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Khoon Pasina Film: कैसे अमिताभ बच्चन ने छीन लिया विनोद खन्ना का लीड रोल?

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Khoon Pasina Film: 1970 के दशक में बॉलीवुड में कई बड़ी फिल्मों ने धमाल मचाया, लेकिन कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जो सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर नहीं, बल्कि कलाकारों की किस्मत भी बदल देती हैं। अमिताभ बच्चन के करियर का वो बड़ा मुकाम भी एक ऐसी ही फिल्म से शुरू हुआ, फिल्म का नाम था ‘खून पसीना’। हालांकि इस फिल्म की शुरुआत में सबकुछ आसान नहीं था। लीड रोल को लेकर हुई उलझन, दोस्ती और फिल्म इंडस्ट्री की राजनीति ने इस फिल्म को खास बना दिया। आइए जानते हैं, कैसे अमिताभ बच्चन ने इस फिल्म के जरिए बॉलीवुड में अपनी जगह पक्की की और कैसे विनोद खन्ना ने दोस्ती में बड़ा कदम उठाया।

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फिल्म ‘खून पसीना’ की शुरुआत और विनोद खन्ना का लीड रोल- Khoon Pasina Film

70 के दशक में ओम प्रकाश मेहरा के एक रिश्तेदार ने एक फिल्म बनाने का मन बनाया, जिसका नाम था ‘खून पसीना’। इस फिल्म के निर्देशन की जिम्मेदारी दी गई राकेश कुमार को, जो उस वक्त ओम प्रकाश मेहरा के असिस्टेंट डायरेक्टर थे। राकेश ने कहानी लिखी और लीड रोल के लिए विनोद खन्ना को चुना। सेकेंड लीड के लिए डैनी डेंजोंगप्पा का नाम तय हुआ। फिल्म की पूरी कास्टिंग फाइनल होते-होते लग रहा था कि ये वही लाइनअप होगी।

ओम प्रकाश मेहरा का धमाका: अमिताभ बच्चन को लीड रोल चाहिए!

लेकिन कहानी में आया ट्विस्ट जब ओम प्रकाश मेहरा ने खुद इस फिल्म को प्रोड्यूस करने की इच्छा जताई। उन्होंने कहा, “मैं प्रोड्यूसर बनूंगा, लेकिन इस फिल्म में लीड रोल अमिताभ बच्चन को ही देना होगा।” ओम प्रकाश मेहरा और अमिताभ बच्चन की गहरी दोस्ती थी, इसलिए मेहरा चाहते थे कि बिग बी को बड़ा मौका मिले।

ये सुनकर राकेश कुमार परेशान हो गए। विनोद खन्ना को पहले ही लीड रोल के लिए हामी भर चुकी थी। अब उन्हें विनोद को समझाना था कि वो लीड रोल नहीं, सेकेंड लीड निभाएंगे। साथ ही, डैनी डेंजोंगप्पा को भी इस फिल्म से बाहर करना पड़ा।

दोस्ती और प्रोफेशनलिज्म की जीत: विनोद खन्ना का बड़ा कदम

जब विनोद खन्ना को इन सब बातों की खबर लगी तो उन्हों ने दोस्ती और इंडस्ट्री के रिश्तों को समझते हुए सेकेंड लीड रोल बिना कोई विरोध किए स्वीकार कर लिया। वहीं डैनी डेंजोंगप्पा को पूरी तरह से फिल्म से हटा दिया गया। ये फैसला उस वक्त थोड़ा विवादास्पद जरूर था, लेकिन अमिताभ के लिए ये मौका किसी वरदान से कम नहीं था।

‘खून पसीना’ की जबरदस्त कामयाबी और अमिताभ का सितारा

आपको बताया दें, फिल्म 1977 में रिलीज हुई और बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया। इसकी कहानी में एक्शन, इमोशन और ड्रामा का बेहतरीन मिश्रण था, जिसने दर्शकों का दिल जीत लिया। अमिताभ बच्चन की दमदार एक्टिंग ने इस फिल्म को और भी खास बना दिया।

इस ब्लॉकबस्टर सफलता ने अमिताभ को इंडस्ट्री में सुपरस्टार की हैसियत दिलाई।

बॉलीवुड के पर्दे के पीछे की सबसे दिलचस्प कहानी

आज जब हम ‘खून पसीना’ की बात करते हैं, तो उसके पीछे छुपी इस दिलचस्प कहानी को भूलना मुश्किल है। कैसे एक फिल्म ने अमिताभ बच्चन को बड़ा सितारा बनाया, जबकि विनोद खन्ना ने दोस्ती के लिए अपने लीड रोल को छोड़ा और डैनी डेंजोंगप्पा को फिल्म से बाहर होना पड़ा।

इसलिए ‘खून पसीना’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि अमिताभ बच्चन की जिंदगी का वो मोड़ है जिसने उन्हें सुपरस्टार बनाया। इसके पीछे की कहानी बॉलीवुड की अनकही कहानियों में से एक है, जो आज भी फैन्स के बीच चर्चित है।

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Supreme Court: कई राज्यों में लागू धर्मांतरण कानून पर संकट, सुप्रीम कोर्ट लगा सकता है...

