्कि यह भविष्य की संभावित अंतरिक्ष टकराव घटनाओं के लिए भी एक चेतावनी है।

उइस्डियन निकोलसन कहते हैं, “इस खोज से हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि अतीत में उल्का टकरावों ने पृथ्वी के वातावरण, महासागरों और जैव विविधता पर क्या असर डाला। साथ ही, भविष्य में ऐसे किसी भी संभावित खतरे से निपटने की तैयारी में भी यह बेहद उपयोगी है।”

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Ayodhya Mosque Plan Rejected: राम मंदिर बना, मस्जिद का नक्शा अटका! जानें क्यों नहीं म...

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Ayodhya Mosque Plan Rejected: राम मंदिर के तेज़ी से हो रहे निर्माण के बीच एक और अहम पहलू अब सुर्खियों में है… अयोध्या में प्रस्तावित मस्जिद के निर्माण को लेकर। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत जिस मस्जिद के लिए जमीन दी गई थी, उसका लेआउट प्लान अयोध्या विकास प्राधिकरण (एडीए) ने खारिज कर दिया है। वजह? कई जरूरी सरकारी विभागों की ओर से अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOC) जारी नहीं किए गए।

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यह खुलासा सूचना के अधिकार (RTI) के जरिए सामने आया है, जिसकी रिपोर्ट सबसे पहले टाइम्स ऑफ इंडिया ने प्रकाशित की। ये मामला न सिर्फ धार्मिक तौर पर संवेदनशील है, बल्कि प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी अब कई सवाल खड़े कर रहा है।

जमीन मिली, लेकिन रास्ता अब भी लंबा- Ayodhya Mosque Plan Rejected

सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर 2019 को अपने ऐतिहासिक फैसले में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ जमीन देने का आदेश दिया था, ताकि वहां मस्जिद और इससे जुड़ी अन्य सुविधाएं विकसित की जा सकें। इसके तहत 3 अगस्त 2020 को अयोध्या के पास धन्नीपुर गांव में यह जमीन वक्फ बोर्ड को हस्तांतरित की गई थी।

इसके बाद 23 जून 2021 को मस्जिद ट्रस्ट ने इस जमीन पर निर्माण के लिए आधिकारिक लेआउट प्लान की मंजूरी मांगी थी, लेकिन अब तक इस पर कोई प्रगति नहीं हुई। RTI से सामने आया है कि बिना जरूरी NOC के प्राधिकरण ने फाइल आगे नहीं बढ़ाई और इसी कारण प्लान खारिज कर दिया गया।

अग्निशमन विभाग की आपत्ति बनी रोड़ा

मस्जिद ट्रस्ट के सचिव अतहर हुसैन ने मीडिया से बातचीत में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार जमीन दी गई, लेकिन हैरानी इस बात की है कि जरूरी विभागों से NOC क्यों नहीं मिली। उन्होंने बताया कि अग्निशमन विभाग की जांच में साइट पर मौजूद अप्रोच रोड की चौड़ाई मस्जिद और अस्पताल जैसी संरचनाओं के लिए पर्याप्त नहीं पाई गई।

जहां न्यूनतम 12 मीटर चौड़ी सड़क होनी चाहिए, वहां मौके पर सड़क की चौड़ाई 6 मीटर से भी कम है, और मुख्य रास्ता महज 4 मीटर चौड़ा है। यह निर्माण मानकों के लिहाज से बड़ी तकनीकी बाधा मानी जा रही है।

ट्रस्ट को नहीं दी गई आधिकारिक सूचना

अतहर हुसैन ने यह भी कहा कि उन्हें न तो किसी NOC की स्थिति की जानकारी दी गई है और न ही लेआउट खारिज होने की कोई आधिकारिक सूचना मिली है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब सुप्रीम कोर्ट और सरकार की ओर से जमीन दी गई है, तो प्रशासनिक मंजूरी में यह देरी क्यों हो रही है?

मंदिर बन रहा, मस्जिद क्यों अटकी?

यह पूरा मामला तब सामने आया है जब राम मंदिर का निर्माण कार्य काफी तेज़ी से चल रहा है और इसका पहला चरण लगभग पूरा हो चुका है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि एक ही फैसले के तहत शुरू हुई दो परियोजनाओं में इतनी असमानता क्यों है?

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H-1B Visa: ट्रंप के H-1B झटके का इलाज है L-1 और O-1 वीजा, जानिए खर्च और कौन कर सकता ह...

