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Bengaluru Jail Viral Video: बेंगलुरु जेल या वीआईपी होटल? कुख्यात कैदी मोबाइल और टीवी ...

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Bengaluru Jail Viral Video: परप्पाना अग्रहारा सेंट्रल जेल से हाल ही में एक वीडियो सामने आया है, जिसने लोगों को हैरान कर दिया। सोशल मीडिया पर वायरल हुए इस वीडियो में देखा गया कि कुछ कैदी मोबाइल फोन इस्तेमाल कर रहे हैं और अपने बैरक में टीवी देख रहे हैं। इस मामले ने जेल की सुरक्षा व्यवस्था और कैदियों को मिलने वाले कथित विशेषाधिकारों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

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वीआईपी कैदी उमेश रेड्डी की हरकतें– Bengaluru Jail Viral Video

वीडियो में सबसे ज्यादा चर्चा कुख्यात सीरियल रेपिस्ट और हत्यारा उमेश रेड्डी की गतिविधियों को लेकर है। रेड्डी को 1996 से 2002 के बीच 20 महिलाओं से रेप और 18 हत्याओं के मामले में दोषी ठहराया गया था। पहले उसे मौत की सजा सुनाई गई थी, लेकिन 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे 30 साल की सजा में बदल दिया।

वीडियो में उमेश रेड्डी को दो एंड्रॉयड और एक कीपैड मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते देखा गया। इसके अलावा, उसके बैरक में टीवी भी मौजूद था। यह सामने आया है कि जेल स्टाफ को इसकी जानकारी थी, लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की। रेड्डी ने पहले मानसिक बीमारी का दावा किया था, लेकिन मेडिकल रिपोर्ट में वह मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ पाया गया।

अन्य कैदी की विशेष सुविधाएं

वीडियो में एक और कैदी तरुण राजू भी नजर आया। वह रान्या गोल्ड स्मगलिंग केस में गिरफ्तार था और दुबई से सोने की तस्करी का नेटवर्क चलाने का आरोप है। वीडियो में देखा गया कि तरुण अपने बैरक में मोबाइल फोन इस्तेमाल कर रहा था और खाना भी बना रहा था। सूत्रों के अनुसार, वह पहले जिनेवा भागने की कोशिश में पकड़ा गया था।

कर्नाटक सरकार ने की कार्रवाई का ऐलान

इस वीडियो के सामने आने के बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने कहा कि सरकार इस पूरे मामले की जांच करवाएगी। उन्होंने जेल अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई का आश्वासन भी दिया। उनके अनुसार, राज्य की जेलों में सुरक्षा मानकों और नियमों का उल्लंघन नहीं होने दिया जाएगा।

जेल में सुरक्षा और विशेषाधिकार पर सवाल

परप्पाना अग्रहारा सेंट्रल जेल में उच्च सुरक्षा का दावा किया जाता है, लेकिन इस घटना ने इसके विपरीत सबूत पेश किए हैं। मोबाइल फोन, टीवी और अन्य विशेष सुविधाओं का कथित दुरुपयोग जेल प्रशासन की सुस्ती को उजागर करता है।

बेंगलुरु की इस जेल में सामने आए वीडियो ने न केवल जनता को हैरान किया है, बल्कि जेल प्रबंधन की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

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Jaipur News: कभी ढाबे पर वेटर थे, आज बेटे की कार के लिए 31 लाख में खरीदा देश का सबसे ...

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Jaipur News: जयपुर में हाल ही में हुए आरटीओ के ई-ऑक्शन में एक कार नंबर ने सबका ध्यान खींच लिया। नंबर था “RJ60 CM 0001”  और जब इसकी बोली 31 लाख रुपये पर जाकर रुकी, तो पूरे हॉल में सन्नाटा छा गया। यह अब तक का देश का सबसे महंगा वीआईपी नंबर बन गया है। लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह थी कि इस नंबर को किसी अरबपति या रियल एस्टेट टाइकून ने नहीं, बल्कि एक ऐसे शख्स ने खरीदा, जिसकी शुरुआत एक सड़क किनारे ढाबे से हुई थी।

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यह कहानी है जयपुर के जाने-माने बिज़नेसमैन और लग्ज़री वेडिंग प्लानर राहुल तनेजा की। उन्होंने यह खास नंबर अपने बेटे रेहान के 18वें जन्मदिन पर गिफ्ट की गई तीन करोड़ की ऑडी RS Q8 के लिए खरीदा। राहुल का सफर प्रेरणादायक है — कभी अखबार बांटने वाला लड़का, आज करोड़ों की कार और देश का सबसे महंगा नंबर खरीदने वाला सफल उद्यमी।

ढाबे से शुरू हुआ सफर- Jaipur News

मध्य प्रदेश के मंडला ज़िले के पास स्थित छोटे से गांव कटरा में राहुल का जन्म हुआ। उनके पिता साइकिल की पंचर की दुकान चलाते थे और मां खेतों में काम करती थीं। घर की हालत बेहद कमजोर थी। परिवार की जरूरतें पूरी करने के लिए राहुल को बचपन से ही काम करना पड़ा।

सिर्फ 11 साल की उम्र में वे जयपुर आ गए और आदर्श नगर के पास एक ढाबे में वेटर की नौकरी करने लगे।

18 साल की उम्र तक उन्होंने तरह-तरह के छोटे काम किए त्योहारों पर पटाखे और रंग बेचे, राखियां बेचीं, कभी कूरियर डिलीवरी की, तो कभी किराये के मकानों के लिए दलाली की। यहां तक कि राजस्थान पत्रिका के अखबार भी बांटे। उस दौर में राहुल की जिंदगी सुबह सूरज उगने से पहले शुरू होती थी और देर रात तक चलती थी।

पहली बिज़नेस कोशिश और फैशन की दुनिया में कदम

16 से 18 की उम्र के बीच राहुल ने दुर्गापुरा रेलवे स्टेशन पर ऑटो रिक्शा भी चलाया। लेकिन वह जानते थे कि उनका सपना इससे बड़ा है।
19 साल की उम्र में उन्होंने जयपुर के सिंधी कॉलोनी में “कार पैलेस” नाम से अपना पहला कारोबार शुरू किया। यही से उनका कारों के प्रति लगाव और जुनून शुरू हुआ।

इसके बाद उन्होंने फैशन की दुनिया में भी कदम रखा और 1999 में मिस्टर जयपुर, मिस्टर राजस्थान और मेल ऑफ द ईयर जैसे टाइटल अपने नाम किए। यह उनके आत्मविश्वास और सफलता की शुरुआत थी।