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Supreme Court: देश के कई राज्यों में लागू धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अहम रुख अपनाया। प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए संबंधित राज्यों को नोटिस जारी किए और चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। इसके बाद याचिकाकर्ताओं को दो सप्ताह के भीतर अपना प्रत्युत्तर दाखिल करने की अनुमति दी गई है। मामले की अगली सुनवाई छह हफ्ते बाद होगी।

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ये याचिकाएं उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, राजस्थान, महाराष्ट्र, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों द्वारा बनाए गए धर्मांतरण विरोधी कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ये कानून संविधान के अनुच्छेद 21 और 25 के तहत नागरिकों को मिली व्यक्तिगत स्वतंत्रता और धर्म की स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हैं।

क्या है याचिकाकर्ताओं का तर्क? Supreme Court

याचिका में कहा गया है कि इन कानूनों के तहत राज्य सरकारें लोगों के व्यक्तिगत फैसलों जैसे धर्म बदलना या अंतरधार्मिक विवाह करना में दखल दे रही हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता सी.यू. सिंह ने अदालत में दलील देते हुए कहा कि इन कानूनों के चलते अगर कोई व्यक्ति अंतरधार्मिक विवाह करता है, तो उसे जमानत तक मिलना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने बताया कि कई राज्यों में इन कानूनों के जरिए बड़े पैमाने पर उत्पीड़न हो रहा है, खासकर उत्तर प्रदेश में, जहां कानून में हाल में कड़े संशोधन किए गए हैं। इनमें तीसरे पक्ष को भी शिकायत दर्ज कराने का अधिकार दे दिया गया है।

सिंह ने कोर्ट से आग्रह किया कि उन्हें याचिका में उत्तर प्रदेश के नए संशोधनों को शामिल करने के लिए संशोधन की अनुमति दी जाए, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।

अन्य अधिवक्ताओं की दलीलें

वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने मध्य प्रदेश के कानून पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की, वहीं अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने उत्तर प्रदेश और हरियाणा में लागू ऐसे ही कानूनों पर रोक लगाने की अपील की है। कोर्ट ने दोनों पक्षों की बातों को ध्यान से सुना और इस मसले को काफी गंभीर माना।

केंद्र और राज्यों की प्रतिक्रिया

वहीं केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने याचिकाओं पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि अब तीन-चार साल बाद अचानक याचिकाकर्ता स्टे की मांग कर रहे हैं, जबकि इन कानूनों को चुनौती पहले ही दी जा चुकी थी। उन्होंने भरोसा दिलाया कि राज्य सरकारें अपना पक्ष सही तरीके से कोर्ट में रखेंगी।

इस बीच, कोर्ट ने वकील अश्विनी उपाध्याय की उस याचिका को ‘डी-टैग’ करने का आदेश दिया, जिसमें उन्होंने छल-कपट से धर्मांतरण पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने सवाल उठाया कि “यह कौन तय करेगा कि धर्मांतरण छल-कपट से हुआ है या नहीं?”

केस के संचालन के लिए नियुक्त हुए नोडल वकील

सुनवाई की प्रक्रिया को व्यवस्थित रखने के लिए अदालत ने याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता सृष्टि और राज्यों की ओर से अधिवक्ता रुचिरा को नोडल वकील नियुक्त किया है, जिससे दस्तावेजों का आदान-प्रदान और सुनवाई का समन्वय ठीक से हो सके।

पहले भी हो चुकी है सुनवाई

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 6 जनवरी 2021 को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कानूनों की वैधता को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी। उत्तराखंड में अगर कोई बलपूर्वक या किसी लालच के जरिए धर्मांतरण कराता है, तो उसे दो साल तक की सजा हो सकती है। वहीं, उत्तर प्रदेश का कानून न केवल विवाह के ज़रिए धर्मांतरण बल्कि सभी प्रकार के धर्म परिवर्तन को कवर करता है और इसके लिए जटिल प्रक्रियाएं निर्धारित करता है।

आगे क्या?

अब सभी संबंधित राज्यों को चार हफ्ते के भीतर अपना पक्ष रखना है। इसके बाद याचिकाकर्ता अपनी प्रतिक्रिया देंगे। छह हफ्ते बाद मामले की अगली सुनवाई होगी, जिसमें तय हो सकता है कि कोर्ट इन कानूनों के अमल पर कोई अंतरिम रोक लगाएगी या नहीं।

यह मामला संवैधानिक अधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है, इसलिए इसकी सुनवाई और भी अहम मानी जा रही है। सुप्रीम कोर्ट का अगला फैसला आने वाले समय में इन कानूनों की दिशा तय कर सकता है।

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Saudi Arabia-Pakistan Defence Deal: न्यूक्लियर ढाल या डिप्लोमैटिक जाल? सऊदी-पाक डिफें...

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Saudi Arabia-Pakistan Defence Deal: 17 सितंबर 2025 को रियाद में पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच एक अहम डिफेंस डील पर हस्ताक्षर हुए, जिसने अंतरराष्ट्रीय राजनीति और सुरक्षा समीकरणों में हलचल पैदा कर दी है। इस डील को ‘स्ट्रेटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट’ नाम दिया गया है, जिसे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने साइन किया।

पाकिस्तान सरकार इस डील को अपनी बड़ी जीत के तौर पर देख रही है। आर्थिक मोर्चे पर जूझ रहे पाकिस्तान को यह समझौता एक राहत के तौर पर नजर आ रहा है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस डील को “ऐतिहासिक कदम” बताया, लेकिन इस पूरी कहानी में असली ‘गेम’ शायद कुछ और ही है। जानकारों की मानें तो सऊदी अरब ने यह समझौता एक खास रणनीति के तहत किया है पाकिस्तान की न्यूक्लियर ताकत का परोक्ष लाभ उठाने के लिए।

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डील की शर्तें और इसका मतलब- Saudi Arabia-Pakistan Defence Deal

इस डिफेंस एग्रीमेंट के तहत तय किया गया है कि अगर इन दो देशों में से किसी एक पर हमला होता है, तो उसे दूसरे देश पर हमला माना जाएगा। यानी अगर सऊदी पर कोई हमला करता है, तो पाकिस्तान को भी अपनी सेना उतारनी होगी, और अगर पाकिस्तान पर हमला होता है, तो सऊदी भी युद्ध में शामिल होगा।

साथ ही, इस समझौते में ये भी शामिल है कि:

  • पाकिस्तान सऊदी को हथियार सप्लाई करेगा
  • मिलिट्री ट्रेनिंग और को-प्रोडक्शन होगी
  • टेक्नोलॉजी ट्रांसफर में सहयोग किया जाएगा

लेकिन असली बात ये नहीं है। असली बात है न्यूक्लियर ताकत। पाकिस्तान इस्लामी दुनिया का इकलौता परमाणु शक्ति संपन्न देश है। उसके पास लगभग 170 न्यूक्लियर वारहेड्स माने जाते हैं। वहीं सऊदी अरब के पास अब तक कोई परमाणु हथियार नहीं है, लेकिन उसका हमेशा से सपना रहा है कि उसके पास भी ऐसा सुरक्षा कवच हो।

क्यों है सऊदी को पाकिस्तान की ज़रूरत?

