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Indonesia mosque blast: जकार्ता में 17 साल के लड़के ने बनाई घर पर बम और उड़ा दी मस्जि...

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Indonesia mosque blast: इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता से एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है। यहां एक 17 साल के छात्र ने अकेले ही अपने घर पर बम बनाए और मस्जिद में विस्फोट कर दिया। इस हमले में 96 लोग घायल हुए हैं, जिनमें कई स्कूल छात्र भी शामिल हैं। पुलिस जांच में सामने आया है कि यह किशोर न तो किसी आतंकी संगठन से जुड़ा था, न ही किसी के बहकावे में आया था बल्कि उसने इंटरनेट पर देखे गए उग्रवादी और हिंसक कंटेंट से प्रेरणा लेकर खुद ही यह साजिश रची थी।

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इंटरनेट से सीखी बम बनाने की तकनीक- Indonesia mosque blast

जकार्ता पुलिस के जनरल क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन डायरेक्टर इमान इमानुद्दीन ने बताया कि आरोपी छात्र ने कुल सात बम तैयार किए, जिनमें से चार फट गए जबकि तीन को सुरक्षा बलों ने निष्क्रिय कर दिया। ये बम बेहद साधारण घरेलू सामानों से बनाए गए थे  6-वोल्ट बैटरी, प्लास्टिक कैन, रिमोट कंट्रोल और लोहे की कीलें। इन बमों को इस तरह डिजाइन किया गया था कि अधिकतम नुकसान हो सके।

पुलिस के मोबाइल ब्रिगेड यूनिट अधिकारी हेनिक मरयांतो ने बताया कि छात्र ने इन बमों की तकनीक पूरी तरह इंटरनेट से सीखी थी। उन्होंने कहा, “हमें उसके कमरे से कई नोट्स और लिंक मिले हैं, जिनमें बम बनाने के विस्तृत तरीके बताए गए थे। जो तीन बम नहीं फटे, उन्हें भी हमने जब्त कर लिया है।”

स्कूल में अकेलापन और अंतर्मुखी स्वभाव

जांच में पता चला कि यह छात्र बहुत अंतर्मुखी था और स्कूल में उसका कोई करीबी दोस्त नहीं था। वह न परिवार से खुलकर बात करता था, न क्लासमेट्स से मेलजोल रखता था। पुलिस अधिकारी इमानुद्दीन ने बताया कि “उसे लगता था कि कोई उसकी बात नहीं सुनता। धीरे-धीरे उसने खुद को दुनिया से अलग कर लिया और हिंसा की ओर झुक गया।”

‘नियो-नाजी’ विचारधारा से प्रभावित

छात्र के कमरे की तलाशी में पुलिस को एक खिलौना सबमशीन गन मिली, जिस पर नव-नाजी और अन्य कुख्यात आतंकियों के नाम लिखे हुए थे। इनमें कनाडा, इटली और न्यूजीलैंड के चर्चित आतंकी हमलावरों के नाम शामिल थे।
पुलिस का कहना है कि वह ‘व्हाइट सुप्रेमेसिस्ट’ और ‘नियो-नाजी’ विचारधारा से प्रभावित था, लेकिन उसका किसी संगठन से कोई सीधा संपर्क नहीं था।
इंडोनेशिया की काउंटर टेररिज्म स्क्वॉड के प्रवक्ता मायंद्र एका वार्धाना ने कहा, “वह केवल हिंसक प्रतीकों और इंटरनेट पर दिखने वाले चरमपंथी नामों से प्रभावित था, लेकिन किसी आतंकी नेटवर्क से उसका कोई रिश्ता नहीं मिला।”

टेरर लॉ के तहत नहीं चलेगा मामला

अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि आरोपी छात्र पर इंडोनेशिया के कड़े आतंकवाद निरोधक कानून के तहत मामला नहीं चलाया जा सकता, क्योंकि उसने किसी आतंकी संगठन से संपर्क नहीं किया था। हालांकि, उस पर पूर्व नियोजित गंभीर हमला (Premeditated Serious Assault) का केस चलेगा, जिसमें 12 साल तक की सजा हो सकती है।

धमाके में घायल छात्रों की हालत

इस विस्फोट में घायल 96 लोगों में से आधे से ज्यादा छात्र हैं। अस्पताल सूत्रों के अनुसार, कई छात्रों की सुनने की शक्ति प्रभावित हुई है। चार छात्रों में अचानक बहरेपन (sudden deafness) के लक्षण `पाए गए हैं। पुलिस ने बताया कि 11 छात्र अब भी अस्पताल में भर्ती हैं, जिनमें एक की हालत गंभीर है क्योंकि उसे गंभीर जलन और आंतरिक चोटें आई हैं।

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Delhi Air Pollution Reason: न पटाखे, न पराली… फिर भी दिल्ली क्यों बनी ‘गैस चेंबर’? जा...

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Delhi Air Pollution Reason: दिल्ली की हवा एक बार फिर जानलेवा साबित हो रही है। आज सुबह से ही राजधानी घनी धुंध की चादर में लिपटी रही। आसमान धुंधला, सूरज फीका और सांसें भारी  यही रहा आज के दिन का हाल। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आंकड़ों के मुताबिक, सुबह 10 बजे तक दिल्ली का औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 420 के करीब रहा, जो ‘गंभीर’ श्रेणी में आता है। यानी यह 2025 का पहला दिन है जब राजधानी की हवा इतने खतरनाक स्तर पर पहुंच गई।

दिल्ली के 39 में से 33 मॉनिटरिंग स्टेशनों पर AQI 400 से ऊपर दर्ज हुआ। आनंद विहार, वजीरपुर, रोहिणी और द्वारका जैसे इलाकों में तो यह 450 के पार चला गया। इन इलाकों में सांस लेना भी मुश्किल हो गया है, खासकर बच्चों, बुजुर्गों और अस्थमा के मरीजों के लिए। सबसे चिंता की बात यह है कि दिवाली के पटाखे अब नहीं फूट रहे और पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने के मामले आधे हो चुके हैं, फिर भी हवा का यह हाल है।

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कैसी है दिल्ली की हवा आज? (Delhi Air Pollution Reason)

CPCB के डैशबोर्ड के मुताबिक, आज का औसत AQI 428 तक पहुंच गया, जो दिसंबर 2024 के बाद सबसे खराब स्तर है। हवा में मौजूद PM2.5 कण 300 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ऊपर दर्ज किए गए — जो फेफड़ों के लिए बेहद खतरनाक माने जाते हैं। कल रात तापमान 10.4 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया, जो इस सीजन की सबसे ठंडी सुबह थी। इसके साथ ही हवा में 75 से 85% तक नमी रही, जिससे स्मॉग और ज्यादा घना हो गया।