वेडिंग इंडस्ट्री में बड़ा नाम बने राहुल

साल 2000 में राहुल ने अपनी इवेंट कंपनी “लाइव क्रिएशंस” की नींव रखी। 2005 में उन्होंने मुंबई में Indian Artist.com शुरू किया और 2010 में “राहुल तनेजा प्रीमियम वेडिंग्स” की शुरुआत की।
आज वे देश के उन चुनिंदा लोगों में हैं जिन्होंने भारतीय शादियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। राजस्थान से लेकर दुबई, थाईलैंड और यूरोप तक राहुल के वेडिंग इवेंट्स “बिग फैट इंडियन वेडिंग्स” के लिए मशहूर हैं।

वीआईपी नंबरों का जुनून

राहुल और उनके बेटे रेहान को वीआईपी नंबरों का खास शौक है। राहुल कहते हैं, “शौक की कोई कीमत नहीं होती। मैं आज में जीता हूं, कल क्या होगा कौन जानता है।”
उनका यह जुनून नया नहीं है —

  • 2011: BMW 7 Series के लिए RJ14 CP 0001 नंबर 10 लाख में लिया।
  • 2018: Jaguar XJL के लिए RJ45 CG 0001 नंबर 16 लाख में खरीदा।
  • 2025: Audi RS Q8 के लिए RJ60 CM 0001 नंबर 31 लाख में हासिल किया।

राहुल बताते हैं कि उन्होंने यह नंबर अपने बेटे से किए गए सात साल पुराने वादे को पूरा करने के लिए खरीदा कि जब वह 18 साल का होगा, उसे उसकी मनपसंद कार गिफ्ट करेंगे।

संघर्ष से सफलता तक

राहुल तनेजा की कहानी किसी बॉलीवुड फिल्म से कम नहीं लगती। एक छोटे गांव के लड़के ने अपनी मेहनत, संघर्ष और आत्मविश्वास के दम पर सफलता की ऊंचाइयां छुईं। आज वह न सिर्फ अपने परिवार का गर्व हैं बल्कि उन युवाओं के लिए प्रेरणा भी हैं जो छोटे शहरों से बड़े सपने लेकर निकलते हैं।

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Super 30 Anand Kumar: जब स्टूडेंट बोला — ‘सर, मैं अब अमेरिका में साइंटिस्ट हूँ’…  सुप...

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Super 30 Anand Kumar: पटना की तंग गलियों से निकलकर दुनिया के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों और छात्रों तक मार्गदर्शन देने वाले आनंद कुमार की कहानी किसी प्रेरक फिल्म से कम नहीं। एक ऐसा इंसान जिसने अपने संघर्ष और मेहनत से साबित कर दिया कि परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, सपनों को सच किया जा सकता है। हाल ही में फ्लाइट में हुई एक छोटी-सी मुलाकात ने फिर से दिखा दिया कि सुपर 30 के बच्चों की सफलता ही आनंद कुमार की असली विरासत है।

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छात्र राम कुमार की कहानी- Super 30 Anand Kumar

हाल ही में आनंद कुमार ने ट्विटर पर साझा किया कि फ्लाइट में एक छात्र उनके पास आया और चरण स्पर्श करते हुए मुस्कुराया। छात्र ने खुद को राम कुमार, 2007 बैच का स्टूडेंट बताया। उसने आनंद को बताया कि उसके पिता सिपाही थे, लेकिन आज वह Idaho National Laboratory, USA में साइंटिस्ट हैं।

राम कुमार ने कहा, “सर, यह सब आपकी वजह से संभव हुआ।” आनंद कुमार ने मुस्कुराते हुए कहा, “मुझे तुम पर गर्व है।” राम ने जवाब दिया, “सर, अभी वह समय नहीं आया है… मैं लगातार रिसर्च कर रहा हूँ। एक दिन कुछ बड़ी उपलब्धि जरूर हासिल करूंगा — तब आपको सच में गर्व होगा।”

ऐसी मुलाकातें आनंद के लिए सिर्फ गर्व का मौका नहीं, बल्कि उनके काम की असली “कमाई” का एहसास भी हैं।

पटना से शुरू हुआ सफर

1 जनवरी 1973 को पटना के एक आम परिवार में जन्मे आनंद कुमार का जीवन किसी फिल्म की कहानी से कम नहीं। उनके पिता डाक विभाग में क्लर्क थे, लेकिन उनके अचानक निधन के बाद परिवार पर आर्थिक संकट आ गया।
आनंद को बचपन से ही गणित से खास लगाव था। उन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़ाई का मौका भी हासिल किया, लेकिन घर की स्थिति ऐसी थी कि वे फीस और यात्रा का खर्च नहीं उठा पाए। नतीजा यह हुआ कि उनका सपना अधूरा रह गया।

गणित से बनी पहचान

1992 में आनंद ने पढ़ाई के साथ-साथ छोटे बच्चों को पढ़ाना शुरू किया ताकि घर चल सके। धीरे-धीरे उन्होंने “रामानुजन स्कूल ऑफ़ मैथमैटिक्स” खोला और गरीब लेकिन प्रतिभाशाली बच्चों के लिए कुछ करने का सपना देखा। 2002 में उनका यह सपना सुपर 30 के रूप में सामने आया। इसका मकसद था, गरीब बच्चों को IIT-JEE की तैयारी मुफ्त में कराना और उन्हें बड़े सपनों के करीब ले जाना।

सुपर 30 की असली सफलता

सुपर 30 की पहल अब तक सैकड़ों छात्रों की जिंदगी बदल चुकी है। कई बार 30 में से सभी 30 छात्र IIT में पास हुए और इसने देश-विदेश में लोगों का ध्यान खींचा। आनंद कुमार की मेहनत और लगन ने साबित कर दिया कि सही मार्गदर्शन और समर्पण से असंभव भी संभव हो सकता है।

सम्मान और पहचान

आनंद कुमार को कई पुरस्कार मिल चुके हैं। 2010 में बिहार सरकार ने उन्हें मौलाना अबुल कलाम आज़ाद शिक्षा पुरस्कार दिया। TIME और Newsweek जैसी अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं ने भी उनकी पहल की तारीफ की। 2023 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया।

निजी जीवन और चुनौतियाँ

आनंद कुमार की पत्नी का नाम ऋतु रश्मि है। उनके दो बच्चे हैं बेटा जगत कुमार और बेटी सुहानी रश्मि। जीवन में सफलता मिलने के बाद भी संघर्ष खत्म नहीं हुआ। कुछ साल पहले उन्हें Acoustic Neuroma नामक एक दुर्लभ बीमारी का पता चला, जिससे उनकी सुनने की क्षमता काफी प्रभावित हुई। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आज भी बच्चों को पढ़ाने में पूरी लगन से जुटे हैं।

नेट वर्थ और असली मूल्य

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आनंद कुमार की अनुमानित संपत्ति 80 से 100 करोड़ रुपये के बीच मानी जाती है, जबकि कुछ रिपोर्ट्स में इसे 300 करोड़ तक बताया गया है। लेकिन उनके लिए असली खजाना उनके छात्र और उनके बदले हुए जीवन हैं।

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Bihar Election 2025: खेसारी पर भड़के मनोज तिवारी और निरहुआ, बोले – ‘भगवान के खिलाफ रा...

