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New Vice President CP Radhakrishnan: सीपी राधाकृष्णन बनें भारत के 15वें उपराष्ट्रपति,...

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New Vice President CP Radhakrishnan: एक महीने से चले आ रहे राजनीतिक कयासों और जोड़-तोड़ के बीच एनडीए के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन ने आखिरकार INDIA गठबंधन के साझा उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को हराकर भारत के 15वें उपराष्ट्रपति का पद संभाल लिया है। ये मुकाबला सिर्फ दो चेहरों के बीच नहीं था, बल्कि यह संसदीय अंकगणित बनाम वैचारिक गठबंधन की सीधी टक्कर थी, जिसमें संख्याबल भारी पड़ा।

उपराष्ट्रपति चुनाव में संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के कुल 781 सांसदों ने वोट डाले। बहुमत हासिल करने के लिए 391 वोटों की ज़रूरत थी, और एनडीए के पास पहले से ही एक मजबूत संख्या मौजूद थी।
एनडीए को न सिर्फ अपने खुद के 293 लोकसभा सांसदों और 129 राज्यसभा सदस्यों का साथ मिला, बल्कि आंध्र प्रदेश की YSR कांग्रेस पार्टी (11 सांसद) जैसे विपक्षी दलों ने भी राधाकृष्णन के पक्ष में मतदान किया। ऐसे में, मुकाबले का रुख पहले से ही साफ नजर आ रहा था।

दूसरी ओर, INDIA गठबंधन, जिसके पास करीब 325 सांसदों का समर्थन था, ने भले ही बी. सुदर्शन रेड्डी के ज़रिए एक वैचारिक संदेश देने की कोशिश की, लेकिन संख्याबल की कमी के चलते यह लड़ाई उनकी हार में बदल गई।

और पढ़ें: Vice Presidential Election: 391 वोटों की ज़रूरत, एनडीए को 427 सांसदों का समर्थन, जानें INDIA ब्लॉक के आंकड़े

 

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कौन हैं सीपी राधाकृष्णन? New Vice President CP Radhakrishnan

उपराष्ट्रपति चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन, जिन्हें आमतौर पर सीपी राधाकृष्णन के नाम से जाना जाता है, दक्षिण भारत में भाजपा के सबसे पुराने और जमीनी नेताओं में से एक हैं। उनका जन्म 20 अक्टूबर 1957 को तमिलनाडु के तिरुप्पुर जिले में हुआ था।

राजनीतिक जीवन की शुरुआत उन्होंने आरएसएस के स्वयंसेवक के रूप में की। 1974 में वे भारतीय जनसंघ की राज्य कार्यकारिणी समिति के सदस्य बने और यहीं से उनकी राजनीतिक यात्रा की असल शुरुआत मानी जाती है।

राधाकृष्णन ने बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातक की डिग्री हासिल की है, लेकिन उनका झुकाव शुरू से ही राष्ट्र और समाज सेवा की ओर रहा।

लोकसभा में मजबूत उपस्थिति

सीपी राधाकृष्णन को 1998 और 1999 में दो बार कोयंबटूर से लोकसभा के लिए चुना गया। हालांकि इसके बाद 2004, 2014 और 2019 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उनकी सियासी पकड़ कमजोर नहीं पड़ी।

लोकसभा सांसद रहते हुए उन्होंने कपड़ा मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति की अध्यक्षता की। साथ ही, वे स्टॉक एक्सचेंज घोटाले की जांच के लिए बनी विशेष संसदीय समिति के सदस्य भी रहे।

2004 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व किया और वे ताइवान जाने वाले पहले भारतीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल का भी हिस्सा रहे।

पार्टी संगठन में दमदार भूमिका

1996 में उन्हें भाजपा की तमिलनाडु इकाई का सचिव बनाया गया और 2007 में जब वे प्रदेश अध्यक्ष बने, तो उन्होंने 93 दिनों में 19,000 किलोमीटर की लंबी रथ यात्रा निकाली। इस यात्रा में उन्होंने नदी जोड़ो, समान नागरिक संहिता, अस्पृश्यता, आतंकवाद और नशे के खिलाफ जनजागरूकता जैसे अहम मुद्दों को उठाया।

वो 2016 से 2020 तक कोच्चि स्थित कॉयर बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे। उनके कार्यकाल में नारियल रेशा (कोयर) के निर्यात ने ₹2532 करोड़ का रिकॉर्ड आंकड़ा छू लिया।

इसके बाद 2020 से 2022 तक उन्हें केरल भाजपा का प्रभारी बनाया गया।

राज्यपाल के तौर पर अनुभव

फरवरी 2023 में राधाकृष्णन को झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया। इसके साथ ही उन्होंने तेलंगाना और पुडुचेरी का अतिरिक्त कार्यभार भी संभाला। उनके कामकाज को देखते हुए जुलाई 2024 में उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया।

आर्थिक स्थिति कैसी है?

वहीं संपत्ति की बात करें तो, 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान दिए गए हलफनामे के अनुसार, राधाकृष्णन के पास करीब ₹67 करोड़ की संपत्ति है। इसमें उनकी कुल चल संपत्ति ₹7.31 करोड़ बताई गई है।

इसमें शामिल हैं:

  • नकद: स्वयं के पास ₹6.87 लाख और पत्नी के पास ₹18.15 लाख
  • बैंक जमा: ₹6.53 लाख
  • शेयर और बॉन्ड: ₹1.28 करोड़
  • बीमा पॉलिसी: ₹1.36 करोड़
  • गहने: पत्नी के पास 1284 ग्राम सोना (₹31.5 लाख) और 152 कैरेट हीरे (₹1.06 करोड़)

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Brain-Eating Amoeba Symptoms: ब्रेन खाने वाले अमीबा से केरल में हड़कंप, एक महीने में ...