इन हालातों को देखते हुए दिल्ली सरकार ने GRAP-3 (ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान) लागू कर दिया है। इसके तहत स्कूलों में हाइब्रिड क्लासेस, निर्माण कार्यों पर पूरी तरह रोक, और बाहर से आने वाले ट्रकों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई है। फिर भी राहत नहीं मिल रही। मौसम विभाग (IMD) का पूर्वानुमान है कि 12 से 14 नवंबर तक AQI ‘गंभीर’ स्तर पर ही रहेगा।

मौसम ने बिगाड़ी हालत: शांत हवाएं और ठंडी रातें बना रहीं हैं जाल

भारतीय मौसम विभाग (IMD) और सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (SAFAR) के वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बार मुख्य जिम्मेदार खुद मौसम है।
IMD के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कुलदीप शर्मा बताते हैं, “नवंबर में हवाओं की रफ्तार बहुत कम हो जाती है। आज रात हवा की स्पीड सिर्फ 4 से 6 किमी प्रति घंटा रही, जिससे प्रदूषक कण जमीन के पास फंस गए।”

SAFAR की रिपोर्ट के अनुसार, 12 नवंबर को हवा की गति सामान्य से 60% कम रही। यानी हवा न तो उत्तर से आ रही है, न दक्षिण से जा रही — ऐसे में पूरा प्रदूषण दिल्ली के ऊपर ही घूमता रहा।

IMD की वैज्ञानिक डॉ. गुंजन तिवारी कहती हैं, “दिल्ली भौगोलिक रूप से एक तरह की ‘कटोरी’ है। उत्तर में अरावली और दक्षिण में यमुना नदी इसे घेर लेती हैं। ठंड के मौसम में यह प्राकृतिक जाल और मजबूत हो जाता है। अगर हवा की गति 12-15 किमी प्रति घंटा होती, तो AQI 30-40% घट सकता था।”
उनके मुताबिक, 15-16 नवंबर से उत्तर-पश्चिमी हवाएं चलने की उम्मीद है, तब कुछ सुधार संभव है।

वैज्ञानिक वजहें: इनवर्शन लेयर और हवा की कमी

प्रदूषण के पीछे सिर्फ इंसानी गतिविधियां नहीं, बल्कि कुछ वैज्ञानिक कारण भी हैं।

  1. तापमान इनवर्शन (Temperature Inversion):
    सर्दियों में जमीन ठंडी और ऊपर की हवा गर्म होती है। इससे नीचे ठंडी परत बन जाती है जो प्रदूषण को ऊपर उठने नहीं देती। ये परत एक “ढक्कन” की तरह काम करती है और 5 जैसे बारीक कण (आज 300+ µg/m³) नीचे ही फंसे रहते हैं।
    नवंबर-दिसंबर में यह स्थिति करीब 12-15 दिन तक बनी रहती है और प्रदूषण 40-50% तक बढ़ा देती है।
  2. हवा की कम रफ्तार:
    आज हवा की स्पीड सिर्फ 4-6 किमी प्रति घंटा थी। सामान्य स्थिति में हवा प्रदूषण को फैला देती है, लेकिन जब यह धीमी पड़ जाती है, तो पूरा जहर शहर में जमा हो जाता है।
  3. उच्च नमी (High Humidity):
    75-85% नमी से धूल और धुएं के कण आपस में चिपककर स्मॉग बनाते हैं। यही धुंध सुबह-सुबह दिखाई देती है और सांस लेने में तकलीफ देती है।

पटाखे और पराली नहीं, शहर खुद जिम्मेदार

दिल्ली सरकार और पर्यावरण एजेंसियों के आंकड़ों से साफ है कि इस बार पटाखे और पराली मुख्य कारण नहीं हैं।
CAQM रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब में 15 सितंबर से 6 नवंबर तक 3,284 पराली जलाने के मामले दर्ज हुए, जो पिछले साल के मुकाबले 37% कम हैं। हरियाणा में तो सिर्फ 206 मामले हुए, यानी 77% की गिरावट। कुल मिलाकर दोनों राज्यों में पराली जलाने में करीब 50% की कमी आई है।

तो फिर दोषी कौन?

  • वाहन: दिल्ली में रोजाना करीब 22 लाख गाड़ियां चलती हैं, जो PM10 का सबसे बड़ा स्रोत हैं।
  • निर्माण और सड़क की धूल: 25% प्रदूषण इनसे आता है।
  • उद्योग और बिजलीघर: NCR के थर्मल प्लांट्स 18-20% प्रदूषण बढ़ा रहे हैं।
  • पड़ोसी राज्यों का प्रभाव: यूपी और राजस्थान से आने वाली हवाओं में वहां का धुआं भी शामिल है।

क्लाइमेट ट्रेंड्स की रिपोर्ट के अनुसार, दिवाली के बाद दिल्ली में PM2.5 का स्तर 200% तक बढ़ा है, लेकिन अब मुख्य कारण मौसम है।

क्या होगा आगे?

IMD के मुताबिक, 15 नवंबर से हवा की गति बढ़ेगी, जिससे AQI 300 तक गिर सकता है। लेकिन तब तक लोगों को सतर्क रहना होगा।

व्यक्तिगत स्तर पर क्या करें

  • बाहर निकलते वक्त N95 मास्क पहनें।
  • सुबह और देर शाम की सैर से बचें।
  • घर में एयर प्यूरीफायर या इनडोर पौधे रखें।

सरकारी कदम

अगर हालात और बिगड़े, तो सरकार GRAP-4 लागू कर सकती है, जिसमें उड़ानों तक पर असर पड़ सकता है।
क्लाउड सीडिंग (कृत्रिम बारिश) का एक ट्रायल असफल रहा था, लेकिन अब इसे दोबारा आजमाने की तैयारी है।

लंबे समय में समाधान वही पुराना है—
इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना, CNG इंडस्ट्री को बढ़ाना, और किसानों को पराली प्रबंधन के बेहतर विकल्प देना।

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Dharmendra Net Worth: 450 करोड़ की दौलत, 2 बीवी, 6 बच्चे, फिर भी फार्महाउस में रहते ह...