सऊदी अरब, आर्थिक रूप से जितना मजबूत है, उतना ही सैन्य मोर्चे पर असुरक्षित महसूस करता है। खासकर, जब उसका पड़ोसी ईरान लगातार न्यूक्लियर प्रोग्राम पर काम कर रहा हो, और अमेरिका की सुरक्षा गारंटी भी पहले जैसी भरोसेमंद न रही हो।

ऐसे में सऊदी ने एक चतुर चाल चली पैसे से तंगहाल पाकिस्तान को न्यूक्लियर शील्ड की तरह इस्तेमाल करने की। इस डील के जरिए, सऊदी को भले ही डायरेक्ट न्यूक्लियर हथियार न मिले हों, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से उसने खुद को एक परमाणु सुरक्षा घेरे में लपेट लिया है।

पाकिस्तान को क्या मिला?

दूसरी ओर, पाकिस्तान इस डील को आर्थिक उम्मीदों की डोर से देख रहा है। शहबाज शरीफ को लगता है कि सऊदी अरब से मिल रही आर्थिक मदद और अब डिफेंस कोलैबोरेशन से देश को राहत मिलेगी। पहले भी सऊदी अरब पाकिस्तान को अरबों डॉलर की मदद देता रहा है, और अब यह रिश्ता और गहरा होता दिख रहा है।

मगर सवाल यह है कि क्या शहबाज शरीफ को यह एहसास है कि उन्होंने न्यूक्लियर ताकत का परोक्ष उपयोग सऊदी को सौंप दिया है? ये वही ताकत है जिसे पाकिस्तान अपनी संप्रभुता का प्रतीक मानता है।

भारत पर क्या असर?

भारत के लिए इस डील में फिलहाल कोई बड़ा खतरा नहीं दिखता। भारत और सऊदी अरब के रिश्ते हाल के वर्षों में बेहतर हुए हैं। खुद भारत सरकार की ओर से कहा गया है कि इस डील की जानकारी पहले से थी और इससे भारत के हितों को कोई नुकसान नहीं होगा।

नतीजा क्या निकला?

इस डील को अगर सतही तौर पर देखा जाए, तो यह पाकिस्तान के लिए आर्थिक सहारा और सऊदी के लिए सैन्य समर्थन का सौदा लगता है। मगर गहराई से देखने पर यह साफ नजर आता है कि सऊदी अरब ने पाकिस्तान को अपने न्यूक्लियर छाते की तरह इस्तेमाल करने की चालाक रणनीति अपनाई है। शहबाज शरीफ को जहां तुरंत पैसा और सहयोग दिख रहा है, वहीं सलमान को दीर्घकालिक सुरक्षा और रणनीतिक बढ़त।

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Kashish Murder Case: 7 साल की मासूम से दुष्कर्म और हत्या के आरोपी सुप्रीम कोर्ट से बर...

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Kashish Murder Case: नवंबर 2014 में पिथौरागढ़ की रहने वाली 7 साल की मासूम बच्ची कशिश अपने परिवार के साथ एक रिश्तेदार की शादी में शामिल होने हल्द्वानी के काठगोदाम आई थी। वहीं से वह अचानक लापता हो गई थी। पांच दिन की तलाश के बाद उसका शव गौला नदी के पास जंगल में मिला। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और जांच में सामने आया कि बच्ची के साथ पहले दुष्कर्म किया गया और फिर उसकी बेरहमी से हत्या कर दी गई।

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मुख्य आरोपी को निचली अदालत और हाईकोर्ट से मिली थी फांसी- Kashish Murder Case

इस जघन्य हत्याकांड में पुलिस ने तीन लोगों को आरोपी बनाया था। जांच के बाद एक आरोपी को बरी कर दिया गया, जबकि दूसरे आरोपी प्रेमपाल को पांच साल की सजा और जुर्माना हुआ। मुख्य आरोपी अख्तर अली को पॉक्सो एक्ट और आईपीसी की धारा 376 के तहत दोषी ठहराते हुए निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी, जिसे बाद में हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा।

सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत, टूट गई पीड़िता के परिवार की उम्मीदें

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों के अभाव में मुख्य आरोपी अख्तर अली को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि उपलब्ध साक्ष्य आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इस फैसले से न सिर्फ पीड़ित परिवार बल्कि पूरे उत्तराखंड में गुस्से की लहर दौड़ गई है। लोग इसे न्याय व्यवस्था की बड़ी चूक मान रहे हैं।

बुद्ध पार्क से सिटी मजिस्ट्रेट तक उबाल, कलाकार भी हुए शामिल

गुरुवार को हल्द्वानी के बुद्ध पार्क में बड़ी संख्या में स्थानीय लोग, सामाजिक संगठन और उत्तराखंड के लोक कलाकार एकजुट होकर धरना-प्रदर्शन के लिए जुटे। प्रदर्शनकारियों ने हाथों में तख्तियां और बैनर लेकर आरोपी को फांसी देने की मांग की।

 

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इस विरोध में हल्द्वानी विधायक सुमित हृदयेश के साथ-साथ प्रसिद्ध लोक कलाकार श्वेता महरा, इंदर आर्य, प्रियंका मेहरा और गोविंद दिगारी भी शामिल हुए। कलाकारों ने जनता के साथ मिलकर न्याय की मांग करते हुए कहा कि अगर ऐसे फैसले आने लगे तो पीड़ितों को कभी इंसाफ नहीं मिलेगा।

पुलिस से झड़प, राष्ट्रपति को भेजा ज्ञापन

प्रदर्शनकारियों का आक्रोश इतना अधिक था कि वे बुद्ध पार्क से सिटी मजिस्ट्रेट कार्यालय तक मार्च कर गए। रास्ते में पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रही। इस दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हल्की झड़प भी हुई। बाद में भीड़ ने राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार याचिका की अपील और आरोपी को फिर से फांसी की सजा देने की मांग की गई।

जनता का सवाल: क्या वाकई सुरक्षित हैं मासूम?