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Brain-Eating Amoeba Symptoms: केरल में इन दिनों एक बेहद खतरनाक संक्रमण लोगों की जान ले रहा है। इस बीमारी का नाम है प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस, जिसे आमतौर पर “ब्रेन-ईटिंग अमीबा” (Brain-Eating Amoeba Symptoms) के नाम से जाना जाता है। ताजा मामला मलप्पुरम जिले का है, जहां 56 वर्षीय महिला एम. शोभना की इस संक्रमण से मौत हो गई है। वह वंडूर की रहने वाली थीं और बीते 4 सितंबर को कोझिकोड मेडिकल कॉलेज अस्पताल में गंभीर हालत में भर्ती हुई थीं। इलाज के दौरान वह बेहोश थीं और फिर सोमवार को उनकी मौत हो गई।

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अब तक 5 मौतें, चिंता में स्वास्थ्य विभाग | Brain-Eating Amoeba Symptoms

आपको जानकारी हैरानी होगी कि शोभना की मौत के साथ ही इस बीमारी से एक महीने के भीतर मरने वालों की संख्या 5 हो गई है। इनमें एक तीन महीने का शिशु, एक 9 साल की बच्ची और एक 45 वर्षीय व्यक्ति शामिल हैं, जो हाल ही में वायनाड जिले में दम तोड़ चुका है। सभी मामलों में लक्षण एक जैसे थे – तेज बुखार, सिरदर्द, उल्टी और बाद में बेहोशी। अधिकारियों के मुताबिक, कोझिकोड, मलप्पुरम और वायनाड सबसे ज़्यादा प्रभावित जिले हैं, जहां से अब तक 42 पुष्ट मामले दर्ज किए गए हैं।

कहां से फैल रहा है संक्रमण?

स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि ये बीमारी नेगलेरिया फाउलेरी नामक एक फ्री-लिविंग अमीबा (Brain-Eating Amoeba Facts) से होती है, जो आमतौर पर मीठे पानी की झीलों, नदियों, और टंकियों में पाया जाता है। यह अमीबा नाक के जरिए शरीर में घुसता है, खासकर तब जब कोई व्यक्ति गंदे या रुके हुए पानी में तैरता है या नहाता है। इसके बाद यह दिमाग तक पहुंचता है और घातक ब्रेन इंफेक्शन का कारण बनता है।

क्या कर रही है सरकार?

राज्य में बढ़ते मामलों को देखते हुए, केरल सरकार ने ‘राज्य सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिनियम’ लागू कर दिया है और इससे जुड़े निवारक उपायों पर काम तेज़ कर दिया गया है। सबसे पहले स्थानीय निकायों को आदेश दिए गए हैं कि वो सार्वजनिक जल स्रोतों की सफाई करें। साथ ही, स्थिर पानी में तैरने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। राज्य सरकार ने एक वाटर प्यूरिफिकेशन ड्राइव शुरू किया है, जिसमें कुएं, पानी की टंकियां और अन्य जल स्त्रोतों को साफ किया जा रहा है।

लक्षण दिखें तो तुरंत डॉक्टर से मिलें

स्वास्थ्य विभाग ने लोगों को चेतावनी दी है कि अगर किसी को ताजे पानी के संपर्क में आने के बाद बुखार, सिरदर्द, उल्टी या चक्कर महसूस हो रहे हैं तो इसे नजरअंदाज न करें। समय रहते पहचान और इलाज ही इस बीमारी से बचाव का सबसे अच्छा तरीका है। अमीबिक इंफेक्शन तेजी से शरीर पर असर डालता है, और एक बार ब्रेन तक पहुंचने के बाद इसकी मौत दर बेहद ऊंची होती है।

साफ पानी ही सुरक्षा की पहली शर्त

यह बीमारी दुर्लभ जरूर है लेकिन बेहद खतरनाक है। इसकी रोकथाम साफ पानी से ही संभव है। राज्य सरकार ने लोगों से अपील की है कि वो बिना साफ किए हुए जलस्रोतों से दूरी बनाए रखें और नाक में पानी जाने से बचें, खासकर नदियों, झीलों और पुराने तालाबों में नहाते समय।

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Vice Presidential Election: 391 वोटों की ज़रूरत, एनडीए को 427 सांसदों का समर्थन, जाने...

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Vice Presidential Election: देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए मंगलवार को संसद भवन में मतदान होने जा रहा है। इस बार मुकाबला सिर्फ दो उम्मीदवारों के बीच नहीं, बल्कि संख्याबल बनाम विचारधारा के बीच है। कुल 782 सांसदों (543 लोकसभा और 239 राज्यसभा सदस्य) में से जिसे भी 391 का जादुई आंकड़ा मिल जाएगा, वो देश का अगला उपराष्ट्रपति बन जाएगा।

जहां एक ओर सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन को पहले से ही भारी समर्थन हासिल है, वहीं विपक्षी INDIA ब्लॉक ने वैचारिक लड़ाई का दावा करते हुए अपने उम्मीदवार को मैदान में उतारा है।

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कौन किसके साथ: समर्थन की स्थिति क्या है? Vice Presidential Election

खबरों की मानें तो, एनडीए के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन को जीत के लिए जरूरी 391 से कहीं ज़्यादा करीब 427 सांसदों का समर्थन मिल चुका है। बीजेपी के पास अकेले लोकसभा में 240 और राज्यसभा में 100 के करीब सांसद हैं। सहयोगी दलों टीडीपी (18 सांसद), जेडीयू (16), लोक जनशक्ति पार्टी (5), शिवसेना शिंदे गुट (10), जनता दल सेक्युलर (6), जन सेना पार्टी (2), आरएलडी (2)  के साथ मिलकर ये आंकड़ा लगातार बढ़ता गया है।

इसके अलावा, वाईएसआर कांग्रेस (22 सांसद) ने भी खुले तौर पर एनडीए उम्मीदवार को समर्थन देने का एलान किया है। साथ ही, एजीपी, एजेएसयू, एचएएम, एनसीपी (अजीत पवार गुट), एसकेएम और कुछ निर्दलीय सांसदों का भी समर्थन इन्हें मिल रहा है।

विपक्ष INDIA ब्लॉक के पास हैं 324 सांसद

विपक्षी गठबंधन INDIA के उम्मीदवार सुदर्शन रेड्डी को करीब 324 सांसदों का समर्थन मिला है। कांग्रेस (126 सांसद), समाजवादी पार्टी (41), टीएमसी (42), डीएमके (32), शिवसेना उद्धव गुट (11), एनसीपी (शरद पवार गुट – 10), राजद (9), वामदल (सीपीएम+सीपीआई – 12) और अन्य छोटे दलों के सांसद भी इस गठबंधन के साथ हैं।

हालांकि, बीजेडी (7 सांसद), बीआरएस (4) और अकाली दल ने मतदान से दूरी बनाने का फैसला किया है, जिससे यह मुकाबला और भी एकतरफा होता नजर आ रहा है।

मुकाबला तय, लेकिन संदेश बड़ा

इस बार उपराष्ट्रपति चुनाव संख्याओं का खेल जरूर है, लेकिन विपक्ष इसे विचारों की लड़ाई बता रहा है। सुदर्शन रेड्डी की उम्मीदवारी भले ही जीत की दौड़ में न हो, लेकिन वो अपने को संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक विचारों का प्रतीक बताकर मैदान में डटे हैं।