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Dharmendra Net Worth: बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र की सेहत फिलहाल फैंस और इंडस्ट्री के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। वे पिछले कई दिनों से मुंबई के ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल में एडमिट हैं। धर्मेंद्र की सेहत को लेकर उनके परिवार, दोस्त और फैंस काफी चिंतित हैं। हॉस्पिटल के बाहर और सोशल मीडिया पर उनकी जल्दी ठीक होने की दुआएं और संदेश लगातार आ रहे हैं।

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फिल्म इंडस्ट्री के सितारों ने किया हालचाल जाना- Dharmendra Net Worth

धर्मेंद्र से मिलने बॉलीवुड के बड़े सितारे भी हॉस्पिटल पहुंचे। शाहरुख खान, सलमान खान, गोविंदा और अमीषा पटेल ने उन्हें हॉस्पिटल जाकर हालचाल जाना। वहीं धर्मेंद्र का पूरा परिवार भी उनके साथ मौजूद है। परिवार के लोग लगातार उनकी देखभाल कर रहे हैं और उनके जल्द स्वस्थ होने की कामना कर रहे हैं।

450 करोड़ की नेटवर्थ और संपत्तियां

धर्मेंद्र ने बॉलीवुड में अपनी मेहनत और प्रतिभा के दम पर एक खास मुकाम हासिल किया। उनकी फिल्में हमेशा पसंद की गई और उन्हें इंडस्ट्री में “हीट एंड हार्ट” का दर्जा मिला। रिपोर्ट्स के अनुसार, धर्मेंद्र की कुल नेटवर्थ लगभग 450 करोड़ रुपए बताई जा रही है। इसके अलावा उनके पास मुंबई समेत देश के अलग-अलग हिस्सों में कई प्रॉपर्टीज भी हैं।

फार्महाउस में रहने की वजह

इतनी संपत्ति और प्रसिद्धि होने के बावजूद धर्मेंद्र ज्यादातर समय अपने फार्महाउस में बिताते हैं। वे अक्सर वहां से वीडियोज और फोटोज शेयर करते रहते हैं। उनके बेटे बॉबी देओल ने एक इंटरव्यू में बताया कि लोग सोचते हैं कि उनके पापा फार्महाउस पर अकेले रहते हैं, लेकिन उनकी पहली पत्नी प्रकाश कौर भी उनके साथ रहती हैं। बॉबी ने कहा, “मां और पापा खंडाला में रहते हैं। उन्हें फार्महाउस में रहना पसंद है क्योंकि वहां उन्हें आराम मिलता है, मौसम और खाना भी अच्छा है।”

धर्मेंद्र का परिवार

आपको बता दें, धर्मेंद्र की पर्सनल लाइफ भी खास रही है। उन्होंने दो शादियां की हैं। उनकी पहली शादी 1954 में प्रकाश कौर से हुई, जिनसे उन्हें चार बच्चे हुए सनी देओल, बॉबी देओल, अजीता और विजेता। सनी के दो बच्चे हैं—करण और राजवीर, बॉबी के दो—धर्म और आर्यमन। अजीता की दो बेटियां हैं और विजेता के एक बेटा और एक बेटी हैं।

इसके बाद धर्मेंद्र ने बॉलीवुड की अभिनेत्री हेमा मालिनी से शादी की। चूंकि उनकी पहली पत्नी ने तलाक नहीं दिया था, धर्मेंद्र ने धर्म बदलकर हेमा से विवाह किया। हेमा और धर्मेंद्र की शादी 1980 में हुई और इस शादी से उन्हें दो बेटियां ईशा और अहाना देओल हैं। ईशा के दो बच्चे हैं, जबकि अहाना के तीन एक बेटा और दो जुड़वा बेटियां। कुल मिलाकर धर्मेंद्र के 13 नाती-पोते हैं।

फैन्स और इंडस्ट्री की शुभकामनाएं

धर्मेंद्र केवल बॉलीवुड हीरो नहीं बल्कि फैन्स और परिवार के लिए प्रेरणा भी हैं। उनकी सेहत को लेकर सभी चिंतित हैं और हर कोई उनकी जल्दी स्वस्थ होने की कामना कर रहा है। डॉक्टर्स लगातार उनकी देखभाल कर रहे हैं और उम्मीद जताई जा रही है कि धर्मेंद्र जल्द ही हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होकर अपने फार्महाउस लौटेंगे, जहां वे अपने परिवार और शांत जीवन का आनंद लेते रहेंगे।

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How Nuclear Bombs Work: सिर्फ कुछ किलो यूरेनियम से मिट सकता है शहर! जानिए कैसे बनता ह...

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How Nuclear Bombs Work: हिरोशिमा और नागासाकी की भयावह तस्वीरें आज भी आँखों के आगे तैरती हैं। एक सेकंड भर का परमाणु धमाका इतिहास बदल देता है और उसके प्रभाव दशक-से-दशक तक बरकरार रहते हैं। ऐसी ही जिज्ञासा अक्सर उठती है: आखिर एक परमाणु बम कैसे काम करता है और उसके लिए किन चीज़ों की जरूरत होती है? वैज्ञानिक भाषा में जवाब आसान नहीं, पर सामान्य बातों में इसे समझना संभव है।

सबसे पहले—परमाणु हथियार दो मुख्य तरीके से ऊर्जा छोड़ते हैं: नाभिकीय विखंडन (fission) और नाभिकीय संलयन (fusion)। विखंडन में भारी परमाणु जैसे कुछ विशिष्ट प्रकार के पदार्थ टूटते हैं और अचानक बड़ी ऊर्जा, गर्मी, दबाव-लहर व रेडियोधर्मी कण छोड़ते हैं। संलयन में हल्के नाभिक मिलकर भारी नाभिक बनाते हैं और उससे और भी ज़्यादा ऊर्जा निकलती है—इसी सिद्धांत पर हाइड्रोजन बम काम करते हैं।

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सरल शब्दों में, किसी परमाणु प्रतिक्रिया को नियंत्रित परिस्थितियों में तेज़ी से चलाया जाता है ताकि एक शृंखला प्रतिक्रिया शुरू हो जाए। इस शृंखला प्रतिक्रिया से पैदा हुई ऊर्जा ही विस्फोट का कारण बनती है उसके साथ ही तीव्र गर्मी और तीव्र विकिरण भी निकलता है, जो तुरंत और लंबे समय बाद भी जान-माल व पर्यावरण को प्रभावित करता है।

कौन-सी सामग्री प्रयोग में आती हैं? (How Nuclear Bombs Work)

परमाणु हथियारों में उन तत्वों की ज़रूरत होती है जिनके नाभिक ‘विखंडन’ के लिए अनुकूल हों। आमतौर पर चर्चा में जो नाम आते हैं, उनमें प्लूटोनियम-239 और विशिष्ट किस्म के यूरेनियम शामिल हैं (इतिहास और वैज्ञानिक साहित्य में यूरेनियम-235 और यूरेनियम-233 का भी जिक्र मिलता है)। ये पदार्थ नाभिकीय शृंखला प्रतिक्रिया को सम्भव बनाते हैं। पर ध्यान रखें—यहाँ केवल नामों का उल्लेख किया जा रहा है; निर्माण के तकनीकी पहलू, मात्रा, संवेदनशील प्रक्रियाएँ या व्यवहारिक निर्देश किसी भी तरह साझा करना नीतिगत और कानूनी रूप से असंगत व खतरनाक है।

प्रभाव कितना भयानक होता है?