लोगों का कहना है कि अगर इतने जघन्य अपराध के बाद भी आरोपी बरी हो सकता है, तो यह न सिर्फ पीड़िता के लिए अन्याय है बल्कि समाज के लिए भी एक खतरनाक संदेश है। जनता चाहती है कि ऐसे मामलों में जांच और न्यायिक प्रक्रिया इतनी मजबूत हो कि कोई भी दरिंदा कानून से बच न सके।

न्याय की आस अब भी ज़िंदा

सालों की कानूनी लड़ाई और उम्मीदों के बाद जब सुप्रीम कोर्ट से ऐसा फैसला आया, तो परिवार और समाज दोनों को गहरा धक्का लगा है। लेकिन जनता की आवाज़ और विरोध ये साबित करता है कि कशिश को न्याय दिलाने की उम्मीद अब भी ज़िंदा है। प्रदर्शनकारियों ने साफ कहा है कि जब तक इंसाफ नहीं मिलेगा, उनकी लड़ाई जारी रहेगी।

मुख्यमंत्री धामी का आश्वासन न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर होगी पुनर्विचार याचिका

मासूम बच्ची के हत्याकांड मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आहत परिजनों को अब राज्य सरकार का साथ मिला है। रविवार को भाजपा का एक शिष्टमंडल पिथौरागढ़ स्थित पीड़ित परिवार से मुलाकात के लिए उनके घर पहुंचा। इस दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी दूरभाष के माध्यम से मासूम के पिता से बात की और भरोसा दिलाया कि सरकार इस मामले में परिवार के साथ पूरी मजबूती से खड़ी है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार जल्द ही न्याय विभाग और वरिष्ठ कानूनी विशेषज्ञों से राय लेगी, और इस पर मुख्यमंत्री आवास में विस्तृत बैठक की जाएगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के लिए सभी जरूरी कानूनी कदम उठाए जाएंगे। सीएम धामी ने कहा कि इस लड़ाई में परिवार को अकेला नहीं छोड़ा जाएगा और उन्हें इंसाफ दिलाने के लिए सरकार हरसंभव प्रयास करेगी।

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Zubeen Garg Death: ‘या अली’ फेम जुबिन गर्ग का सिंगापुर में निधन, स्कूबा ड...

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Zubeen Garg Death: मशहूर गायक ज़ुबिन गर्ग अब हमारे बीच नहीं रहे। ‘या अली’ जैसे आइकॉनिक गाने से करोड़ों दिलों पर राज करने वाले इस बहुमुखी कलाकार की मौत सिंगापुर में स्कूबा डाइविंग के दौरान हुए एक दर्दनाक हादसे में हो गई। जुबिन गर्ग की उम्र सिर्फ 52 साल थी। उनकी अचानक हुई मौत से न सिर्फ म्यूज़िक इंडस्ट्री, बल्कि पूरे देश और खासतौर पर असम में शोक की लहर दौड़ गई है।

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एडवेंचर बना ज़िंदगी का आखिरी पल- Zubeen Garg Death

मिली जानकारी के मुताबिक, ज़ुबिन गर्ग एक म्यूज़िक फेस्टिवल में परफॉर्म करने के लिए सिंगापुर गए थे। वे 20 सितंबर को नॉर्थ ईस्ट फेस्टिवल में परफॉर्म करने वाले थे। फेस्टिवल से पहले उन्होंने स्कूबा डाइविंग करने का प्लान बनाया, लेकिन यही एडवेंचर उनकी ज़िंदगी का आखिरी पल बन गया।

 

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रिपोर्ट्स के मुताबिक, स्कूबा डाइविंग के दौरान जुबिन को गंभीर चोटें आईं। उन्हें तुरंत समुद्र से निकालकर पास के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों ने काफी कोशिश की, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका।

पहले भी हो चुके हैं बीमार, मिर्गी का था इतिहास

ज़ुबिन गर्ग की सेहत पहले भी चर्चा में रह चुकी है। साल 2022 में वे असम में एक होटल के बाथरूम में गिर पड़े थे, जहां उन्हें सिर में गंभीर चोट आई थी। तब डॉक्टर्स ने बताया था कि उन्हें मिर्गी का दौरा पड़ा था, जिसकी वजह से वो बेहोश हो गए थे। उन्हें डिब्रूगढ़ के अस्पताल में भर्ती कराया गया था और बाद में एयरलिफ्ट भी किया गया था।

असम से बॉलीवुड तक का सफर

आपको बता दें, ज़ुबिन गर्ग का जन्म असम के जोरहाट में हुआ था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत इंडीपॉप सिंगल एल्बम ‘चांदनी रात’ से की थी। इसके बाद उन्होंने ‘चंदा’, ‘जलवा’, ‘जादू’, ‘स्पर्श’ जैसे कई पॉपुलर एल्बम्स निकाले। साल 1995 में वे मुंबई आए, जहां उन्होंने ‘गद्दार’, ‘दिल से’, ‘फिजा’, ‘कांटे’ जैसी फिल्मों में गाने गाए।

या अलीने बनाया म्यूजिक का सितारा

ज़ुबिन गर्ग को बॉलीवुड में असली पहचान मिली फिल्म ‘गैंगस्टर’ (2006) के गाने ‘या अली’ से। ये गाना आज भी लोगों की प्लेलिस्ट में शामिल है। उनकी आवाज़ ने उस दौर के म्यूजिक लवर्स को दीवाना बना दिया था। इसके बाद उन्होंने कई भाषाओं में सैकड़ों गाने गाए। हिंदी के अलावा वे असमिया, बंगाली, उड़िया, तमिल, कन्नड़, मराठी, पंजाबी और मलयालम में भी सक्रिय रहे।