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H-1B Visa: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक ऐसा फैसला लिया है, जिसने दुनिया भर के पेशेवरों खासतौर पर भारतीय युवाओं को चौंका दिया है। 21 सितंबर से लागू हुए नए नियमों के तहत अब H-1B वीजा के लिए नए आवेदकों को 100,000 डॉलर (लगभग ₹88 लाख) का भारी-भरकम शुल्क चुकाना होगा। यह फैसला उन लोगों पर लागू होगा जो अमेरिका के बाहर से H-1B के लिए आवेदन कर रहे हैं। यानी अमेरिका में पहले से रह रहे मौजूदा वीजा धारक, या जो केवल वीजा रिन्यू या एक्सटेंड करवा रहे हैं, वे इससे अछूते रहेंगे।

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H-1B वीजा अमेरिका का एक जॉब-स्पेसिफिक वीजा है, जो विशेष क्षेत्रों में काम कर रहे पेशेवरों को अमेरिकी कंपनियों में काम करने का मौका देता है। यह वीजा तीन साल तक वैध होता है, और इसे तीन साल और बढ़ाया जा सकता है। लेकिन अब नए आवेदकों के लिए 88 लाख रुपये की एंट्री फीस ने वीजा की राह को बहुत मुश्किल बना दिया है।

क्यों है यह फैसला भारतीयों के लिए चिंता की वजह? H-1B Visa

H-1B वीजा के 70% से ज्यादा धारक भारतीय मूल के होते हैं। हर साल हजारों आईटी प्रोफेशनल्स, इंजीनियर, डॉक्टर्स और मैनेजमेंट एक्सपर्ट्स अमेरिका में अपने करियर के सपने को पूरा करने के लिए इस वीजा पर निर्भर रहते हैं। लेकिन इस नये नियम के बाद, कई भारतीय अब अमेरिका जाने के लिए वैकल्पिक वीजा विकल्पों पर नजरें गड़ा रहे हैं।

अब कौन-कौन से विकल्प तलाश रहे हैं भारतीय पेशेवर?

L-1 वीजा: इंटरनल कंपनी ट्रांसफर का रास्ता

L-1 वीजा उन लोगों के लिए होता है जो किसी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते हैं और उसी कंपनी के अमेरिकी ऑफिस में ट्रांसफर होना चाहते हैं। इसमें दो कैटेगरी हैं:

  • L-1A: मैनेजर या एग्जीक्यूटिव
  • L-1B: स्पेशलाइज्ड स्किल्स वाले कर्मचारी

लागत:

  • USCIS फीस: $1,055 (लगभग ₹92,000)
  • प्रीमियम प्रोसेसिंग: $2,805 (लगभग ₹2.5 लाख)
  • लीगल फीस: ₹4.4 लाख से ₹22 लाख तक
    पात्रता: पिछले 3 सालों में कम से कम 1 साल कंपनी के विदेशी ब्रांच में काम किया होना चाहिए।

O-1 वीजा: असाधारण प्रतिभा के लिए

यह वीजा उन लोगों को दिया जाता है जिन्होंने विज्ञान, शिक्षा, कला, खेल या बिजनेस में असाधारण उपलब्धियां हासिल की हों।

लागत:

  • USCIS फीस: $1,055
  • प्रीमियम प्रोसेसिंग: $2,805
  • लीगल फीस: ₹4.8 लाख से ₹7 लाख
  • नया वीजा इंटेग्रिटी शुल्क (2025 से): $250
    पात्रता: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता, पुरस्कार, मीडिया कवरेज, पब्लिकेशन्स आदि जैसे कम से कम 3 मानदंड पूरे करने होते हैं।

EB-5 वीजा: निवेश के जरिए ग्रीन कार्ड

अगर आपके पास पूंजी है, तो EB-5 एक ऐसा विकल्प है जो सीधे ग्रीन कार्ड तक ले जा सकता है।

शर्तें और खर्च:

  • न्यूनतम निवेश: $800,000 (TEA में) या $1,050,000 (अन्य क्षेत्रों में)
  • 10 फुलटाइम जॉब्स क्रिएट या मेंटेन करनी होंगी
  • लीगल फीस: ₹22 लाख से ₹30 लाख
  • USCIS फीस: लगभग ₹18.9 लाख
  • प्रशासनिक खर्च: निवेश राशि का 10%

ध्यान रखें: यह निवेश जोखिम भरा होता है, और नुकसान की संभावना बनी रहती है।

OPT (Optional Practical Training): छात्रों का सहारा

अमेरिका में पढ़ने वाले छात्रों के लिए OPT एक बढ़िया विकल्प है। इससे वे अपनी पढ़ाई के बाद एक साल तक (STEM वाले 3 साल तक) प्रैक्टिकल वर्क एक्सपीरियंस ले सकते हैं।

लागत:

  • एप्लिकेशन फीस: $520 (लगभग ₹45,500)
  • लीगल फीस वैकल्पिक होती है

शर्तें: कम से कम एक एकेडमिक ईयर पूरा करना ज़रूरी है। और जॉब उस स्टडी फील्ड से संबंधित होना चाहिए जिसमें छात्र ने डिग्री ली है

क्या ट्रंप का फैसला रिवर्स होगा?