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Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे भोजपुरी कलाकारों के बीच सियासी बयानबाजी भी तेज होती जा रही है। भाजपा नेता और भोजपुरी सुपरस्टार मनोज तिवारी और दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ ने एक इंटरव्यू में एनडीए की जीत को लेकर पूरा भरोसा जताया है। वहीं, उन्होंने आरजेडी उम्मीदवार और भोजपुरी स्टार खेसारी लाल यादव पर जमकर निशाना साधा।

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एनडीए को बढ़त मिलने का दावा- Bihar Election 2025

मनोज तिवारी और निरहुआ का कहना है कि पहले चरण के मतदान के बाद जनता ने साफ संकेत दे दिया है कि वह नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के विकास मॉडल पर भरोसा करती है।
मनोज तिवारी ने कहा, “पहले चरण के बाद हमारी स्थिति बेहद मजबूत है। महिलाएं खुलकर एनडीए को आशीर्वाद दे रही हैं। बिहार अब अपराध और जंगलराज से बाहर निकल चुका है और विकास के रास्ते पर तेजी से बढ़ रहा है।”

निरहुआ ने भी इसी बात को दोहराते हुए कहा कि एनडीए का लक्ष्य किसी एक उम्मीदवार को हराना नहीं, बल्कि पूरे महागठबंधन को मात देना है। उनके मुताबिक, “लोग अब जाति और नफरत की राजनीति नहीं, बल्कि काम और विकास की राजनीति चाहते हैं।”

खेसारी पर बोले – भगवान राम पर टिप्पणी गलत

दोनों नेताओं ने आरजेडी उम्मीदवार खेसारी लाल यादव पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। निरहुआ ने कहा, “मेरी उनसे कोई व्यक्तिगत या जातिगत लड़ाई नहीं है, लेकिन भगवान राम पर बयान देना बेहद गलत है। वो सनातन परंपरा का अपमान कर रहे हैं। राजनीति हमसे करें, लेकिन भगवान के खिलाफ नहीं।”

निरहुआ ने आगे कहा कि खेसारी खुद कई बार कह चुके हैं कि वे गरीब परिवार से हैं और ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं। “अब जब उनके पास सबकुछ है, तो बोलने से पहले थोड़ा सोच लेना चाहिए। शोहरत के साथ जिम्मेदारी भी आती है,” निरहुआ ने तंज कसते हुए कहा। उन्होंने पुराने दौर को याद करते हुए बताया कि “जंगलराज” के समय बिहार में ऐसा माहौल था कि “हम जब शो करने आते थे, तो कहा जाता था कि शाम छह बजे के बाद बाहर निकलना मना है।”

“खेसारी छोटा भाई है, थोड़ा भटक गया है” – मनोज तिवारी

मनोज तिवारी ने भी खेसारी के हालिया बयानों पर नाराजगी जताई, लेकिन साथ ही उन्हें सलाह भी दी। उन्होंने कहा, “अब बिहार बदल चुका है। आज महिलाएं सुरक्षित हैं, विकास हर गली तक पहुंच चुका है। जिनके शासन में अपराध चरम पर था, वही आज सवाल उठा रहे हैं।”

उन्होंने एक दिलचस्प वाकया भी बताया, “मैं कल एयरपोर्ट पर खेसारी से मिला। उसने मेरे पैर छुए, मैंने उसे गले लगाया। वो मेरा छोटा भाई है, लेकिन थोड़ा भटक गया है।” तिवारी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि खेसारी जल्द अपनी गलती समझेंगे।

आस्था से जुड़ा मामला, राजनीति से नहीं

इंटरव्यू के आखिर में मनोज तिवारी और निरहुआ ने कहा कि खेसारी लाल यादव को भगवान राम पर दिए अपने बयान पर पुनर्विचार करना चाहिए, क्योंकि यह सिर्फ राजनीतिक नहीं बल्कि आस्था से जुड़ा मामला है। उन्होंने कहा कि बिहार की जनता अपने धर्म और परंपरा के प्रति गहराई से जुड़ी है, और ऐसे बयान लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं।

बातचीत के दौरान माहौल को हल्का करने के लिए दोनों नेताओं ने कुछ भोजपुरी गाने भी गाए और जनता से एनडीए के समर्थन में वोट देने की अपील की।

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Kj Singh murder case: जिस पर थी सोसाइटी की सुरक्षा की जिम्मेदारी, वही निकला कातिल, 7 ...

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Kj Singh murder case: पंजाब पुलिस ने 7 साल पुराने एक सनसनीखेज डबल मर्डर केस का पर्दाफाश कर दिया है। मोहाली के वरिष्ठ पत्रकार केजे सिंह और उनकी मां गुरचरण कौर की हत्या के आरोपी को आखिरकार नोएडा से गिरफ्तार कर लिया गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि यह आरोपी पिछले कई सालों से एक हाउसिंग सोसाइटी में सिक्योरिटी हेड के पद पर काम कर रहा था और पूरी सोसाइटी की सुरक्षा की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी।

गिरफ्तार आरोपी की पहचान गौरव कुमार (निवासी- बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश) के रूप में हुई है। पुलिस के मुताबिक, गौरव 2017 में इस डबल मर्डर के बाद से फरार चल रहा था। इतने लंबे समय तक फरारी के दौरान उसने अपनी पहचान छिपाई और सुरक्षा कर्मचारी के रूप में अलग-अलग जगहों पर काम किया।

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ढाई महीने की प्लानिंग, दो महीने की निगरानी- Kj Singh murder case