असम और पूर्वोत्तर भारत में उन्हें रॉकस्टार की तरह पूजा जाता था। ज़ुबिन गर्ग न सिर्फ एक गायक बल्कि कंपोजर, एक्टर, डायरेक्टर और सामाजिक कार्यकर्ता भी थे।

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने जताया शोक

वहीं, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने जुबिन गर्ग के निधन पर गहरा दुख जताया। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा,

“यह असम और देश के लिए बहुत बड़ी क्षति है। जुबिन हमारे राज्य के सबसे चहेते और गौरवशाली सपूतों में से एक थे। वे बहुत जल्दी चले गए, उनके योगदान को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता।”

फैन्स और परिवार सदमे में

जुबिन की मौत की खबर सुनकर उनके फैन्स सदमे में हैं। सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलियों की बाढ़ आ गई है। असम से लेकर मुंबई तक, हर कोई इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहा कि इतनी शानदार आवाज़ अब कभी नहीं सुनाई देगी।

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Maruti Cars GST Price: अब बाइक की कीमत में मिल रही मारुति की कार, 1.29 लाख तक सस्ती ह...

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Maruti Cars GST Price: त्योहारी सीजन की शुरुआत से पहले ही देश के कार बाजार में जबरदस्त हलचल देखने को मिल रही है। वजह है हाल ही में सरकार द्वारा किए गए GST स्ट्रक्चर में बदलाव, जिसका सीधा फायदा ग्राहकों को मिलने लगा है। Maruti Suzuki ने इस राहत का लाभ सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचाते हुए अपनी कारों की कीमतों में भारी कटौती का ऐलान किया है। अब स्थिति ये हो गई है कि लोग कह रहे हैं कि बाइक लूं या कार?

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अब कार खरीदना सपने जैसा नहीं रहा! Maruti Cars GST Price

GST में छूट के बाद मारुति ने कुछ मॉडल्स की कीमत में 1.29 लाख रुपये तक की कटौती की है। खास बात यह है कि कंपनी की सबसे सस्ती कार अब Alto K10 नहीं, बल्कि Maruti S-Presso बन गई है, जिसकी नई शुरुआती कीमत ₹3.49 लाख हो गई है। पहले इसकी कीमत ₹4.26 लाख थी। Alto K10 अब ₹1.07 लाख सस्ती होकर ₹3.69 लाख से शुरू हो रही है।

सस्ती बाइक्स और सस्ती कारों में अब मामूली फर्क

हाई-परफॉर्मेंस बाइक्स की कीमतें जहां ₹2 लाख के आसपास पहुंच रही हैं, वहीं एंट्री-लेवल कारें अब ₹3.5 लाख से शुरू हो रही हैं। ऐसे में जो लोग बाइक लेने का मन बना रहे थे, वे अब कार की तरफ भी देख रहे हैं क्योंकि EMI में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है, लेकिन सुविधा और सुरक्षा के मामले में कार बेहतर विकल्प बन रही है।

इन कारों के दाम में हुई बड़ी कटौती

मॉडल कटौती (₹) नई कीमत (₹)
S-Presso ₹1,29,600 ₹3,49,900
Alto K10 ₹1,07,600 ₹3,69,900
Celerio ₹94,100 ₹4,69,900
Wagon-R ₹79,600 ₹4,98,900
Ignis ₹71,300 ₹5,35,100
Swift ₹84,600 ₹5,78,900
Baleno ₹86,100 ₹5,98,900
Dzire ₹87,700 ₹6,25,600
Tour S ₹67,200 ₹6,23,800

SUV सेगमेंट भी हुआ जेब के करीब

SUV चाहने वालों के लिए भी खुशखबरी है। Maruti Fronx अब ₹1.12 लाख सस्ती हो गई है और इसकी शुरुआती कीमत ₹6.85 लाख रह गई है। Brezza में भी ₹1.12 लाख की कटौती के बाद नई कीमत ₹8.26 लाख हो गई है। जबकि Jimny, Grand Vitara और Invicto जैसे प्रीमियम मॉडल्स की कीमतों में भी 50,000 से 1 लाख रुपये तक की कमी की गई है।

SUV/MPV मॉडल कटौती (₹) नई कीमत (₹)
Fronx ₹1,12,600 ₹6,84,900
Brezza ₹1,12,700 ₹8,25,900
Grand Vitara ₹1,07,000 ₹10,76,500
Jimny ₹51,900 ₹12,31,500
Ertiga ₹46,400 ₹8,80,000
XL6 ₹52,000 ₹11,52,300
Invicto ₹61,700 ₹24,97,400
Eeco ₹68,000 ₹5,18,100

क्या बोले मारुति के अधिकारी?

मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड के सीनियर एग्जीक्यूटिव ऑफिसर (सेल्स एंड मार्केटिंग) पार्थो बनर्जी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा,
“हाल ही में हुए जीएसटी रिफॉर्म का फायदा कंपनी सीधा अपने ग्राहकों तक पहुंचाएगी।इससे कारों की कीमत में 1.29 लाख रुपये तक की कटौती की गई है, जो मॉडल और वेरिएंट पर निर्भर करता है।”

ये नई कीमतें 22 सितंबर 2025 से देशभर के सभी मारुति डीलरशिप्स पर लागू होंगी।

त्योहारी सीजन में बंपर बिक्री की उम्मीद

बाजार जानकारों का मानना है कि इन नई कीमतों से फेस्टिव सीजन में मारुति की सेल में जबरदस्त उछाल देखने को मिल सकता है। ग्राहकों को अब कम बजट में कार का सपना पूरा करने का मौका मिल गया है, वो भी बिना किसी फीचर के समझौते के।

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Mohammed Nizamuddin: रूममेट से झगड़ा… पुलिस की 4 गोलियां और भारतीय इंजीनियर की ...