दूसरी तरफ, एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन को क्लीन स्वीप मिलने की पूरी उम्मीद है। उनके समर्थन में इतने सांसद खड़े हैं कि विपक्ष के पास कोई व्यावहारिक समीकरण नहीं बचा है।

नतीजे लगभग तय, औपचारिक ऐलान बाकी

राजनीतिक समीकरणों को देखें तो सीपी राधाकृष्णन की जीत अब सिर्फ औपचारिकता भर लगती है। इतना बड़ा बहुमत मिलने के बाद भी एनडीए अपने सभी सांसदों को मतदान में शामिल रहने की अपील कर रहा है, ताकि कोई अप्रत्याशित स्थिति न बने।

वहीं, INDIA ब्लॉक ने भी अपने सांसदों को “विचारधारा की जीत” के लिए मतदान करने को कहा है।

उपराष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया- How are vice presidents elected

आइए अब उपराष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया के बारे में भी जान लें। उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा और राज्यसभा के कुल 781 सांसदों द्वारा किया जाता है। जीतने के लिए किसी भी उम्मीदवार को कम से कम 392 वोटों की जरूरत है।

भारतीय संविधान के अनुसार, उपराष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष होता है, जिसमें केवल सांसदों को ही वोट देने का अधिकार होता है। चुनाव के लिए, उम्मीदवार को कम से कम 20 सांसदों के प्रस्तावकों और समर्थकों की आवश्यकता होती है। चुनाव प्रणाली के तहत, सभी सांसदों को प्राथमिकता के आधार पर अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट देना होता है। यदि किसी भी उम्मीदवार को आवश्यक बहुमत नहीं मिलता है, तो चुनावी प्रक्रिया जारी रहती है और फिर सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार को बाहर कर दिया जाता है, उनके वोट अगले उम्मीदवार को ट्रांसफर कर दिए जाते हैं।

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Nepal Protest: ‘मुट्ठियां भींचो, आवाज़ उठाओ’, जानें कौन हैं सुदन गुरुंग जिसने युवाओं ...

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Nepal Protest: 8 सितंबर, 2025 की सुबह नेपाल के लिए आम दिनों जैसी नहीं थी। जैसे ही सूरज चढ़ा, देश के कई शहरों की सड़कों पर युवाओं का सैलाब उमड़ पड़ा। हाथों में पोस्टर, चेहरे पर गुस्सा और दिलों में बदलाव की चाह लिए लाखों छात्र-छात्राएं राजधानी काठमांडू समेत पोखरा, बिराटनगर, भैरहवा जैसे शहरों की सड़कों पर उतर आए। ये सब तब शुरू हुआ जब सरकार ने जब 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को पूरी तरह से बैन किया जिसमें फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब जैसे लोकप्रिय प्लेटफॉर्म शामिल थे। इस घटना के बाद युवाओं का गुस्सा फूट पड़ा। पहले से ही भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और सरकारी उदासीनता को लेकर नाराज़ जेनरेशन-Z के लिए ये बैन आखिरी सीमा थी। वहीं, एक नाम जो इस पूरे आंदोलन का चेहरा बन गया, वह था सुदान गुरुंग।

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आंदोलन का चेहरा बना ‘हामी नेपाल’ और सुदन गुरुंग- Nepal Protest

इस विशाल विरोध प्रदर्शन को एकजुट करने वाला संगठन था हामी नेपाल। इस संगठन की कमान संभाल रहे हैं 36 वर्षीय सुदन गुरुंग, जो अब इस आंदोलन का चेहरा बन चुके हैं। सुदन ने वक्त रहते युवा वर्ग के गुस्से को पहचाना, उसे दिशा दी और सोशल मीडिया बैन को पूरे देशव्यापी असंतोष का प्रतीक बना दिया।

गुरुंग ने सिर्फ इंस्टाग्राम पर भावुक पोस्ट लिखकर ही युवाओं को नहीं बुलाया, बल्कि डिस्कॉर्ड और वीपीएन नेटवर्क के ज़रिए हजारों छात्रों को जोड़ने में अहम भूमिका निभाई।

एक पार्टी ऑर्गनाइज़र से आंदोलनकारी तक का सफर

बहुत कम लोग जानते हैं कि एक्टिविस्ट बनने से पहले सुदन गुरुंग इवेंट मैनेजमेंट में काम करते थे। पार्टियों और शोज़ के बीच घूमती उनकी ज़िंदगी का रुख 2015 में आए नेपाल भूकंप ने बदल दिया। इस हादसे के बाद उन्होंने ‘हामी नेपाल’ की नींव रखी। ये एक ऐसा गैर-लाभकारी संगठन जो आपदा राहत, सामाजिक सेवा और मानवीय सहायता के काम में लगा है।

2020 में इसे आधिकारिक रूप से रजिस्टर किया गया। संगठन को अंतरराष्ट्रीय फंडिंग भी मिलती है और ये अब तक नेपाल में कई भूकंप, बाढ़ और भूस्खलन पीड़ितों की मदद कर चुका है।

“अब पर्याप्त हो गया है!” – गुरुंग का जन संदेश

आंदोलन से ठीक पहले 27 अगस्त को गुरुंग ने लिखा था,
“अगर हम खुद को बदलें, तो देश खुद-ब-खुद बदल जाएगा।”
और 8 सितंबर को उन्होंने इंस्टाग्राम पर लिखा,
“ये सिर्फ एक दिन नहीं है, ये वो दिन है जब हम कहेंगे – अब पर्याप्त हो गया।”

सुदन गुरंग की इंस्टापोस्ट

इसके अलावा, सुदन गुरुंग ने भावपूर्ण और जोशीला आह्वान करते हुए अपने इंस्टा पोस्ट पर लिखा, “हम अपनी आवाज उठाएंगे, मुट्ठियां भीचेंगे, हम एकता की ताकत दिखाएंगे, उनको अपनी शक्ति दिखाएंगे जो नहीं झुकने का दंभ भरते हैं।”

उन्होंने “नेपो बेबीज़” और राजनीतिक अभिजात्य वर्ग पर खुलकर निशाना साधा और भ्रष्टाचार को देश की सबसे बड़ी बीमारी करार दिया।

हिंसा, हताहत और इस्तीफे

आंदोलन का मोड़ उस वक्त गंभीर हो गया, जब प्रदर्शनकारी संसद भवन तक पहुंच गए और तोड़फोड़ शुरू हो गई। पुलिस ने आंसू गैस, रबर बुलेट और अंततः गोलीबारी का सहारा लिया। खबरों की मानें तो, इस हिंसा में 20 लोगों की जान गई और 300 से अधिक घायल हुए।

हालात काबू में लाने के लिए सरकार ने पूरे देश में कर्फ्यू लागू कर दिया है और सोशल मीडिया बैन वापस ले लिया गया है। साथ ही एक जांच समिति भी गठित की गई है।

हालांकि, गृह मंत्री रमेश लेखक ने इस घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया है।

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India-Nepal Trade: तेल, बिजली, दवाएं… भारत से क्या-क्या खरीदता है नेपाल? हिंसा ...