डीएसपी नवीनपाल सिंह लिहाल और उनकी टीम जिसमें स्पेशल क्राइम सेल और पीओ विंग शामिल थे ने इस गिरफ्तारी को अंजाम दिया। लिहाल ने बताया कि आरोपी को पकड़ने के लिए पुलिस ने ढाई महीने से अधिक की प्लानिंग की थी। इस दौरान तकनीक और पुराने नेटवर्क दोनों का इस्तेमाल किया गया।
करीब दो महीने की लगातार निगरानी के बाद यह पता चला कि गौरव नोएडा की एक प्रतिष्ठित सोसाइटी में सिक्योरिटी हेड के तौर पर काम कर रहा है। जैसे ही पुष्टि हुई, पुलिस ने एक गुप्त ऑपरेशन चलाकर उसे गिरफ्तार कर लिया।

हत्यारे के भरोसे थी पूरी सोसाइटी की सुरक्षा

पुलिस के मुताबिक, गौरव ने शुरुआत में एक सिक्योरिटी गार्ड के तौर पर नौकरी शुरू की थी। कुछ समय बाद उसकी चालाकी और व्यवहार के कारण उसे सिक्योरिटी हेड बना दिया गया और फिर सोसाइटी के रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (RWA) का मैनेजर तक नियुक्त कर दिया गया।
हैरानी की बात यह है कि इतने महत्वपूर्ण पद पर होने के बावजूद सोसाइटी ने उसका बैकग्राउंड वेरिफिकेशन तक नहीं कराया।
जिस सोसाइटी में वह काम कर रहा था, वहां अधिकतर बुजुर्ग लोग रहते हैं। जब उन्हें यह पता चला कि उनका सिक्योरिटी हेड दरअसल दो हत्याओं का आरोपी है, तो पूरा परिसर स्तब्ध रह गया।

2017 में हुई थी दोहरी हत्या

बता दें, यह मामला 23 सितंबर 2017 का है, जब मोहाली में वरिष्ठ पत्रकार केजे सिंह और उनकी 92 वर्षीय मां गुरचरण कौर की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। उनके घर से कुछ कीमती सामान और उनकी कार चोरी हुई थी। जांच में सामने आया कि हत्यारा गौरव कुमार ही था, जिसने थप्पड़ की वजह से दोनों की जान ले ली थी।

जांचकर्ताओं के मुताबिक, गौरव पर आरोप है कि उसने 23 सितंबर 2017 को एक विवाद के बाद 64 वर्षीय पत्रकार केजे सिंह और उनकी 92 वर्षीय मां की बेरहमी से हत्या की थी। बताया जाता है कि मोहाली के फेज़ 3बी2 इलाके में रहने वाले पत्रकार ने गौरव को किसी बात पर थप्पड़ मारा था। गौरव बेरोजगार था और अक्सर मोहल्ले में घूमता रहता था। इस घटना के बाद गुस्से में भरे गौरव ने रात में सिंह के घर में घुसकर पहले पत्रकार की चाकू से हत्या की, फिर उनकी बुजुर्ग मां का गला दबाकर जान ले ली। वारदात के बाद वह केजे सिंह की हरी रंग की फोर्ड आइकॉन कार लेकर फरार हो गया। इस सनसनीखेज दोहरे हत्याकांड के बाद पुलिस ने मटौर थाने में भारतीय दंड संहिता की धाराओं 302, 411, 449, 465, 468, 471 और 201 के तहत मामला दर्ज किया था। तब से वह लगातार फरार था और उसका कोई सुराग नहीं लग पाया था।

डीएसपी का बयान: “कानून के शिकंजे से कोई नहीं बचेगा”

डीएसपी नवीनपाल लिहाल ने बताया कि पिछले चार महीनों में उनकी टीम ने 120 से ज्यादा फरार अपराधियों और हत्यारोपियों को गिरफ्तार किया है। फिलहाल उसे ट्रांजिट रिमांड पर पंजाब लाया जा रहा है, जहां आगे की पूछताछ होगी।

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Sanchi Stupa: सांची स्तूप का रहस्य, यहां सुरक्षित है भगवान बुद्ध के प्रिय शिष्य का अस...

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Sanchi Stupa: मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में स्थित विश्वप्रसिद्ध सांची स्तूप न सिर्फ अपनी स्थापत्य कला के लिए जाना जाता है, बल्कि यह बौद्ध धर्म की गहरी आध्यात्मिक विरासत का भी प्रतीक है। बहुत कम लोग जानते हैं कि इसी पवित्र स्थल में भगवान बुद्ध के दो प्रिय शिष्य सारिपुत्र और महामोदग्लायन की अस्थियां सुरक्षित रखी गई हैं। इन पवित्र अस्थियों को देखने का सौभाग्य श्रद्धालुओं को साल में सिर्फ एक बार, नवंबर के आखिरी शनिवार और रविवार को ही मिलता है।

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पवित्र अस्थियों के दर्शन का वार्षिक अवसर- Sanchi Stupa

हर साल नवंबर के अंतिम सप्ताह में सांची में एक विशेष आयोजन होता है, जब स्तूप परिसर के मंदिर के तलघर में रखे इन अस्थि कलशों को बाहर निकाला जाता है। इस दौरान सांची में आस्था और श्रद्धा का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। थाईलैंड, श्रीलंका, भूटान, वियतनाम, मलेशिया और जापान जैसे देशों से हजारों बौद्ध अनुयायी यहां पहुंचते हैं।

नेहरू ने रखी थी मेले की नींव

खबरों की मानें तो, सांची में इन अस्थियों को 1952 में पहली बार स्थापित किया गया था, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वयं यहां पहुंचे थे। उन्होंने उस समय इस आयोजन की नींव रखी और एक दिवसीय मेले की शुरुआत की थी। बाद में वर्ष 2010 में मध्यप्रदेश सरकार ने इसे तीन दिवसीय उत्सव का रूप दिया। हालांकि, पिछले चार वर्षों से यह आयोजन दो दिनों तक सीमित कर दिया गया है।

अस्थियों की रोमांचक यात्रा

इन पवित्र अवशेषों की यात्रा भी इतिहास से भरी है। बुद्ध के प्रिय शिष्यों सारिपुत्र और महामोदग्लायन की अस्थियां सांची के स्तूप संख्या तीन से वर्ष 1851 में ब्रिटिश पुरातत्वविद अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा खुदाई के दौरान प्राप्त हुई थीं। बाद में इन्हें ब्रिटेन के अल्बर्ट म्यूजियम, लंदन में भेज दिया गया था।
वर्ष 1947 में महाबोधि सोसायटी के प्रयासों से ये अस्थियां वापस लाई गईं और 14 मार्च 1947 को इन्हें श्रीलंका भेजा गया। वहां से 12 जनवरी 1949 को यह पुनः भारत लौटीं और बोधगया में रखी गईं। अंततः इन्हें सांची लाकर स्थापित किया गया जहां आज भी ये बौद्ध आस्था की सबसे पवित्र निशानी मानी जाती हैं।