परमाणु धमाका सिर्फ एक विस्फोट नहीं होता—उसके साथ एक प्रचंड दबाव-लहर, तीव्र ऊष्मा किरण और रेडियोधर्मी कण (फैलना) आते हैं। तत्काल प्रभाव में इमारतें ध्वस्त होती हैं, लोग गंभीर जलन और चोटें सहते हैं; बाद में रेडियोधर्मी प्रदूषण (फॉलआउट) वर्षों तक जमीन, पानी और स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। कैंसर, आनुवंशिक असर और दीर्घकालिक पर्यावरणीय नुकसान इसके प्रमुख दुष्प्रभाव हैं।

क्यों दुनिया में नाभिकीय हथियारों के ख़िलाफ़ जोर है?

परमाणु हथियारों की विनाशकारी शक्ति, उनकी दीर्घकालिक प्रभावशीलता और आतंकवाद/गलत हाथों में जाने का खतरा—इन सब कारणों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नियंत्रण के प्रयास, संधियाँ और गैर-प्रसार नीतियाँ चले आ रही हैं। नॉन-प्रोलिफरेशन ट्रिटी (NPT) और विभिन्न क्षेत्रीय समझौते इसी दिशा में हैं।

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Bihar Exit Poll Result: बिहार चुनाव वोटिंग के बाद एग्जिट पोल्स में NDA आगे, पांच एजें...

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Bihar Exit Poll Result: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की वोटिंग खत्म हो चुकी है और अब पूरा राज्य नतीजों का इंतजार कर रहा है। लेकिन उससे पहले एग्जिट पोल्स ने माहौल और भी दिलचस्प बना दिया है। लगभग सभी चैनलों और सर्वे एजेंसियों ने अपने-अपने अनुमान जारी कर दिए हैं। इनमें ज़्यादातर एग्जिट पोल्स में फिर से NDA की सरकार बनती दिख रही है। हालांकि, महागठबंधन ने इन तमाम सर्वे को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि असली तस्वीर 3 दिसंबर को वोटों की गिनती के बाद ही साफ होगी।

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लेकिन इन सबके बीच दिलचस्प बात यह है कि पांच प्रमुख एजेंसियों ने अपने सर्वे में महागठबंधन को 100 से ज्यादा सीटें मिलने की भविष्यवाणी की है। यानी इन एजेंसियों के मुताबिक मुकाबला उतना एकतरफा नहीं है, जितना कुछ शुरुआती एग्जिट पोल्स दिखा रहे थे।

पहली एजेंसी – पीपुल्स प्लस (Bihar Exit Poll Result)         

पीपुल्स प्लस के एग्जिट पोल के अनुसार, NDA को 133 से 159 सीटें मिलने का अनुमान है। वहीं महागठबंधन को 75 से 101 सीटें दी गई हैं। इस एजेंसी का अनुमान बताता है कि भले ही NDA बढ़त में रहे, लेकिन विपक्ष भी मजबूत स्थिति में रहेगा।

दूसरी एजेंसी – पीपुल्स इनसाइट

पीपुल्स इनसाइट ने अपने सर्वे में NDA को 133 से 148 सीटें, जबकि महागठबंधन को 87 से 102 सीटें मिलने की संभावना जताई है। एजेंसी ने साफ कहा है कि कुछ सीटों पर मुकाबला बेहद करीबी है, और ऐसे में अंतिम परिणाम कई जगहों पर उलटफेर कर सकता है।

तीसरी एजेंसी – चाणक्य

एग्जिट पोल्स की दुनिया में भरोसेमंद मानी जाने वाली चाणक्य एजेंसी ने इस बार NDA को 130 से 138 सीटें, और महागठबंधन को 100 से 108 सीटें मिलने का अनुमान लगाया है। यानी इस एजेंसी के हिसाब से महागठबंधन 100 के आंकड़े को पार करता दिख रहा है।

चौथी एजेंसी – पोलस्ट्रैट

पोलस्ट्रैट ने भी लगभग यही ट्रेंड दिखाया है। इसके एग्जिट पोल के मुताबिक, NDA को 133 से 148 सीटें, और महागठबंधन को 87 से 102 सीटें मिलने का अनुमान है। पोलस्ट्रैट ने भी स्पष्ट कहा है कि महागठबंधन 100 के आसपास या उससे थोड़ा ऊपर पहुंच सकता है।

पांचवीं एजेंसी – जेवीसी पोल्स

जेवीसी पोल्स के सर्वे के अनुसार, NDA को 135 से 150 सीटें और महागठबंधन को 88 से 103 सीटें मिल सकती हैं। इस एजेंसी के आकलन के बाद यह बात और पुख्ता हो जाती है कि विपक्ष को कम आंकना जल्दबाजी होगी।

कुल मिलाकर, इन पांच एजेंसियों का दावा है कि महागठबंधन 100 सीटों के पार जा सकता है, जबकि NDA मामूली अंतर से बढ़त बनाए रख सकता है। पोल ऑफ पोल्स में हालांकि NDA को फिर से सरकार बनाते हुए दिखाया गया है, लेकिन इन एजेंसियों की भविष्यवाणी यह संकेत दे रही है कि मुकाबला इस बार काफी दिलचस्प और कड़ा रहने वाला है।

अब सारी निगाहें 3 दिसंबर पर टिकी हैं, जब असली नतीजे सामने आएंगे और यह साफ हो जाएगा कि जनता ने बिहार की सत्ता की चाबी किसके हाथों में सौंपी है – NDA के या फिर महागठबंधन के।

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Al Falah University News: फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले डॉक्टर निकल...