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Mohammed Nizamuddin: अमेरिका में एक और भारतीय की जान चली गई है और इस बार मामला बेहद चौंकाने वाला है। तेलंगाना के महबूबनगर जिले से ताल्लुक रखने वाले 30 वर्षीय मोहम्मद निजामुद्दीन की मौत अमेरिका में पुलिस की गोलीबारी में हो गई। निजामुद्दीन अमेरिका में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर काम कर रहे थे। उनके परिवार का आरोप है कि मामूली झगड़े के मामले में पुलिस ने बिना किसी चेतावनी के उन पर चार गोलियां चला दीं, जिससे मौके पर ही उनकी जान चली गई।

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क्या था पूरा मामला? Mohammed Nizamuddin

यह घटना 3 सितंबर की है, लेकिन निजामुद्दीन के परिजनों को इसकी जानकारी कुछ दिनों बाद मिली। परिवार को गुरुवार सुबह एक दोस्त से खबर मिली कि उनके बेटे को अमेरिकी पुलिस ने गोली मार दी है। बताया जा रहा है कि निजामुद्दीन का अपने रूममेट के साथ किसी बात को लेकर झगड़ा हुआ था। बात बढ़ते-बढ़ते चाकू दिखाने तक पहुंच गई, और पड़ोसियों ने पुलिस को बुला लिया।

जब सांता क्लारा पुलिस मौके पर पहुंची, तो उन्होंने बताया कि उन्हें एक “घातक हथियार” से हमले की सूचना मिली थी। पुलिस का दावा है कि निजामुद्दीन को रोकने के लिए उन्हें गोली चलानी पड़ी। लेकिन परिजनों का आरोप है कि बिना पूरी बात जाने और बिना किसी चेतावनी के, सीधे चार गोलियां दाग दी गईं, जो कहीं से भी न्यायसंगत नहीं लगता।

कौन थे मोहम्मद निजामुद्दीन?

निजामुद्दीन 2016 में उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गए थे। उन्होंने फ्लोरिडा से एमएस की पढ़ाई पूरी की और फिर एक नामी सॉफ्टवेयर कंपनी में नौकरी मिल गई। कुछ सालों बाद उन्हें प्रमोशन मिला और वे कैलिफोर्निया शिफ्ट हो गए। उनके पिता मोहम्मद हसनुद्दीन ने बताया कि बेटा एक मेहनती और शांत स्वभाव का इंसान था। उन्हें कभी अंदाजा नहीं था कि वो इस तरह किसी गोलीकांड का शिकार हो जाएगा।

परिवार की विदेश मंत्री से भावुक अपील

मोहम्मद निजामुद्दीन की अचानक मौत से उनका पूरा परिवार सदमे में है। उनके माता-पिता ने भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर से भावुक अपील की है कि उनके बेटे का पार्थिव शरीर जल्द से जल्द भारत लाने में मदद की जाए। उन्होंने विदेश मंत्रालय को एक पत्र भी लिखा है, जिसमें अमेरिका में मौजूद भारतीय दूतावास और अधिकारियों से तत्काल दखल की मांग की गई है। पिता ने कहा – “हमें अब तक नहीं पता कि पुलिस ने उसे गोली क्यों मारी?”

फिलहाल उनका शव कैलिफोर्निया के सांता क्लारा के एक अस्पताल में रखा गया है और परिवार को पोस्टमार्टम रिपोर्ट या किसी भी आधिकारिक जानकारी का इंतजार है। इस बीच, भारत सरकार की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है।

हाल ही में हुई थी एक और भारतीय की हत्या

ये पहला मामला नहीं है। कुछ दिन पहले ही टेक्सास के डलास में एक और भारतीय नागरिक चंद्र मौली ‘बॉब’ नागमल्लैया की भी बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। उनकी गर्दन उनके ही बच्चे और पत्नी के सामने काट दी गई थी। हत्या का आरोपी क्यूबा का अवैध प्रवासी था, जिसका आपराधिक इतिहास पहले से ही रहा है।

लगातार बढ़ते हमलों से चिंता में भारतीय समुदाय

लगातार भारतीय मूल के नागरिकों पर हमलों और हिंसक घटनाओं ने अमेरिका में बसे भारतीय समुदाय में डर और चिंता पैदा कर दी है। चाहे गोलीबारी हो या बर्बर हत्या, इन घटनाओं से साफ है कि प्रवासियों की सुरक्षा एक बड़ा सवाल बनता जा रहा है।

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DUSU Election 2025: डूसू अध्यक्ष पद पर ABVP के आर्यन मान की जीत, जानिए डीयू अध्यक्ष क...

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DUSU Election 2025: दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ (DUSU) चुनाव 2025 के नतीजे सामने आ चुके हैं और पूरे कैंपस में एक बार फिर चुनावी चर्चा जोरों पर है। ABVP के आर्यन मान ने शानदार जीत के साथ अध्यक्ष पद अपने नाम किया है। उन्होंने NSUI की उम्मीदवार जोसलीन नंदिता चौधरी को लगभग 16,196 वोटों के बड़े अंतर से मात दी है — कुल मिलाकर आर्यन मान को 28,841 वोट मिले, जबकि जोसलीन को 12,645 वोटों पर ही संतोष करना पड़ा।

मतदान प्रक्रिया इस प्रकार रही: केंद्रीय पैनल के लिए EVM मशीनों का प्रयोग हुआ और कॉलेज स्तर पर बैलेट पेपर से वोट डाले गए। पिछली बार चुनाव NSUI ने जीता था, लेकिन इस बार मैदान बदल गया है।

अध्यक्ष पद की रेस में तीन उम्मीदवार मुख्य रूप से चर्चा में रहे एनएसयूआई की जोसलिन नंदिता चौधरी, वाम दलों की ओर से (SFI और AISA की संयुक्त उम्मीदवार) अंजलि, और एबीवीपी के आर्य मान। लंबी गिनती प्रक्रिया के बाद आखिरकार DUSU के नए केंद्रीय पैनल की तस्वीर साफ हो गई। आईए अब जानते हैं डूसू चुनाव जीतने वाले अध्यक्ष के पास क्या शक्तियां होती हैं और उसे क्या सुविधाएं दी जाती हैं?