जयश्री महाबोधि विहार की स्थापना

सांची में इन अवशेषों को सम्मानपूर्वक रखने के लिए जयश्री महाबोधि विहार का निर्माण 1 फरवरी 2007 को किया गया था। उस समय तिब्बत के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने पारंपरिक रीति से इन अस्थियों को यहां विराजित किया था। तब से हर साल 1 से 3 फरवरी के बीच यहां भव्य वार्षिकोत्सव मनाया जाता है।
तीन दिनों तक श्रद्धालु भगवान बुद्ध और उनके दोनों शिष्यों के दर्शन करते हैं। अंतिम दिन अस्थि कलश के साथ एक विशाल झांकी निकाली जाती है, जिसमें विदेशी बौद्ध मठों के भिक्षु, स्थानीय श्रद्धालु और स्कूली बच्चे शामिल होते हैं।

सांची बौद्ध स्तूप का ऐतिहासिक गौरव

आपको जानकर हैरानी होगी कि सांची का बौद्ध स्तूप तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया था, बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण प्रतीक है। यह स्तूप एक अर्धगोलाकार गुंबद के रूप में स्थित है और इसके आसपास के क्षेत्र में बुद्ध के जीवन से जुड़े कई महत्वपूर्ण दृश्य और कलाकृतियाँ उकेरी गई हैं। विशेष रूप से, इस स्तूप के चारों ओर जो सुंदर तोरण द्वार स्थित हैं, वे न केवल वास्तुकला के दृष्टिकोण से बेहद आकर्षक हैं, बल्कि इनमें बुद्ध के जीवन के महत्वपूर्ण घटनाओं को कलात्मक तरीके से दर्शाया गया है।

यह तोरण द्वार बुद्ध के जीवन के विभिन्न पहलुओं को, जैसे ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण, को प्रतीकात्मक रूप से चित्रित करते हैं। खास बात यह है कि इस समय बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण प्रचलन में नहीं था, इसलिए इन प्रतीकों के माध्यम से उनकी उपस्थिति को दर्शाया गया। उदाहरण के लिए, अशोक चक्र, हाथी, घोड़ा और वट वृक्ष के चित्र बुद्ध- के जीवन के महत्वपूर्ण संकेतों के रूप में उकेरे गए हैं।

यूनेस्को की विश्व धरोहर में सांची का स्थान

आपको बता दें, सांची को 1989 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया गया था, जो इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को साबित करता है। यह स्थल न केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक धार्मिक स्थान है, बल्कि यह इतिहासकारों और कला प्रेमियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन चुका है। सांची के स्तूप परिसर में स्थित संग्रहालय में प्राचीन बौद्ध मूर्तियाँ, मुद्राएं, अभिलेख और अन्य ऐतिहासिक अवशेष संरक्षित हैं, जो भारतीय इतिहास और संस्कृति का गहरा प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।

सांची की वास्तुकला और इस स्थल का ऐतिहासिक महत्व बेमिसाल है। हजारों साल बाद भी, सांची का स्तूप अपनी भव्यता और स्थिरता के साथ खड़ा है, जो इसके निर्माणकला और स्थापत्य की अद्वितीयता को दर्शाता है। यही कारण है कि यहां आने वाले पर्यटक और इतिहास प्रेमी इसे किसी खजाने से कम नहीं मानते।

वैश्विक श्रद्धालुओं का सांची में आना

बुद्ध पूर्णिमा के दिन सांची बौद्ध स्तूप पर केवल भारतीय श्रद्धालु ही नहीं, बल्कि श्रीलंका, म्यांमार, जापान और भूटान जैसे देशों से भी बौद्ध भिक्षु और श्रद्धालु पहुंचे थे। ये श्रद्धालु न केवल धार्मिक पूजा-अर्चना में भाग लेते हैं, बल्कि यहां आकर अपने धार्मिक संवाद को भी साझा करते हैं। यह अंतर्राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक विविधता का एक बेहतरीन उदाहरण है, जो इस पवित्र स्थल की वैश्विक महत्वपूर्णता को दर्शाता है।

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Sikhism in Paris: पेरिस में सिखों की दुनिया, जहां पहचान की जंग के बीच भी ‘चढ़दी कला’ ...

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Sikhism in Paris: अगर आप कभी पेरिस के चमचमाते केंद्र से मेट्रो पकड़कर बाहर की ओर जाएं, तो एक अलग ही दुनिया आपका इंतज़ार करती है। जैसे ही नंबर 5 मेट्रो की लाइन पर “Bobigny Pablo Picasso” स्टेशन के पास पहुंचते हैं, तो धीरे-धीरे 19वीं सदी की खूबसूरत इमारतें, बालकनी पर रखे छोटे पौधे और शानदार कैफे पीछे छूट जाते हैं। उनके बदले दिखने लगते हैं ऊँचे, ग्रे रंग के अपार्टमेंट — जिनके बीच एक अलग-सी ज़िंदगी बहती है। यही हैं पेरिस की बानलियूज़ — फ्रेंच में मतलब “उपनगर”, लेकिन असल में यह शब्द सामाजिक हाशिए पर बसे इलाकों के लिए प्रयोग होता है — जहां कम आय, कम अवसर और बहुत संघर्ष है।

इन्हीं इलाकों में पेरिस का सिख समुदाय बसता है — छोटा जरूर है, पर दिलों में गहरी रौशनी लिए हुए। अनुमान है कि पूरे फ्रांस में करीब 30,000 सिख रहते हैं, जिनमें से ज़्यादातर पेरिस और उसके आसपास बसे हैं।

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पेरिस में करीब 5,000 सिख – पहचान के साथ संघर्षरत समुदाय (Sikhism in Paris)

पेरिस में आज करीब 5,000 सिख रहते हैं। पूरा फ्रांस मिलाकर यह संख्या लगभग 30,000 तक पहुंचती है। इनमें ज़्यादातर पंजाब और हरियाणा से आए प्रवासी मजदूर, छोटे कारोबारी या टैक्सी ड्राइवर हैं। कुछ परिवार तो कई दशक पहले ही यहां बस गए थे। लेकिन आज भी उन्हें अपनी पहचान बनाए रखने में संघर्ष करना पड़ता है।