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India-Nepal Trade: नेपाल इस वक्त जबरदस्त उथल-पुथल से गुजर रहा है। देश के हालात इतने बिगड़ गए हैं कि राजधानी काठमांडू समेत कई हिस्सों में हिंसा, आगजनी और पुलिस से टकराव आम बात हो गई है। और इसकी शुरुआत हुई थी एक फैसले से सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर बैन लगाने से। इस डिजिटल सेंसरशिप के खिलाफ देशभर में युवा सड़कों पर उतर आए, और देखते ही देखते हालात बेकाबू हो गए। इस पूरे घटनाक्रम में अब तक करीब 20 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 300 से ज्यादा घायल हैं।

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हालात इतने तनावपूर्ण हो चुके हैं कि नेपाल की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ना शुरू हो गया है। और इसका असर सीधे भारत पर भी पड़ सकता है। आईए आपको इसके बारे में विस्तार से बताते है।

नेपाल और भारत की गहरी व्यापारिक साझेदारी- India-Nepal Trade

नेपाल की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि और टूरिज्म पर टिकी हुई है, लेकिन जरूरी चीजों की सप्लाई के लिए वह भारत पर बहुत हद तक निर्भर करता है। खासकर तेल, बिजली, दवाइयां और मशीनरी जैसी चीजों के लिए। ट्रेंडिंग इकोनॉमिक्स के मुताबिक, साल 2024 में नेपाल ने भारत से करीब 6.95 अरब डॉलर का सामान मंगाया था, जबकि भारत ने नेपाल से करीब 867 मिलियन डॉलर का आयात किया था। यानी नेपाल के कुल विदेशी व्यापार का 60 फीसदी से ज्यादा हिस्सा सिर्फ भारत से जुड़ा हुआ है।

भारत से क्या-क्या जाता है नेपाल?

भारत से नेपाल को सबसे ज्यादा पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स की सप्लाई होती है। अकेले साल 2024 में भारत ने नेपाल को 2.19 अरब डॉलर के तेल उत्पाद भेजे। इसके अलावा स्टील और लोहे के उत्पाद (700 मिलियन डॉलर से ज्यादा), मशीनरी और बॉयलर्स, कार और ऑटो पार्ट्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्लास्टिक, दवाएं और अन्य जरूरी सामग्रियां भारत से नेपाल पहुंचती हैं। नेपाल के पेट्रोल-डीजल वितरण की पूरी जिम्मेदारी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (IOCL) की है।

अगर नेपाल में हालात और बिगड़ते हैं, तो भारत से इन सभी चीजों की सप्लाई पर असर पड़ सकता है, जिससे पड़ोसी देश में ईंधन और जरूरी चीजों की भारी किल्लत देखने को मिल सकती है।

नेपाल से भारत क्या मंगाता है?

नेपाल से भारत को कुछ खास वस्तुएं आयात होती हैं, जैसे –

  • वनस्पति तेल और वसा (152 मिलियन डॉलर)
  • इस्पात और जूट प्रोडक्ट्स
  • कॉफी, चाय और मसाले (98 मिलियन डॉलर)
  • लकड़ी और लकड़ी से बने उत्पाद (70 मिलियन डॉलर)
  • टेक्सटाइल फाइबर, स्टोन और अन्य एग्रो प्रोडक्ट्स

हालांकि, कुल मिलाकर देखा जाए तो भारत की तुलना में नेपाल का भारत पर निर्भरता कहीं ज्यादा है।

भारत की कंपनियां भी हैं नेपाल में एक्टिव

भारत की कई बड़ी कंपनियां नेपाल में इंफ्रास्ट्रक्चर, ऊर्जा और हेल्थकेयर सेक्टर में काम कर रही हैं। इनसे वहां हजारों लोगों को रोजगार मिला हुआ है। इसके अलावा बड़ी संख्या में नेपाली नागरिक भारत में काम करने आते हैं और नेपाल के उत्पादों के लिए भारत सबसे बड़ा बाजार भी बना हुआ है।

ऐसे में नेपाल के अंदर बढ़ता तनाव सिर्फ वहां की राजनीतिक स्थिरता के लिए ही नहीं, बल्कि भारत-नेपाल रिश्तों और कारोबार के लिए भी चिंता की बात बन गया है।

हालात कैसे बिगड़े?

बता दें, नेपाल में संकट की शुरुआत तब हुई जब प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार ने फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, ट्विटर समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगा दिया। इस फैसले से लोगों में भारी नाराजगी फैली और हजारों छात्र सड़कों पर उतर आए। धीरे-धीरे आंदोलन हिंसक हो गया, कई जगह आगजनी हुई, सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचा और पुलिस से टकराव में अब तक 20 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।

स्थिति को संभालने के लिए सरकार ने देर रात बैन हटाने की घोषणा की, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। सोशल मीडिया सर्विसेज धीरे-धीरे बहाल तो हो रही हैं, लेकिन गुस्सा शांत होता नहीं दिख रहा।

वहीं, अगर हालात जल्दी नहीं संभले, तो नेपाल को आर्थिक संकट से गुजरना पड़ सकता है। भारत के साथ उसका व्यापार बुरी तरह प्रभावित हो सकता है, जिससे ईंधन और जरूरी सामानों की भारी किल्लत पैदा हो सकती है। भारत के लिए भी यह चिंता का विषय है, क्योंकि सीमा पर अस्थिरता से न केवल व्यापार प्रभावित होगा, बल्कि कूटनीतिक रिश्तों पर भी असर पड़ेगा।

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Pitrpaksh 2025: भूलकर भी न खरीदें ये नई चीजें, पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए रखें ध्...