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DUSU क्या है और क्यों है इतना खास? DUSU Election 2025

आईए पहले आपको बताते हैं दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ क्या है? डूसू यानी दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन सिर्फ एक छात्र संगठन नहीं, बल्कि यह डीयू के छात्रों की आवाज़ है। इसकी शुरुआत 1954 में हुई थी और तब से ये मंच छात्रों को उनकी समस्याओं को उठाने और उनका प्रतिनिधित्व करने का मौका देता आ रहा है।

 

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दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े करीब 52 से ज्यादा कॉलेज और फैकल्टीज इस चुनाव में हिस्सा लेते हैं, इसलिए इसे दुनिया के सबसे बड़े छात्र संघ चुनावों में गिना जाता है। डूसू में चार मुख्य पद होते हैं अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव। इसके अलावा, कॉलेज स्तर से चुने गए सेंट्रल काउंसलर भी यूनियन का हिस्सा होते हैं।

DUSU अध्यक्ष के पास कितनी ताकत?

DUSU अध्यक्ष के पास कोई प्रशासनिक अथवा कानूनी अधिकार तो नहीं होते, लेकिन यह पद एक सशक्त प्रतिनिधि की भूमिका निभाता है। अध्यक्ष कैंपस में छात्रों से जुड़े मुद्दों को विश्वविद्यालय प्रशासन के सामने उठाता है। इनमें हॉस्टल की सुविधाएं, लाइब्रेरी की स्थिति, परीक्षा के नियम, या फिर कैंपस में सुरक्षा जैसे विषय शामिल हो सकते हैं।

हालांकि, यूनियन की नीतियां और फैसले केंद्रीय परिषद (Central Council) के माध्यम से लिए जाते हैं, जिसमें अन्य पदाधिकारी और कॉलेज काउंसलर भी शामिल होते हैं। अध्यक्ष उन्हीं नीतियों को आगे बढ़ाने का काम करता है।

अध्यक्ष को मिलती हैं क्या सुविधाएं?

यह सवाल भी छात्रों के बीच अक्सर चर्चा में रहता है कि DUSU अध्यक्ष को आखिर मिलता क्या है? तो आइए जानते हैं:

  • DUSU अध्यक्ष को कोई वेतन या स्टाइपेंड नहीं दिया जाता।
  • उन्हें एक आधिकारिक ऑफिस कैंपस में उपलब्ध कराया जाता है।
  • यूनियन संचालन और छात्र कल्याण से जुड़ी गतिविधियों के लिए विश्वविद्यालय की तरफ से फंड दिया जाता है।
  • अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों को काम में सहयोग के लिए सपोर्ट स्टाफ दिया जाता है।
  • उन्हें यूनिवर्सिटी के अलग-अलग सेमिनार, वर्कशॉप और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आमंत्रित किया जाता है।

राजनीति का पहला स्टेज

दिल्ली यूनिवर्सिटी का छात्र संघ राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले युवाओं के लिए एक बड़ा लॉन्चपैड माना जाता है। कई पूर्व DUSU अध्यक्ष बाद में देश की मुख्यधारा की राजनीति में आए हैं। इसलिए यह चुनाव न सिर्फ छात्रों के मुद्दों के लिए अहम है, बल्कि इससे देश के भविष्य के नेता भी निकलते हैं।

अब जब DUSU 2025 के नतीजे सामने हैं, तो सभी की नजर इस बात पर है कि नया पैनल विश्वविद्यालय के छात्रों की उम्मीदों पर कितना खरा उतरता है।

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India US Trade: 50% से घटकर 10-15% हो सकता है ट्रंप का टैरिफ, भारत को अमेरिका से बड़ी...

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India US Trade: भारत के लिए एक अच्छी खबर सामने आ रही है, जिसे लेकर देश के व्यापार और अर्थव्यवस्था में नई उम्मीदें जगी हैं। भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार, वी. अनंत नागेश्वरन ने गुरुवार को बताया कि अमेरिका जल्द ही भारतीय वस्तुओं पर लगाए गए 25% पेनल्टी टैरिफ को हटा सकता है। इसके साथ ही, भारत पर लगाए गए रेसिप्रोकल टैरिफ को भी घटाकर 10-15% करने की संभावना जताई जा रही है। अगर ऐसा होता है, तो यह भारत के लिए दोगुनी खुशखबरी साबित हो सकती है, क्योंकि इससे अमेरिका में भारतीय उत्पादों की मांग बढ़ेगी और भारत का निर्यात भी तेज़ी से बढ़ सकता है।

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भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता जारी- India US Trade

वी. अनंत नागेश्वरन ने आगे कहा कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार संबंधों को लेकर बातचीत जारी है। नई दिल्ली और वाशिंगटन के बीच व्यापार समझौते की प्रक्रिया अभी भी जारी है और उम्मीद जताई जा रही है कि अगले 8-10 सप्ताह में शुल्क संबंधित समस्याओं का समाधान निकल सकता है। यह बातचीत हाल ही में दिल्ली में अमेरिकी और भारतीय प्रतिनिधियों के बीच हुई थी, जो करीब सात घंटे तक चली। हालांकि, यह बैठक आधिकारिक नहीं थी, लेकिन दोनों देशों के बीच सकारात्मक बातचीत के बाद यह आशा जताई जा रही है कि दोनों देशों के बीच एक नई व्यापार डील जल्द ही हो सकती है।