सिखों की पहचान और चुनौतियां

फ्रांस का कानून “सेक्युलरिज्म” (Laïcité) बहुत सख्ती से लागू करता है मतलब, कोई भी व्यक्ति पब्लिक स्कूल या सरकारी नौकरी में अपने धार्मिक प्रतीक जैसे पगड़ी, क्रॉस या हिजाब नहीं पहन सकता।
यह कानून उस दौर की प्रतिक्रिया है जब चर्च और राजसत्ता के रिश्तों ने फ्रेंच समाज पर भारी असर डाला था। अब यह समाज धर्म को निजी मामला मानता है और सार्वजनिक जीवन में उसकी झलक नहीं चाहता।

पर इसका असर सिखों पर गहरा हुआ। कई सिख बच्चों को स्कूलों में पगड़ी पहनने की इजाज़त नहीं दी गई, और सरकारी नौकरियों में भी धार्मिक प्रतीकों पर रोक लगी। इससे समुदाय के लोग “मुख्यधारा” से खुद को अलग-थलग महसूस करते हैं।

2001 के 9/11 हमलों के बाद स्थिति और पेचीदा हो गई। पगड़ी और दाढ़ी देखकर कई बार सिखों को गलतफहमी में मुसलमान समझ लिया जाता है और उन्हें सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है। लेकिन इसके बावजूद, सिख समुदाय ने कभी अपने मूल मूल्यों मेहनत, सेवा और आत्म-सम्मान को नहीं छोड़ा।

जसप्रीत सिंह जैसे सिखों की कहानी

ऐसे ही एक व्यक्ति हैं जसप्रीत सिंह, जो पेरिस से करीब 70 किलोमीटर दूर मेलून नाम के छोटे से शहर में रहते हैं। वे बताते हैं, “यहां ज़िंदगी आसान नहीं है। पगड़ी पहनना, कीर्तन करना या बच्चों को पंजाबी सिखाना — हर चीज़ संघर्ष है। लेकिन हम हार मानने वालों में से नहीं हैं।”

जसप्रीत जैसे कई सिख परिवारों ने पेरिस की बानलियूज़ में छोटी-छोटी दुकानों, ट्रांसपोर्ट बिज़नेस या सुरक्षा सेवाओं में काम करके अपनी जगह बनाई है। रविवार को गुरुद्वारे में लंगर चलता है, और फ्रांस, श्रीलंका, भूटान, वियतनाम जैसे देशों के बौद्ध और सिख अनुयायी वहां आते हैं।

वहीं, गुरुद्वारे में बच्चों की मौजूदगी नई उम्मीद जगाती है। 8 साल का सुखदीप सिंह तीन भाषाएं बोलता है  फ्रेंच, पंजाबी और हिंदी और गर्व से बताता है कि वह अपने जोड़े में स्कूल जाता है। शायद यही अगली पीढ़ी फ्रांस में सिख पहचान को नया मुकाम देगी।

फिर भी “चढ़दी कला” में जीते हैं पेरिस के सिख

हालांकि चुनौतियाँ बहुत हैं, लेकिन पेरिस का सिख समुदाय “चढ़दी कला” यानि हर परिस्थिति में ऊँचे मनोबल के साथ जीना की मिसाल है। जसप्रीत जैसे कई सिख मानते हैं कि उनके बच्चे, जो अब फ्रेंच में निपुण हैं, आने वाले समय में इस मानसिकता को बदलने की कोशिश करेंगे।

पेरिस में सिख समुदाय का केंद्र हैं यहाँ के गुरुद्वारे, जो न सिर्फ आस्था के प्रतीक हैं बल्कि सामुदायिक एकता का भी केंद्र हैं।

पेरिस के प्रमुख गुरुद्वारे

पेरिस में कुल चार प्रमुख गुरुद्वारे हैं:

  1. गुरुद्वारा सिंह सभा, बॉबिनी
  2. गुरुद्वारा श्री गुरु रविदास पेरिस
  3. गुरुद्वारा सिंह सभा – पेरिस
  4. गुरुद्वारा गुरु तेग बहादुर साहिब पेरिस

हर हफ्ते यहां सैकड़ों लोग संगत में आते हैं, अरदास करते हैं, और बच्चों को पंजाबी, गुरबाणी और कीर्तन की शिक्षा दी जाती है।

बच्चों के लिए “गुरमत कैंप”

पेरिस की दशमेश सिख एकेडमी हर साल “गुरमत कैंप” आयोजित करती है। इसमें 3 से 20 साल तक के करीब 200 बच्चे शामिल होते हैं। उन्हें गुरबाणी के उच्चारण, सिख इतिहास, पंजाबी भाषा और गुरमत संगीत की शिक्षा दी जाती है। यह कैंप न सिर्फ धार्मिक ज्ञान का माध्यम है बल्कि नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़े रखने का प्रयास भी है।

शेर पंजाब कॉम्प्लेक्स की स्थापना

आपको जानकार हैरानी होगी कि पेरिस में एक ऐसा निजी सिख स्कूल है, जिसे फ्रांसीसी अधिकारियों द्वारा धार्मिक प्रतीकों, विशेषकर सिख टर्बन पर प्रतिबंध के कारण स्थापित किया गया था, जिसका नाम है “शेर पंजाब कॉम्प्लेक्स”। यह स्कूल एक स्थानीय सिख व्यापारी द्वारा स्थापित किया गया था, जिनके बेटे को 2004 में सार्वजनिक स्कूल से बाहर कर दिया गया था क्योंकि उसने कक्षा में टर्बन नहीं हटाया था। इस स्कूल की स्थापना के लिए लगभग 300,000 यूरो की लागत आई थी, जिसमें इमारत की लागत शामिल नहीं थी। इस स्कूल की शुरुआत 15 छात्रों के साथ हुई थी, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर काफी हो गई है और यह सिख समुदाय के बच्चों के लिए एक महत्वपूर्ण शिक्षा केंद्र बन चुका है।

संघर्ष से सहअस्तित्व तक

भले ही पेरिस के सिख समुदाय को हैं धार्मिक पहचान, रोजगार या सामाजिक स्वीकार्यता के स्तर पर चुनौतियाँ झेलनी पड़ रही लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। वे मेहनती हैं, शांतिप्रिय हैं और समाज में सकारात्मक योगदान देने में विश्वास रखते हैं।

पेरिस में सिखों की आबादी भले ही सिर्फ 5,000 हो, लेकिन उनका योगदान, उनकी संस्कृति और उनकी “चढ़दी कला” की भावना शहर के हर कोने में एक शांत, पर गूंजती हुई मौजूदगी की तरह महसूस होती है।

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Vastu Tips: सूर्यास्त के बाद भूलकर भी न करें ये काम, वरना रूठ सकती हैं मां लक्ष्मी