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Pitru Paksha: हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष (Pitru Paksha) वह समय है जब हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनका श्राद्ध करते हैं। इस दौरान कुछ नियमों का पालन करना बेहद ज़रूरी माना जाता है, जिसमें खरीदारी से जुड़े कुछ नियम भी शामिल हैं। ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान कुछ चीज़ें खरीदने से पूर्वज नाराज़ हो सकते हैं और पितृ दोष लग सकता है। तो चलिए आपको इस लेख में विस्तार से बताते हैं कि पितृ पक्ष के समय किन वास्तु को नहीं खरीदे।

पितृपक्ष में इन चीजों की खरीदारी से बचें

हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। 16 दिनों की यह अवधि हमारे पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए समर्पित होती है। इन दिनों में किए गए हर काम का सीधा संबंध हमारे पूर्वजों से होता है। इसलिए इस दौरान कुछ चीज़ें खरीदने से बचना चाहिए जैसे…

  • लोहे का सामान – इस दौरान लोहे या लोहे से बनी किसी भी चीज को खरीदना अशुभ माना जाता है। इससे नकारात्मक ऊर्जा घर में आ सकती है।
  • नए कपड़े और गहने –  पितृपक्ष में नए कपड़े या सोने-चांदी के गहने खरीदने से भी मना किया जाता है।
  • वाहन और प्रॉपर्टी – नया वाहन, जमीन या मकान खरीदना भी इस दौरान शुभ नहीं माना जाता है।
  • जूते-चप्पल – इस अवधि में जूते-चप्पल की खरीदारी भी वर्जित है।
  • शादी से जुड़ा सामान – पितृपक्ष में किसी भी तरह के मांगलिक कार्य के लिए सामान नहीं खरीदना चाहिए।
  • इलेक्ट्रॉनिक सामान – फ्रिज, टीवी, वॉशिंग मशीन जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण खरीदने से भी बचना चाहिए।

क्या खरीदना शुभ है?

पितृपक्ष में आप श्राद्ध और पूजा-पाठ से जुड़ी चीजें खरीद सकते हैं, जैसे जौ, काले तिल, कुशा, चावल, धूप-दीप, धार्मिक पुस्तकें आदि। इन सब चीजो से पितृ सब खुश होते है साथ ही आप इन्हें पूजा में भी प्रयोग कर सकते है. इसके अलवा आपको बता दें, काले तिल का प्रयोग तर्पण लेने के लिए भी किय जाता है. जो की पितृ पूजा के समय होता है.

जानें पितृ दोष क्या होता हैं?

भारतीय ज्योतिष के अनुसार, पितृ दोष एक ऐसी स्थिति है जो किसी व्यक्ति की कुंडली में तब उत्पन्न होती है जब उसके पूर्वजों की आत्मा को पूर्ण रूप से शांति नहीं मिली हो। ऐसा माना जाता है कि यह दोष पूर्वजों के अधूरे कर्मों, परिवार में उनके प्रति अनादर या तर्पण व श्राद्ध ठीक से न किए जाने के कारण उत्पन्न होता है। इस वजह से कई बार व्यक्ति को आर्थिक पारिवारिक, स्वास्थ्य संबंधी, संतान संबंधी समस्या आती है।

Nepal Gen-Z Protest: नेपाल में ‘नेपो किड्स’ के खिलाफ भड़का जनसैलाब, सोशल मीडिया से सड...

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Nepal Gen-Z Protest: नेपाल इन दिनों उबल रहा है। और इस उबाल की वजह है ग़ुस्से से भरी वो पीढ़ी, जिसे हम जेनरेशन-ज़ी यानी जेन-ज़ी कहते हैं। ये वो युवा हैं, जो अब सिर्फ़ ऑनलाइन नहीं, बल्कि ज़मीन पर उतरकर सवाल पूछ रहे हैं, ‘हम टैक्स क्यों भरें, जब उसके पैसे से तुम्हारे बच्चों की ऐश होती है?’

सोशल मीडिया पर #NepoKid ट्रेंड कर रहा है और सड़कों पर “हमारे टैक्स और तुम्हारी रईसी” जैसे नारे गूंज रहे हैं। आंदोलन की लपटें अब सिर्फ़ सोशल मीडिया सेंसरशिप तक सीमित नहीं हैं, यह अब सीधे भ्रष्टाचार, राजनीतिक विफलताओं और जनाक्रोश का विस्फोट बन चुका है। आईए आपको बताते हैं नेपाल मे भड़के इस आंदोलन के बारे में विस्तार से।

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 #NepoKid: जब सोशल मीडिया ने पोल खोल दी- Nepal Gen-Z Protest

सबसे पहले बात करते हैं उस हैशटैग की, जिसने इस पूरे बवाल को जन्म दिया #NepoKid। इस हैशटैग के ज़रिए नेपाल के नौजवानों ने नेताओं के बच्चों की शानो-शौकत का खुलासा किया।

  • लग्ज़री कारों में घूमते नेता पुत्र
  • ब्रांडेड कपड़ों में सजी उनकी इंस्टा प्रोफाइल्स
  • विदेशी ट्रिप्स और महंगी घड़ियों के शो-ऑफ वाले वीडियो

इन सबने नेपाल के आम लोगों के ज़ख्मों पर नमक छिड़क दिया। एक तरफ़ बेरोज़गारी और महंगाई से लोग टूट रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ नेता के बेटे-बेटियां ऐश में डूबे हैं। यहीं से शुरू हुआ ग़ुस्से का ज्वालामुखी।

सोशल मीडिया बैन बना चिंगारी, फूटा ज्वालामुखी

इसी बीच, ओली सरकार ने जब फेसबुक, एक्स (ट्विटर), इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप, यूट्यूब, स्नैपचैट जैसे प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगाया, तो यही वह चिंगारी साबित हुई जिसने इस पूरे गुस्से को आग में बदल दिया।

सरकार ने तर्क दिया कि इन प्लेटफॉर्म्स ने पंजीकरण नहीं कराया था, इसलिए बैन लगाया गया। लेकिन जनता को यह एक बहाना लगा क्योंकि इसके पीछे का असल मक़सद आलोचना को दबाना था।

काठमांडू की सड़कों पर जेन ज़ी का कब्जा

सोमवार को काठमांडू की सड़कों पर हजारों की संख्या में युवा उतर आए। सरकार के खिलाफ गुस्से से भरे इन युवाओं का प्रदर्शन इतना उग्र था कि पुलिस भी उन्हें रोकने में नाकाम साबित हुई। हालात तब और बिगड़ गए जब प्रदर्शनकारी संसद भवन तक पहुंच गए। वहां पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच तीखी झड़प हुई, जो देखते ही देखते हिंसक रूप ले बैठी।

इस हिंसा में अब तक 20 युवाओं की जान जा चुकी है, जबकि 300 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। कई घायलों की हालत गंभीर है और उन्हें पास के अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। राजधानी के हालात बेकाबू होते देख प्रशासन ने काठमांडू के कई इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया है, ताकि स्थिति को नियंत्रण में लाया जा सके