फिलहाल ऐसा नहीं लग रहा कि यह फैसला पलटेगा, क्योंकि ट्रंप प्रशासन इसे अमेरिकी वर्कफोर्स को प्राथमिकता देने की रणनीति का हिस्सा बता रहा है। लेकिन इसका असर साफ दिख रहा है भारत जैसे देशों के पेशेवर अब अन्य देशों या विकल्पों की तरफ रुख कर सकते हैं।

H-1B की नई फीस ने कई प्रोफेशनल्स की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। हालांकि, अब भी कुछ रास्ते खुले हैं जैसे L-1, O-1, EB-5 या OPT लेकिन इनमें से हर एक विकल्प की अपनी चुनौतियां और लागत हैं। साफ है कि अब अमेरिका का सपना देखना महंगा और पेचीदा हो गया है।

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Afghan Boy in India: व्हील वेल में छिपकर काबुल से दिल्ली पहुंचा 14 साल का अफगानी बच्च...

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Afghan Boy in India: दुनिया में कई लोग बेहतर जिंदगी की तलाश में सीमाएं पार करते हैं, लेकिन अफगानिस्तान के एक 14 साल के लड़के ने जो किया, वो न सिर्फ खतरनाक था, बल्कि चौंकाने वाला भी। इस बच्चे ने काबुल से दिल्ली आने वाली फ्लाइट के व्हील वेल (विमान के पिछले पहिये के पास का हिस्सा) में छिपकर करीब 94 मिनट की जानलेवा यात्रा पूरी कर ली।

ये हैरान करने वाली घटना रविवार को KAM Air की फ्लाइट RQ4401 में हुई, जो अफगानिस्तान के काबुल से भारत के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (IGI) पहुंची। विमान के लैंड करते ही जब चेकिंग हुई, तो सभी हैरान रह गए व्हील वेल में एक जीवित बच्चा मिला!

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गलती से भारत पहुंचा, जाना था ईरान- Afghan Boy in India

जांच में सामने आया कि यह लड़का अफगानिस्तान का रहने वाला है और उसका इरादा ईरान जाने का था। लेकिन वो गलती से भारत आने वाली फ्लाइट में चढ़ गया। लड़के ने बताया कि वह यात्रियों को लेकर जाने वाली गाड़ी के पीछे-पीछे एयरपोर्ट में घुस गया और फिर मौके का फायदा उठाते हुए फ्लाइट के लैंडिंग गियर के पास छिप गया।

व्हील वेल में यात्रा क्यों है खतरनाक?

व्हील वेल कोई सामान्य जगह नहीं होती। ये विमान का सबसे जोखिम भरा हिस्सा होता है, जहां लैंडिंग गियर यानी पहिए लगे होते हैं। इस हिस्से में ना तो सही से बैठने की जगह होती है, ना ऑक्सीजन, और ना ही तापमान नियंत्रित रहता है।

जब विमान आसमान में 30,000 फीट या उससे अधिक की ऊंचाई पर पहुंचता है, तो तापमान -40 से -60 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है। इसके अलावा, ऑक्सीजन की भारी कमी होती है, जिससे सामान्य इंसान के लिए बेहोश हो जाना या जान गंवाना आम बात है।

विशेषज्ञों के मुताबिक, इस मामले में हो सकता है कि फ्लाइट कम ऊंचाई पर रही हो या फिर फ्लाइट प्रेशर उतना कम नहीं हुआ, जिसकी वजह से बच्चा किसी तरह जिंदा बच गया।

हादसा टला, लेकिन सवाल बाकी

बड़ी बात ये है कि लड़का ना तो उड़ान के दौरान गिरा, ना ही लैंडिंग के समय पहिए के साथ कुचला गया। यह किसी चमत्कार से कम नहीं है। लेकिन इसके साथ ही सवाल उठते हैं कि वह इतनी सुरक्षा को पार कैसे कर गया?

आज के दौर में एयरपोर्ट्स पर सुरक्षा इतनी सख्त होती है कि परिंदा भी पर न मार सके, फिर भी एक बच्चा बिना पास, टिकट या वीजा के सीधे विमान के पहिये तक पहुंच गया।

विशेषज्ञ मानते हैं कि यह एक गंभीर सुरक्षा चूक है। अगर लड़का आतंकवादी होता या विमान को नुकसान पहुंचाने की नीयत से आता, तो इसका अंजाम भयानक हो सकता था।

बच्चा जिंदा बचा, लेकिन वापस भेजा गया

घटना के तुरंत बाद सुरक्षा एजेंसियों ने बच्चे को हिरासत में लेकर पूछताछ की। उसने साफ किया कि उसका कोई बुरा इरादा नहीं था वह तो बस ईरान जाकर काम करना चाहता था। बाद में भारत सरकार ने उसे KAM Air की ही एक फ्लाइट से वापस काबुल भेज दिया।

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