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Vastu Tips: सनातन धर्म और वास्तु शास्त्र में दिन के अलग-अलग समय को लेकर कई नियम बताए गए हैं। इन्हीं में से एक अहम समय है — सूर्यास्त के बाद का समय, जिसे बेहद संवेदनशील और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना गया है। हमारे घरों के बुजुर्ग अक्सर हमें शाम ढलते ही कुछ कामों से मना करते आए हैं। माना जाता है कि सूर्यास्त के बाद कुछ खास काम करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है और जीवन में परेशानियां बढ़ सकती हैं।

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शाम के बाद इन चीजों का दान न करें- Vastu Tips

वास्तु के अनुसार, सूर्यास्त के बाद दूध, दही या शक्कर का दान नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से घर में दरिद्रता आने की संभावना बढ़ जाती है। यह समय दान के लिए शुभ नहीं माना गया है। यदि किसी जरूरतमंद की मदद करनी हो, तो कोशिश करें कि यह काम सूर्यास्त से पहले ही कर लें।

तुलसी के पौधे को न छुएं

शाम के समय या सूर्यास्त के बाद कभी भी तुलसी के पत्ते तोड़ना या तुलसी में पानी डालना अशुभ माना गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, ऐसा करने से मां लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं और घर की समृद्धि पर असर पड़ता है। तुलसी को देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है, इसलिए सूर्यास्त के बाद उन्हें विश्राम का समय दिया जाता है। जो व्यक्ति इस नियम का पालन करता है, उस पर श्रीहरि विष्णु, सूर्यदेव और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहती है।

घर की दहलीज पर न बैठें

कई बार लोग शाम को ठंडी हवा लेने के लिए दरवाजे की दहलीज पर बैठ जाते हैं, लेकिन वास्तु शास्त्र में ऐसा करना गलत बताया गया है। माना जाता है कि सूर्यास्त के बाद दहलीज पर बैठने से लक्ष्मी जी रुष्ट हो जाती हैं और घर की बरकत कम होती है। इसलिए शाम के बाद दरवाजे या दहलीज पर बैठने से बचना चाहिए।

पैसों का लेन-देन टालें

शाम के समय पैसों का लेन-देन करना भी अशुभ माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि सूर्यास्त के बाद धन का लेन-देन करने से आर्थिक समस्याएं बढ़ सकती हैं और धन की हानि हो सकती है। इसलिए बेहतर यही है कि किसी को पैसा देना या किसी से लेना हो, तो यह काम दिन में ही निपटा लें।

झाड़ू लगाने से परहेज करें

हिंदू परंपरा में सूर्यास्त के बाद झाड़ू लगाने की मनाही है। माना जाता है कि शाम को झाड़ू लगाने से घर की सकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जाती है और दरिद्रता का वास हो जाता है। इसलिए कोशिश करें कि सफाई के काम दिन में ही पूरे कर लें।

शाम के समय न सोएं

शाम का समय आध्यात्मिक रूप से बेहद पवित्र माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि इसी वक्त मां लक्ष्मी घर में प्रवेश करती हैं, इसलिए इस समय सोना अशुभ होता है। शाम को सोने वाले व्यक्ति की आयु कम होती है और स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ सकती हैं। इस दौरान घर का मुख्य द्वार कुछ देर के लिए खुला रखना शुभ माना गया है।

बाल और नाखून न काटें

बहुत से लोग काम की व्यस्तता में शाम को ही अपने बाल या नाखून काट लेते हैं, लेकिन धर्मग्रंथों के अनुसार यह भी अशुभ माना गया है। सूर्यास्त के बाद बाल या नाखून काटना नकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है और जीवन में कठिनाइयों को आमंत्रित करता है। इससे मानसिक तनाव और अशांति बढ़ने की संभावना भी बताई गई है।

इन सभी बातों का जिक्र सनातन धर्म और वास्तु शास्त्र में इसलिए किया गया है ताकि व्यक्ति का जीवन संतुलित और शांतिपूर्ण बना रहे।

Disclaimer:इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य विश्वासों पर आधारित है। किसी भी निर्णय पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ या आचार्य से सलाह लेना उचित रहेगा।

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Haq Film Release: एक तलाक जिसने हिला दी थी अदालतें, अब ‘हक’ में जिंदा होगी शाह बानो क...

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Haq Film Release: भारतीय न्याय व्यवस्था के इतिहास में कुछ ऐसे नाम हैं, जो सिर्फ कानून की किताबों में नहीं, बल्कि लोगों के दिलों में भी दर्ज हैं। इंदौर की शाह बानो बेगम उन्हीं नामों में से एक हैं, जिनके संघर्ष ने देश में मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई को नई दिशा दी। साल 1985 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ने न सिर्फ शाह बानो को न्याय दिलाया, बल्कि तीन तलाक जैसी कुप्रथा पर भी सवाल खड़े किए। आज, उनके इसी संघर्ष की कहानी फिल्म ‘हक’ (Haq) के जरिए बड़े पर्दे पर दिखाई जाने वाली है।

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एक आम जिंदगी, जो बन गई इतिहास का हिस्सा- Haq Film Release

शाह बानो का जन्म 1916 में मध्य प्रदेश के इंदौर में एक साधारण मुस्लिम परिवार में हुआ। 1932 में 16 साल की उम्र में उनकी शादी मोहम्मद अहमद खान से हुई, जो शहर के एक जाने-माने वकील थे। शाह बानो ने अपना पूरा जीवन एक गृहिणी के रूप में बिताया, पांच बच्चों की परवरिश की और पति की दूसरी शादी को भी चुपचाप स्वीकार किया। लेकिन 1978 में, जब वह 62 साल की थीं, उनके पति ने उन्हें तीन बार ‘तलाक’ कहकर घर से निकाल दिया।

तलाक के बाद अहमद खान ने सिर्फ 500 रुपए का महर दिया और कहा कि अब शाह बानो का उनसे कोई संबंध नहीं। बिना किसी आय के शाह बानो और उनके बच्चों की जिंदगी मुश्किलों में घिर गई। मगर उन्होंने हार नहीं मानी और सीआरपीसी की धारा 125 के तहत इंदौर की अदालत में गुजारा भत्ता मांगने के लिए याचिका दायर की। यह धारा सभी धर्मों की महिलाओं को भरण-पोषण का अधिकार देती है।

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

शाह बानो का मामला धीरे-धीरे निचली अदालत से होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। उस समय के मुख्य न्यायाधीश वाई.वी. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच ने 23 अप्रैल 1985 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने शाह बानो को मासिक 179.20 रुपए गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया और कहा कि “धर्म किसी को न्याय से वंचित नहीं कर सकता।” इस फैसले ने महिलाओं के अधिकारों को नया बल दिया।