 गृहमंत्री रमेश लेखक का इस्तीफा, सरकार संकट में

घटनाओं की गंभीरता को देखते हुए नेपाल के गृहमंत्री रमेश लेखक ने सोमवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने माना कि सुरक्षा में चूक हुई और इस पूरे घटनाक्रम की नैतिक ज़िम्मेदारी ली।

इस इस्तीफे के बाद ओली सरकार की नींव और हिल गई है। विपक्ष के साथ-साथ सत्ता पक्ष के भीतर भी सवाल उठने लगे हैं।

प्रधानमंत्री ओली का बयान – घुसपैठियों की बात, जांच का वादा

प्रदर्शन के बाद प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने बयान जारी किया। उन्होंने कहा:

“हमें अफसोस है कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन हिंसा में बदल गया। कुछ बाहरी तत्वों ने इस आंदोलन में घुसपैठ की। हम इसकी निष्पक्ष जांच कराएंगे और दोषियों को सज़ा दिलाएंगे।”

उन्होंने सोशल मीडिया बैन पर सफाई देते हुए कहा कि सरकार केवल नियमन चाहती थी, प्रतिबंध नहीं। साथ ही एक जांच समिति बनाने की भी घोषणा की, जो 15 दिन में रिपोर्ट देगी।

जेन-ज़ी की सीधी मांग: संसद भंग करो, अंतरिम सरकार बनाओ

अब यह आंदोलन सिर्फ सोशल मीडिया या ग़ुस्से की बात नहीं रह गया है। जेनरेशन ज़ी ने खुलकर राजनीतिक बदलाव की मांग की है:

  • मौजूदा संसद भंग की जाए
  • अंतरिम सरकार बनाई जाए
  • जल्द चुनाव कराए जाएं
  • युवाओं को राजनीतिक प्रतिनिधित्व दिया जाए

प्रदर्शनकारी साफ कह रहे हैं – “हमें सिर्फ़ जवाब नहीं, बदलाव चाहिए।”

नेपाल की जमीनी हकीकत: बेरोजगारी और पलायन

नेपाल में बेरोजगारी की हालत बेहद चिंताजनक है। नेपाल योजना आयोग के पूर्व सदस्य गणेश गुरुंग के मुताबिक़:

  • हर दिन औसतन 2200 युवा विदेश जा रहे हैं
  • नेपाल की GDP का 28% हिस्सा प्रवासी नेपालियों की कमाई से आता है
  • कृषि और पर्यटन का योगदान मिलाकर भी इससे कम है

इससे साफ़ है कि देश की युवा शक्ति पलायन पर मजबूर है, और ये सरकार के लिए सबसे बड़ा असफलता का प्रमाण है।

सीके लाल और विजयकांत कर्ण जैसे विशेषज्ञों की राय

राजनीतिक विश्लेषक सीके लाल का मानना है कि ओली सरकार जनता की आवाज़ सुनना ही नहीं चाहती। उन्होंने कहा:

“ओली लोकतंत्र की बुनियादी भावनाओं को नहीं समझते। उन्होंने मीडिया पर पहले भी अंकुश लगाने की कोशिश की है। इस बार सोशल मीडिया को टारगेट किया गया।”

वहीं पूर्व राजदूत विजयकांत कर्ण कहते हैं:

“कोर्ट ने सोशल मीडिया पर निगरानी और रजिस्ट्रेशन की बात की थी, बैन की नहीं। ओली ने इसे अपनी सत्ता बचाने का हथियार बना लिया।”

 क्या नेपाल को नया नेतृत्व मिलेगा? बालेन शाह को लेकर उम्मीदें

वहीं, इस आंदोलन से एक नया नाम उभरकर आया है – बालेन शाह। काठमांडू के मेयर और पूर्व रैपर रहे बालेन शाह को लोग विकल्प के तौर पर देख रहे हैं।

उनकी छवि “सिस्टम के खिलाफ बोलने वाले” नेता की है। हालांकि उनके पास राजनीतिक अनुभव और संगठन की कमी है, लेकिन जनता की उम्मीदें उनसे जुड़ने लगी हैं।

सीके लाल कहते हैं:

“बालेन शाह जैसे लोग भीड़ को दिशा तो देते हैं, लेकिन बदलाव लाने के लिए सिर्फ जोश नहीं, होश और संगठन दोनों चाहिए।”

मधेस का नजरिया और भविष्य का डर

अब तक ये आंदोलन काठमांडू-केंद्रित रहा है। मधेस में इसकी लहर नहीं फैली है, लेकिन अगर फैली, तो स्थिति और बिगड़ सकती है। मधेसियों को अब भी 2015 के आंदोलन की क्रूरता याद है, जब बच्चों को गोलियां मारी गई थीं और देश चुप रहा था।

सीके लाल का कहना है:

“अगर मधेस भी आंदोलन से जुड़ता है, तो ओली के लिए बचाव मुश्किल हो जाएगा। लेकिन मधेसियों की चुप्पी फिलहाल सरकार के लिए राहत है।”

क्या ओली की सत्ता बचेगी?

सवाल उठ रहा है कि इस सबके बावजूद ओली क्यों अड़े हैं? इसका जवाब भी विशेषज्ञों के पास है। ओली मानते हैं कि उनकी राष्ट्रवादी छवि से उन्हें नुकसान नहीं होगा। उन्हें लगता है कि उनके समर्थक, खासतौर पर पहाड़ी ब्राह्मण और छेत्रीय वर्ग, अब भी उनके साथ हैं। लेकिन अंदरखाने से मिली जानकारियों के मुताबिक़, नेपाली कांग्रेस भी अब दूरी बनाने लगी है

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Nepal Gen-Z Protest Update: छात्रों के बवाल के बीच पीएम ओली की दुबई भागने की तैयारी, ...