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Al Falah University News: हरियाणा के फरीदाबाद में हाल ही में 2900 किलोग्राम विस्फोटक मिलने और दिल्ली में लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास हुए धमाके के बाद जांच एजेंसियां अल-फलाह यूनिवर्सिटी पर सख्त नजर रखे हुए हैं। वजह यह है कि इस यूनिवर्सिटी से जुड़े दो डॉक्टरों का नाम आतंकी गतिविधियों में सामने आया है। एक ओर जम्मू-कश्मीर पुलिस ने डॉक्टर मुजम्मिल शकील के कमरे से भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद किया है, तो दूसरी ओर डॉ. उमर नबी मोहम्मद को दिल्ली ब्लास्ट का संदिग्ध माना जा रहा है। इन दोनों का संबंध फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी से है, जिसने अब जांच एजेंसियों के घेरे में जगह बना ली है।

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अल-फलाह यूनिवर्सिटी का बढ़ता साया- Al Falah University News

फरीदाबाद के धौज क्षेत्र में स्थित अल-फलाह यूनिवर्सिटी की शुरुआत 1997 में एक इंजीनियरिंग कॉलेज के रूप में हुई थी। धीरे-धीरे यह संस्थान राज्य के प्रमुख शिक्षण संस्थानों में से एक बन गया। साल 2013 में इसे राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (NAAC) ने ‘A’ ग्रेड प्रदान किया, और एक साल बाद हरियाणा सरकार ने इसे विश्वविद्यालय का दर्जा दे दिया। यूनिवर्सिटी के साथ ही अल-फलाह मेडिकल कॉलेज और अस्पताल भी संचालित होता है, जहां डॉ. मुजम्मिल शकील, डॉ. उमर मोहम्मद और लखनऊ की रहने वाली डॉ. शाहीन शाहिद कार्यरत थे।

जांच एजेंसियों को शक है कि यही मेडिकल कॉलेज और अस्पताल कुछ संदिग्ध गतिविधियों का केंद्र बन सकता है। सूत्रों के मुताबिक, दिल्ली ब्लास्ट के बाद से ही फरीदाबाद और कश्मीर में जांच तेज कर दी गई है और एजेंसियों ने यूनिवर्सिटी के प्रशासन से कई अहम दस्तावेज मांगे हैं।

कश्मीर से लेकर फरीदाबाद तक फैला नेटवर्क?

सूत्रों के अनुसार, मुजम्मिल शकील और उमर मोहम्मद दोनों मूल रूप से जम्मू-कश्मीर के रहने वाले हैं। पुलिस को यह भी आशंका है कि इनका संबंध एक बड़े आतंकी नेटवर्क से है, जो फरीदाबाद और दिल्ली में विस्फोटक सामग्री की सप्लाई में शामिल था। 10 नवंबर को फरीदाबाद से बरामद किए गए 2900 किलोग्राम अमोनियम नाइट्रेट को उसी नेटवर्क से जोड़ा जा रहा है, जिसका सिरा इन डॉक्टरों तक पहुंचता है।

डॉ. मुजम्मिल के कमरे से बरामद विस्फोटक सामग्री और लैपटॉप की फोरेंसिक जांच चल रही है। वहीं, उमर नबी मोहम्मद की भूमिका दिल्ली ब्लास्ट में संदिग्ध बताई जा रही है। एनआईए और दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल दोनों ही मामले की गहराई से जांच कर रही हैं।

यूनिवर्सिटी की पृष्ठभूमि और प्रबंधन

बता दें, अल-फलाह यूनिवर्सिटी का संचालन अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट करता है, जिसकी स्थापना 1995 में हुई थी। ट्रस्ट के अध्यक्ष जवाद अहमद सिद्दीकी हैं, जिन्होंने वंचित तबके को शिक्षा और चिकित्सा सेवा प्रदान करने के उद्देश्य से इस संस्थान की नींव रखी थी। ट्रस्ट के अन्य प्रमुख सदस्य हैं – अध्यक्ष मुफ्ती अब्दुल्ला कासिमी और सचिव मोहम्मद वाजिद।

वर्तमान में यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर डॉ. भूपिंदर कौर आनंद हैं, जबकि रजिस्ट्रार प्रो. (डॉ.) मोहम्मद परवेज हैं। यूनिवर्सिटी का 80 एकड़ में फैला कैंपस दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया से सिर्फ 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। शुरुआत में यह संस्थान अल्पसंख्यक छात्रों के लिए एएमयू और जामिया का विकल्प माना जाता था।

जांच एजेंसियों की नजर

फिलहाल जांच एजेंसियों ने यूनिवर्सिटी के कई स्टाफ सदस्यों और छात्रों से पूछताछ शुरू कर दी है। यह भी जांच की जा रही है कि क्या किसी बाहरी संगठन ने यूनिवर्सिटी परिसर का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों के लिए किया।

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Who Was Li Dan Brahmin: बौद्ध धर्म को चीन तक पहुँचाने वाले भारतीय मूल के महान नेता की...

Who Was Li Dan Brahmin: 2005 में, चीन के शीआन शहर के नानकांग गांव में पुरातत्वविदों द्वारा की गई खुदाई ने एक ऐतिहासिक रहस्य को उजागर किया, जिसने प्राचीन एशिया के सांस्कृतिक इतिहास को नई दिशा दी। यहां एक छठी शताब्दी का संयुक्त मकबरा मिला, जो लगभग 1,441 वर्षों से सीलबंद था। इस कब्र में दफन दंपत्ति के शवों के पास चीनी रूपांकनों के साथ भारतीय और रोमन प्रभाव भी देखे गए, जो सिल्क रोड पर होने वाले सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रतीक थे। इस दंपत्ति में से एक व्यक्ति, ली डैन (505-564 ईस्वी), जिनका नाम आज के समय में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, एक भारतीय ब्राह्मण थे, जिन्होंने बौद्ध धर्म को चीन में फैलाया।

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ली डैन: एक भारतीय ब्राह्मण का चीनी अमीर बनने का सफर

ली डैन का जीवन एक अद्भुत सांस्कृतिक और ऐतिहासिक यात्रा का प्रतीक था। वह न केवल चीन के एक बड़े अभिजात वर्ग से जुड़े हुए थे, बल्कि उनके पूर्वज भारतीय ब्राह्मण थे। उनका मकबरा प्राचीन चीनी राजधानी चांगआन के पास पाया गया, जो आज के शीआन शहर का हिस्सा है। यह कब्र भारतीय और चीनी सांस्कृतिक मिश्रण का जीवंत उदाहरण थी। चीन के भारत में राजदूत शू फेईहॉन्ग ने इस बात का खुलासा किया कि ली डैन के डीएनए विश्लेषण से पता चला कि वह भारतीय मूल के थे और उन्होंने 1,400 साल पहले उत्तरी चीन में बौद्ध धर्म फैलाया था।

इतिहास में ली डैन की भूमिका- Who Was Li Dan Brahmin

ली डैन की कब्र और उनकी जीवन यात्रा के बारे में कई पहलुओं से महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। उनके समाधि-लेख में दो विरोधी कथाएँ थीं। एक ओर, उन्होंने अपने पूर्वजों को “जिबिन” या “तियानझू” के ब्राह्मण बताया, जो कि प्राचीन दक्षिण एशियाई राज्य कश्मीर और इसके आसपास के क्षेत्र से थे। दूसरी ओर, उन्होंने अपने को उत्तरी चीनी मूल का भी बताया और खुद को पिंगजी ली शाखा से जोड़ा, जो हेबेई प्रांत का एक प्रमुख वंश था। यह विरोधाभास उनके जीवन के सांस्कृतिक मिश्रण को दर्शाता है, जो चीनी परंपराओं और विदेशी प्रभावों का अद्भुत संगम था।