हालांकि यह फैसला मुस्लिम पर्सनल लॉ के समर्थकों को नागवार गुज़रा। कई संगठनों ने इसे धर्म पर हमला बताया। विवाद इतना बढ़ा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 1986 में ‘मुस्लिम वुमन एक्ट’ पारित किया, जिसने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कमजोर कर दिया। इसके तहत तलाकशुदा मुस्लिम महिला को सिर्फ 90 दिन की इद्दत अवधि तक भरण-पोषण का अधिकार दिया गया।

शाह बानो की लड़ाई बनी लाखों महिलाओं की आवाज़

शाह बानो ने साफ कहा था – “मैं पैसे के लिए नहीं, न्याय के लिए लड़ी हूं।” उनकी इस जिद ने देश की कई मुस्लिम महिलाओं को हिम्मत दी। शाह बानो के बाद सायरा बानो, शायरा बानो और कई अन्य महिलाओं ने तीन तलाक के खिलाफ आवाज उठाई। आखिरकार, 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक घोषित किया, और 2019 में मोदी सरकार ने इसे अपराध मानने वाला कानून पारित किया। यह फैसला शाह बानो के संघर्ष की सच्ची जीत थी।

अब बड़े पर्दे पर दिखेगी हककी कहानी

शाह बानो के इसी साहसिक सफर को अब निर्देशक सुपर्ण एस. वर्मा ने फिल्म ‘हक’ के रूप में रूपांतरित किया है। फिल्म 7 नवंबर 2025 को रिलीज हो रही है। इसमें यामी गौतम मुख्य किरदार शाजिया बानो के रूप में नजर आएंगी, जबकि इमरान हाशमी वकील अब्बास का किरदार निभा रहे हैं। यह फिल्म एक कोर्टरूम ड्रामा के रूप में शाह बानो की कानूनी और भावनात्मक लड़ाई को दर्शाएगी।

रिलीज से पहले विवादों में घिरी फिल्म

फिल्म ‘हक’ की रिलीज से ठीक पहले विवाद भी सामने आया। शाह बानो की बेटियों ने आपत्ति जताई है कि फिल्म में उनकी मां के निजी जीवन को बिना अनुमति दिखाया गया है। उन्होंने फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की मांग की थी। लेकिन 6 नवंबर 2025 को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिससे अब यह फिल्म तय तारीख पर सिनेमाघरों में दस्तक देगी।

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Tilak Varma Birthday: इलेक्ट्रीशियन के बेटे से टीम इंडिया के स्टार तक का सफर, जानें त...

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Tilak Varma Birthday: आज भारतीय क्रिकेट के युवा स्टार तिलक वर्मा अपना 23वां जन्मदिन मना रहे हैं। मुंबई इंडियंस ने 2022 के आईपीएल ऑक्शन में इस अनजान नाम पर 1.7 करोड़ रुपये खर्च किए थे, जिसने सभी को चौंका दिया। लेकिन मैदान पर तिलक की काबिलियत ने उन्हें टीम इंडिया के स्थायी सदस्य बनने का गौरव दिलाया। कई क्रिकेट पंडित उन्हें भविष्य का कप्तान मानते हैं।

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साधारण परिवार से उठी बड़ी उड़ान- Tilak Varma Birthday

तिलक वर्मा का जन्म 8 नवंबर 2002 को हैदराबाद में हुआ। उनके पिता नमबूरी नागराजू इलेक्ट्रीशियन थे और मां गायत्री देवी गृहिणी। बचपन से ही क्रिकेट तिलक के लिए शौक नहीं, बल्कि जुनून था। उनके पिता बताते हैं कि तिलक हमेशा प्लास्टिक बैट लेकर सोते थे। आर्थिक तंगी ने शुरू में उनके क्रिकेट करियर में बाधा डाली।

कोच सलाम बायश का योगदान

तिलक की किस्मत बदलने का श्रेय उनके कोच सलाम बायश को जाता है। एक दिन बरकस में टेनिस बॉल खेलते हुए बायश ने तिलक की टाइमिंग और हैंड-आई कोऑर्डिनेशन देखी और उन्हें अकादमी में खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। जब पता चला कि परिवार फीस नहीं दे सकता, तो बायश ने खुद सभी खर्च उठाने का वादा किया।

मेहनत और संघर्ष की कहानी

शुरुआती दिनों में तिलक रोज़ 10 किलोमीटर सफर करके कोच से मिलते और फिर 40 किलोमीटर दूर अकादमी जाते। लंबे और थकाऊ सफर को देखकर कोच ने परिवार से कहा कि अकादमी के पास शिफ्ट हो जाएं। 2013 में तिलक ने औपचारिक ट्रेनिंग शुरू की और जल्दी ही लोकल टूर्नामेंट्स में छा गए। 2014 में हैदराबाद की U14 टीम में जगह बनी।

जूनून और अभ्यास

तिलक रोज़ 12 घंटे से अधिक अभ्यास करते थे। U16 और U19 स्तर पर हैदराबाद का प्रतिनिधित्व किया। कूच बिहार और विनू मांकड़ ट्रॉफी में उनका प्रदर्शन उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाला साबित हुआ।

रणजी और आईपीएल में सफलता

2020 में रणजी ट्रॉफी में हैदराबाद से डेब्यू किया। लगातार प्रदर्शन के बाद मुंबई इंडियंस ने 2022 में उन्हें 1.7 करोड़ रुपये में खरीदा। डेब्यू सीजन में 14 मैचों में 397 रन बनाए। 2023 में भी उन्होंने 343 रन बनाकर अपनी क्षमता साबित की। स्पिन गेंदबाजों के खिलाफ उनका आत्मविश्वास उन्हें बाकी अनकैप्ड बल्लेबाजों से अलग बनाता है।

टीम इंडिया में प्रवेश

निरंतर प्रदर्शन ने 2023 में उन्हें वेस्टइंडीज़ दौरे पर भारतीय टी20 टीम में जगह दिलाई। डेब्यू मैच में 22 गेंदों पर 39 रन और दूसरे मैच में 51 रन बनाकर सबका ध्यान खींचा।

एशिया कप 2025: करियर का टर्निंग पॉइंट

एशिया कप 2025 के फाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ तिलक ने दबाव में शानदार बल्लेबाजी की और भारत को खिताब जिताया। इस पारी के बाद उन्हें क्रिकेट जगत में “जनरेशनल टैलेंट” कहा जाने लगा

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