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Nepal Gen-Z Protest Update: नेपाल इन दिनों जबरदस्त राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। सरकार की नीतियों से नाराज़ युवाओं और छात्रों का गुस्सा अब पूरे देश में भड़क चुका है। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के देश छोड़ने की खबरें सामने आ रही हैं। नेपाली मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पीएम ओली इलाज के बहाने दुबई रवाना हो सकते हैं। ये खबर ऐसे समय आई है जब देश में जगह-जगह प्रदर्शन और हिंसा का माहौल है।

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दरअसल, पिछले दो दिनों से नेपाल में छात्र और युवा भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और सोशल मीडिया बैन के खिलाफ सड़कों पर हैं। सोमवार को शुरू हुआ प्रदर्शन मंगलवार को और ज़्यादा उग्र हो गया। सरकार की तरफ से फायरिंग और बल प्रयोग ने प्रदर्शनकारियों के गुस्से को और भड़का दिया है। अब तक करीब 20 लोगों की मौत हो चुकी है और 300 से ज्यादा घायल हैं। राजधानी काठमांडू समेत कई शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया है।

पीएम ओली के दुबई जाने की तैयारी? Nepal Gen-Z Protest Update

सूत्रों के मुताबिक, पीएम ओली की तबीयत खराब होने की बात कहकर उन्हें दुबई भेजने की तैयारी की जा रही है। लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ये सिर्फ एक बहाना है, असल में ओली खुद को बचाने के लिए नेपाल से बाहर जाना चाहते हैं। उनके नजदीकी सूत्रों के हवाले से खबर है कि हिमालय एयरलाइंस का एक प्लेन स्टैंडबाय पर रखा गया है, जो उन्हें किसी भी वक्त दुबई ले जा सकता है।

त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट (TIA) को हाई अलर्ट पर रखा गया है और कर्मचारियों को वीआईपी मूवमेंट को संभालने के लिए तैयार रहने को कहा गया है। एयरपोर्ट से जुड़े एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, “एक अनौपचारिक निर्देश जारी हुआ है कि कई नेता देश छोड़ सकते हैं, इसलिए चौकसी बढ़ा दी गई है।”

बड़े नेताओं के घरों पर हमले, राष्ट्रपति का आवास फूंका

प्रदर्शन अब केवल नारों और मार्च तक सीमित नहीं है, ये सीधा नेताओं के घरों तक पहुंच गया है। काठमांडू में राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल के निजी आवास पर प्रदर्शनकारियों ने कब्जा कर लिया और वहां आगजनी कर दी। इसी तरह पूर्व उप-प्रधानमंत्री रघुवीर महासेठ के जनकपुर स्थित घर पर भी पथराव किया गया।

इतना ही नहीं, नेपाली कांग्रेस अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा के आवास को भी प्रदर्शनकारियों ने फूंक दिया। उनके घर में तोड़फोड़ की गई और आधा दर्जन से ज्यादा वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया। आपको बता दें कि नेपाली कांग्रेस, ओली सरकार की गठबंधन सहयोगी पार्टी है।

सरकार में टूट, 21 मंत्रियों ने दिया इस्तीफा

नेपाल में आंदोलन का असर राजनीतिक स्तर पर भी दिखाई देने लगा है। अब तक गृहमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री, कृषि मंत्री समेत 10 कैबिनेट मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया है। वहीं, राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के 21 सांसदों ने भी संसद से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया है। पार्टी के नेता रवि लामिछाने ने कहा कि अब संसद भंग कर नए चुनाव कराए जाने चाहिए, ताकि जनता को नया और भरोसेमंद नेतृत्व मिल सके।

ओली के इस्तीफे की मांग से नहीं हट रहे छात्र

वहीं, सरकार ने सोशल मीडिया पर लगाए गए 26 प्लेटफॉर्म्स पर बैन को वापस ले लिया है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अब छात्रों की मांग सिर्फ सोशल मीडिया की आज़ादी नहीं रह गई है। वे ओली सरकार के पतन की मांग कर रहे हैं और उनका कहना है कि जब तक ओली इस्तीफा नहीं देंगे, आंदोलन रुकेगा नहीं।

आंदोलन बना बड़ा जनआंदोलन

आपको बता दें, पहले यह विरोध सिर्फ ज़ेन-ज़ी युवाओं का आंदोलन माना जा रहा था, लेकिन अब इसमें आम जनता, राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन भी जुड़ चुके हैं। विरोध अब भ्रष्टाचार, जवाबदेही की कमी, लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमले और सत्ता में बैठे लोगों के ऐशोआराम के खिलाफ एक जनआंदोलन बन गया है।

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Heart attack in animals: क्या आपको पता है? जानवरों को भी हो सकता है हार्ट अटैक और किड...

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Heart attack in animals: हम अक्सर सोचते हैं कि गंभीर बीमारियां जैसे हार्ट अटैक या किडनी फेल होना सिर्फ इंसानों की परेशानी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये समस्याएं जानवरों को भी उतनी ही प्रभावित करती हैं, जितना हमें? फर्क सिर्फ इतना है कि हम इंसान अपने दर्द को बोलकर बता सकते हैं, जबकि जानवर खामोशी से दर्द सहते रहते हैं। इसी वजह से उनकी बीमारी का पता तब चलता है जब हालात काफी बिगड़ चुके होते हैं।

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जानवरों को भी होती है किडनी फेल– Heart attack in animals

किडनी यानी गुर्दे, इंसानों की तरह ही जानवरों के शरीर में भी अहम भूमिका निभाते हैं। ये शरीर से टॉक्सिन्स निकालने, पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स का संतुलन बनाए रखने और कुछ जरूरी हार्मोन्स बनाने का काम करते हैं। जब किडनी ठीक से काम करना बंद कर देती है तो उसे ‘किडनी फेलियर’ या ‘क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD)’ कहा जाता है।

जानवरों में इसकी पहचान मुश्किल होती है क्योंकि शुरुआती लक्षण बेहद सामान्य लगते हैं जैसे ज्यादा प्यास लगना, बार-बार पेशाब आना, कम खाना, धीरे-धीरे वजन घटना, उल्टी या सुस्ती। अगर इन संकेतों को नजरअंदाज कर दिया जाए तो बीमारी गंभीर रूप ले सकती है।

किडनी फेलियर के पीछे कई कारण हो सकते हैं। जैसे इंसानों में उम्र के साथ अंग कमजोर होने लगते हैं, वैसे ही जानवरों में भी बढ़ती उम्र के साथ किडनी पर असर पड़ता है। कुछ नस्लों में यह समस्या जन्म से ही हो सकती है। इसके अलावा बैक्टीरियल इंफेक्शन, विषाक्त पदार्थों का सेवन या शरीर में पानी की कमी भी किडनी डैमेज का कारण बन सकते हैं।

क्या जानवरों को हार्ट अटैक आ सकता है?

अब आपको जानकार हैरानी हो सकती है कि जानवरों को भी हार्ट से जुड़ी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। हालांकि इंसानों की तरह उनके हार्ट अटैक के लक्षण और कारण थोड़े अलग होते हैं। इंसानों में हार्ट अटैक अक्सर कोरोनरी आर्टरी ब्लॉक होने से होता है, जबकि जानवरों में cardiomyopathy, mitral valve disease, हाई ब्लड प्रेशर या जन्मजात दिल की बीमारियां आम होती हैं।

कई बार जानवर बिना किसी लक्षण के दिल की बीमारी से जूझते रहते हैं और अचानक कार्डियक अरेस्ट हो सकता है। चौंकाने वाली बात ये है कि पालतू जानवरों जैसे कुत्तों और बिल्लियों में भी हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट मसल्स की कमजोरी और वॉल्व में खराबी देखी गई है। कुछ ब्रीड्स जैसे डॉबरमैन, बॉक्सर या ग्रेट डेन में ये रिस्क ज्यादा होता है।

क्या करें पालतू जानवरों की सेहत के लिए?