डीएनए ने खोला ली डैन का रहस्य

ली डैन के डीएनए विश्लेषण ने उनके भारतीय मूल का खुलासा किया। फुदान विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने उनके दांत और उनकी पत्नी की कनपटी की अस्थि से जीनोम-व्यापी डेटा निकाला। इस शोध ने पुष्टि की कि ली डैन का जीनोम विशेष रूप से उत्तरी दक्षिण एशियाई और उत्तरी चीन से संबंधित था। इससे यह साबित हुआ कि वह भारतीय ब्राह्मणों के वंशज थे, और उनका जीवन, उनके बौद्ध धर्म के प्रचार और उनके सांस्कृतिक प्रभाव को सही तरीके से समझने में मदद मिली।

इस आनुवंशिक विश्लेषण ने एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य को उजागर किया, जो यह था कि ली डैन के जीवन और उनके परिवार की पहचान सीधे तौर पर भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक और वाणिज्यिक आदान-प्रदान को दर्शाती है। यह सिल्क रोड के माध्यम से लोगों के आदान-प्रदान की गहरी साक्षी प्रदान करता है, जिससे यह साबित होता है कि बौद्ध धर्म का प्रचार केवल व्यापार और विचारों के जरिए नहीं, बल्कि लोगों के जरिए भी हुआ था।

सिल्क रोड और बौद्ध धर्म का प्रसार

सिल्क रोड का इतिहास बहुत ही दिलचस्प और महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह प्राचीन चीन और पश्चिमी एशिया के बीच केवल वस्तुओं का ही आदान-प्रदान नहीं करता था, बल्कि यहां से बौद्ध धर्म, दर्शन, विज्ञान, और सांस्कृतिक विचार भी यात्रा करते थे। भारतीय बौद्धों ने इस मार्ग के माध्यम से बौद्ध धर्म को चीन तक पहुँचाया। ली डैन इस इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे। उनके डीएनए विश्लेषण से यह भी साफ हुआ कि वे केवल व्यापार के जरिए चीन नहीं आए थे, बल्कि भारत से विचार और संस्कृति लेकर चीन की उच्चतम स्तर की सामाजिक और सांस्कृतिक धारा में शामिल हो गए थे।

ली डैन की सांस्कृतिक धरोहर

ली डैन का जीवन न केवल भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक संबंधों को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे प्राचीन काल में लोग सीमाओं को पार कर एक दूसरे के समाजों और संस्कृतियों में घुल मिल जाते थे। ली डैन के मकबरे में जो चीनी और भारतीय तत्व मिलते हैं, वह एक ऐतिहासिक प्रमाण हैं कि सिल्क रोड पर केवल वस्तुओं का आदान-प्रदान नहीं हुआ था, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और धार्मिक मेलजोल का भी केंद्र था।

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Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण में दांव पर है सियासी सा...

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Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे और अंतिम चरण में मंगलवार को मतदान हो रहा है। इस दौर में 20 जिलों की 122 सीटों पर 1302 उम्मीदवारों की किस्मत दांव पर है। इन सीटों से बिहार की सत्ता का फैसला होना है और इस बार चुनावी बिसात पर सिर्फ उम्मीदवार ही नहीं, बल्कि बड़े नेताओं की सियासी साख भी दांव पर लगी हुई है। दूसरे चरण में जिन नेताओं की साख दांव पर है, उनमें से कई तो खुद चुनावी मैदान में नहीं हैं, लेकिन उनके लिए यह चुनावी इम्तिहान कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।

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दूसरे चरण की सीटों का महत्व- Bihar Elections 2025

दूसरे चरण में जिन 122 सीटों पर मतदान हो रहा है, उनमें 101 सीटें सामान्य हैं, जबकि 19 अनुसूचित जाति और 2 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। ये सीटें मिथिलांचल, सीमांचल, चंपारण और शाहाबाद-मगध इलाके के महत्वपूर्ण क्षेत्रों से हैं, जिन पर चुनाव हो रहा है। इस चरण के परिणाम केवल उम्मीदवारों की नहीं, बल्कि सत्ता के समीकरण तय करने में भी अहम भूमिका निभाने वाले हैं।

सीमांचल में ओवैसी की सियासी चुनौती

सीमांचल का इलाका इस बार असदुद्दीन ओवैसी के लिए अहम सियासी मैदान बन चुका है। 2020 में ओवैसी की पार्टी AIMIM ने सीमांचल की 5 सीटों पर जीत हासिल कर महागठबंधन के लिए बड़ा झटका दिया था। इन पांच सीटों में से चार ने बाद में AIMIM छोड़कर आरजेडी जॉइन किया, लेकिन इस बार ओवैसी के लिए यह इलाका एक बड़ी परीक्षा साबित हो रहा है। AIMIM ने इस बार बिहार की 25 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें से 17 सीटें दूसरे चरण में दांव पर हैं। इनमें से 15 सीटें सीमांचल की हैं, जिन पर ओवैसी की पार्टी ने पूरी ताकत झोंक दी है।

सीमांचल का मुस्लिम वोट बैंक ओवैसी के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है, लेकिन इस बार कांग्रेस और सपा जैसे दलों ने भी मुस्लिम वोटों पर अपनी सियासी पकड़ बनाने की कोशिश की है। कांग्रेस ने इमरान प्रतापगढ़ी को जबकि सपा ने इकरा हसन को इस इलाके में उतार रखा है। ओवैसी अगर यहां पर अच्छे नतीजे नहीं ला पाते, तो उनकी मुस्लिम सियासत पर सवाल उठ सकते हैं। इसलिए, ओवैसी के लिए इस चरण की चुनावी परीक्षा बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

पप्पू यादव का सियासी इम्तिहान

पूर्णिया लोकसभा सीट से सांसद पप्पू यादव ने भले ही इस बार विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा है, लेकिन उनका सियासी भविष्य इस बार के चुनावी परिणामों पर ही निर्भर करेगा। पप्पू यादव ने कांग्रेस को सीमांचल का चेहरा बना दिया है और चुनावी मैदान में अपने करीबी उम्मीदवार उतारे हैं। अगर पप्पू यादव इस क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते, तो उनका सियासी कद प्रभावित हो सकता है।