भारत के निर्यात पर टैरिफ का असर

अमेरिका द्वारा लगाए गए उच्च टैरिफ का सबसे अधिक प्रभाव भारत के प्रमुख निर्यात क्षेत्रों पर पड़ा है। वर्तमान में अमेरिका को भारतीय निर्यात का लगभग 55% हिस्सा उच्च टैरिफ के तहत आता है, जिनमें कपड़ा, रसायन, समुद्री भोजन, जेम्स एंड ज्वेलरी और मशीनरी जैसे प्रमुख सेक्टर्स शामिल हैं। पिछले महीने, यानी अगस्त में, अमेरिका का निर्यात घटकर 6.87 अरब डॉलर पर आ गया था, जो पिछले 10 महीने में सबसे कम था। इस स्थिति को लेकर भारत के व्यापारियों में चिंता थी, लेकिन टैरिफ में कमी से इन्हें राहत मिल सकती है।

अमेरिका-भारत के द्विपक्षीय व्यापार संबंध

अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार बना हुआ है। 2024-25 वित्तीय वर्ष के दौरान, भारत ने अमेरिका को कुल 86.51 अरब डॉलर का माल निर्यात किया और 40.82 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष बनाए रखा। अगर अमेरिका अपनी पेनल्टी टैरिफ और रेसिप्रोकल टैरिफ में कमी करता है, तो इससे भारतीय निर्यातकों को बड़ी राहत मिलेगी और दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों में भी सुधार होगा। भारत के लिए यह आर्थिक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।

ट्रंप का भारत पर टैरिफ लगाने का कारण

इस मामले में एक दिलचस्प मोड़ तब आया, जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान भारत पर टैरिफ लगाए जाने का कारण बताया। ट्रंप ने कहा, “मैंने भारत पर टैरिफ इसलिए लगाए क्योंकि मैं चाहता था कि रूस यूक्रेन युद्ध को समाप्त करे। अगर वैश्विक तेल की कीमतें गिरती हैं, तो रूस समझौता कर सकता है।” हालांकि, ट्रंप ने यह भी कहा कि वह भारत के बहुत करीब हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अच्छे संबंध रखते हैं। उन्होंने यहां तक कहा कि उन्होंने पीएम मोदी को फोन करके उनके जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं।

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Vote Chori in India : वोट चोरी के मामले में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने किया बड़ा ख...

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Vote Chori in India big revelation: कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और वायनाड से सांसद राहुल गांधी ने आज इंदिरा भवन, नई दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें उन्होंने, अभी हाल ही में वोट चोरी (Vote Chori in India) के मामलों में कई बड़े सबूत पेश करते हुए बीजेपी सरकार को घेरा है। उन्होंने चुनाव आयोग पर भी निशाना साधते हुए कहा कि ये सबूत केवल ट्रेलर है हाइड्रोजन बम के आने का, चुनावों से पहले हाइड्रोजन बम भी आयेगा। राहुल गाँधी ने मुख्य चुनाव आयोग पर एक के बाद एक तीखे प्रहार किये है। जानिये राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की में क्या क्या खुलासे किये है।

राहुल गांधी ने किया बड़ा खुलासा  rahul gandhi press conference

अभी कुछ दिनो पहले ही 1 सितंबर को राहुल गांधी ने ‘वोटर अधिकार यात्रा’  के समापन के बाद उन्होंने खुले तौर पर मोदी सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा था कि कांग्रेस जल्द ही ‘वोट चोरी’ के मुद्दे पर एक ‘हाइड्रोजन बम’  गिराने जैसा खुलासा करने वाली है। राहुल गांधी ने सीधे तौर पर मोदी सरकार को चोर बुलाते हुए कहा कि 2024 में हुए लोकसभा चुनावों में भारी संख्या में वोट की चोरी की गई है।

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इसके लिए राहुल गांधी ने कई राज्यों को वोटर्स लिस्ट को शेयर करते हुए कहा कि कर्नाटक, महाराष्ट्र, यूपी, हरियाणा जैसे राज्यों में भारी संख्या में वोट काटे गए और फर्जी वोटर्स के नाम जोड़े गए है। जिनका सबूत बुलेट प्रूफ के साथ कांग्रेस ने पेश किया है। राहुल गांधी ने देश की जनता को संबोधित करते हुए कहा कि केवल देश की जनता ही लोकतंत्र की रक्षा कर सकती है। वोट चोरी का ये खेल करीब 10 से 15 सालों से चल रहा है। लोकतंत्र को असल में हाइजैक कर लिया गया है।

कहां कहां वोट चोरी के सबूत किए पेश

राहुल गांधी ने बताया कि कर्नाटक के कलबुर्गी जिले के आलंद में 6,018 वोट फर्जी तरीके से मिटा दिये गए जो बेहद हैरानी की बात है। इस मामले की जांच कर्नाटक की सीआईडी कर रही है, और उन्होंने चुनाव आयोग से 18 दस्तावेज भेजकर कुछ जानकारियां मांगी है। वहीं महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के राजौरा विधानसभा क्षेत्र में भी 6850 नए नाम जोड़े गए, जिनका कोई विवरण नहीं है।  राहुल गांधी ने ये भी स्वीकार किया कि वोट चोरी के आकड़ों की जानकारी उन्हें चुनाव आयोग के अंदर से ही मिल रही है। तो आयोग के सीईसी ज्ञानेश कुमार को कुछ लोगो को बचाने की कोशिश करना बंद कर देना चाहिए।

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दलित और पिछड़े है निशाने पर

राहुल गाँधी ने ये भी खुलासा किया कि वोट चोरी के मामले में सबसे ज्यादा दलित और पिछड़े वोटर्स को निशाना बनाया गया है, ये गड़बड़िया भी केवल उन्ही विधानसभा क्षेत्रों की सीटो पर हुई थी, जिस पर या तो कांग्रेस के प्रतिनीधि जीतते आ रहे थे, या फिर वहां दलित वोटर्स की संख्या ज्यादा थी। राहुल गांधी ने चुनाव आयोग को सलाह दी है कि उन्हें सारे सबूत सीआईडी को दे देना चाहिए, वरना अगर ऐसा नहीं होता उन पर लगे आरोप सही साबित हो जायेंगे। राहुल गांधी के इन दावों के बाद अब देखना ये है कि बीजेपी की तरफ से क्या प्रतिक्रिया आती है।