इसलिए पालतू जानवरों की सेहत की देखभाल उतनी ही जरूरी है, जितनी किसी परिवार के सदस्य की। अच्छे स्वास्थ्य के लिए रेगुलर हेल्थ चेकअप, संतुलित डाइट, साफ पानी, पर्याप्त एक्सरसाइज और साफ-सफाई उनकी सेहत बनाए रखने में मदद करते हैं। अगर आपके पालतू जानवर के व्यवहार में बदलाव दिखे जैसे कम खाना, बहुत नींद आना, या अचानक सुस्ती तो तुरंत वेटरनरी डॉक्टर से संपर्क करें।

याद रखें, जानवर बोल नहीं सकते, लेकिन उनका शरीर इशारों में बहुत कुछ कह देता है। जरूरत बस है, उसे समझने की।

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Nargis-Sunil Dutt Love Story: जिससे पर्दे पर कहा ‘बेटा’, उसे ही दिल दे बैठी हसीना, कि...

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Nargis-Sunil Dutt Love Story: बॉलीवुड की दुनिया में कई प्रेम कहानियां आईं और गईं, लेकिन कुछ किस्से हमेशा के लिए दिलों में बस जाते हैं। ऐसी ही एक कहानी है नरगिस और सुनील दत्त की। ये सिर्फ दो कलाकारों का रिश्ता नहीं था, बल्कि एक टूटी हुई आत्मा को फिर से ज़िंदा करने वाली दास्तान थी। आपको बता दें, नरगिस, जिन्होंने ‘मदर इंडिया’, ‘आवारा’, ‘अंदाज़’ जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया, उस दौर की सबसे मशहूर और प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों में से एक थीं। पर्दे पर वह जितनी दमदार नजर आती थीं, निजी जिंदगी में उतनी ही जटिल और संघर्षों से भरी रहीं। राज कपूर के साथ उनके रिश्ते ने खूब सुर्खियां बटोरीं, लेकिन ये रिश्ता अंत तक नहीं टिक पाया। राज नरगिस के लिए कभी अपना परिवार नहीं छोड़ पाए और यही बात नरगिस को अंदर से तोड़ती चली गई। इसके बाद उनके जीवन में एक ऐसा इंसान आया जिसने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी।

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मौत के करीब थी नरगिस, लेकिन फिर बदली किस्मत- Nargis-Sunil Dutt Love Story

किश्वर देसाई की किताब “डार्लिंगजी – द ट्रू लव स्टोरी ऑफ नरगिस एंड सुनील दत्त” के मुताबिक, राज कपूर से रिश्ता टूटने के बाद नरगिस इतनी टूट चुकी थीं कि आत्महत्या तक का सोचने लगी थीं। लेकिन फिर साल 1957 आया और ‘मदर इंडिया’ की शूटिंग के दौरान कुछ ऐसा हुआ, जिसने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी।

फिल्म के सेट पर अचानक आग लग गई और नरगिस उसमें फंस गईं। तभी सुनील दत्त, जो फिल्म में उनके बेटे ‘बिरजू’ का किरदार निभा रहे थे, अपनी जान की परवाह किए बिना उन्हें बचाने दौड़ पड़े। इस हादसे में सुनील बुरी तरह जल गए, लेकिन उन्होंने नरगिस की जान बचा ली। यहीं से दोनों के बीच एक नया रिश्ता शुरू हुआ।

एक नई शुरुआत, एक सच्चा रिश्ता

सुनील दत्त के जख्मों की देखभाल करते हुए नरगिस उनके और करीब आ गईं। उन्होंने अपने जीवन की हर छोटी-बड़ी बात सुनील से साझा की। किताब में एक जगह नरगिस लिखती हैं, “अगर वह नहीं होते, तो शायद मैं 8 मार्च से पहले ही अपनी जान दे देती… उन्होंने कहा – ‘मैं चाहता हूं कि तुम ज़िंदा रहो’ और मुझे लगा कि मुझे फिर से जीना है।”

सुनील दत्त पहले ऐसे इंसान थे जिन्होंने नरगिस को सिर्फ एक स्टार नहीं, बल्कि एक इंसान की तरह देखा। इससे पहले नरगिस हमेशा दूसरों के लिए कुछ न कुछ करती रहीं कभी अपने परिवार के लिए, तो कभी राज कपूर के लिए। लेकिन सुनील पहले व्यक्ति थे जिन्होंने उनके लिए कुछ किया, बिना किसी स्वार्थ के।

‘बिरजू’ ने कर दिया प्रपोज

‘मदर इंडिया’ की शूटिंग के बाद दोनों के बीच इश्क गहराने लगा। सुनील ने एक दिन हिम्मत करके नरगिस को प्रपोज कर दिया। एक इंटरव्यू में सुनील ने बताया था कि नरगिस उनके घर आई थीं और जब वह उन्हें छोड़ने जा रहे थे, तो उन्होंने कार में ही उनसे पूछा, “क्या आप मुझसे शादी करेंगी?” नरगिस ने कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप उतरकर चली गईं।

इस जवाबहीन पल ने सुनील को हिला दिया। उन्होंने सोच लिया था कि अगर नरगिस ने ना कह दिया, तो वह मुंबई छोड़कर अपने गांव जाकर खेती करेंगे। लेकिन कुछ दिन बाद उनकी बहन ने उन्हें बताया – “नरगिस जी मान गई हैं।”

1958 में शादी, फिर साधारण जिंदगी

इसके बाद साल 1958 में दोनों ने शादी कर ली। नरगिस ने अपना आलीशान जीवन छोड़कर सुनील के परिवार के साथ एक छोटे से घर में रहना शुरू किया। उनके तीन बच्चे हुए नम्रता, प्रिया और संजय दत्त।

शादी के बाद नरगिस ने फिल्मों से दूरी बना ली और सामाजिक कामों में जुट गईं। दुर्भाग्यवश, 1981 में अग्नाशय के कैंसर के कारण केवल 51 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई। नरगिस की याद में सुनील दत्त ने ‘नरगिस दत्त मेमोरियल कैंसर फाउंडेशन’ की स्थापना की।

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