2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था, जिसके कारण महागठबंधन सरकार नहीं बना सकी थी। इस बार कांग्रेस के 37 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं और उनका प्रदर्शन पार्टी की सियासी प्रतिष्ठा के लिए बेहद अहम है। पप्पू यादव कांग्रेस के करीबी नेता माने जाते हैं और प्रियंका गांधी से उनके अच्छे रिश्ते हैं। ऐसे में, पप्पू यादव को अपने नेताओं को चुनावी मैदान में जिताना होगा, ताकि वह पार्टी में अपनी सियासी पकड़ को बनाए रख सकें।

कुशवाहा की साख दांव पर

राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLSP) के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा का सियासी इम्तिहान इस बार दूसरे चरण की सीटों पर है। कुशवाहा खुद चुनाव नहीं लड़ रहे, लेकिन उनके लिए सियासी परीक्षा की बात यह है कि उनके कोटे की छह सीटों में से चार सीटें दूसरे चरण में हैं। कुशवाहा के उम्मीदवार सासाराम, दिनारा, मधुबनी और बाजपट्टी से चुनावी मैदान में हैं। इन चार सीटों पर आरजेडी और उनके उम्मीदवारों के बीच कड़ा मुकाबला है।

सासाराम से उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी स्नेहलता चुनावी मैदान में हैं, और यह उनकी सियासी परीक्षा का अहम हिस्सा है। अगर वह और उनके बाकी उम्मीदवार इस चुनाव में अच्छे प्रदर्शन में नाकाम रहते हैं, तो यह कुशवाहा के राजनीतिक कद को झटका दे सकता है। इस लिहाज से उनके लिए यह चुनाव निर्णायक साबित हो सकता है।

मांझी की सियासी अग्निपरीक्षा

एनडीए के सहयोगी और बिहार में मोदी सरकार में मंत्री जीतनराम मांझी की पार्टी HAM के उम्मीदवारों के लिए भी यह चुनावी मुकाबला बेहद अहम है। मांझी के पार्टी के छह उम्मीदवार दूसरे चरण में किस्मत आजमा रहे हैं, जिनमें इमामगंज, सिकंदरा, बाराचट्टी और टिकारी सीटें शामिल हैं। इन सभी सीटों पर मांझी का मुकाबला राजद से है, और यदि वह इन सीटों पर अपनी पकड़ नहीं बना पाते, तो उनकी पार्टी की सियासी प्रतिष्ठा पर बुरा असर पड़ सकता है।

इमामगंज सीट पर मांझी की बहू दीपा मांझी मैदान में हैं, और बाराचट्टी सीट पर उनकी समधन ज्योति देवी चुनाव लड़ रही हैं। कुटुंबा और अतरी में भी कांग्रेस और आरजेडी के उम्मीदवार मैदान में हैं, जहां मांझी को अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को जिताने की चुनौती है।

नतीजा क्या होगा?

बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में जो उम्मीदवार सियासी परीक्षा का सामना कर रहे हैं, उनके लिए यह चुनावी मुकाबला सिर्फ एक चुनावी रणभूमि नहीं, बल्कि उनकी सियासी प्रतिष्ठा की लड़ाई भी है। सीमांचल से लेकर शाहाबाद, चंपारण से लेकर मगध तक, इन क्षेत्रों में चुनावी गहमा-गहमी तेज हो चुकी है। चुनावी नतीजे यह तय करेंगे कि कौन नेता अपनी सियासी धाक जमाता है और कौन चुनावी मैदान से बाहर हो जाता है।

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एग्रेसिव लुक के साथ क्लासिक की वापसी: रॉयल एनफील्ड ने उतारी 650cc सेगमेंट की सबसे दमद...

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Royal Enfield Classic 650: रॉयल एनफील्ड ने अपनी लोकप्रिय मोटरसाइकिल क्लासिक 650 को नए सुनहरे कलर और नए एग्रेसिव लुक में लॉन्च कर दिया है। यह नया रंग उन लोगों को ज़रूर पसंद आएगा जो सिंपल लेकिन अनोखे स्टाइल पसंद करते हैं। खास तौर पर Royal Enfield Classic 650 के 125वें एनिवर्सरी स्पेशल एडिशन के लॉन्च की ओर इशारा करता है, जिसे हाल ही में EICMA 2025 मोटर शो में डिस्प्ले किया गया है। तो च्स्लिये इस लेख में जानते है इस बाइक में किस तरह के features को दिया गया हैं।

Royal Enfield Classic 650

अभी हाल ही में, अगस्त में, रॉयल एनफील्ड हंटर 350 (Royal Enfield hunter 350) बाज़ार में लॉन्च हुई थी, जो एक लोकप्रिय विकल्प थी। एक बार फिर, अपनी 125वीं एनिवर्सरी के उपलक्ष्य में, रॉयल एनफील्ड ने रॉयल एनफील्ड क्लासिक 650 (Royal Enfield Classic 650)  को एक खास सुनहरे रंग में लॉन्च किया है। एनिवर्सरी एडिशन की सबसे ख़ास बात इसका ‘Hypershift’ पेंट स्कीम है, जो लाल और सुनहरे रंगों के शेड्स में बदलता रहता है और इसे एक बेहद अट्रैक्टिव और प्रीमियम ‘रॉयल’ लुक देता है।

स्पेशल एडिशन की खासियतें

  • रेट्रो-मॉर्डन डिज़ाइन – इसमें टीयरड्रॉप फ्यूल टैंक (Teardrop fuel tank) और नसेल-स्टाइल हेडलैम्प (Nacelle-style headlamps) (जो अब LED अपग्रेड के साथ है) जैसे क्लासिक एलिमेंट्स (Classic Elements) बरकरार हैं, लेकिन 650cc इंजन और क्रोम फिनिशिंग इसे एक एग्रेसिव और दमदार अंदाज देते हैं।
  • प्रीमियम टच – इसमें क्रोम फिनिशिंग के साथ पॉलिश डुअल एग्जॉस्ट और रिमूवेबल पिलियन सीट जैसे फीचर्स भी हैं।

 इंजन और परफॉर्मेंस (Standard Classic 650)

स्पेसिफिकेशन विवरण
इंजन 647.95 cc, एयर/ऑयल-कूल्ड, पैरेलल-ट्विन, SOHC
अधिकतम पावर 34.6 kW (46.4 bhp) @ 7250 rpm
अधिकतम टॉर्क 52.3 Nm @ 5650 rpm
गियरबॉक्स 6-स्पीड, स्लिप-एंड-असिस्ट क्लच के साथ
ब्रेकिंग डुअल-चैनल ABS के साथ डिस्क ब्रेक (आगे 320mm, पीछे 300mm)
सस्पेंशन 43mm टेलिस्कोपिक फ्रंट फोर्क, ट्विन रियर शॉक

 Royal Enfield Classic 650 की कीमत

रॉयल एनफील्ड ने Classic 650 को तीन वेरिएंट और चार कलर ऑप्शन में लॉन्च किया है। इस बाइक का बेस वेरिएंट वल्लम रेड कलर में उपलब्ध है, जिसकी कीमत 3.37 लाख रुपये (एक्स-शोरूम) है। इसका बर्निंगहॉर्स ब्लू (Burninghorse Blue) कलर भी इसी कीमत पर खरीदा जा सकता है। इसके बाद क्लासिक वेरिएंट को टील कलर में 3.41 लाख रुपये (एक्स-शोरूम) की कीमत पर खरीदा जा सकता है। इसका टॉप वेरिएंट क्रोम ब्लैक क्रोम कलर ऑप्शन में लॉन्च किया गया है, जिसकी कीमत 3.50 लाख रुपये (एक्स-शोरूम) है।

Delhi Blast: दिल्ली के लाल किले के पास हुआ धमाका! क्या था इसका कारण, और कितने प्रकार ...

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Delhi Blast: दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास सोमवार (10 नवंबर) शाम करीब 6:52 बजे एक जोरदार धमाका हुआ। धमाका ह्यूंडई i20 कार में हुआ, जो लाल किला के गेट नंबर-1 के पास रेड लाइट पर रुकी हुई थी। धमाके की चपेट में आसपास की गाड़ियां भी आ गईं, और कई गाड़ियों के शीशे टूटने के साथ-साथ आग भी लग गई। शुरुआती जांच में यह मामला सीएनजी सिलेंडर का ब्लास्ट बताने की कोशिश की गई, लेकिन फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स ने विस्फोट के ट्रेसेस में अमोनियम नाइट्रेट को जांचने की बात कही है।

यह घटना एक आत्मघाती हमला या बम धमाका हो सकता है, और जांच एजेंसियां बारीकी से इस पर काम कर रही हैं। अब सवाल यह उठता है कि बम धमाके कितने प्रकार के होते हैं, और इनका असर किस तरह से होता है? आईए जानते हैं।

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प्लास्टिक एक्सप्लोजिव (C4, Semtex): Delhi Blast

यह एक प्रकार का सॉफ्ट, गूंथा हुआ बम होता है, जिसे आमतौर पर पेशेवर आतंकी उपयोग करते हैं। C4 और Semtex जैसे प्लास्टिक एक्सप्लोजिव में एक विशेष डेटोनेटर लगाया जाता है, जिससे यह फटता है। यह बम आटे की तरह नर्म और लचीला होता है। इसका इस्तेमाल बड़े हमलों के लिए किया जाता है। यदि लाल किला ब्लास्ट में प्लास्टिक एक्सप्लोजिव का इस्तेमाल हुआ होता, तो इसका कनेक्शन किसी विदेशी हैंडलर से हो सकता था।

RDX: सबसे ताकतवर और खतरनाक

RDX (Research Department Explosive) एक सफेद पाउडर होता है, जिसे दुनिया के सबसे ताकतवर बमों में गिना जाता है। इसका इस्तेमाल बड़े आतंकी हमलों में किया जाता है। RDX का 1 किलो वजन 10 किलो TNT के बराबर धमाका कर सकता है। यह आमतौर पर सेना से चोरी किया जाता है या पाकिस्तान से तस्करी करके लाया जाता है। 1993 के मुंबई बम धमाके, 2008 के दिल्ली सीरियल ब्लास्ट, और 2011 के दिल्ली हाई कोर्ट ब्लास्ट में RDX का ही इस्तेमाल हुआ था। हालांकि, लाल किला ब्लास्ट में अभी तक RDX का कोई ट्रेस नहीं मिला है।

IED (Improvised Explosive Device): सबसे आम और खतरनाक

IED, यानी इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस, एक ऐसा बम है जिसे आतंकी खुद तैयार करते हैं। इसे बनाने में घर के सामान जैसे प्रेशर कुकर, पाइप, बैग या गाड़ी का उपयोग किया जाता है। इसमें आम तौर पर अमोनियम नाइट्रेट, शुगर, और पोटैशियम क्लोरेट जैसी सामग्री का इस्तेमाल होता है। इसे मोबाइल ट्रिगर, टाइमर या रिमोट से ब्लास्ट किया जाता है। लाल किला ब्लास्ट में IED के होने का शक जताया जा रहा है, क्योंकि विस्फोट में कोई पेशेवर हथियार नहीं मिला है। फरीदाबाद में हाल ही में पकड़े गए 2900 किलो अमोनियम नाइट्रेट केमिकल से IED बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

स्टिकी बम

स्टिकी बम एक छोटा बम होता है, जिसे मैग्नेट के जरिए किसी गाड़ी के नीचे चिपका दिया जाता है। इसे रिमोट से ब्लास्ट किया जाता है। यह बम आमतौर पर कश्मीर जैसे इलाकों में इस्तेमाल होते हैं, और लाल किला ब्लास्ट में इसका भी शक जताया जा रहा है। चूंकि धमाका कार के पिछले हिस्से से हुआ, इसलिए यह संभावना जताई जा रही है कि इसमें स्टिकी बम का इस्तेमाल हो सकता है।

कार बम (VBIED)

इसमें पूरी गाड़ी को विस्फोटक से भरा जाता है और कार में 50 से 500 किलो तक विस्फोटक रखा जाता है। लाल किला ब्लास्ट को इसी कैटेगरी में रखा जा सकता है, क्योंकि विस्फोट से पहले कार धीमी गति से रुकी थी और धमाका हुआ था। यह एक सुसाइड अटैक या रिमोट अटैक भी हो सकता है, जिसमें आत्मघाती हमलावर भी हो सकता है।

जिलेटिन स्टिक

जिलेटिन स्टिक माइनिंग में इस्तेमाल होती है और यह काफी छोटी होती है। इनका असर भले ही छोटा होता है, लेकिन यह भीड़-भाड़ वाले इलाके में घातक साबित हो सकता है। 2003 के मुंबई टैक्सी ब्लास्ट में जिलेटिन और अमोनियम नाइट्रेट का मिश्रण इस्तेमाल हुआ था। लेकिन, लाल किला ब्लास्ट में आग ज्यादा फैली और स्प्लिंटर (छर्रे) कम थे, इसलिए जिलेटिन के इस्तेमाल की संभावना कम बताई जा रही है।

अन्य बम: सुसाइड बम, लेटर बम और पाइप बम

सुसाइड बम में हमलावर खुद को बम के साथ ब्लास्ट कर देता है। लेकिन, लाल किला ब्लास्ट में ऐसी कोई संभावना नहीं दिख रही है। इसी तरह, लेटर बम और पाइप बम जैसे छोटे बम भी होते हैं, जिनका इस्तेमाल आतंकवादी अपनी योजना के तहत करते हैं।

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